*दस रोजा शोहदा ए इस्लाम जलसा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है*
सुल्तानपुर अंजुमन खुद्दाम ए सहाबा व मदरसा जामिया इस्लामिया के वैनर तले मदरसा जामिया इस्लामिया खैराबाद के प्रांगण में दस रोजा शोहदा ए इस्लाम जलसा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। आठवीं मुहर्रम की देर रात मौलाना मुहम्मद उस्मान कासमी अध्यक्ष मदरसा जामिया इस्लामिया खैराबाद के संयोजन में शानदार तरीके से चल रहा है। शुक्रवार को ईशा की नमाज विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए वक्ता मुफ्ती मुहम्मदुल्लाह ने कहा कि मुसलमानों के लिए पैगम्बर और उनके साथियों की जीवनी और जीवन को जानना बहुत जरूरी है। साथियों का दर्जा और मर्तबा बहुत ऊंचा है क्योंकि उनके गुरु और संरक्षक पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) हैं!
मुफ्ती साहब ने कहा कि पैगंबर के मिशन के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं, जैसा कि पैगंबर ने स्वयं कहा है: मुझे एक शिक्षक के रूप में भेजा गया है और मुझे उच्च नैतिकता और चरित्र को परिपूर्ण करने के लिए भेजा गया है। उन्होंने सहाबा का अच्छे शब्दों में जिक्र करते हुए कहा कि अल्लाह तआला ने सहाबा के दिलों, उनकी तकवा और अल्लाह के डर का इम्तिहान लिया है और यह ज्ञान इतिहास से नहीं बल्कि कुरान से प्राप्त हुआ है (इतिहास से प्राप्त ज्ञान को अनुमानात्मक ज्ञान कहा जाता है और कुरान से प्राप्त ज्ञान निश्चित ज्ञान है)। इसलिए, उनके बारे में किसी भी तरह का शक करना और उन्हें कोसना और बदनाम करना कुरान में अविश्वास का एक रूप है। *जलसे के मुख्य अतिथि अमरोहा के शेख मुफ्ती मुहम्मद अफ्फान* ने अपने भाषण में कहा कि ये बच्चे, उनके माता-पिता, उनके शिक्षक, वह धार्मिक स्कूल जिसकी उपस्थिति में उन्होंने अपना कंठस्थ पाठ पूरा किया और उसके जिम्मेदार व्यक्ति बधाई के पात्र हैं! मुफ्ती साहब ने कहा कि बच्चों की शिक्षा और प्रशिक्षण की चिंता करना उनके लिए आजीविका कमाने की चिंता से कहीं बड़ी जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण कर्तव्य है। धन्य हैं वे माता-पिता जिन्होंने इस काम के लिए अपने दिल और दिमाग को मुक्त कर दिया और अपने मन और दिल को इस माहौल के लिए तैयार कर लिया। आखिर अगर हम और हमारे बच्चे कुरान नहीं सीखेंगे और कुरान की आयतों, निर्देशों और शिक्षाओं पर अमल नहीं करेंगे तो हम कौन होंगे???? मुसलमानों को अल्लाह की किताब और अल्लाह के रसूल की सुन्नत से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए, तभी वे गुमराही और भूल से बच सकते हैं। कुरान इसलिए उतारा गया ताकि हम कुरान को समझ सकें और उसकी शर्तों पर अमल कर सकें!!! मुहर्रम महीने की फजीलत बताते हुए उन्होंने कहा कि इस महीने की महानता और पवित्रता धरती और आसमान की रचना के दिन से है, क्योंकि यह महीना कुरान में अल्लाह द्वारा वर्णित चार पवित्र महीनों में से एक है। हमें इस महीने की कद्र करनी चाहिए, अनिवार्य रोज़े रखने चाहिए, खासकर आशूरा के दिन के साथ-साथ नौवें या ग्यारहवें दिन, और अन्य सभी रीति-रिवाजों, नवाचारों और अंधविश्वासों से पूरी तरह बचना चाहिए। इस महीने को गम का महीना मानना बेहद मूर्खतापूर्ण और नासमझी है, यहां तक कि तर्कसंगत दृष्टिकोण से भी, क्योंकि साल का कोई ऐसा दिन नहीं है जिस दिन अल्लाह के किसी नबी, साथी या संत का निधन न हुआ हो। धर्म के नाम पर धर्म का मजाक उड़ाना अनुचित कार्य है...! मुफ्ती साहब ने कहा कि नमाज़ अदा नहीं हो रही, कुरान की तिलावत का प्रबंध नहीं हो रहा, रिश्तेदारों और हक वालों के हक का सम्मान नहीं हो रहा, फिर भी वे सोचते हैं कि या हुसैन का नारा लगाकर उन्होंने अपना फर्ज पूरा कर लिया। ओह, यह कितनी अजीब बात है! हज़रत अली का तीनों खलीफ़ाओं से गहरा रिश्ता है। यह बात हज़रत अली के खुद के कई जगहों पर कहे गए शब्दों से पता चलती है। फिर भी हज़रत अली से मुहब्बत करने वाला तबका शेखों को गाली देता है और हज़रत उस्मान (अल्लाह उन पर प्रसन्न हो) के बारे में बुरा-भला कहता है। हज़रत अली से यह कैसी मुहब्बत है???? हर साथी को सम्मान और आदर दिया जाना चाहिए। साथियों के बीच पैदा हुए मतभेदों के बारे में चुप रहना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम शक के शिकार हुए तो हमारा अंत बुरे से भी बुरा होगा। मुफ़्ती साहब ने अपने बयान में कहा कि हज़रत आयशा (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) को किसी ने नहीं बताया कि कुछ लोग साथियों का अपमान करते हैं, यहाँ तक कि शेखों को भी नहीं बख्शते! हज़रत आयशा ने कहा कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जब नबी के साथी इस दुनिया से चले जाते हैं तो आमाल का सिलसिला भी कट जाता है, लेकिन अपमान करने वाले लोगों की वजह से सवाब का सिलसिला उनके साथ रहता है। सूरज पर थूकने से सूरज को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि थूक खुद थूकने वालों पर पड़ता है!! अपने भाषण के अंत में मुफ़्ती साहब ने कहा कि यह अवधारणा शरीयत और नबी-ए-करम की इस मंशा के खिलाफ है कि छोटे कामों का बहुत कम सवाब मिलता है। हर नेक काम पूरी लगन, प्यार और लगन से करना चाहिए। कौन जानता है कि कब कोई काम मोक्ष का साधन बन जाए? अपने भाइयों से मिलने के कार्य को कम नहीं आँका जाना चाहिए, लेकिन प्रसन्न चेहरे और मुस्कुराते चेहरों के साथ उनसे मिलना भी बहुत महत्वपूर्ण और लाभकारी है!! अंत में मुफ्ती साहब ने अपनी मनमोहक और मधुर आवाज में पूरी सूरह रहमान का पाठ किया, जिससे श्रोताओं में कुरान के प्रति प्रेम, भक्ति और समर्पण की भावना पैदा हो गई !! तत्पश्चात मुफ्ती साहब की दुआ के साथ बैठक समाप्त हुई तथा जामिया के नाजिम-ए-आला हजरत नाजिम साहब ने आए हुए मेहमानों का शुक्रिया अदा किया। शोहदा ए इस्लाम जलसे का संचालन मौलाना मुहम्मद उसामा साहब ने किया !!
Jul 06 2025, 02:43