झारखंड में 'भारत बंद' का दिखा असर: कोयला खदानों से पावर प्लांट तक काम ठप, unions और BMS आमने-सामने
रांची, झारखंड: केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा बुलाए गए देशव्यापी 'भारत बंद' का असर झारखंड के कई हिस्सों में स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है. विभिन्न यूनियनों के सदस्य हड़ताल को सफल बनाने के लिए सड़कों पर उतरे और कई जगहों पर चक्का जाम किया गया, जिससे सामान्य जनजीवन और औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित हुईं.
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धनबाद के कोयला क्षेत्रों में कामकाज ठप
बंद का सबसे ज्यादा असर झारखंड के कोयला खनन क्षेत्रों में दिखा. धनबाद जिले में स्थित गोविंदपुर उत्खनन विभाग, जो बीसीसीएल (BCCL) के 12 परिचालन क्षेत्रों में से एक है और कोयला खनन के लिए जाना जाता है, वहां यूनियन प्रतिनिधियों ने काम बंद करा दिया. इस इलाके में चालू और बंद दोनों तरह की खदानें मौजूद हैं, और मजदूरों की बड़ी संख्या ने हड़ताल का समर्थन किया.
इसके साथ ही, धनबाद के गांधीनगर क्षेत्र में भी देशव्यापी औद्योगिक हड़ताल का व्यापक असर दिखा. बोकारो में स्थित खासमहल कोनार परियोजना और बोकारो कोलियरी में संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने कामकाज ठप कराया. इस दौरान कई जगहों पर यूनियन समर्थकों और काम पर जाने के इच्छुक लोगों के बीच तीखी झड़पें भी देखने को मिलीं, हालांकि पुलिस और प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया.
बोकारो थर्मल पावर प्लांट में प्रदर्शन, BMS ने हड़ताल को बताया असफल
बंद के समर्थन में बोकारो थर्मल पावर प्लांट के मेन गेट पर एएमसी-एआरसी (AMC-ARC) मजदूरों ने प्रदर्शन और नारेबाजी की. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध जताया, जो केंद्र सरकार की श्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ उनके आक्रोश को दर्शाता है. बताया गया कि सीसीएल (CCL) गोविंदपुर परियोजना में भी हड़ताल सफल रही और मजदूरों ने काम में हिस्सा नहीं लिया.
हालांकि, इन सबके बीच भारतीय मजदूर संघ (BMS) के नेताओं ने इस हड़ताल को असफल बताया है. बीएमएस, जो आमतौर पर केंद्र सरकार की नीतियों का समर्थन करता है, ने इस बंद में हिस्सा नहीं लिया है और वह हड़ताल के प्रभाव को कम आंक रहा है. यह श्रमिक संगठनों के बीच नीतिगत मतभेदों को भी उजागर करता है.
प्रमुख मांगें और भविष्य की रणनीति
यह राष्ट्रव्यापी हड़ताल मुख्य रूप से केंद्र सरकार की चारों श्रम संहिताओं को तत्काल रद्द करने, मजदूरों के लिए ₹26,000 न्यूनतम वेतन और ₹9,000 न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित करने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, महंगाई पर रोक लगाने, आवश्यक वस्तुओं से जीएसटी हटाने और सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को रोकने जैसी प्रमुख मांगों पर केंद्रित है.
हड़ताल के आयोजकों का मानना है कि यह बंद सरकार पर उनकी मांगों को मानने का दबाव बनाएगा. वहीं, सरकार और संबंधित मंत्रालय इस स्थिति पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस हड़ताल का सरकार की नीतियों और श्रमिक संगठनों के बीच संबंधों पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है.
Jul 09 2025, 18:28