पीएम मोदी का वाराणसी दौरा आज, अपने संसदीय क्षेत्र समेत पूरे यूपी को देंगे 1000 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं की सौगात

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 सितंबर को उत्तर प्रदेश के वाराणसी पहुंचेंगे। पीएम मोदी आज वाराणसी के साथ पूरे उत्तर प्रदेश को 1565 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे। इन सौगात में सबसे अहम वाराणसी के गंजारी में 450 करोड़ रुपये से बनने वाले पूर्वांचल के पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का लोकापर्ण है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी काशी सहित प्रदेश में 16 अटल आवासीय विद्यालयों का भी लोकार्पण करेंगे।

ऐसा होगा पीएम का कार्यक्रम

प्रधानमंत्री शनिवार को प्रदेशवासियों को 1565 करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे। इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। पीएमओ से मिली जानकारी के मुताबिक पीएम मोदी करीब छह घंटे तक वाराणसी में गुजारेंगे। दोपहर साढ़े बारह बजे आएंगे। पीएम सबसे पहले गंजारी में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का शिलान्यास करेंगे।क्रिकेट स्टेडियम 450 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है। वे यहां जनसभा को भी संबोधित करेंगे। इसके बाद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में महिलाओं से संवाद करेंगे। यह संवाद महिला आरक्षण विधेयक पर होगा। महिलाएं प्रधानमंत्री को सम्मानित करेंगी। यहां से पीएम रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर जाएंगे। वहां काशी सांसद खेल महोत्सव के विजेता प्रतिभागियों से संवाद करेंगे। साथ ही काशी सहित उत्तर प्रदेश के अटल आवासीय विद्यालयों को लोकार्पण करेंगे। अटल आवासीय विद्यालय 1115 करोड़ से बने हैं। इनमें दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों से वर्चुअल जुडेंगे।

ये होंगे खास मेहमान

अतंरराष्ट्रीय स्टेडियम के शिलान्यास समारोह को भव्य और यागदार बनाने की पूरी तैयारी कर ली गई है। इस खास कार्यक्रम में क्रिकेट के दिग्गज समेत कई खिलाड़ियों को निमंत्रण दिया गया है।प्रशासन ने जो सूची तैयार की है, उसके मुताबिक गंजारी में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के शिलान्यास समारोह में पीएम मोदी के मंच पर 18 लोग रहेंगे। इसमें क्रिकेट की हस्तियां भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीसीसीआई के अध्यक्ष रोजर बिन्नी, सचिव जय शाह, उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला, सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, कपिल देव, करसन घावरी, दिलीप वेंगसरकर, मदनलाल, गुडप्पा विश्वनाथ, यूपी के खेलमंत्री गिरीश चन्द्र यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या और विधायक त्रिभुवन राम मौजूद रहें।

शिवमय होगा स्टेडियम 

पीएम की ओर से आज प्रदेश को दी जाने वाली सौगातों में सबसे अलग और सबसे खास है करीबन सवा तीन सौ करोड़ रुपए की लागत से बननेवाला क्रिकेट स्टेडियम।यह पूर्वांचल का पहला क्रिकेट स्टेडियम होगा। इस स्टेडियम को जिस तरह से बनाया जा रहा है, उसमें काशी की संस्कृति के दर्शन भी होंगे।दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक बनारस को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है। इसीलिए, स्टेडियम के निर्माण में शिव की भी झलक देखने को मिलेगी।स्टेडियम के डिजाइन की जो तस्वीरें अभी तक सामने आय़ी हैं, उसके मुताबिक इसमें भगवान शिव से जुड़े हुए वस्तुओं के आधार पर ही डिजाइन बन रहा है। स्टेडियम के सामने बनने वाले मीडिया सेंटर का डिजाइन भगवान शिव के डमरू की तरह होगा। डे-नाइट मैच के दौरान मैदान को रोशन करने वाली फ्लड लाइट्स त्रिशूल के आकार की होंगी।स्टेडियम का प्रवेश द्वार जिस आकार का बनाया जा रहा है, वह बेलपत्र की तरह दिखेगा। इसकी छत अर्द्धचंद्राकार है। इस स्टेडियम में 30 हजार लोग बैठ सकते हैं और इसे बनाने के लिए दो साल का समय अनुमानित है। काशी की सांस्कृतिक झलक को दिखाने की इस स्टेडियम में पूरी कोशिश की गयी है।

भारत के गुस्से को झेल रहे हैं ट्रूडो पर क्यों नहीं कर रहे खालिस्तानियों पर कार्रवाई?

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भारत और कनाडा के बीच संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। इसी साल जून में खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंट की कथित संलिप्तता के कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों के बाद दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया है।कनाडा के साथ भारत के रिश्तों में खालिस्तान की वजह से संबंधों में उतार-चढ़ाव पहले भी आते रहे हैं, लेकिन इससे पहले कभी ये इतना आगे नहीं बढ़े थे।कनाडा में खालिस्‍तानी आतंकवाद को शह मिलने की वजह से दोनों देशों के संबंधों में खटास कई सालों से बरकरार थी। मगर ट्रूडो ने आधिकारिक तौर पर, पूरी दुनिया के सामने भारत पर एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या का आरोप लगा दिया। जिसके बाद से तनाव बढ़ता ही जा रहा है।ऐसे में सवाल ये उठता है कि भारत के बार-बार कहने के बावजूद वहां से भारत के खिलाफ चलाई जा रहीं अलगाववादी गतिविधियों के खिलाफ ट्रूडो कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है? क्या ट्रूडो के साथ मजबूरी है?

दरअसल, सिख कनाडा में सबसे तेजी से बढ़ रहा समुदाय है। यह ईसाई, मुस्लिम और हिंदू के बाद कनाडा का चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। भारत के बाद सबसे अधिक सिख कनाडा में ही बसते हैं। ओंटारियो, ब्रिटिश कोलंबिया और अलबर्टा में इस समुदाय की सघन बसाहट है। अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी कनाडा में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। कनाडा में रहने वाले सात लाख 70 हजार सिखों में से दो लाख 36 हजार सिख कनाडा के नागरिक हैं। चार लाख 15 हजार सिखों को परमानेंट रेजिडेंट (PR) का दर्जा हासिल है। इनके अलावा एक लाख 19 हजार सिख नॉन परमानेंट रेजिडेंट के तौर पर रह रहे हैं।

यही नहीं, कनाडा में बड़ा वोट बैंक सिख हैं। 2019 में कनाडा के भीतर सिख मूल के 18 सांसद थे, उसी साल भारत से 13 सिख लोकसभा सांसद चुने गए। 2021 में कनाडाई संसद के चुनाव में 15 सिख निर्वाचित हुए।जाहिर है ट्रूडो के लिए सिख आबादी को नजरअंदाज कर आगे बढ़ पाना संभव नहीं। वह सियासी फायदे के लिए आग से खेलने की कोशिश कर रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो महज़ 44 साल की उम्र में पहली बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे। साल 2019 में वो दोबारा इस कुर्सी पर बैठे लेकिन उस वक़्त तक उनकी लोकप्रियता काफ़ी कम हो चुकी थी। 2019 में कोरोना महामारी आई। ट्रूडो की लिबरल पार्टी को भरोसा था कि इस महामारी से निपटने में उनकी काबिलियत को देखते हुए हाउस ऑफ़ कॉमन्स (कनाडा की संसद का निचला सदन) में उन्हें आसानी से बहुमत मिल जाएगा। वर्ष 2019 में समय से पहले चुनाव कराए गए। ट्रूडो की लिबरल पार्टी की 20 सीटें कम हो गईं। लेकिन इसी चुनाव में जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 24 सीटें मिली थीं। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक़, जगमीत सिंह पार्टी के नेता बनने से पहले खालिस्तान की रैलियों में शामिल होते थे। ट्रिब्यून इंडिया ने एक ख़बर में इस स्थिति का ज़िक्र करते हुए विश्लेषकों के हवाले से लिखा है, "ट्रूडो के प्रधानमंत्री बने रहने के लिए जगमीत सिंह का समर्थन बहुत ज़रूरी हो गया था। शायद ये भी एक बड़ी वजह है कि ट्रूडो सिखों को नाराज़ करने का ख़तरा मोल नहीं ले सकते थे।"

वहीं, दूसरी तरफ करीब चार दशकों से खालिस्तानी आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है। 60 के दशक में वहां लिबरल पार्टी की सरकार आई। उसे मैनपावर की जरूरत थी। जो हिंदुस्तान जैसे देश से उसे कम कीमत पर मिल रहा था। इसी दौरान सिखों में चरमपंथी समुदाय भी बन चुका था। खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन हो रहे थे। भी ऑपरेशन ब्लू स्टार चला, जिसके बाद खालिस्तानी भागकर कनाडा में शरण लेने लगे। फिलहाल जो हालात हैं, वो कुछ ऐसे हैं कि सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है।

लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए का कुनबा बढ़ा, कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस गठबंधन में शामिल

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देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।आने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए। एक तरफ विपक्षी दलों ने केन्द्र की मोदी सरकार के खिलाफ गठबंधन INDIA खड़ा किया है, तो दूसरी तरफ सत्तारूढ़ बीजेपी भी अपना कुनबा बढ़ाने में जुटी है। इसी क्रम में एनडीए का कुनबा उस समय पहले से और बड़ा हो गया जब जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में शामिल हो गई।

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस यानी जनता दल (एस) ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एनडीए में जेडीएस शामिल हो गई है। इतना ही नहीं, एचडी कुमारस्वामी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इस दौरान जेडीएस ने औपचारिक तौर पर एनडीए ज्वाइन किया। 

जेपी नड्डा ने किया ट्वीट

अमित शाह से कुमारस्वामी की मुलाकात के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गोवा के सीएम प्रमोद सावंत भी मौजूद थे। नड्डा ने कुमारस्वामी से मीटिंग के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा- "कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जद(एस) नेता एचडी कुमारस्वामी से मुलाकात की। कुमारस्वामी की पार्टी ने हमारे वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बनने का फैसला किया है। हम एनडीए में उनका तहे दिल से स्वागत करते हैं। यह एनडीए और प्रधानमंत्री मोदी के "न्यू इंडिया, स्ट्रॉन्ग इंडिया" के दृष्टिकोण को और मजबूत करेगा।

कर्नाटक में बीजेपी और जेडीएस की स्थिति

बता दें कि कर्नाटक में लोकसभा की कुल 28 सीट हैं। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक में 25 सीट जीती थीं, जबकि मंड्या सीट पर उसके समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार सुमलता अंबरीश ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस और जद(एस) ने एक-एक सीट जीती थी। इस साल मई में हुए 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 135 सीटों पर जीत मिली, जबकि भाजपा को 66 और जद (एस) को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई।

दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान लिंगायत मतदाताओं ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया जिससे पार्टी की करारी हार हुई। हार को सुनिश्चित करने में पार्टी की अपनी गलतियां भी कम जिम्मेदार नहीं रहीं। पार्टी ने अपने दिग्गज लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्य भूमिका से पीछे खींच लिया, लक्ष्मण सावदी और जगदीश शेट्टार को उनकी सीटों से टिकट देने से इनकार कर दिया गया। पार्टी की नीतियों से नाराज इन नेताओं ने कांग्रेस की ओर रुख कर लिया। उनके साथ उनके मतदाताओं ने भी पाला बदल लिया। इसका असर हुआ कि भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। 

गठबंधन से क्या हो सकता है फायदा?

विधानसभा चुव में मिली हार के बाद बीजेपी सतर्क हो गी है। ऐसे में जेडीएस के साथ आने से दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में सामाजिक और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं। कर्नाटक की आबादी में करीब 17 फीसदी भागीदारी वाला लिंगायत समुदाय बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं। लिंगायत के बाद करीब 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिगा समुदाय दूसरा सबसे प्रभावशाली समाज है। वोक्कालिगा परंपरागत रूप से जेडीएस का वोटर माना जाता है। जेडीएस चीफ एचडी देवगौड़ा खुद भी वोक्कालिगा समुदाय से ही आते हैं। दो पार्टियों के साथ आने से राज्य में एनडीए का वोट बेस करीब 32 फीसदी हो जाएगा। ऐसे में सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से कर्नाटक में एनडीए की जमीन को मजबूती मिल सकती है।

रमेश बिधूड़ी को बीजेपी ने भेजा कारण बताओ नोटिस, बिगड़े बोल पर चौतरफा घिरे बीजेपी सांसद

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लोकसभा में बीएसपी सांसद दानिश अली के खिलाफ अपशब्दों के इस्तेमाल का मामला तूल पकड़ लिया है। अब बीजेपी ने बिधूड़ी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा के निर्देश पर बिधूड़ी को नोटिस भेजा गया। बिधूड़ी ने गुरुवार को लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसे लेकर सदन के उपनेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खेद भी जताया था। वहीं लोकसभा स्पीकर ने भी चेतावनी दी थी। 

विपक्षी सांसदों की ओर से हंगामा किए जाने और बिधूड़ी के खिलाफ कार्रवाई की मांग के बीच बीजेपी ने रमेश बिधूड़ी को असंसदीय भाषा के प्रयोग के लिए यह कारण बताओ नोटिस जारी किया है. बीजेपी ने उन्हें 15 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए कहा है. पार्टी ने पूछा है कि असंसदीय भाषा के इस्तेमाल के लिए क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए?

संसद के विशेष सत्र के चौथे दिन लोकसभा में चंद्रयान 3 की सफलता पर रमेश बिधूड़ी बोल रहे थे। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने बीच में ही टिप्पणी कर दी। इतना करते ही रमेश बिधूड़ी भड़क गए और उन्होंने दानिश अली के खिलाफ सदन में ही अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर दिया।बिधूड़ी ने दानिश को उग्रवादी के साथ कई आपत्तिजनक बातें बोली।

सदन में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की आपत्तिजनक टिप्पणियों पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नाराजगी जताई है और भविष्य में ऐसा व्यवहार दोहराए जाने पर उन्हें कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी।

भाजपा सांसद की अमर्यादित भाषा पर विपक्षी सांसदों ने आपत्ति जताई। विपक्ष के हंगामे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने भाजपा सांसद की बातों को नहीं सुना लेकिन आसन से अपील की कि अगर टिप्पणी से विपक्षी सदस्य नाराज हैं तो इन शब्दों को कार्यवाही से हटा दिया जाए। इसके बाद राजनाथ सिंह ने सांसद के बयान पर माफी मांगी। राजनाथ सिंह के इस कदम की विपक्षी सांसदों ने भी तारीफ की।

आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते ? उदयनिधि स्टालिन पर FIR की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फिर, वरिष्ठ वकील की मांग पर जारी किय

सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को 'सनातन धर्म' के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने को लेकर तमिलनाडु के मंत्री और DMK नेता उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमति दे दी है। इसके साथ ही, याचिका में 'सनातन धर्म उन्मूलन सम्मेलन' के बारे में भी चिंता जताई गई, जहां मंत्री द्वारा कथित तौर पर की गई इन टिप्पणियों से राजनीतिक विवाद पैदा हो गया। कोर्ट ने याचिका में तमिलनाडु राज्य और उदयनिधि स्टालिन सहित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ चेन्नई स्थित वकील बी। तमिलनाडु मुरपोकु एज़ुथालर संगम द्वारा आयोजित तमिलनाडु असंवैधानिक था। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड गोपालन बालाजी के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि सम्मेलन में हिंदू धर्म को निशाना बनाने और आक्रामक और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके नफरत का प्रचार करने का एक जानबूझकर एजेंडा था। न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ चेन्नई में बी जगन्नाथ नामक वकील के कानूनी अनुरोध पर सुनवाई कर रही थी। वह चाहते थे कि अदालत स्टालिन और अन्य लोगों को 'सनातन धर्म' (हिंदू धर्म से संबंधित शब्द) के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करना बंद करने के लिए कहे। वह यह भी चाहते थे कि अदालत यह घोषित करे कि तमिलनाडु में 2 सितंबर को तमिलनाडु मुरपोकु एज़ुथालर संगम द्वारा आयोजित एक सम्मेलन की कानून द्वारा अनुमति नहीं थी। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड गोपालन बालाजी द्वारा प्रस्तुत वकील ने तर्क दिया कि सम्मेलन जानबूझकर हिंदू धर्म की आलोचना करने और आहत करने वाली और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके नफरत फैलाने की कोशिश कर रहा था।

आज की सुनवाई की शुरुआत में ही न्यायमूर्ति बोस ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दामा शेषाद्रि नायडू को इस प्रार्थना के साथ उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी। लेकिन वरिष्ठ वकील सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की अपनी मांग पर अड़े रहे और नफरत फैलाने वाले भाषण के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाले अन्य आवेदनों में अदालत द्वारा दी गई अंतरिम राहत की ओर इशारा किया। उन्होंने तर्क दिया कि, 'अगर कोई व्यक्ति किसी कम्युनिटी या लोगों के समूह के खिलाफ बोलता है, तो एक बार समझा जा सकता है। लेकिन, यह तब समझ से बाहर हो जाता है, जब राज्य अपनी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करता है। छात्रों को एक विशेष धर्म (हिन्दू धर्म) के खिलाफ बोलने का निर्देश देने वाले परिपत्र जारी किए गए हैं। क्या कोई संवैधानिक प्राधिकारी ऐसे भाषण दे सकता है? ये अस्वीकार्य हैं। याचिकाओं का एक समूह पहले ही स्वीकार कर लिया गया है, मुझे अब उच्च न्यायालय जाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। जब ​​व्यक्तियों की बात आती है, तो अदालत ने पहले भी अंतरिम निर्देश जारी किए हैं। यहां, मैं राज्य के बारे में चिंतित हूं।'

भले ही पीठ ने शुरू में याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की, लेकिन अंततः उसने नोटिस जारी करने की वरिष्ठ वकील की अपील स्वीकार कर ली। हालाँकि, अदालत ने इस स्तर पर इस मामले को घृणास्पद भाषण पर याचिकाओं के समूह के साथ टैग करने से इनकार कर दिया। अलग होते हुए, न्यायमूर्ति बोस ने वादकारियों के सीधे उच्चतम न्यायालय में जाने पर भी अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। जज ने चिल्लाते हुए कहा कि, 'आप हाई कोर्ट क्यों नहीं जा सकते? आप हमें पुलिस स्टेशन में बदल रहे हैं।'

क्या है उदयनिधि स्टालिन का बयान

डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन इस महीने की शुरुआत में अपनी उस टिप्पणी के लिए सवालों के घेरे में आ गए थे, जिसमें उन्होंने 'सनातन धर्म' की तुलना 'मलेरिया' और 'डेंगू' जैसी बीमारियों से की थी और इसे समूल नष्ट करने की वकालत की थी। इससे न केवल एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया, बल्कि उदयनिधि के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें भी दर्ज की गईं और साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की गईं। मौजूदा याचिका में उदयनिधि के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है। 

वहीं, कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन किया है, जिसमे कार्ति चिदंबरम, लक्ष्मी रामचंद्रन और कांग्रेस सुप्रीमो मल्लिकर्जुन खड़गे के बेटे एवं कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे का नाम भी शामिल है। जिसके चलते उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में उदयनिधि और उनके समर्थक कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। बता दें कि, अपने बयान के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन के बावजूद उदयनिधि स्टालिन लगातार माफी मांगने से इनकार करते रहे हैं। हालाँकि, विवाद बढ़ने के बाद उदयनिधि ने डैमेज कण्ट्रोल करते हुए कहा था कि, उन्होंने जातिवाद ख़त्म करने की बात कही थी। लेकिन यहाँ गौर करें कि, जातिवाद मिटाने की बात प्रधानमंत्री मोदी, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत कई दलों के कई नेता करते रहे हैं, इसे समाज सुधार की कोशिश के रूप में देखा जाता है और कोई विवाद नहीं होता, लेकिन जब पूरे धर्म का ही नाश करने की बात की जाए और नेतागण उसका समर्थन भी करें, तो ये निश्चित ही नफरत फ़ैलाने वाली बात है। यही कारण है कि, कई पूर्व जजों, आईएएस अधिकारीयों (262 गणमान्य नागरिकों) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उदयनिधि के बयान पर स्वतः संज्ञान लेने और कार्रवाई करने का आग्रह किया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान तो नहीं लिया, याचिका दाखिल किए जाने के बाद भी हाई कोर्ट जाने को कहा, लेकिन अंततः अदालत सुनवाई के लिए राजी हुई और उदयनिधि को नोटिस जारी किया। 

बता दें कि, कुछ समय पहले इसी तरह का एक मामला सामने आया था। जब भगवान शिव का अपमान सुनकर पलटवार के रूप में भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर दी थी, जिसका वीडियो मोहम्मद ज़ुबैर ने सोशल मीडिया पर फैलाया था। ​लेकिन, ज़ुबैर ने अपने एडिटेड वीडियो में केवल नूपुर का बयान शामिल किया था, उसके पहले शिव के अपमान वाली बात उसने काट दी थी। जिससे पता चलता कि, पहले हिन्दू देवता का अपमान हुआ, जिसके जवाब में पैगम्बर पर बयान दिया गया। हालाँकि, उस समय सुप्रीम कोर्ट ने भी 'केवल' नूपुर को ही जिम्मेदार माना था, शिवलिंग को प्राइवेट पार्ट कहने वाले मौलाना अब भी टीवी डिबेट में आते रहते हैं, किन्तु नूपुर गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि, यदि किसी दूसरे धर्म को खत्म करने की बात कही गई होती, तो क्या यही होता, जो उदयनिधि वाले मामले में हो रहा है ? क्योंकि, जातिवाद तो हर धर्म में है, इस्लाम में भी 72 फिरके हैं, जिनमे से कई एक-दूसरे के विरोधी हैं, तो ईसाईयों में प्रोटेस्टेंट- केथलिक, पेंटिकोस्टल, यहोवा साक्षी में विरोध है। तो क्या समाज सुधारने के लिए उदयनिधि, इन धर्मों को पूरी तरह ख़त्म करने की बात कह सकते हैं ? या फिर दुनिया में एकमात्र धर्म जो वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है), सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी सुखी रहें) जैसे सिद्धांतों पर चलता है, जो पूरी दृढ़ता के साथ यह मानता है कि, ईश्वर एक है और सभी लोग उसे भिन्न-भिन्न रूप में पूजते हैं, उस सनातन को ही निशाना बनाएँगे ?

एशियन गेम्स में अरुणाचल के तीन खिलाड़ियों को चीन ने नहीं दिया वीजा, भारत ने दिखाई सख्ती, खेलमंत्री ने रद्द किया दौरा

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चीन में चल रहे एशियाई खेल में अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को एंट्री नहीं दी गई।अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को एशियन गेम्स में चीन की तरफ से एंट्री न देने पर भारत ने बड़ा कदम उठाया है।भारत सरकार ने इस हरकत पर करारा जवाब दिया है। इसके तहत केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एशियन गेम्स का दौरा रद्द करने का फैसला किया है।विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर लिखित बयान में कहा है कि चीन ने अरुणाचल के लोगों के साथ भेदभाव किया है। उन्हें एशियन गेम्स में एंट्री नहीं दी गई है जिसके बाद अब भारत के खेल मंत्री अनुराग ठाकुर उस देश में कदम नहीं रखेंगे।

हांगझोऊ एशियाई खेलों से पहले भारत और चीन के बीच विवाद बढ़ गया है। दरअसल, खेलों से पहले चीन की एक नापाक हरकत सामने आई। उसने हांगझोऊ एशियाई खेलों के लिए अरुणाचल प्रदेश के तीन वूशु खिलाड़ियों को अंतिम क्षणों में वीजा नहीं दिया। जिसके बाद तेगा ओनिलु, लामगु मेपुंग और वांगसू न्येमान भारतीय वूशु टीम के साथ हांगझोऊ नहीं जा पाए। इससे पहले भी 26 जुलाई को विश्व यूनिवर्सिटी खेलों के लिए इन्हीं तीनों खिलाड़ियों को चीन ने नत्थी वीजा जारी किया था। इसके विरोध में भारत सरकार ने पूरी वूशु टीम को एयरपोर्ट से वापस बुला लिया था।

चीन की इस हरकत का भारत सरकार ने पुरजोर विरोध किया है। सरकार ने साफतौर पर कह दिया है कि देश के किसी भी राज्य के साथ ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, भारत सरकार को पता चला है कि चीनी अधिकारियों ने लक्षित और पहले से निर्धारित तरीके से अरुणाचल प्रदेश के कुछ भारतीय खिलाड़ियों को चीन के हांगझोऊ में होने वाले 19वें एशियाई खेलों में मान्यता और एंट्री नहीं देकर उनके साथ भेदभाव किया है।विदेश मंत्रालय ने कहा, हमारी दीर्घकालिक और सुसंगत स्थिति के अनुरूप, भारत डोमिसाइल या जातीयता के आधार पर भारतीय नागरिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार को दृढ़ता से खारिज करता है। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा।

मंत्रालय ने आगे कहा, चीन की कार्रवाई एशियाई खेलों की भावना और उनके आचरण को नियंत्रित करने वाले नियमों दोनों का उल्लंघन करती है, जो स्पष्ट रूप से सदस्य देशों के खिलाड़ियों के खिलाफ भेदभाव को दर्शाती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसके बाद कहा, इसके अलावा चीन की कार्रवाई के खिलाफ हमारे विरोध के रूप में, भारत के सूचना और प्रसारण और युवा मामले और खेल मंत्री ने खेलों के लिए चीन की अपनी निर्धारित यात्रा रद्द कर दी है। भारत सरकार हमारे हितों की रक्षा के लिए उचित कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखती है।

देश के श्रेष्ठ पर्यटन गांव में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के सरमोली का चयन, आधिकारिक घोषणा के साथ 27 को मिलेगा सम्मान

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सरमोली गांव जल्द ही देश का श्रेष्ठ पर्यटन गांव घोषित किया जाएगा। पर्यटन मंत्रालय ने श्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता में सरमोली गांव का चयन किया है। 27 सितंबर को इसकी आधिकारिक तौर पर घोषणा की जाएगी। साथ ही गांव को श्रेष्ठ पर्यटन गांव का पुरस्कार दिया जाएगा। ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय ने श्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता शुरू की है। इस प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के समीप सरमोली गांव का चयन किया गया।

मंत्रालय की केंद्रीय नोडल एजेंसी ग्रामीण पर्यटन और ग्रामीण होम स्टे के माध्यम से प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 795 गांवों के आवेदन मिले। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गांव स्तर पर किए गए बेहतर कार्यों पर सरमोली गांव को श्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चयनित किया गया।

सूत्रों के मुताबिक, पर्यटन मंत्रालय के ग्रामीण पर्यटन भारत की नोडल अधिकारी कामाक्षी माहेश्वरी ने राज्य को पत्र जारी कर सरमोली गांव को देश का श्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चयनित करने की सूचना दी है। पत्र में कहा कि अधिकारिक घोषणा 27 सितंबर को दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम में की जाएगी। कार्यक्रम में पर्यटन विभाग और गांव के एक प्रतिनिधि को भी कार्यक्रम में भेजने का आग्रह किया गया।

नैसर्गिक सुंदरता समेटे है सरमोली गांव

पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के समीप सरमोली गांव अपनी समृद्ध संस्कृति और नैसर्गिक सुंदरता को समेटे हुए है। पर्यावरण संरक्षण के साथ गांव के लोगों ने ग्रामीण पर्यटन को स्वरोजगार बनाया है। ईको टूरिज्म और साहसिक पर्यटन के लिए पर्यटक सरमोली गांव आते हैं। यहां से हिमालय, नंदा देवी, राजरंभा, पंचाचूली, नंदा कोट चोटियों का दृश्य हर किसी को आकर्षित करता है। गांव में होम स्टे पर्यटकों की पहली पसंद है।

बीजेपी सांसद के बिगड़े बोल, सांसद रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली को कहा आतंकवादी, राजनाथ सिंह ने जताया खेद

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भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा सांसद रमेश बिधूड़ी ने लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के दानिश अली के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया। भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कड़ी नाराजगी व्‍यक्‍त की है। उन्‍होंने भाजपा सदस्य रमेश बिधूड़ी को इस तरह का व्यवहार दोबारा दोहराए जाने पर “सख्त कार्रवाई” की चेतावनी दी है।वहीं, बहुजन समाज पार्टी और दानिश अली ने लोकसभा स्पीकर को चिट्टी लिखकर रमेश बिधूडी की सदस्यता रद्द करने की मांग की है। जबकि, बिधूड़ी के इस व्‍यवहार पर सदन के उपनेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी खेद जताया है।

बता दें कि आज संसद के विशेष सत्र के चौथे दिन लोकसभा में चंद्रयान 3 की सफलता पर रमेश बिधूड़ी बोल रहे थे। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने बीच में ही टिप्पणी कर दी। इतना करते ही रमेश बिधूड़ी भड़क गए और उन्होंने दानिश अली के खिलाफ सदन में ही अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर दिया।बिधूड़ी ने दानिश को उग्रवादी के साथ कई आपत्तिजनक बातें बोली।

लोकसभा अध्यक्ष ने जताई नाराजगी

सदन में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की आपत्तिजनक टिप्पणियों पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नाराजगी जताई है और भविष्य में ऐसा व्यवहार दोहराए जाने पर उन्हें कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी।

विपक्ष ने की निलंबन की मांग

अब बहुजन समाज पार्टी और दानिश अली ने लोकसभा स्पीकर को चिट्टी लिखकर रमेश बिधूडी की सदस्यता रद्द करने की मांग की है। पार्टी की नेशनल कोर्डिनेटर और पार्टी चीफ मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने यह मांग की है।

भाजपा सांसद के बयान पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मांग की कि रमेश बिधूड़ी को सदन से निलंबित कर देना चाहिए। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि 'अगर उन्होंने आतंकवादी कहा है तो हमें इसकी आदत है। इन शब्दों का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किया गया था। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि भाजपा से जुड़े मुस्लिम इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? इससे पता चलता है कि वह हमारे बारे में क्या सोचते हैं? उन्हें शर्म आनी चाहिए।'

राजद सांसद मनोज झा ने कहा कि 'उन्हें रमेश बिधूड़ी के बयान से दुख हुआ है लेकिन वह हैरान नहीं हैं। प्रधानमंत्री के वसुधैव कुटुंबकम का यही सच है। हमें इस बारे में सोचने की जरूरत है अगर ऐसे शब्द देश की संसद में किसी सांसद द्वारा इस्तेमाल किए गए तो देश के मुस्लिमों, दलितों के खिलाफ किस तरह की भाषा को वैधता दी गई है? अभी तक पीएम मोदी ने रमेश बिधूड़ी को लेकर एक शब्द नहीं कहा है।'

विपक्ष के हंगामे पर राजनाथ सिंह ने मांगी माफी

भाजपा सांसद की अमर्यादित भाषा पर विपक्षी सांसदों ने आपत्ति जताई। विपक्ष के हंगामे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने भाजपा सांसद की बातों को नहीं सुना लेकिन आसन से अपील की कि अगर टिप्पणी से विपक्षी सदस्य नाराज हैं तो इन शब्दों को कार्यवाही से हटा दिया जाए। इसके बाद राजनाथ सिंह ने सांसद के बयान पर माफी मांगी। राजनाथ सिंह के इस कदम की विपक्षी सांसदों ने भी तारीफ की।

4 साल बाद नजरबंदी से रिहा हुए हुर्रियत नेता मीरवाइज, मस्जिद में अदा की नमाज

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ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेन्स के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक आज चार साल की नजरबंदी से रिहा हो गए हैं। रिहाई के साथ ही उन्हें श्रीनगर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में नमाज अदा की। अंजुमन औकाफ़ जामिया मस्जिद के अधिकारियों ने बताया कि रिहाई के बाद मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने नौहट्टा की मशहूर जामिया मस्जिद में नमाज अदा की। मीरवाइज फारूक को अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से अबतक नजरबंदी में रखा गया था।

पार्टी ने दी जानकारी

हुइससे पहले र्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक की रिहाई की जानकारी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सोशल मीडिया पर भी जारी की गई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दी गई जानकारी के मुताबिक, हुर्रियत ने कहा है कि 4 साल और 212 दिन बाद मीरवाइज उमर फारूक ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज पढ़ेंगे। साथ ही ये भी कहा गया है कि वह 3 अगस्त, 2019 से अवैध और मनमानी हिरासत में थे।

2019 से नजरबंद मीरवाइज मौलवी उमर फारूक

मीरवाइज मौलवी उमर फारूक कश्मीर के प्रमुख मजहबी नेताओं में गिने जाते हैं। उन्हें अगस्त 2019 में एहतियात के तौर पर घर में नजरबंद बनाया गया था। इसके बाद पुलिस व नागरिक प्रशासन ने कई बार उनकी रिहाई का दावा किया, लेकिन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने सरकार के दावे को नकारते हुए कहा कि उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता।

मीरवाइज पर केंद्र का रुख नरम

मीरवाइज को रिहा करने और उनको जुमे की नमाज का नेतृत्व करने देने का केंद्र सरकार के फैसले को एक नरम रुख की तरह देखा जा रहा है। दरअसल 2019 के बाद से ही सरकार कश्मीरी अलगाववादियों की कड़ी आलोचना झेल रही है। हाल ही में अलगाववाद को बढ़ावा देने के आरोप में जेल में बंद दो अन्य मौलवियों को भी रिहा कर दिया गया था। कश्मीर में स्थानीय बीजेपी नेताओं ने इस फैसले का स्वागत किया था।

नेताओं ने जाहिर की खुशी

हुर्रियत नेता की रिहाई पर जहां एक तरफ उनके समर्थकों में खुशी की लहर है, वहीं डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने भी मीरवाइज की रिहाई पर खुशी जाहिर कर प्रशासन के इस कदम का स्वागत किया है। आजाद ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा ”स्वागत योग्य कदम! 4 साल की नजरबंदी के बाद, यह सुनकर खुशी हुई कि मीरवाइज उमर फारूक को श्रीनगर की जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने की इजाजत दी जाएगी। धार्मिक स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है और मौलवियों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। यह मेल-मिलाप और एकता की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

महिला आरक्षण विधेयक पर बोले राहुल गांधी-पता नहीं लागू होगा भी या नहीं, जातीय जनगणना पर कही ये बात

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महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो चुका है। अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अप्रूवल के बाद यह कानून बन जाएंगे।इस बीच कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी आज महिला आरक्षण बिल को लेकर प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी बात रखी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि महिला आरक्षण तो बड़ी अच्छी चीज है लेकिन लागू कब होंगे, यह साफ नहीं है। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि बिल में दो कमियां हैं। राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता के दौरान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी महिलाओं की भागीदारी की भी मांग की। साथ ही उन्होंने जातीय जनगणना की मांग की।

यह ध्यान भटकाने वाली राजनीति-राहुल गांधी

राहुल ने कहा, पहले तो पता नहीं चला कि ये विशेष सत्र क्यों बुलाया जा रहा है, उसके बाद पता चला कि ये महिला आरक्षण के लिए बुलाया गया है। महिला आरक्षण विधेयक बढ़िया है लेकिन हमें दो फुटनोट मिले कि जनगणना और परिसीमन पहले करने की जरूरत है। इन दोनों कामों में कई साल लगेंगे। सच तो ये है कि आरक्षण आज ही लागू हो सकता है...यह कोई जटिल मामला नहीं है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि कोई नहीं जानता कि ये लागू होगा भी या नहीं। यह ध्यान भटकाने वाली राजनीति है। 

राहुल गांधी ने इस बात पर जताया अफसोस

कांग्रेस सासंद राहुल गांधी ने कहा कि हम एक बिल आज पास कर रहे हैं और 10 साल बाद इसे इम्प्लीमेंट करेंगे, इसका क्या मतलब है। भारत कि महिलाओं को इतना कम इंटेलीजेंट मत समझिए। अफसोस है कि अपने समय में हमें ओबीसी कोटा दे देना चाहिए था।

राहुल ने पूछा- ओबीसी प्राइड के लिए पीएम ने क्या किया?

कांग्रेस नेता ने आरक्षण के जरिए केंद्र सरकार पर ‘डायवर्जन’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि डायवर्जन ओबीसी सेंसस से हो रही है। उन्होंने केंद्र सरकार में सेक्रेटरी और कैबिनेट सेक्रेटरी की जातीय कैटगरी पर बात की।उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए कहा कि अगर वह ओबीसी के लिए इतना ही काम कर रहे हैं तो 90 में सिर्फ तीन लोग ही ओबीसी कैटगरी से क्यों हैं? कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री हर रोज ओबीसी प्राइड की बात करते हैं तो उनके लिए पीएम ने क्या किया? प्रधानमंत्री संसद में ओबीसी रिप्रेजेंटेशन की बात करते हैं, राहुल ने कहा कि इससे क्या होगा? जो डिसीजन मेकर्स हैं उनमें सिर्फ पांच फीसदी को ही जगह क्यों दी गई? क्या ओबीसी की आबादी देश में सिर्फ पांच फीसदी है? राहुल ने कहा कि अब मुझे ये पता लगाना है कि हिंदुस्तान में ओबीसी कितने हैं? और जितने भी हैं उस हिसाब से उन्हें भागीदारी मिलनी चाहिए।