आधुनिक सभ्य समाज में युद्ध एवं सशस्त्र संघर्षों से पर्यावरण एवं मानव जीवन पर व्यापक शोध जरूरी।
![]()
फिलिस्तीन इजरायल एवं यूक्रेन रूस युद्ध से पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की रोकथाम एवं मानव जीवन के लिए है घातक। पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए विश्व समुदाय आगे आए। युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों ने विश्व समुदाय से अपील की।
6 नवंबर 2023 को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार, सत्याग्रह भवन में किया गया। इसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, बुद्धिजीवी और छात्र उपस्थित थे। का आयोजन किया। भाग लिया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति राजदूत सह महासचिव रिसर्च फाउंडेशन डॉ. एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ. सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ. शाहनवाज अली, डॉ. अमित कुमार लोहिया, वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल हक , सामाजिक कार्यकर्ता नवीदुन चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच. शाहीन परवीन के संयोजक डॉ. मेहबोबुर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि हर साल 6 नवंबर को पूरी दुनिया में युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर वक्ताओं ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि फिलिस्तीन इजरायल एवं यूक्रेन रूस युद्ध में प्रतिबंध घातक हथियारों के इस्तेमाल से पर्यावरण संरक्षण जलवायु परिवर्तन की रोकथाम एवं मानक जीवन के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है। राष्ट्र निर्माण के लिए एक राष्ट्र को कई युद्धों, झगड़ों और संघर्षों से गुजरना पड़ता है। मानवता ने हमेशा युद्ध में हताहतों की संख्या, मृत और घायल सैनिकों, नागरिकों, बर्बाद शहरों और नागरिकों, युद्धों और सशस्त्र संघर्षों के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति के संदर्भ में सोचा है। जिसे हमने जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी के हमलों ,खाड़ी युद्ध , यूक्रेन एवं गाज़ा में देखा। यह मानव विनाश तक ही सीमित नहीं है, दुनिया में बादल छाए हुए हैं, चाहे इसका असर यहां की मिट्टी, पानी, जानवर, पेड़-पौधे, जंगल और पर्यावरण पर पड़ रहा हो। इस विषय पर एक महत्वपूर्ण बैठक 5 नवंबर 2001 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान कोफ़ी अन्नान (तत्कालीन महासचिव) की देखरेख में आयोजित की गई थी। सभा ने माना कि सशस्त्र संघर्ष के बाद भी पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
दुनिया में बहुत से लोग इंटरनेट, तकनीक, रेडियो आदि के माध्यम से जुड़ते हैं और युद्ध के बाद के प्रभावों और समाधानों पर चर्चा करते हैं। कई विशेषज्ञ, शिक्षक, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, पत्रकार, शिक्षक आदि सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को सीमित करने के तरीके खोजने के लिए सामूहिक रूप से काम करते हैं। इस दिशा में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन , मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं दुनिया के कई संगठन मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी के जीवन को सुरक्षित बनाया जा सके।
इस विषय पर विश्व समुदाय का ध्यान केंद्रित करने के लिए सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा विश्वविद्यालयों, स्कूलों में सेमिनार, भाषण, व्याख्यान, समाचार लेख, वेबिनार और कक्षा गतिविधियाँ आयोजित की जा रही हैं। इस छोटे से प्रयास में युद्ध में नई प्रौद्योगिकियों के खतरों के बारे में जानें और ज्ञान साझा करें। जैसे कि यूरेनियम गोला-बारूद, जो पर्यावरण के लिए अज्ञात ख़तरा पैदा करता है। इन स्थितियों से पर्यावरण की रक्षा का ज्ञान दुनिया को होना चाहिए। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि युद्ध और सशस्त्र संघर्षों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर व्यापक शोध होना चाहिए, ताकि दुनिया को पता चल सके कि युद्ध और सशस्त्र संघर्षों से पर्यावरण पर कितना गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
Nov 07 2023, 16:42