पत्नी, बच्चों व मां की हत्या कर खुद को फांसी लगायी संदर्भ : शक ने एक परिवार को खत्म कर दिया
शक एक ऐसी भावना है जो हमारे दिल और दिमाग को प्रभावित करती है, और इसका इलाज अक्सर आसान नहीं होता। एक कहावत सुनी थी कि शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था। शक ऐसी समस्या है जिसका समाधान ज्ञान या बुद्धिमत्ता से नहीं किया जा सकता बल्कि इसके लिए आत्म विश्लेषण,  संवेदनशीलता और प्रेम की आवश्यकता होती है। शक का इलाज करने के लिए हमें अपने आपको और दूसरों को समझने की कोशिश करनी चाहिए, साथ ही साथ अपने रिश्तों में खुलकर और ईमानदारी से बात करनी चाहिए।
शक के कारण इंसान अपना आपा क्यों खो देते हैं इसके कई कारण हैं
1. भावनात्मक जुड़ाव - जब हम किसी से जुड़ते हैं तो हमारी भावनाएं गहरी होती है । वहीं हमारा विश्वास टूटने पर हम अपना आपा खो देते हैं।
2. अनिश्चितता - शक अनिश्चितता पैदा करता है , जिससे हमारे दिमाग में कई सवाल उठते हैं और हम अपना आपा खो देते हैं ।
3. अहंकार  - जब हमारा अहंकार चोटिल होता है तो हम अपना आपा खो सकते हैं और गुस्से में आ जाते हैं ।
4. भय - शक भय पैदा करता है जैसे कि भय खोने का या धोखा देने का जिससे हम आपा खो देते हैं ।
5. संचार की कमी - जब हम अपनी भावनाएं और चिंताएं साझा नहीं करते हैं तो शक बढ़ता जाता है और हम आपा खो सकते हैं ।
इसलिए यह याद रखना जरूरी है कि शक को दूर करने के लिए खुलकर बात करना,  सुनना और समझना महत्वपूर्ण है।
उपरोक्त कथन आज अखबार में छपी एक दिल को दहला देने वाली खबर पर मन में उठे विचार हैं। शक ने एक परिवार को खत्म कर दिया। भागलपुर में घटित इस घटना में एक पति ने शक के आधार पर सिपाही पत्नी,दो बच्चे और मां की हत्या कर खुद को फांसी लगाकर जान दे दी।
और अंत में आज रिश्ते दरक रहे हैं। इसमें शक आग में घी डाल देता है तब इंसान अपना आपा खो देता है और ऐसा कदम उठा लेता है। इसलिए जब भी ऐसी स्थिति आती है तो खुलकर और ईमानदारी से बात करें । इस दुनिया में हर समस्या का समाधान हो सकता है। एक- दूसरे को समझने की कोशिश करें।
पैसे की खातिर अपने बने जान के दुश्मन संदर्भ : सौतेली मां ने संपत्ति की लालच में दो बेटों को कुएं में फेंका, एक की मौत
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान ।
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान ।।
सूरज ना बदला, चांद ना बदला ना बदला रे आसमान।
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान ।।
कवि प्रदीप का यह गीत आज बहुत ही प्रासंगिक लगता है। सच में इंसान आज काफी बदल गया है। इंसान इंसान नहीं रहा। छोटी-छोटी बातों पर आदमी अपना आपा खो रहा है । इंसान कई सारे रिश्तों और इमोशन से बंधा होता है।  वह हंसता है, रोता है , गुस्सा होता है और इमोशनल भी होता है ।
परंतु कहा जाता है कि "अति सर्वत्र वर्जते" ।  यानी किसी भी चीज की पराकाष्ठा बुरी होती है।  रिश्तों के बीच जब लालच आ जाता है तो रिश्ते बिगड़ जाते हैं और उसके गंभीर प्रणाम भुगतने पड़ते हैं।  लालच और गुस्से की पराकाष्ठा आदमी को हिंसा या अपराध की ओर ले जाती है।  ज्यादा गुस्सैल व्यक्ति न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचता है बल्कि दूसरों को भी हानि पहुंचा सकता है ।
आज प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गुस्से की अवस्था में किये गये अपराध की घटनाएं छायी रहती हैं। ताजा घटना पटना के बिहटा शहर की है , जहां संपत्ति की लालच में सौतेली मां ने दो बेटों को पहले पीटा फिर गला दबाया और उसके बाद कुएं में फेंक दिया। भगवान की दया से पांच वर्ष के एक बच्चे की जान बच गयी मगर उसके सात वर्षीय भाई की मौत हो गयी।
पुरुष हो या महिला लालच और गुस्से की अवस्था में अपना मानसिक संतुलन को देते हैं।  इस अवस्था में उनके सोचने और समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है और वे इस स्थिति में ऐसा कदम उठा लेते हैं जिसके कारण उन्हें जिंदगी भर पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता। बदलती लाइफस्टाइल से लोगों के व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखायी दे रहा है, लेकिन सबसे बड़ा चेंज युवाओं में देखने को मिल रहा है , वह है उनका बढ़ता गुस्सा।
और अंत में लालच बुरी बला है क्योंकि जरूरत से ज्यादा लोभ के कारण हमारे पास जो पहले उपलब्ध है हम उसको भी व्यर्थ गंवा देते हैं । इसलिए संतोष रखें । दो पल के गुस्से में प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है , होश जब आता है तो वक्त निकल जाता है। इसलिए स्वस्थ रहें और मस्त रहें।
हंसते हंसते कट जाएं रस्ते जिंदगी यूं ही चलती रहे संदर्भ : हंसी हमारे लिए एक टानिक है
                                विश्व हास्य दिवस पर विशेष

आज सारी दुनिया आतंकवाद और तीसरे विश्व युद्ध के साये में जी रही है। आज हर व्यक्ति के अंदर आत्म द्वंद्व मचा हुआ है । इससे पहले दुनिया में इतनी अशांति कभी नहीं देखी गयी थी, इसलिए आज हास्य दिवस बहुत ही प्रासंगिक माना जाता है । हंसी ही दुनिया भर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकती है।
जब लोग समूह में हंसते हैं तो सकारात्मक ऊर्जा पूरे क्षेत्र में फैल जाती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है । हंसने से मनुष्य के शरीर में प्राण वायु का संचार अधिक होता है।  नियमित रूप से हंसना शरीर के सभी अंगों को ताकतवर और  पुष्ट बनाता है।
विश्व हास्य  दिवस का उद्देश्य पूरी दुनिया में शांति की स्थापना और मानव मात्र में भाईचारा और सद्भाव जागृत करना है। आज दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी हुई है और तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर दिखायी दे रही है ।
विश्व हास्य दिवस मई माह के प्रथम रविवार को मनाया जाता है । इसका पहला आयोजन मुंबई में 11 जनवरी, 1998 में किया गया था । जिस तरह शारीरिक योग से शरीर शक्तिशाली बनता है। उसी प्रकार हास्य योग सकारात्मक और शक्तिशाली भावना है । इसमें मनुष्य को ऊर्जावान और संसार में शांति स्थापित करने वाले सारे तत्व निहित हैं । आज पूरे संसार में करीब 6000 से भी अधिक हास्य क्लब स्थापित हैं।
हंसी तनाव को कम करती है। इसलिए लोग पार्कों आदि में समूह में हंसते हैं। हंसने के कई शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं , क्योंकि हंसने का सकारात्मक प्रभाव हमारे मन- मस्तिष्क पर पड़ता है। इस दिन को अमल में लाने का श्रेय हास्य योग आंदोलन के संस्थापक डॉक्टर मदन कटारिया को जाता है । इसका खास उद्देश्य समाज में बढ़ते तनाव को कम कर उन्हें सुखी जीवन जीने की सीख देना था । हंसी हमारे लिए एक टॉनिक का काम करती है।
और अंत में   " है जिंदगी उसी की,  जो हंस- हंस के दिन गुजार दे"। विश्व के मशहूर कॉमेडियन एक्टर स्व. चार्ली चैपलिन ने कहा था कि "हंसी के बिना गुजारा गया दिन एक बर्बाद दिन होता है" । इसलिए खूब हंसे और दूसरों को हंसाये और स्वस्थ रहें। भाग -दौड़ भरी जिंदगी में तनाव से मुक्ति दिलाती है हंसी ।

विकास की पराकाष्ठा नदियों पर पड़ रही भारी संदर्भ : भूजल का दोहन कम कर भूजल पुनर्भरण है अति आवश्यक
                    नदी नाले सूखे पड़े सूखे पनघट ताल।
                   भीषण गर्मी ने किये जीव जंतु बेहाल ।।

विकास की अंधी दौड़ और आधुनिकता की पराकाष्ठा से बड़े - बड़े शहरों के किनारे बहाने वाली नदियां या तो नाले में तब्दील हो गयी हैं या फिर सूखती जा रही हैं। विकास की अंधी दौड़ मानव जीवन पर भारी पड़ती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या और विकास के दबाव के कारण हमारे देश की नदियां बदलाव के दौर से गुजर रही हैं । बाढ़ के साथ - साथ सूखा भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
आज के समय में हमारा देश तेजी से प्रगति कर रहा है, परंतु इस प्रगति से कुछ हानि भी हुई है । प्रदूषण इस प्रगति का ही प्रतिफल है । इसकी पहुंच पृथ्वी, आकाश और पाताल तक है। हमारी जीवनदायिनी नदियां जो पानी का मुख्य स्रोत  मानी जाती हैं, वह भी प्रदुषण की चपेट में आ गयी हैं।  इनमें शहरों का गंदा पानी बहाया जा रहा है । साथ ही नदियों के किनारे स्थापित कारखानों का जहरीला पानी भी इसमें बहाया जाता है । इसके परिणाम स्वरूप हमारे देश की किसी भी नदी का पानी पीने योग्य नहीं माना जाता।
इसके  कारण इनमें निवास करने वाले जीव जंतु  भी विलुप्त होने के कगार पर हैं।  यमुना नदी तो नाले में तब्दील हो ही चुकी है । अन्य नदियां भी धीरे-धीरे सूखती जा रही हैं।  दूसरी ओर बड़े  - बड़े बांधों ने जहां लोगों का आवास छीना, वहीं आधुनिक विकास ने नदियों के मैदानी प्रवाह को बंद दिया है।  इसी कारण कभी सूखा तो कभी बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
नदियों को इस स्थिति में पहुंचाने में मानवीय हस्तक्षेप के साथ-साथ ही ग्लोबल वार्मिंग भी एक प्रमुख कारण माना जाता है । इसके कारण औसत वर्षा भी नहीं हो पा रही है।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं जैसे हम अगर सिर्फ और सिर्फ जंक फूड आदि ही खाते रहेंगे तो हमें रुग्ण होने से कोई बचा नहीं सकता । यही हाल आज हमारी नदियों के साथ हो रहा है।  उसमें  भी प्रदूषण रूपी जंक फूड लगातार डाला जा रहा है । यही नदियों के सूखने का कारण बन रहा है।
और अंत में एक व्यापक नीति और दृढ़ सरकारी कार्रवाई के साथ नदियों का पोषण किया जा सकता है ताकि वह भावी पीढ़ियों का भी पोषण कर सकें।  20 वीं सदी में जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि ने वैश्विक जल संसाधनों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है और भविष्य में और अधिक चुनौतियां पैदा होने की संभावना है । भारत में भूजल संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो भूजल के दोहन को कम करे और भूजल पुनर्भरण को बढ़ाये। वर्तमान और अनुमानित भविष्य की जलवायु में भोजन और पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल को बनाये रखना आवश्यक है।
ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा संदर्भ : सोचने की शक्ति क्षीण कर देता है गुस्सा
  
                                 ( एक दूसरे पर विश्वास करें )

भरोसा एक ऐसी चीज है जिसके टूटने पर कोई आवाज तो नहीं आती लेकिन उसकी गूंज  जीवन भर सुनायी देती है। इंसान कई सारे रिश्ते और इमोशन से बंधा होता है । वह रोता है , हंसता है , इमोशनल भी होता है । साथ ही गुस्सा भी करता है।
मनुष्य का स्वभाव एक जैसा नहीं होता।  ज्यादा गुस्सा खून जलाता है यानी ज्यादा गुस्से का असर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।  गुस्से की अधिकता व्यक्ति को अपराध और हिंसा की ओर ले जाती है।  साथ ही गुस्से की अवस्था में इंसान अपनी जान भी दे देता है।  ज्यादा गुस्सैल व्यक्ति न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचता है ।
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में अधिक गुस्से के कारण हुई घटनाओं की भरमार रहती है।  ताजा घटनाएं बिहार के तीन अलग-अलग शहरों में घटीं। पहली घटना सीवान के बड़हरिया में हुई , जहां शादी समारोह में डांस कर रही पत्नी ने जब पति की बात (  डांस नहीं करने )  नहीं मानी तो पति ने ट्रेन से कटकर जान दे दी । दूसरी घटना किशनगंज में हुई जब पारिवारिक विवाद के बाद में एक व्यक्ति ने अपनी जान दे दी । वहीं तीसरी घटना बिक्रमगंज में हुई, जहां चचेरे भाई ने दुल्हन और उसके पिता को पारिवारिक विवाद में गोली मार दी , जिससे दुल्हन के पिता की मौत हो गयी वहीं  दुल्हन जीवन में मौत से जूझ रही है । आज रिश्तों में जो बिखराव आ रहा है उसके पीछे गुस्सा ही मुख्य कारण है।
क्या है निवारण  : ज्यादा गुस्सा जब भी डिसआर्डर में बदल जाता है तो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।  ऐसे व्यक्ति की काउंसलिंग करने से उसके स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है।  साथ ही अनुशासित जीवन शैली के पालन करने और परिवार में समय दे कर तथा परिजनों के साथ समय बिताने से भी इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
और अंत में जिंदगी में सब कुछ दोबारा मिल सकता है लेकिन वक्त के साथ खोया हुआ रिश्ता और भरोसा दोबारा नहीं मिलता। शरीर से निकले प्राण और कमान से निकला तीर वापस नहीं आते।  इसलिए तनाव रहित जीवन जीएं। मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
लोग टूट जाते हैं इक घर बनाने में अग्नि देव तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में संदर्भ : सावधानी हटी दुर्घटना घटी

होनी तो होकर ही रहती है । मगर उसे टालने का प्रयास या उपाय अवश्य करने चाहिए । पटना जंक्शन के पास गुरुवार की सुबह हुए होटल पाल अग्निकांड में 6 लोगों की मौत हो गयी और कई लोग घायल हो गये।
बताया जाता है कि दोनों होटलों का फायर ऑडिट एक साल पहले हुआ था। उस समय खामियां पाये जाने पर होटल मालिकों को निर्देश दिया गया था कि फायर अलार्म और आग बुझाने के उपकरणों की व्यवस्था जल्द से जल्द करें।  मगर दोनों होटल मालिकों द्वारा आदेश की अनदेखी करते हुए फायर सेफ्टी मानकों की व्यवस्था नहीं की गयी। दोनों होटल में कॉरिडोर नहीं होने के कारण आग बुझाने में परेशानी हुई।
राजधानी पटना में हजारों लोग कुछ न कुछ काम से आते ही रहते हैं। जंक्शन के पास लाज, रेस्टोरेंट, होटलों की भरमार है। ट्रेन से उतर कर बाहर निकल लोग होटल ही जाते हैं। पर इन होटलों में सुविधाओं की काफी कमी होती है।
अगलगी की घटनाएं किसी भी मौसम में हो सकती हैं लेकिन गर्मियों में उनके बढने की कई वजहें हैं जैसे एसी , पंखे , कूलर और इलेक्ट्रिक उपकरणों का ज्यादा उपयोग होने के कारण लोड बढ़ता जाता है । इसके कारण स्पार्किंग और शॉर्ट सर्किट होने का खतरा बढ़ता जाता है ।
ज्यादातर मामले उपरोक्त वजहों से ही सामने आते हैं । एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार अगलगी की होने वाली घटनाओं में हर साल करीब 10 हजार की लोगों मौत हो जाती है। अग्निकांडों मौतों की संख्या बढ़ाने की यही वजह बतायी जाती है ।
इनमें बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों और कॉम्प्लेक्सों में वेंटिलेशन की कमी, सीढियों का कम चौड़ा होना या जगह की कमी होना ,  आने और जाने के लिए एक ही रास्ता होना,  वायरिंग या इलेक्ट्रिक बोर्ड का जर्जर होना , वार्निंग या अलार्म सिस्टम का ना होना और बिल्डिंग में क्षमता से अधिक लोगों का मौजूद होना शामिल है।
वहीं गुरुवार को ही दरभंगा में भी हुए अग्निकांड में एक ही परिवार के छह लोगों की जान चली गयी।

और अंत में भीषण गर्मी, तापमान में वृद्धि और तेज पछुआ हवा के कारण आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती जा रही है। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब कहीं न कहीं आग लगने की घटनाएं न होती हों।  सावधानी बरत कर ही हम जान माल के नुकसान से बच सकते हैं।
पप्पू पास होगा या फेल,सबकी नजर पुर्णिया पर संदर्भ : तेजस्वी की साफ बात राजद या एनडीए
                  ( हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली )


सीमांचल की पुर्णिया सीट राजद के लिए नाक की लड़ाई बन गयी है । राजद उम्मीदवार बीमा भारती के समर्थन में तेजस्वी यादव पूर्णिया में डेरा डाल चुके हैं। वहीं अपनी पार्टी का टिकट मिलने की उम्मीद में कांग्रेस में विलय करने वाले बाहुबली पप्पू यादव टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।  वहीं एनडीए ने संतोष कुशवाहा को अपने  उम्मीदवार के रूप में दोहराया है ।
राजद के लिए प्रतिष्ठा की बात बने पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले और मोदी लहर के कारण संतोष कुमार , वहीं क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरा होने के कारण पप्पू यादव व राजद की बीमा भारती के बीच मुकाबला दिलचस्प बनता जा रहा है ।
संतोष कुशवाहा और पप्पू यादव दोनों के क्षेत्र में लोकप्रिय होने के कारण दोनों के वोटर अलग-अलग है।  इसलिए दोनों एड़ी चोटी का जोर लग रहे हैं। वहीं  राजद उम्मीदवार के लिए तेजस्वी को इस प्रचंड  गर्मी में काफी पसीना बहाना पड़ रहा है। जनसभाओं में तेजस्वी पप्पू यादव पर सारी भड़ास निकाल रहे हैं।
उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया है कि या तो बीमा भारती को विजयी बनायें या फिर एनडीए प्रत्याशी को। तेजस्वी यादव समझ रहे हैं कि पूर्णिया में पप्पू यादव मामला बिगड़ सकते हैं । उन्हें बीमा भारती को मिलने वाले वोट पप्पू की तरफ जाते दिख रहे हैं ।
दूसरी ओर एनडीए उम्मीदवार के समर्थन में पीएम की जनसभा और क्षेत्र का जनप्रतिनिधि होने के नाते संतोष कुशवाहा विजय की तिकड़ी लगाने की सोच रहे हैं ।
और अंत में पुर्णिया का ताज  किसके सिर होगा, इसका फैसला तो चार जून को ही होगा । मगर राजद और पप्पू यादव के बीच बढ़ती तल्खी को देखकर एनडीए उत्साहित दिख रहा है।
श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य , समाज और राष्ट्र का करती हैं मार्गदर्शन संदर्भ : किताबों से दोस्ती हमेशा साथ निभाती है
                                विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष

किताबें न सिर्फ ज्ञान देती हैं बल्कि कला, संस्कृति, लोक जीवन और सभ्यता के बारे में भी बताती हैं । बचपन में पहले घर और फिर स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती रहती है।  पर आजकल लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है । किताबों से लोग दूर भाग रहे हैं।
आज सभी लोग सब कुछ नेट पर ही खंगालना चाहते हैं । इसका दुष्प्रभाव भी दिखायी दे रहा है । कारण लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है । बच्चों में यह समस्या ज्यादा दिख रही है।  किताबें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति , सहेज कर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार की शिक्षा देती हैं।
दूसरी और कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ते रुझान के कारण किताबों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है । लोग नेट के  अदृश्य जाल में धीरे-धीरे फंसते जा रहे हैं । वहीं नेट पर लगातार बैठे रहने से लोगों की आंखों और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
ऐसे में किताबों के प्रति लोगों में रुचि जागृत करना जरूरी हो गया है। किताबें और लोगों के बीच बढ़ती दूरी को पाटने के लिए 23 अप्रैल, 1995 को यूनेस्को ने विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया।  इसके बाद पूरे विश्व में इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।
लोगों में किताबों के प्रति रुचि जगाने के लिए मनाये जाने वाले विश्व पुस्तक दिवस पर स्कूलों में बच्चों में पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ती दर पर किताबें बांटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं । साथ ही स्कूल  और सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तकें पढ़ने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है । लोगों में किताबों के प्रति रुचि जगाने में पुस्तकालय भी अहम भूमिका निभा सकते हैं बशर्ते कि उनका रख रखाव सही तरीके से हो और साथ ही स्तरीय और रुचिकर पुस्तकें और पत्रिकाएं  उपलब्ध करायी जायें।
और अंत में आज किताबों के प्रति घटते प्रेम और आकर्षण के प्रति गंभीर रूप से सोचने और इस दिशा में सार्थक प्रयास करने की जरूरत है। 23 अप्रैल, 1995 को पहली बार पुस्तक दिवस मनाया गया था । कालांतर में यह हर देश में मनाया जाने लगा । किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है,  इसके बारे में जानकारी देने के लिए विश्व पुस्तक दिवस पर विभिन्न स्थानों पर गोष्ठियां भी आयोजित की जाती है। किताबों से दोस्ती हमेशा साथ निभाती है।
व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका व्यक्तित्व संदर्भ : वैश्विक शांति के लिए सारे विश्व की नजर भारत पर

                                          जियो और जीने दो * भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव
* विकसित राष्ट्रों की नजर भारत पर


आज चौतरफा संघर्ष में घिरी दुनिया में अगर शांति की किरण दिखायी देती है तो वह हैं भगवान महावीर के संदेश। विकसित और समृद्ध देशों की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर पहुंच गयी है। भगवान महावीर के उपदेश सत्य , अहिंसा और अपरिग्रह को अपनाकर कोई भी व्यक्ति या राष्ट्र अपने आप को सफल बना सकता है । एक व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका व्यक्तित्व  होता है , क्योंकि व्यक्ति तो समाप्त हो जाता है लेकिन उसका व्यक्तित्व सदैव जीवित रहता है ।
हजारों वर्ष पहले दी गयीं भगवान महावीर की शिक्षाएं आज के दौर में तो और भी प्रासंगिक लगती हैं । " जियो और जीने दो"  का संदेश देने वाले भगवान महावीर ने इसके माध्यम से सारी दुनिया को शान्ति की राह दिखायी थी । भगवान महावीर की शिक्षाओं का केंद्रीय आधार अहिंसा है।  इसलिए भगवान महावीर ने मौखिक, मानसिक और शारीरिक रूप से अहिंसा का अभ्यास करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया
मगर विकसित राष्ट्रों के लिए भगवान महावीर के संदेश " अहिंसा परमो धर्म" और " जियो और जीने दो " लगता है प्रासंगिक नहीं लगते। तभी तो आज सारी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़ी हुई है। आज संपन्न और विकसित देश अपने परमाणु हथियारों के बल पर अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं।
रूस - यूक्रेन, हमास - इजरायल और इजरायल - इरान  के बीच जारी संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। हजारों लोगों की जान जा चुकी है। कहीं से भी युद्ध खत्म करने का प्रयास नहीं किया जा रहा। विकसित देश युद्धरत देशों को अत्याधुनिक हथियारों की खेप उपलब्ध करा अपना फायदा उठा रहे हैं।
और अंत में इसलिए आज जरूरत है भगवान महावीर के अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत को अपनाकर विश्व में शांति स्थापित करने और जियो और जीने दो का संदेश देने की।
सूर्यकुल भूषण राम लला का भगवान भास्कर ने किया राजतिलक कलियुग में धन्य हुई अयोध्या नगरी
2 2 जनवरी , 2024  वो ऐतिहासिक तिथि जब करीब 500 साल बाद राम लला टेंट से निकाल कर भव्य और अलौकिक मंदिर में विराजित हुए। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली रामनवमी अर्थात राम लला का पहला भव्य जन्मोत्सव अयोध्यावासियों ने बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया।
इस अवसर पर करीब 24 से 25 लाख लोग राम लला के दर्शन के लिए देश के कोने कोने से आये। इनमें विदेशी भी शामिल थे। इस बार की रामनवमी एक मायने में और खास थी, वह यह कि भगवान भास्कर ने स्वयं श्री राम लला का तिलक किया , जो करीब 4 से 6 मिनट तक का था ।
सूर्य वंश के अधिष्ठाता भगवान सूर्य ने 17 अप्रैल के 12 बजे ज्योंहि सूर्यवंश कुल भूषण राम लला का राज तिलक किया अयोध्या, वहां के निवासी, बाहर से आये भाग्यशाली दर्शनार्थियों सहित करोड़ों टीवी दर्शकों के रोम -रोम सिहर उठे। वे अपलक इस अविस्मरणीय क्षणों को अपने नेत्रों में बसा लेना चाहते थे। इस अदभुत क्षण के दर्शन करने के लिए देश के हर कोने से दर्शानार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। वहीं दर्शनार्थियों की उमड़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने ठोस व्यवस्था की है।  इस बार सात लाइनों में दर्शनार्थियों को कतारबद्ध होकर दर्शन कराया गया । पहले जन्मोत्सव पर राम लला  बहुत ही आकर्षक और विशेष पोशाक में अद्भुत छटा बिखेर रहे थे।