कल मनाया जाएगा जीवित्पुत्रिका पर्व, बच्चों के लिए मां करती है ये कठिन व्रत
नितेश श्रीवास्तव
भदोही। सनातन धर्म में जीवित्पुत्रिका पर्व का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है। इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक अनवरत निर्जला उपवास रखती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती के बच्चे तेजस्वी ओजस्वी और मेधावी होते हैं। सनातन पंचांग के अनुसार इस बार 24 सितंबर को दिन बुधवार यानी कल है। यह जीवित्पुत्रिका व्रत है। पूर्वांचल की महिलाएं इसे जिउतिया भी कहती हैं। यह पर्व हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन विवाहित स्त्रियां व्रत रखती हैं।इस व्रत के पुण्य प्रताप से संतान दीर्घायु होता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि जितिया करने वाले व्रती के संतान की रक्षा स्वंय भगवान श्रीकृष्ण करते हैं। जिले में जिउतिया व्रत को लेकर महिलाओं ने तैयारियां शुरू कर दी है। महिलाएं बाजारों में खरीदारी करने के साथ ही व्रत की तैयारियाें में जुटी हैं। 24 घंटे तक निर्जला उपवास का यह कठिन व्रत महिलाएं अपने संतान की लंबी और आरोग्य पूर्ण आयु के लिए रखती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पिता की मौत से नाराज होकर पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला।
यह सभी द्रौपदी की पांच संतानें थी। जिसपर अर्जुन अश्वत्थाम को बंदी बनाकर उनकी दिव्य मणि छिन ली। जिस पर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पुण्य प्रताप के बल पर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित किया। भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से उत्पन्न बच्चे नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। आगे चलकर यहीं राजा परीक्षित के नाम से प्रचलित हुए। तभी से इस व्रत को माताएं संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं।
Sep 24 2024, 16:07