त्वचा की समस्याओं को दूर करने के लिए इन तरीकों से करे बेसन का इस्तेमाल चमक उठेगा चेहरा और मिट जायेंगे काले निशान


डेस्क:- चेहरे की देखभाल में बेसन एक प्राकृतिक और असरदार उपाय माना जाता है। इसके नियमित इस्तेमाल से चेहरे की चमक बढ़ती है और काले धब्बों व झाइयों से छुटकारा पाया जा सकता है। आइए जानते हैं कुछ तरीके जिनसे बेसन का सही उपयोग करके चेहरे का निखार बढ़ाया जा सकता है:

1. बेसन और दही का फेस पैक

सामग्री:

1 बड़ा चम्मच बेसन, 1 चम्मच दही

विधि: बेसन और दही को मिलाकर पेस्ट बना लें। 

इसे चेहरे पर लगाकर 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर हल्के हाथों से स्क्रब करते हुए गुनगुने पानी से धो लें।

फायदा: दही में लैक्टिक एसिड होता है जो त्वचा को नरम और चमकदार बनाता है।

2. बेसन और हल्दी का पैक

सामग्री:

1 बड़ा चम्मच बेसन, एक चुटकी हल्दी, गुलाब जल या कच्चा दूध

विधि: इन सभी सामग्रियों को मिलाकर पेस्ट तैयार करें। 

इसे चेहरे पर लगाकर 15-20 मिनट तक छोड़ दें और फिर धो लें।

फायदा: हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो दाग-धब्बों को कम करने में मदद करते हैं।

3. बेसन और नींबू का पैक

सामग्री: 1 बड़ा चम्मच बेसन, आधा चम्मच नींबू का रस, गुलाब जल

विधि: बेसन में नींबू का रस और गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बनाएं। 

इसे चेहरे पर लगाएं और 10-15 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से धो लें।

फायदा: नींबू में विटामिन C होता है जो त्वचा की रंगत को साफ करता है और चेहरे पर निखार लाता है।

4. बेसन और शहद का पैक

सामग्री:

 1 बड़ा चम्मच बेसन, 1 चम्मच शहद, थोड़ा सा दूध

विधि: इन सभी सामग्रियों को मिलाकर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर 15 मिनट तक लगाकर छोड़ दें।

सूखने के बाद हल्के हाथों से पानी से धो लें।

फायदा: शहद त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है और दूध त्वचा की चमक बढ़ाता है।

5. बेसन और संतरे के छिलके का पैक

सामग्री: 

1 बड़ा चम्मच बेसन, 1 चम्मच संतरे के छिलके का पाउडर, गुलाब जल

विधि: इन सभी को मिलाकर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाएं। 15 मिनट बाद धो लें।

फायदा: संतरे के छिलके में मौजूद विटामिन C त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है और यह झाइयों को भी हल्का करता है।

निष्कर्ष*

बेसन का नियमित उपयोग आपकी त्वचा को साफ, कोमल और चमकदार बना सकता है। 

इसके साथ ही, यह दाग-धब्बों को कम करने और त्वचा की रंगत को निखारने में भी सहायक है।

रेबेका सिंड्रोम: प्यार में शक का कैंसर, जो रिश्ते को कर सकता है बर्बाद


डेस्क:- रेबेका सिंड्रोम एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपने साथी के पिछले रिश्तों को लेकर असुरक्षित और जलन महसूस करता है। यह सिंड्रोम रिश्ते में उस साथी के लिए अत्यधिक असुरक्षा और शक पैदा करता है, जो अपने वर्तमान साथी के अतीत से जुड़े लोगों या अनुभवों को लेकर चिंतित रहता है। इसका नाम डाफ्ने डू मौरियर की उपन्यास रेबेका से लिया गया है, जिसमें मुख्य पात्र अपनी पति की पहली पत्नी के अतीत से जूझता है।

कैसे काम करता है रेबेका सिंड्रोम?

इस सिंड्रोम में व्यक्ति को अपने साथी के अतीत के रिश्तों या अनुभवों को लेकर असुरक्षा महसूस होती है। इसके चलते वह अपने साथी के अतीत के बारे में अत्यधिक सोचता है और उस पर लगातार ध्यान केंद्रित करता है। धीरे-धीरे यह मानसिकता इतनी गंभीर हो सकती है कि व्यक्ति अपने रिश्ते में खुश नहीं रह पाता और अपने साथी पर अविश्वास करता है।

कैसे खत्म कर देता है यह सिंड्रोम रिश्ते को?

अति-शक और अविश्वास: जब व्यक्ति अपने साथी पर लगातार शक करता है, तो रिश्ते में विश्वास की कमी हो जाती है। यह बार-बार के सवाल, जाँच और अपने साथी को दोष देना रिश्ते में दरार पैदा कर सकता है।

असुरक्षा की भावना: जब व्यक्ति को लगता है कि वह अपने साथी के अतीत से जुड़े लोगों या अनुभवों से खुद को मुकाबला नहीं कर सकता, तो यह भावना रिश्ते को कमजोर कर सकती है। इससे व्यक्ति खुद को कमतर समझने लगता है, जिससे रिश्ते में असंतुलन पैदा होता है।

मानसिक तनाव और असंतोष: रेबेका सिंड्रोम की वजह से व्यक्ति हमेशा तनाव और नकारात्मकता में रहता है। इससे उसका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है और वह अपने साथी को लेकर खुश नहीं रह पाता।

रिश्ते में दूरी और दरार: इस सिंड्रोम के कारण व्यक्ति अपने साथी से दूरी बनाने लगता है। साथी के प्रति बढ़ती नकारात्मकता और कटुता रिश्ते में दूरियाँ बढ़ा देती हैं, और यह धीरे-धीरे रिश्ते के टूटने का कारण बन सकता है।

रेबेका सिंड्रोम से बचाव

खुले संवाद: अपने साथी से खुलकर अपनी भावनाओं और चिंताओं के बारे में बात करें। यह समझें कि आपका साथी वर्तमान में आपके साथ है, और उसका अतीत उसके जीवन का हिस्सा था लेकिन अब वह बीत चुका है।

विश्वास विकसित करें: रिश्ते को स्थायी और खुशहाल बनाने के लिए आपसी विश्वास आवश्यक है। खुद को और अपने साथी को विश्वास का मौका दें।

मनोवैज्ञानिक सहायता: अगर रेबेका सिंड्रोम के कारण आपकी मानसिक स्थिति खराब हो रही है, तो किसी काउंसलर या मनोवैज्ञानिक से सलाह लें।

रेबेका सिंड्रोम एक गंभीर मानसिक स्थिति हो सकती है, जो किसी भी रिश्ते को प्रभावित कर सकती है। इसे समझदारी, खुले संवाद, और आपसी विश्वास के माध्यम से संभाला जा सकता है।

दिल्ली:दिल्ली सरकार ने लिया बड़ा फैसला राजधानी में अब दिव्यांगजनों को हर महीने मिलेगी 5 हजार रुपए पेंशन,जाने क्या हैं लाभ पाने की शर्ते


नई दिल्ली:- दिल्ली सरकार ने विशेष आवश्यकता वाले दिव्यांग व्यक्तियों को 5,000 रुपए की मासिक वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया है. समाज कल्याण मंत्री सौरभ भारद्वाज ने यह जानकारी दी. भारद्वाज ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 60 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग व्यक्ति इस वित्तीय सहायता के लिए पात्र होंगे।

समाज कल्याण मंत्री सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि मंत्रिपरिषद की बैठक में वित्तीय सहायता बढ़ाने का निर्णय लिया गया है. समाज कल्याण विभाग को इस योजना को लागू करने का निर्देश दिया गया है, जिसके तहत एक महीने के भीतर पंजीकरण शुरू होने की उम्मीद है।

भारद्वाज ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली में लगभग 10,000 व्यक्ति इस सहायता के लिए पात्र हो सकते हैं.

भारद्वाज ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इस योजना के प्रस्ताव को मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजने की जरूरत है, क्योंकि यह जनता का पैसा है, जिसे विशेष आवश्यकता वाले दिव्यांग व्यक्तियों के कल्याण पर खर्च किया जाना है.

उन्होंने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली में 2.34 लाख दिव्यांग व्यक्ति थे, जिनमें से लगभग 9,500-10,000 दिव्यांग व्यक्ति उच्च आवश्यकता वाले थे।

शर्त भी जान लीजिए

कल कैबिनेट में तय हुआ कि दिल्ली सरकार इन लोगों को 5000 महीने पेंशन देगी. ज‍िनको भी डॉक्‍टर 60% दिव्यांगता का सर्टिफिकेट देंगे, उन्‍हें हम ये पेंशन देने जा रहे हैं. इस योजना को तत्काल प्रभाव से लागू किया जा रहा है. जल्दी ही रजिस्ट्रेशन शुरू कर द‍िया जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक, द‍िल्‍ली में ऐसे तकरीबन 9500 लोग हैं.

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भारी बारिश के चलते निर्माणाधीन इमारत ढही, मलबे में 17 मजदूर दबे


बेंलगुरु: कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के हेन्नुर क्षेत्र में मंगलवार को भारी बारिश के कारण एक निर्माणाधीन इमारत ढह गई. मलबे में 17 मजदूरों के दबे होने आशंका जताई है. मौके पर बचाव अभियान चलाया जा रहा है. हेन्नुर पुलिस के अधिकारी मौके पर हैं और जांच कर रही है.

अग्निशमन और आपात विभाग की दो बचाव वैन को बचाव अभियान में लगाया गया है. अधिकारियों ने बताया कि शहर में भारी बारिश के बीच यह घटना हुई. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "इमारत के अंदर 17 लोगों के फंसे होने की आशंका है और अन्य एजेंसियों की मदद से बचाव अभियान चलाया जा रहा है."

अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि प्रारंभिक जांच के अनुसार पूरी इमारत ढह गई जिसके बाद लोग इसके नीचे फंस गए.बेंगलुरु में भारी बारिश के कारण कई जगह अव्यवस्थाएं पैदा हो गई हैं. 

यलहंका, मल्लेश्वर, सिल्क बोर्ड समेत कई जगहों पर बारिश का पानी सड़कों पर भर गया है. वहीं कुछ जगहों पर घरों में पानी भर गया है.

बेंगलुरु में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात है।

बेंगलुरु में सोमवार रात को शुरू हुई बारिश के कारण पूरे शहर में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोगिलु क्रॉस, यालहंका के पास सेंट्रल वेकेशन अपार्टमेंट के सामने बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं. केंद्रीय विहार अपार्टमेंट में लगभग 2,500 लोग पानी से घिरे हुए हैं. 

NDRF की टीम नाव के जरिये निवासियों को सहायता प्रदान कर रही है.यालहंका में बाढ़ जैसी स्थिति के कारण मंगलवार को स्कूली बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ा.

सड़कों पर जलभराव के कारण स्कूल बसों की आवाजाही बाधित हुई और बच्चों को पानी में घुसकर जाना पड़ा.

दूसरी ओर, चिक्काबनवारा में द्वारका शहर के लोगों को बाढ़ का खतरा है. राजकालुवे का पानी इलाके में घुस गया और पूरी तरह से जलमग्न हो गया. 30 से ज्यादा घरों में बारिश का पानी घुस गया है. स्थानीय निवासी जूरूरी सामान के लिए भी इलाके से बाहर नहीं जा पा रहे हैं।

आरजी कर पीड़िता के माता-पिता ने अमित शाह से मुलाकात का अनुरोध किया


पश्चिम बंगाल में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी महिला डॉक्टर के दुष्कर्म-हत्या मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है. इस बीच पीड़िता के माता-पिता ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने का समय मांगा है. उन्होंने इस संबंध में शाह को ई-मेल भेजा है और उनसे मुलाकात का अनुरोध किया है.

उन्होंने ई-मेल के माध्यम से कहा, "मेरी बेटी के साथ जो कुछ हुआ, उसके बाद हम अभी भी मानसिक रूप से उबर नहीं पाए हैं. हम बहुत तनाव में हैं. इसलिए हम आपसे मिलना चाहते हैं."

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 9 अगस्त को पूरे समाज को झकझोर देने वाली घटना घटी थी, जब ट्रेनी महिला चिकित्सक के साथ कार्यस्थल पर दुष्कर्म किया गया और उसकी हत्या कर दी गई. घटना के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए.

जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन जारी

जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन अभी जारी है. 17 दिनों के बाद सोमवार को ही उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त की है. वरिष्ठ डॉक्टर भी उनके साथ खड़े हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई इस जघन्य अपराध की जांच कर रही है. विभिन्न हलकों में यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि युवती को न्याय मिलने में कितना समय लगेगा.

इस बीच, पीड़ित डॉक्टर के परिवार ने केंद्रीय गृह मंत्री को ईमेल भेजकर उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलने का अनुरोध किया. पिता ने ईमेल में लिखा, "मैं आपसे हमारी मौजूदा स्थिति के बारे में बात करना चाहता हूं. आप जहां भी कहेंगे, मैं और मेरी पत्नी जाएंगे. मैं आपसे मौजूदा स्थिति के बारे में बात करूंगा. अगर आप हमें बात करने का मौका देंगे तो मैं आभारी रहूंगा. मुझे विश्वास है कि आपका अनुभव और मार्गदर्शन अमूल्य होगा."

जूनियर डॉक्टरों की भूख हड़ताल में गया था परिवार

इससे पहले, पीड़िता का परिवार धर्मतला में जूनियर डॉक्टरों की भूख हड़ताल में गया था और उनसे हड़ताल वापस लेने का अनुरोध किया था. पीड़िता के पिता ने कहा, "मेरी बेटी के न्याय के लिए आज पूरा देश सड़कों पर है. मेरे बच्चे (जूनियर डॉक्टर) भूख हड़ताल पर हैं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं उनसे भूख हड़ताल खत्म करने का अनुरोध कर रहा हूं. लेकिन हम न्याय के लिए उनके द्वारा किए जा रहे आंदोलन का समर्थन करेंगे." उनके अनुरोध का सम्मान करते हुए जूनियर डॉक्टरों ने आखिरकार सोमवार देर रात भूख हड़ताल वापस ले ली।

बिहार के प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा की कहानी है सदियों पुराने,आइए जानते हैं कैसे बनी यह बिहार की पहचान


बिहार का प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा आज दुनिया भर में अपने स्वाद के लिए मशहूर है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत मगध साम्राज्य के समय हुई थी जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो आज का पटना है। उस समय के सैनिकों के लिए लिट्टी-चोखा एक बेहद पौष्टिक और पोर्टेबल फूड आइटम था क्योंकि इसे युद्ध के दौरान अपने साथ ले जा सकते थे। 

आइए आपको बताते हैं इसका दिलचस्प इतिहास।

 कब और कैसे हुई 'लिट्टी-चोखा' की शुरुआत? 

लिट्टी-चोखा सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है। लिट्टी-चोखा का स्वाद इतना अनूठा और लाजवाब होता है कि एक बार खाने के बाद हर कोई इसका दीवाना हो जाता है।

आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग इस डिश को बड़े चाव से खाते हैं। समय के साथ लिट्टी-चोखा का स्वरूप बेशक बदलता रहा लेकिन इसका स्वाद लोगों के दिलों पर हमेशा राज करता रहा है। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि लिट्टी-चोखा का इतिहास उतना ही पुराना है

 मुगलकाल में लिट्टी चोखा

मुगलकाल में लिट्टी चोखा के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन इस दौरान इसे खाने का तौर-तरीका बदल गया. मुगल काल में मांसाहारी खाने का प्रचलन ज्यादा था. इसलिए लिट्टी को शोरबा और पाया के साथ खाया जाने लगा. अंग्रेजों के समय लिट्टी को करी के साथ खाया जाने लगा। वक्त के साथ लिट्टी चोखा के साथ कई तरह के नए प्रयोग किए गए.

मगध काल में हुई लिट्टी-चोखा की शुरुआत

माना जाता है कि लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत मगध काल में हुई. मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था, चंद्रगुप्त मौर्य यहां के राजा थे, इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी. जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी-चोखा खाते थे. यह जल्दी खराब नहीं होती थी. इसे बनाना और पैक करना काफी आसान था. इसलिए सैनिक भोजन के रूप में इसे अपने साथ ले जाते थे.

कई किताबों के अनुसार 18वीं

 शताब्दी में लंबी दूरी तय करने वाले मुसाफिरों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा ही था. इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि बिहार में पहले लिट्टी-चोखा को किसान लोग खाया और बनाया करते थे. क्योंकि इसे बनाने में अधिक समय नहीं लगता थी और यह पेट के लिए काफी फायदेमंद था.

1857 के विद्रोह में भी हुआ है लिट्टी चोखा खाने का जिक्र

1857 के विद्रोह में सैनिकों के लिट्टी चोखा खाने का जिक्र मिलता है. तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने इसे अपने सैनिकों के खाने के तौर पर चुना था. इसे फूड फॉर सरवाइवल कहा गया. उस दौर में ये अपनी खासियत की वजह से युद्धभूमि प्रचलन में आया. इसे बनाने के लिए किसी बर्तन की जरूरत नहीं है, इसमें पानी भी कम लगता है और ये सुपाच्य और पौष्टिक भी है. सैनिकों को इससे लड़ने की ताकत मिलती. ये जल्दी खराब भी नहीं होता. एक बार बना लेने के बाद इसे दो-तीन दिन तक खाया जा सकता है। बिहार की धरती का फेमस लिटी चोखा की रेसिपी जाने।

लिट्टी-चोखा बनाने के लिए सामग्री

लिट्टी के लिए सामग्री

आटा – 2 कप

सत्तू – 1 कप

तेल – 2 टी स्पून

घी – 2 टेबल स्पून

प्याज बारीक कटा – 1

लहसुन कद्दूकस – 5

हरी मिर्च कटी – 3

हरा धनिया बारीक कटा – 1/2 कप

अजवाइन – डेढ़ टी स्पून

नींबू रस – 1 टी स्पून

अचार मसाला – 1 टेबल स्पून

नमक – स्वादानुसार

चोखा बनाने की सामग्री

बड़ा बैंगन गोल वाला – 1

आलू – 3

टमाटर – 2

प्याज बारीक कटा – 1

अदरक बारीक कटा – 1 टुकड़ा

हरी मिर्च बारीक कटी – 2

लहसुन कटी – 3

हरा धनिया – 1 टी स्पून

नींबू – 1

तेल – 1 टेबल स्पून

नमक – स्वाद के अनुसार

लिट्टी-चोखा बनाने की विधि

लिट्टी चोखा बनाने के लिए सबसे पहले लिट्टी बनाने की शुरुआत करें. सबसे पहले आटे को लें और उसे अच्छी तरह से छान लें. फिर उसे एक बर्तन में निकाल लें. अब इसमें घी, स्वादनुसार नमक डालकर अच्छे से मिला दें. अब गुनगुने पानी की मदद से आटे को नरम गूंथ लें. अब इस गुंथे हुए आटे को आधा घंटे के लिए ढंककर अलग रख दें.

इसके बाद लिट्टी का मसाला तैयार करने की शुरुआत करें. सबसे पहले एक बर्तन में सत्तू निकाल लें. उसमें हरी मिर्च, धनिया, अदरक, नींबू का रस, काला नमक, जीरा, सादा नमक और अचार का मसाला डालकर अच्छी तरह से मिला लें. इस मिश्रण में थोड़ा सा सरसों का तेल भी डाल दें. अब इसमें हल्का सा पानी मिला दें और मसाले को दरदरा बना लें.

अब गुंथे हुए आटे को लें और उससे मीडियम साइज की लोइयां बना लें. इन लोइयों को हथेली पर रखकर कटोरी जैसा आकार दें. अब इसमें तैयार किया गया लिट्टी मसाला एक से दो चम्मच के बीच भरें. और आटे को चारों ओर से उठाकर बंद कर दें. अब इसे गोल कर लोई बना लें. जब लोई गोल हो जाए तो उसे हथेली से दबाकर थोड़ा सा चपटा कर लें. अब एक लोहे का बर्तन लें उसमें लकड़ी या कोयले की मदद से आग तैयार करें. अब आपने जो लोई तैयार की हैं उन्हें इस आग में सेंक लें. बीच में चेक करते रहे कि लिट्टी अच्छे से सिकी है या नहीं. जैसे-जैसे लिट्टी सिकते जाएं उन्हें आग से बाहर निकालकर अलग रख दें।

जानिए हजार की जगह क्यों ' K ' लिखते है ? क्या होता है "K" का मतलब


कभी-कभी हमारे मन में कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनके जवाब हम जानना तो चाहते हैं पर उसका सही उत्तर नहीं मिल पाता है। हमारे जीवन में ऐसे कई शब्द होते हैं जिसका लोग खूब इस्तेमाल करते हैं मगर उसका अर्थ नहीं जानते हैं। अपने आसपास के माहौल से प्रभावित होकर हम भी उस शब्द को लिखना बोलना शुरू कर देते हैं। आपने अक्सर देखा होगा हजार को कई जगहों पर 'K' से दर्शाया जाता है। इसका सबसे आसान उदाहरण है यूट्यूब पर जो सब्सक्राइबर्स दिखते हैं वो 300K या 500K लिखे होते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हजार को K से क्यों दर्शाते हैं?

आजकल के समय में सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और यहां तक कि कई दस्तावेजों में 'हजार' को दर्शाने के लिए 'K' का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे, ₹10,000 को ₹10K लिखा जाता है। ये तो सभी को पता है कि मिलियन को 'M' से दर्शाया जाता है, बिलियन को 'B' से दर्शाया जाता है, ऐसे बहुत से लोगों के दिमाग में सवाल आता है कि हजार यानी थाउजेंड को T के बजाय K से क्यों दर्शाया जाता है?

दरअसल, ग्रीक शब्द ‘Chilioi’ का अर्थ हजार होता है और माना जाता है कि K शब्द वहीं से आया है और उसके बाद हजार की जगह K का प्रयोग पूरे विश्व में होने लगा। हजार की जगह K का जिक्र बाइबल में भी देखने को मिलता है।

'K' का मतलब 'किलो'

असल में 'K' अक्षर 'किलो' का शॉर्ट फॉर्म है। साइंस में, 'किलो' का मतलब 1000 होता है। इसका सबसे सरल उदाहरण है- 1000 ग्राम को 1 किलोग्राम कहते हैं। उसी तरह 1000 मीटर को एक किलोमीटर कहते हैं। यही वजह है कि 1000 को K से दर्शाया जाता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि K को हजार दर्शाना एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है। इसका सबसे सामान्य उदाहरण हमें सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी वीडियो को 25 हजार बार देखा गया है तो वहां 25K लिखा होता है। जैसे ही वीडियो को 10 लाख से अधिक बार देखा जाता है वो मिलियन यानी 1M में दिखने लगता है।

केंद्र सरकार की कार्रवाई: नोटरीकृत विवाह और तलाक पर प्रतिबंध

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने स्पष्ट चेतावनी जारी की है कि नोटरीकृत विवाह और तलाक अवैध हैं, और इन प्रथाओं में शामिल नोटरी को गंभीर कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ेगा। यह घोषणा कानून और न्याय मंत्रालय के एक हालिया ज्ञापन के माध्यम से की गई, जिसमें नोटरी कर्तव्यों की सख्त सीमाओं पर जोर दिया गया।

कानूनी मामलों के विभाग द्वारा जारी ज्ञापन में कहा गया है कि नोटरी अधिनियम, 1952 के तहत नियुक्त नोटरी के पास विवाह या तलाक के कामों को निष्पादित करने का अधिकार नहीं है, यह भूमिका विशेष रूप से विवाह अधिकारियों को सौंपी गई है। 

कानून और न्याय मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस निर्देश से कोई भी विचलन नोटरी अधिनियम, 1952 और नोटरी नियम, 1956 दोनों का उल्लंघन माना जाता है।

भारत सरकार के उप सचिव राजीव कुमार ने कहा, “नोटरी द्वारा इस तरह के कदाचार वैवाहिक कार्यवाही की कानूनी अखंडता और गंभीर प्रकृति को बाधित करते हैं।” ऐसी गतिविधियों में शामिल होना जो स्पष्ट रूप से उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, न केवल कानूनी प्रणाली को कमजोर करता है बल्कि ऐसे कार्यों में शामिल पक्षों के लिए महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करता है।” 

मंत्रालय के ज्ञापन में कई मिसालों का भी हवाला दिया गया है, जिसमें पार्थ सारथी दास बनाम उड़ीसा राज्य का निर्णय शामिल है, जिसमें अदालत ने फैसला सुनाया था कि नोटरी के पास विवाह अधिकारी के रूप में कार्य करने का कानूनी अधिकार नहीं है। इसके अलावा, भगवान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें नोटरी कर्तव्यों को नियंत्रित करने वाले विधायी ढांचे के पालन के महत्व को रेखांकित किया गया था। 

सरकार अब इस नियम को और अधिक सख्ती से लागू करने के लिए कदम उठा रही है, जिसमें नोटरी गतिविधियों की अधिक बारीकी से निगरानी और उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड शामिल हैं।

इसमें नोटरी के रजिस्टर से संभावित निष्कासन और शासकीय कानूनों के अनुसार अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई शामिल है।

विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधिकारियों ने विवाह या तलाक के इच्छुक सभी पक्षों से उचित कानूनी चैनलों का पालन करने का आग्रह किया है, साथ ही चेतावनी दी है कि इन उद्देश्यों के लिए नोटरीकृत दस्तावेजों पर निर्भरता को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाएगी और इसके परिणामस्वरूप कार्यवाही अमान्य हो सकती है। 

यह निर्देश सरकार द्वारा कानून के शासन को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है कि विवाह और तलाक जैसी व्यक्तिगत स्थिति से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी वैधता और कानूनी मानदंडों के पालन के साथ संचालित की जाती हैं।

अक्टूबर-नवंबर में यमुना में क्यों बनता है झाग? जानें दिल्ली की हवा के प्रदूषण का कनेक्शन


नई दिल्लीः अक्टूबर और नवंबर के दौरान दिल्ली वायु और जल प्रदूषण की दोहरी चुनौती से जूझती है, जिसमें यमुना नदी में झाग बनना एक प्रमुख समस्या बन जाती है. पहले से ही प्रदूषण के उच्च स्तर से बोझिल दिल्ली की यमुना नदी मॉनसून के बाद के महीनों और सर्दियों की शुरुआत के दौरान झाग के कारण और भी बदतर स्थिति का सामना करती है. मॉनसून की बारिश से जहां प्रदूषक अस्थायी रूप से कम हो जाते हैं, वहीं जल स्तर कम होते ही मुख्य समस्याएं फिर से उभर आती हैं।

आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इस मौसमी घटना के कारणों का पता लगाया है. यमुना पर झाग मुख्य रूप से नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषकों और सीवेज के उच्च स्तर के कारण होता है. आवासीय और औद्योगिक कचरे से फॉस्फेट और सर्फेक्टेंट युक्त डिटर्जेंट की वजह से भी झाग बढ़ता है. 

नदी में छोड़े जाने पर ये रसायन पानी के सतही तनाव को कम कर देते हैं, जिससे झाग बनता है. अनुपचारित सीवेज की बढ़ी हुई मात्रा समस्या को और बढ़ा देती है. 

यमुना में झाग बनने के पीछे पर्यावरणीय और मानवजनित कारक

नदियों में झाग बनना एक ऐसी घटना है, जिसके लिए अक्सर पर्यावरण और मानवजनित कारकों को जिम्मेदार बताया जाता है. यमुना के मामले में विशेष रूप से अक्टूबर और नवंबर के दौरान कई परिस्थितियों के कारण यह भयावह दृश्य देखने को मिलता है. 

पर्यावरणीय कारक झाग निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मॉनसून के तुरंत बाद गर्म पानी का तापमान सर्फेक्टेंट की गतिविधि को बढ़ाता है ऐसे यौगिक जो पानी के सतही तनाव को कम करते हैं, जिससे झाग निर्माण को बढ़ावा मिलता है. जैसे-जैसे शुष्क मौसम शुरू होता है, पानी का प्रवाह दर कम हो जाता है. यह ठहराव झाग के संचय के लिए एकदम सही परिस्थितियां प्रदान करता है, जैसा कि यमुना में देखा गया है. 

खासतौर पर दिल्ली में यमुना नदी अनुपचारित सीवेज के कारण गंभीर प्रदूषण से ग्रस्त है. नदी में हर दिन 3.5 बिलियन लीटर से अधिक सीवेज आता है, फिर भी सिर्फ 35-40% का ही उपचार किया जाता है.

अनुपचारित अपशिष्ट प्रदूषण के स्तर में भारी योगदान देता है, जो उच्च प्रवाह के दौरान झाग का कारण बनता है. मॉनसून के मौसम के बाद झाग का निर्माण तेज हो जाता है क्योंकि सर्दियों में ठंडा तापमान झाग को फैलाने की जगह स्थिर कर देता है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी इस बारे में बताया कि यमुना में झाग बनने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें मुख्य रूप से अनुपचारित सीवेज का भारी प्रवाह है. 

वहीं यमुना में प्रवेश करने वाले पानी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अनुपचारित सीवेज है, यानी प्रतिदिन लगभग 2 अरब लीटर अनुपचारित पानी. यह अपशिष्ट जल सर्फेक्टेंट से भरा होता है, ये रासायनिक पदार्थ आमतौर पर डिटर्जेंट और औद्योगिक उत्सर्जन में पाए जाते हैं. सर्फेक्टेंट में पानी के सतही तनाव को कम करने का अनूठा गुण होता है, जो झाग बनने में मदद करता है. जब ऐसा अनुपचारित पानी तापमान और प्रवाह गतिशीलता जैसी अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों से मिलता है तो नदी में झाग बनने लगता है. 

एक अन्य योगदान कारक फिलामेंटस बैक्टीरिया की उपस्थिति है. ये जीव सर्फेक्टेंट अणु छोड़ते हैं, जो झाग को स्थिर करने में सहायता करते हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में चीनी और कागज़ उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक हिंडन नहर के ज़रिए यमुना में प्रवेश करते हैं, जिससे झाग की समस्या और भी बढ़ जाती है. 

यमुना जैसी नदियों में झाग बनने के पीछे का विज्ञान

यमुना और अन्य जल निकायों जैसी नदियों में झाग बनना एक स्पष्ट लेकिन जटिल पर्यावरणीय मुद्दा है, जो अक्सर प्रदूषकों की उपस्थिति का संकेत देता है. झाग के पीछे मुख्य दोषियों में से एक सर्फेक्टेंट हैं, जो आमतौर पर साबुन और डिटर्जेंट में पाए जाने वाले पदार्थ हैं. ये सर्फेक्टेंट मुख्य रूप से अनुपचारित सीवेज के माध्यम से जल प्रणालियों में प्रवेश करते हैं और पानी के सतही तनाव को कम करते हैं, जिससे बुलबुले बनने और बने रहने में आसानी होती है

जैसे-जैसे नदियां आगे बढ़ती हैं और बहती हैं, ये बुलबुले झाग के बड़े पैच में इकट्ठे हो जाते हैं।

सर्फेक्टेंट के अलावा नदियां कार्बनिक पदार्थों की महत्वपूर्ण मात्रा को भी अवशोषित करती हैं. इसमें सड़े हुए पौधे, मृत जीव और कृषि अपशिष्ट शामिल हैं. जैसे-जैसे ये कार्बनिक पदार्थ टूटते हैं, वे गैस छोड़ते हैं. सर्फेक्टेंट युक्त पानी में ये गैसें फंस जाती हैं, जिससे झाग बनने में और भी मदद मिलती है. इस तरह के कार्बनिक पदार्थों का संचय अक्सर कृषि अपवाह और खराब अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं का परिणाम होता है.

इसके अलावा कई प्रदूषित जलमार्ग हाइपोक्सिया से पीड़ित हैं कम घुलित ऑक्सीजन स्तर की स्थिति - नाइट्रेट्स और फॉस्फेट से पोषक तत्व प्रदूषण के कारण और भी बढ़ जाती है. 

यह स्थिति यूट्रोफिकेशन की ओर ले जाती है, जहां अत्यधिक पोषक तत्व शैवाल के खिलने को उत्तेजित करते हैं. जैसे-जैसे ये खिलते हैं और सड़ते हैं, वे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें छोड़ते हैं. सर्फेक्टेंट के साथ मिलकर ये गैसें बुलबुले के निर्माण को बढ़ाती हैं, जिसके कारण झाग बनता है.

 

यमुना में झाग बनने से बढ़ सकता है वायु प्रदूषण

पानी में मौजूद वाष्पशील कार्बनिक प्रदूषक, जैसे कि फथलेट्स, हाइड्रोकार्बन और कीटनाशक, वायुमंडल में वाष्पित हो सकते हैं. खास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां इन प्रदूषकों का स्तर बहुत अधिक है, जैसे कि यमुना नदी, ये प्रदूषक पानी और हवा के बीच विभाजन कर सकते हैं, वायुमंडलीय ऑक्सीडेंट के साथ प्रतिक्रिया करके द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल (SOAs) बना सकते हैं. यह प्रक्रिया तापमान, आर्द्रता और पानी की कार्बनिक संरचना सहित पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है. शोध से पता चलता है कि ऐसे प्रदूषित वातावरण में पानी और कार्बनिक प्रजातियों की उपस्थिति वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को हवा में ले जाने में मदद कर सकती है, जिससे वायु गुणवत्ता के लिए अतिरिक्त चिंताएँ पैदा होती हैं. प्रो. त्रिपाठी के अनुसार, यमुना पर बनने वाला झाग न केवल प्रदूषण का एक दृश्य संकेत है, बल्कि वायु प्रदूषकों का एक संभावित खतरनाक स्रोत भी है।

प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि यमुना के झाग का स्थिर बुलबुला मुख्य रूप से कार्बनिक प्रजातियों से बना है जो वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) छोड़ते हैं. ये वीओसी शहरी वातावरण में वायु प्रदूषण के लिए महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं, क्योंकि वे वायुमंडल में प्रतिक्रिया करके ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर सहित द्वितीयक प्रदूषक बना सकते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.

उन्होंने बताया कि पानी और हवा के बीच जटिल कार्बनिक पदार्थों का विभाजन भी हो रहा है. इस प्रक्रिया का मतलब है कि झाग में मौजूद कई कार्बनिक यौगिक हवा में स्थानांतरित हो रहे हैं, जिससे प्रदूषकों का मिश्रण बढ़ रहा है और स्मॉग बनता है. हवा में छोड़ी जाने वाली ये वाष्पशील कार्बनिक गैसें और अन्य यौगिक एरोसोल निर्माण के अग्रदूत के रूप में कार्य करते हैं, जो धुंध का एक महत्वपूर्ण घटक है और दिल्ली को घेरने वाली धुंध के प्रमुख कारणों में से एक है.

यमुना में झाग का इंसान के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

जल निकायों में झाग बनना, खास तौर पर यमुना जैसी नदियों में, जल की गुणवत्ता, जलीय जीवन और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. यह घटना मुख्य रूप से प्रदूषण के कारण होती है, जिसके परिणामस्वरूप झाग दिखाई देता है, जिसमें हानिकारक रसायनों और कार्बनिक अपशिष्टों की अधिकता होती है.

प्राथमिक चिंताओं में से एक पानी की गुणवत्ता में गिरावट है. झाग उच्च प्रदूषण स्तर का एक संकेत है, जो अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक गतिविधियों से सर्फेक्टेंट, फॉस्फेट और कार्बनिक अपशिष्ट के कारण होता है. ये प्रदूषक पानी को मानव उपभोग और मनोरंजन के लिए असुरक्षित बनाते हैं. इसके अलावा अत्यधिक कार्बनिक प्रदूषकों की उपस्थिति यूट्रोफिकेशन की ओर ले जाती है, जिससे शैवाल खिलते हैं. जब ये शैवाल सड़ने लगते हैं, तो वे पानी में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, जिससे हाइपोक्सिया होता है, जो पानी की गुणवत्ता को और खराब कर देता है.

जलीय जीवन पर इसका प्रभाव बहुत गंभीर है. झाग में मौजूद सर्फेक्टेंट और जहरीले रसायन जलीय जीवों, खास तौर पर मछलियों की कोशिकीय झिल्लियों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे मृत्यु दर और प्रजनन संबंधी चुनौतियां पैदा होती हैं. इसके अलावा पानी में ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियों और अन्य एरोबिक जीवों का दम घुट सकता है. पोषक तत्वों की अधिकता से उत्पन्न शैवालों के खिलने से भी विषाक्त पदार्थ बनते हैं, जिससे जलीय जीवन खतरे में पड़ जाता है और पानी मानव उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है. 

पारिस्थितिकी तंत्र के दृष्टिकोण से झाग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है. मछलियों और विभिन्न जलीय प्रजातियों की मृत्यु से खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी होती है, शिकारियों पर असर पड़ता है और असंतुलन पैदा होता है. झाग और शैवाल द्वारा जलीय पौधों के दम घुटने से जीवित रहने के लिए इन पौधों पर निर्भर प्रजातियों के लिए आवास का नुकसान होता है.

इससे मानव स्वास्थ्य भी खतरे में है. झाग वाले प्रदूषित पानी में भारी धातु और कीटनाशक जैसे हानिकारक तत्व मौजूद होते हैं. ऐसे पानी के संपर्क में आने से त्वचा में जलन, जठरांत्र संबंधी समस्याएं और कैंसर सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

आज का इतिहास:1959 में आज ही के दिन हुई थी चीन और भारत की सेनाओं में भिड़ंत


नयी दिल्ली : 21 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 1951 में आज ही के दिन भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी।

1970 में 21 अक्टूबर को ही नारमन इ बारलॉग को नोबेल का शांति पुरस्कार दिया गया था। 

1990 में आज ही के दिन दूरदर्शन ने दोपहर की हिंदी और इंग्लिश न्यूज बुलेटिन शुरू किया था।

2013 में आज ही के दिन कनाडा की संसद ने मलाला युसफजई को कनाडा की नागरिकता दी थी।

2012 में 21 अक्टूबर के दिन ही साइना नेहवाल ने डेनमार्क ओपन सुपर सीरीज खिताब अपने नाम कर लिया था।

2008 में आज ही के दिन भारत व पाकिस्तान के बीच 61 वर्ष बाद कारवां-ए-तिजास शुरू हुआ था।

2003 में 21 अक्टूबर को ही चीन और पाकिस्तान का नौसैनिक अभ्यास शुरू हुआ था।

1999 में आज ही के दिन सुकर्णो पूत्री मेघावती इंडोनेशिया की उप-राष्ट्रपति चुनी गईं थीं।

1999 में 21 अक्टूबर को ही फिल्म निर्माता बी.आर चोपड़ा को दादासाहेब फालके पुरस्कार दिया गया था।

1990 में आज ही के दिन दूरदर्शन ने दोपहर की हिंदी और इंग्लिश न्यूज बुलेटिन शुरू की थीं।

1970 में 21 अक्टूबर को ही नारमन इ बारलॉग को नोबेल का शांति पुरस्कार दिया गया था।

1959 में आज ही के दिन चीन और भारत की सेनाओं में भिडंत हुई थी।

1951 में 21 अक्टूबर को ही भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी।

1950 में आज ही के दिन चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा जमा लिया था।

1948 में 21 अक्टूबर के दिन ही संयुक्त राष्ट्र ने आण्विक हथियार नष्ट करने के रूस के प्रस्ताव को ठुकराया था।

1945 में आज ही के दिन फ्रांस में महिलाओं को पहली बार वोट करने का अधिकार मिला था।

1934 में 21 अक्टूबर को ही जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था।

1934 में आज ही के दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना सिंगापुर में की थी।

1871 में 21 अक्टूबर को ही अमेरिका में पहला अव्यवसायी आउटडोर एथलेटिक खेल (न्यूयॉर्क) हुआ था।

1805 में आज ही के दिन स्पेन के तट पर ट्राफलगर की लड़ाई हुई थी।

1727 में 21 अक्टूबर को ही रूस और चीन ने सीमाओं को सही करने के लिए समझौते किए थे।

1577 में आज ही के दिन गुरु रामदास ने अमृतसर नगर की स्थापना की थी।

21 अक्टूबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1887 में आज ही के दिन बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह का जन्म हुआ था।

1889 में 21 अक्टूबर के दिन ही भारतीय पुरातत्व के विद्वान काशीनाथ नारायण दीक्षित का जन्म हुआ था।

1931 में आज ही के दिन प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेता शम्मी कपूर का जन्म हुआ था।

1939 में 21 अक्टूबर को ही हिंदी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री और नर्तकी हेलन का जन्म हुआ था।

1949 में आज ही के दिन इज़राइल के नौवें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म हुआ था।

21 अक्टूबर को हुए निधन

2012 में आज ही के दिन भारतीय फिल्म मेकर यश चोपड़ा का निधन हुआ था।