एम्स में इंटर पोजीशनल आर्थोप्लास्टि प्रक्रिया से 5 वर्षीय बच्चे के जबड़े का हुआ सफल आॅपरेशन
गोरखपुर। एम्स गोरखपुर में दंत शल्य विभाग द्वारा एक नयी तकनीक से बहुत कम समय एवं खोपड़ी में बहुत छोटे चीरे से 5 वर्ष के बच्चे का जटिल आॅपरेशन किया गया। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, गोरखपुर के दंत रोग विभाग ने एक जटिल सर्जरी को अंजाम दिया है। गोरखपुर निवासी 5 वर्षीय बच्चे के पिछले 2 वर्ष से छत से गिरने की वजह से और इसके बाद मुँह ना खुलने और कुपोषण से ग्रसित था ।
मरीज के पिता कुशीनगर जिÞले के रामकोला के निवासी हैं एवं प्रवासी मजदूर एवं किसान हैं।
बच्चे के पिता वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर के बहुत सारे डॉक्टरो एवं अस्पतालों को दिखाने के बाद भी जब समस्या बढ़ती चली गयी तब गोरखपुर एम्स के दंत रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं मैक्सिलोफेशियल सर्जन डा शैलेश कुमार को दिखाया। मरीज की गहन जाँच तथा स्कैन के बाद ये पता चला की मरीज एक जटील किस्म की समस्या से ग्रसित था। मरीज के खोपड़ी की हड्डी निचले जबड़े की हड्डी से पूरी तरह से जुड़ गई थी. जिसकी वजह से पिछले 2 वर्षों से मरीज मुँह ना खुलने की वजह से सिर्फ़ तरल खाने पर निर्भर था, जिसके कारण मरीज का स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा था. आॅपरेशन के दौरान चेहरे की नशों को बचाते हुए (एंकिलोज्ड मास) हड्डी का टुकड़ा निकाला गया ह और हड्डी दुबारा खोपड़ी से जुड़ न जाए इसके लिए मरीज के सिर के अंदर से फैट के कुछ हिस्से को काट कर जबड़े के ज्वाइंट में डाला गया। इस प्रक्रिया को इंटर पोजीशनल आर्थोप्लास्टि कहते हैं।
इस बीमारी में मुंह का निचला जबड़ा खोपड़ी के हिस्से में जुड़ जाता है, जिसे मुंह खुल नही पता है। जिसे बेहोश करने की प्रक्रिया भी जटिल हो जाती है. इसमें मरीज के नाक के द्वारा फाइबर आॅप्टिक स्वास नली डाली गई। ऐम्स निदेशक एवं सीईओ डा (प्रो) जी के पॉल को दंत शल्य विभाग द्वारा मरीज की समस्या की जानकारी दी गई. मरीज की बेहोशी जाँच निश्चेतना विभाग के द्वारा किया . मैक्सिलोफेशियल सर्जन डा शैलेश ने बताया की ऐसे मरीजों में बेहोशी की प्रक्रिया बहुत ही जटिल होती है, जिसके लिए विशेष उपकरण और बहुत तैयारी की जरूरत होती है. इस आॅपरेशन में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा देवेश सिंह एवं ईएनटी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा रुचिका अग्रवाल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मरीज की सर्जरी पूर्ण बेहोशी मैं दंत रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं ओरल एंड मैक्सिलोफेशल सर्जन डा शैलेश कुमार द्वारा किया गया. आमतौर पर ऐसे आॅपरेशन में 5-6 घंटे का वक़्त लगता है, लेकिन इस आॅपरेशन में एक नयी विधि से कान के पास बहुत ही छोटे चिरे से केवल ढ़ेढ़ घंटे में आॅपरेशन को अंजाम दिया गया. आमतौर पर विदेशों में ऐसी तकनीक से आॅपरेशन किया जाता है. ऐम्स निदेशक ने डा शैलेश कुमार एवं उनकी टीम को सफल आॅपरेशन की बधाई दी। ऐम्स निदेशक द्वारा नियमित रूप से मरीज के स्वास्थ्य की जानकारी ली जा रही है. आॅपरेशन के बाद मरीज अभी स्वस्थ है और स्पेशल वार्ड में डा शैलेश की निगरानी में है।
दंत विभाग के विभागाध्यक्ष ने डाक्टरों की पूरी टीम को सफल आॅपरेशन की बधाई दी एवं हर्ष व्यक्त किया. इस आॅपरेशन में दंत विभाग के सीनियर रेजीडेंट डा प्रवीण कुमार एवं जूनियर रेजिÞडेंट डा दिव्या पाठक, डा अंकुर पाँडे शामिल रहे। एनेस्थीसिया विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा विक्रम वर्धन, एडिशनल प्रोफेसर डा भूपिन्दर सिंह, एसोसियेट प्रोफेसर डा गणेश आर निमजे, डा अंकिता काबी, डा प्रियंका द्विवेदी और जूनियर एकेडमिक रेजीडेंट डा अभिषेक ने भी योगदान दिया।
पूर्वांचल एवं गोरखपुर एम्स में इतने कम उम्र के बच्चे में इतना जटिल पहला आॅपरेशन है. अभी तक ऐसे मरीजो को आॅपरेशन के लिए दिल्ली या लखनऊ जाना पड़ता था. . डा शैलेश ने बताया की सही समय पर अगर डॉक्टर को दिखाया जाये तो ऐसे आॅपरेशन को टाला जा सकता है. कम उम्र में आॅपरेशन करने के कारण आगे चलकर बच्चे की चेहरे की होने वाली विकृति, साँस की विकृति (डरअ) एवं विकृत चेहरे से होने वाली मानसिक दुष्प्रभाव को टाला जा सका है।
डा शैलेश ने ये बताया है कि बच्चों के चेहरे मैं होने वाले किसी भी एक्सीडेंट, चोट को नजरअंदाज ना करे और किसी भी ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन से ही संपर्क करे. ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन ईस तरह के केस के लिए सुपरस्पेशियलिटी डॉक्टर होते हैं।
Sep 13 2024, 17:53