अरावली पर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना ही फैसला, जानें अदालत ने क्या कहा
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अरावली हिल रेंज की परिभाषा को लेकर उठे सवाल के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 29 दिसंबर को बड़ा निर्णय देते हुए अपने ही पूर्व के फैसले के अमल पर रोक लगा दी है। सरकार से स्पष्ट जवाब मांगते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, इस मामले में स्पष्टीकरण जरूरी है। इस मामले पर अब अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
कोर्ट ने कहा- कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण आवश्यक
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने उस आदेश को फिलहाल स्थगित (अबेअन्स में) कर दिया है जिसमें अरावली की पहाड़ियों की परिभाषा में बदलाव संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर ली गई थी और पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था। अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा नए सिरे से तय किए जाने के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 20 नवंबर के फैसले में दिए गए निर्देशों को स्थगित रखा जाएगा। अपने आदेश में अदालत ने कहा, इसमें कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर स्पष्टीकरण आवश्यक हैं।
एक्सपर्ट कमेटी बनाने का दिया सुझाव
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने पर्यावरण से जुड़े इस मामले पर अहम सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। शीर्ष अदालत ने उन्हें इस मामले में कोर्ट की सहायता करने को कहा है। सोमवार को भी इस मामले में एसजी तुषार मेहता ने पहले इस मामले में पक्ष रखा। उनकी दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट अरावली मामले से जुड़े विवाद को लेकर एक्सपर्ट कमेटी बनाने का भी सुझाव दिया है। कमेटी की रिपोर्ट आने तक अब 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया फैसला प्रभावी नहीं होगा।
अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी को
शीर्ष अदालत ने यह चिंता जताई कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और न्यायालय की टिप्पणियों की गलत व्याख्या की जा रही है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत , जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि रिपोर्ट या न्यायालय के निर्देशों को लागू करने से पहले और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है। बेंच ने खुद संज्ञान लेकर मामले में नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी की तारीख तय की है।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 सवाल तय किए
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट अरावली मामले से जुड़े विवाद को लेकर 5 सवाल तय किए हैं।
1. क्या अरावली की परिभाषा को केवल 500 मीटर के क्षेत्र तक सीमित करना एक ऐसा संरचनात्मक विरोधाभास पैदा करता है, जिससे संरक्षण का दायरा संकुचित हो जाता है?
2. क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्रों का दायरा बढ़ गया है, जहां नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है?
3. यदि दो अरावली क्षेत्र 100 मीटर या उससे अधिक के हों और उनके बीच 700 मीटर का अंतर (गैप) हो, तो क्या उस अंतर वाले क्षेत्र में नियंत्रित खनन की अनुमति दी जानी चाहिए?
4. पर्यावरणीय निरंतरता (इकोलॉजिकल कंटिन्यूटी) को सुरक्षित कैसे रखा जाए?
5. यदि नियमों में कोई बड़ा कानूनी या नियामक खालीपन सामने आता है, तो क्या अरावली पर्वतमाला की संरचनात्मक मजबूती बनाए रखने के लिए विस्तृत आकलन की आवश्यकता होगी?







एस के यादव
संजीव सिंह बलिया।नगरा पावर हाउस में नलकूप कनेक्शन देने के नाम पर घूसखोरी और उपभोक्ता के शोषण का गंभीर मामला सामने आया है। पीड़ित नगरा निवासी शिवकुमार यादव पुत्र शिवचंद यादव ने आरोप लगाया है कि वह 15 दिसंबर 2024 को अपनी माता उमरावती देवी के नाम से नलकूप का विद्युत कनेक्शन लेने के लिए नगरा पावर हाउस गए थे। पीड़ित के अनुसार, पावर हाउस में तैनात लाइन मैन अजय गुप्ता और कंप्यूटर ऑपरेटर अजितेश यादव ने नलकूप कनेक्शन के लिए 25,000 रुपये की मांग की। जबकि विभागीय नियमों के अनुसार नलकूप कनेक्शन का शुल्क लगभग 6,000 रुपये ही है। मजबूरी में पीड़ित ने दोनों कर्मचारियों को 25,000 रुपये दे दिए। आरोप है कि इतनी बड़ी रकम देने के बावजूद आज तक, लगभग एक वर्ष बीत जाने के बाद भी नलकूप का कनेक्शन नहीं दिया गया। इस दौरान पीड़ित को बार-बार झूठे आश्वासन देकर गुमराह किया गया और मानसिक व आर्थिक रूप से परेशान किया जाता रहा। कनेक्शन न मिलने से खेती-किसानी पर भी बुरा असर पड़ा है। पीड़ित शिवकुमार यादव ने इसे विभागीय कर्मचारियों द्वारा किया गया खुला भ्रष्टाचार और उपभोक्ता शोषण बताया है। उन्होंने संबंधित अधिकारियों से मामले की निष्पक्ष जांच कर लाइन मैन अजय गुप्ता और कंप्यूटर ऑपरेटर अजितेश यादव के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है, साथ ही ली गई अवैध रकम वापस दिलाने की भी मांग की है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय रहते ऐसे मामलों पर कार्रवाई नहीं की गई तो आम उपभोक्ताओं का विभाग से विश्वास उठ जाएगा। अब देखना यह है कि बिजली विभाग के उच्च अधिकारी इस गंभीर आरोप पर क्या कदम उठाते हैं।















10 min ago
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