शीघ्र पहचान, जांच और सम्पूर्ण इलाज से होगा टीबी का उन्मूलन-डॉ गणेश यादव
गोरखपुर, जिले में सक्रिय क्षय रोगी खोजी (एसीएफ) अभियान सोमवार से शुरू हो गया। जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने जिला क्षय रोग केंद्र से प्रचार वाहनों को हरी झंडी दिखा कर अभियान का शुभारंभ किया। इसके बाद मीडिया कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शीघ्र पहचान, जांच और सम्पूर्ण इलाज से ही टीबी का उन्मूलन संभव है। इसी उद्देश्य से अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की तीन सदस्यों वाली टीम घर घर जाकर संभावित मरीजों को खोंजेगी। इससे पहले जिले में 12 एसीएफ अभियान चल चुके हैं, जिनकी मदद से 3145 नये टीबी रोगी खोजे गये और उन्हें टीबी मुक्त किया जा सका।
जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ यादव ने बताया कि इस बार करीब 10.88 लाख की आबादी के बीच मरीज ढूंढे जाएंगे। कुल 1227 सदस्यों वाली 409 टीम लोगों के घर जाएंगी। जिन घरों पर टीम विजिट करेगी वहां स्टीकर लगाना भी अनिवार्य होगा। जिन लोगों को दो सप्ताह से अधिक की खांसी, शाम को पसीने के साथ बुखार, सांस फूलना, तेजी से वजन गिरना, भूख न लगना और बलगम में खून आने जैसी समस्या होगी उन्हें टीबी की जांच के लिए प्रेरित किया जाएगा। उनका मौके पर ही बलगम इकट्ठा किया जाएगा और अगले दिन खाली पेट भी बलगम का सैम्पल लाने के लिए कहा जाएगा। कुल 24 चिकित्सा अधिकारियों की देखरेख में 43 लैब टेक्निशियन प्राथमिकता के आधार पर सभी सैम्पल की जांच करेंगे। अभियान में सहयोगात्मक पर्यवेक्षण के लिए 90 सुपरवाइजर लगाए गये हैं।
उन्होंने बताया कि लोगों को समझाया जाएगा कि शीघ्र जांच और इलाज शुरू होने के बाद टीबी मरीज से संक्रमण की आशंका कम हो जाती है। इसके विपरीत जो टीबी मरीज जांच और इलाज नहीं करवाते हैं वह पूरे वर्ष में दस से पंद्रह नये लोगों को इस बीमारी से संक्रमित कर सकते हैं। समय से इलाज न शुरू होने पर ड्रग सेंसिटिव (डीएस) टीबी का मरीज भी ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी का मरीज बन सकता है। इसकी वजह से जो बीमारी छह माह में ठीक हो सकती है, उसे ठीक होने में डेढ़ से दो साल तक का समय लग जाता है। डीआर टीबी मरीज में जटिलताएं अधिक होती हैं और अगर मरीज लापरवाही करते हैं तो मृत्यु की आशंका भी बढ़ जाती है। टीबी के सम्पूर्ण जांच और इलाज की सुविधा विभाग के पास उपलब्ध है।
डॉ यादव ने बताया कि मधुमेह व एचआईवी के मरीजों, ईंट भट्ठा श्रमिकों, मलिन बस्तियों के निवासियों और अति कमजोर वर्ग के लोगों एवं कुपोषितों में टीबी की आशंका अधिक रहती है। ऐसे लोगों को हल्के फुल्के लक्षण आने पर भी जांच अवश्य करवानी चाहिए। विभाग को जो नये टीबी मरीज मिलते हैं उनकी सीबीनॉट जांच कराई जाती है। बाजार में यह जांच करवाने के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। प्रत्येक नये टीबी मरीज की एचआईवी और मधुमेह की जांच भी कराई जाती है। प्रत्येक एचआईवी मरीज की भी टीबी जांच अवश्य कराते हैं। यह सारी सुविधाएं सरकारी स्वास्थ्य तंत्र में उपलब्ध हैं।
इस अवसर पर उप जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव, जिला कार्यक्रम समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग, टीबी एचआईवी कोआर्डिनेटर राजेश सिंह, कमलेश कुमार गुप्ता, केके शुक्ला, इंद्रनील, मयंक और गोबिंद प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।
मरीजों को मिलेंगी सुविधाएं
टीबी मरीजों को पोषण के लिए प्रतिमाह 500 रुपये की दर से इलाज चलने तक खाते में सहायता राशि दी जाती है। कमजोर आय वर्ग के मरीजों को निक्षय मित्रों के जरिये एडॉप्ट कराया जा रहा है ताकि उन्हें पोषण में सहयोग मिल सके और उन्हें मानसिक संबल भी मिले। इससे वह नियमित दवा खाते हैं और जल्दी स्वस्थ होते हैं। डॉ यादव ने बताया कि इससे पहले जिले में चलाए गए बारह एसीएफ अभियान में 38041 संभावित टीबी रोगी खोजे गये, जिनमें से 2261 लोगों में बलगम की जांच के जरिये टीबी की पुष्टि हुई। वहीं 884 लोगों में एक्स रे के जरिये टीबी की पुष्टि हुई। नये टीबी मरीजों के निकट सम्पर्कियों की भी जांच कराई जाती है और जिन लोगों में टीबी नहीं मिलती है उन्हें भी छह माह तक बचाव की दवा खिलाई जाती है।
Sep 09 2024, 19:20