महिलाओं और बुजुर्गों के बाद केजरीवाल का बच्चों को तोहफा, दलित छात्रों के लिए स्कॉलरशिप का ऐलान

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी जनता को अपने पाले में करने के लिए हर दांव आजमा रही है। पहले महिलाएं फिर बुजुर्ग और अब बच्चों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपना पिटारा खोला है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दलित समाज के लिए बड़ी घोषणा की है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दलित छात्रों के लिए डॉ. आंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप योजना का एलान किया है।

अंबेडकर विवाद के जवाब में केजरीवाल का दांव

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिल्ली में दलित छात्रों के लिए डॉ आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान किया है। इस दौरान केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 3 दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने बाबा साहेब अंबेडकर का मजाक उड़ाया। केजरीवाल ने कहा कि बाबा साहेब जब जिंदा थे तब भी पूरे जीवन में उनका मजाक उड़ाया करते थे। संसद बाबा साहेब की वजह से है और उस संसद से मजाक उड़ाया जाएगा किसी सोचा नहीं होगा। उसकी हम निंदा करते हैं लेकिन उसके जवाब में मैं बाबा साहेब के सम्मान में एक बड़ी घोषणा कर रहा हूं। आज मैं चाहत हूं कि कोई भी दलित समाज का बच्चा पैसे की कमी की वजह से उच्च शिक्षा से वंचित ना रह जाए।

विदेशी यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई का खर्ज उठाएगी आप सरकार

केजरीवाल ने कहा कि आज मैं डॉक्टर आंबेडकर स्कॉलरशिप का ऐलान करता हूं, जिसके तहत दलित समाज का कोई भी बच्चा दुनिया की किसी भी टॉप की यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहेगा तो वो बच्चा उस यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले। बस उसका सारा पढ़ाई लिखाई का खर्चा दिल्ली सरकार वहन करेगी।

रूस में 9/11 जैसा हमला, कजान में कई इमारतों को बनाया गया ड्रोन से निशाना

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ताजा हमले में यूक्रेन की सेना ने रूस के कजान शहर में विस्‍फोटकों से भरे ड्रोन से भीषण हमला बोला है। अमेरिकी मदद और विनाशकारी मिसाइलों के इस्तेमाल की बाइडेन प्रशासन से इजाजत मिलने के बाद यूक्रेन और ज्यादा घातक हो गया है। रूस में कजान शहर में 9/11 जैसा हमला हुआ है। यूक्रेन सेना ने कजान की 6 इमारतों पर ड्रोन अटैक किया हमले के बाद पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। यह वही शहर है जहां पिछले दिनों ब्रिक्‍स देशों की श‍िखर बैठक हुई थी और भारत के पीएम मोदी समेत दुन‍िया के कई नेता पहुंचे थे।

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ये हमले यूक्रेन की तरफ से किए गए हैं। बताया जा रहा है कि यूक्रेन के 8 विस्‍फोटक ड्रोन विमानों ने रूस के कजान शहर में हमला किया। शुरुआती जानकारी के मुताबिक, ड्रोन्स ने कामलेव एवेन्यू, क्लारा ज़ेटकिन स्ट्रीट, युकोज़िंस्काया, खादी तक्ताश और क्रास्नाया पॉज़ित्सिया की इमारतों को निशाना बनाया। दो और ड्रोन ने ऑरेनबर्गस्की ट्रैक्ट स्ट्रीट पर एक घर को निशाना बनाया है।

यह हमला अमेरिका में साल 2001 में हुए 11 सितंबर जैसे हमले की तरह किया गया है। इस हमले में हुए नुकसान की अभी जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन जिस तरह से ड्रोन्स रिहायशी इमारतों से टकराए हैं और इमारतों में धमाके हुए और आग लगी, उससे बड़े नुकसान की आशंका है। हमले के वीडियो भी सामने आए हैं।

ड्रोन्स हमलों के बाद कजान एयरपोर्ट पर हवाई सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं। कजान शहर रूस की राजधानी मॉस्को से करीब 800 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। कजान की छह रिहायशी इमारतों पर ये ड्रोन हमले हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कजान शहर यूक्रेन की सीमा से करीब 900 किलोमीटर पूर्व में स्थित है और पूर्व में भी यूक्रेन की तरफ से कजान में ड्रोन हमले किए गए हैं

इससे पहले रूस ने शुक्रवार तड़के यूक्रेन की राजधानी कीव पर बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि नौ अन्य घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। दूसरी ओर, रूस ने कहा कि यूक्रेन के हमले के जवाब में यह कार्रवाई की गई है।

पाकिस्तान में बड़ा आतंकी हमला, खैबर पख्तूनख्वा में हुए धमाके में 16 सैनिकों की मौत

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पाकिस्तान में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। खैबर पख्तूनख्वा में हुए इस हमले में 16 सैनिकों की मौत हो गई है जबकि 8 घायल बताए जा रहे हैं। यह हमला दक्षिण वजीरिस्तान के माकिन के लिटा सर इलाके में पाकिस्तान की सुरक्षा चौकी पर हुआ है। हमले के बाद सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी कर दी है और तलाशी अभियान जारी है।

किसी भी संगठन ने फिलहाल इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। पाकिस्तान में अफगानिस्तान से लगती सीमा पर लगातार आतंकी हमले देखे जा रहे हैं। यहां तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के आतंकी आए दिन हमला करते रहते हैं। इससे पहले 5 अक्तूबर को कई आतंकी हमलों में 16 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई थी। खुर्रम जिले में हमले में सात सैनिक मारे गए थे, वहीं दो लोग घायल हुए थे। विश्व स्तर पर नामित आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने कथित तौर पर हिंसा की जिम्मेदारी ली थी।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक खैबर पख्तूनख्वा में टीटीपी के नेतृत्व वाले तीव्र हमलों और बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादी जातीय बलूच विद्रोहियों के परिणामस्वरूण अकेले इसी साल सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई।

पाकिस्तान इन हमलों के लिए तहरीक ए तालिबान को ठहराता रहा है। साथ ही यह भी आरोप लगाता है कि अफगान तालिबान सरकार अफगानिस्तान में टीटीपी के लड़ाकों को पनाह दे रहे हैं। हाल ही में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मुख्यमंत्री अली अमीन गंदापुर ने कहा था कि अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान सरकार के साथ बातचीत ही क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने का एकमात्र तरीका है।

अडाणी-अंबेडकर मुद्दे की भेंट चढ़ा संसद का शीतकालीन सत्र, जानें 20 दिनों में कितना काम-कितना नुकसान

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18वीं लोकसभा का शीतकालीन सत्र शुक्रवार (20 दिसंबर) को समाप्त हो गया। यह सत्र 25 नवंबर से शुरू हुआ था जो 20 दिसंबर तक चला। इस दौरान अलग-अलग मुद्दों को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। धक्का-मुक्की तक हो गई। बीजेपी के दो सांसद घायल हो गए। राहुल गांधी पर केस भी दर्ज हुआ। संसद के शीतकालीन सत्र में 20 दिन का कामकाज हुआ। इस दौरान पूरे सत्र में कुल 20 बैठकें हुईं। दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में लगभग 105 घंटे कार्यवाही चली।

सत्र के दौरान लोकसभा की प्रोडक्टिविटी 57.87%, राज्यसभा में 41% रही। सदन में कुल चार बिल पेश किए गए। हालांकि, कोई पारित नहीं हो सका। सबसे चर्चित एक देश, एक चुनाव के लिए पेश हुआ 129 वें संविधान (संशोधन) बिल रहा। बिल को 39 सदस्यीय जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) को भेज दिया गया है।

20 में से 12 दिन लोकसभा में प्रश्न काल 10 मिनट से ज्यादा नहीं चला

संविधान पर चर्चा के दौरान लोकसभा में 16 घंटे जबकि राज्यसभा में 17 घंटे बहस हुई। चर्चा के लिए लोकसभा ने शनिवार की छुट्टी के दिन भी काम हुआ। वहीं, लेजिस्लेटिव थिंक टैंक पीआरएस इंडिया के अनुसार 20 दिनों की कार्यवाही में से लोकसभा में 12 दिन प्रश्न काल 10 मिनट से ज्यादा नहीं चल सका।

राज्यसभा में 43 प्रतिशत ही कामकाज हो सका

सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले बताया कि राज्यसभा के 266वें सत्र में 43 प्रतिशत ही कामकाज हो सका। उन्होंने कहा कि सदन में कुल 43.27 घंटे ही प्रभावी कार्यवाही हुई, जिसमें दो विधेयक पारित किए गए और भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री का बयान हुआ।

शीतकालीन सत्र में 84 करोड़ का नुकसान

20 दिन संसद के शीतकालीन सत्र में कामकाज ना होने का अनुमानित नुकसान 84 करोड़ है। ये पैसे आपकी और हमारे टैक्स से जुटाए जाते हैं। संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट करीब 2.50 लाख रुपये खर्च होते हैं। लोकसभा और राज्यसभा में कामकाज के घंटे गिने जाए तो लोकसभा में 61 घंटे 55 मिनट काम हुआ तो राज्यसभा में 43 घंटे 39 मिनट कामकाज हुआ। लोकसभा में 20 बैठकें और राज्यसभा में 19 बैठकें हुई। यह तो हुई नुकसान के आंकड़ों की बात, लेकिन इस बार सत्र में एक और रिकॉर्ड बना है। हालांकि इस रिकॉर्ड का परिणाम सुखद नहीं है। 1999 से 2004 के बीच 13वीं लोकसभा में दो सत्रों के दौरान 38 बिल पेश किए गए, जिनमें से 21 पास हुए 2004 से 2009 के दौरान 14वीं लोकसभा में 30 बिल पेश हुए 10 पास हो गए।

भारतीय सेना की ताकत और बढ़ेगी, आर्मी को मिलेंगे और के9 वज्र-टी आर्टिलरी गन, 7600 करोड़ की डील

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भारतीय सेना की ताकत में और इजाफा होने वाला है। रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को L&T के साथ 7,629 करोड़ रुपये का करार किया है। इसके तहत 100 और के-9 वज्र-टी सेल्फ-प्रोपेल्ड ट्रैक्ड गन सिस्टम खरीदे जाएँगे। इन तोपों को चीन से लगी सीमा पर ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात किया जा सकता है। ये तोपें 28-38 किमी तक मार कर सकती हैं। ये पहले से मौजूद 100 के-9 वज्र-टी तोपों के अलावा होंगी।

रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह की मौजूदगी में शुक्रवार को कंपनी के प्रतिनिधियों और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।मंत्रालय के बयान में कहा गया है, के-9 वज्र-टी की खरीद देश के तोपखाने के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देगी और भारतीय थलसेना की संचालन तैयारियों को बढ़ाएगी। यह बहुउद्देशीय तोप, किसी भी रास्ते पर चलने की अपनी क्षमता के साथ, भारतीय सेना की मारक क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। साथ ही सटीकता के साथ गहरी मारक क्षमता को बढ़ाएगी।

अगले 4-5 सालों में सेना में शामिल हो जाएंगी नई तोपें

नई तोपें अगले चार-पांच सालों में सेना में शामिल हो जाएंगी। इनमें कई नई तकनीकें होंगी। ये ज्यादा दूर तक, ज्यादा सटीक और तेजी से गोले दाग सकेंगी। ये बेहद ठंडे मौसम में भी काम कर सकेंगी।

दुश्मन के ठिकानों को मार गिराने में सक्षम

यह लंबी दूरी पर सटीक और घातक मारक क्षमता के जरिए गहराई तक वार करने में सक्षम होगी। यह ऊंचाई वाले इलाकों में माइनस डिग्री तापमान पर भी पूरी क्षमता से फायरिंग करने और सेना की जरूरत के मुताबिक सभी तरह के ऑपरेशन करने में सक्षम है।यह शून्य से कम तापमान में भी काम कर सकती है जिससे ऊंचे पहाड़ी इलाकों में इसका इस्तेमाल हो सकता है। यह परियोजना मेक इन इंडिया योजना के तहत चार साल की अवधि में 9 लाख से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करेगी।

जानिए इसकी खासियतें

• दक्षिण कोरियाई हॉवित्जर के-9 थंडर का भारतीय संस्करण हैं के-9 वज्र स्वचालित तोप

• 38 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली के-9 जीरो रेडियस पर चारों तरफ घूमकर करती है वार

• 155 एमएम/52 कैलिबर की 50 टन वजनी तोप से फेंका जाता है 47 किलो का गोला

• 15 सेकंड के अंदर 3 गोले दागने की है क्षमता, सड़क और रेगिस्तान में बराबर संचालन क्षमता

मेक इन इंडिया से निर्माण, 80 फीसदी स्वदेशी

• दक्षिण कोरियाई कंपनी हान्वा टेकविन ने दी तकनीक, एलएंडटी ने किया निर्माण

• मई, 2017 में रक्षा मंत्रालय ने वैश्विक बोली के जरिये दिया था एलएंडटी को ऑर्डर

• 4500 करोड़ रुपये में 100 के-9 वज्र निर्मित करने का दिया गया था ऑर्डर

• गुजरात के हजीरा में इसके लिए जनवरी, 2018 में शुरू की गई निर्माण इकाई

• नवंबर, 2018 में भारतीय सेना में शामिल की गई थी पहली के-9 वज्र हॉवित्जर

• 80 फीसदी स्वदेशी कार्य पैकेज के निर्माण में 1000 एमएसएमई कंपनियों ने बनाए पुर्जे

• 13000 से ज्यादा पुर्जे हर तोप के लिए चार राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु में बनाए गए

43 साल बाद किसी भारतीय पीएम का कुवैत दौरा, दो दिन में 7 देशों को साधेंगे

#pm_modi_kuwait_visit

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दो दिवसीय दौरे पर कुवैत के दौरे पर रवाना हो चुके हैं। मोदी दो दिवसीय दौरे पर कुवैत जा रहे हैं। पीएम मोदी का ये दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि 43 साल बाद ये पहला मौका है जब किसी भारतीय पीएम का कुवैत दौरा हो रहा है। पीएम मोदी 21 और 22 दिसंबर को कुवैत के दौरे पर रहेंगे। कुवैत के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के बुलावे पर प्रधानमंत्री मोदी वहां जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी अपनी कुवैत यात्रा के दौरान कुवैत के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबेर अल-सबाह से द्विपक्षीय बातचीत करेंगे। पीएम अपनी यात्रा में कुवैत के लीडर्स से द्विपक्षीय बातचीत के अलावा भारतीय समुदाय का भी हालचाल जानेंगे। भारत और कुवैत के बीच रिश्तों को और मजबूत करने में प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा का बड़ा योगदान होगा क्योंकि कुवैत भारत के टॉप ट्रेडिग पार्टनर में से एक है।

पीएम मोदी कुवैत की इस यात्रा से अरब के सात देशों को साधने की भी कोशिश कर रहे हैं। भारत और मिडिल-ईस्ट के देशों एनर्जी और गैस सहित कई तरह के कारोबार पर निर्भर हैं। अरब मुल्क कई कारणों से भारत को अहमियत देते हैं। यही वजह है कि कुवैत की इस यात्रा को जोड़ दें तो यह चौंदहवी बार होगा जब पीएम मोदी अरब के किसी देश का दौरा कर रहे हैं। इससे पहले वह दो बार कतर और सऊदी अरब, एक बार ओमान और बहरीन, जबकि सात बार संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा कर चुके हैं।

इंदिरा गांधी ने 1981 में की थी कुवैत यात्रा

प्रधानमंत्री मोदी से पहले साल 1981 में इंदिरा गांधी ने कुवैत की यात्रा की थी, जबकि साल 2013 में कुवैत के प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए थे। हालांकि, इस बीच भारत की तरफ से उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने साल 2009 में कुवैत की यात्रा की थी। भारत और कुवैत के द्विपक्षीय संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं और कोरोना काल के दौरान भी दोनों देश एक-दूसरे के साथ खड़े थे और एक-दूसरे की मदद की थी। भारत ने कुवैत में मेडिकल टीम भेजा था, जबकि कुवैत ने भारत को लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन और ऑक्सीजन सिलेंडर की सप्लाई की थी।

भारत ने बांग्लादेश के नेता की टिप्पणी पर ढाका के समक्ष 'कड़ा विरोध' दर्ज कराया

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने गुरुवार को कहा कि भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक प्रमुख सहयोगी महफूज आलम द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों पर ढाका के समक्ष 'कड़ा विरोध' दर्ज कराया है। पड़ोसी देश के नेताओं को आगाह करते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि नई दिल्ली "सभी संबंधित पक्षों को उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों के प्रति सचेत रहने की याद दिलाना चाहता है"। जायसवाल ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ संबंधों को बढ़ावा देने में भारत की रुचि की अभिव्यक्ति को दोहराया। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियां "सार्वजनिक अभिव्यक्ति में जिम्मेदारी की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं"।

बांग्लादेश की ओर से हम समझते हैं कि जिस पोस्ट का उल्लेख किया जा रहा है, उसे कथित तौर पर हटा दिया गया है। हम सभी संबंधित पक्षों को उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों के प्रति सचेत रहने की याद दिलाना चाहेंगे। जायसवाल ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "जबकि भारत ने बार-बार बांग्लादेश के लोगों और अंतरिम सरकार के साथ संबंधों को बढ़ावा देने में रुचि दिखाई है, ऐसी टिप्पणियां सार्वजनिक अभिव्यक्ति में जिम्मेदारी की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।" पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अब डिलीट हो चुके फेसबुक पोस्ट में आलम ने कहा कि भारत को उस विद्रोह को पहचानना चाहिए जिसने शेख हसीना को बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन का सामना करने के बाद हसीना को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। अगस्त में वह एक सैन्य विमान में ढाका से भाग गई, क्योंकि भीड़ ने राजधानी शहर में उसकी सुरक्षा को खतरा बताया था। देश से भागने के बाद, भीड़ ने उसके घर में तोड़फोड़ की। नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के गठन के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध तनावपूर्ण हैं।

नई दिल्ली ने गुरुवार को बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की और कहा कि ढाका में अंतरिम सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी उनके जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना है। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में यह टिप्पणी विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बांग्लादेश दौरे के एक पखवाड़े से भी कम समय बाद की है, जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्यवाहक प्रशासन के सदस्यों को इस मुद्दे पर भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

सिंह ने कहा, "बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में भारत की चिंताओं को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के अधिकारियों को विभिन्न अवसरों पर, उच्चतम स्तर पर भी, अवगत कराया गया है और दोहराया गया है।"

43 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का कुवैत दौरा, पीएम मोदी की ये यात्रा कितनी अहम?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 और 22 दिसंबर को मुस्लिम देश कुवैत के दौरे पर रहेंगे. उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच पहले से ही अच्छे संबंधों में और मजबूती आएगी। मोदी कुवैत के अमीर शेख मिशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के न्योते पर वहां जा रहे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री 43 साल बाद कुवैत के दौरे पर जा रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी से पहले साल 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कुवैत के दौरे पर गई थीं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे पर दोनों देशों के अलावा दुनिया की भी नजर है। पीएम मोदी कुवैत में वहां के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के साथ बातचीत के साथ अलावा भारतीय समुदाय के लोगों से भी मुलाकात करेंगे। भारत के विदेश मंत्राैलय ने उम्मीद जताई है कि पीएम मोदी यह दौरा भारत और कुवैत के बीच संबंधों को बेहतर करेगा।

कुवैत इस समय गल्फ कॉर्पोरेशन काउंसिल (जीसीसी ) का अध्यक्ष है। जीसीसी में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सऊदी अरब, ओमान और कतर जैसे देश शामिल हैं। इनमें कुवैत ही अकेला जीसीसी सदस्य है, जहां नरेंद्र मोदी 2014 में पीएम बनने के बाद से अब तक नहीं गए हैं। कुवैत के लिए भारत शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है। भारत और कुवैत के बीच ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। कुवैत में भारतीय समुदाय सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। कुवैत में करीब 10 लाख भारतीय रहते हैं। ये दोनों देशों के बीच एक पुल की तरह काम करते रहे हैं।

कैसे हैं भारत-कुवैत संबंध?

भारत और कुवैत के रिश्ते प्राचीन काल से ही मजबूत रहे हैं, जब कुवैत का आर्थिक तंत्र समुद्री व्यापार पर निर्भर था। भारत से कुवैत आने-जाने वाले व्यापारिक जहाजों के माध्यम से लकड़ी, अनाज, कपड़े और मसाले कुवैत भेजे जाते थे, जबकि कुवैत से खजूर, अरब घोड़े और मोती भारत भेजे जाते थे। भारतीय रुपया कुवैत में 1961 तक कानूनी मुद्रा था, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की स्थिरता का प्रतीक है।

भारत और कुवैत के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध 1961 में स्थापित हुए थे। इसके बाद से दोनों देशों के बीच कई उच्चस्तरीय दौरे हुए, जिनमें भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन (1965), प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1981) और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी (2009) शामिल हैं। कुवैत से भी कई महत्वपूर्ण दौरे हुए, जिनमें शेख सबा अल-आहमद अल-जाबेर अल-सबा (2006) और प्रधानमंत्री शेख जाबेर अल-मुबारक अल-हमद अल-सबा (2013) शामिल हैं। 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुवैत के क्राउन प्रिंस के बीच न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान मुलाकात हुई। इसके अलावा भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 18 अगस्त 2024 को कुवैत का दौरा किया।

कुवैत भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार

कुवैत भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में शामिल है। 2023-24 वित्तीय वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार 10.47 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। कुवैत भारत का 6वां सबसे बड़ा कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता है, जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का 3% पूरा करता है। कुवैत के लिए भारत का निर्यात पहली बार दो अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जबकि भारत में कुवैत निवेश प्राधिकरण का निवेश 10 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है।

तनाव भी हुआ, पर जल्द सुलझ गए मसले

हालांकि 1990 के दशक में कुवैत पर इराक के हमले के दौरान भारत के साथ उसके संबंधों में थोड़ा तनाव आया, क्योंकि इराक को भारत का समर्थन हासिल था। इसके अलावा अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद भी संबंधों पर असर पड़ा था। लेकिन भारत ने जल्द ही दोनों देशों के बीच बनी खाई को पाटने में कामयाबी पा ली। साल 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने कुवैत की मदद में उदारता दिखाई, उससे संबंधों को नई मजबूती मिली। भारत ने कोविड से निपटने के लिए 15 सदस्यों की क्यूआरटी यानी त्वरित प्रतिक्रिया टीम कुवैत भेजी। जवाब में मई, 2021 में कोविड की दूसरी लहर के दौरान कुवैत ने लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और वेंटिलेटर भारत भेजे।

वर्ल्ड मेडिटेशन डे पर श्री श्री रविशंकर का संयुक्त राष्ट्र में होगा संबोधन, 21 दिसंबर भारत के लिए होगा ऐतिहासिक दिन

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संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व ध्यान दिवस" पर भारत के मशहूर अध्यात्मिक संत श्री श्री रविशंकर को मुख्य व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया है। श्री श्री रविशंकर 21 दिसंबर दिन शनिवार को इस सबसे बड़े वैश्विक मंच पर दुनिया को भारत की अध्यात्मिक ताकत से अवगत कराएंगे। पूरी दुनिया के लिए वैश्विक ध्यान के लिहाज से श्री श्री रविशंकर का यह भाषण बेहद ऐतिहासिक होने जा रहा है। श्री श्री रविशंकर की दुनिया भर में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक के तौर पर उनकी ख्याति है।1982 में 10 दिनों के गहरे मौन के दौरान उन्होंने सुदर्शन क्रिया की खोज की, जो आर्ट ऑफ लिविंग का मूल आधार है।

न्यूयॉर्क स्थित यूनाइटेड नेशन में स्थित परमानेंट मिशन के ने वर्ल्ड मेडिटेशन डे से जुड़ा बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के मुताबिक 21 दिसंबर 2024 को पहली बार वर्ल्ड मेडिटेशन डे मनाया जाएगा। इस अवसर पर गुरुदेव श्री श्री रविशंकर का संबोधन होगा। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का विषय "वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए ध्यान" होगा। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर से लेकर यूरोपीय संसद और मलेशिया के दूतावासों तक, दुनिया में तमाम देशों में सभी को इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनने का खास अवसर है।

दुनिया के सबसे बड़े इस मंच पर संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस पर व्याख्यान देने के लिए आखिरकार श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना? इसके पीछे भी खास वजह है। संयुक्त राष्ट्र ने यह स्वीकार किया है कि विश्व कल्याण का नेतृत्व करने वाला भारत दुनिया का इकलौता देश है। क्योंकि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व कल्याण का नेतृत्व कर रहा है। भारत की छवि विश्व बंधु के रूप में उभरी है। किसी भी देश पर संकट, आपदा या आपातकाल की स्थिति में मदद करने वालों की लिस्ट में भारत प्रथम उत्तरदाता रहा है। इसलिए भारत के संत श्री श्री रवि शंकर को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस के मौके पर प्रमुख व्याख्यान के लिए चुना है। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में प्रथम विश्व ध्यान दिवस के उद्घाटन सत्र के दौरान आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मुख्य भाषण देंगे। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

यूएन के अधिकारियों ने कहा कि भारत ने 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने की पहल का नेतृत्व करके वैश्विक कल्याण में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया। विश्व ध्यान दिवस का आगाज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुआ है। बता दें कि पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में किया गया यह ऐतिहासिक प्रयास, विश्व के साथ अपने प्राचीन ज्ञान को साझा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि यह तिथि भारतीय परंपरा के अनुसार उत्तरायण शुरू होने पर पड़ती है, जो वर्ष का एक शुभ समय है और 21 जून को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का पूरक है। ऐसे में श्री श्री रविशंकर द्वारा दिया जाने वाला यह व्याख्यान बेहद ऐतिहासिक होगा।

राहुल या ममता कौन है पीएम मोदी के टक्कर का राष्ट्रीय चेहरा?
#rahul_or_mamta_who_is_national_face_to_compete_with_pm_modi *

* लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहुर का रास्ता दिखान के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन हुआ था। साल 2023 में जुलाई के महीने में 'इंडिया' गठबंधन की नींव रखी गई थी। तब सबसे बड़ा सवाल था कि गठबंधन का चेहरा कौन होगा। कांग्रेस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी थी इसलिए राहुल गांधी का नाम पर सभी सहमत हुए। हालांकि, ममता बनर्जी भी अप्रत्यक्ष रूप से दावेदारी में पीछे नहीं थे। इस साल जून में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो यह सवाल कुछ दिनों के लिए उठना बंद हो गया था। हालांकि, हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद ये प्रश्न फिर से खड़ा हो गया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के खराब प्रदर्शन ने विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व संकट को और गहरा कर दिया। संसदीय चुनाव में इन दोनों राज्यों में 'इंडिया' गठबंधन का प्रदर्शन अच्छा रहा था।इंडिया गठबंधन ने 234 सीटें जीती थीं और कांग्रेस की इसमें 99 सीटों की हिस्सेदारी थी। इसके बाद कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर गठबंधन के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही हैं। *राहुल को लेकर बदल रहे सहयोगियों के सुर* पिछले बीस साल से कांग्रेस के सहयोगी रहे लालू यादव के तेवर भी बदल चुके हैं।लालू यादव का भी कहना है कि, ममता को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व दे देना चाहिए। पत्रकारों ने जब उनसे कहा कांग्रेस ने ममता को नेतृत्व देने की मांग पर आपत्ति जताई है तो उन्होंने कहा, कांग्रेस के विरोध से कुछ नहीं होने वाला है। ममता को नेतृत्व दिया जाना चाहिए। लोकसभा चुनाव से पहले लालू ने राहुल की शादी को लेकर कहा था कि आप दूल्हा बनिए, हम बाराती बनने के लिए तैयार हैं। राजनीति के जानकारों ने उस समय लालू के इस बयान को इंडिया गठबंधन के नेतृत्व से जोड़कर भी देखा था। वहीं लालू आज ममता बनर्जी की वकालत कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन में 37 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरा सबसे बड़ा दल है और अखिलेश यादव की ममता बनर्जी से राजनीतिक नज़दीकियां किसी से छिपी नहीं हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस और सपा के बीच तनातनी भी देखने को मिली थी। सपा ने भी ममता के नाम का समर्थन किया है।शरद पवार इस मुद्दे पर पहले ही ममता का समर्थन कर चुके हैं। टीम “इंडिया” में कैप्टन की कुर्सी को लेकर अंदरूनी झगड़े के बीच सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल गांधी और ममता बनर्जी में कौन प्रधानमंत्री मोदी की टक्कर में राष्ट्रीय चेहरा साबित हो सकता है। *बंगाल में मजबूत हुईं ममता* इंडिया गठबंधन के नाते के रूप में ममता बनर्जी के दावेदारी की बात करें तो, जहां कांग्रेस बीजेपी के मुक़ाबले कई मोर्चों पर कमज़ोर साबित हुई है वहीं ममता के नेतृत्व में टीएमसी ने बीजेपी को लगातार चुनौती दी है। 2014 में जब मोदी ने पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब बीजेपी बंगाल में सिर्फ़ दो सीटें जीत पाई थी। इस चुनाव में ममता ने 34 सीटें जीती थीं। 2016 में ममता ने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता और मुख्यमंत्री बनी रहीं। इसके बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल पर अपना फ़ोकस बढ़ाया और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका फायदा भी मिला। बीजेपी ने 18 सीट जीतीं और टीएमसी के खाते में 22 आईं। टीएमसी को 12 सीटों का नुक़सान हुआ लेकिन अब भी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी टीएमसी ही थी। दो साल बीद 2021 में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाया। चुनाव से पहले कई नेता तृणमूल कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में चले गए। इसमें सुवेंदु अधिकारी जैसे बड़े नेता भी शामिल थे।लेकिन ममता ने राज्य में वापसी करते हुए 200 से ज़्यादा सीटें जीतीं और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी थीं। 2024 का लोकसभा चुनाव उन्होंने अकेले लड़ा और सबसे ज़्यादा 29 सीटें जीतीं। इसके बाद टीएमसी सीटों के मामले में चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। *तीन बार सीएम रहकर भी बंगाल का हाल* हालांकि, ऐसा नहीं है कि ममता अपने राज्य के बाहर भीड़ खींचने वाली नेता हैं। न ही ऐसा कोई सबूत है कि कोलकाता में पिछले 13 सालों में उनका शासन प्रेरणादायक रहा है। मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का इस्तेमाल खुद को कुशल प्रशासक के तौर पर स्थापित करने के लिए किया था। ममता के लंबे कार्यकाल से बंगाल की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। उनकी शानदार चुनावी सफलता के पीछे मुस्लिम समर्थन, दबंग रणनीति का हाथ है। खुशकिस्मती से यह फॉर्मूला भारत के ज्यादातर हिस्सों में काम नहीं कर सकता।तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव बंगाल से बाहर नहीं है। ममता दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेताओं के लिए खतरा नहीं मानी जाती हैं।