श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरों को किया रिहा, श्रीलंकाई राष्ट्रपति के भारत दौरे पर एस जयशंकर ने फटाया था मुद्दा

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श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरे को रिहा कर दिया है। चार महीने से भी ज्यादा वक्त के बाद ये मछुआरे अपने देश लौट आए हैं।श्रीलंका की नौसेना ने इन मछुआरों को 8 सितंबर, 2024 को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पार करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। भारत सरकार से उन मछुआरों के परिवारों ने गुहार लगाई थी। जिसके बाद केन्द्र की मोदी सरकार के प्रयास के बाद श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरों को रिहा कर दिया। ये सभी अब स्वदेश लौट चुके हैं।

तमिलनाडु तटीय पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, 41 मछुआरों में से 35 रामनाथपुरम के निवासी हैं, जबकि अन्य नागपट्टिनम और पुदुकोट्टई जिलों के रहने वाले हैं। स्वदेश लौटने पर मछुआरों को नागरिकता सत्यापन, सीमा शुल्क जांच और अन्य औपचारिकताओं से गुजरना पड़ा। तमिलनाडु मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने मछुआरों का स्वागत किया। इसके बाद अलग-अलग वाहनों में उनके गृहनगरों तक परिवहन की व्यवस्था की गई। इससे पहले श्रीलंका ने तमिलनाडु के 15 मछुआरों के एक समूह को रिहा किया था, जो 16 जनवरी को चेन्नई पहुंचे थे।

हाल के महीनों में भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के मछुआरों को अनजाने में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमाओं को पार करने के लिए हिरासत में लिए जाने की कई घटनाएँ हुई हैं। तमिलनाडु के मछुआरा संघों ने तटीय जिलों में बड़े पैमाने पर इन गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किए और निर्णायक कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर उनसे बीच समुद्र में होने वाली गिरफ्तारियों और मछली पकड़ने वाली मशीनीकृत नावों की जब्ती पर रोक लगाने का आग्रह किया था, जो उनकी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इन चुनौतियों का समाधान करने और मछुआरों की आजीविका की रक्षा करने के लिए निरंतर कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता पर ध्यान दिया। पिछले महीने यानी दिसंबर में श्रीलंका के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे, तब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके के साथ चर्चा की थी और पुरजोर तरीके से मछुयारे की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया था। इसके बाद खुद राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने भारत को भरोसा दिया था कि श्रीलंका सरकार उन सभी मछुआरों को रिहा कर देगी। स्वदेश लौटते ही जयशंकर की बातों पर श्रीलंका के राष्ट्रपति ने अमल किया और रिहा करने का आदेश जारी हो गया।

*ON FAMILIAR TURF*

Sports

Khabar kolkata sports Desk: As the T20 fever in the city is soaring higher with the iconic Eden Gardens hosting the First T20I between India and England, CAB President Snehasish Ganguly took time out amidst all the buzz to revisit his cricketing skills, thus bringing back memories from the yesteryears.

Before Bengal hosts Haryana in their sixth Ranji Trophy Elite Group C match at the Kalyani Stadium on Thursday, Mr Ganguly paid a visit to Kalyani during Bengal’s practice session.

With bat in hand, CAB President looked in absolute best, rewinding those days and memories and showing glimpse of the classy left-handed batsman he was.

Pic Courtesy by: CAB

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।  

इसकी “आंखों” से 8000 किमी दूर भी दुश्मन नहीं बच पाएगा, भारत अपने दोस्त से खरीद रहा ऐसी रडार

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भारत के लिए वैश्विक सुरक्षा चुनौतियां बढ़ रहीं हैं। इसे देखते हुए एयर डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया जा रहा है। इसी क्रम में रूस से वोरोनिश रडार खरीदने जा रहा है। बहुत अधिक दूरी तक खतरों की पहचान करने की क्षमता के चलते यह समय रहते वायु सेना को हमले के बारे में सचेत कर देगा। इससे भारत की निगरानी क्षमता भी बढ़ेगी।

भारत ने वोरोनिश रडार सिस्टम को खरीदने के लिए रूस के साथ बातचीत को अंतिम रूप दे दिया है। भारत के वायु रक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 4 अरब डॉलर के रक्षा सौदे पर रूस के साथ सहमति हो गई है।भारत कर्नाटक में चालकेरे के अंदर बने डीआरडीओ के कैंपस में रूस का महाशक्तिशाली रडार लगाने जा रहा है।यह रूसी रेडार कर्नाटक में लगाए जाने के बाद भी पूरे पाकिस्‍तान और चीन तक निगरानी करने में माहिर है। कर्नाटक से चीन के बीच दूरी 1800 किमी है लेकिन यह रेडार अपनी 8 हजार किमी तक सूंघने की ताकत की वजह से वहां तक निगरानी करने में सक्षम है। यह रूसी रेडार विभिन्‍न वेबबैंड पर काम करने में सक्षम है। इस वजह से यह विभिन्‍न भूमिका में काम करने में सक्षम है। यह रूसी रेडॉर एक के बाद एक सैकड़ों लक्ष्‍यों को ट्रैक करने में सक्षम है।

कैसे काम करता है वोरोनिश रडार?

वोरोनिश रडार रूस की लेटेस्ट तकनीक पर आधारित है। इसे अल्माज-एंटे कंपनी ने विकसित किया है, जो एस-400 मिसाइल प्रणाली के लिए भी जानी जाती है। वोरोनिश रडार की पहचान प्रणाली विशेष रूप से रडार तरंगों के माध्यम से काम करती है। इसकी तकनीक लंबी दूरी पर हवा और अंतरिक्ष में गतिविधियों का पता लगाती है। यह रडार अत्यधिक संवेदनशील है और 6,000 से 8,000 किलोमीटर तक के दायरे में हवाई खतरों को ट्रैक कर सकता है। इसकी मॉड्यूलर संरचना इसे किसी भी समय आंशिक रूप से चालू करने की अनुमति देती है, जिससे इसे जल्दी से कार्य में लाया जा सकता है

एक साथ 500 से अधिक उड़ने वाली चीजों की निगरानी

रूस के मुताबिक यह सिस्टम एक साथ 500 से अधिक उड़ने वाली चीजों की निगरानी कर सकता है और अंतरिक्ष में पृथ्वी के निकट की वस्तुओं को भी ट्रैक कर सकता है। इस एडवांस रडार से चीन, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर सहित महत्वपूर्ण इलाकों पर अपनी निगरानी को बढ़ाकर भारत को रणनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद है।

शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप की सबसे पहले भारत और चीन के दौरे की चर्चा, जानें क्यों है अहम*

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कुछ घंटों बाद डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की कमान अपने हाथों में लेंगे। ये दूसरा मौका है जब वो सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। मगर उनकी शपथ से पहले ही दुनिया के कई देशों में हलचल मची हुई है। ट्रंप ने साफ संकेत दिए हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान विदेश नीति किस दिशा में जाएगा। कुछ देशों की हालत तो कभी खुशी, कभी गम वाली है। चुनाव जीतने के बाद से ही ट्रंप की जीत और अमेरिका से अलग-अलग देशों के रिश्तों पर दुनिया भर में विश्लेषण चल रहा है। इस बीच खबर आ रही है पदभार संभालने के बाद ट्रंप भारत और चीन का दौरा करेंगे।

नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, बीजिंग के साथ संबंधों को सुधारने के लिए पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, इसके अलावा उन्होंने भारत की संभावित यात्रा को लेकर भी सलाहकारों से बातचीत की है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की चेतावनी दी थी। लेकिन ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने अपनी खबर में बताया, 'ट्रंप ने सलाहकारों से कहा है कि वह पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, ताकि प्रचार के दौरान चीन को दी गई अधिक शुल्क लगाने संबंधी चेतावनी के कारण शी जिनपिंग के साथ तनावपूर्ण हुए संबंधों को सुधारा जा सके।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वे राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाना चाहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने अपने सलाहकारों से भारत के संभावित दौरे को लेकर भी चर्चा की है। बीते महीने क्रिसमस के मौके पर जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए थे, तब उनके दौरे पर भी ट्रंप के भारत के संभावित दौरे पर लेकर शुरुआती बातचीत हुई थी।

वहीं एक दिन पहले ही ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात की। इस बातचीत को ट्रंप ने शानदार बताया और कहा कि दोनों के बीच व्यापार, फेंटानिल, टिकटॉक और अन्य मुद्दों पर अच्छी बातचीत हुई। ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया गया था, लेकिन अब खबर है कि जिनपिंग की जगह उनके डिप्टी उपराष्ट्रपति हान झेंग, ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो सकते हैं।

यूरोप, नाटो और पड़ोसियों कनाडा और मैक्सिको को छोड़कर भारत और चीन को तवज्‍जो देना एक बड़ा वैश्विक संदेश भी है। साफ है कि चीन और भारत से संबंधों के जरिए अमेरिकी व्‍यापार को गति मिल सकती है। ट्रंप बड़े बिजनेसमैन भी हैं लिहाजा वो बेहतर तरीके से जानते हैं कि व्‍यापार के बिना अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि ट्रंप की नज भारत चीन पर है।

*FC Goa defeated East Bengal FC by 1-0*

Sports

Khabar kolkata sports Desk: FC Goa defeated East Bengal FC by 1-0 at the Jawaharlal Nehru Stadium in Goa in the Indian Super League (ISL) 2024-25 yesterday. The Gaurs moved to the second spot in the points table with their eighth victory of the season, having 30 points to their name from 16 matches now. Brison Fernandes’ sixth goal of this ISL campaign proved enough for the home team to clinch the triumph, in a game where they took three shots on target, as opposed to the six of East Bengal FC.

Pic Courtesy by: ISL

हिंद महासागर में मजबूत नौसेना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता”, राजनाथ सिंह ने कहा- चीन की बढ़ती मौजूदगी चिंताजनक

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केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी को भारत के लिए चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। साथ ही कहा कि नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। रक्षमंत्री ने कहा, हम दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष और युद्ध देख रहे हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमें अपनी सुरक्षा के लिए योजना, संसाधन और बजट की आवश्यकता है।

हिंद महासागर महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर चिंता जताते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि सीधे तौर पर हिंद महासागर क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत जरूरी है कि हम अपने समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखें और अपने समुद्र तटों की रक्षा करें।

रक्षा मंत्री ने कहा कि प्रमुख नौसैनिक शक्तियों ने हाल के सालों में हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कम कर दी है, जबकि भारतीय नौसेना ने इसे बढ़ाया है। उन्होंने कहा, अदन की खाड़ी, लाल सागर और पूर्वी अफ्रीकी देशों से लगे समुद्री क्षेत्रों में खतरे बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए भारतीय नौसेना अपनी उपस्थिति को और बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 2024 को नौसेना नागरिक वर्ष के रूप में मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान सिंह ने आगे कहा कि दुनियाभर में हो रही उथल-पुथल और संघर्षों के मद्देनजर भारत की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए आक्रामक और रक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर बल देने की आवश्यकता है। उन्होंने सशस्त्र बलों के सामने बढ़ती जटिलताओं का जिक्र करते हुए देश की रक्षा क्षमता को जल्द बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तनावपूर्ण भू-राजनीतिक सुरक्षा परिदृश्य के मद्देनजर सशस्त्र बलों के लिए बढ़ती जटिलताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, अगर हम रक्षा और सुरक्षा के नजरिए से पूरे दशक का आकलन करें तो हम कह सकते हैं कि यह एक उतार-चढ़ाव भरा दशक रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में हिंद महासागर में जल की रक्षा करना, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखना आवश्यक है।

जाते-जाते भारत पर मेहरबान हुई बाइडेन सरकार, भाभा समेत 3 परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध

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अमेरिका की जो बाइडन सरकार ने जाते-जाते भारत पर तोहफों की बारिश की है। अमेरिका ने 3 भारतीय परमाणु संस्थाओं पर 20 साल से लगा प्रतिबंध हटाया। इसमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR) और इंडियन रेयर अर्थ (IRE) के नाम हैं। वहीं, अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चाइना की 11 संस्थाओं को प्रतिबंध की लिस्ट में जोड़ा है। यूनाइटेड स्टेट्स ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (बीआईएस) ने इसकी पुष्टि की है।

बीआईएस के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं।

बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका ने पहले ही दिया था संकेत

अमेरिका का ये फैसला अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन के 6 जनवरी के हुए भारत दौरे के बाद आया।सुलिवन ने दिल्ली आईआईटी में कहा था कि अमेरिका उन नियमों को हटाएगा जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग में बाधा डाल रहे हैं। उन्होंने कहा था कि लगभग 20 साल पहले पूर्व राष्ट्रपति बुश और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु समझौते की एक दूरदर्शी सोच की नींव रखी थी, जिसे हमें अब पूरी तरह हकीकत बनाना है।

परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान

प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

चीन पर गिराई गाज

जहां अमेरिका ने भारत के लिए ये रियायतें दी हैं, वहीं चीन के 11 संगठनों को 'एंटिटी लिस्ट' में जोड़ा गया है. यह कदम अमेरिका की उस नीति का हिस्सा है, जो चीन और अन्य विरोधियों की एडवांस सेमीकंडक्टर और AI तकनीकों तक पहुंच को सीमित करना चाहती है

सऊदी अरब में नए वीजा नियम लागू, भारतीयों पर क्या होगा असर
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सऊदी अरब में 14 जनवरी से वर्क वीजा के नियमों में संशोधन किया गया है। सऊदी अरब सरकार ने विदेशी कामगारों के लिए वीजा नियम कड़े कर दिए है। सऊदी अरब में काम करने जाने वाले भारतीयों के लिए शैक्षणिक और पेशेवर योग्यताओं का सत्यापन अनिवार्य कर दिया गया है। छह महीने पहले प्रस्तावित यह नियम 14 जनवरी से लागू हो जाएगा। इससे वहां काम करने जाने वाले भारतीयों पर सीधा असर पड़ सकता है। इसके साथ ही सऊदी अरब ने प्रवासियों के लिए अपने इकामा (निवास परमिट) के नवीनीकरण करने के नियमों में भी बदलाव किया है।

सऊदी अरब मीडिया के अनुसार सरकार ने 2030 के विजन के मुताबिक श्रम क्षेत्र में सुधार शुरू किए हैं, ताकि प्रवासियों के लिए रोजगार अनुबंधों को और अधिक लचीला और आसान बनाया जा सके। सऊदी अरब के पासपोर्ट महानिदेशालय ने घोषणा की कि प्रवासियों के आश्रितों के साथ-साथ राज्य के बाहर स्थित घरेलू कामगार अब अपने इकामा को रिन्युअल कर सकते हैं। बता दें सऊदी अरब में इकामा प्राप्त करना काफी जरूरी होता है। दरअसल, यह राज्य में रहने और काम करने की अनुमति का प्रमाण होता है।

सऊदी अरब के अफसरों का कहना है कि इस पहल से भर्ती प्रक्रिया सुव्यवस्थित होने और कार्यबल की गुणवत्ता में वृद्धि की उम्मीद है। सऊदी मिशन की ओर से भारत में भी परिपत्र जारी किया गया। इसमें कहा गया कि 14 जनवरी से कार्य वीजा जारी करने के लिए दस्तावेजों का सत्यापन अनिवार्य हो जाएगा।

*नए नियमों से आ सकती है कई परेशानियां*
केरल से राज्यसभा सांसद हारिस बीरन का कहना है नए नियमों से कई परेशानियां आ सकती हैं। देश में पर्याप्त परीक्षण केंद्र नहीं हैं, जहां आवेदक सत्यापन करवा सकें। कार चालकों के लिए परीक्षण केंद्र राजस्थान के अजमेर और सीकर में हैं। दक्षिण के आवेदकों को लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

*24 लाख से ज्यादा भारतीय कामगार*
2024 तक, सऊदी अरब में 24 लाख से ज्यादा भारतीय कामगार रहते हैं, जिनमें 16.4 लाख निजी क्षेत्र में और 7,85,000 घरेलू कामगार शामिल हैं। बांग्लादेश 26.9 लाख प्रवासी कामगारों के साथ सबसे आगे है। महिलाओं सहित भारतीय कामगार सऊदी अरब के श्रम बाजार का अहम हिस्सा बने हुए हैं और भारत में पैसे भेजते हैं। प्रतिष्ठान मालिकों और मानव संसाधन विभागों को प्रवासी कर्मचारियों द्वारा प्रदान किए गए प्रमाणपत्रों और सूचनाओं को सत्यापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस पहल से भर्ती को सुव्यवस्थित करने और सउदी में कार्यबल की गुणवत्ता बढ़ाने की उम्मीद है।
'इंडियन स्टेट' वाले बयान पर घिरे राहुल गांधी, बीजेपी बोली- कांग्रेस का सच उजागर किया
#congress_leader_rahul_gandhi_statement_indian_states
राहुल गांधी ने बुधवार को बीजेपी और आरएसएस पर जमकर हमला बोला। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को पार्टी के नए दफ्तर के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत पर भी सीधा हमला बोला। इस दौरान बीजेपी और आरएसएस पर बोलेते बोलते लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने ऐसा बयान दे दिया की उसपर हल्ला मच गया है। उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई बीजेपी-आरएसएस के साथ इंडियन स्टेट के साथ भी है। कांग्रेस नेता के इस बयान पर भाजपा ने पलटवार किया है। भाजपा ने कांग्रेस सांसद के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस नेता ने ही पार्टी का घिनौना सच उजाकर कर दिया है। ये बयान सीधे तौर पर "जॉर्ज सोरोस की प्लेबुक" से निकला था।

राहुल गांधी का शहरी नक्सलियों और डीप स्टेट से घनिष्ठ संबंध-नड्डा
जेपी नड्डा ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि कांग्रेस का घिनौनी सच किसी से छिपा नहीं है। अब उनके अपने नेता ने ही इसका पर्दाफाश कर दिया है। मैं राहुल गांधी की सराहना करता हूं कि उन्होंने वह बात साफ-साफ कही जो देश जानता है कि वह भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि राहुल गांधी और उनके तंत्र का शहरी नक्सलियों और डीप स्टेट के साथ घनिष्ठ संबंध है। जो भारत को बदनाम करना चाहते हैं। उनके बार-बार के कार्यों ने भी इस विश्वास को मजबूत किया है। उन्होंने जो कुछ भी किया या कहा है वह भारत को तोड़ने और हमारे समाज को विभाजित करने वाला है।

जॉर्ज सोरोस द्वारा पूर्व नियोजित और प्रायोजित- शहजाद पूनावाला
भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने भी राहुल गांधी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का बयान महज संयोग नहीं है बल्कि जॉर्ज सोरोस द्वारा पूर्व नियोजित और प्रायोजित है। आज कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि भाजपा और पीएम मोदी का विरोध करते-करते वे देश का विरोध करने लगे हैं। वे भारत और भारतीय राज्यों के खिलाफ लड़ रहे हैं। यह संयोग नहीं बल्कि एक सोचा-समझा प्रयोग है। यह एक उद्योग बन गया है, जिसे सोरोस (जॉर्ज सोरोस) प्रायोजित करते हैं। राहुल गांधी 'भारत तोड़ो' के एजेंडे पर चलते हैं।

क्या कहा राहुल गांधी ने?
राहुल गांधी कांग्रेस के नए ऑफिस के उद्घाटन के मौके पर पहुंचे। पार्टी का ऑफिस 24 अकबर रोड से अब 9 कोटला मार्ग पर शिफ्ट हो गया है। इस दौरान राहुल गांधी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मोहन भागवत का बयान राजद्रोह के समान है कि भारत को सच्ची स्वतंत्रता राम मंदिर बनने के बाद मिली। उन्होंने कहा कि भागवत ने जो कहा है वह हर भारतीय का अपमान है और किसी दूसरे देश में ऐसा होने पर तो भागवत अब तक गिरफ्तार किए जा चुके होते।

राहुल मोहन भागवत के इसी बयान पर बोल रहे थे, इसी दौरान उन्होंने इंडियन स्टेट का भी जिक्र कर दिया। राहुल ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि यह मत सोचिए कि हम निष्पक्ष लड़ाई लड़ रहे हैं। इसमें कोई निष्पक्षता नहीं है। यदि आप मानते हैं कि हम बीजेपी या आरएसएस नामक राजनीतिक संगठन से लड़ रहे हैं, तो आप समझ नहीं पाएंगे कि क्या हो रहा है। बीजेपी और आरएसएस ने हमारे देश की हर एक संस्था पर कब्जा कर लिया है। अब हम बीजेपी, आरएसएस और स्वयं इंडियन स्टेट से लड़ रहे हैं।
श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरों को किया रिहा, श्रीलंकाई राष्ट्रपति के भारत दौरे पर एस जयशंकर ने फटाया था मुद्दा

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श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरे को रिहा कर दिया है। चार महीने से भी ज्यादा वक्त के बाद ये मछुआरे अपने देश लौट आए हैं।श्रीलंका की नौसेना ने इन मछुआरों को 8 सितंबर, 2024 को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पार करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। भारत सरकार से उन मछुआरों के परिवारों ने गुहार लगाई थी। जिसके बाद केन्द्र की मोदी सरकार के प्रयास के बाद श्रीलंका ने 41 भारतीय मछुआरों को रिहा कर दिया। ये सभी अब स्वदेश लौट चुके हैं।

तमिलनाडु तटीय पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, 41 मछुआरों में से 35 रामनाथपुरम के निवासी हैं, जबकि अन्य नागपट्टिनम और पुदुकोट्टई जिलों के रहने वाले हैं। स्वदेश लौटने पर मछुआरों को नागरिकता सत्यापन, सीमा शुल्क जांच और अन्य औपचारिकताओं से गुजरना पड़ा। तमिलनाडु मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने मछुआरों का स्वागत किया। इसके बाद अलग-अलग वाहनों में उनके गृहनगरों तक परिवहन की व्यवस्था की गई। इससे पहले श्रीलंका ने तमिलनाडु के 15 मछुआरों के एक समूह को रिहा किया था, जो 16 जनवरी को चेन्नई पहुंचे थे।

हाल के महीनों में भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के मछुआरों को अनजाने में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमाओं को पार करने के लिए हिरासत में लिए जाने की कई घटनाएँ हुई हैं। तमिलनाडु के मछुआरा संघों ने तटीय जिलों में बड़े पैमाने पर इन गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किए और निर्णायक कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर उनसे बीच समुद्र में होने वाली गिरफ्तारियों और मछली पकड़ने वाली मशीनीकृत नावों की जब्ती पर रोक लगाने का आग्रह किया था, जो उनकी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इन चुनौतियों का समाधान करने और मछुआरों की आजीविका की रक्षा करने के लिए निरंतर कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता पर ध्यान दिया। पिछले महीने यानी दिसंबर में श्रीलंका के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे, तब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके के साथ चर्चा की थी और पुरजोर तरीके से मछुयारे की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया था। इसके बाद खुद राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने भारत को भरोसा दिया था कि श्रीलंका सरकार उन सभी मछुआरों को रिहा कर देगी। स्वदेश लौटते ही जयशंकर की बातों पर श्रीलंका के राष्ट्रपति ने अमल किया और रिहा करने का आदेश जारी हो गया।

*ON FAMILIAR TURF*

Sports

Khabar kolkata sports Desk: As the T20 fever in the city is soaring higher with the iconic Eden Gardens hosting the First T20I between India and England, CAB President Snehasish Ganguly took time out amidst all the buzz to revisit his cricketing skills, thus bringing back memories from the yesteryears.

Before Bengal hosts Haryana in their sixth Ranji Trophy Elite Group C match at the Kalyani Stadium on Thursday, Mr Ganguly paid a visit to Kalyani during Bengal’s practice session.

With bat in hand, CAB President looked in absolute best, rewinding those days and memories and showing glimpse of the classy left-handed batsman he was.

Pic Courtesy by: CAB