India

Jul 01 2024, 19:08

चीन को क्यों आई पंचशील समझौते की याद, भारत समेत कई देशों के साथ संघर्ष के बीच जिनपिंग की ये कौन सी चाल?

#chinaxijinpingloudsindianehrupanchsheel_agreement

अमेरिका और यूरोपीय संघ से बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और अमेरिकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगे चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है। यही नहीं, विस्तारवादी चीन के अपने पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं।भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में लगातार तनाव बढ़ा है। पूर्वी लद्दाख और कई स्थानों पर भारतीय जमीन पर कब्जा किए बैठा चीन अब विश्व से उस समझौते पर चलने की अपेक्षा कर रहा है जिसका पहला बिंदु संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान है। बात हो रही है पंचशील के सिद्धांतों की।

दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्तमान समय के संघर्षों के अंत के लिए पंचशील के सिद्धांतों की वकालत की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को बीजिंग में पंचशील सिद्धांत के जारी होने की 70वीं वर्षगांठ मनाई। इस दौरान उन्होंने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की तारीफ करते हुए इसे दुनिया में जारी संघर्षों को खत्म करने के लिए आज भी अहम बताया। शी ने कहा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था।

निःसंदेश, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पंचशील की तारीफ कर सबको हैरान कर दिया। हैरानी, इसलिए क्यों राष्ट्रपति जिनपिंग ने पंचशील सिद्धांतों की वकालत पश्चिमी देशों और कई क्षेत्रीय देशों के साथ चल रहे चीन के साथ टकराव के बीच की है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी इसमें आश्चर्य जैसा नहीं देखते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शी जिनपिंग ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की प्रशंसा की है। चेलानी ने आगे लिखा, अपने भाषण में जो बात चीन ने नहीं बताई वह यह है कि लगभग (पंचशील समझौते के) आठ साल बाद 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके सभी पंचशील सिद्धांतों का खुलेआम उल्लंघन किया। ये सिद्धांत थे- एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ' तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व'।

ब्रह्म चेलानी ने आगे लिखा, चीन अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों में उन सिद्धांतों का उल्लंघन करना लगातार जारी रखे हुए है। उन्होंने 1954 के पंचशील समझौते को आजादी के बाद भारत की सबसे बड़ी भूलों में से एक बताया। उस समझौते के माध्यम से भारत ने बिना कुछ हासिल किए तिब्बत में अपने ब्रिटिश विरासत वाले क्षेत्रीय अधिकारों को छोड़ दिया और चीन के तिब्बत क्षेत्र को मान्यता दी। समझौते की शर्तों के तहत, भारत ने तिब्बत से अपने मिलिट्री एस्कॉर्ट को वापस बुला लिया और वहां संचालित डाक, टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवाओं को चीन को सौंप दिया।

बता दें कि पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था। अतीत में चीनी नेतृत्व ने पहली बार पांच सिद्धांतों यानी 'एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ', तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' को संपूर्णता के साथ निर्दिष्ट किया था।'

शी ने सम्मेलन में कहा, 'उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यामांर संयुक्त वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था।' शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि पंचशील सिद्धांत आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समान संपत्ति बन चुके हैं।

क्या है पंचशील समझौता या पंचशील सिद्धांत

पंचशील के सिद्धांतो को पहली बार 1954 में तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था। चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था। वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का समुच्चय तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके। पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत निम्नानुसार हैं-

• प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।

• गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।

• समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

• इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।

• सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ (Peaceful Coexistence) का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।

पंचशील समझौता और भारत-चीन युद्ध

1954 में चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि पंचशील सिद्धांत उपनिवेशवाद के अंत और एशिया व अफ्रीका के नए राष्ट्रों के उद्भव में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। इस दौर से ही भारत ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया और चीन पर अत्यधिक भरोसा किया। भारत ने वर्ष 1955 में चीन को इंडोनेशिया में आयोजित होने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में भी आमंत्रित किया था। इसी बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के मध्य विवाद चल रहा था। चीन इन दोनों ही भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता था। इन विवादों के कारण भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे थे। चीन संपूर्ण तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था और इसी बीच भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी, इससे चीन अत्यधिक रुष्ट हो गया था। भारत और चीन के बीच वर्ष 1954 में हस्ताक्षरित हुए इस पंचशील समझौते की समयावधि 8 वर्षों की थी, लेकिन 8 वर्षों के बाद इसे पुनः आगे बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। पंचशील समझौते की समयावधि समाप्त होते ही ऊपर वर्णित मुद्दों को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भारत न सिर्फ पराजित हुआ, बल्कि उसके विभिन्न हिस्सों पर चीन ने कब्ज़ा भी कर लिया। भारत के वे हिस्से आज भी चीन के कब्जे में ही हैं।

Gaya

Jun 29 2024, 21:21

गया में दिनदहाड़े घर में घुसकर महिला की गला रेतकर निर्मम हत्या, जांच में जुटी पुलिस

गया: कोतवाली थाना क्षेत्र के नई गोदाम अड्डा के समीप सोनार गली में अज्ञात अपराधियों ने 50 वर्षीय महिला की गला रेतकर निर्मम हत्या कर दिया, घटना के समय महिला घर में अकेली थी, वही घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय कोतवाली थाना की पुलिस मौके पर पहुंची और छानबीन में जुट गई है, वही जांच के लिए एफएसएल की टीम भी मौके पर पहुंचकर जांच कर रही है।

India

Jun 20 2024, 13:13

GDP Growth: China Vs India
GDP Growth: China Vs India Wish we could have taken our economy more seriously in the 1980s and '90s

GDP Growth: China Vs India Wish we could have taken our economy more seriously in the 1980s and '90s

India

Jun 18 2024, 15:28

एनसीईआरटी ने 12वीं की किताबों से हटाया 'आजाद पाक', चीनी घुसपैठ शब्द जोड़ा, जानें और क्या हुए बदलाव

#ncert_class_12_book_remove_azad_pakistan_add_china_aggression

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की ओर से 12वीं कक्षा की नई राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कई बदलाव किए हैं।एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताबों में कई चीजों को हटाया और जोड़ा गया है।इन किताबों में आजाद पाकिस्तान से लेकर चीन की घुसपैठ और पीओके जैसे शब्दों को लेकर बदलाव हुए हैं।

12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में चीन के साथ भारत की सीमा स्थिति का संदर्भ बदल दिया गया है। समकालीन विश्व राजनीति पुस्तक में अध्याय 2 के भाग के रूप में, भारत-चीन संबंध शीर्षक वाले पैराग्राफ के तहत, मौजूदा कथन को बदल दिया गया है।इससे पहले, पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 25 पर मौजूदा वाक्य पढ़ा गया था – “हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर सैन्य संघर्ष ने उस आशा को धूमिल कर दिया।” इस वाक्य को अब बदलकर “हालांकि, भारतीय सीमा पर चीनी आक्रामकता ने उस आशा को धूमिल कर दिया है” कर दिया गया है।

सिर्फ भारत-चीन संबंध ही नहीं, बल्कि पाठ्यपुस्तक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति – कक्षा 12’ में, “आजाद पाकिस्तान” शब्द को “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर” में बदल दिया गया है।पाठ्यपुस्तक के मौजूदा संस्करण के पृष्ठ 119 पर लिखा है, “भारत का दावा है कि यह क्षेत्र अवैध कब्जे में है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को ‘आजाद पाकिस्तान’ के रूप में वर्णित करता है।”अब, संस्करण को बदल दिया गया है – “हालांकि, यह भारतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है जिसे पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) कहा जाता है।”

India

Jun 18 2024, 15:25

*एनसीईआरटी ने 12वीं कि किताबों से हटाया 'आजाद पाक', चीनी घुसपैठ शब्द जोड़ा, जानें और क्या हुए बदलाव*
#ncert_class_12_book_remove_azad_pakistan_add_china_aggression
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की ओर से 12वीं कक्षा की नई राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कई बदलाव किए हैं।एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताबों में कई चीजों को हटाया और जोड़ा गया है।इन किताबों में आजाद पाकिस्तान से लेकर चीन की घुसपैठ और पीओके जैसे शब्दों को लेकर बदलाव हुए हैं। 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में चीन के साथ भारत की सीमा स्थिति का संदर्भ बदल दिया गया है। समकालीन विश्व राजनीति पुस्तक में अध्याय 2 के भाग के रूप में, भारत-चीन संबंध शीर्षक वाले पैराग्राफ के तहत, मौजूदा कथन को बदल दिया गया है।इससे पहले, पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 25 पर मौजूदा वाक्य पढ़ा गया था – “हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर सैन्य संघर्ष ने उस आशा को धूमिल कर दिया।” इस वाक्य को अब बदलकर “हालांकि, भारतीय सीमा पर चीनी आक्रामकता ने उस आशा को धूमिल कर दिया है” कर दिया गया है। सिर्फ भारत-चीन संबंध ही नहीं, बल्कि पाठ्यपुस्तक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति – कक्षा 12’ में, “आजाद पाकिस्तान” शब्द को “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर” में बदल दिया गया है।पाठ्यपुस्तक के मौजूदा संस्करण के पृष्ठ 119 पर लिखा है, “भारत का दावा है कि यह क्षेत्र अवैध कब्जे में है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को ‘आजाद पाकिस्तान’ के रूप में वर्णित करता है।”अब, संस्करण को बदल दिया गया है – “हालांकि, यह भारतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है जिसे पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) कहा जाता है।”

India

Jun 11 2024, 12:10

विदेश मंत्री का पद संभालने के बाद एस जयशंकर ने चीन-पाकिस्तान को लेकर साफ किया रूख, जानें क्या होगा प्लान?*
#foreign_minister_s_jaishankar_clarified_his_stand_on_china-pakistan
राजनयिक से नेता बने एस जयशंकर ने मंगलवार को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए विदेश मंत्री के रूप में पदभार संभाल लिया। अपना पदभार संभालते ही उन्होंने विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार की योजनाओं के बारे में बात की।बतौर विदेश मंत्री कार्यभार संभालने के बाद एस जयशंकर ने पत्रकारों के साथ बातचीत में विदेश मंत्रालय के विजन सामने रखा। इस दौरान चीन और पाकिस्तान को लेकर भी अगले पांच साल के रिश्तों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत का रुख साफ कर दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार 3.0 में विदेश मंत्री का पदभार संभालने के बाद पहली बार बोलते हुए जयशंकर ने कहा, ‘किसी भी देश में और खासकर लोकतंत्र में, लगातार तीन बार सरकार का चुना जाना बहुत बड़ी बात होती है। इसलिए दुनिया को निश्चित रूप से लगेगा कि आज भारत में काफी राजनीतिक स्थिरता है। भारत के लोग प्रधानमंत्री पर विश्वास करते हैं। दुनिया ने पिछले 10 साल में जो हमारा रिकार्ड देखा है, उससे दुनिया को लगेगा कि हम दुनिया के साथ अपने हित के साथ हम अपना योगदान भी रखेंगे।’ एस जयशंकर ने आगे कहा "जहां तक चीन और पाकिस्तान की बात है, इन देशों के साथ भारत के रिश्ते थोड़े अलग हैं। इस वजह से समस्याएं भी अलग हैं। चीन के संबंध में हमारा ध्यान सीमा मुद्दों का समाधान खोजने पर होगा और पाकिस्तान के साथ हम वर्षों पुराने सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे का समाधान खोजना चाहेंगे।" बता दें कि विदेश मंत्री के रूप में वर्ष 2019 से कार्यभार संभालने वाले जयशंकर ने वैश्विक मंच पर कई जटिल मुद्दों को लेकर भारत के रुख को साफगोई से पेश किया है। जयशंकर ने यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर रूस से कच्चे तेल की खरीद पर पश्चिमी देशों की आलोचना की काट करने से लेकर चीन से निपटने के लिए एक दृढ़ नीति-दृष्टिकोण तैयार करने तक प्रधानमंत्री मोदी की पिछली सरकार में अच्छा काम करने वाले टॉप मंत्रियों में से एक के रूप में उभरे। उन्हें विदेश नीति के मामलों को खासकर भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान घरेलू पटल पर विमर्श के लिए लाने का श्रेय भी दिया जाता है। वर्तमान में जयशंकर गुजरात से राज्यसभा के सदस्य हैं।जयशंकर ने (2015-18) तक भारत के विदेश सचिव, अमेरिका में राजदूत (2013-15), चीन में (2009-2013) और चेक गणराज्य में राजदूत (2000-2004) के रूप में कार्य किया है। वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त (2007-2009) भी रहे। जयशंकर ने मॉस्को, कोलंबो, बुडापेस्ट और टोक्यो के दूतावासों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति सचिवालय में अन्य राजनयिक पदों पर भी काम किया है।

India

Jun 03 2024, 10:23

भारत में मोदी सरकार के लगातार तीसरे टर्म की संभावनाओं पर चीन की नजर, जानें ग्लोबल टाइम्स ने क्या कहा
#china_reaction_on_lok_sabha_election_exit_poll_result
मंगलवार को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने वाले है। जिसके बाद ये पता चल जाएगा कि भारत में किस पार्टी की सरकार बन रही है। हालांकि, नतीजों से पहले अधिकांश एग्जिट पोल ने ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ की भविष्यवाणी कर दी है। एग्जिट पोल की मानें तो भारत में तीसरी बार मोदी सरकार आ रही है।तीसरी बार मोदी सरकार बनने की संभावनाओं पर चीन भी नजर बनाए हुए है। इस बीच चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने एग्जिट पोल में तीसरी बार मोदी सरकार बनने की संभावनाओं पर बयान दिया है। चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने नरेंद्र मोदी के एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने पर भारत-चीन की दोस्ती की संभावना जताई है। ग्लोबल टाइम्स को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी के रणनीतिकार जो बातें सार्वजनिक रूप से नहीं कह पातें, अक्सर उन्हें सरकारी मीडिया के जरिए बोलते हैं। ऐसे में ग्लोबल टाइम्स के विचारों को भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जोड़कर देखा जाता है। ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में लिखा, 19 अप्रैल को शुरू हुए आम चुनाव शनिवार को समाप्त हो गए। भारतीय मीडिया ने रविवार को बताया कि भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की 12 एग्जिट पोल में बड़ी जीत की भविष्यवाणी की गई है। एग्जिट पोल से पता चलता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आ सकते हैं। ऐसे में चीनी विशेषज्ञों ने कहा कि मोदी की समग्र घरेलू और विदेश नीतियां निरंतरता जारी रहेंगी, क्योंकि भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को जारी रखने की उम्मीद है। सिंघुआ यूनिवर्सिटी में रणनीति संस्थान के निदेशक कियान फेंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि नरेंद्र मोदी भारत के लिए पहले से तय घरेलू और विदेश नीति के उद्देश्यों को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे। भारत आने वाले समय में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा तेजी से काम करेगा।कियान ने कहा, तीसरी बार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास जारी रखेंगे। भारत को अग्रणी शक्ति बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के लिए मोदी सरकार और तेजी से काम करेगी। चीन-भारत संबंधों को लेकर चीनी विशेषज्ञों ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ने की उम्मीद कम है। ग्लोबल टाइम्स में पीएम मोदी की तरफ से हाल ही में दिए गए बयान की भी चर्चा हुई, जब मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच स्थिर और शांतिपूर्ण संबंध न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।

India

May 27 2024, 18:37

दक्षिण कोरिया, चीन और जापान पांच साल बाद आए एक मंच पर, अमेरिका की बढ़ सकती है चिंता

#china_japan_and_south_korea_summit

चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के टॉप लीडर एक मंच पर दिखाई दिए।चार साल बाद चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के नेता एक साथ एक आज मंच पर आए।चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं ने व्यापार और सुरक्षा मुद्दों पर बढ़ते टकराव के बीच अपने संबंधों को सुधारने के प्रयासों के तहत 2019 के बाद से अपना पहला औपचारिक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन शुरू किया। इसी क्रम में चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल और जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की आज राजधानी सिओल में मुलाकात हुई।

यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब बीजिंग अमेरिकी चिप निर्यात नियमों को कड़ा करने के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते चीन के चिपमेकिंग उद्योग को बाधित करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है। बैठक में वैश्विक संकट के बीच व्यापार और सुरक्षा के मद्देनजर संबंध सुधारने पर जोर दिया गया।मीडिया रपटों के मुताबिक कुल 6 क्षेत्रों में आम सहमति बनाने की कोशिश हुई है. अर्थव्यवस्था-व्यापार, विज्ञान और तकनीक, लोगों के बीच संवाद और स्वास्थ्य से लेकर इन देशों में बूढ़ी हो रही बड़ी आबादी पर तीनों देशों में बैठक हुई है।

चीन-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच संबंध तल्ख रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ बरसों में एक के बाद एक कई मुलाकात और बातचीत कर रिश्तों में जमी इस बर्फ को पिघलाने की कोशिश की गई है। इस संबंध में तीनों देश 16 दौर की बातचीत कर चुके हैं। लेकिन कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनाव के कारण यह बैठक लगभग पांच साल तक रुकी रही। तब से, टोक्यो और सियोल ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार किया है और अमेरिका के करीब आए हैं, जिससे चीन चिंतित है।

इस दौरान जापान और दक्षिण कोरिया का अमेरिका से सहयोग बढ़ा है। इधर, चीन से अमेरिका की बढ़ती तल्खी के बीच इन दोनों देशों का चीन के साथ बैठना अमेरिका की चिंता बढ़ा सकता है। खासकर तब जब ताइवान के अस्तित्त्व के सवाल पर बीजिंग और वाशिंगटन में ठनी हुई है।

India

May 23 2024, 15:33

ताइवान की सीमा को चारों ओर चीन ने घेरा, जहाज, एयरक्राफ्ट और सैनिकों का जमावड़ा
#china_again_gave_tension_to_taiwan
ताइवान में नए राष्ट्रपति के शपथ लेते ही चीन ने द्वीप देश की टेंशन बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब चीन की सेना ने बृहस्पतिवार को ताइवान के चारों तरफ घेराव शुरू कर दिया है। चीन ने ताइवान के समुद्री सीमा और एयर स्पेस के पास अपना दो दिवसीय युद्धाभ्यास शुरू किया है। इससे ताइवान में हलचल मच गई है। इस दंड अभ्यास में उसकी सेना, नौसेना, वायु सेना और रॉकेट बल भाग ले रहे हैं। चीन ने यह अभ्यास ऐसे वक्त में किया है जब स्व-शासित द्वीप ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने देश पर चीन की संप्रभुता के दावे को अस्वीकार किया है। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के अनुसार, चीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पूर्वी थिएटर कमान ने बृहस्पतिवार सुबह 7:45 बजे ताइवान द्वीप के आसपास संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू किया।चीनी सेना की ओर से यह अभ्यास ताइवान जलडमरूमध्य, ताइवान द्वीप के उत्तर, दक्षिण और पूर्व के साथ-साथ किनमेन, मात्सु, वुकिउ और डोंगयिन द्वीपों के आसपास के क्षेत्रों में किया जा रहा है। इससे ताइवान में खलबली मच गई है। चीन का मानना है कि ताइवान को मुख्य भूमि के साथ जोड़ा जाना चाहिए भले ही इसके लिए बल प्रयोग करना पड़े। पीएलए ईस्टर्न थिएटर कमान के प्रवक्ता ली शी ने कहा, ‘‘यह अभ्यास ‘ताइवान स्वतंत्रता’ बलों के अलगाववादी कृत्यों के लिए एक कड़ी सजा और बाहरी ताकतों द्वारा हस्तक्षेप और उकसावे के खिलाफ एक कड़ी चेतावनी जैसा है। वहीं, ताइवान ने अपनी सीमा क्षेत्र के नजदीक युद्धाभ्यास करने पर चीन का कड़ा विरोध जताया है। ताइवान के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, चीन अपने ऊपर नियंत्रण रखे, ताइवान की सीमा में फेरबदल की कोशिश ना करे। इसके अलावा बयान में ये भी कहा गाया है कि ताइवान चीन के दबाव में नहीं आएगा, ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति बिगाड़ने की कोशिश न कि जाए। ताइवान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ताइवान स्ट्रेट में शांति और स्थिरता बनाए रखना, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहमति है। ताइवान स्ट्रेट पर हो रहे चीन के अभ्यास पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय नजर रखे हुए है। चीन बार बार ताइवान के लोकतंत्र को धमकी दे रहा है और एकतरफा तरीके से ताइवान सागर और इंडो-पैसिफिक शांति और स्थिरता को कमजोर कर रहा है। ताइवान ताइवान स्ट्रेट में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और चीन से खुद पर कंट्रोल करने का आह्वान करता है।

India

May 20 2024, 14:13

रूस और चीन की बढ़ती दोस्ती, क्या भारत को संबंधों के पुनर्मूल्यांकन की है जरूरत

#china_russia_strategic_ties

रूस के राष्ट्रपति पद की 5वीं बार शपथ लेने के बाद व्लादिमिर पुतिन अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान चीन पहुंचे थे। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 16 और 17 मई को चीन के दौरे पर थे।इस दौरान दोनों देशों ने व्यापक साझेदारी और रणनीतिक सहयोग' को गहरा करने के लिए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कई सुरक्षा मुद्दों पर अमेरिका का विरोध, ताइवान और यूक्रेन से लेकर उत्तर कोरिया तक हर चीज पर साझा दृष्टिकोण और नई शांतिपूर्ण परमाणु टेक्नोलॉजी और वित्त पर सहयोग की घोषणा की गई। 

यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि पांचवी बार राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद पुतिन ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना है।रूसी राष्ट्रपति की ये यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब दोनों देशों के रिश्ते अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं।

रूस के साथ समझौते को लेकर चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन और रूस के संबंधों का भविष्य उज्ज्वल है। जिनपिंग के अनुसार चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती के लिए विकास की व्यापक संभावनाएं तलाशी जाएंगी। शी जिनपिंग ने कहा कि उनके और पुतिन के बीच रूस और यूक्रेन में दो साल से अधिक समय से चल रहे युद्ध को सुलझाने के लिए बातचीत की गई। चीन ने कभी भी सार्वजनिक रूप से रूस के यूक्रेन पर आक्रमण का समर्थन नहीं किया।

रूस और चीन के इस समझौते से पूरी दुनिया में हलचल है। दरअसल, रूस और चीन एक जैसी मानसिकता वाले देश हैं।रूस एक ऐसा देश है जो वर्तमान में यूक्रेन पर आक्रमण कर रहा है जबकि दूसरा चीन भारतीय क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ का दोषी है। दोनों को लोकतांत्रिक ताइवान से भी समस्या है। चीन, ताइवान को लगातार डराता रहता है। उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया के साथ अन्याय हुआ है। कुल मिलाकर कहें तो, दोनों देश दुनियाभर में अराजकता के एक बड़े हिस्से के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। इस बीच सवाल ये उठता है कि चीन और रूस के बीच के ये संबंध भारत को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

चीन आज भारत का मुख्य रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी है, जबकि रूस के साथ हमारे ऐतिहासिक रक्षा संबंध हैं। लेकिन बीजिंग और मॉस्को की तरफ से अपने रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के साथ, भारत रूसी प्लेटफार्मों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकती है। हथियार प्रणालियों में चल रहे विविधीकरण को तेज किया जाना चाहिए। इसकी वजह है कि भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति में, रूस अधिक से अधिक तटस्थ रहेगा या सबसे बुरी स्थिति में बीजिंग की सहायता करेगा। साथ ही, भारत के पास अभी भी अकेले लड़ने के लिए एकजुट ताकत नहीं है। इसलिए, हमें पश्चिम के साथ और अधिक निकटता से काम करना होगा। अब मास्को के साथ हमारे रणनीतिक संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करने का समय आ गया है।

India

Jul 01 2024, 19:08

चीन को क्यों आई पंचशील समझौते की याद, भारत समेत कई देशों के साथ संघर्ष के बीच जिनपिंग की ये कौन सी चाल?

#chinaxijinpingloudsindianehrupanchsheel_agreement

अमेरिका और यूरोपीय संघ से बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और अमेरिकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगे चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है। यही नहीं, विस्तारवादी चीन के अपने पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं।भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में लगातार तनाव बढ़ा है। पूर्वी लद्दाख और कई स्थानों पर भारतीय जमीन पर कब्जा किए बैठा चीन अब विश्व से उस समझौते पर चलने की अपेक्षा कर रहा है जिसका पहला बिंदु संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान है। बात हो रही है पंचशील के सिद्धांतों की।

दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्तमान समय के संघर्षों के अंत के लिए पंचशील के सिद्धांतों की वकालत की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को बीजिंग में पंचशील सिद्धांत के जारी होने की 70वीं वर्षगांठ मनाई। इस दौरान उन्होंने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की तारीफ करते हुए इसे दुनिया में जारी संघर्षों को खत्म करने के लिए आज भी अहम बताया। शी ने कहा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था।

निःसंदेश, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पंचशील की तारीफ कर सबको हैरान कर दिया। हैरानी, इसलिए क्यों राष्ट्रपति जिनपिंग ने पंचशील सिद्धांतों की वकालत पश्चिमी देशों और कई क्षेत्रीय देशों के साथ चल रहे चीन के साथ टकराव के बीच की है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी इसमें आश्चर्य जैसा नहीं देखते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शी जिनपिंग ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की प्रशंसा की है। चेलानी ने आगे लिखा, अपने भाषण में जो बात चीन ने नहीं बताई वह यह है कि लगभग (पंचशील समझौते के) आठ साल बाद 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके सभी पंचशील सिद्धांतों का खुलेआम उल्लंघन किया। ये सिद्धांत थे- एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ' तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व'।

ब्रह्म चेलानी ने आगे लिखा, चीन अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों में उन सिद्धांतों का उल्लंघन करना लगातार जारी रखे हुए है। उन्होंने 1954 के पंचशील समझौते को आजादी के बाद भारत की सबसे बड़ी भूलों में से एक बताया। उस समझौते के माध्यम से भारत ने बिना कुछ हासिल किए तिब्बत में अपने ब्रिटिश विरासत वाले क्षेत्रीय अधिकारों को छोड़ दिया और चीन के तिब्बत क्षेत्र को मान्यता दी। समझौते की शर्तों के तहत, भारत ने तिब्बत से अपने मिलिट्री एस्कॉर्ट को वापस बुला लिया और वहां संचालित डाक, टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवाओं को चीन को सौंप दिया।

बता दें कि पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था। अतीत में चीनी नेतृत्व ने पहली बार पांच सिद्धांतों यानी 'एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ', तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' को संपूर्णता के साथ निर्दिष्ट किया था।'

शी ने सम्मेलन में कहा, 'उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यामांर संयुक्त वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था।' शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि पंचशील सिद्धांत आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समान संपत्ति बन चुके हैं।

क्या है पंचशील समझौता या पंचशील सिद्धांत

पंचशील के सिद्धांतो को पहली बार 1954 में तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था। चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था। वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का समुच्चय तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके। पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत निम्नानुसार हैं-

• प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।

• गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।

• समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

• इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।

• सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ (Peaceful Coexistence) का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।

पंचशील समझौता और भारत-चीन युद्ध

1954 में चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि पंचशील सिद्धांत उपनिवेशवाद के अंत और एशिया व अफ्रीका के नए राष्ट्रों के उद्भव में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। इस दौर से ही भारत ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया और चीन पर अत्यधिक भरोसा किया। भारत ने वर्ष 1955 में चीन को इंडोनेशिया में आयोजित होने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में भी आमंत्रित किया था। इसी बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के मध्य विवाद चल रहा था। चीन इन दोनों ही भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता था। इन विवादों के कारण भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे थे। चीन संपूर्ण तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था और इसी बीच भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी, इससे चीन अत्यधिक रुष्ट हो गया था। भारत और चीन के बीच वर्ष 1954 में हस्ताक्षरित हुए इस पंचशील समझौते की समयावधि 8 वर्षों की थी, लेकिन 8 वर्षों के बाद इसे पुनः आगे बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। पंचशील समझौते की समयावधि समाप्त होते ही ऊपर वर्णित मुद्दों को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भारत न सिर्फ पराजित हुआ, बल्कि उसके विभिन्न हिस्सों पर चीन ने कब्ज़ा भी कर लिया। भारत के वे हिस्से आज भी चीन के कब्जे में ही हैं।

Gaya

Jun 29 2024, 21:21

गया में दिनदहाड़े घर में घुसकर महिला की गला रेतकर निर्मम हत्या, जांच में जुटी पुलिस

गया: कोतवाली थाना क्षेत्र के नई गोदाम अड्डा के समीप सोनार गली में अज्ञात अपराधियों ने 50 वर्षीय महिला की गला रेतकर निर्मम हत्या कर दिया, घटना के समय महिला घर में अकेली थी, वही घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय कोतवाली थाना की पुलिस मौके पर पहुंची और छानबीन में जुट गई है, वही जांच के लिए एफएसएल की टीम भी मौके पर पहुंचकर जांच कर रही है।

India

Jun 20 2024, 13:13

GDP Growth: China Vs India
GDP Growth: China Vs India Wish we could have taken our economy more seriously in the 1980s and '90s

GDP Growth: China Vs India Wish we could have taken our economy more seriously in the 1980s and '90s

India

Jun 18 2024, 15:28

एनसीईआरटी ने 12वीं की किताबों से हटाया 'आजाद पाक', चीनी घुसपैठ शब्द जोड़ा, जानें और क्या हुए बदलाव

#ncert_class_12_book_remove_azad_pakistan_add_china_aggression

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की ओर से 12वीं कक्षा की नई राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कई बदलाव किए हैं।एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताबों में कई चीजों को हटाया और जोड़ा गया है।इन किताबों में आजाद पाकिस्तान से लेकर चीन की घुसपैठ और पीओके जैसे शब्दों को लेकर बदलाव हुए हैं।

12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में चीन के साथ भारत की सीमा स्थिति का संदर्भ बदल दिया गया है। समकालीन विश्व राजनीति पुस्तक में अध्याय 2 के भाग के रूप में, भारत-चीन संबंध शीर्षक वाले पैराग्राफ के तहत, मौजूदा कथन को बदल दिया गया है।इससे पहले, पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 25 पर मौजूदा वाक्य पढ़ा गया था – “हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर सैन्य संघर्ष ने उस आशा को धूमिल कर दिया।” इस वाक्य को अब बदलकर “हालांकि, भारतीय सीमा पर चीनी आक्रामकता ने उस आशा को धूमिल कर दिया है” कर दिया गया है।

सिर्फ भारत-चीन संबंध ही नहीं, बल्कि पाठ्यपुस्तक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति – कक्षा 12’ में, “आजाद पाकिस्तान” शब्द को “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर” में बदल दिया गया है।पाठ्यपुस्तक के मौजूदा संस्करण के पृष्ठ 119 पर लिखा है, “भारत का दावा है कि यह क्षेत्र अवैध कब्जे में है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को ‘आजाद पाकिस्तान’ के रूप में वर्णित करता है।”अब, संस्करण को बदल दिया गया है – “हालांकि, यह भारतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है जिसे पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) कहा जाता है।”

India

Jun 18 2024, 15:25

*एनसीईआरटी ने 12वीं कि किताबों से हटाया 'आजाद पाक', चीनी घुसपैठ शब्द जोड़ा, जानें और क्या हुए बदलाव*
#ncert_class_12_book_remove_azad_pakistan_add_china_aggression
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की ओर से 12वीं कक्षा की नई राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कई बदलाव किए हैं।एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताबों में कई चीजों को हटाया और जोड़ा गया है।इन किताबों में आजाद पाकिस्तान से लेकर चीन की घुसपैठ और पीओके जैसे शब्दों को लेकर बदलाव हुए हैं। 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में चीन के साथ भारत की सीमा स्थिति का संदर्भ बदल दिया गया है। समकालीन विश्व राजनीति पुस्तक में अध्याय 2 के भाग के रूप में, भारत-चीन संबंध शीर्षक वाले पैराग्राफ के तहत, मौजूदा कथन को बदल दिया गया है।इससे पहले, पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 25 पर मौजूदा वाक्य पढ़ा गया था – “हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर सैन्य संघर्ष ने उस आशा को धूमिल कर दिया।” इस वाक्य को अब बदलकर “हालांकि, भारतीय सीमा पर चीनी आक्रामकता ने उस आशा को धूमिल कर दिया है” कर दिया गया है। सिर्फ भारत-चीन संबंध ही नहीं, बल्कि पाठ्यपुस्तक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति – कक्षा 12’ में, “आजाद पाकिस्तान” शब्द को “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर” में बदल दिया गया है।पाठ्यपुस्तक के मौजूदा संस्करण के पृष्ठ 119 पर लिखा है, “भारत का दावा है कि यह क्षेत्र अवैध कब्जे में है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को ‘आजाद पाकिस्तान’ के रूप में वर्णित करता है।”अब, संस्करण को बदल दिया गया है – “हालांकि, यह भारतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है जिसे पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) कहा जाता है।”

India

Jun 11 2024, 12:10

विदेश मंत्री का पद संभालने के बाद एस जयशंकर ने चीन-पाकिस्तान को लेकर साफ किया रूख, जानें क्या होगा प्लान?*
#foreign_minister_s_jaishankar_clarified_his_stand_on_china-pakistan
राजनयिक से नेता बने एस जयशंकर ने मंगलवार को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए विदेश मंत्री के रूप में पदभार संभाल लिया। अपना पदभार संभालते ही उन्होंने विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार की योजनाओं के बारे में बात की।बतौर विदेश मंत्री कार्यभार संभालने के बाद एस जयशंकर ने पत्रकारों के साथ बातचीत में विदेश मंत्रालय के विजन सामने रखा। इस दौरान चीन और पाकिस्तान को लेकर भी अगले पांच साल के रिश्तों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत का रुख साफ कर दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार 3.0 में विदेश मंत्री का पदभार संभालने के बाद पहली बार बोलते हुए जयशंकर ने कहा, ‘किसी भी देश में और खासकर लोकतंत्र में, लगातार तीन बार सरकार का चुना जाना बहुत बड़ी बात होती है। इसलिए दुनिया को निश्चित रूप से लगेगा कि आज भारत में काफी राजनीतिक स्थिरता है। भारत के लोग प्रधानमंत्री पर विश्वास करते हैं। दुनिया ने पिछले 10 साल में जो हमारा रिकार्ड देखा है, उससे दुनिया को लगेगा कि हम दुनिया के साथ अपने हित के साथ हम अपना योगदान भी रखेंगे।’ एस जयशंकर ने आगे कहा "जहां तक चीन और पाकिस्तान की बात है, इन देशों के साथ भारत के रिश्ते थोड़े अलग हैं। इस वजह से समस्याएं भी अलग हैं। चीन के संबंध में हमारा ध्यान सीमा मुद्दों का समाधान खोजने पर होगा और पाकिस्तान के साथ हम वर्षों पुराने सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे का समाधान खोजना चाहेंगे।" बता दें कि विदेश मंत्री के रूप में वर्ष 2019 से कार्यभार संभालने वाले जयशंकर ने वैश्विक मंच पर कई जटिल मुद्दों को लेकर भारत के रुख को साफगोई से पेश किया है। जयशंकर ने यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर रूस से कच्चे तेल की खरीद पर पश्चिमी देशों की आलोचना की काट करने से लेकर चीन से निपटने के लिए एक दृढ़ नीति-दृष्टिकोण तैयार करने तक प्रधानमंत्री मोदी की पिछली सरकार में अच्छा काम करने वाले टॉप मंत्रियों में से एक के रूप में उभरे। उन्हें विदेश नीति के मामलों को खासकर भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान घरेलू पटल पर विमर्श के लिए लाने का श्रेय भी दिया जाता है। वर्तमान में जयशंकर गुजरात से राज्यसभा के सदस्य हैं।जयशंकर ने (2015-18) तक भारत के विदेश सचिव, अमेरिका में राजदूत (2013-15), चीन में (2009-2013) और चेक गणराज्य में राजदूत (2000-2004) के रूप में कार्य किया है। वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त (2007-2009) भी रहे। जयशंकर ने मॉस्को, कोलंबो, बुडापेस्ट और टोक्यो के दूतावासों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति सचिवालय में अन्य राजनयिक पदों पर भी काम किया है।

India

Jun 03 2024, 10:23

भारत में मोदी सरकार के लगातार तीसरे टर्म की संभावनाओं पर चीन की नजर, जानें ग्लोबल टाइम्स ने क्या कहा
#china_reaction_on_lok_sabha_election_exit_poll_result
मंगलवार को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने वाले है। जिसके बाद ये पता चल जाएगा कि भारत में किस पार्टी की सरकार बन रही है। हालांकि, नतीजों से पहले अधिकांश एग्जिट पोल ने ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ की भविष्यवाणी कर दी है। एग्जिट पोल की मानें तो भारत में तीसरी बार मोदी सरकार आ रही है।तीसरी बार मोदी सरकार बनने की संभावनाओं पर चीन भी नजर बनाए हुए है। इस बीच चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने एग्जिट पोल में तीसरी बार मोदी सरकार बनने की संभावनाओं पर बयान दिया है। चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने नरेंद्र मोदी के एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने पर भारत-चीन की दोस्ती की संभावना जताई है। ग्लोबल टाइम्स को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी के रणनीतिकार जो बातें सार्वजनिक रूप से नहीं कह पातें, अक्सर उन्हें सरकारी मीडिया के जरिए बोलते हैं। ऐसे में ग्लोबल टाइम्स के विचारों को भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जोड़कर देखा जाता है। ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में लिखा, 19 अप्रैल को शुरू हुए आम चुनाव शनिवार को समाप्त हो गए। भारतीय मीडिया ने रविवार को बताया कि भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की 12 एग्जिट पोल में बड़ी जीत की भविष्यवाणी की गई है। एग्जिट पोल से पता चलता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आ सकते हैं। ऐसे में चीनी विशेषज्ञों ने कहा कि मोदी की समग्र घरेलू और विदेश नीतियां निरंतरता जारी रहेंगी, क्योंकि भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को जारी रखने की उम्मीद है। सिंघुआ यूनिवर्सिटी में रणनीति संस्थान के निदेशक कियान फेंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि नरेंद्र मोदी भारत के लिए पहले से तय घरेलू और विदेश नीति के उद्देश्यों को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे। भारत आने वाले समय में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा तेजी से काम करेगा।कियान ने कहा, तीसरी बार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास जारी रखेंगे। भारत को अग्रणी शक्ति बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के लिए मोदी सरकार और तेजी से काम करेगी। चीन-भारत संबंधों को लेकर चीनी विशेषज्ञों ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ने की उम्मीद कम है। ग्लोबल टाइम्स में पीएम मोदी की तरफ से हाल ही में दिए गए बयान की भी चर्चा हुई, जब मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच स्थिर और शांतिपूर्ण संबंध न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।

India

May 27 2024, 18:37

दक्षिण कोरिया, चीन और जापान पांच साल बाद आए एक मंच पर, अमेरिका की बढ़ सकती है चिंता

#china_japan_and_south_korea_summit

चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के टॉप लीडर एक मंच पर दिखाई दिए।चार साल बाद चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के नेता एक साथ एक आज मंच पर आए।चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं ने व्यापार और सुरक्षा मुद्दों पर बढ़ते टकराव के बीच अपने संबंधों को सुधारने के प्रयासों के तहत 2019 के बाद से अपना पहला औपचारिक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन शुरू किया। इसी क्रम में चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल और जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की आज राजधानी सिओल में मुलाकात हुई।

यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब बीजिंग अमेरिकी चिप निर्यात नियमों को कड़ा करने के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते चीन के चिपमेकिंग उद्योग को बाधित करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है। बैठक में वैश्विक संकट के बीच व्यापार और सुरक्षा के मद्देनजर संबंध सुधारने पर जोर दिया गया।मीडिया रपटों के मुताबिक कुल 6 क्षेत्रों में आम सहमति बनाने की कोशिश हुई है. अर्थव्यवस्था-व्यापार, विज्ञान और तकनीक, लोगों के बीच संवाद और स्वास्थ्य से लेकर इन देशों में बूढ़ी हो रही बड़ी आबादी पर तीनों देशों में बैठक हुई है।

चीन-जापान-दक्षिण कोरिया के बीच संबंध तल्ख रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ बरसों में एक के बाद एक कई मुलाकात और बातचीत कर रिश्तों में जमी इस बर्फ को पिघलाने की कोशिश की गई है। इस संबंध में तीनों देश 16 दौर की बातचीत कर चुके हैं। लेकिन कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनाव के कारण यह बैठक लगभग पांच साल तक रुकी रही। तब से, टोक्यो और सियोल ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार किया है और अमेरिका के करीब आए हैं, जिससे चीन चिंतित है।

इस दौरान जापान और दक्षिण कोरिया का अमेरिका से सहयोग बढ़ा है। इधर, चीन से अमेरिका की बढ़ती तल्खी के बीच इन दोनों देशों का चीन के साथ बैठना अमेरिका की चिंता बढ़ा सकता है। खासकर तब जब ताइवान के अस्तित्त्व के सवाल पर बीजिंग और वाशिंगटन में ठनी हुई है।

India

May 23 2024, 15:33

ताइवान की सीमा को चारों ओर चीन ने घेरा, जहाज, एयरक्राफ्ट और सैनिकों का जमावड़ा
#china_again_gave_tension_to_taiwan
ताइवान में नए राष्ट्रपति के शपथ लेते ही चीन ने द्वीप देश की टेंशन बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब चीन की सेना ने बृहस्पतिवार को ताइवान के चारों तरफ घेराव शुरू कर दिया है। चीन ने ताइवान के समुद्री सीमा और एयर स्पेस के पास अपना दो दिवसीय युद्धाभ्यास शुरू किया है। इससे ताइवान में हलचल मच गई है। इस दंड अभ्यास में उसकी सेना, नौसेना, वायु सेना और रॉकेट बल भाग ले रहे हैं। चीन ने यह अभ्यास ऐसे वक्त में किया है जब स्व-शासित द्वीप ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने देश पर चीन की संप्रभुता के दावे को अस्वीकार किया है। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के अनुसार, चीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पूर्वी थिएटर कमान ने बृहस्पतिवार सुबह 7:45 बजे ताइवान द्वीप के आसपास संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू किया।चीनी सेना की ओर से यह अभ्यास ताइवान जलडमरूमध्य, ताइवान द्वीप के उत्तर, दक्षिण और पूर्व के साथ-साथ किनमेन, मात्सु, वुकिउ और डोंगयिन द्वीपों के आसपास के क्षेत्रों में किया जा रहा है। इससे ताइवान में खलबली मच गई है। चीन का मानना है कि ताइवान को मुख्य भूमि के साथ जोड़ा जाना चाहिए भले ही इसके लिए बल प्रयोग करना पड़े। पीएलए ईस्टर्न थिएटर कमान के प्रवक्ता ली शी ने कहा, ‘‘यह अभ्यास ‘ताइवान स्वतंत्रता’ बलों के अलगाववादी कृत्यों के लिए एक कड़ी सजा और बाहरी ताकतों द्वारा हस्तक्षेप और उकसावे के खिलाफ एक कड़ी चेतावनी जैसा है। वहीं, ताइवान ने अपनी सीमा क्षेत्र के नजदीक युद्धाभ्यास करने पर चीन का कड़ा विरोध जताया है। ताइवान के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, चीन अपने ऊपर नियंत्रण रखे, ताइवान की सीमा में फेरबदल की कोशिश ना करे। इसके अलावा बयान में ये भी कहा गाया है कि ताइवान चीन के दबाव में नहीं आएगा, ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति बिगाड़ने की कोशिश न कि जाए। ताइवान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ताइवान स्ट्रेट में शांति और स्थिरता बनाए रखना, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहमति है। ताइवान स्ट्रेट पर हो रहे चीन के अभ्यास पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय नजर रखे हुए है। चीन बार बार ताइवान के लोकतंत्र को धमकी दे रहा है और एकतरफा तरीके से ताइवान सागर और इंडो-पैसिफिक शांति और स्थिरता को कमजोर कर रहा है। ताइवान ताइवान स्ट्रेट में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और चीन से खुद पर कंट्रोल करने का आह्वान करता है।

India

May 20 2024, 14:13

रूस और चीन की बढ़ती दोस्ती, क्या भारत को संबंधों के पुनर्मूल्यांकन की है जरूरत

#china_russia_strategic_ties

रूस के राष्ट्रपति पद की 5वीं बार शपथ लेने के बाद व्लादिमिर पुतिन अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान चीन पहुंचे थे। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 16 और 17 मई को चीन के दौरे पर थे।इस दौरान दोनों देशों ने व्यापक साझेदारी और रणनीतिक सहयोग' को गहरा करने के लिए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कई सुरक्षा मुद्दों पर अमेरिका का विरोध, ताइवान और यूक्रेन से लेकर उत्तर कोरिया तक हर चीज पर साझा दृष्टिकोण और नई शांतिपूर्ण परमाणु टेक्नोलॉजी और वित्त पर सहयोग की घोषणा की गई। 

यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि पांचवी बार राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद पुतिन ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना है।रूसी राष्ट्रपति की ये यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब दोनों देशों के रिश्ते अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं।

रूस के साथ समझौते को लेकर चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन और रूस के संबंधों का भविष्य उज्ज्वल है। जिनपिंग के अनुसार चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती के लिए विकास की व्यापक संभावनाएं तलाशी जाएंगी। शी जिनपिंग ने कहा कि उनके और पुतिन के बीच रूस और यूक्रेन में दो साल से अधिक समय से चल रहे युद्ध को सुलझाने के लिए बातचीत की गई। चीन ने कभी भी सार्वजनिक रूप से रूस के यूक्रेन पर आक्रमण का समर्थन नहीं किया।

रूस और चीन के इस समझौते से पूरी दुनिया में हलचल है। दरअसल, रूस और चीन एक जैसी मानसिकता वाले देश हैं।रूस एक ऐसा देश है जो वर्तमान में यूक्रेन पर आक्रमण कर रहा है जबकि दूसरा चीन भारतीय क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ का दोषी है। दोनों को लोकतांत्रिक ताइवान से भी समस्या है। चीन, ताइवान को लगातार डराता रहता है। उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया के साथ अन्याय हुआ है। कुल मिलाकर कहें तो, दोनों देश दुनियाभर में अराजकता के एक बड़े हिस्से के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। इस बीच सवाल ये उठता है कि चीन और रूस के बीच के ये संबंध भारत को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

चीन आज भारत का मुख्य रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी है, जबकि रूस के साथ हमारे ऐतिहासिक रक्षा संबंध हैं। लेकिन बीजिंग और मॉस्को की तरफ से अपने रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के साथ, भारत रूसी प्लेटफार्मों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकती है। हथियार प्रणालियों में चल रहे विविधीकरण को तेज किया जाना चाहिए। इसकी वजह है कि भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति में, रूस अधिक से अधिक तटस्थ रहेगा या सबसे बुरी स्थिति में बीजिंग की सहायता करेगा। साथ ही, भारत के पास अभी भी अकेले लड़ने के लिए एकजुट ताकत नहीं है। इसलिए, हमें पश्चिम के साथ और अधिक निकटता से काम करना होगा। अब मास्को के साथ हमारे रणनीतिक संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करने का समय आ गया है।