जिन्होंने जीवन भर चुनावों का बहिष्कार किया, अब वो भी चुनावी मैदान में..! जानिए, कितना बदल गया कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अभियान तेजी से चल रहा है। इस चुनावी माहौल में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी कश्मीर आधारित पार्टियां खुद को एक अनजाने परिदृश्य में पा रही हैं। इन दलों को अब अपने पारंपरिक रणनीतियों को छोड़कर नई रणनीतियों की तलाश करनी पड़ रही है।
पिछले तीन दशकों में कश्मीर घाटी में चुनावी प्रक्रिया अक्सर हिंसा, आतंकवादी धमकियों और अलगाववादियों द्वारा चुनाव बहिष्कार के आह्वान से प्रभावित रही है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना और चुनाव के खिलाफ आतंकी धमकी वाले पोस्टर लगाना सामान्य हो गया था। हुर्रियत कांफ्रेंस की ओर से चुनाव बहिष्कार का आह्वान भी चुनावी माहौल को भयावह बना देता था। इसके परिणामस्वरूप श्रीनगर, दक्षिण कश्मीर और उत्तरी कश्मीर के कुछ हिस्सों में मतदान प्रतिशत में भारी गिरावट देखी जाती थी।
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है, और इसे लेकर कई उम्मीदें जताई जा रही हैं। उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन जैसे दिग्गज नेताओं को अब अपनी चुनावी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ा है। उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल में भावनात्मक अपील की है, जिसमें उन्होंने लोगों से अपनी साख बचाने के लिए वोट देने की अपील की है। यह उनकी नई स्थिति को दर्शाता है कि वह अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद चुनावी खेल को समझने में असमर्थ रहे हैं। पिछले 5 वर्षों में सियासी परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है, जिसमें परिसीमन, अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई और आतंकवादी संगठनों पर करवाई शामिल हैं। इन बदलावों ने मतदाताओं को अपने लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग करने के लिए आत्मविश्वास और सुरक्षा प्रदान की है।
सियासी दल इस नए प्रारूप को अपनाने में संघर्ष कर रहे हैं। उमर अब्दुल्ला गांदरबल और बडगाम से चुनाव लड़ेंगे, जबकि पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा और हंदवाड़ा से नामांकन भरकर इसी रणनीति को अपनाया है। यह सुरक्षित कदम उनके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है और उनके राजनीतिक विरोधियों को आक्रमण का मौका भी देता है। दूसरी ओर, अलगाववादियों की मुख्यधारा में वापसी और 36 साल के बहिष्कार के बाद जमात-ए-इस्लामी द्वारा निर्दलीय उम्मीदवारों को मैदान में उतारना यह दिखाता है कि कितना बदलाव आया है। जमात-ए-इस्लामी, जो कि यूएपीए प्रतिबंध के कारण सीधे चुनाव नहीं लड़ सकता, अब निर्दलीय उम्मीदवारों के माध्यम से मुख्यधारा में प्रवेश कर रहा है।
इसी तरह, सलीम गिलानी और सरजन बरकती जैसे पूर्व अलगाववादी नेता भी चुनावी राजनीति में शामिल हो गए हैं। सलीम गिलानी पीडीपी में शामिल हो गए हैं, जबकि सरजन बरकती निर्दलीय के रूप में गांदरबल और बीरवाह से चुनाव लड़ेंगे। इंजीनियर रशीद की तरह, सरजन बरकती भी चुनावी मुकाबला जेल से ही करेंगे।
Sep 08 2024, 10:52