अपने पैरों पर खड़ा होना सीखें", शरद पवार की तस्वीरों के इस्तेमाल पर अजित पवार खेमे को सुप्रीम कोर्ट की सलाह

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सुप्रीम कोर्ट में राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अजित पवार गुट को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट अजित पवार गुट को “विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र पार्टी के रूप में लड़ने” का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पार्टी का विभाजन होने के बाद अब वह संस्‍थापक शरद पवार की फोटो या वीडियो का महाराष्‍ट्र में हो रहे चुनावों में प्रचार के लिए इस्‍तेमाल नहीं करें।कोर्ट ने अजित पवार गुट से कहा कि आपकी अपनी अलग पहचान है, आप उस पर महाराष्ट्र का चुनाव लड़िए।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुयन की बेंच ने केस पर सुनवाई की। एनसीपी शरद पवार की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने सोशल मीडिया पोस्ट, पोस्टर्स के फोटो दिखाए और बेंच से कहा कि एनसीपी अजित पवार ने ये सभी चीजें कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर पब्लिश की हैं। अभिषेक सिंघवी ने कहा कि अजित गुट चुनाव प्रचार में शरद पवार के पुराने वीडियो का इस्‍तेमाल कर रहा है। इससे लोगों में ये भ्रम उत्‍पन्‍न हो गया है कि दोनों गुट एक दूसरे के विरोधी नहीं है।

इस दलील का विरोध करते हुए अजित गुट की ओर से पेश वकील बलबीर सिंह ने कहा कि ये वीडियो मौजूदा चुनाव प्रचार अभियान का हिस्‍सा नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ये वीडियो पुराना है या नहीं...लेकिन आपका शरद पवार के साथ वैचारिक मतभेद है और आप एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। इसलिए आपको खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए।

कोर्ट ने अजित पवार के ऑफिस को निर्देश दिया कि वो अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक सर्कुलर जारी करें कि वो शरद पवार का फोटो या वीडियो प्रचार के लिए यूज नहीं करे। कोर्ट ने कहा कि आप पृथक और भिन्‍न राजनीतिक दल होने के नाते अपनी अलग पहचान बनाएं।

बता दें कि एनसीपी पार्टी में फूट के बाद अजित पवार और शरद पवार अलग-अलग पार्टी बन गई। इसके बाद एनसीपी शरद पवार गुट ने पार्टी और सिंबल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। साथ ही शरद पवार गुट ने यह भी आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों का अजित पवार गुट द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है। याचिका पर 7 नवंबर को सुनवाई हुई। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अजित पवार ग्रुप को 36 घंटे के अंदर अखबार में विज्ञापन प्रकाशित करने का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि घड़ी चुनाव चिन्ह का मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

अवैध निर्माण पर बुलडोजर एक्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस, जिसे फॉलो कर तोड़ा जा सकता है मकान
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* सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्‍शन पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि किसी का भी आशियाना तोड़ना अवैध है। अदालत ने कहा है कि अधिकारी न्यायाधीश नहीं बन सकते। आरोपी को दोषी घोषित नहीं कर सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्‍शन को लेकर लंबी चौड़ी गाइडलाइन जारी की है, जिनका मकसद सरकारों को इस तरह की कार्रवाई से रोकना है। बुलडोजर एक्शन पर गाइडलाइन जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है, जिसकी सच्चाई का निर्धारण सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसी संपत्तियों को ध्वस्त करता है तो यह सही नहीं होगा। यदि कार्यपालिका संपत्ति को ध्वस्त करता है तो यह कानून के नियमों का उल्लंघन है। किसी को भी बिना ट्रायल के दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है। ऐसे सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। *बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए ये निर्देश* • यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। • बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद तस्वीर नहीं है। • सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश। • बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण नहीं। • मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और संरचना के बाहर चिपकाया जाएगा। • नोटिस से 15 दिनों का समय नोटिस तामील होने के बाद है। • तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। • कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे। • नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा। • प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा/ इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है, और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। • आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। • आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे। • विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए। • सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। • इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा। • सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए जाने चाहिए। *यूपी की योगी सरकार में शुरू हुआ बुलडोजर एक्‍शन?* उत्‍तर प्रदेश की योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने सबसे पहले बुलडोजर एक्‍शन का चलन शुरू किया था, जिसे धीरे धीरे अन्‍य बीजेपी शासित राज्‍यों में भी अपनाया गया. इसके तहत अगर कोई व्‍यक्ति हिंसक घटना या दंगों में शामिल पाया गया जाता है तो उसके घर पर बुलडोजर की कार्रवाई की होती है. आमतौर पर हर किसी के घर पर थोड़ा बहुत अवैध निर्माण तो होता ही है. बस इसी को तोड़ने में पूरा सरकारी तंत्र लग जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर माना क‍ि किसी आरोपी के घर को तोड़ना एक गलत प्रथा है. हालां‍कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भविष्‍य में बुलडोजर एक्‍शन बंद हो जाएगा, ऐसा होना मुश्किल नजर आता है
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार, सुप्रीम कोर्न ने पलटा इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

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सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम फैसले में एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया।

फैसला सुनाते वक्त सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों की एक राय है। मैंने बहुमत लिखा है। जबकि 3 जजों की राय अलग है। इस तरह से यह फैसला 4:3 से तय किया गया। फैसले को लेकर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी असहमति जताई, जबकि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा।

साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट ने बीती 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है?

साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था। हालांकि साल 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से बरकरार कर दिया गया था। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में 'अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य' मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।

दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, पूछा- प्रतिबंध के बाद भी क्यों फोड़े गए पटाखे

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देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक लेबल पर पहुंच गया है। बढ़ते प्रदूषण के बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखों को लेकर दिए गए आदेश का पालन नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए दिल्ली सरकार को खूब फटकार लगाई है। कोर्ट ने दिल्ली में दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। कोर्ट ने पटाखों पर बैन के बावजूद उनके इस्तेमाल पर गहरी आपत्ति जताई और पूछा कि अगले साल इस प्रतिबंध का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

पटाखों पर बैन सख्ती से क्यों लागू नहीं किया गया?

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस ओका के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय बेंच ने सवाल किया, अखबारों में बड़े पैमाने पर खबरें आ रही हैं कि पटाखों पर प्रतिबंध लागू नहीं हुआ। दिल्ली सरकार की ओर से कौन पेश हो रहा है? दिल्ली सरकार जवाब दे कि यह बैन क्यों सख्ती से लागू नहीं किया गया? इस बेंच में जस्टिस ओका के अलावा जस्टिस ऑगस्टीन मसीह भी शामिल थे

दिल्ली सरकार को नोटिस

सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमाइकस ने जिस रिपोर्ट का हवाला दिया, उससे यह बात साफ हो गई है कि इस बार प्रदूषण का स्तर अब तक के उच्चतम स्तर पर है। यहां तक कि रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ताड़ की आग भी उच्च समय पर बढ़ रही थी। हम दिल्ली सरकार को प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं।

पराली जलाने पर भी हलफनामा देने का निर्देश

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को प्रतिबंध लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दायर करने का भी निर्देश देते हैं। दोनों को इस बात पर प्रकाश डालना चाहिए कि वे क्या कदम उठाने का प्रस्ताव रखते हैं ताकि अगले साल ऐसा न हो। इसमें सार्वजनिक अभियान के कदम भी शामिल होने चाहिए। अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा राज्यों द्वारा पराली जलाने के पिछले 10 दिनों के विवरण के संबंध में हलफनामा भी दायर किया जाना चाहिए।

बता दें कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। दिवाली के बाद इसमें और बढ़ोतरी हुई। कई इलाकों में एक्यूआई 400-500 के बीच दर्ज किया गया। दमघोंटू हवा का असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। इसके बाद भी प्रदूषण के स्तर पर में अभी तक कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है।

सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिया चक्रवर्ती को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और सरकार को फटकारा

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सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सीबीआई की उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। दरअसल, हाई कोर्ट ने रिया चक्रवर्ती, उनके पिता और भाई के खिलाफ जारी किए गए लुक-आउट सर्कुलर को रद्द कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सीबीआई और महाराष्ट्र राज्य पर बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सिर्फ इसलिए चुनौती देने का आरोप लगाया क्योंकि वो हाई-प्रोफाइल बैकग्राउंड से हैं।इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर बड़ी टिप्पणी की है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हम चेतावनी दे रहे हैं। आप सिर्फ इसलिए इतनी ये तुच्छ याचिका दायर कर रहे हैं क्योंकि आरोपियों में से एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति है। इस पर यकीनन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इनकी समाज में गहरी जड़ें है। सीबीआई अगर जुर्माना और कुछ कड़ी टिप्पणियां लेना चाहती है तो मामले में बहस करें।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में साल 2020 में सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती उनके भाई और पिता पर लुक आउट सर्कुलर जारी किया था। इसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसे जारी करने के पीछे कोई खास वजह नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया था कि एक्ट्रेस और उनके परिवार ने जांच एजेंसियों के साथ पूरा-पूरा सहयोग किया है।

बता दें, एक्टर सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को बांद्रा के फ्लैट में मृत पाए गए थे। इस मामले में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार पर सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा, जिसकी जांच मुंबई पुलिस कर रही थी। हालांकि, बाद में यह केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद 2020 में ही सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के खिलाफ लुक-आउट सर्कुलर जारी किया था।बॉम्बे हाई कोर्ट ने फरवरी में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के खिलाफ जारी सीबीआई का लुक-आउट सर्कुलर को रद्द कर दिया था। इसके बाद सीबीआई ने सर्कुलर लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह कानून में बताई सुधार की जरुरत, कहा-पर्सनल लॉ के जरिए अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है। इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिसरा की तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही, कुछ अहम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए बनाए गए कानून को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।

अदालत ने बाल विवाह कानून में भी कुछ खामियों की बात कही है। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित करना आखिरी विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा – अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर काम किया जाना चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब अलग-अलग क्षेत्रों के बीच एक समन्वय स्थापित होगा। साथ ही, कानून लागू करने वाले अधिकारियों का सही से प्रशिक्षण और उनकी क्षमता का निर्माण जरूरी है।

अपने पैरों पर खड़ा होना सीखें", शरद पवार की तस्वीरों के इस्तेमाल पर अजित पवार खेमे को सुप्रीम कोर्ट की सलाह

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सुप्रीम कोर्ट में राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अजित पवार गुट को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट अजित पवार गुट को “विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र पार्टी के रूप में लड़ने” का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पार्टी का विभाजन होने के बाद अब वह संस्‍थापक शरद पवार की फोटो या वीडियो का महाराष्‍ट्र में हो रहे चुनावों में प्रचार के लिए इस्‍तेमाल नहीं करें।कोर्ट ने अजित पवार गुट से कहा कि आपकी अपनी अलग पहचान है, आप उस पर महाराष्ट्र का चुनाव लड़िए।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुयन की बेंच ने केस पर सुनवाई की। एनसीपी शरद पवार की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने सोशल मीडिया पोस्ट, पोस्टर्स के फोटो दिखाए और बेंच से कहा कि एनसीपी अजित पवार ने ये सभी चीजें कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर पब्लिश की हैं। अभिषेक सिंघवी ने कहा कि अजित गुट चुनाव प्रचार में शरद पवार के पुराने वीडियो का इस्‍तेमाल कर रहा है। इससे लोगों में ये भ्रम उत्‍पन्‍न हो गया है कि दोनों गुट एक दूसरे के विरोधी नहीं है।

इस दलील का विरोध करते हुए अजित गुट की ओर से पेश वकील बलबीर सिंह ने कहा कि ये वीडियो मौजूदा चुनाव प्रचार अभियान का हिस्‍सा नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ये वीडियो पुराना है या नहीं...लेकिन आपका शरद पवार के साथ वैचारिक मतभेद है और आप एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। इसलिए आपको खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए।

कोर्ट ने अजित पवार के ऑफिस को निर्देश दिया कि वो अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक सर्कुलर जारी करें कि वो शरद पवार का फोटो या वीडियो प्रचार के लिए यूज नहीं करे। कोर्ट ने कहा कि आप पृथक और भिन्‍न राजनीतिक दल होने के नाते अपनी अलग पहचान बनाएं।

बता दें कि एनसीपी पार्टी में फूट के बाद अजित पवार और शरद पवार अलग-अलग पार्टी बन गई। इसके बाद एनसीपी शरद पवार गुट ने पार्टी और सिंबल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। साथ ही शरद पवार गुट ने यह भी आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों का अजित पवार गुट द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है। याचिका पर 7 नवंबर को सुनवाई हुई। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अजित पवार ग्रुप को 36 घंटे के अंदर अखबार में विज्ञापन प्रकाशित करने का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि घड़ी चुनाव चिन्ह का मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

अवैध निर्माण पर बुलडोजर एक्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस, जिसे फॉलो कर तोड़ा जा सकता है मकान
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* सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्‍शन पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि किसी का भी आशियाना तोड़ना अवैध है। अदालत ने कहा है कि अधिकारी न्यायाधीश नहीं बन सकते। आरोपी को दोषी घोषित नहीं कर सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्‍शन को लेकर लंबी चौड़ी गाइडलाइन जारी की है, जिनका मकसद सरकारों को इस तरह की कार्रवाई से रोकना है। बुलडोजर एक्शन पर गाइडलाइन जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है, जिसकी सच्चाई का निर्धारण सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसी संपत्तियों को ध्वस्त करता है तो यह सही नहीं होगा। यदि कार्यपालिका संपत्ति को ध्वस्त करता है तो यह कानून के नियमों का उल्लंघन है। किसी को भी बिना ट्रायल के दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है। ऐसे सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। *बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए ये निर्देश* • यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। • बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद तस्वीर नहीं है। • सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश। • बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण नहीं। • मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और संरचना के बाहर चिपकाया जाएगा। • नोटिस से 15 दिनों का समय नोटिस तामील होने के बाद है। • तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। • कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे। • नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा। • प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा/ इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है, और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। • आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। • आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे। • विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए। • सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। • इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा। • सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए जाने चाहिए। *यूपी की योगी सरकार में शुरू हुआ बुलडोजर एक्‍शन?* उत्‍तर प्रदेश की योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने सबसे पहले बुलडोजर एक्‍शन का चलन शुरू किया था, जिसे धीरे धीरे अन्‍य बीजेपी शासित राज्‍यों में भी अपनाया गया. इसके तहत अगर कोई व्‍यक्ति हिंसक घटना या दंगों में शामिल पाया गया जाता है तो उसके घर पर बुलडोजर की कार्रवाई की होती है. आमतौर पर हर किसी के घर पर थोड़ा बहुत अवैध निर्माण तो होता ही है. बस इसी को तोड़ने में पूरा सरकारी तंत्र लग जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर माना क‍ि किसी आरोपी के घर को तोड़ना एक गलत प्रथा है. हालां‍कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भविष्‍य में बुलडोजर एक्‍शन बंद हो जाएगा, ऐसा होना मुश्किल नजर आता है
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार, सुप्रीम कोर्न ने पलटा इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

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सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम फैसले में एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया।

फैसला सुनाते वक्त सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों की एक राय है। मैंने बहुमत लिखा है। जबकि 3 जजों की राय अलग है। इस तरह से यह फैसला 4:3 से तय किया गया। फैसले को लेकर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी असहमति जताई, जबकि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा।

साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट ने बीती 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है?

साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था। हालांकि साल 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से बरकरार कर दिया गया था। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में 'अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य' मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।

दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, पूछा- प्रतिबंध के बाद भी क्यों फोड़े गए पटाखे

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देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक लेबल पर पहुंच गया है। बढ़ते प्रदूषण के बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखों को लेकर दिए गए आदेश का पालन नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए दिल्ली सरकार को खूब फटकार लगाई है। कोर्ट ने दिल्ली में दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। कोर्ट ने पटाखों पर बैन के बावजूद उनके इस्तेमाल पर गहरी आपत्ति जताई और पूछा कि अगले साल इस प्रतिबंध का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

पटाखों पर बैन सख्ती से क्यों लागू नहीं किया गया?

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस ओका के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय बेंच ने सवाल किया, अखबारों में बड़े पैमाने पर खबरें आ रही हैं कि पटाखों पर प्रतिबंध लागू नहीं हुआ। दिल्ली सरकार की ओर से कौन पेश हो रहा है? दिल्ली सरकार जवाब दे कि यह बैन क्यों सख्ती से लागू नहीं किया गया? इस बेंच में जस्टिस ओका के अलावा जस्टिस ऑगस्टीन मसीह भी शामिल थे

दिल्ली सरकार को नोटिस

सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमाइकस ने जिस रिपोर्ट का हवाला दिया, उससे यह बात साफ हो गई है कि इस बार प्रदूषण का स्तर अब तक के उच्चतम स्तर पर है। यहां तक कि रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ताड़ की आग भी उच्च समय पर बढ़ रही थी। हम दिल्ली सरकार को प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं।

पराली जलाने पर भी हलफनामा देने का निर्देश

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को प्रतिबंध लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दायर करने का भी निर्देश देते हैं। दोनों को इस बात पर प्रकाश डालना चाहिए कि वे क्या कदम उठाने का प्रस्ताव रखते हैं ताकि अगले साल ऐसा न हो। इसमें सार्वजनिक अभियान के कदम भी शामिल होने चाहिए। अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा राज्यों द्वारा पराली जलाने के पिछले 10 दिनों के विवरण के संबंध में हलफनामा भी दायर किया जाना चाहिए।

बता दें कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। दिवाली के बाद इसमें और बढ़ोतरी हुई। कई इलाकों में एक्यूआई 400-500 के बीच दर्ज किया गया। दमघोंटू हवा का असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। इसके बाद भी प्रदूषण के स्तर पर में अभी तक कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है।

सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिया चक्रवर्ती को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और सरकार को फटकारा

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सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सीबीआई की उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। दरअसल, हाई कोर्ट ने रिया चक्रवर्ती, उनके पिता और भाई के खिलाफ जारी किए गए लुक-आउट सर्कुलर को रद्द कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सीबीआई और महाराष्ट्र राज्य पर बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सिर्फ इसलिए चुनौती देने का आरोप लगाया क्योंकि वो हाई-प्रोफाइल बैकग्राउंड से हैं।इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर बड़ी टिप्पणी की है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हम चेतावनी दे रहे हैं। आप सिर्फ इसलिए इतनी ये तुच्छ याचिका दायर कर रहे हैं क्योंकि आरोपियों में से एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति है। इस पर यकीनन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इनकी समाज में गहरी जड़ें है। सीबीआई अगर जुर्माना और कुछ कड़ी टिप्पणियां लेना चाहती है तो मामले में बहस करें।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में साल 2020 में सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती उनके भाई और पिता पर लुक आउट सर्कुलर जारी किया था। इसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसे जारी करने के पीछे कोई खास वजह नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया था कि एक्ट्रेस और उनके परिवार ने जांच एजेंसियों के साथ पूरा-पूरा सहयोग किया है।

बता दें, एक्टर सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को बांद्रा के फ्लैट में मृत पाए गए थे। इस मामले में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार पर सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा, जिसकी जांच मुंबई पुलिस कर रही थी। हालांकि, बाद में यह केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद 2020 में ही सीबीआई ने रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के खिलाफ लुक-आउट सर्कुलर जारी किया था।बॉम्बे हाई कोर्ट ने फरवरी में रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के खिलाफ जारी सीबीआई का लुक-आउट सर्कुलर को रद्द कर दिया था। इसके बाद सीबीआई ने सर्कुलर लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह कानून में बताई सुधार की जरुरत, कहा-पर्सनल लॉ के जरिए अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है। इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिसरा की तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही, कुछ अहम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए बनाए गए कानून को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।

अदालत ने बाल विवाह कानून में भी कुछ खामियों की बात कही है। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित करना आखिरी विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा – अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर काम किया जाना चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब अलग-अलग क्षेत्रों के बीच एक समन्वय स्थापित होगा। साथ ही, कानून लागू करने वाले अधिकारियों का सही से प्रशिक्षण और उनकी क्षमता का निर्माण जरूरी है।