जब तक मजबूत केस नहीं, अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं” वक्फ कानून पर सीजेआई गवई की दो टूक

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सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ अधिनियम, 2025 को लेकर सुनवाई चल रही है. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यों की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। वक्फ (संशोधन)अधिनियम 2025 के मामले पर अंतिम फैसला आने तक संशोधित कानून को लागू करने पर रोक लगाई गई है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने जब तक मजबूत केस नहीं बनता, तब तक अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं।

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून में किसी को भी वक्फ संपत्ति को लेकर आपत्ति जताने का हक दिया गया है और जब तक उस पर विवाद चलेगा तो संपत्ति वक्फ की नहीं रहेगी। उनको आपत्ति है कि 100-200 साल पुराने वक्फ के कागजात कहां से आएंगे और अल्लाह को दान की गई संपत्ति किसी और को ट्रांसफर कैसे की जा सकती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से उन्होंने दलील दी कि यह हमारे डीएनए में हैं। सिब्बल ने कहा कि अगर वक्फ संपत्ति को लेकर कोई विवाद होता है तो उसका फैसला करने वाला भी सरकार का अधिकारी ही होगा। उन्होंने कहा कि नए कानून के अनुसार कोई भी वक्फ संपत्ति पर आपत्ति जता सकता है।।

सिब्बल ने कोर्ट को वक्फ का मतलब समझाते हुए कहा, 'वक्फ क्या है, यह अल्लाह को किया गया दान है, जिसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। एक बार वक्फ की गई संपत्ति वक्फ ही रहती है।' कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ संपत्ति के मैनेजमेंट का अधिकार लिया जा रहा। सिब्बल ने कहा कि यह अधिनियम सरकार की ओर से वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का एक प्रयास है।

इसी दौरान सीजेआई गवई ने कहा, यह मामला संवैधानिकता के बारे में है। अदालतें आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं करती हैं, इसलिए जब तक आप एक बहुत मजबूत मामला नहीं बनाते, कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करती है। सीजेआई ने आगे कहा कि औरंगाबाद में वक्फ संपत्तियों को लेकर बहुत सारे विवाद हैं।

अंतरिम आदेश के लिए सुनवाई इन तीन मुद्दों तक ही सीमित रखें, केंद्र की सुप्रीम कोर्ट से अपील

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सुप्रीम कोर्ट, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सीजेआई बी आर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद के चंद्रन की बेंच सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि बेंच ने पहले तीन मुद्दे उठाए थे ⁠स्टे के लिए। हमने इन तीनों पर जवाब दाखिल किया था। लेकिन अब लिखित दलीलों में और भी मुद्दे शामिल हो गए हैं। सिर्फ तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित हो। कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया।

सरकार ने जिन मुद्दों पर सुनवाई सीमित रखने की अपील की है, उनमें एक मुद्दा है अदालत द्वारा घोषित, वक्फ बाय यूजर या वक्फ बाय डीड संपत्ति को डी-नोटिफाई करने का है। दूसरा मुद्दा केंद्रीय और प्रदेश वक्फ बोर्ड के गठन से जुड़ा है, जिनमें गैर मुस्लिमों को शामिल किए जाने का विरोध हो रहा है। तीसरा मुद्दा वक्फ कानून के उस प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें जिलाधिकारी द्वारा जांच और उसकी मंजूरी के बाद ही किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित किया जाएगा।

वक्फ अधिनियम, 2025 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले लोगों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने इन दलीलों का विरोध किया कि अलग-अलग हिस्सों में सुनवाई नहीं हो सकती। एक मुद्दा अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है।

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए। तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।

इससे पहले 17 अप्रैल को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सुनिश्चित किया था कि वे किसी भी वक्फ संपत्ति को डी-नोटिफाई नहीं करेंगे, इनमें वक्फ बाय यूजर भी शामिल है। साथ ही वक्फ बोर्डों में नई नियुक्ति पर भी कोई नई नियुक्ति न करने की बात कही थी।

भारत कोई धर्मशाला नहीं...जानें सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी की वजह

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सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थियों को रखा जा सके। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें?

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये बात कही। सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक नागरिक की हिरासत के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगाए गए 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।

हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया। उसने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से जुड़े होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। लिट्टे एक आतंकवादी संगठन था। यह कभी श्रीलंका में सक्रिय था। 2018 में, एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। उसे 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्वासन से पहले उसे एक शरणार्थी शिविर में रहना होगा। इसका मतलब है कि उसे देश से निकालने से पहले कुछ समय के लिए एक खास शिविर में रहना होगा।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह की बढ़ी मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा

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कर्नल सोफिया पर विवादित बयान देने वाले मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है।कर्नल कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह मामला गंभीर है और इसे किसी भी तरह से राजनीतिक रंग नहीं लेने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए बयान पर फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम इस मामले में मंत्री की माफी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा, "आप एक सार्वजनिक चेहरा हैं। एक अनुभवी नेता हैं। आपको बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलना चाहिए। हमें आपके वीडियो यहां चलाने चाहिए। यह सेना के लिए एक अहम मुद्दा है। हमें इस मामले में बेहद जिम्मेदार होना होगा।"

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एसवीएन भट की पीठ इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से सख्त लहजे में कहा कि हम इस केस को बहुत करीब से देख रहे हैं और यह सरकार के लिए एक अग्नि परीक्षा है। अदालत ने कहा कि मंत्री को उनके बयान के नतीजे भुगतने होंगे और कानून को अपना रास्ता तय करने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि एफआईआर की जांच एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें एमपी कैडर के सीधे भर्ती किए गए 3 वरिष्ठ आईपीसी अधिकारी शामिल हों, लेकिन जो एमपी से संबंधित नहीं हों। इन 3 में से 1 महिला आईपीएस अधिकारी होनी चाहिए। डीजीपी, एमपी को कल रात 10 बजे से पहले एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया जाता है। इसका नेतृत्व एक आईजीपी द्वारा किया जाना चाहिए और दोनों सदस्य भी एसपी या उससे ऊपर के रैंक के होंगे।

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने दलील देते हुए कहा कि विजय शाह माफी मांग रहे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपकी माफी कहां है? यह जिस प्रकृति का मामला है, आप किस तरह कि माफी मांगना चाहते हैं, आपका क्या घड़ियाली आंसू बहाना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने बिना सोचे जो किया और अब माफी मांग रहे हैं। हमें आपकी माफी नहीं चाहिए। अब कानून के मुताबिक निपटेंगे। आपने अगर दोबारा माफी मांगी तो हम अदालत की अवमानना मानेंगे। आप पब्लिक फिगर हैं, राजनेता हैं और क्या बोलते हैं? ये सब वीडियो में है और आप कहां जाकर रुकेंगे। संवेदनशील होना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह बहुत गैर जिम्मेदाराना है। हमें अपनी आर्मी पर गर्व है और आप टाइमिंग देखिए, क्या आप बोले?

इससे पहले बीते गुरुवार को विजय शाह सुप्रीम कोर्ट की शरण पहुंचे और एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन शाह को यहां भी फटकार ही पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप संवैधानिक पद हैं, आपको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। एक मंत्री होकर आप कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर कें कंटेंट को लेकर भी फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की भाषा ऐसी लिखी गई है जो चुनौती देने पर निरस्त हो जाए। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एफआईआर में सुधार करने और पुलिलिस विवेचना की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट द्वारा किए जाने के भी आदेश दिए।

एक मंत्री होकर कैसी भाषा का इस्तेमाल...कर्नल सोफिया को लेकर विवादित बयान देने वाले मंत्री को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा

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मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह इस समय सुर्खियों में हैं। जब देश कर्नल सोफिया कुरैशी और विगं कमांडर व्योमिका सिंह के के जरिए नारी शक्ति का अभिवादन कर रहा है। उस वक्त बीजेपी के नेता ने कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी। कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उन पर एक्शन लिया। साथ ही उन पर एफआईआर भी दर्ज कर ली गई। हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, उन्हें राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें फटकार मिली है।

सुप्रीम कोर्ट ने कुंवर विजय शाह को फटकार लगाते हुए कहा कि जब देश ऐसी स्थिति से गुजर रहा है, तो संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को जिम्मेदार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि वह क्या कह रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष मामले को तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया गया। सीजेआई ने शाह के वकील से कहा, 'आप किस तरह के बयान दे रहे हैं। आप सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री हैं।' इस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता एफआईआर पर रोक लगाने की मांग कर रहा है। पीठ ने कहा कि याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।

क्या है शाह का बयान

दरअसल, कर्नल सोफिया कुरैशी 'ऑपरेशन सिंदूर' का चेहरा बनी थीं। उन्होंने भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादी ठिकानों पर की गई सैन्य कार्रवाई के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। विजय शाह ने इस पर विवादित बयान देते हुए कहा था कि जिन्होंने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े थे… हमने उन्हीं की बहन भेज कर के उनकी ऐसी की तैसी करवाई।

मंत्री ने मांगी माफी

विजय शाह का वीडियो वायरल होने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई। साथ ही उनके इस्तीफे की मांग भी की जा रही है। इसी बीच मंत्री ने वीडियो जारी कर के माफी भी मांगी है और सोफिया कुरैशी को अपनी बहन बताया है। उन्होंने माफी मांगते हुए कहा, हाल ही में मैंने जो बयान दिया अगर उसकी वजह से किसी भी समाज की भावना आहत हुई है, तो इसके लिए मैं दिल से न सिर्फ शर्मिंदा हूं बल्कि बेहद दुखी भी हूं और सभी से माफी चाहता हूं। उन्होंने सोफिया कुरैशी को लेकर आगे कहा, हमारे देश की वो बहन, सोफिया कुरैशी, जिन्होंने राष्ट्र धर्म निभाते हुए जाति और समाज से ऊपर उठकर जो काम किया है, उन्हें हमारी सगी बहन से भी ऊपर सम्मानित मानता हूं।

हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस बयान को बहुत ही आपत्तिजनक माना। हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि शाह की टिप्पणी 'तिरस्कारपूर्ण', 'खतरनाक' और 'नालियों की भाषा' जैसी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह टिप्पणी न केवल उस अधिकारी को निशाना बनाती है, बल्कि पूरे सशस्त्र बलों को बदनाम करती है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पहली नजर में मंत्री के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत अपराध बनता है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से समयसीमा तय किए जाने पर राष्ट्रपति ने उठाए सवाल, सर्वोच्च अदालत से पूछे ये 14 सवाल

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास वीटो का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होगा। इसमें राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों को विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा तय करने पर टिप्पणी की गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले पर सर्वोच्च अदालत से 14 सवाल पूछे हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 बेहद अहम सवाल पूछते हुए यह साफ किया है कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो विधेयकों पर मंजूरी या नामंजूरी की समयसीमा तय करती हो। राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर फैसला लेते हैं, लेकिन ये अनुच्छेद कहीं भी कोई समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति का यह विवेकपूर्ण निर्णय संघवाद, कानूनों की एकरूपता, राष्ट्रीय सुरक्षा और शक्तियों के बीच संतुलन जैसे बहुपक्षीय पहलुओं पर आधारित होता है।

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। इन सवालों में पूछा गया है कि राज्यपाल के पास क्या विकल्प हैं जब कोई बिल उनके पास आता है? क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं? क्या राज्यपाल का विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है?

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल-

1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?

2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?

5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?

6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?

7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?

8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?

9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं।

10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?

11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?

12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है?

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?

14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के किस जज के पास कितनी संपत्ति, सीजेआई के पास 10 साल पुरानी स्विफ्ट कार और 250 ग्राम सोना


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सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी को ऑफिशियल वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जुडिशियरी में ट्रांसपेरेंसी के तहत ऐतिहासिक फैसला लिया है। जनता का विश्वास जुडिशियरी पर और बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। भारत में ऐसा पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक की गई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा मामले के बाद फैसला

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 22 जजों की संपत्ति का ब्यौरा अपलोड किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 है। उनमें से 22 की डिटेल मौजूद है। इनमें सीजेआई संजीव खन्ना समेत अन्य जजों की घोषणाएं हैं। इनमें वे तीन जज भी शामिल हैं, जो निकट भविष्य में सीजेआई बनने की कतार में हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की चल और अचल संपत्तियों का ब्योरा है। किस जज के पास कितना पैसा है, कितना सोना-चांदी और कार है, यह सब मौजूद है। दरअसल, सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में बीते दिनों कोर्ट ने यह फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित कैश की बरामदगी की घटना के बाद लिया था।

चीफ जस्टिस के पास है कितनी संपत्ति?

सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पास साउथ दिल्ली में तीन बेडरूम वाला डीडीए फ्लैट, दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज में दो पार्किंग स्पेस के साथ चार बेडरूम वाला फ्लैट है, जिसका सुपर एरिया 2446 वर्ग फीट है। गुरुग्राम के सेक्टर 49 के सिसपाल विहार में चार बेडरूम वाले फ्लैट में 56 प्रतिशत हिस्सा, जिसका सुपर एरिया 2016 वर्ग फीट है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में जमीन में अविभाजित हिस्से के साथ घर के आंशिक मालिक देव राज खन्ना (एचयूएफ) में हिस्सा है।

एफ.डी.आर. और बैंक खाते में लगभग 55 लाख 75 हजार, पी.पी.एफ लगभग एक करोड़ 6 लाख 86 हजार, जी.पी.एफ. में 1 करोड़ 77 लाख 89 हजार, एल.आई.सी. मनी बैक पॉलिसी वार्षिक प्रीमियम 29,625 रुपये, शेयर में14 हजार, सोना – 250 ग्राम, चांदी -2 किलोग्राम है। सोना और चांदी ज्यादातर विरासत और गिफ्ट में मिले हैं। साथ ही एक 2015 मॉडल की स्विफ्ट मारुति कार है। इनके एफडीआर और बैंक खाते 55 लाख 75 हजार रुपये है।

इनकी पत्नी के पास 700 ग्राम सोना, 5 किलोग्राम चांदी, कुछ हीरे की अंगूठियां, पेंडेंट और झुमके हैं। साथ ही कुछ मोती और माणिक की लड़ियां भी हैं। इनमें से ज्यादातर चीजें विरासत में मिली हैं या फिर किसी खास मौके पर गिफ्ट में दी गई हैं।

अगले सीजेआई के पास कितनी संपत्ति

इसके बाद जस्टिस बी आर गवई इस महीने की आखिर तक अगले सीजेआई बनेंगे। उनके पास महाराष्ट्र के अमरावती में एक घर है, जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है। इसके अलावा उनके पास डिफेंस कॉलोनी में एक आवासीय अपार्टमेंट और अमरावती और नागपुर में कृषि भूमि है। जस्टिस गवई ने शेयरों और म्यूचुअल फंड में भी निवेश किया है। पीपीएफ में 6,59,692 रुपये और सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) में 35,86,736 रुपये जमा हैं।

नियुक्ति प्रक्रिया भी की गई सार्वजनिक

संपत्ति के ब्योरे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया भी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इसमें हाई कोर्ट कॉलेजियम को सौंपी गई भूमिका, राज्य और केंद्र सरकार से प्राप्त भूमिका और इनपुट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के विचार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला जनता की जानकारी और जागरूकता के लिए लिया गया है।

जम्मू कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जानें क्या कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिक को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि यह पीआईएल सिर्फ प्रचार पाने के लिए की गई है। इसमें जनहित का कोई मामला नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि जज आतंकी मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह ने याचिका पर सुनावई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताते हुए याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी से कहा, आपने इस तरह की पीआईएल क्यों दायर की है? आपका असली मकसद क्या है? क्या आप इस मुद्दे की संवेदनशीलता को नहीं समझते हैं? मुझे लगता है कि आप इस पीआईएल को दायर करने के लिए कुछ दृष्टांत योग्य उदाहरण को आमंत्रित कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता वकील ने कहा, यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों को निशाना बनाया गया। इसलिए वह उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश मांग रहे हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता एक के बाद एक जनहित याचिका दायर करने में लगे हुए हैं। इसका प्राथमिक मकसद सार्वजनिक कारण में कोई वास्तविक रुचि नहीं रखते हुए प्रचार प्रतीत होता है।

इससे पहले शीर्ष अदालत ने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। शीर्ष अदालत ने पीआईएल दाखिल करने वालों को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि जज आतंकवाद के मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।

जब तक मजबूत केस नहीं, अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं” वक्फ कानून पर सीजेआई गवई की दो टूक

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सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ अधिनियम, 2025 को लेकर सुनवाई चल रही है. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यों की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। वक्फ (संशोधन)अधिनियम 2025 के मामले पर अंतिम फैसला आने तक संशोधित कानून को लागू करने पर रोक लगाई गई है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने जब तक मजबूत केस नहीं बनता, तब तक अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं।

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून में किसी को भी वक्फ संपत्ति को लेकर आपत्ति जताने का हक दिया गया है और जब तक उस पर विवाद चलेगा तो संपत्ति वक्फ की नहीं रहेगी। उनको आपत्ति है कि 100-200 साल पुराने वक्फ के कागजात कहां से आएंगे और अल्लाह को दान की गई संपत्ति किसी और को ट्रांसफर कैसे की जा सकती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से उन्होंने दलील दी कि यह हमारे डीएनए में हैं। सिब्बल ने कहा कि अगर वक्फ संपत्ति को लेकर कोई विवाद होता है तो उसका फैसला करने वाला भी सरकार का अधिकारी ही होगा। उन्होंने कहा कि नए कानून के अनुसार कोई भी वक्फ संपत्ति पर आपत्ति जता सकता है।।

सिब्बल ने कोर्ट को वक्फ का मतलब समझाते हुए कहा, 'वक्फ क्या है, यह अल्लाह को किया गया दान है, जिसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। एक बार वक्फ की गई संपत्ति वक्फ ही रहती है।' कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ संपत्ति के मैनेजमेंट का अधिकार लिया जा रहा। सिब्बल ने कहा कि यह अधिनियम सरकार की ओर से वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का एक प्रयास है।

इसी दौरान सीजेआई गवई ने कहा, यह मामला संवैधानिकता के बारे में है। अदालतें आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं करती हैं, इसलिए जब तक आप एक बहुत मजबूत मामला नहीं बनाते, कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करती है। सीजेआई ने आगे कहा कि औरंगाबाद में वक्फ संपत्तियों को लेकर बहुत सारे विवाद हैं।

अंतरिम आदेश के लिए सुनवाई इन तीन मुद्दों तक ही सीमित रखें, केंद्र की सुप्रीम कोर्ट से अपील

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सुप्रीम कोर्ट, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सीजेआई बी आर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद के चंद्रन की बेंच सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि बेंच ने पहले तीन मुद्दे उठाए थे ⁠स्टे के लिए। हमने इन तीनों पर जवाब दाखिल किया था। लेकिन अब लिखित दलीलों में और भी मुद्दे शामिल हो गए हैं। सिर्फ तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित हो। कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया।

सरकार ने जिन मुद्दों पर सुनवाई सीमित रखने की अपील की है, उनमें एक मुद्दा है अदालत द्वारा घोषित, वक्फ बाय यूजर या वक्फ बाय डीड संपत्ति को डी-नोटिफाई करने का है। दूसरा मुद्दा केंद्रीय और प्रदेश वक्फ बोर्ड के गठन से जुड़ा है, जिनमें गैर मुस्लिमों को शामिल किए जाने का विरोध हो रहा है। तीसरा मुद्दा वक्फ कानून के उस प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें जिलाधिकारी द्वारा जांच और उसकी मंजूरी के बाद ही किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित किया जाएगा।

वक्फ अधिनियम, 2025 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले लोगों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने इन दलीलों का विरोध किया कि अलग-अलग हिस्सों में सुनवाई नहीं हो सकती। एक मुद्दा अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है।

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए। तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।

इससे पहले 17 अप्रैल को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सुनिश्चित किया था कि वे किसी भी वक्फ संपत्ति को डी-नोटिफाई नहीं करेंगे, इनमें वक्फ बाय यूजर भी शामिल है। साथ ही वक्फ बोर्डों में नई नियुक्ति पर भी कोई नई नियुक्ति न करने की बात कही थी।

भारत कोई धर्मशाला नहीं...जानें सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी की वजह

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सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थियों को रखा जा सके। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें?

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये बात कही। सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक नागरिक की हिरासत के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगाए गए 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।

हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया। उसने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से जुड़े होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। लिट्टे एक आतंकवादी संगठन था। यह कभी श्रीलंका में सक्रिय था। 2018 में, एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। उसे 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्वासन से पहले उसे एक शरणार्थी शिविर में रहना होगा। इसका मतलब है कि उसे देश से निकालने से पहले कुछ समय के लिए एक खास शिविर में रहना होगा।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह की बढ़ी मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा

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कर्नल सोफिया पर विवादित बयान देने वाले मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है।कर्नल कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी करने वाले विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह मामला गंभीर है और इसे किसी भी तरह से राजनीतिक रंग नहीं लेने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए बयान पर फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम इस मामले में मंत्री की माफी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा, "आप एक सार्वजनिक चेहरा हैं। एक अनुभवी नेता हैं। आपको बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलना चाहिए। हमें आपके वीडियो यहां चलाने चाहिए। यह सेना के लिए एक अहम मुद्दा है। हमें इस मामले में बेहद जिम्मेदार होना होगा।"

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एसवीएन भट की पीठ इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से सख्त लहजे में कहा कि हम इस केस को बहुत करीब से देख रहे हैं और यह सरकार के लिए एक अग्नि परीक्षा है। अदालत ने कहा कि मंत्री को उनके बयान के नतीजे भुगतने होंगे और कानून को अपना रास्ता तय करने दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि एफआईआर की जांच एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें एमपी कैडर के सीधे भर्ती किए गए 3 वरिष्ठ आईपीसी अधिकारी शामिल हों, लेकिन जो एमपी से संबंधित नहीं हों। इन 3 में से 1 महिला आईपीएस अधिकारी होनी चाहिए। डीजीपी, एमपी को कल रात 10 बजे से पहले एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया जाता है। इसका नेतृत्व एक आईजीपी द्वारा किया जाना चाहिए और दोनों सदस्य भी एसपी या उससे ऊपर के रैंक के होंगे।

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने दलील देते हुए कहा कि विजय शाह माफी मांग रहे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपकी माफी कहां है? यह जिस प्रकृति का मामला है, आप किस तरह कि माफी मांगना चाहते हैं, आपका क्या घड़ियाली आंसू बहाना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने बिना सोचे जो किया और अब माफी मांग रहे हैं। हमें आपकी माफी नहीं चाहिए। अब कानून के मुताबिक निपटेंगे। आपने अगर दोबारा माफी मांगी तो हम अदालत की अवमानना मानेंगे। आप पब्लिक फिगर हैं, राजनेता हैं और क्या बोलते हैं? ये सब वीडियो में है और आप कहां जाकर रुकेंगे। संवेदनशील होना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह बहुत गैर जिम्मेदाराना है। हमें अपनी आर्मी पर गर्व है और आप टाइमिंग देखिए, क्या आप बोले?

इससे पहले बीते गुरुवार को विजय शाह सुप्रीम कोर्ट की शरण पहुंचे और एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन शाह को यहां भी फटकार ही पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप संवैधानिक पद हैं, आपको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। एक मंत्री होकर आप कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर कें कंटेंट को लेकर भी फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की भाषा ऐसी लिखी गई है जो चुनौती देने पर निरस्त हो जाए। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एफआईआर में सुधार करने और पुलिलिस विवेचना की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट द्वारा किए जाने के भी आदेश दिए।

एक मंत्री होकर कैसी भाषा का इस्तेमाल...कर्नल सोफिया को लेकर विवादित बयान देने वाले मंत्री को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा

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मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह इस समय सुर्खियों में हैं। जब देश कर्नल सोफिया कुरैशी और विगं कमांडर व्योमिका सिंह के के जरिए नारी शक्ति का अभिवादन कर रहा है। उस वक्त बीजेपी के नेता ने कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी। कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उन पर एक्शन लिया। साथ ही उन पर एफआईआर भी दर्ज कर ली गई। हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, उन्हें राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें फटकार मिली है।

सुप्रीम कोर्ट ने कुंवर विजय शाह को फटकार लगाते हुए कहा कि जब देश ऐसी स्थिति से गुजर रहा है, तो संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को जिम्मेदार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि वह क्या कह रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष मामले को तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया गया। सीजेआई ने शाह के वकील से कहा, 'आप किस तरह के बयान दे रहे हैं। आप सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री हैं।' इस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता एफआईआर पर रोक लगाने की मांग कर रहा है। पीठ ने कहा कि याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।

क्या है शाह का बयान

दरअसल, कर्नल सोफिया कुरैशी 'ऑपरेशन सिंदूर' का चेहरा बनी थीं। उन्होंने भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादी ठिकानों पर की गई सैन्य कार्रवाई के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। विजय शाह ने इस पर विवादित बयान देते हुए कहा था कि जिन्होंने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े थे… हमने उन्हीं की बहन भेज कर के उनकी ऐसी की तैसी करवाई।

मंत्री ने मांगी माफी

विजय शाह का वीडियो वायरल होने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई। साथ ही उनके इस्तीफे की मांग भी की जा रही है। इसी बीच मंत्री ने वीडियो जारी कर के माफी भी मांगी है और सोफिया कुरैशी को अपनी बहन बताया है। उन्होंने माफी मांगते हुए कहा, हाल ही में मैंने जो बयान दिया अगर उसकी वजह से किसी भी समाज की भावना आहत हुई है, तो इसके लिए मैं दिल से न सिर्फ शर्मिंदा हूं बल्कि बेहद दुखी भी हूं और सभी से माफी चाहता हूं। उन्होंने सोफिया कुरैशी को लेकर आगे कहा, हमारे देश की वो बहन, सोफिया कुरैशी, जिन्होंने राष्ट्र धर्म निभाते हुए जाति और समाज से ऊपर उठकर जो काम किया है, उन्हें हमारी सगी बहन से भी ऊपर सम्मानित मानता हूं।

हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस बयान को बहुत ही आपत्तिजनक माना। हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि शाह की टिप्पणी 'तिरस्कारपूर्ण', 'खतरनाक' और 'नालियों की भाषा' जैसी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह टिप्पणी न केवल उस अधिकारी को निशाना बनाती है, बल्कि पूरे सशस्त्र बलों को बदनाम करती है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पहली नजर में मंत्री के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत अपराध बनता है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से समयसीमा तय किए जाने पर राष्ट्रपति ने उठाए सवाल, सर्वोच्च अदालत से पूछे ये 14 सवाल

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास वीटो का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होगा। इसमें राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों को विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा तय करने पर टिप्पणी की गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले पर सर्वोच्च अदालत से 14 सवाल पूछे हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 बेहद अहम सवाल पूछते हुए यह साफ किया है कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो विधेयकों पर मंजूरी या नामंजूरी की समयसीमा तय करती हो। राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर फैसला लेते हैं, लेकिन ये अनुच्छेद कहीं भी कोई समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति का यह विवेकपूर्ण निर्णय संघवाद, कानूनों की एकरूपता, राष्ट्रीय सुरक्षा और शक्तियों के बीच संतुलन जैसे बहुपक्षीय पहलुओं पर आधारित होता है।

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। इन सवालों में पूछा गया है कि राज्यपाल के पास क्या विकल्प हैं जब कोई बिल उनके पास आता है? क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं? क्या राज्यपाल का विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है?

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल-

1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?

2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?

5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?

6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?

7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?

8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?

9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं।

10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?

11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?

12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है?

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?

14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के किस जज के पास कितनी संपत्ति, सीजेआई के पास 10 साल पुरानी स्विफ्ट कार और 250 ग्राम सोना


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सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी को ऑफिशियल वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जुडिशियरी में ट्रांसपेरेंसी के तहत ऐतिहासिक फैसला लिया है। जनता का विश्वास जुडिशियरी पर और बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। भारत में ऐसा पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक की गई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा मामले के बाद फैसला

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 22 जजों की संपत्ति का ब्यौरा अपलोड किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 है। उनमें से 22 की डिटेल मौजूद है। इनमें सीजेआई संजीव खन्ना समेत अन्य जजों की घोषणाएं हैं। इनमें वे तीन जज भी शामिल हैं, जो निकट भविष्य में सीजेआई बनने की कतार में हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की चल और अचल संपत्तियों का ब्योरा है। किस जज के पास कितना पैसा है, कितना सोना-चांदी और कार है, यह सब मौजूद है। दरअसल, सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में बीते दिनों कोर्ट ने यह फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित कैश की बरामदगी की घटना के बाद लिया था।

चीफ जस्टिस के पास है कितनी संपत्ति?

सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पास साउथ दिल्ली में तीन बेडरूम वाला डीडीए फ्लैट, दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज में दो पार्किंग स्पेस के साथ चार बेडरूम वाला फ्लैट है, जिसका सुपर एरिया 2446 वर्ग फीट है। गुरुग्राम के सेक्टर 49 के सिसपाल विहार में चार बेडरूम वाले फ्लैट में 56 प्रतिशत हिस्सा, जिसका सुपर एरिया 2016 वर्ग फीट है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में जमीन में अविभाजित हिस्से के साथ घर के आंशिक मालिक देव राज खन्ना (एचयूएफ) में हिस्सा है।

एफ.डी.आर. और बैंक खाते में लगभग 55 लाख 75 हजार, पी.पी.एफ लगभग एक करोड़ 6 लाख 86 हजार, जी.पी.एफ. में 1 करोड़ 77 लाख 89 हजार, एल.आई.सी. मनी बैक पॉलिसी वार्षिक प्रीमियम 29,625 रुपये, शेयर में14 हजार, सोना – 250 ग्राम, चांदी -2 किलोग्राम है। सोना और चांदी ज्यादातर विरासत और गिफ्ट में मिले हैं। साथ ही एक 2015 मॉडल की स्विफ्ट मारुति कार है। इनके एफडीआर और बैंक खाते 55 लाख 75 हजार रुपये है।

इनकी पत्नी के पास 700 ग्राम सोना, 5 किलोग्राम चांदी, कुछ हीरे की अंगूठियां, पेंडेंट और झुमके हैं। साथ ही कुछ मोती और माणिक की लड़ियां भी हैं। इनमें से ज्यादातर चीजें विरासत में मिली हैं या फिर किसी खास मौके पर गिफ्ट में दी गई हैं।

अगले सीजेआई के पास कितनी संपत्ति

इसके बाद जस्टिस बी आर गवई इस महीने की आखिर तक अगले सीजेआई बनेंगे। उनके पास महाराष्ट्र के अमरावती में एक घर है, जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है। इसके अलावा उनके पास डिफेंस कॉलोनी में एक आवासीय अपार्टमेंट और अमरावती और नागपुर में कृषि भूमि है। जस्टिस गवई ने शेयरों और म्यूचुअल फंड में भी निवेश किया है। पीपीएफ में 6,59,692 रुपये और सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) में 35,86,736 रुपये जमा हैं।

नियुक्ति प्रक्रिया भी की गई सार्वजनिक

संपत्ति के ब्योरे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया भी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इसमें हाई कोर्ट कॉलेजियम को सौंपी गई भूमिका, राज्य और केंद्र सरकार से प्राप्त भूमिका और इनपुट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के विचार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला जनता की जानकारी और जागरूकता के लिए लिया गया है।

जम्मू कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जानें क्या कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिक को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि यह पीआईएल सिर्फ प्रचार पाने के लिए की गई है। इसमें जनहित का कोई मामला नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि जज आतंकी मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह ने याचिका पर सुनावई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताते हुए याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी से कहा, आपने इस तरह की पीआईएल क्यों दायर की है? आपका असली मकसद क्या है? क्या आप इस मुद्दे की संवेदनशीलता को नहीं समझते हैं? मुझे लगता है कि आप इस पीआईएल को दायर करने के लिए कुछ दृष्टांत योग्य उदाहरण को आमंत्रित कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता वकील ने कहा, यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों को निशाना बनाया गया। इसलिए वह उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश मांग रहे हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता एक के बाद एक जनहित याचिका दायर करने में लगे हुए हैं। इसका प्राथमिक मकसद सार्वजनिक कारण में कोई वास्तविक रुचि नहीं रखते हुए प्रचार प्रतीत होता है।

इससे पहले शीर्ष अदालत ने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। शीर्ष अदालत ने पीआईएल दाखिल करने वालों को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि जज आतंकवाद के मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।