भोपाल गैस त्रासदी की 39 वीं बरसी पर विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन
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बेतिया: विश्व की औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी की 39 वीं बरसी पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन।
स्वच्छ वातावरण, पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की रोकथाम का छात्र छात्राओं ने लिया संकल्प। आज दिनाँक 3 दिसंबर 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन मे एक श्रध्दांजलि सभा का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एम्बेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल हक, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी ,पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन एवं डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन आज से 39 वर्ष पूर्व 3 दिसंबर 1984 को भारत के भोपाल में हुए गैसकांड ने पूरी दुनिया को हिला दिया।
विश्व औधोगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना थी। 3 दिसंबर 1984 की आधी रात थी जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हजारों लोग सोए तो थे अगली सुबह जागने के लिए लेकिन वो सुबह कभी नहीं हुई। अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के संयत्र में गैस रिसाव से लोगों का दम घुटने लगा ,यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थी।
इस गैस कांड में करीब 150,000 लोग विकलांग हुए वहीं 22000 लोग दुर्घटना के कारण मारे गए। इसकी वजह से भोपाल त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है। चारों ओर सिर्फ धुंध ही धुंध थी, धुंध के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा था कि किस रास्ते जान बचानी है ।चारों ओर दम घुटने से लोग मर रहे थे। उस सुबह अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे, और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के अंदर 3000 से अधिक लोग मारे गए थे, लेकिन अगर प्रत्यक्षदर्शियों का और गैस त्रासदी पर काम कर रहे एनजीओ की मानें तो उस त्रासदी में मरने वालों की संख्या कई गुना थी जिसे मौजूदा सरकार ने दबा दिया था। वो तो महज एक रात थी लेकिन मरने वालों का और उस गैस से पीड़ित लोगों के मौतों का सिलसिला बरसों तक चलता रहा। इस दुर्घटना के शिकार लोगों की संख्या 20 हजार तक बताई जाती है।
उस रात यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। वहीं इस रिसाव के बारे में बताया जाता है कि टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना, इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और उससे रिसी गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली। इस रिसाव से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग, ये वो लोग थे जो रोजीरोटी की तलाश में दूर-दूर के गांवों से आ कर वहां रह रहे थे।
इस रिसाव ने महज तीन मिनट में हजारों लोग न केवल मौत की नींद सो गए बल्कि लाखों लोग हमेशा-हमेशा के लिए विकलांग हो गए, जो आज भी इंसाफ के इंतजार में है। उस रात के कई किस्से आज भी लोग याद करके सिहर जाते हैं।
हांफते और आंखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुंचे तो ऐसी स्थिति में उनका क्या इलाज किया जाना चाहिए, ये डॉक्टरों को मालूम ही नहीं था। डॉक्टरों की मुश्किलें शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह नहीं थी। वहां आए लोगों में कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सब को थी।
एक अनुमान के अनुसार पहले दो दिनों में करीब 50 हजार लोगों का इलाज किया गया। शुरू में डॉक्टरों को ठीक से पता नहीं था कि क्या किया जाए क्योंकि उन्हें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पीड़ित लोगों के इलाज का कोई अनुभव जो नहीं था। हालांकि गैस रिसाव के आठ घंटे बाद भोपाल को जहरीली गैसों के असर से मुक्त मान लिया गया था।
लेकिन 1984 में हुए इस हादसे से अब भी यह शहर उबर नहीं पाया है। रिपोर्ट्स में ये भी पता चला है कि गैस रिसाव के बाद कंटामिनेशन धीरे-धीरे और खराब होता जा रहा है। रिसर्च बताती हैं कि गैस का साइड इफेक्ट इतना अधिक था कि आज भी जन्म लेने वाले बच्चों पीड़ित होते हैं।
Dec 03 2023, 18:13