नहाय खाय के साथ से छठ महापर्व हुआ शुरु
रायबरेली।नहाय खाय के साथ छठ महापर्व मंगलवार से शुरू हो चुका है। हर साल छठ पर्व और भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ का महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाता है। इस खास मौके पर छठी मैया की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
छठ पूजा के दौरान चार दिनों तक सूर्य देव की विशेष पूजा करने की परंपरा है। सेवा के दौरान साफ-सफाई और पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।छठ पूजा के पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। वहीं, इस त्योहार का समापन सप्तमी तिथि पर होता है। ऐसे में छठ महापर्व पांच नवंबर से लेकर आठ नवंबर तक मनाया जा रहा है।
यह सूर्य देव को समर्पित इस विशेष पर्व में जिले में रहने वाले बिहारी और पूर्वांचल के लोगों ने नहाय खाय के साथ इसकी शुरुवात कर दी है।
इस दौरान श्रद्धालु अपने प्रियजनों की सुख, समृद्धि और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं। छठ की इस पूजा में सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की विधिपूर्वक उपासना की जाती है। मान्यता है कि पूजा करने से जातक को छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है। सनातन शास्त्रों छठी मैया को संतानों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। इसलिए छठ पूजा के दिन छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व है।सुन ल अरजिया हमार, हे छठी मैया...के गीत गाकर मंगलवार से सूर्योपासना का महापर्व कार्तिक छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय से शुरू हो गया। मंगलवार को छठ के व्रत की व्रती महिलाओं ने गंगा में स्नान किया।
बुधवार को खरना पर पूरे दिन उपवास कर शाम में सूर्य देव की पूजा कर प्रसाद ग्रहण करती है। बृहस्पतिवार की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। वहीं शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर आयु-आरोग्यता, यश, संपदा का आशीष लेते हुए पर्व का समापन है। खरना बुधवार को सर्वार्थ सिद्ध योग में हो रहा है। व्रत का समापन धनिष्ठा नक्षत्र में हो रहा है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व में सूर्योपासना से छठी माता प्रसन्न होती हैं। परिवार में सुख, शांति और धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। सूर्य देव के प्रिय तिथि पर पूजा,अनुष्ठान से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
इनकी उपासना से रोग, कष्ट, शत्रु का नाश, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मंगलवार को सभी ने गंगा में स्नान कर शुद्धता से तैयार प्रसाद अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी, आंवले की चटनी ग्रहण कर अनुष्ठान आरंभ किया। गेहूं को गंगाजल से धोने के बाद सूखाया गया। गेहूं में कोई पक्षी, कीड़े का स्पर्श न हो, इसके लिए व्रती व घर के लोग पारंपरिक गीत गाते हुए रखवाली भी करते है।
Nov 05 2024, 18:56