No Student Union Elections for Five Years at TMBU, Leaving Students Without Leadership

No Student Union Elections for Five Years at TMBU, Leaving Students Without Leadership

Correspondent, Bhagalpur, Bihar

Students at Tilka Manjhi Bhagalpur University (TMBU) are facing numerous challenges. However, the university remains unaware of these issues because there is no representative to voice the students' concerns. The primary reason for this is that no student union elections have been held for the past five years.

TMBU student Hrishikesh Prakash stated that the absence of student union elections over the last five years has left students without proper representation. This situation has arisen due to internal conflicts among university officials. Although various student organizations continuously demand elections, no concrete steps have been taken in this regard.

It is noteworthy that student union elections were held in 2018 and 2019 during the tenure of former DSW Professor Yogendra. The student union plays a crucial role in university governance, as its members are also included in bodies like the Senate, Syndicate, and Academic Council. This ensures that students' concerns are effectively raised in important university meetings, ultimately benefiting them.

Students will now have elected representatives only in the upcoming academic session. Only after that will they have representation in the Senate and Syndicate.

Bhagalpur University student Hrishikesh Prakash has met with the university administration, urging them to conduct elections at the earliest to resolve students' issues as soon as

possible.

कांग्रेस के गढ़ में खिला कमलःतेलंगाना एमएलसी चुनावों में भाजपा ने मारी बाजी, 3 में से दो सीटों पर जीत दर्ज

#telangana_mlc_election_bjp

भारतीय जनता पार्टी दक्षिण भारत के राज्यों में बी अपने जड़े जमाने की कोशिश में लगी है। भाजपा की इस र सफलता मिलती भी दिख रही है। बीजेपी ने दक्षिण के उस राज्य में सफलता हासिल की है, जहां सत्ता में कांग्रेस है। बीजेपी ने तेलंगाना विधानसभा परिषद के चुनाव में अप्रत्‍याशित सफलता हासिल की है। उसने तीन सीटों पर हुए चुनावों में दो पर कामयाबी हासिल की।तीन एमएलसी सीट में से दो पर जीत कांग्रेस शासित राज्य में भाजपा के लिए एक नैतिक बढ़त के रूप में सामने आई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना विधान परिषद चुनाव में बीजेपी की जीत पर बधाई दी। पीएम मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'एमएलसी चुनावों में तेलंगाना भाजपा को इस तरह के अभूतपूर्व समर्थन के लिए मैं तेलंगाना के लोगों को धन्यवाद देता हूं। हमारे नवनिर्वाचित उम्मीदवारों को बधाई।' उन्होंने कहा कि मुझे हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर बहुत गर्व है, जो लोगों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

इससे पहले तेलंगाना विधान परिषद के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा समर्थित उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। एक अन्य शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ था। भाजपा समर्थित मलका कोमरैया ने मेडक-निजामाबाद-आदिलाबाद-करीमनगर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज की और निर्दलीय उम्मीदवार श्रीपाल रेड्डी पिंगिली ने वारंगल-खम्मम-नलगोंडा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी।

एक अन्य पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी ने आंध्र प्रदेश में स्नातक एमएलसी चुनावों में एनडीए उम्मीदवारों की जीत की सराहना की। प्रधानमंत्री ने चुनावों में एनडीए उम्मीदवारों की जीत पर मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की ओर से किए गए एक पोस्ट का जवाब देते हुए कहा, 'विजेता उम्मीदवारों को बधाई। केंद्र और आंध्र प्रदेश में एनडीए सरकारें राज्य के लोगों की सेवा करती रहेंगी और राज्य की विकास यात्रा को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगी।'

केन्द्र सरकार ने दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए बैन लगना चाहिए। इस मामले पर अब केंद्र सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया है। केन्द्र सरकार ने दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग का विरोध किया है। केंद्र ने कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा।

*अयोग्यता तय करना संसद के अधिकार क्षेत्र में- केंद्र*
केंद्र सरकार ने दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सजा को कठोर कहा है। साथ ही अनुरोध करने वाली एक याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह की अयोग्यता तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी उच्चतम न्यायालय की शक्तियों से पूरी तरह से परे है।

*6 साल की अयोग्यता ही काफी-केंद्र*
केंद्र ने कहा,वर्तमान में 6 वर्षों की अयोग्यता अवधि से बढ़कर आजीवन प्रतिबंध लगाना अनुचित कठोरता होगी और यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। केंद्र ने कहा कि न्यायपालिका संसद को किसी कानून में संशोधन करने या उसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। केंद्र ने मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि कोर्ट संसद को कानून बनाने या संशोधन का निर्देश नहीं दे सकती।

*क्या है मामला?*
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं को 6 साल के लिए अयोग्यता को अपर्याप्त बताते हुए राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए दोषी विधायकों और सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनिम, 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
मौजूदा कानून के तहत आपराधिक मामलों में 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजा की अवधि पूरी होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने पर ही रोक है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और अलग-अलग अदालतों में उनके खिलाफ लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने की मांग की है।
केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता साफ! सांसद संजीव अरोड़ा को बनाया गया विधानसभा उपचुनाव का उम्मीदवार
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आम आदमी पार्टी की दिल्ली दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई है। आप के साथ राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की भी करारी हार हुई। अब मीडिया के गलियारों में केजरीवाल के सियासी सफर पर अटकलें जारी है। अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा जानें की अटकलें लगाई जा रही है। इस बीच आप ने संजीव अरोड़ा को लुधियाना वेस्ट का प्रत्याशी बनाया है। अब कहा जा रहा है कि संजीव अरोड़ा की खाली सीट से केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे। हालांकि आम आदमी पार्टी ने इसका खंडन किया है।

संजीव अरोड़ा साल 2022 में राज्यसभा सांसद बने थे। अभी उनका करीब तीन साल का कार्यकाल बाकी है। इससे पहले दिल्ली की हार से उबरने के लिए आम आदमी पार्टी ने पंजाब में बड़ा दांव चला है। पार्टी ने लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को टिकट दिया है।

हालांकि अभी तक निर्वाचन आयोग ने चुनाव का ऐलान नहीं किया है, लेकिन पहले ही आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में आम आदमी पार्टी के इस ऐलान के कई मतलब निकाले जा रहे हैंष इस सीट पर अब तक किसी अन्य राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है।

संजीव अरोड़ा के नाम ऐलान से पहले ही ऐसा कहा जा रहा था कि आप संयोजक अरविंद केजरीवाल अरोड़ा की सीट से राज्यसभा जा सकते हैं। हालांकि पार्टी ने इन अटकलों को खारिज किया है। आप की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि केजरीवाल राज्यसभा नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक केजरीवाल का मसला है तो मीडिया में यह भी कहा गया कि वह पंजाब के सीएम बनेंगे। अब मीडिया ही कह रहा है कि वह राज्यसभा का चुनाव लड़ेंगे। ये दोनों गलत हैं। अरविंद केजरीवाल आप के राष्ट्रीय संयोजक हैं। मैं जानती हूं कि उनकी हर जगह मांग है लेकिन वह किसी एक सीट तक सीमित नहीं हैं।

*केजरीवाल के लिए राह हुई आसान*
बता दें कि सुनील अरोड़ा द्वारा विधायक का चुनाव लड़े जाने पर उनकी राज्यसभा वाली सीट खाली हो जाएगी। उसके बाद बड़े आराम से अरविंद केजरीवाल को उस सीट पर राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया जाएगा। यह अपने आप में एक पूरी तरह से बिना खतरे वाला सौदा होगा। क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी का बहुमत है ऐसे में अरविंद केजरीवाल बड़े आराम से राज्यसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंच जाएंगे।

*कांग्रेस का दावा होगा सच!*
पंजाब कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केजरीवाल पंजाब के रास्ते राज्यसभा में जाना चाहते हैं। बाजवा ने दावा किया, केजरीवाल पंजाब के माध्यम से सत्ता में प्रवेश करना चाहते हैं, और कुछ राज्यसभा सदस्यों को उनके लिए त्याग करना होगा।
ज्ञानेश कुमार होंगे देश के अगले मुख्य निर्वाचन आयुक्त, नए कानून के तहत नियुक्त होने वाले पहले सीईसी

#gyanesh_kumar_who_will_become_the_new_chief_election_commissioner

ज्ञानेश कुमार को देश का नया मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया है। पिछले साल मार्च में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किए गए ज्ञानेश कुमार भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बने है। वो राजीव कुमार की जगह लेंगे। राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। 19 फरवरी को ज्ञानेश कुमार सीईसी का पद संभालेंगे।

सोमवार रात कानून मंत्रालय ने नोटिस जारी करते हुए नए चुनाव आयुक्त के नाम की घोषणा की। जारी अधिसूचना में कहा गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम-2023 के खंड 4 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया है। वहीं, ज्ञानेश कुमार की जगह डॉ. विवेक जोशी अब चुनाव आयुक्त होंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में तीन सदस्यीय चयन समिति की बैठक हुई। यह बैठक साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में आयोजित की गई। चयन समिति की बैठक में पीएम मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए।

केरल कैडर के 1988 बैच के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार तीन सदस्यीय पैनल के दो आयुक्तों में से वरिष्ठ हैं, जिसका नेतृत्व राजीव कुमार ने किया था। पैनल के दूसरे आयुक्त उत्तराखंड कैडर के अधिकारी सुखबीर सिंह संधू हैं।पिछले साल मार्च से वो चुनाव आयुक्त के पद पर हैं।वे पहले सहकारिता मंत्रालय के सचिव थे और 31 जनवरी 2024 को रिटायर हुए। 

आईएलटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक पूरा करने के बाद ज्ञानेश कुमार ने आईसीएएफएल, भारत से बिजनेस फाइनेंस और हार्वर्ड विश्वविद्यालय, यूएसए से पर्यावरण अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है। उन्होंने केरल सरकार में एर्नाकुलम के सहायक कलेक्टर, अदूर के सब कलेक्टर, एससी/एसटी के लिए केरल राज्य विकास निगम के एमडी, कोचीन निगम के नगर आयुक्त, केरल राज्य सहकारी बैंक के एमडी, उद्योग और वाणिज्य के निदेशक, एर्नाकुलम के जिला कलेक्टर, गोश्री द्वीप विकास प्राधिकरण के सचिव, त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के एमडी, केरल राज्य परिवहन परियोजना के परियोजना निदेशक और नई दिल्ली में केरल हाउस के रेजिडेंट कमिश्नर के रूप में काम किया है।

भारत के चुनावों में अमेरिका ने दी दखल? मस्क ने रोकी फंडिंग, आरोप-प्रत्यारो शुरू

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देश में वोटिंग बढ़ाने के लिए अमेरिका से फंडिंग के मुद्दे पर विवाद पैदा हो गया। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सहयोगी इलॉन मस्क ने भारत के चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए दी जाने वाली 182 करोड़ रुपए की फंडिंग रद्द कर दी है। मस्क के नेतृत्व वाले डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) ने शनिवार को ये फैसला लिया।

एलन मस्क के नेतृत्व वाला सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) लगातार यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) यानी यूएसएड की पोल खोलने में जुटा है। सरकारी खर्च में कटौती में जुटे ट्रंप प्रशासन के निशाने पर यूएसएड है। दक्षता विभाग ने हाल ही में भारत समेत दुनियाभर के कई देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता रोक दी है।

डीओजीई ने एक लिस्ट जारी की है। इसमें डिपार्टमेंट की तरफ से 15 तरह के प्रोग्राम्स की फंडिंग रद्द की गई है। इसमें एक प्रोग्राम दुनियाभर में चुनाव प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए भी है, जिसका फंड 4200 करोड़ रुपए है। इस फंड में भारत की हिस्सेदारी 182 करोड़ रुपए की है। दरअसल, अमेरिका भारतीय के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने की खातिर फंडिंग कर रहा था। अब सवाल यह उठ रहा है कि अमेरिका यह धन किसे देता था?

बीजेपी ने चुनाव में फंडिंग पर सवाल उठाए

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया है कि इस फंड का इस्तेमाल भारतीय चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया गया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी और अमेरिकी बिजनेसमेन जॉर्ज सोरोस पर भारत में चुनाव प्रक्रिया में दखल देने का आरोप लगाया है। उन्होंने एक्स पोस्ट में कहा- 21 मिलियन डॉलर (182 करोड़ रुपए) वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए? यह साफ तौर पर देश की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी दखल है। इस फंड से किसे फायदा होगा। जाहिर है इससे सत्ताधारी (बीजेपी) पार्टी को तो फायदा नहीं होगा। एक दूसरे पोस्ट में अमित मालवीय ने कांग्रेस पार्टी और जॉर्ज सोरोस पर भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप का आरोप लगाया। मालवीय ने सोरोस को गांधी परिवार का जाना-माना सहयोगी बताया।

मालवीय ने एक्स पर लिखा कि 2012 में एसवाई कुरैशी के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक एमओयू साइन किया था। ये संस्था जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा है। इसे मुख्य तौर पर यूएसएआईडी से आर्थिक मदद मिलती है।

कुरैशी फंडिंग किए जाने के आरोप को बताया निराधार

इधर, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रह चुके एसवाई कुरैशी ने कहा है कि उनके समय देश में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी एजेंसी की तरफ से फंडिंग किए जाने के आरोप पूरी तरह निराधार है। कुरैशी ने कहा कि, देश के एक मीडिया तबके में जो ये बात कही जा रही है कि जब मैं देश का मुख्य चुनाव आयुक्त था, तब 2012 में भारतीय चुनाव आयोग और अमेरिकी एजेंसी के बीच वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए किसी तरह का कोई फंडिंग से संबंधित करार हुआ, इस बारे में तनिक भी सच्चाई नहीं है। कुरैशी ने कहा कि वास्तव में 2012 में जब मैं सीईसी था, तब इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक समझौता हुआ था। इसका मकसद दूसरे देशों की चुनावी एजेंसियों और प्रबंधन निकायों को प्रशिक्षण देना था। इस समझौते में किसी भी तरह की फंडिंग का कोई वादा शामिल नहीं था। राशि तो भूल ही जाइए।

बता दें कि एस वाई कुरैशी 30 जुलाई, 2010 से 10 जून, 2012 तक भारतीय चुनाव आयोग के मुखिया रहे थे।

नए मुख्य चुनाव आयुक्त के नियुक्ति के लिए 17 फरवरी को बैठक, पीएम मोदी-राहुल गांधी करेंगे चयन पर मंथन

#whowillbenextchiefelectioncommissioner

मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले नए सीईसी के सिलेक्शन को लेकर 17 फरवरी को बैठक बुलाई गई है। मीटिंग में पीएम मोदी, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अलावा नेता विपक्ष राहुल गांधी भी शामिल होंगे। कमेटी की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति अगले सीईसी की नियुक्ति करेंगी।

अब तक सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त (ईसी) को सीईसी के रूप में प्रमोट किया जाता रहा है। राजीव कुमार के बाद ज्ञानेश कुमार सबसे सीनियर ईसी हैं। उनका कार्यकाल 26 जनवरी, 2029 तक है। ऐसे में एक नया सीईसी भी नियुक्त किया जा सकता है। सुखबीर सिंह संधू दूसरे सीईसी हैं।

17 फरवरी को पैनल कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली सर्च कमेटी द्वारा तैयार की गई पांच नामों की सूची में से एक नाम का चयन करेगा। सूत्रों के मुताबिक, सिलेक्शन कमिटी में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पीएम की ओर से नामित एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। बैठक में सर्च कमिटी की ओर से शॉर्टलिस्ट नाम रखे जाएंगे। सिलेक्शन कमिटी एक नाम फाइनल करके उसकी सिफारिश करेगी। कमिटी की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे।

नए कानून के आधार पर पहली बार नियुक्ति

यह पहली बार होगा जब किसी मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन नए कानून - मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023 के प्रावधानों के तहत किया जाएगा। इससे पहले, चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों (सीईसी) की नियुक्ति सरकार की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। यह कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्च 2023 में दिए गए अपने फैसले के बाद लागू हुआ था, जिसमें उसने एक चयन समिति के गठन का आदेश दिया था और कहा था कि इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होने चाहिए। अदालत ने कहा था कि यह आदेश तब तक लागू रहेगा जब तक संसद द्वारा कानून नहीं बना दिया जाता। हालाँकि, जब कानून पारित हुआ, तो केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर एक केंद्रीय मंत्री को पैनल के तीसरे सदस्य के रूप में नियुक्त कर दिया, जिससे सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका मिल गई।

सुप्रीम कोर्ट में 19 फरवरी को सुनवाई

कानून के पारित होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाए गए नए कानून को चुनौती दी गई है। 2023 के कानून के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया गया था। नए कानून के तहत नियुक्ति करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और एक केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। याची ने कहा कि 2023 के कानून ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सीजेआई को हटा दिया और प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और एक केंद्रीय मंत्री की समिति को इसका अधिकार दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सके।

राजीव कुमार इन चुनावों को सफलतापूर्वक किया नेतृत्व

राजीव कुमार को मई 2022 में मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। उनके नेतृत्व में चुनाव आयोग ने 2024 में लोकसभा चुनाव को सफलतापूर्वक कराया। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में एक दशक से अधिक समय बाद शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा चुनाव भी उनके नेतृत्व में हुए। लोकसभा चुनाव के बाद इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराए गए। साल 2023 में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की देखरेख में कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव कराए गए थे।

आज हुए लोकसभा चुनाव तो किसकी बनेगी सरकार, जानें किसको मिलेंगी कितनी सीटें?

#indiatodaysurveybjpwinsifelectionsheldtoday 

हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं। दिल्ली में 27 साल के बाद बीजेपी ने सत्ता में वापसी की है। इस साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद बीजेपी अब तक 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव जीत चुकी है। जिसमें हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली शामिल है। इस बीच इंडिया टुडे और सी-वीटर ने लोकसभा की 543 सीटों पर सर्वे किया है। सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। अगर आज लोकसभा चुनाव होते तो एनडीए एक बार फिर 300 पार कर जाएगा।

इंडिया टुडे-सी वोटर ने एक ओपिनियन पोल किया है। नाम दिया है मूड ऑफ द नेशन। इस सर्वे के जरिए उसने देश की जनता के मूड को जानने की कोशिश की है। इस सर्वे के मुताबिक, मोदी सरकार पर अब भी जनता को भरोसा है। सर्वे के नतीजे भाजपा के पक्ष में आए हैं।

सर्वे के मुताबिक आज लोकसभा चुनाव होते हैं तो बीजेपी को 281 सीटें मिल सकती हैं। यानी भगवा पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है।वहीं कांग्रेस को 78 सीटें मिल सकती हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं, जो अब घटती दिख रही हैं। अन्य के खाते में 184 सीटें आ सकती हैं। वहीं, पूरे एनडीए की बात करें तो एनडीए 343 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन कर सकती है। पोल बताता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया गठबंधन अगर आज चुनाव होते हैं तो 188 सीटों पर सिमट जाएगा।2024 के लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 232 सीटें जीती थीं।

नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर पहली पसंद

सर्वे में कुल 1 लाख 25 हजार 123 लोगों की राय ली गई है। सर्वे में लोगों से प्रधानमंत्री की पसंद को लेकर सवाल पूछा गया, तो 51.2 प्रतिशत लोग नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। वहीं 24.9 प्रतिशत लोग राहुल गांधी को पीएम के तौर पसंद करते हैं। ममता बनर्जी को 4.8 प्रतिशत, अमित शाह को 2.1 प्रतिशत और अरविंद केजरीवाल को 1.2 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं।

बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट

वहीं बात करें वोट शेयर की तो एनडीए को 46.9 प्रतिशत वोट मिल सकता है। जबकि इंडिया ब्लॉक को 40.6 प्रतिशत और अन्य को 12.5 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान जताया गया है। बीजेपी को व्यक्तिगत तौर पर 41 प्रतिशत वोट मिल सकता है जबकि कांग्रेस को 20 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है। हालांकि, इंडिया गठबंधन के वोट शेयर में सिर्फ 1% की बढ़ोतरी का अनुमान है।

शिवसेना ने सामना के संपादकीय में फिर कांग्रेस पर निशाना साधा, दिल्ली में “आप” की हार का फोड़ा ठीकरा
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत और आम आदमी पार्टी की हार के बाद इंडिया गठबंधन के नेता नतीजों को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। कुछ नेताओं ने आम आदमी पार्टी की हार का कारण कांग्रेस और 'आप' का अलग-अलग चुनाव लड़ना बताया है। इसकी शुरुआत शनिवार को मतगणना के शुरुआती रुझानों के साथ हुई। जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने तंज कसते हुए एक्स पर एक पोस्ट किया। इसके बाद इंडिया गंठबंधन के कई और नेताओं ने एक के बाद एक बयान दिए। इन नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ बीजेपी के ख़िलाफ लड़ती तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। अब दिल्ली में हुई आम आदमी पार्टी की हार पर अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दरार का फायदा बीजेपी ने उठाया है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार की हार के बाद शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कांग्रेस पर जमकर हमला बोल गया है। संपादकीय में लिखा कि कांग्रेस हमेशा की तरह दिल्ली में कद्दू भी नहीं फोड़ पाई। संपादकीय में कांग्रेस से पूछा गया कि क्या कांग्रेस पार्टी में कोई छिपी हुई ताकतें हैं, जो हमेशा राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं? अगर कांग्रेस नेता यह कह रहे हैं कि आप को जिताना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं है तो यह गलती है और एक तरह का अहंकार है तो क्या मोदी-शाह की तानाशाही को जिताने की जिम्मेदारी आपस में लड़ने वालों की है?

'सामना' के संपादकीय में लिखा गया, दिल्ली में आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे का नुकसान करने के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री के लिए चीजें आसान हो गईं। अगर यह जारी रहा तो गठबंधन क्यों करें? बस अपने दिल की इच्छा के अनुसार लड़ो! बता दें कि दिल्ली चुनाव के प्रचार के दौरान आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर कई हमले किए थे।

'सामना' के संपादकीय में दावा किया गया कि यदि विपक्षी दल दिल्ली चुनाव परिणामों से सीख लेने में विफल रहे, तो इससे मोदी और शाह के अधीन निरंकुश शासन को ही मजबूती मिलेगी। ‘सामना’ में लिखा कि उमर अब्दुल्ला की तरफ से व्यक्त किया गया गुस्सा व्यावहारिक है। वह ठीक ही कहते हैं कि आपस में जी भर के लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो। कांग्रेस को आप की हार का कारण बताते हुए कहा गया है कि दिल्ली 14 सीटों पर आप की हार में कांग्रेस का हाथ रहा है। हरियाणा में भी यही हुआ था। सामना में पू्छा गया कि आप से लड़ने के बाद आखिर कांग्रेस के हाथ क्या लगा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की राजनीतिक विफलता: एक विश्लेषण

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन खो दी, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी स्थिति मजबूत की। कांग्रेस, जो दिल्ली में एक समय प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी, अब अपनी पहचान बनाने में नाकाम रही। इस लेख में हम कांग्रेस की विफलता के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे और इसे भारतीय राजनीति के संदर्भ में समझेंगे।

1. नेतृत्व संकट और रणनीति की कमी

कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेतृत्व का संकट था। अरविंद सिंह लवली जैसे नेताओं के बावजूद, कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट और प्रभावशाली नेतृत्व नहीं था। AAP के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से गहरे स्तर पर जुड़कर प्रभावी नेतृत्व का उदाहरण पेश किया, जबकि कांग्रेस इससे पूरी तरह से चूक गई। पार्टी के भीतर कई आंतरिक मतभेद थे, जिससे न केवल एकजुटता की कमी महसूस हुई, बल्कि सही रणनीति भी लागू नहीं हो पाई।

2. स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देना

दिल्ली में मुद्दे स्थानीय स्तर पर अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे एयर पॉल्यूशन, जल संकट, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाएं। AAP ने इन मुद्दों को प्रमुखता दी और उन्हें चुनावी प्रचार का केंद्र बनाया। वहीं, कांग्रेस का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित था, जैसे बीजेपी की नीतियों की आलोचना, जो दिल्ली के स्थानीय समस्याओं से मेल नहीं खाती थी। परिणामस्वरूप, कांग्रेस दिल्ली के मतदाताओं के साथ सही तरीके से जुड़ने में नाकाम रही।

3. आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी

कांग्रेस पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी ने पार्टी की चुनावी ताकत को कमजोर कर दिया। पार्टी में कई बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ, और विभिन्न गुटों के बीच की लड़ाई ने कांग्रेस के प्रचार अभियान को प्रभावित किया। कांग्रेस का संगठन कमजोर था, जिससे पार्टी को अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत करने में कठिनाई हुई। यह कमजोरी पार्टी के दिल्ली चुनाव परिणामों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालने वाली थी।

4. AAP और BJP का मजबूत प्रभाव

AAP और BJP दोनों ने 2025 के दिल्ली चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूती से स्थापित किया। AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं को लेकर अपने वादों को महत्व दिया, जो दिल्ली के मतदाताओं के लिए आकर्षक थे। वहीं, बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय मुद्दों को दिल्ली के चुनावी मैदान में प्रभावी ढंग से रखा। कांग्रेस इन दोनों पार्टी के मुकाबले कहीं पीछे रह गई, क्योंकि पार्टी न तो स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दे पाई, और न ही प्रभावी प्रचार अभियान चला पाई।

5. कांग्रेस को पुनः समीक्षा और सुधार की आवश्यकता

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की विफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी को अपनी रणनीतियों और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है। कांग्रेस को एक स्पष्ट और प्रभावी नेतृत्व तैयार करना होगा, जो दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। इसके साथ ही, पार्टी को आंतरिक मतभेदों को समाप्त करके एकजुट होना होगा। यदि कांग्रेस इन बदलावों को स्वीकार कर सकती है, तो वह भविष्य में दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को फिर से पा सकती है। 

इस चुनाव ने यह भी दिखाया कि कांग्रेस को अपनी छवि और कार्यशैली को नए तरीके से प्रस्तुत करना होगा, ताकि वह दिल्ली के मतदाताओं के बीच फिर से विश्वास पैदा कर सके।

No Student Union Elections for Five Years at TMBU, Leaving Students Without Leadership

No Student Union Elections for Five Years at TMBU, Leaving Students Without Leadership

Correspondent, Bhagalpur, Bihar

Students at Tilka Manjhi Bhagalpur University (TMBU) are facing numerous challenges. However, the university remains unaware of these issues because there is no representative to voice the students' concerns. The primary reason for this is that no student union elections have been held for the past five years.

TMBU student Hrishikesh Prakash stated that the absence of student union elections over the last five years has left students without proper representation. This situation has arisen due to internal conflicts among university officials. Although various student organizations continuously demand elections, no concrete steps have been taken in this regard.

It is noteworthy that student union elections were held in 2018 and 2019 during the tenure of former DSW Professor Yogendra. The student union plays a crucial role in university governance, as its members are also included in bodies like the Senate, Syndicate, and Academic Council. This ensures that students' concerns are effectively raised in important university meetings, ultimately benefiting them.

Students will now have elected representatives only in the upcoming academic session. Only after that will they have representation in the Senate and Syndicate.

Bhagalpur University student Hrishikesh Prakash has met with the university administration, urging them to conduct elections at the earliest to resolve students' issues as soon as

possible.

कांग्रेस के गढ़ में खिला कमलःतेलंगाना एमएलसी चुनावों में भाजपा ने मारी बाजी, 3 में से दो सीटों पर जीत दर्ज

#telangana_mlc_election_bjp

भारतीय जनता पार्टी दक्षिण भारत के राज्यों में बी अपने जड़े जमाने की कोशिश में लगी है। भाजपा की इस र सफलता मिलती भी दिख रही है। बीजेपी ने दक्षिण के उस राज्य में सफलता हासिल की है, जहां सत्ता में कांग्रेस है। बीजेपी ने तेलंगाना विधानसभा परिषद के चुनाव में अप्रत्‍याशित सफलता हासिल की है। उसने तीन सीटों पर हुए चुनावों में दो पर कामयाबी हासिल की।तीन एमएलसी सीट में से दो पर जीत कांग्रेस शासित राज्य में भाजपा के लिए एक नैतिक बढ़त के रूप में सामने आई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना विधान परिषद चुनाव में बीजेपी की जीत पर बधाई दी। पीएम मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'एमएलसी चुनावों में तेलंगाना भाजपा को इस तरह के अभूतपूर्व समर्थन के लिए मैं तेलंगाना के लोगों को धन्यवाद देता हूं। हमारे नवनिर्वाचित उम्मीदवारों को बधाई।' उन्होंने कहा कि मुझे हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर बहुत गर्व है, जो लोगों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

इससे पहले तेलंगाना विधान परिषद के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा समर्थित उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। एक अन्य शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ था। भाजपा समर्थित मलका कोमरैया ने मेडक-निजामाबाद-आदिलाबाद-करीमनगर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज की और निर्दलीय उम्मीदवार श्रीपाल रेड्डी पिंगिली ने वारंगल-खम्मम-नलगोंडा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी।

एक अन्य पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी ने आंध्र प्रदेश में स्नातक एमएलसी चुनावों में एनडीए उम्मीदवारों की जीत की सराहना की। प्रधानमंत्री ने चुनावों में एनडीए उम्मीदवारों की जीत पर मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की ओर से किए गए एक पोस्ट का जवाब देते हुए कहा, 'विजेता उम्मीदवारों को बधाई। केंद्र और आंध्र प्रदेश में एनडीए सरकारें राज्य के लोगों की सेवा करती रहेंगी और राज्य की विकास यात्रा को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगी।'

केन्द्र सरकार ने दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
#no_lifetime_ban_on_contesting_elections_central_govt_affidavit_in_sc


सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए बैन लगना चाहिए। इस मामले पर अब केंद्र सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया है। केन्द्र सरकार ने दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग का विरोध किया है। केंद्र ने कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा।

*अयोग्यता तय करना संसद के अधिकार क्षेत्र में- केंद्र*
केंद्र सरकार ने दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सजा को कठोर कहा है। साथ ही अनुरोध करने वाली एक याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह की अयोग्यता तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी उच्चतम न्यायालय की शक्तियों से पूरी तरह से परे है।

*6 साल की अयोग्यता ही काफी-केंद्र*
केंद्र ने कहा,वर्तमान में 6 वर्षों की अयोग्यता अवधि से बढ़कर आजीवन प्रतिबंध लगाना अनुचित कठोरता होगी और यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। केंद्र ने कहा कि न्यायपालिका संसद को किसी कानून में संशोधन करने या उसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। केंद्र ने मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि कोर्ट संसद को कानून बनाने या संशोधन का निर्देश नहीं दे सकती।

*क्या है मामला?*
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं को 6 साल के लिए अयोग्यता को अपर्याप्त बताते हुए राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए दोषी विधायकों और सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनिम, 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
मौजूदा कानून के तहत आपराधिक मामलों में 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजा की अवधि पूरी होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने पर ही रोक है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और अलग-अलग अदालतों में उनके खिलाफ लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने की मांग की है।
केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता साफ! सांसद संजीव अरोड़ा को बनाया गया विधानसभा उपचुनाव का उम्मीदवार
#ludhiana_west_by_election_aap_made_sanjeev_arora_candidate


आम आदमी पार्टी की दिल्ली दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई है। आप के साथ राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की भी करारी हार हुई। अब मीडिया के गलियारों में केजरीवाल के सियासी सफर पर अटकलें जारी है। अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा जानें की अटकलें लगाई जा रही है। इस बीच आप ने संजीव अरोड़ा को लुधियाना वेस्ट का प्रत्याशी बनाया है। अब कहा जा रहा है कि संजीव अरोड़ा की खाली सीट से केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे। हालांकि आम आदमी पार्टी ने इसका खंडन किया है।

संजीव अरोड़ा साल 2022 में राज्यसभा सांसद बने थे। अभी उनका करीब तीन साल का कार्यकाल बाकी है। इससे पहले दिल्ली की हार से उबरने के लिए आम आदमी पार्टी ने पंजाब में बड़ा दांव चला है। पार्टी ने लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को टिकट दिया है।

हालांकि अभी तक निर्वाचन आयोग ने चुनाव का ऐलान नहीं किया है, लेकिन पहले ही आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में आम आदमी पार्टी के इस ऐलान के कई मतलब निकाले जा रहे हैंष इस सीट पर अब तक किसी अन्य राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है।

संजीव अरोड़ा के नाम ऐलान से पहले ही ऐसा कहा जा रहा था कि आप संयोजक अरविंद केजरीवाल अरोड़ा की सीट से राज्यसभा जा सकते हैं। हालांकि पार्टी ने इन अटकलों को खारिज किया है। आप की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि केजरीवाल राज्यसभा नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक केजरीवाल का मसला है तो मीडिया में यह भी कहा गया कि वह पंजाब के सीएम बनेंगे। अब मीडिया ही कह रहा है कि वह राज्यसभा का चुनाव लड़ेंगे। ये दोनों गलत हैं। अरविंद केजरीवाल आप के राष्ट्रीय संयोजक हैं। मैं जानती हूं कि उनकी हर जगह मांग है लेकिन वह किसी एक सीट तक सीमित नहीं हैं।

*केजरीवाल के लिए राह हुई आसान*
बता दें कि सुनील अरोड़ा द्वारा विधायक का चुनाव लड़े जाने पर उनकी राज्यसभा वाली सीट खाली हो जाएगी। उसके बाद बड़े आराम से अरविंद केजरीवाल को उस सीट पर राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया जाएगा। यह अपने आप में एक पूरी तरह से बिना खतरे वाला सौदा होगा। क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी का बहुमत है ऐसे में अरविंद केजरीवाल बड़े आराम से राज्यसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंच जाएंगे।

*कांग्रेस का दावा होगा सच!*
पंजाब कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केजरीवाल पंजाब के रास्ते राज्यसभा में जाना चाहते हैं। बाजवा ने दावा किया, केजरीवाल पंजाब के माध्यम से सत्ता में प्रवेश करना चाहते हैं, और कुछ राज्यसभा सदस्यों को उनके लिए त्याग करना होगा।
ज्ञानेश कुमार होंगे देश के अगले मुख्य निर्वाचन आयुक्त, नए कानून के तहत नियुक्त होने वाले पहले सीईसी

#gyanesh_kumar_who_will_become_the_new_chief_election_commissioner

ज्ञानेश कुमार को देश का नया मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया है। पिछले साल मार्च में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किए गए ज्ञानेश कुमार भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बने है। वो राजीव कुमार की जगह लेंगे। राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। 19 फरवरी को ज्ञानेश कुमार सीईसी का पद संभालेंगे।

सोमवार रात कानून मंत्रालय ने नोटिस जारी करते हुए नए चुनाव आयुक्त के नाम की घोषणा की। जारी अधिसूचना में कहा गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम-2023 के खंड 4 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया है। वहीं, ज्ञानेश कुमार की जगह डॉ. विवेक जोशी अब चुनाव आयुक्त होंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में तीन सदस्यीय चयन समिति की बैठक हुई। यह बैठक साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में आयोजित की गई। चयन समिति की बैठक में पीएम मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए।

केरल कैडर के 1988 बैच के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार तीन सदस्यीय पैनल के दो आयुक्तों में से वरिष्ठ हैं, जिसका नेतृत्व राजीव कुमार ने किया था। पैनल के दूसरे आयुक्त उत्तराखंड कैडर के अधिकारी सुखबीर सिंह संधू हैं।पिछले साल मार्च से वो चुनाव आयुक्त के पद पर हैं।वे पहले सहकारिता मंत्रालय के सचिव थे और 31 जनवरी 2024 को रिटायर हुए। 

आईएलटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक पूरा करने के बाद ज्ञानेश कुमार ने आईसीएएफएल, भारत से बिजनेस फाइनेंस और हार्वर्ड विश्वविद्यालय, यूएसए से पर्यावरण अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है। उन्होंने केरल सरकार में एर्नाकुलम के सहायक कलेक्टर, अदूर के सब कलेक्टर, एससी/एसटी के लिए केरल राज्य विकास निगम के एमडी, कोचीन निगम के नगर आयुक्त, केरल राज्य सहकारी बैंक के एमडी, उद्योग और वाणिज्य के निदेशक, एर्नाकुलम के जिला कलेक्टर, गोश्री द्वीप विकास प्राधिकरण के सचिव, त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के एमडी, केरल राज्य परिवहन परियोजना के परियोजना निदेशक और नई दिल्ली में केरल हाउस के रेजिडेंट कमिश्नर के रूप में काम किया है।

भारत के चुनावों में अमेरिका ने दी दखल? मस्क ने रोकी फंडिंग, आरोप-प्रत्यारो शुरू

#muskstopsusfundingforindianelections

देश में वोटिंग बढ़ाने के लिए अमेरिका से फंडिंग के मुद्दे पर विवाद पैदा हो गया। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सहयोगी इलॉन मस्क ने भारत के चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए दी जाने वाली 182 करोड़ रुपए की फंडिंग रद्द कर दी है। मस्क के नेतृत्व वाले डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) ने शनिवार को ये फैसला लिया।

एलन मस्क के नेतृत्व वाला सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) लगातार यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) यानी यूएसएड की पोल खोलने में जुटा है। सरकारी खर्च में कटौती में जुटे ट्रंप प्रशासन के निशाने पर यूएसएड है। दक्षता विभाग ने हाल ही में भारत समेत दुनियाभर के कई देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता रोक दी है।

डीओजीई ने एक लिस्ट जारी की है। इसमें डिपार्टमेंट की तरफ से 15 तरह के प्रोग्राम्स की फंडिंग रद्द की गई है। इसमें एक प्रोग्राम दुनियाभर में चुनाव प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए भी है, जिसका फंड 4200 करोड़ रुपए है। इस फंड में भारत की हिस्सेदारी 182 करोड़ रुपए की है। दरअसल, अमेरिका भारतीय के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने की खातिर फंडिंग कर रहा था। अब सवाल यह उठ रहा है कि अमेरिका यह धन किसे देता था?

बीजेपी ने चुनाव में फंडिंग पर सवाल उठाए

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया है कि इस फंड का इस्तेमाल भारतीय चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया गया। उन्होंने कांग्रेस पार्टी और अमेरिकी बिजनेसमेन जॉर्ज सोरोस पर भारत में चुनाव प्रक्रिया में दखल देने का आरोप लगाया है। उन्होंने एक्स पोस्ट में कहा- 21 मिलियन डॉलर (182 करोड़ रुपए) वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए? यह साफ तौर पर देश की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी दखल है। इस फंड से किसे फायदा होगा। जाहिर है इससे सत्ताधारी (बीजेपी) पार्टी को तो फायदा नहीं होगा। एक दूसरे पोस्ट में अमित मालवीय ने कांग्रेस पार्टी और जॉर्ज सोरोस पर भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप का आरोप लगाया। मालवीय ने सोरोस को गांधी परिवार का जाना-माना सहयोगी बताया।

मालवीय ने एक्स पर लिखा कि 2012 में एसवाई कुरैशी के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक एमओयू साइन किया था। ये संस्था जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा है। इसे मुख्य तौर पर यूएसएआईडी से आर्थिक मदद मिलती है।

कुरैशी फंडिंग किए जाने के आरोप को बताया निराधार

इधर, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रह चुके एसवाई कुरैशी ने कहा है कि उनके समय देश में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी एजेंसी की तरफ से फंडिंग किए जाने के आरोप पूरी तरह निराधार है। कुरैशी ने कहा कि, देश के एक मीडिया तबके में जो ये बात कही जा रही है कि जब मैं देश का मुख्य चुनाव आयुक्त था, तब 2012 में भारतीय चुनाव आयोग और अमेरिकी एजेंसी के बीच वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए किसी तरह का कोई फंडिंग से संबंधित करार हुआ, इस बारे में तनिक भी सच्चाई नहीं है। कुरैशी ने कहा कि वास्तव में 2012 में जब मैं सीईसी था, तब इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक समझौता हुआ था। इसका मकसद दूसरे देशों की चुनावी एजेंसियों और प्रबंधन निकायों को प्रशिक्षण देना था। इस समझौते में किसी भी तरह की फंडिंग का कोई वादा शामिल नहीं था। राशि तो भूल ही जाइए।

बता दें कि एस वाई कुरैशी 30 जुलाई, 2010 से 10 जून, 2012 तक भारतीय चुनाव आयोग के मुखिया रहे थे।

नए मुख्य चुनाव आयुक्त के नियुक्ति के लिए 17 फरवरी को बैठक, पीएम मोदी-राहुल गांधी करेंगे चयन पर मंथन

#whowillbenextchiefelectioncommissioner

मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले नए सीईसी के सिलेक्शन को लेकर 17 फरवरी को बैठक बुलाई गई है। मीटिंग में पीएम मोदी, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अलावा नेता विपक्ष राहुल गांधी भी शामिल होंगे। कमेटी की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति अगले सीईसी की नियुक्ति करेंगी।

अब तक सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त (ईसी) को सीईसी के रूप में प्रमोट किया जाता रहा है। राजीव कुमार के बाद ज्ञानेश कुमार सबसे सीनियर ईसी हैं। उनका कार्यकाल 26 जनवरी, 2029 तक है। ऐसे में एक नया सीईसी भी नियुक्त किया जा सकता है। सुखबीर सिंह संधू दूसरे सीईसी हैं।

17 फरवरी को पैनल कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली सर्च कमेटी द्वारा तैयार की गई पांच नामों की सूची में से एक नाम का चयन करेगा। सूत्रों के मुताबिक, सिलेक्शन कमिटी में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पीएम की ओर से नामित एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। बैठक में सर्च कमिटी की ओर से शॉर्टलिस्ट नाम रखे जाएंगे। सिलेक्शन कमिटी एक नाम फाइनल करके उसकी सिफारिश करेगी। कमिटी की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे।

नए कानून के आधार पर पहली बार नियुक्ति

यह पहली बार होगा जब किसी मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन नए कानून - मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023 के प्रावधानों के तहत किया जाएगा। इससे पहले, चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों (सीईसी) की नियुक्ति सरकार की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। यह कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्च 2023 में दिए गए अपने फैसले के बाद लागू हुआ था, जिसमें उसने एक चयन समिति के गठन का आदेश दिया था और कहा था कि इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होने चाहिए। अदालत ने कहा था कि यह आदेश तब तक लागू रहेगा जब तक संसद द्वारा कानून नहीं बना दिया जाता। हालाँकि, जब कानून पारित हुआ, तो केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर एक केंद्रीय मंत्री को पैनल के तीसरे सदस्य के रूप में नियुक्त कर दिया, जिससे सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका मिल गई।

सुप्रीम कोर्ट में 19 फरवरी को सुनवाई

कानून के पारित होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाए गए नए कानून को चुनौती दी गई है। 2023 के कानून के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया गया था। नए कानून के तहत नियुक्ति करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और एक केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। याची ने कहा कि 2023 के कानून ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सीजेआई को हटा दिया और प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और एक केंद्रीय मंत्री की समिति को इसका अधिकार दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सके।

राजीव कुमार इन चुनावों को सफलतापूर्वक किया नेतृत्व

राजीव कुमार को मई 2022 में मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। उनके नेतृत्व में चुनाव आयोग ने 2024 में लोकसभा चुनाव को सफलतापूर्वक कराया। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में एक दशक से अधिक समय बाद शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा चुनाव भी उनके नेतृत्व में हुए। लोकसभा चुनाव के बाद इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराए गए। साल 2023 में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की देखरेख में कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव कराए गए थे।

आज हुए लोकसभा चुनाव तो किसकी बनेगी सरकार, जानें किसको मिलेंगी कितनी सीटें?

#indiatodaysurveybjpwinsifelectionsheldtoday 

हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं। दिल्ली में 27 साल के बाद बीजेपी ने सत्ता में वापसी की है। इस साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद बीजेपी अब तक 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव जीत चुकी है। जिसमें हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली शामिल है। इस बीच इंडिया टुडे और सी-वीटर ने लोकसभा की 543 सीटों पर सर्वे किया है। सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। अगर आज लोकसभा चुनाव होते तो एनडीए एक बार फिर 300 पार कर जाएगा।

इंडिया टुडे-सी वोटर ने एक ओपिनियन पोल किया है। नाम दिया है मूड ऑफ द नेशन। इस सर्वे के जरिए उसने देश की जनता के मूड को जानने की कोशिश की है। इस सर्वे के मुताबिक, मोदी सरकार पर अब भी जनता को भरोसा है। सर्वे के नतीजे भाजपा के पक्ष में आए हैं।

सर्वे के मुताबिक आज लोकसभा चुनाव होते हैं तो बीजेपी को 281 सीटें मिल सकती हैं। यानी भगवा पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है।वहीं कांग्रेस को 78 सीटें मिल सकती हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं, जो अब घटती दिख रही हैं। अन्य के खाते में 184 सीटें आ सकती हैं। वहीं, पूरे एनडीए की बात करें तो एनडीए 343 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन कर सकती है। पोल बताता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया गठबंधन अगर आज चुनाव होते हैं तो 188 सीटों पर सिमट जाएगा।2024 के लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 232 सीटें जीती थीं।

नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर पहली पसंद

सर्वे में कुल 1 लाख 25 हजार 123 लोगों की राय ली गई है। सर्वे में लोगों से प्रधानमंत्री की पसंद को लेकर सवाल पूछा गया, तो 51.2 प्रतिशत लोग नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। वहीं 24.9 प्रतिशत लोग राहुल गांधी को पीएम के तौर पसंद करते हैं। ममता बनर्जी को 4.8 प्रतिशत, अमित शाह को 2.1 प्रतिशत और अरविंद केजरीवाल को 1.2 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं।

बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट

वहीं बात करें वोट शेयर की तो एनडीए को 46.9 प्रतिशत वोट मिल सकता है। जबकि इंडिया ब्लॉक को 40.6 प्रतिशत और अन्य को 12.5 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान जताया गया है। बीजेपी को व्यक्तिगत तौर पर 41 प्रतिशत वोट मिल सकता है जबकि कांग्रेस को 20 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है। हालांकि, इंडिया गठबंधन के वोट शेयर में सिर्फ 1% की बढ़ोतरी का अनुमान है।

शिवसेना ने सामना के संपादकीय में फिर कांग्रेस पर निशाना साधा, दिल्ली में “आप” की हार का फोड़ा ठीकरा
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत और आम आदमी पार्टी की हार के बाद इंडिया गठबंधन के नेता नतीजों को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। कुछ नेताओं ने आम आदमी पार्टी की हार का कारण कांग्रेस और 'आप' का अलग-अलग चुनाव लड़ना बताया है। इसकी शुरुआत शनिवार को मतगणना के शुरुआती रुझानों के साथ हुई। जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने तंज कसते हुए एक्स पर एक पोस्ट किया। इसके बाद इंडिया गंठबंधन के कई और नेताओं ने एक के बाद एक बयान दिए। इन नेताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ बीजेपी के ख़िलाफ लड़ती तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। अब दिल्ली में हुई आम आदमी पार्टी की हार पर अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दरार का फायदा बीजेपी ने उठाया है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार की हार के बाद शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कांग्रेस पर जमकर हमला बोल गया है। संपादकीय में लिखा कि कांग्रेस हमेशा की तरह दिल्ली में कद्दू भी नहीं फोड़ पाई। संपादकीय में कांग्रेस से पूछा गया कि क्या कांग्रेस पार्टी में कोई छिपी हुई ताकतें हैं, जो हमेशा राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं? अगर कांग्रेस नेता यह कह रहे हैं कि आप को जिताना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं है तो यह गलती है और एक तरह का अहंकार है तो क्या मोदी-शाह की तानाशाही को जिताने की जिम्मेदारी आपस में लड़ने वालों की है?

'सामना' के संपादकीय में लिखा गया, दिल्ली में आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे का नुकसान करने के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री के लिए चीजें आसान हो गईं। अगर यह जारी रहा तो गठबंधन क्यों करें? बस अपने दिल की इच्छा के अनुसार लड़ो! बता दें कि दिल्ली चुनाव के प्रचार के दौरान आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर कई हमले किए थे।

'सामना' के संपादकीय में दावा किया गया कि यदि विपक्षी दल दिल्ली चुनाव परिणामों से सीख लेने में विफल रहे, तो इससे मोदी और शाह के अधीन निरंकुश शासन को ही मजबूती मिलेगी। ‘सामना’ में लिखा कि उमर अब्दुल्ला की तरफ से व्यक्त किया गया गुस्सा व्यावहारिक है। वह ठीक ही कहते हैं कि आपस में जी भर के लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो। कांग्रेस को आप की हार का कारण बताते हुए कहा गया है कि दिल्ली 14 सीटों पर आप की हार में कांग्रेस का हाथ रहा है। हरियाणा में भी यही हुआ था। सामना में पू्छा गया कि आप से लड़ने के बाद आखिर कांग्रेस के हाथ क्या लगा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की राजनीतिक विफलता: एक विश्लेषण

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन खो दी, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी स्थिति मजबूत की। कांग्रेस, जो दिल्ली में एक समय प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी, अब अपनी पहचान बनाने में नाकाम रही। इस लेख में हम कांग्रेस की विफलता के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे और इसे भारतीय राजनीति के संदर्भ में समझेंगे।

1. नेतृत्व संकट और रणनीति की कमी

कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेतृत्व का संकट था। अरविंद सिंह लवली जैसे नेताओं के बावजूद, कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट और प्रभावशाली नेतृत्व नहीं था। AAP के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से गहरे स्तर पर जुड़कर प्रभावी नेतृत्व का उदाहरण पेश किया, जबकि कांग्रेस इससे पूरी तरह से चूक गई। पार्टी के भीतर कई आंतरिक मतभेद थे, जिससे न केवल एकजुटता की कमी महसूस हुई, बल्कि सही रणनीति भी लागू नहीं हो पाई।

2. स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देना

दिल्ली में मुद्दे स्थानीय स्तर पर अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे एयर पॉल्यूशन, जल संकट, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाएं। AAP ने इन मुद्दों को प्रमुखता दी और उन्हें चुनावी प्रचार का केंद्र बनाया। वहीं, कांग्रेस का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित था, जैसे बीजेपी की नीतियों की आलोचना, जो दिल्ली के स्थानीय समस्याओं से मेल नहीं खाती थी। परिणामस्वरूप, कांग्रेस दिल्ली के मतदाताओं के साथ सही तरीके से जुड़ने में नाकाम रही।

3. आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी

कांग्रेस पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी ने पार्टी की चुनावी ताकत को कमजोर कर दिया। पार्टी में कई बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ, और विभिन्न गुटों के बीच की लड़ाई ने कांग्रेस के प्रचार अभियान को प्रभावित किया। कांग्रेस का संगठन कमजोर था, जिससे पार्टी को अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत करने में कठिनाई हुई। यह कमजोरी पार्टी के दिल्ली चुनाव परिणामों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालने वाली थी।

4. AAP और BJP का मजबूत प्रभाव

AAP और BJP दोनों ने 2025 के दिल्ली चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूती से स्थापित किया। AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं को लेकर अपने वादों को महत्व दिया, जो दिल्ली के मतदाताओं के लिए आकर्षक थे। वहीं, बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय मुद्दों को दिल्ली के चुनावी मैदान में प्रभावी ढंग से रखा। कांग्रेस इन दोनों पार्टी के मुकाबले कहीं पीछे रह गई, क्योंकि पार्टी न तो स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दे पाई, और न ही प्रभावी प्रचार अभियान चला पाई।

5. कांग्रेस को पुनः समीक्षा और सुधार की आवश्यकता

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की विफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी को अपनी रणनीतियों और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है। कांग्रेस को एक स्पष्ट और प्रभावी नेतृत्व तैयार करना होगा, जो दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। इसके साथ ही, पार्टी को आंतरिक मतभेदों को समाप्त करके एकजुट होना होगा। यदि कांग्रेस इन बदलावों को स्वीकार कर सकती है, तो वह भविष्य में दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को फिर से पा सकती है। 

इस चुनाव ने यह भी दिखाया कि कांग्रेस को अपनी छवि और कार्यशैली को नए तरीके से प्रस्तुत करना होगा, ताकि वह दिल्ली के मतदाताओं के बीच फिर से विश्वास पैदा कर सके।