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Jul 26 2024, 13:47

कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को लगाना होगा नेम प्लेट, जारी रहेगी यूपी सरकार के आदेश पर रोक

# kanwar_yatra_route_name_plate_dispute_supreme_court 

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों, ढाबों और ठेलों पर नेम प्लेट लगाने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक बरकरार रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे के बाद भी आदेश पर रोक जारी रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड और एमपी सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है। उसके बाद याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद अगले सोमवार को सुनवाई की जाएगी। तब तक सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा।

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानदारों को दुकान पर नाम लिखने के दिशा निर्देश जारी किए थे। सरकार के इन दिशा-निर्देशों की खूब आलोचना हुई। सरकार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुईं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। अब राज्य सरकार का हलफनामा मिलने के बाद भी अदालत ने आदेश पर रोक जारी रखने का फैसला किया है।

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Jul 26 2024, 12:09

कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब, जानें क्या बताई वजह

#kanwaryatranameplatedisputeupgovtfiledreplyinsupremecourt 

उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर नामपट्टिका लगाने के अपने आदेश का बचाव किया है। सुप्रीम कोर्ट को जवाब देते हुए यूपी सरकार ने कहा, यह आदेश इसीलिए लागू किया गया था जिससे गलती से भी कांवड़िए किसी दुकान से कुछ ऐसा न खा लें जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो।

उत्तर प्रदेश में कांवड़ रूट पर मौजूद दुकानों में मालिक के नाम की नेम प्लेट लगाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। यह मामला मुजफ्फरनगर से शुरू हुआ था जिसके बाद योगी सरकार के आदेश देने के बाद यह पूरे प्रदेश में लागू हो गया था। इस आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 22 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से शुक्रवार (26 जुलाई) तक जवाब मांगा था और राज्यों के जवाब देने तक इस आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई आज 26 जुलाई को होगी।

आदेश का उद्देश्य पारदर्शिता कायम करना

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

+संभावित भ्रम से बचने का उपाय

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने किया याचिकाओं का विरोध

उत्तर प्रदेश सरकार ने नेमप्लेट विवाद में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि, हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाता है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएं।

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Jul 23 2024, 18:33

दोबारा नहीं होगी नीट-यूजी परीक्षा, सुप्रीम कोर्ट का रि-एग्जाम का आदेश देने से इनकार*

#supreme_court_decision_on_neet_ug_2024

सुप्रीम कोर्ट मेडिकल प्रवेश परीक्षा के आयोजन में अनियमितताओं और कदाचार का आरोप लगाने वाली 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र और एनटीए की तरफ से दलीलें पेश की। केस की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से इनकार कर दिया है। इसको साथ ही कोर्ट ने करीब 24 लाख छात्रों को बड़ी राहत प्रदान की है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पेपर लीक हुआ है, इसमें कोई विवाद नहीं है।सीजेआई ने कहा, अदालत ने एनटीए द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए डेटा की स्वतंत्र रूप से जांच की है। वर्तमान चरण में रिकॉर्ड पर साक्ष्यों या सामग्री का अभाव है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परीक्षा का परिणाम खराब हो गया है या परीक्षा की पवित्रता का प्रणालीगत उल्लंघन हुआ है। सीजेआई ने कहा कि सीबीआई की जांच अधूरी ही है, इसलिए हमने एनटीए से ये स्पष्ट करने को कहा था कि क्या गड़बड़ी बड़े पैमाने पर हुई है या नहीं। केन्द्र और एनटीए ने अपने जवाब में आईआईटी मद्रास की रिपोर्ट का हवाला दिया है। चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि हमारे समक्ष प्रस्तुत सामग्री और आंकड़ों के आधार पर प्रश्नपत्र के व्यवस्थित लीक होने का कोई संकेत नहीं है, जिससे परीक्षा की शुचिता में व्यवधान उत्पन्न होने का संकेत मिले। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नीट की दोबारा परीक्षा कराने से इंकार किया।

सीजेआई ने कहा- फिलहाल, हम दागी स्टूडेंट्स को बेदागी स्टूडेंट्स से अलग कर सकते हैं। अगर जांच के दौरान दागियों की पहचान होती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर कोई स्टूडेंट्स इस फ्रॉड में शामिल पाया जाता है तो उसे एडमिशन नहीं मिलेगा। कोर्ट ने अभी अपना फैसला सुरक्षित रखा है जिसके लिए कोई डेट जारी नहीं की है।

सीजेआई की बेंच के सामने मंगलवार को पांचवीं सुनवाई हुई। सीजेआई ने कहा- हम पेपर लीक के ठोस सबूत के बिना रीएग्जाम का फैसला नहीं दे सकते हैं। हो सकता है कि सीबीआई जांच के बाद पूरी तस्वीर ही बदल जाए, लेकिन आज हम किसी हालत में यह नहीं कह सकते कि पेपर लीक पटना और हजारीबाग तक सीमित नहीं है।

ने आगे कहा कि कोर्ट को लगता है कि इस साल के लिए नए सिरे से नीट यूजी परीक्षा आयोजित करने का निर्देश देना गंभीर परिणामों से भरा होगा, जिसका खामियाजा इस परीक्षा में शामिल होने वाले 24 लाख से अधिक छात्रों को भुगतना पड़ेगा और प्रवेश कार्यक्रम में व्यवधान पैदा होगा, साथ ही मेडिकल एजुकेशन के सिलेबस पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, भविष्य में योग्य डॉक्टरों की उपलब्धता पर असर पड़ेगा और वंचित समूह के लिए गंभीर रूप से नुकसानदेह होगा, जिसके लिए सीटों के आवंटन में आरक्षण किया गया था।

తప్పు చేస్తే దొరకక తప్పదు

Jul 23 2024, 08:53

NEET UG 2024: ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై ఐఐటీ డైరెక్టర్‌కు సుప్రీంకోర్టు కీలక ఆదేశం

నీట్-యూజీ 2024 పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ డైవై చంద్రచూడ్ సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

 నీట్-యూజీ 2024 (NEET-UG 2024) పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ (CJI) డైవై చంద్రచూడ్ (DY Chandachud) సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఈ ప్రశ్నకు సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి జూన్ 23వ తేదీ మధ్యాహ్నం 12 గంటల లోపు దానిపై సమాధానం సమర్పించాలని ఆదేశించింది. మంగళవారంనాడు కూడా విచారణ కొనసాగనుంది.

నీట్ పరీక్షా పత్రం, లీకేజీ అవకతవలపై సుప్రీంకోర్టు సోమవారం తిరిగి విచారణ జరిగింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఫిజిక్స్ ప్రశ్న అంశాన్ని పిటిషనర్లు కోర్టు దృష్టికి తెచ్చారు.

ఒక ప్రశ్నకు రెండు సరైన సమాధానాలు ఇచ్చి, మార్కులు మాత్రం ఒకదానికే వేశారని, దానికి గ్రేస్ మార్కులు ఇచ్చినా, ఇవ్వకపోయినా కూడా మెరిట్ లిస్ట్ మారే అవకాశం ఉందని పిటిషనర్లు వాదించారు.

దీనిపై ధర్మాసనం వెంటనే స్పందిస్తూ, సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి ఆ సమాధానం తమకు సమర్పించాలని ఢిల్లీ-ఐఐటీ డైరెక్టర్‌ను ఆదేశించింది.

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Jul 22 2024, 15:52

नीट पेपर लीक विवादः सीजेआई बोले- शक है कि पेपर स्ट्रॉन्ग रूम से पहले लीक हुआ, ट्रांसपोर्टेशन के दौरान नहीं

#supreme_court_neet_ug_2024_paper_leak_hearing

सुप्रीम कोर्ट ने विवादों से घिरी नीट-यूजी परीक्षा से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कई बातें सामने आ रही हैं। नीट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने सुनवाई जारी है। यह चौथी सुनवाई है। आज रीएग्जाम पर फैसला आ सकता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एनटीए ने पेपर लीक होने और वॉट्सऐप के जरिए लीक हुए प्रश्नपत्रों के प्रसार की बात स्वीकार की है। याचिकाकर्ताओं-छात्रों के वकील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा ने कोर्ट को बताया कि बिहार पुलिस की जांच के बयानों में कहा गया है कि लीक 4 मई को हुआ था और संबंधित बैंकों में प्रश्नपत्र जमा करने से पहले हुआ।

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अमित आनंद जो कि नीट पेपर लीक मामले की अहम कडी है दरअसल वह एक बिचौलिया है। वह 4 मई की रात को छात्रों को इकट्ठा कर रहे थे, ताकि उन्हें 5 तारीख को पेपर मिले। इसी तरह एक अन्‍य नीतेश कुमार उस जगह पर थे, जहां उन्हें सुबह पेपर मिलता था और छात्रों को इसे याद करना था। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजीआई ने कहा कि अमित आनंद के बयान अलग-अलग हैं। एक बयान में कहा गया है कि नीट का पेपर 4 तारीख की रात को लीक हुआ था, दूसरे बयान में कहा गया है कि यह 5 तारीख की सुबह व्हाट्सएप पर प्राप्त हुआ था। उसका पहला बयान बताता है कि नीट का पेपर 4 की रात को लीक हुआ था। अगर पेपर 4 मई की रात को लीक हुआ है, तो जाहिर है कि लीक परिवहन की प्रक्रिया में नहीं हुआ था और यह स्ट्रॉन्ग रूम वॉल्ट से पहले हुआ था।

सीजेआई कहा, हमारे पास अभी तक कोई ऐसा सबूत नहीं है, जिससे य़ह पता चले कि नीट-यूजी पेपर लीक इतना व्यापक था कि पूरे देश में फैल गया। हमें यह देखना होगा कि क्या लीक स्थानीय स्तर पर है और यह भी देखना होगा कि पेपर सुबह 9 बजे लीक हुआ और 10:30 बजे तक हल हो गया। अगर हम इस पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आपको हमें यह दिखाना होगा कि लीक हजारीबाग और पटना से भी आगे हुआ था। हमें बताएं कि यह कितना व्यापक है। सीबीआई की तीसरी रिपोर्ट से हमें पता चला है कि प्रिंटिंग प्रेस कहां स्थित थी। इस पर याचिकाकर्ता वकील हुड्डा ने कहा, "झज्जर के हरदयाल स्कूल की प्रिंसिपल का वीडियो है, जिसमें उन्होंने कहा है कि केनरा बैंक का पेपर दिया गया था। कोई देरी नहीं हुई थी। इस पर सीजेआई ने कहा पूछा कि क्या सेंटर इंचार्ज को दोनों बैंकों से पेपर मिलते हैं? जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "किसी सिटी इंचार्ज को यह नहीं बताया जाता कि किस बैंक से पेपर लेना है।" फिर सीजेई पूछा, "क्या बैंकों को इस बारे में जानकारी नहीं है। जब एसबीआई को पेपर बांटने थे, तो झज्जर इंचार्ज केनरा बैंक कैसे गए और पेपर कैसे लाए? 

दरअसल, कोर्ट मामले में 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाओं में एनटीए की अर्जियां भी शामिल हैं। एनटीए ने विभिन्न हाइकोर्ट में उसके खिलाफ लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने की मांग की है। बता दें कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2024 पांच मई को आयोजित की गई थी। इससे पहले राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने शनिवार को मेडिकल प्रवेश परीक्षा के शहर और केंद्रवार परिणाम जारी किए थे।

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Jul 22 2024, 13:59

कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेम प्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, यूपी-उत्तराखंड सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक
#supreme_court_interim_stay_on_yogi_adityanath_govt_name_plate_order
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा रूट पर नेमप्लेट लगाने के आदेश को लेकर पूरे देश में बहस जारी है। इस बीच इस मामले में मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी किया है और शुक्रवार तक जवाब देने के लिए कहा है। साथ ही कोर्ट ने नेमप्लेट लिखने के निर्देश पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा से जुड़े एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। यूपी सरकार के आदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने को कहा गया है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को अपना नाम बताने की जरूरत नहीं है। वे सिर्फ यह बताएं कि उनके पास कौन-से और किस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं। कांवड़ियों को वेज खाना मिले और साफ सफाई रहे। खाना शाकाहारी है या मांसाहारी ये बताना जरूरी है। मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही यूपी, उत्तराखंड और एमपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए शुक्रवार तक जवाब देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक पुलिस के निर्देशों पर रोक लगा दी। इसके साथ ही कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई तक किसी को जबरन नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अपने दलीलों कहा कि यह एक चिंताजनक स्थिति है। पुलिस अधिकारी विभाजन पैदा कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान कर उनका आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। याचिकाकर्ता के वकील सी यू सिंह ने दलील दी कि शासन का आदेश समाज को बांटने जैसा है। यह एक तरह से अल्पसंख्यक दुकानदारों को पहचानकर उनके आर्थिक बहिष्कार जैसा है।इनमें यूपी और उत्तराखंड ऐसा कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- यह एक प्रेस वक्तव्य था या एक आदेश? याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पहले एक प्रेस बयान आया था। फिर सार्वजनिक आक्रोश हुआ। राज्य सरकार कहती है “स्वेच्छा से”, लेकिन वे इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। कोई भी कानून पुलिस कमिश्नर को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता।

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Jul 21 2024, 20:06

हिंसा के बीच बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाई कोर्ट के 30% आरक्षण के आदेश पर लगाई रोक

#bangladesh_supreme_court_scales_back_civil_service_job_quotas

बांग्लादेश में सरकारी नौकरी में आरक्षण के विरोध में हुई हिंसा के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के कोटे में कटौती करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को वापस लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश में आरक्षण को लेकर मचे बवाल के बीच सरकारी नौकरियों में रविवार को आरक्षण घटा दिया। देशभर में अशांति के बीच फैसले से प्रदर्शनकारियों की जीत हुई है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां योग्यता आधारित प्रणाली के आधार पर आवंटित की जाएं और शेष सात प्रतिशत 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में लड़ने वालों के रिश्तेदारों तथा अन्य श्रेणियों के लिए छोड़ी जाएं। पहले युद्ध लड़ने वालों के रिश्तेदारों के लिए नौकरियों में 30 प्रतिशत तक आरक्षण था। मगर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है। इसे छात्रों के लिए बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

बांग्लादेश में 1971 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में बड़ा आरक्षण दिया गया था। बांग्लादेश सरकार ने 2018 में सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी आरक्षण दिया था। इसका बांग्लादेश के छात्रों ने कड़ा विरोध किया और फैसला वापस ले लिया गया। अब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और हाईकोर्ट ने आरक्षण लागू कर दिया। 

इसके बाद बांग्लादेश के छात्रों में आक्रोश फैल गया। छात्रों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए और कहा कि यह आरक्षण प्रणाली गलत है। साथ ही प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों का समर्थन करेगी। इसके बाद देश में अशांति फैल गई और जगह-जगह हिंसा हुई। इसमें 115 लोगों की मौत हो गई। 

मामले को लेकर सु्प्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। इसके बाद सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए नौकरी में आरक्षण का कोटा 30 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया है। जबकि दो फीसदी आरक्षण अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडर और दिव्यांगों को मिलेगा। जबकि 93 फीसदी पद योग्यता के आधार पर भरे जाएंगे। 

इससे पहले बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ हिंसा भड़कने के कुछ दिन बाद शनिवार को पुलिस ने पूरे देश में कठोर कर्फ्यू लागू कर दिया और सैन्य बलों ने राष्ट्रीय राजधानी ढाका के विभिन्न हिस्सों में गश्त की. बांग्लादेश में हिंसा भड़कने से सैकड़ों लोगों की मौत हुई है जबकि हजारों लोग घायल हुए हैं. प्रदर्शनकारी छात्रों ने देश में पूर्ण बंद लागू करने के प्रयास के दौरान 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी

తప్పు చేస్తే దొరకక తప్పదు

Jul 19 2024, 19:43

ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా? లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ ఆగ్రహం

సుప్రీం కోర్టు(Supreme Court) ప్రధాన న్యాయమూర్తి జస్టిస్ డీవై చంద్రచూడ్ న్యాయవాదిపై తీవ్ర ఆగ్రహం వ్యక్తం చేశారు. కూల్చివేతకు సంబంధించిన కేసు విచారణలో భాగంగా లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ మండిపడ్డారు.

అయితే, కోర్టుకు హాజరయ్యే లాయర్లు తప్పనిసరిగా ధరించాల్సిన నెక్‌బ్యాండ్‌ ఆ న్యాయవాది ధరించలేదు. దీంతో, సీజేఐ న్యాయవాదిని ఉద్దేశించి ఘాటు వ్యాఖ్యలు చేశారు.

మీ మెడ చుట్టూ ఉండే బ్యాండ్ ఎక్కడ ఉంది? ఇక్కడేమైనా ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా?” అని ప్రశ్నించారు.

ఈమెయిల్ పంపాలని ఆదేశించారు. హడావిడిగా వచ్చానని న్యాయవాది చెప్పినప్పుడు మరింత కఠినంగా సీజేఐ సమాధానమిచ్చారు.

క్షమించండి, మీరు సరైన వస్త్రధారణలో లేకుంటే కేసు వినేది లేదు" అని స్పష్టం చేశారు.

బార్ కౌన్సిల్ ఆఫ్ ఇండియా (Bar Council)నిబంధనల ప్రకారం కోర్టుకు హాజరయ్యే న్యాయవాదులకు డ్రెస్ కోడ్‌ తప్పనిసరి. సుప్రీంకోర్టు, హైకోర్టు, కింది కోర్టులు, ట్రైబ్యునల్స్ లేదా అథారిటీలలో హాజరయ్యే న్యాయవాదాలు డ్రెస్ కోడ్ తప్పనిసరిగా పాటించాల్సి ఉంటుంది.

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Jul 19 2024, 16:56

बंगाल के राज्यपाल की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, जानें किया है अनुच्छेद 361, जिसकी समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार

#bengal_governor_sexual_assault_case_supreme_court_issued_notice

पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्च सहमत हो गया है। महिला ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। जिसमें संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को दी गई छूट को चुनौती दी गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 361 के उन प्रावधानों की समीक्षा करने पर सहमत हो गया जो राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से ‘‘पूर्ण छूट'' प्रदान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है और महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है। 

महिला से यौन उत्पीड़न के आरोप में बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता दें कि यह अनुच्छेद संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का अपवाद है और यह प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इसी के खिलाफ महिला याचिकाकर्ता ने विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश मांगे हैं, जिसके तहत राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन से छूट प्राप्त 

याचिका में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार को राज्य पुलिस के माध्यम से मामले की जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि अनुच्छेद 361 के तहत मिली छूट का राज्यपाल किस तरह से इस्तेमाल कर सकता है इस पर भी दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 जांच के खिलाफ बाधा नहीं बन सकता. दीवान ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि जांच ही न हो, साक्ष्य अभी जुटाए जाने चाहिए। उन्होंने अदालत से मांग की कि राज्यपाल के खिलाफ जांच को अनिश्चितकाल के लिए नहीं टाला जा सकता।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि राज्यपाल आपराधिक कृत्यों को लेकर इस छूट का दावा नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि इस इम्यूनिटी से उन्हें मुकदमा शुरू करने के लिए राज्यपाल का पद छोड़ने का इंतजार करना पड़ेगा, जो अनुचित है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

पश्चिम बंगाल के राजभवन की महिला कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला का आरोप है कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी. तब राज्यपाल ने उसके साथ बदसलूकी की थी।

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Jul 18 2024, 13:29

नीट पेपर लीक में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, सीजेआई ने कहा-साबित करें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई, तो दोबारा कराएंगे परीक्षा

#supreme_court_hearing_cases_relating_to_alleged_paper_leak_in_neet_ug 

सुप्रीम कोर्ट आज नीट-यूजी के मामले पर अहम सुनवाई कर रहा है। 40 से ज्यादा याचिकाओं में नीट-यूजी 2024 को दोबारा कराने की मांग की गई है। इन याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में एनटीए और नीट यूजी के खिलाफ विभिन्न हाईकोर्ट में दायर वे मुदकमे भी शामिल हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई है। पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि नीट-यूजी परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली नहीं हुई है। ऐसे में दोबारा परीक्षा कराए जाने की कोई जरूरत नहीं है। वहीं, एनटीए ने कहा था कि पूरे देश में पेपर लीक नहीं हुआ है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई शुरू होने पर कहा कि नीट मामले को शुक्रवार को सुना जा सकता है। जिस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुनवाई आज ही शुरू करते हैं। हम नीट मामले पर सबसे पहले सुनवाई करेंगे, क्योंकि लाखों छात्र फैसले का इंतजार कर रहे हैं। सीजेआई ने अन्य वकीलों को नीट-यूजी मामले पर सुनवाई के बाद आने को कहा। सीजेआई ने पूछा पहले कौन दलीलें पेश करेगा? 

एसजी ने कहा कि CBI ने दूसरी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है। सीजेआई ने कहा कि हमने देख ली है। जिसपर याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील नरेंद्र हुड्डा ने कहा कि हमें सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट नहीं दी गई है। इस पर अदालत ने कहा, 'हालांकि हम पारदर्शिता की वकालत करते हैं। मगर सीबीआई जांच चल रही है। अगर सीबीआई ने हमें जो बताया है उसका खुलासा होता है, तो यह जांच को प्रभावित करेगा।

सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप हमें संतुष्ट करिए कि पेपर लीक बड़े पैमाने पर हुआ और परीक्षा रद्द होनी चाहिए। दूसरी इस मामले में जांच की दिशा क्या होना चाहिए वो भी हमें बताएं। उसके बाद हम सॉलिसिटर जनरल को सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि अगर आप हमारे सामने यह साबित कर देते हैं कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई तभी दोबारा परीक्षा कराने का आदेश दिया जा सकता है। 

अदालत ने कहा कि 131 छात्र दोबारा परीक्षा चाहते है। 254 छात्र दोबारा परीक्षा के खिलाफ है। दोबारा परीक्षा चाहने वाले 131 छात्र ऐसे हैं, जो एक लाख आठ हजार के अंदर नहीं आते और दोबारा परीक्षा का विरोध करने वाले 254 छात्र एक लाख आठ हजार के अंदर आते हैं। अगर 1 लाख 8 हजार लोगों को एडमिशन मिलता है, बाकी 22 लाख लोगों को दाखिला नहीं मिलता तो इसका मतलब ये तो नहीं कि पूरी परीक्षा को रद्द कर दिया जाए?

सीजेआई ने आगे कहा कि सबसे कम अंक पाने वाले याचिकाकर्ता छात्र के मार्क्स कितने हैं? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कुल 34 याचिकाएं है, जिनमें चार याचिकाएं एनटीए की है। 

पीठ ने आगे कहा कि 38 में छह ट्रांसफर याचिकाएं शामिल हैं। इस पर एनटीए की ओर से पेश वकील ने कहा कि हां 32 व्यक्तिगत याचिकाएं हैं। अदालत ने कहा कि लंच के दौरान हमें बताएं कि कितने छात्रों ने कोर्ट का रुख किया है।

जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि परीक्षा की मांग करने वाले याचिकाकर्ता क्या एक लाख आठ हजार के अंतर्गत हैं? सीजेआई ने कहा कि नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता, यह बाहर हैं। सीजेआई ने कहा कि एनटीए 100 टॉप अंकों वालों का चार्ट दे। साथ ही यह भी बताए कि अभ्यर्थी किस सेंटर और शहर से हैं।

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Jul 26 2024, 13:47

कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को लगाना होगा नेम प्लेट, जारी रहेगी यूपी सरकार के आदेश पर रोक

# kanwar_yatra_route_name_plate_dispute_supreme_court 

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों, ढाबों और ठेलों पर नेम प्लेट लगाने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक बरकरार रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे के बाद भी आदेश पर रोक जारी रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड और एमपी सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है। उसके बाद याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद अगले सोमवार को सुनवाई की जाएगी। तब तक सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी रहेगा।

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानदारों को दुकान पर नाम लिखने के दिशा निर्देश जारी किए थे। सरकार के इन दिशा-निर्देशों की खूब आलोचना हुई। सरकार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुईं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। अब राज्य सरकार का हलफनामा मिलने के बाद भी अदालत ने आदेश पर रोक जारी रखने का फैसला किया है।

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Jul 26 2024, 12:09

कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब, जानें क्या बताई वजह

#kanwaryatranameplatedisputeupgovtfiledreplyinsupremecourt 

उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर नामपट्टिका लगाने के अपने आदेश का बचाव किया है। सुप्रीम कोर्ट को जवाब देते हुए यूपी सरकार ने कहा, यह आदेश इसीलिए लागू किया गया था जिससे गलती से भी कांवड़िए किसी दुकान से कुछ ऐसा न खा लें जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो।

उत्तर प्रदेश में कांवड़ रूट पर मौजूद दुकानों में मालिक के नाम की नेम प्लेट लगाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। यह मामला मुजफ्फरनगर से शुरू हुआ था जिसके बाद योगी सरकार के आदेश देने के बाद यह पूरे प्रदेश में लागू हो गया था। इस आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 22 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से शुक्रवार (26 जुलाई) तक जवाब मांगा था और राज्यों के जवाब देने तक इस आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई आज 26 जुलाई को होगी।

आदेश का उद्देश्य पारदर्शिता कायम करना

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

+संभावित भ्रम से बचने का उपाय

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने किया याचिकाओं का विरोध

उत्तर प्रदेश सरकार ने नेमप्लेट विवाद में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि, हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाता है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएं।

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Jul 23 2024, 18:33

दोबारा नहीं होगी नीट-यूजी परीक्षा, सुप्रीम कोर्ट का रि-एग्जाम का आदेश देने से इनकार*

#supreme_court_decision_on_neet_ug_2024

सुप्रीम कोर्ट मेडिकल प्रवेश परीक्षा के आयोजन में अनियमितताओं और कदाचार का आरोप लगाने वाली 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र और एनटीए की तरफ से दलीलें पेश की। केस की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से इनकार कर दिया है। इसको साथ ही कोर्ट ने करीब 24 लाख छात्रों को बड़ी राहत प्रदान की है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पेपर लीक हुआ है, इसमें कोई विवाद नहीं है।सीजेआई ने कहा, अदालत ने एनटीए द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए डेटा की स्वतंत्र रूप से जांच की है। वर्तमान चरण में रिकॉर्ड पर साक्ष्यों या सामग्री का अभाव है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परीक्षा का परिणाम खराब हो गया है या परीक्षा की पवित्रता का प्रणालीगत उल्लंघन हुआ है। सीजेआई ने कहा कि सीबीआई की जांच अधूरी ही है, इसलिए हमने एनटीए से ये स्पष्ट करने को कहा था कि क्या गड़बड़ी बड़े पैमाने पर हुई है या नहीं। केन्द्र और एनटीए ने अपने जवाब में आईआईटी मद्रास की रिपोर्ट का हवाला दिया है। चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि हमारे समक्ष प्रस्तुत सामग्री और आंकड़ों के आधार पर प्रश्नपत्र के व्यवस्थित लीक होने का कोई संकेत नहीं है, जिससे परीक्षा की शुचिता में व्यवधान उत्पन्न होने का संकेत मिले। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नीट की दोबारा परीक्षा कराने से इंकार किया।

सीजेआई ने कहा- फिलहाल, हम दागी स्टूडेंट्स को बेदागी स्टूडेंट्स से अलग कर सकते हैं। अगर जांच के दौरान दागियों की पहचान होती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर कोई स्टूडेंट्स इस फ्रॉड में शामिल पाया जाता है तो उसे एडमिशन नहीं मिलेगा। कोर्ट ने अभी अपना फैसला सुरक्षित रखा है जिसके लिए कोई डेट जारी नहीं की है।

सीजेआई की बेंच के सामने मंगलवार को पांचवीं सुनवाई हुई। सीजेआई ने कहा- हम पेपर लीक के ठोस सबूत के बिना रीएग्जाम का फैसला नहीं दे सकते हैं। हो सकता है कि सीबीआई जांच के बाद पूरी तस्वीर ही बदल जाए, लेकिन आज हम किसी हालत में यह नहीं कह सकते कि पेपर लीक पटना और हजारीबाग तक सीमित नहीं है।

ने आगे कहा कि कोर्ट को लगता है कि इस साल के लिए नए सिरे से नीट यूजी परीक्षा आयोजित करने का निर्देश देना गंभीर परिणामों से भरा होगा, जिसका खामियाजा इस परीक्षा में शामिल होने वाले 24 लाख से अधिक छात्रों को भुगतना पड़ेगा और प्रवेश कार्यक्रम में व्यवधान पैदा होगा, साथ ही मेडिकल एजुकेशन के सिलेबस पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, भविष्य में योग्य डॉक्टरों की उपलब्धता पर असर पड़ेगा और वंचित समूह के लिए गंभीर रूप से नुकसानदेह होगा, जिसके लिए सीटों के आवंटन में आरक्षण किया गया था।

తప్పు చేస్తే దొరకక తప్పదు

Jul 23 2024, 08:53

NEET UG 2024: ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై ఐఐటీ డైరెక్టర్‌కు సుప్రీంకోర్టు కీలక ఆదేశం

నీట్-యూజీ 2024 పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ డైవై చంద్రచూడ్ సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

 నీట్-యూజీ 2024 (NEET-UG 2024) పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ (CJI) డైవై చంద్రచూడ్ (DY Chandachud) సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఈ ప్రశ్నకు సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి జూన్ 23వ తేదీ మధ్యాహ్నం 12 గంటల లోపు దానిపై సమాధానం సమర్పించాలని ఆదేశించింది. మంగళవారంనాడు కూడా విచారణ కొనసాగనుంది.

నీట్ పరీక్షా పత్రం, లీకేజీ అవకతవలపై సుప్రీంకోర్టు సోమవారం తిరిగి విచారణ జరిగింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఫిజిక్స్ ప్రశ్న అంశాన్ని పిటిషనర్లు కోర్టు దృష్టికి తెచ్చారు.

ఒక ప్రశ్నకు రెండు సరైన సమాధానాలు ఇచ్చి, మార్కులు మాత్రం ఒకదానికే వేశారని, దానికి గ్రేస్ మార్కులు ఇచ్చినా, ఇవ్వకపోయినా కూడా మెరిట్ లిస్ట్ మారే అవకాశం ఉందని పిటిషనర్లు వాదించారు.

దీనిపై ధర్మాసనం వెంటనే స్పందిస్తూ, సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి ఆ సమాధానం తమకు సమర్పించాలని ఢిల్లీ-ఐఐటీ డైరెక్టర్‌ను ఆదేశించింది.

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Jul 22 2024, 15:52

नीट पेपर लीक विवादः सीजेआई बोले- शक है कि पेपर स्ट्रॉन्ग रूम से पहले लीक हुआ, ट्रांसपोर्टेशन के दौरान नहीं

#supreme_court_neet_ug_2024_paper_leak_hearing

सुप्रीम कोर्ट ने विवादों से घिरी नीट-यूजी परीक्षा से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कई बातें सामने आ रही हैं। नीट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने सुनवाई जारी है। यह चौथी सुनवाई है। आज रीएग्जाम पर फैसला आ सकता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एनटीए ने पेपर लीक होने और वॉट्सऐप के जरिए लीक हुए प्रश्नपत्रों के प्रसार की बात स्वीकार की है। याचिकाकर्ताओं-छात्रों के वकील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा ने कोर्ट को बताया कि बिहार पुलिस की जांच के बयानों में कहा गया है कि लीक 4 मई को हुआ था और संबंधित बैंकों में प्रश्नपत्र जमा करने से पहले हुआ।

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अमित आनंद जो कि नीट पेपर लीक मामले की अहम कडी है दरअसल वह एक बिचौलिया है। वह 4 मई की रात को छात्रों को इकट्ठा कर रहे थे, ताकि उन्हें 5 तारीख को पेपर मिले। इसी तरह एक अन्‍य नीतेश कुमार उस जगह पर थे, जहां उन्हें सुबह पेपर मिलता था और छात्रों को इसे याद करना था। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजीआई ने कहा कि अमित आनंद के बयान अलग-अलग हैं। एक बयान में कहा गया है कि नीट का पेपर 4 तारीख की रात को लीक हुआ था, दूसरे बयान में कहा गया है कि यह 5 तारीख की सुबह व्हाट्सएप पर प्राप्त हुआ था। उसका पहला बयान बताता है कि नीट का पेपर 4 की रात को लीक हुआ था। अगर पेपर 4 मई की रात को लीक हुआ है, तो जाहिर है कि लीक परिवहन की प्रक्रिया में नहीं हुआ था और यह स्ट्रॉन्ग रूम वॉल्ट से पहले हुआ था।

सीजेआई कहा, हमारे पास अभी तक कोई ऐसा सबूत नहीं है, जिससे य़ह पता चले कि नीट-यूजी पेपर लीक इतना व्यापक था कि पूरे देश में फैल गया। हमें यह देखना होगा कि क्या लीक स्थानीय स्तर पर है और यह भी देखना होगा कि पेपर सुबह 9 बजे लीक हुआ और 10:30 बजे तक हल हो गया। अगर हम इस पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आपको हमें यह दिखाना होगा कि लीक हजारीबाग और पटना से भी आगे हुआ था। हमें बताएं कि यह कितना व्यापक है। सीबीआई की तीसरी रिपोर्ट से हमें पता चला है कि प्रिंटिंग प्रेस कहां स्थित थी। इस पर याचिकाकर्ता वकील हुड्डा ने कहा, "झज्जर के हरदयाल स्कूल की प्रिंसिपल का वीडियो है, जिसमें उन्होंने कहा है कि केनरा बैंक का पेपर दिया गया था। कोई देरी नहीं हुई थी। इस पर सीजेआई ने कहा पूछा कि क्या सेंटर इंचार्ज को दोनों बैंकों से पेपर मिलते हैं? जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "किसी सिटी इंचार्ज को यह नहीं बताया जाता कि किस बैंक से पेपर लेना है।" फिर सीजेई पूछा, "क्या बैंकों को इस बारे में जानकारी नहीं है। जब एसबीआई को पेपर बांटने थे, तो झज्जर इंचार्ज केनरा बैंक कैसे गए और पेपर कैसे लाए? 

दरअसल, कोर्ट मामले में 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाओं में एनटीए की अर्जियां भी शामिल हैं। एनटीए ने विभिन्न हाइकोर्ट में उसके खिलाफ लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने की मांग की है। बता दें कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2024 पांच मई को आयोजित की गई थी। इससे पहले राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने शनिवार को मेडिकल प्रवेश परीक्षा के शहर और केंद्रवार परिणाम जारी किए थे।

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Jul 22 2024, 13:59

कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेम प्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, यूपी-उत्तराखंड सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक
#supreme_court_interim_stay_on_yogi_adityanath_govt_name_plate_order
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा रूट पर नेमप्लेट लगाने के आदेश को लेकर पूरे देश में बहस जारी है। इस बीच इस मामले में मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी किया है और शुक्रवार तक जवाब देने के लिए कहा है। साथ ही कोर्ट ने नेमप्लेट लिखने के निर्देश पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा से जुड़े एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। यूपी सरकार के आदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने को कहा गया है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को अपना नाम बताने की जरूरत नहीं है। वे सिर्फ यह बताएं कि उनके पास कौन-से और किस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं। कांवड़ियों को वेज खाना मिले और साफ सफाई रहे। खाना शाकाहारी है या मांसाहारी ये बताना जरूरी है। मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही यूपी, उत्तराखंड और एमपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए शुक्रवार तक जवाब देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक पुलिस के निर्देशों पर रोक लगा दी। इसके साथ ही कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई तक किसी को जबरन नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अपने दलीलों कहा कि यह एक चिंताजनक स्थिति है। पुलिस अधिकारी विभाजन पैदा कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान कर उनका आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। याचिकाकर्ता के वकील सी यू सिंह ने दलील दी कि शासन का आदेश समाज को बांटने जैसा है। यह एक तरह से अल्पसंख्यक दुकानदारों को पहचानकर उनके आर्थिक बहिष्कार जैसा है।इनमें यूपी और उत्तराखंड ऐसा कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- यह एक प्रेस वक्तव्य था या एक आदेश? याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पहले एक प्रेस बयान आया था। फिर सार्वजनिक आक्रोश हुआ। राज्य सरकार कहती है “स्वेच्छा से”, लेकिन वे इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। कोई भी कानून पुलिस कमिश्नर को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता।

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Jul 21 2024, 20:06

हिंसा के बीच बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाई कोर्ट के 30% आरक्षण के आदेश पर लगाई रोक

#bangladesh_supreme_court_scales_back_civil_service_job_quotas

बांग्लादेश में सरकारी नौकरी में आरक्षण के विरोध में हुई हिंसा के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के कोटे में कटौती करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को वापस लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश में आरक्षण को लेकर मचे बवाल के बीच सरकारी नौकरियों में रविवार को आरक्षण घटा दिया। देशभर में अशांति के बीच फैसले से प्रदर्शनकारियों की जीत हुई है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां योग्यता आधारित प्रणाली के आधार पर आवंटित की जाएं और शेष सात प्रतिशत 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में लड़ने वालों के रिश्तेदारों तथा अन्य श्रेणियों के लिए छोड़ी जाएं। पहले युद्ध लड़ने वालों के रिश्तेदारों के लिए नौकरियों में 30 प्रतिशत तक आरक्षण था। मगर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है। इसे छात्रों के लिए बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

बांग्लादेश में 1971 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में बड़ा आरक्षण दिया गया था। बांग्लादेश सरकार ने 2018 में सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी आरक्षण दिया था। इसका बांग्लादेश के छात्रों ने कड़ा विरोध किया और फैसला वापस ले लिया गया। अब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और हाईकोर्ट ने आरक्षण लागू कर दिया। 

इसके बाद बांग्लादेश के छात्रों में आक्रोश फैल गया। छात्रों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए और कहा कि यह आरक्षण प्रणाली गलत है। साथ ही प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों का समर्थन करेगी। इसके बाद देश में अशांति फैल गई और जगह-जगह हिंसा हुई। इसमें 115 लोगों की मौत हो गई। 

मामले को लेकर सु्प्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। इसके बाद सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए नौकरी में आरक्षण का कोटा 30 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया है। जबकि दो फीसदी आरक्षण अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडर और दिव्यांगों को मिलेगा। जबकि 93 फीसदी पद योग्यता के आधार पर भरे जाएंगे। 

इससे पहले बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ हिंसा भड़कने के कुछ दिन बाद शनिवार को पुलिस ने पूरे देश में कठोर कर्फ्यू लागू कर दिया और सैन्य बलों ने राष्ट्रीय राजधानी ढाका के विभिन्न हिस्सों में गश्त की. बांग्लादेश में हिंसा भड़कने से सैकड़ों लोगों की मौत हुई है जबकि हजारों लोग घायल हुए हैं. प्रदर्शनकारी छात्रों ने देश में पूर्ण बंद लागू करने के प्रयास के दौरान 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी

తప్పు చేస్తే దొరకక తప్పదు

Jul 19 2024, 19:43

ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా? లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ ఆగ్రహం

సుప్రీం కోర్టు(Supreme Court) ప్రధాన న్యాయమూర్తి జస్టిస్ డీవై చంద్రచూడ్ న్యాయవాదిపై తీవ్ర ఆగ్రహం వ్యక్తం చేశారు. కూల్చివేతకు సంబంధించిన కేసు విచారణలో భాగంగా లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ మండిపడ్డారు.

అయితే, కోర్టుకు హాజరయ్యే లాయర్లు తప్పనిసరిగా ధరించాల్సిన నెక్‌బ్యాండ్‌ ఆ న్యాయవాది ధరించలేదు. దీంతో, సీజేఐ న్యాయవాదిని ఉద్దేశించి ఘాటు వ్యాఖ్యలు చేశారు.

మీ మెడ చుట్టూ ఉండే బ్యాండ్ ఎక్కడ ఉంది? ఇక్కడేమైనా ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా?” అని ప్రశ్నించారు.

ఈమెయిల్ పంపాలని ఆదేశించారు. హడావిడిగా వచ్చానని న్యాయవాది చెప్పినప్పుడు మరింత కఠినంగా సీజేఐ సమాధానమిచ్చారు.

క్షమించండి, మీరు సరైన వస్త్రధారణలో లేకుంటే కేసు వినేది లేదు" అని స్పష్టం చేశారు.

బార్ కౌన్సిల్ ఆఫ్ ఇండియా (Bar Council)నిబంధనల ప్రకారం కోర్టుకు హాజరయ్యే న్యాయవాదులకు డ్రెస్ కోడ్‌ తప్పనిసరి. సుప్రీంకోర్టు, హైకోర్టు, కింది కోర్టులు, ట్రైబ్యునల్స్ లేదా అథారిటీలలో హాజరయ్యే న్యాయవాదాలు డ్రెస్ కోడ్ తప్పనిసరిగా పాటించాల్సి ఉంటుంది.

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Jul 19 2024, 16:56

बंगाल के राज्यपाल की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, जानें किया है अनुच्छेद 361, जिसकी समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार

#bengal_governor_sexual_assault_case_supreme_court_issued_notice

पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्च सहमत हो गया है। महिला ने राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। जिसमें संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को दी गई छूट को चुनौती दी गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 361 के उन प्रावधानों की समीक्षा करने पर सहमत हो गया जो राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से ‘‘पूर्ण छूट'' प्रदान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है और महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है। 

महिला से यौन उत्पीड़न के आरोप में बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता दें कि यह अनुच्छेद संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का अपवाद है और यह प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इसी के खिलाफ महिला याचिकाकर्ता ने विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश मांगे हैं, जिसके तहत राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन से छूट प्राप्त 

याचिका में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार को राज्य पुलिस के माध्यम से मामले की जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि अनुच्छेद 361 के तहत मिली छूट का राज्यपाल किस तरह से इस्तेमाल कर सकता है इस पर भी दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 जांच के खिलाफ बाधा नहीं बन सकता. दीवान ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि जांच ही न हो, साक्ष्य अभी जुटाए जाने चाहिए। उन्होंने अदालत से मांग की कि राज्यपाल के खिलाफ जांच को अनिश्चितकाल के लिए नहीं टाला जा सकता।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि राज्यपाल आपराधिक कृत्यों को लेकर इस छूट का दावा नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि इस इम्यूनिटी से उन्हें मुकदमा शुरू करने के लिए राज्यपाल का पद छोड़ने का इंतजार करना पड़ेगा, जो अनुचित है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

पश्चिम बंगाल के राजभवन की महिला कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला का आरोप है कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी. तब राज्यपाल ने उसके साथ बदसलूकी की थी।

India

Jul 18 2024, 13:29

नीट पेपर लीक में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, सीजेआई ने कहा-साबित करें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई, तो दोबारा कराएंगे परीक्षा

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सुप्रीम कोर्ट आज नीट-यूजी के मामले पर अहम सुनवाई कर रहा है। 40 से ज्यादा याचिकाओं में नीट-यूजी 2024 को दोबारा कराने की मांग की गई है। इन याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में एनटीए और नीट यूजी के खिलाफ विभिन्न हाईकोर्ट में दायर वे मुदकमे भी शामिल हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई है। पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि नीट-यूजी परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली नहीं हुई है। ऐसे में दोबारा परीक्षा कराए जाने की कोई जरूरत नहीं है। वहीं, एनटीए ने कहा था कि पूरे देश में पेपर लीक नहीं हुआ है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई शुरू होने पर कहा कि नीट मामले को शुक्रवार को सुना जा सकता है। जिस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुनवाई आज ही शुरू करते हैं। हम नीट मामले पर सबसे पहले सुनवाई करेंगे, क्योंकि लाखों छात्र फैसले का इंतजार कर रहे हैं। सीजेआई ने अन्य वकीलों को नीट-यूजी मामले पर सुनवाई के बाद आने को कहा। सीजेआई ने पूछा पहले कौन दलीलें पेश करेगा? 

एसजी ने कहा कि CBI ने दूसरी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है। सीजेआई ने कहा कि हमने देख ली है। जिसपर याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील नरेंद्र हुड्डा ने कहा कि हमें सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट नहीं दी गई है। इस पर अदालत ने कहा, 'हालांकि हम पारदर्शिता की वकालत करते हैं। मगर सीबीआई जांच चल रही है। अगर सीबीआई ने हमें जो बताया है उसका खुलासा होता है, तो यह जांच को प्रभावित करेगा।

सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप हमें संतुष्ट करिए कि पेपर लीक बड़े पैमाने पर हुआ और परीक्षा रद्द होनी चाहिए। दूसरी इस मामले में जांच की दिशा क्या होना चाहिए वो भी हमें बताएं। उसके बाद हम सॉलिसिटर जनरल को सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि अगर आप हमारे सामने यह साबित कर देते हैं कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई तभी दोबारा परीक्षा कराने का आदेश दिया जा सकता है। 

अदालत ने कहा कि 131 छात्र दोबारा परीक्षा चाहते है। 254 छात्र दोबारा परीक्षा के खिलाफ है। दोबारा परीक्षा चाहने वाले 131 छात्र ऐसे हैं, जो एक लाख आठ हजार के अंदर नहीं आते और दोबारा परीक्षा का विरोध करने वाले 254 छात्र एक लाख आठ हजार के अंदर आते हैं। अगर 1 लाख 8 हजार लोगों को एडमिशन मिलता है, बाकी 22 लाख लोगों को दाखिला नहीं मिलता तो इसका मतलब ये तो नहीं कि पूरी परीक्षा को रद्द कर दिया जाए?

सीजेआई ने आगे कहा कि सबसे कम अंक पाने वाले याचिकाकर्ता छात्र के मार्क्स कितने हैं? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कुल 34 याचिकाएं है, जिनमें चार याचिकाएं एनटीए की है। 

पीठ ने आगे कहा कि 38 में छह ट्रांसफर याचिकाएं शामिल हैं। इस पर एनटीए की ओर से पेश वकील ने कहा कि हां 32 व्यक्तिगत याचिकाएं हैं। अदालत ने कहा कि लंच के दौरान हमें बताएं कि कितने छात्रों ने कोर्ट का रुख किया है।

जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि परीक्षा की मांग करने वाले याचिकाकर्ता क्या एक लाख आठ हजार के अंतर्गत हैं? सीजेआई ने कहा कि नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता, यह बाहर हैं। सीजेआई ने कहा कि एनटीए 100 टॉप अंकों वालों का चार्ट दे। साथ ही यह भी बताए कि अभ्यर्थी किस सेंटर और शहर से हैं।