पीएम मोदी के विमान में आई तकनीकी खराबी, देवघर एयरपोर्ट पर रुका प्लेन

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झारखंड में चुनावी रैली के लिए पहुंचे पीएम मोदी के विमान में तकनीकी खराबी आ गई। इस वजह से विमान को देवघर हवाई अड्डे पर ही रोकना पड़ा। इससे उनकी दिल्ली वापसी में कुछ देरी हुई।पीएम मोदी का विमान रुकने से एयर ट्रैफिक पर असर पड़ा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज झारखंड-बिहार सीम से लगते जमुई के दौरे पर थे और उन्हें देवघर एयरपोर्ट से वापस दिल्ली लौटना था। लेकिन, ऐन वक्त पर उनके विमान में तकनीकी खराबी आ गई जिसके चलते उन्हें कुछ देर देवघर एयरपोर्ट पर रुकना पड़ा।

प्रधानमंत्री जमुई के चाकई में सभा करने के बाद देवघर लौट रहे थे, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण विमान उड़ान नहीं भर सका। इससे एयर ट्रैफिक ब्लॉक हो गया, जिसका असर अन्य उड़ानों पर भी पड़ा। बता दें कि पीएम मोदी हमेशा एयर फोर्स के स्पेशल विमान से ही ट्रैवल करते हैं। वायुसेना के विशेष विमान के साथ दो और विमान भी पीएम मोदी के साथ यात्रा के दौरान होते हैं। एक में एसपीजी और दूसरे में अन्य तकनीकी सदस्य होते हैं।

राहुल गांधी का हेलीकॉप्टर गोड्डा में फंसा

जहां एक ओर देवघर में पीएम मोदी के विमान में तकनीकी खराबी आ गई वहीं लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी का हेलीकॉप्टर झारखंड के गोड्डा में फंस गया। एटीएस ने उनके हेलीकॉप्टर को उड़ान भरने की इजाजत नहीं दी। करीब आधे घंटे तक उनका हेलीकॉप्टर खड़ा रहा। कांग्रेस ने इसके लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराया है।

आईसीसी ने पाकिस्तान को दिया बड़ा झटका, चैंपियंस ट्रॉफी नहीं जाएगी PoK

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चैंपियंस ट्रॉफी 2025 का आयोजन पाकिस्तान में होना है। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 से पहले एक बड़ा बवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी को इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल ने दुबई से इस्लामाबाद भेज दिया है। अब पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड इस ट्रॉफी के टूर के लिए तैयार है। यानी इस ट्रॉफी को पाकिस्तान की अलग-अलग जगहों पर फैंस के बीच लेकर जाया जाएगा। चैंपियंस ट्रॉफी के टूर का ऐलान भी हो चुका है। इसी बीच आईसीसी ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को बड़ा झटका दिया है।आईसीसी ने फैसला सुनाया है कि चैंपियंस ट्रॉफी को पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में नहीं घुमाया जा सकता।इससे पहले पाकिस्तान ने कहा था कि वह आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी की ट्रॉफी पीआके में घुमाएगा। इसपर भारत ने आपत्ति जताई थी।

चैंपियंस ट्रॉफी 2025 को लेकर माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया है। भारत ने इस टूर्नामेंट के लिए पाकिस्तान का दौरा करने से साफ मना कर दिया था। बीसीसीआई ने आईसीसी को इस बात की जानकारी दी थी कि वह चैंपियंस ट्रॉफी के लिए किसी भी कीमत पर पाकिस्तान का दौरा नहीं करेंगे। तब से पाकिस्तान आईसीसी से इसके पीछे का कारण मांग रहा है। जबकि बीसीसीआई ने सुरक्षा कारणों का हवाला पहले ही दे दिया है। इसी बीच पाकिस्तान ने चैंपियंस ट्रॉफी के टूर का आयोजन किया था। जोकि पीओके के तीन शहरों में जाने की बात थी, लेकिन अब आईसीसी ने उन्हें साफ तौर पर मना कर दिया है कि चैंपियंस ट्रॉफी कोई भी विवादित स्थान पर नहीं जाएगी।

पीसीबी ने चैंपियंस ट्रॉफी को देशभर में घुमाने संबंधी ऐलान गुरुवार को किया था। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने बयान जारी कर कहा था, ‘पाकिस्तान, तैयार हो जाओ. आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 की ट्रॉफी देशभर में घुमाई जाएगी। इसकी शुरुआत 16 नवंबर को इस्लामाबाद से होगी। बाद में यह ट्रॉफी स्कार्दु, हुंजा और मुजफ्फराबाद भी ले जाई जाएगी।’

जैसे ही पाकिस्तान ने इस बात का ऐलान किया वैसे ही बीसीसीआई ने आपत्ति जताई और आईसीसी ने इस पर तुरंत एक्शन लेते हुए पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को मना कर दिया कि वह ट्रॉफी को किसी भी विवादित स्थान पर नहीं ले जा सकते हैं।

चैंपियंस ट्रॉफी पर अब तक काफी बवाल हो चुका है। टीम इंडिया टूर्नामेंट के लिए पाकिस्तान नहीं जाएगी। इसको लेकर पीसीबी में काफी हलचल मची हुई है। टीम इंडिया के पाकिस्तान जाने से इनकार करने और उसके जवाब में पाकिस्तान का हाइब्रिड मॉडल के लिए तैयार नहीं होने के कारण शेड्यूल के ऐलान में देरी हो रही है। टूर्नामेंट का आयोजन अगले साल 19 फरवरी से 9 मार्च तक होगा। लेकिन अभी तक शेड्यूल जारी नहीं हुआ है।

बीजेपी के विरोध के बाद भी नवाब मलिक को क्यों दिया टिकट? अजीत पवार ने बताई वजह

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। यहां विधानसभा के लिए 20 नवंबर को मतदान होने वाला है। सभी पार्टियां जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। वहीं, वोटर्स को लुभाने की कोशिश में महाराष्ट्र सरकार और महायुति के सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अजीत पवार गुट भी लगी हुई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत पवार) ने दाऊद इब्राहिम के करीबी और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल जाने वाले नवाब मलिक को मानखुर्द शिवाजी नगर सीट से टिकट दिया है। सहयोगी दलों के नहीं चाहने के बाद भी अजीत पवार ने नवाब मलिक को अंतिम समय टिकट दे ही दिया। अब अजीत पवार ने इस मामले में अपनी सफाई दी है।

अजित पवार ने एनसीपी से नवाब मलिक को टिकट क्यों दिया, इस बारे में भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, मैं उम्मीदवार देने के समय मुस्लिम समाज को अपनी पार्टी के कोटे से 10 फीसदी टिकट देने का वादा किया था। मुम्ब्रा से नजीमुल्लाह को उम्मीदवार बनाया, नवाब मलिक को टिकट दिया। इस बात का बहुत से लोगों ने विरोध किया, फिर भी मैंने टिकट दिया और प्रचार में भी गया। उनकी बेटी सना को भी टिकट दिया गया है। इसके अलावा, बाबा सिद्दीकी के बेटे ज़ीशान सिद्दीकी को भी चुनावी मैदान में उतारा है। हसन मुशरिफ और शेख को भी एनीसीपी प्रत्याशी बनाया गया है।

बीड जिले में चुनाव प्रचार करने पहुंचे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने अपनी चुनावी जनसभा के दौरान यह दावा किया कि उनकी पार्टी से 10 फीसदी मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। अजीत पवार ने कहा, मैंने उम्मीदवार तय करने के दौरान मुस्लिम समाज का भी ख्याल रखा। मैंने अपनी पार्टी के कोटे से 10 प्रतिशत टिकट मुस्लिम नेताओं को दिया है।

वहीं, कई गंभीर आरोपों का सामना कर रहे नवाब मलिक को टिकट दिए जाने को लेकर अजित पवार ने कहा, "नवाब मलिक के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए हैं, तो उन्हें टिकट क्यों नहीं दिया जाता?" अजित पवार ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू में नवाब मलिक की स्थिति की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से की, जिन पर पद पर रहते हुए आरोप लगे थे। पवार ने कहा, "राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स जैसे कई आरोप लगाए गए थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे आरोपी हैं। यह लोकतंत्र है, हम बिना सबूत के किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते।" इसके बाद पवार ने इस बात पर जोर दिया कि किसी को दोषी घोषित करने से पहले आरोपों को अदालत में साबित किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नवाब मलिक के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। साल 2022 में मलिक को कुख्यात आतंकी और भगोड़े दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों के साथ संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा भी कई मुकदमे चल रहे हैं। हालांकि, अभी तक किसी भी अदालत ने नवाब मलिक पर लगे किसी आरोपों को साबित नहीं किया है।

श्रीलंका में दिसानायके की ‘आंधी’, राष्ट्रपति की पार्टी एनपीपी को संसदीय चुनाव में प्रचंड बहुमत

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श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) ने संसदीय चुनाव में एतिहासिक जीत हासिल की।श्रीलंका के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मलीमावा (कम्पास) चिह्न के तहत चुनाव लड़ने वाली एनपीपी ने 225 सदस्यीय संसद में 113 सीटें हासिल कीं। एनपीपी को 68 लाख यानी कुल वोटिंग के 61 फीसदी वोट मिले हैं।अब यह तय हो गया है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है और वह आराम से श्रीलंका में सरकार चलाते रहेंगे। इस चुनावी रिजल्ट का मतलब है कि श्रीलंका में वामपंथी सरकार ने जड़ मजबूत कर ली है।

दिसानायके ने भ्रष्टाचार से लड़ने, चुराई गई संपत्तियों को वापस लाने के वादे पर सितंबर में राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी। दिसानायके सितंबर में ही 42.31 फीसदी वोट हासिल कर राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन उनकी पार्टी के पास श्रीलंका की संसद में बहुमत नहीं था। जिसके चलते राष्ट्रपति ने संसद भंग कर समय से पहले चुनाव कराने के आदेश दे दिए थे। राष्ट्रपति चुनाव के बाद संसदीय चुनाव में भी वामपंथी लीडर अनुरा दिसानायके ने साबित कर दिया कि उनका दबदबा कायम है।

शुक्रवार को जारी नतीजों में एनपीपी ने श्रीलंका की संसद की 196 सीटों में से 141 सीटों पर जीत हासिल कर ली है। इस बीच, साजिथ प्रेमदासा की समागी जना बालवेगया (SJB) 35 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। श्रीलंका चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक काउंटिंग में एनपीपी ने राष्ट्रीय स्तर पर करीब 62% या 68.63 लाख से अधिक वोट हासिल किए हैं। प्रेमदासा की मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जन बालावेगया (SJB) को करीब 18 फीसदी, तो वहीं पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समर्थन वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF) को महज 4.5 फीसदी वोट मिले हैं।

225 सीटों वाली श्रीलंका की संसद में किसी भी दल को बहुमत के लिए 113 सीटों पर जीत हासिल करनी होती है। इनमें से 196 सीटों पर जीत का फैसला जनता वोटिंग के जरिए होता है, बची हुई 29 सीटों के लिए उम्मीदवार एक नेशनल लिस्ट के जरिए चुने जाते हैं। नेशनल लिस्ट प्रक्रिया के तहत श्रीलंका तमाम सियासी दलों या निर्दलीय समूहों की ओर से कुछ उम्मीदवारों के नाम की लिस्ट चुनाव आयोग को सौंपी जाती है, बाद में पार्टी या समूह को जनता से मिले वोट के अनुपात में प्रत्येक दल की लिस्ट से उम्मीदवार चुने जाते हैं।

अजित पवार दशकों तक हिंदू विरोधियों के साथ रहे...,महाराष्ट्र में मतदान से पहले फडणवीस का बड़ा बयान

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दल चुनावी अखाड़े में उतर चुके हैं। इस बार का विधानसभा चुनाव पूरी तरह से दो गठबंधन के बीच की 'जंग' में तब्दील हो चुका है। एक तरफ जहां महायुति गठबंधन है तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी। चुनाव हैं तो इस दौरान चुनावी प्रचार में तमाम तरीके की बायनबाजी भी हो रही है। बीते दिनों ऐसी ही एक बयानबाजी को लेकर अब महायुति गठबंधन के दो बड़े देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार एक दूसरे के सामने खड़े नजर आ रहे हैं। योगी के “बटेंगे तो कटेंगे” नारे ने बीच चुनाव में महाराष्ट्र एनडीए में दरार डाल दी है। इस नारे को लेकर अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस आमने-सामने आ गए हैं।

हाल ही में अजित पवार ने कहा था कि बटेंगे तो कटेंगे का नारा महाराष्ट्र के लिए नहीं है। वहीं, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बटेंगे तो कटेंगे के नारे का समर्थन किया है। साथ ही फडणवीस ने इस नारे को लेकर अजीत पवार पर तीखा हमला किया है।

फडणवीस ने न्यू एजेंसी एएनआई से बातचीत में बंटेंगे तो कटेंगे नारे का महायुति और भाजपा में हो रहे विरोध पर कहा- मुझे योगी जी के नारे में कुछ भी गलत नहीं लगता। इस देश का इतिहास देख लीजिए, जब-जब इस देश को जातियों, प्रांतों और समुदायों में बांटा गया, यह देश गुलाम हुआ है।

फडणवीस ने अजीत पवार को लेकर क्या कहा?

वहीं, महायुति की सहयोगी पार्टी एनसीपी के नेता अजित पवार ने योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे के नारे का विरोध किया है और कहा है कि ऐसे नारों के लिए महाराष्ट्र में कोई जगह नहीं है। इस पर फडणवीस से जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि 'अजित पवार कई दशकों तक ऐसी पार्टियों के साथ रहे हैं, जो खुद को कथित सेक्युलर बताती हैं। वे ऐसे लोगों के साथ रहे हैं जो हिंदुत्व का विरोध करते हैं, इसलिए उन्हें लोगों की भावनाएं समझने में थोड़ा समय लगेगा।

बटेंगे तो कटेंगे पर अजित ने क्या कहा था?

इससे पहले बटेंगे तो कटेंगे नारे का विरोध करते हुए अजित पवार ने कहा था कि यह सबका साथ, सबका विकास नहीं है। अजित ने कहा कि एक तरफ आप सबका साथ और सबका विकास की बात करते हो और दूसरी तरफ बटेंगे तो कटेंगे की बात करते हो। यह कैसे चलेगा? जूनियर पवार ने आगे कहा कि महाराष्ट्र का सियासी मिजाज यूपी जैसा नहीं है। यहां लोग काफी समझदार हैं, इसलिए इन नारों का कोई मतलब नहीं है।

थरूर ने गैर-नेट पीएचडी वजीफे के बारे में चिंताओं पर सरकार की आलोचना की, कहा 10 साल में नहीं आए हैं बदलाव

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 2023 में संसद में गैर-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पीएचडी फेलोशिप वजीफे के बारे में 11 महीने पहले उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए समयसीमा के बिना जवाब मिलने के बाद सरकार की आलोचना की है।

"क्या संबंधित नागरिक पिछले साल संसद में मेरे द्वारा उठाए गए मुद्दे और 11 महीने बाद शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार की ओर से आए जवाब को देखना चाहेंगे? क्या कोई इसमें मेरे द्वारा उठाए गए सवाल का जवाब ढूंढ सकता है - 2012 से गैर-नेट पीएचडी फेलोशिप वजीफे में वृद्धि क्यों नहीं की गई?" थरूर ने गुरुवार को एक ट्वीट में पूछा। थरूर ने मजूमदार के जवाब को संलग्न करते हुए सवाल किया कि फेलो से उसी ₹8,000 पर जीवन यापन करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है जो उनके पूर्ववर्तियों को 2012 में मिल रहे थे? “क्या इस सरकार ने मुद्रास्फीति के बारे में नहीं सुना है? वास्तव में पिछले वित्तीय वर्ष में जब मैंने यह प्रश्न पूछा था, तब से वजीफे का मूल्य और भी कम हो गया है!”

दिसंबर 2023 में संसद में वजीफे पर अपने हस्तक्षेप में, थरूर ने उल्लेख किया कि गैर-नेट पीएचडी फेलो को मासिक ₹8,000 वजीफा और विज्ञान विषयों के लिए ₹10,000 वार्षिक और मानविकी और सामाजिक विज्ञान के लिए ₹8,000 का आकस्मिक भत्ता मिलता है। यह वजीफा एक दशक से अधिक समय से अपरिवर्तित रहा है, जबकि अन्य फेलोशिप कार्यक्रमों को समय-समय पर संशोधित किया जाता है। थरूर ने वजीफे में संशोधन की कमी के कारण शोधकर्ताओं के सामने आने वाले वित्तीय तनाव को रेखांकित किया। “यूजीसी [विश्वविद्यालय अनुदान आयोग] विद्वानों के लिए शोध करने के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, देरी से किए गए संशोधनों ने मुद्रास्फीति दरों और जीवन-यापन की लागत में वृद्धि के कारण वित्तीय बोझ डाला है, जिससे उनके दैनिक जीवन और प्रभावशाली शोध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता प्रभावित हुई है,” थरूर ने संसद में कहा। उन्होंने शोध संस्थानों में अपर्याप्त संसाधनों और बुनियादी ढांचे तथा पर्यवेक्षकों से समर्थन की कमी के बारे में चिंता जताई।

मजूमदार ने थरूर की चिंताओं को स्वीकार करते हुए जवाब दिया। “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अन्य संबंधित अधिकारियों के परामर्श से मामले की विधिवत जांच की गई है। सरकार शोधार्थियों के सामने आने वाली चुनौतियों के प्रति सचेत है और आवश्यक कार्रवाई के लिए मामले की समीक्षा करती रहेगी।”

मजूमदार ने वजीफे में संशोधन के लिए कोई विशिष्ट समयसीमा या इस मुद्दे को हल करने के लिए उठाए जा रहे कदमों का विवरण नहीं दिया।

यूजीसी ने नवंबर 2022 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप एमफिल कार्यक्रम को बंद कर दिया। दिसंबर 2023 में, इसने दोहराया कि विश्वविद्यालयों को एमफिल में छात्रों को प्रवेश देना बंद कर देना चाहिए। चार वर्षीय स्नातक डिग्री और कम से कम 75% अंक या समकक्ष ग्रेड वाले उम्मीदवार अब पीएचडी के लिए पात्र हैं। राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के साथ-साथ 37,000 रुपये मासिक वजीफे के साथ जूनियर रिसर्च फेलोशिप प्रदान करने के लिए वर्ष में दो बार नेट परीक्षा आयोजित करती है।

नई दिल्ली को पीछे छोड़ 1600 AQI पर, यह शहर दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर, भारत को हो सकता इससे खतरा

उत्तरी भारत के कई राज्य वायु प्रदूषण की बदतर स्थिति से जूझ रहे हैं, वहीं पाकिस्तान के इलाकों में इस नवंबर में दुनिया में सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) दर्ज किया जा रहा है। दुनिया में वायु प्रदूषण के सबसे खराब मामले में, पाकिस्तान के लाहौर के एक इलाके में शुक्रवार को लगभग 1600 AQI दर्ज किया गया। स्विस मॉनिटर IQAir के अनुसार, लाहौर में CERP कार्यालय क्षेत्र में शुक्रवार सुबह AQI 1587 था। वास्तव में, IQAir के अनुसार, लाहौर के चार इलाकों में शुक्रवार को AQI 1000 को पार कर गया - CERP कार्यालय, सैयद मरातिब अली रोड, पाकिस्तान इंजीनियरिंग सेवा कार्यालय और VTS।

लाहौर का औसत AQI

गुरुवार को लाहौर का औसत AQI 1300 रहा, जिससे यह नवंबर 2024 के अधिकांश समय के लिए दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई उपायों के बावजूद, शहर का AQI हर दिन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लाहौर में खतरनाक वायु गुणवत्ता ने स्थानीय सरकार को इस सप्ताह के अंत तक स्कूल, पार्क और संग्रहालय बंद करने, मास्क पहनने को अनिवार्य बनाने और कार्यालयों को कम क्षमता पर काम करने के लिए कहने पर मजबूर कर दिया है।

पाकिस्तान के कई शहर धुंध की मोटी चादर से जूझ रहे हैं, तापमान में गिरावट के बीच हर दिन दृश्यता कम होती जा रही है। स्थानीय समाचार आउटलेट एरी न्यूज़ के अनुसार, लाहौर में सिर्फ़ 24 घंटों में श्वसन और वायरल संक्रमण के 15,000 से ज़्यादा मामले सामने आए। पाकिस्तान अब कुछ इलाकों में वायु प्रदूषण और धुंध की समस्या को खत्म करने के लिए सभी उपाय कर रहा है, जो देश में हर सर्दियों के मौसम में बनी रहती है।

इन उपायों में शादियों पर 3 महीने का प्रतिबंध लगाना और प्रांत के ज़्यादातर हिस्सों में धुंध के जवाब में परिवहन विभाग द्वारा नए दिशा-निर्देश जारी करना शामिल है। अन्य उपायों में पाकिस्तान पंजाब सरकार द्वारा राज्य में स्कूल और कॉलेज बंद करना शामिल है। पाकिस्तान के लाहौर और मुल्तान शहर वर्तमान में दुनिया में सबसे प्रदूषित हैं, और 70,000 से अधिक लोग प्रतिदिन स्मॉग से संबंधित समस्याओं के लिए उपचार प्राप्त करते हैं। खतरनाक स्मॉग बड़ी संख्या में वाहनों, निर्माण और औद्योगिक कार्यों के साथ-साथ सर्दियों के गेहूं-रोपण के मौसम की शुरुआत में फसलों को जलाने का एक उपोत्पाद है।

कांग्रेस में किसने कहा कि आर्टिकल 370 बहाल किया जाएगा', शाह के आरोपों पर भड़के खरगे ने कहा- बीजेपी झूठ फैला रही*
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महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के बीच अनुच्छेद 370 का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आर्टिकल 370 पर बयान दिया है। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस दावे का विरोध किया कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से लागू करने का इरादा रखती है। यही नहीं, कांग्रेस चीफ ने कहा कि बीजेपी पर समाज में विभाजन पैदा करने के लिए आर्टिकल 370 के मुद्दे को जिंदा रखने चाहती है। पुणे में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कांग्रेस और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अपशब्द कहने का आरोप लगाया। मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, अमित शाह अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस पर झूठ फैलाने का आरोप लगाते हैं। (लेकिन) वह (खुद) कह रहे हैं कि कांग्रेस (जम्मू-कश्मीर में) अनुच्छेद 370 वापस लाना चाहती है। मुझे बताइए, यह किसने और कब कहा? आप एक मुद्दा उठा रहे हैं। अगर यह (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का प्रस्ताव) संसद में पहले ही पारित हो चुका है, तो आप फिर से इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? खरगे ने आगे कहा कि इसका मतलब है कि आप इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं ताकि लोग बंट जाएं। अगर आप यह कहना चाहते हैं तो कश्मीर जाकर कहिए। कश्मीर में चुनाव खत्म हो चुके हैं। बता दें कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में रद्द कर दिया था। अब पिछले हफ़्ते जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें केंद्र से कहा गया था कि वह पूर्ववर्ती राज्य के विशेष दर्जे की बहाली के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों से बातचीत करें। कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन में है, जो जम्मू-कश्मीर में सरकार का नेतृत्व करती है। ऐसे में बीजेपी ने इस मुद्दे को जर-शोर से भुनाया है।
मणिपुर में फिर से भड़की हिंसा के बाद केन्द्र सरकार का बड़ा फैसला, इन 6 इलाकों में AFSPA फिर से लागू*
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मणिपुर में एक बार हिंसा भड़क गई है। जिरीबाम में 11 नवंबर को सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में 10 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए थे। जिसके बाद से इलाके में तनाव बढ़ गया है। यहां 7 नवंबर से शुरू हुई हिंसा में 14 लोग मारे गए हैं। स्थिति बेहद तनावपूर्ण होते देख केंद्र सरकार ने मणिपुर के हिंसा प्रभावित जिरीबाम समेत पांच जिलों के छह पुलिस थाना इलाकों को 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर दिया। यहां शांति बनाए रखने के लिए तत्काल प्रभाव से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट (अफस्पा) लागू कर दिया है।यह 31 मार्च 2025 तक प्रभावी रहेगा। गृह मंत्रालय ने गुरुवार को इसका आदेश जारी किया। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 14 नवंबर को जारी अधिसूचना में बताया गया है कि इंफाल वेस्ट, ईस्ट, जिरीबाम, कांगपोकपी और बिश्नुपुर जिलों के सेकमाई, लामसांग, लामलाई, जिरीबाम, लीमाखोंग और मोइरांग पुलिस थाना इलाकों में अफस्पा लगाया गया है। गृह मंत्रालय मामले पर पल-पल का अपडेट ले रहा है। अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अफस्पा को हटाने के मामले में अगर इस बीच इसे नहीं हटाया गया तो यह इन इलाकों में 31 मार्च 2025 तक लागू रहेगा। *क्यों लागू किया गया अफस्पा ?* सरकार ने बताया कि मणिपुर राज्य में सिक्योरिटी रिव्यू करने के बाद यह पाया गया कि मणिपुर में जारी जातीय हिंसा की वजह से यहां स्थिति अस्थिर बनी हुई है। इन इलाकों में रूक-रूक कर गोलाबारी हो रही है। ऐसे में सामान्य जनजीवन और जिंदगियों को देखते हुए यह जरूरी समझा जाता है कि इन इलाकों में अफस्पा लागू कर दिया जाए। *अब राज्य के 13 इलाकों में अफस्पा लागू नहीं* इससे पहले मणिपुर के 19 थाना इलाकों को छोड़कर 26 सितंबर को एक अधिसूचना जारी करके संपूर्ण मणिपुर राज्य को 1 अक्टूबर, 2024 से छह महीने के लिए अशांत क्षेत्र घोषित किया गया था। केंद्र सरकार के इस आदेश के बाद अब राज्य के 13 इलाके ही अफस्पा से बाहर हैं। इससे पहले 1 अक्टूबर को मणिपुर सरकार ने इम्फाल, लाम्फल, सिटी, सिंगजमई, सेकमई, लमसांग, पटसोई, वांगोई, पोरोमपाट, हेइंगांग, लाम्लाई, इरिलबंग, लेइमाखोंग, थौबाल, बिश्नुपुर, नंबोल, मोइरंग, काकचिंग, और जिरिबाम को अफस्पा से बाहर रखा था। *क्या है अफस्पा?* 'अफस्पा' अधिनियम 'अशांत क्षेत्रों' को 'शांत' करने के तहत सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों को असीमित ताकत देता है। इसे जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार लागू कर सकती है। इसके तहत सुरक्षाबलों को अशांत क्षेत्र घोषित एरिया में यह अधिकार मिल जाता है कि वह कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ बिना किसी वारंट और बाधा के कार्रवाई कर सकती है। अफस्पा को सबसे पहले असम क्षेत्र में नगा विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया था। इसे आप आसानी से इन पॉइंट में भी समझ सकते हैं। • अफस्पा सेना, राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों को बिना किसी वारंट घरों की तलाशी लेने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने वालों को गोली मारने की शक्तियां देता है. • अफस्पा को सरकार तब लागू करती है जब आतंकवाद या विद्रोह का मामला होता है और भारत की क्षेत्रीय अखंडता खतरे में होती है। • जिस एरिया में अफस्पा लागू है, वहां सुरक्षा बल किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है। यही नहीं, अगर किसी ने संज्ञेय अपराध किया है या वह करने वाला है तो सुरक्षाबल उसे भी बिना वारंट के अरेस्ट कर सकती है। *एक बार फिर भड़की हिंसा* बता दें कि सोमवार को मणिपुर के जिरिबाम जिले में सुरक्षा बलों के साथ एनकाउंटर में 10 संदिग्ध उग्रवादी मार गिराए गए थे। सैनिकों की वर्दी पहनकर आए उग्रवादियों ने एक पुलिस थाने और निकटवर्ती सीआरपीएफ शिविर पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में 11 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए थे। इस एनकाउंटर के अगले दिन यानी 12 नवंबर को सशस्त्र आतंकवादियों ने जिले से महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों को अगवा कर लिया। इस घटना के बाद से इलाके में तनाव और बढ़ गया है। 7 नवंबर से शुरू हुई हिंसा में कम से कम 14 लोग मारे गए हैं, जिनमें तीन पुरुष और महिलाएं शामिल हैं।
अजित पवार के खुलासे पर शरद पवार ने भी भर दी हामी, बताई अडानी की मीटिंग की सच्चाई

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अजित पवार ने एक इंटरव्यू में 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के साथ हुए गठबंधन में उद्योगपति गौतम अडानी की भूमिका का खुलासा किया है। उन्होंने कहा, उद्योगपति गौतम अडानी 5 साल पहले बीजेपी और अविभाजित शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के बीच बातचीत का हिस्सा थे। महाराष्ट्र में जारी चुनाव के बीच अजीत पवार के इस बयान ने हर तरफ कोहराम मचा दिया है। बीजेपी के पास फिलहाल कोई जवाब नहीं दिख रहा है। इस बीच खुद शरद पवार को आगे आना पड़ा है।शरद पवार ने पांच साल पहले गौतम अडानी के घर हुई बैठक को लेकर बड़ा खुलासा किया है।

शरद पवार ने बताया कि कैसे उनके कुछ सहयोगी बीजेपी में शामिल हो गए थे। उन्होंने दावा किया है कि उनके कुछ सहयोगियों को आश्वासन दिया गया था कि उनके खिलाफ चल रहे केंद्रीय एजेंसियों के मामले वापस ले लिए जाएंगे। एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में पवार ने बताया कि उनके सहयोगियों ने उनपर बीजेपी नेताओं से मिलकर यह ऑफर खुद सुनने का दबाव डाला था। इसके बाद ही पवार अमित शाह से मिलने गौतम अडानी के घर डिनर पर गए थे। लेकिन वो इसलिए पीछे हट गए क्योंकि उन्हें ये यकीन नहीं था कि बीजेपी अपना वादा निभाएगी।

अडानी ने सिर्फ डिनर होस्ट किया, चर्चा में शामिल नहीं थे-शरद पवार

भतीजे के बयान पर शरद पवार ने कहा, बैठक जहां आयोजित की गई थी, मेन बात उस लोकेशन की थी। अडानी के दिल्ली स्थित आवास पर मुलाकात हुई थी। ऐसे में उनका नाम आया। अडानी ने रात्रिभोज की मेजबानी की लेकिन वो हमारी पूरी राजनीतिक चर्चा में भाग नहीं ले रहे थे। शरद पवार ने कहा, मैं शरद पवार खुद वहां था, अमित शाह और अजित पवार भी थे। सत्ता-बंटवारे की बातचीत अजित पवार के उप-मुख्यमंत्री के रूप में सुबह-सुबह शपथ लेने से पहले हुई थी। जिसमें देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया, ताकि सरकार बनाई जा सके। हालांकि वो सरकार बमुश्किल 80 घंटे तक ही चल सकी।

अजीत पवार ने क्या कहा

इससे पहले अजित पवार ने एक वेबसाइट को दिए एक साक्षात्कार में कहा- हर कोई जानता है कि 2019 में महाराष्ट्र की सरकार बनवाने के लिए बैठक कहां हुई थी? सभी वहां थे। अमित शाह वहां थे, देवेंद्र फडणवीस वहां थे, गौतम अडानी वहां थे, पवार साहेब (शरद पवार) वहां थे। प्रफुल पटेल वहां थे, अजित पवार वहां थे। उस समय बीजेपी के साथ जाने का निर्णय शरद पवार की जानकारी में किया था, और एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने सर्वोच्च नेता का मैंने अनुसरण किया था। उस एपिसोड का दोष मुझ पर आया और मैंने स्वीकार किया। मैंने दोष अपने ऊपर लिया और किसी के ऊपर कोई बात नहीं आने दी।