ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

कौन हैं जय भट्टाचार्य? ट्रंप ने एक और भारतवंशी को दी ये बड़ी जिम्मेदारी

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपनी टीम बनाने में जुटे हैं। नए कार्यकाल से पहले ट्रंप का भारतीयों पर भरोसा बढ़ा है और कई भारतीय मूल के लोगों को अपनी सरकार में शामिल कर चुके हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से एक भारतवंशी पर विश्वास जताया है। अब ट्रंप ने कोलकाता में जन्मे जय भट्टाचार्य को बड़ी जिम्मेदारी दी है और देश के शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान एवं वित्त पोषण संस्थानों में से एक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के डायरेक्टर के रूप में नॉमिनेट किया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने किया एलान

नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जय भट्टाचार्य के नॉमिनशन का एलान करते हुए कहा कि मैं एनआईएच के डायरेक्टर के रूप में सेवा करने के लिए जय भट्टाचार्य, एमडी, पीएचडी को नॉमिनेट कर रोमांचित हूं। वह देश के चिकित्सा अनुसंधान को निर्देशित करने और महत्वपूर्ण रिसर्च के लिए रॉबर्ट एफ. कैंनेडी जूनियर के साथ मिलकर काम करेंगे। जिससे हेल्थ सेक्टर में सुधार होगा और लोगों की सुरक्षा होगी।

जय भट्टाचार्य ने जताई खुशी

अपनी इस नियुक्ति पर डॉ जय भट्टाचार्य ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने मुझे एनआईएच का डायरेक्टर नियुक्त किया है। इसके लिए मैं खुद को सम्मानित और गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। हम अमेरिकी वैज्ञानिक संस्थानों में सुधार करेंगे ताकि वे फिर से भरोसे के लायक हों और अमेरिका को फिर से स्वस्थ बनाने के लिए उत्कृष्ट काम करने करेंगे।

जय भट्टाचार्य पहले भारतीय-अमेरिकी

इसके साथ ही जय भट्टाचार्य पहले भारतीय-अमेरिकी बन गए हैं, जिसे डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शीर्ष प्रशासनिक पद के लिए नॉमिनेट किया गया है। इससे पहले, ट्रंप ने टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क के साथ नवगठित सरकारी दक्षता विभाग का नेतृत्व करने के लिए भारतीय-अमेरिकी विवेक रामास्वामी को चुना था। यह एक स्वैच्छिक पद है और इसके लिए अमेरिकी सीनेट से पुष्टि की आवश्यकता नहीं है।

कौन हैं डॉ जय भट्टाचार्य?

कोलकाता में जन्मे डॉ जय भट्टाचार्य स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के हेल्थ पॉलिसी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने 1997 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन से ग्रैजुएट और 2000 में स्टैनफोर्ड से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। वह नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च में एसोसिएट भी हैं और स्टैनफोर्ड के सेंटर फॉर डेमोग्राफी एंड इकोनॉमिक्स ऑफ हेल्थ एंड एजिंग के डायरेक्टर के रूप में भी कार्य करते हैं। ये वही डॉ जय भट्टाचार्य हैं, जिन्होंने कोरोना काल के समय अमेरिकी कोविड पॉलिसी की जमकर आलोचना की थी। कोविड मामले में सवाल उठाने के लिए डॉ जय भट्टाचार्य की बड़ी फजीहत हुई थी। ट्विटर ने उनके ट्विटर हैंडल को ब्लॉक कर दिया था।

भारत के इन दो दुश्मनों को सबक सिखाएंगे डोनाल्ड ट्रंप,राष्‍ट्रपति बनते ही बड़ा फैसला लेने का ऐलान*
#donald_trump_to_impose_tariffs_on_canada_mexico_and_china अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से ही कुछ देश खौफ में हैं। कहा जा रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप इन देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुने गए ट्रंप भले ही 20 जनवरी को कुर्सी संभालेंगे लेकिन दुश्‍मनों की नींद उन्‍होंने अभी से उड़ा दी है। ट्रंप ने सोमवार को एक बड़ा ऐलान किया है। ताजा ऐलान भारत को दो दुश्मन देशों को लेकर है। ट्रंप ने कहा कि वह जनवरी में कार्यभार संभालने के पहले दिन ही ऐसे आदेशों पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसके तहत मेक्सिको और कनाडा से आने वाले सभी सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप का कहना है कि वो ऐसा तब तक करेंगे जब तक ये देश अपने अमेरिका में अवैध अप्रवासियों और फेंटेनाइल दवाओं के प्रवाह को बंद नहीं करते हैं। *अवैध अप्रवासी कई समस्‍याओं की जड़-ट्रंप* ट्रंप ने ट्रूंथ सोशल नेटवर्क पर एक पोस्ट में लिखा है कि 20 जनवरी को ऑफिस संभालते ही कनाडा, मेक्सिको और चीन के ख़िलाफ़ टैरिफ लगाने के लिए एक एग्जेक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करेंगे।ट्रंप ने कहा, ''सभी को पता है कि कनाडा और मेक्सिको से हज़ारों लोग अमेरिका में घुस रहे हैं। ये अपने साथ ड्रग्स ला रहे हैं और कई अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। जिस स्तर पर ये सब हो रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।'' *कैसे हैं ट्रंप-ट्रूडो के संबंध?* कनाडा और अमेरिका के बीच दुनिया का सबसे लंबा लैंड बॉर्डर है और दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप की जीत के तत्काल बाद ही बधाई दी थी लेकिन दोनों नेताओं के संबंधों में पर्याप्त तनाव रहा है। अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति कमान संभालने के बाद पारंपरिक रूप से पहला विदेशी दौरा कनाडा या मेक्सिको का करता था लेकिन ट्रंप ने 2017 में पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया था। यानी ट्रंप ने आते ही संदेश दे दिया था। जस्टिन ट्रूडो पर ट्रंप व्यक्तिगत हमले भी करते रहे हैं। ट्रूडो को ट्रंप ने 'घोर-वामपंथी पागल' कहा था। कनाडा की आर्थिक स्थिति पहले से ही चिंताजनक है और ट्रंप के टैरिफ से वहाँ की अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की आशंका बढ़ जाएगी। कनाडा का 75 प्रतिशत निर्यात अमेरिका में होता है. ऐसे में 25 प्रतिशत का टैरिफ कनाडा को भारी पड़ सकता है। ट्रूडो के लिए ये मुश्किलें तब खड़ी हो रही हैं, जब कनाडा में चुनाव सिर पर है। कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि ट्रूडो चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी से हार सकते हैं। *चीन पर निशाना साधा* ट्रंप ने ट्रुथ पर एक दूसरे पोस्ट में चीन पर निशाना साधा, उन्होंने पोस्ट में लिखा, "मैंने चीन से संयुक्त राज्य अमेरिका में भेजी जा रही ड्रग्स, विशेष रूप से फेंटेनाइल के बारे में कई बार बातचीत की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। चीन के प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा था कि वह इस काम में शामिल किसी भी ड्रग तस्कर को मौत की सजा देंगे, लेकिन अफसोस, उन्होंने कभी इसे लागू नहीं किया और ड्रग्स हमारे देश में मुख्य रूप से मेक्सिको के जरिए भारी मात्रा में आ रही हैं। जब तक यह नहीं रुकता, हम चीन पर उनके सभी उत्पादों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में आयात हो रहे हैं, किसी भी अन्य टैरिफ के ऊपर होगा।" *टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप का अहम एजेंडा* टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, रिपब्लिकन पार्टी के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने 5 नवम्बर की अपनी जीत से पहले चुनाव प्रचार के दौरान सहयोगियों और विरोधियों पर समान रूप से व्यापक शुल्क लगाने की कसम खाई थी। हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि टैरिफ से विकास को नुकसान पहुंचेगा और मुद्रास्फीति बढ़ेगी, क्योंकि टैरिफ का भुगतान मुख्य रूप से अमेरिका में सामान लाने वाले आयातकों द्वारा किया जाता है, जो अक्सर उन लागतों को उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं।
डोनाल्‍ड ट्रंप कैसे पूरा करेंगे अपना वादा, लाखों अवैध प्रवासियों को निकालना होगा कितना मुश्किल?

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डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीता है। वे जनवरी महीने में अपना पदभार ग्रहण करेंगे। दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन में ट्रंप अपनी आक्रामक नीतियों को लागू करेंगे। वे जो बाइडन प्रशासन के कई फैसलों को पलटने की तैयारी में हैं। अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और महंगाई को लेकर ट्रंप बड़ा फैसला लेंगे। ट्रंप के प्लान में प्रवासियों का बड़े पैमाने पर निर्वासन भी शामिल है। डोनाल्ड ट्रंप सबसे पहले आव्रजन और उर्जा नीति में बदलाव करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप 2015 से ही आव्रजन पर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। ट्रंप ने भारी संख्या में अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकालने का वादा किया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि ट्रंप सबसे पहले इसी पर काम करेंगे। चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में भी डोनाल्ड ट्रंप ने बिना प्राधिकरण के देश में रहने वाले विदेशियों के खिलाफ आलोचना की और चेतावनी दी कि अनियंत्रित आप्रवासन "हमारे देश के खून में जहर घोल रहा है" और इसे रोका जाना चाहिए। ट्रंप कह चुके हैं कि "पहले ही दिन, हम अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान शुरू करेंगे।"

दुनिया का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान चलाने की प्लानिंग कर चुके डोनाल्ड ट्रंप ने इसके लिए टॉम होमन को जिम्मा सौंपा है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) के निदेशक टॉम होमन को "सीमा ज़ार" के रूप में नियुक्त करेंगे जो देश की सीमाओं के प्रभारी होंगे। टॉम होमन ने कहा कि उनका प्रशासन पहले उन 4 लाख 25 हजार अवैध प्रवासियों को निर्वासित करेगा। ये वे आंकड़े हैं जिनके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड हैं।

ट्रंप इस मुद्दे को लेकर जितनी मुखरता दिखा रहे हैं, उसके रास्ते में कई कानूनी अड़चनें आने और हिंसक झड़पें होने के आसार हैं। केवल अवैध आप्रवासियों में ही नहीं बल्कि वैध रूप से अमेरिका आकर काम कर रहे और आगे यहां स्थायी रूप से बसने के लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे लोगों के बीच भी संशय पैदा हो गया है। हालात यह हो गए हैं कि इससे बचने के रास्ते तलाशने के लिए आप्रवासन मामलों के वकीलों के पास सलाह लेने वालों का तांता लगने लगा है और इसके साथ ही अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा है। ऐसी अफवाहें भी फैल गई हैं कि जन्म से नागरिकता दिए जाने की व्यवस्था भी ट्रंप सरकार खत्म करने जा रही है जबकि ऐसा कोई सरकारी एजेंडा नहीं है।

ट्रंप और नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने आपराधिक रिकॉर्ड वाले 50 लाख से लेकर 10 लाख तक अवैध आप्रवासियों को गिरफ्तार कर निर्वासित करने की शुरुआत करने की बात कही है। ट्रंप इस मुद्दे को लेकर जितनी मुखरता दिखा रहे हैं, उसके रास्ते में कई कानूनी अड़चनें आने और हिंसक झड़पें होने के आसार हैं। ट्रंप ने अपने सबसे बड़े चुनावी वादे को पूरा करने की अहम जिम्मेदारी टॉम होमन को सौंपी है। उन्हें सीमा सुरक्षा विभाग का मुखिया चुना है। साथ ही यह भी कहा है कि वह बार्डर जार साबित होंगे यानि की एक ऐसी शख्सियत जिन्हें निर्वासन प्रक्रिया के लिए जरूरी सभी अधिकार दिए जाएंगे। इन्हीं होमन और उनके परिवार को पिछले कुछ दिनों में जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब कार्रवाई शुरू होगी तो ऐसे मामले तेजी से बढ़ेंगे।

वहीं, अवैध प्रवासियों का सामूहिक निर्वासन अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। दरअसल, अमेरिका में निर्माण कार्यो और खेती बाड़ी जैसे क्षेत्र तो पूरी तरह से आप्रवासी श्रमिकों पर ही टिके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लोग स्थानीय लोगों की तुलना में कम पैसों में काम करने को राजी हो जाते हैं। ऐसे में कारोबारियों के लिए ये सस्ते में उपलब्ध श्रमिक होते हैं। इनमें से ज्यादातर अवैध रूप से मेक्सिको के रास्ते घुस आए आप्रवासी हैं। कई को दो साल तक के लिए अमेरिका में काम करने का अस्थायी लाइसेंस मिला हुआ है लेकिन जिनकी यह अवधि खत्म हो रही है, वह ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से बेहद चिंतित नजर आ रहे हैं। इससे

ट्रंप को अपना वादा पूरा करने के लिए उनके प्रशासन को आव्रजन अदालत प्रणाली का विशाल विस्तार करना होगा। वह नए न्यायाधीशों की एक बड़ी सेना कैसे जुटाएंगे, यह अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है। बड़े पैमाने पर कार्यस्थल पर छापेमारी सहित गैर-दस्तावेज आप्रवासियों को ढूंढना और उनका पता लगाना, आईसीई एजेंटों का काम होगा। उनकी संख्या, जो अब लगभग 20,000 है, बहुत अधिक बढ़ानी होगी, शायद दोगुनी या तिगुनी। ट्रम्प के कार्यालय संभालने के समय इतने सारे एजेंटों की भर्ती करना उतना ही असंभव है जितना कि आप्रवासन न्यायाधीशों की एक बड़ी सेना को खड़ा करना। ये केवल दो बाधाएं हैं जिन्हें विशेषज्ञ ट्रम्प के नए कार्यकाल की शुरुआत में बड़ी कार्रवाई की संभावना पर संदेह के कारणों के रूप में उद्धृत करते हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?*
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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं। *भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट* भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है। *चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?* चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही। *ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन* अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे। *भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह* शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है। *यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई* इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।
भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

‘तीसरा विश्व युद्ध होगा शुरू': ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से पहले ‘आक्रामक’ नीतियों को आगे बढ़ाने का आरोप

#worldwarthreepredictedtrumpaccusedofagressivepolicies

Donald Trump and Joe Biden

डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर ने बिडेन प्रशासन पर आरोप लगाया है कि वह जनवरी में अपने पिता के व्हाइट हाउस में लौटने से पहले तनाव को बढ़ावा दे रहा है, जो “तीसरा विश्व युद्ध” का कारण बन सकता है। यह दावा राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा यूक्रेनी सेना को रूसी क्षेत्र को निशाना बनाने के लिए अमेरिकी आपूर्ति की गई लंबी दूरी की मिसाइलों का उपयोग करने के लिए अधिकृत करने के बाद किया गया है, एक ऐसा कदम जो अमेरिका और रूस के बीच तनाव को बढ़ा सकता है - ट्रम्प का दावा है कि तनाव को आसानी से संभाला जा सकता है।

रिपोर्ट बताती हैं कि उत्तर कोरिया ने कुर्स्क क्षेत्र में 15,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, जबकि कीव कथित तौर पर रूस के भीतर महत्वपूर्ण लक्ष्यों पर हमला करने के लिए उन्नत मिसाइलों का उपयोग करने की तैयारी कर रहा है।

ट्रम्प जूनियर ने बिडेन की नीतियों और सैन्य-औद्योगिक परिसर की आलोचना की

"सैन्य औद्योगिक परिसर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मेरे पिता को शांति स्थापित करने और लोगों की जान बचाने का मौका मिलने से पहले ही वे तीसरा विश्व युद्ध शुरू कर दें," ट्रम्प जूनियर, 46, ने 18 नवंबर को ट्वीट किया, कुछ ही समय पहले रिपोर्टों ने पुष्टि की थी कि यूक्रेनी सेना को रूस को निशाना बनाने के लिए पूर्वोत्तर सीमा पर सेना की सामरिक मिसाइल प्रणालियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। यह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के महीनों के अनुरोधों के बाद हुआ है, जबकि ट्रम्प ने बिडेन के उत्तराधिकारी बनने के बाद युद्ध को समाप्त करने की कसम खाई थी। जैसा कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने अभियान के दौरान कहा है, वह एकमात्र व्यक्ति हैं जो शांति वार्ता के लिए दोनों पक्षों को एक साथ ला सकते हैं, और युद्ध को समाप्त करने और हत्या को रोकने की दिशा में काम कर सकते हैं," ट्रम्प के प्रवक्ता स्टीवन चेउंग ने पहले NY पोस्ट को बताया था।

तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत?

जवाब में, रूस के फेडरेशन काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य आंद्रेई क्लिशास ने टेलीग्राम के माध्यम से चेतावनी दी कि पश्चिम की ओर से की गई कार्रवाई "सुबह तक" यूक्रेनी राज्य के पूर्ण पतन का कारण बन सकती है, रॉयटर्स के अनुसार।

रूस के ऊपरी सदन अंतर्राष्ट्रीय मामलों की समिति के प्रथम उप प्रमुख व्लादिमीर दज़बारोव ने चेतावनी दी कि मॉस्को की प्रतिक्रिया तेज़ होगी, उन्होंने इस कार्रवाई को "तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की ओर एक बहुत बड़ा कदम" बताया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सितंबर में पहले कहा था कि यूक्रेन को पश्चिम से मिसाइलों के साथ रूसी भूमि पर हमला करने देने से पश्चिम और रूस के बीच सीधी लड़ाई होगी, जिससे पूरे संघर्ष की प्रकृति बदल जाएगी।

बाइडेन के इस फैसले ने ऑनलाइन भी भारी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, जिसमें कई लोगों ने इस कृत्य को "मूर्खतापूर्ण" करार दिया है। "बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। यह रोगात्मक और पूरी तरह से पागलपन है। अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल रूस के अंदरूनी हिस्सों में गोलीबारी करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए! कल्पना कीजिए कि अगर रूस ने अमेरिका में मिसाइलें दागने के लिए आपूर्ति की होती!" MAGA समर्थक चार्ली किर्क ने कहा। "अमेरिकी लोगों ने शांति लाने के लिए ट्रम्प को भारी मतों से वोट दिया, और अब बिडेन हमें तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा रहे हैं," एक अन्य नेटिजन ने टिप्पणी की।

कौन हैं स्टीफन मिलर? ट्रंप कैबिनेट में शामिल ये अधिकारी है 'वीजा हेटर', भारतीयों के लिए ना बन जाए मुसीबत

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अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने वाले डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपने मंत्रीमंडल और सरकार चलाने में मदद करने वाले अधिकारियों का चुनाव कर रहे हैं। इसी बीच, ट्रंप ने राजनीतिक सलाहकार स्टीफन मिलर को अपने नये प्रशासन में नीति मामलों का उप प्रमुख नियुक्त किया है। मिलर को ट्रंप सरकार में इस नई जिम्मेदारी का मिलना हर किसी के लिए हैरान कर देने वाला है क्योंकि वह इमिग्रेशन के मामलों में काफी कट्टरपंथी सोच को बढ़ावा देते हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप का यह फैसला अमेरिका में रहने वाले भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है। बता दें कि मिलर H1B1 वीजा के कड़े आलोचक रहे हैं। 

कौन हैं मिलर?

मिलर ट्रंप के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सहयोगियों में से एक हैं, जो व्हाइट हाउस के लिए उनके पहले चुनाव कैंपेन से ही जुड़े हुए हैं। वे ट्रंप के पहले कार्यकाल में एक वरिष्ठ सलाहकार थे और उनके कई नीतिगत निर्णयों में एक केंद्रीय व्यक्ति रहे हैं, विशेष रूप से आव्रजन पर, जिसमें 2018 में एक निवारक कार्यक्रम के रूप में हजारों अप्रवासी परिवारों को अलग करने का ट्रंप का कदम भी शामिल है।

व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद से, मिलर ने अमेरिका फर्स्ट लीगल के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है, जो कि ट्रम्प के सलाहकारों का एक संगठन है, जिसे अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के रूढ़िवादी संस्करण के रूप में बनाया गया है, जो बाइडेन प्रशासन, मीडिया कंपनियों, विश्वविद्यालयों और अन्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चुनौती देता है।

अप्रवासियों को लेकर ट्रंप प्रशासन का विपरीत रुख

फोर्ब्स के अनुसार, अमेरिका में बहुत से अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और उच्च-कुशल अप्रवासी अमेरिका में आकर पढाई करते हैं और फिर नौकरी करते है। इसका अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अमेरिका की आर्थिक सहमति के बावजूद, ट्रंप प्रशासन ने इसके विपरीत रुख अपनाया हुआ है। H1B1 वीजा पर बैन लगाने के अलावा अधिकारियों ने यूएसए में पढ़ाई करने के लिए इसे कम आकर्षक बनाने के लिए नीतियों का पालन किया है। 

भारतीयों की कैसे बढ़ सकती है परेशानी

बता दें कि H1B1 वीजा अमेरिका में इंटरनेशनल छात्रों समेत हाई स्किल्ड विदेशी नागरिकों को अमेरिका में लंबे समय तक काम करने, नौकरी से जुड़े इमिग्रेशन और अमेरिकी नागरिक बनने का मौका देता है। मिलर के कड़े रूख के कारण कई छात्रों और लोगों को वीजा के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे भारतीयों के लिए अमेरिका में नौकरी के अवसर सीमित हो सकते हैं। वहीं कई लोगों को वीजा में देरी या वीजा रिजेक्शन का सामना भी करना पड़ सकता है।

कौन हैं तुलसी गबार्ड? ट्रंप की टीम में पहली हिंदु महिला, मिली ये अहम जिम्मेदारी*
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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी सरकार के अहम पदों पर नियुक्तियां कर रहे हैं। ट्रम्प ने हिन्दू नेता तुलसी गबार्ड को नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी है। 43 वर्षीय तुलसी गबार्ड, बाइडेन प्रशासन की कट्टर आलोचक और पूर्व डेमोक्रेटिक प्रतिनिधि रही हैं। वे पिछले महीने रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हुई थीं। वह जनवरी में रिपब्लिकन राष्ट्रपति-निर्वाचित ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद इस पद को संभालेंगी। तुलसी गबार्ड (43) अमेरिका की पहली हिन्दू सांसद रही हैं। गबार्ड ने 21 साल की उम्र में हवाई से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। वह 4 बार डेमोक्रेटिक पार्टी से सांसद रहीं। तुलसी पहले बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता थी। उन्होंने पिछले महीने ही रिपब्लिकन पार्टी को ज्वाइन किया है। *एक्स पर पोस्ट से ट्रंप ने दी जानकारी* अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया विभाग का निदेशक नियुक्त किया। ट्रंप ने पोस्ट कर इसकी जानकारी दी। अपने पोस्ट में लिखा, ‘मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि पूर्व कांग्रेस सदस्य लेफ्टिनेंट कर्नल तुलसी गबार्ड नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर (डीएनआई) के रूप में काम करेंगी। 2 दशकों से तुलसी ने हमारे देश और सभी अमेरिकियों की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी है। डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी के लिए नामांकन करने की वजह से, उन्हें दोनों दलों में समर्थन प्राप्त है। वह अब एक प्राउड रिपब्लिकन हैं! मुझे पता है कि तुलसी हमारे खुफिया विभाग में अपने शानदार करियर में निडरता की भावना लाएंगी, हमारे संवैधानिक अधिकारों की वकालत करेगी और ताकत के माध्यम से शांति सुनिश्चित करेगी। तुलसी हम सभी को गौरवान्वित करेगी!’ *कौन है तुलसी?* तुलसी गबार्ड रिपब्लिकन पार्टी ज्वाइन करने से पहले डेमोक्रेटिक नेता रह चुकी हैं। उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी से 2013 से 2021 तक हवाई आईलैंड के दूसरे कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व किया। तुलसी एक दशक पहले लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर इराक युद्ध में लड़ चुकी हैं और अमेरिकी आर्मी रिजर्विस्ट रही हैं। उन्होंने अक्टूबर 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। तुलसी का कहना था कि डेमोक्रेटिक पार्टी कुछ एलीट लोगों के कंट्रोल में आ चुकी है। ये जंग की बातें करते हैं। श्वेत लोगों का विरोध करते हैं और नस्लभेदी ग्रुप में तब्दील हो रहे हैं। उन्होंने इस्लामी चरमपंथ को न रोक पाने के लिए डेमोक्रेटिक सरकार की आलोचना की थी। *हिंदू धर्म को मानती हैं तुलसी गबार्ड* तुलसी गबार्ड का भारत से कोई नाता नहीं हैं, लेकिन उनकी मां ने हिंदू धर्म अपना लिया था, जिसके चलते उन्होंने अपने बच्चों के नाम भी हिंदू धर्म वाले रखे। तुलसी गबार्ड भी हिंदू धर्म को मानती हैं। जब उन्होंने संसद में शपथ ली थी तो भागवत गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी।
ट्रंप की जीत से ख़फ़ा आधी आबादी, न शादी, न डेटिंग, न करेंगी बच्चे, जानें क्या है पूरा मामला?*
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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव जीत चुके हैं। वे अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में जल्द ही पदभार ग्रहण करेंगे। इससे पहले ट्रंप पूरे एक्शन में दिख रहे हैं। उन्होंने अपने कैबिनेट को रूपरेखा देना शुरू भी कर दिया है। हालांकि, ट्रंप की वापसी बहुतों का रास नहीं आ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत कई महिलाओं को रास नहीं आ रहा है। हज़ारों महिलाएं अमेरिका के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन कर रही हैं। वो ट्रंप की जीत के लिए पुरुषों को ‘दोषी’ ठहरा रही हैं। दरअसल, ट्रंप की जीत के बाद अमेरिकी महिलाओं की दक्षिण कोरिया के 4बी आंदोलन में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। बता दें कि 4बी आंदोलन की समर्थक महिलाएं पुरुषों के साथ डेटिंग करने, शादी करने, यौन संबंध बनाने या बच्चे पैदा करने से इनकार करती हैं। ट्रंप की जीत के बाद महिलाओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'अमेरिकी महिलाओं! ऐसा लगता है कि दक्षिण कोरिया के 4B आंदोलन से प्रभावित होने का समय आ गया है।' एक अन्य महिला ने लिखा, 'दक्षिण कोरिया की महिलाएं ऐसा कर रही हैं। अब समय आ गया है कि हम भी उनके साथ जुड़ें। पुरुषों को अब न कोई इनाम नहीं मिलेगा और न उन्हें हमारा शरीर मिलेगा।' अमेरिका के न्यूयॉर्क और सिएटल समेत कई बड़े शहरों में महिलाओं ने ट्रंप की जीत के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि ट्रंप पहले भी प्रजनन अधिकारों के ख़िलाफ़ धमकियां दे चुके हैं। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि वो इस बात से निराश हैं कि युवकों ने ऐसे उम्मीदवार को वोट दिया, जो उनकी शारीरिक स्वायत्तता का सम्मान नहीं करता। चुनाव के दौरान भी डेमोक्रेटिक उम्मीवार कमला हैरिस ने ट्रंप की ‘नारी-विरोधी इमेज’ का ख़ूब ज़िक्र किया था। इस आंदोलन के जरिए महिलाएं ट्रंप की जीत का बदला लेने और विरोध के तौर पर सेक्स न करने, रिश्ते न बनाने, शादी न करने और बच्चे न पैदा करने की कसमें खा रही हैं। हालिया दिनों में 4B मूवमेंट अमेरिका में ट्रेंड कर रहा है। इस आंदोलन में शामिल महिलाओं का कहना है कि ट्रंप महिला विरोधी हैं। वो गर्भपात का संवैधानिक अधिकार खत्म करने के समर्थक हैं। *गर्भपात के अधिकार पर प्रतिबंधों की आशंका* ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान में साल 2022 में रो बनाम वेड को पलटने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए बार-बार खुद को क्रेडिट दिया। इस फैसले ने अमेरिका में गर्भपात के राष्ट्रीय अधिकार को खत्म कर दिया था। अब ट्रंप की जीत के बाद अमेरिकी महिलाओं की दक्षिण कोरिया के 4बी आंदोलन में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। *क्या है 4B आंदोलन?* इस आंदोलन की शुरुआत कोरियाई महिलाओं ने साल 2019 में की थी। यह चार शब्दों के साथ शुरू किया गया था, जिन्हें कोरियाई शब्द Bi को पहले लगाकर बोला जाता है। इसका मतलब होता है नो यानी नहीं। इसीलिए इसे '4 NO' भी कहा जाता है। *क्या हैं चार शब्द?* बिहोन (Bihon)- किसी विपरीतलिंगी यानी पुरुष से शादी नहीं बिकुलसन (Bichilsan- कोई बच्चा नहीं बियोनाए (Biyeonae)- पुरुषों के साथ डेटिंग भी नहीं बिसेकसेउ (Bisekseu)- विपरीतलिंग यानी पुरुषों के साथ यौन संबंध नहीं