*आजमगढ़:- परिस्थितियां विपरीत होने पर मनुष्य में मानवता का उत्तरोत्तर होता है ह्रास*
वी कुमार यदुवंशी
फूलपुर(आजमगढ़)। फूलपुर के अतरडीहा ग्राम सभा में चल रहे नौ दिवसीय कथा में प्रशांतानंद जी महाराज ने कहा धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। धर्म की रक्षा करने वाला मनुष्य कभी पराजित नही होता, क्योकि उसकी रक्षा स्वय धर्म (ईश्वर, मनुष्य, प्रकृति, ब्रम्हाण्ड, इत्यादि) करता है।
धर्म एक आधार है जिस पर मनुष्य के नैतिक एवं मानवीय गुण यथा दया, क्षमा, तप, त्याग, मनोबल, सत्यनिष्ठा, सुबुद्धि, शील, पराक्रम, नम्रता, कर्तव्यनिष्ठा, मर्यादा, सेवा, नैतिकता, विवेक, धैर्य इत्यादि पनपते हैं।
धर्म की छत्रछाया में इन गुणों का सर्वांगीण विकास होता है। मनुष्य सिर्फ अपनी मानवाकृति के कारण मनुष्य नहीं कहलाता बल्कि अपने उपरोक्त गुणों से वास्तविक मनुष्य बनता है।
मनुष्यों और पशुओं में अंतर शारीरिक नहीं है बल्कि पशुओं में ऊपर बताये गए मौलिक मानवीय गुणों में से कुछ का अभाव होता है। हाँ यहाँ ये भी कह देना आवश्यक है की पशुओं में कुछ वो गुण जरूर होते हैं जो आजकल के मनुष्यों में नहीं होते हैं।
मौलिक मानवीय गुणों का सिर्फ होना ही आवश्यक नहीं है बल्कि उनकी निरंतर रक्षा भी होनी चाहिए। ये कार्य भी धर्म के सुरक्षा आवरण में रह के ही हो सकता है क्योंकि अनेक अवसरों पर ये देखा गया है कि परिस्थितियां विपरीत होने पर मनुष्य में मानवता का उत्तरोत्तर ह्रास होने लगता है।
ऐसा क्यों होता है क्योंकि मनुष्य में धैर्य का अभाव होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नामक षटरिपुओं के अधीन मानव केवल स्वयं के बारे में सोचना शुरू कर देता है। खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने का दर्प, ऊँचाई पर पहुँचने की तीव्र इच्छा मानव को दानव बना देती है। किसी से छीनी हुई वस्तु उसे लज्जित नहीं वरन गौरवान्वित करती है।
किसी के आंसुओं का उसके लिए कोई मोल नहीं रह जाता। दया, व्यवसायिकता की आंधी में उड़ जाती है। किसी भी चीज को सही-गलत के हिसाब से देखने के बजाये मनुष्य उसे लाभ-हानि के दृष्टिकोण से देखने और समझने लगता है।सुजीत जायसवाल आशु, राजेश पांडेय, सुनील सिंह, दिनेश पांडेय, संजय दुबे, दिनेश राजभर, अनुराग मौर्य, इंद्रबली प्रजापति, अजय मौर्या, माहगु प्रजापति, डॉक्टर शर्मा, कृष्णा गौड आदि सैकड़ो ग्रामीण उपस्थित रहे।
Oct 17 2023, 16:59