नवरात्रि का तीसरा दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा, जानिये मां चंद्रघंटा की शुभ मुहूर्त, पूजा का महत्व


 

नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा विधि से लेकर आरती तक पूरी जानकारी.

नवरात्रि का तीसरा दिन आज, जान लें मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि, भोग, मंत्र, आरती और महत्व

नवरात्रि का तीसरा दिन कल, जान लें मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त

 नवरात्रि के तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित हैं. इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. मां चंद्रघंटा के स्वरूप की बात की जाए तो मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला और इनका वाहन सिंह है. इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और इनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्रों से सुसज्जित हैं. मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है. माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं. 

मान्यता है कि नवरात्रि के तीसरे दिन मां मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति पराक्रमी और निर्भय हो जाता है, इसके अलावा जीवन के सभी संकट भी दूर हो जाते हैं.

मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त 

वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा.

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि

मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. फिर मां चंद्रघंटा का ध्यान और स्मरण करें. माता चंद्रघंटा की मूर्ति को लाल या पीले कपड़े पर रखें. मां को कुमकुम और अक्षत का लगाएं. विधिपूर्वक मां की पूजा करें. मां चंद्रघंटा को पीला रंग अर्पित करें. मां चंद्रघंटा देवी को मिठाई और दूध से बनी खीर बहुत पसंद है. देवी चंद्रघंटा की पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें. दुर्गा सप्तशती और चंद्रघंटा माता की आरती का पाठ करें.

माना जाता है कि मां चंद्रघंटा को खीर बहुत पसंद है इसलिए मां को केसर या साबूदाने की खीर का भोग लगा सकते हैं. पंचामृत का मिश्रण इन सभी पांच गुणों का प्रतीक है. पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण होता है. यह मां चंद्रघंटा को अत्यंत प्रिय है. यह मिश्रण पांच पवित्र पदार्थों से बना होता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है. दूध को शुद्धता और पोषण का भी प्रतीक माना जाता है. इसलिए आप मां चंद्रघंटा को कच्चा दूध भी चढ़ा सकते हैं. दही भी मां चंद्रघंटा को बहुत प्रिय है. आप दही को सादा या फिर फलों के साथ मिलाकर भी चढ़ा सकते हैं.

मां चंद्रघंटा पूजा मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे काम।।

चंद्र समान तू शीतल दाती।

चंद्र तेज किरणों में समाती।।

क्रोध को शांत बनाने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली।।

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।

सुंदर भाव को लाने वाली।

हर संकट मे बचाने वाली।।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।

सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।

शीश झुका कहे मन की बाता।

पूर्ण आस करो जगदाता।।

कांची पुर स्थान तुम्हारा।

करनाटिका में मान तुम्हारा।।

नाम तेरा रटू महारानी।

भक्त की रक्षा करो भवानी।।

मां चंद्रघंटा पूजा का महत्व 

मान्यता के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को शौर्य, पराक्रम और साहस की प्राप्ति होती है. माता रानी के आशीर्वाद से व्यक्ति जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति मिलती है. इसके अलावा मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है.

आज का राशिफल, 4अक्टूबर 2024:जानिये राशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा

ग्रहों की स्थिति : गुरु वृषभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, सूर्य, बुध,केतु कन्या राशि में, शुक्र और चंद्रमा तुला राशि में, शनि वक्री होकर के कुंभ राशि में और राहु मीन राशि के गोचर में चल रहे हैं। राशिफल देखते हैं-

मेष राशि- जीवनसाथी के साथ आनंददायक जीवन गुजारेंगे। नौकरी-चाकरी की स्थिति बहुत अच्छी है स्वास्थ्य में सुधार। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात। संतान थोड़ा मध्यम रहेगा, व्यापार बहुत अच्छा रहेगा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

वृषभ राशि- शत्रु भी मित्रवत व्यवहार करेंगे। स्वास्थ्य थोड़ा नरम-गरम। प्रेम संतान बहुत अच्छा। बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मिथुन राशि- लिखने-पढ़ने में समय व्यतीत करें। विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा समय। लेखकों के लिए, कलाकारों के लिए, कवियों के लिए बहुत अच्छा। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम, प्रेम- संतान अच्छा। व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- भूमि, भवन वाहन की खरीदारी की प्रबल योग बन रहा है। स्वास्थ्य बहुत अच्छा, प्रेम, संतान की अभी मध्यम है, व्यापार भी मध्यम है। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- पराक्रम रंग लाएगा। रोजी-रोजगार में तरक्की करेंगे। स्वास्थ्य में सुधार। प्रेम, संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कन्या राशि- धन का आवक बढ़ेगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। आपको शब्दों से अमृत टपकेंगे। आप अपने शब्दों के माध्यम से कोई भी कार्य कर बैठेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

तुला राशि- आकर्षण के केंद्र बने रहेंगे। जो चाहेंगे, वैसा होगा। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

वृश्चिक राशि- फैशन इत्यादि में खर्च की अधिकता रहेगी। कर्ज की स्थिति आ सकती है। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम। प्रेम, संतान अच्छा, व्यापार अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

धनु राशि- आय के नवीन सोर्स बनेंगे। यात्रा का योग बनेगा। शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु पास रखें।

मकर राशि- व्यापारिक स्थिति बहुत अच्छी रहेगी। पिता का साथ होगा। स्वास्थ्य अच्छा, प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार बहुत अच्छा है। सफेद वस्तु पास रखें।

कुंभ राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा का योग बनेगा। धर्म-कर्म में हिस्सा लेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। प्रेम, संतान मध्यम। व्यापार लगभग ठीक रहेगा। काली जी को सफेद वस्तु अर्पित करना ठीक रहेगा।

आज का पंचांग- 4 अक्टूबर 2024:जानिये पंचाग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- आश्विन

तिथि

द्वितीया - 05:30 ए एम, अक्टूबर 05 तक

नक्षत्र

चित्रा - 06:38 पी एम तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 06:15 ए एम

सूर्यास्त- 06:04 पी एम

चन्द्रोदय- 07:25 ए एम

चन्द्रास्त- 06:47 पी एम

अशुभ काल

राहू- 10:41 ए एम से 12:09 पी एम

यम गण्ड- 03:06 पी एम से 04:35 पी एम

कुलिक- 07:44 ए एम से 09:13 ए एम

दुर्मुहूर्त- 08:37 ए एम से 09:24 ए एम, 12:33 पी एम से 01:20 पी एम

वर्ज्यम्- 12:55 ए एम, अक्टूबर 05 से 02:42 ए एम, अक्टूबर 05

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:33 पी एम

अमृत काल- 08:45 ए एम से 10:33 ए एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:27 ए एम

आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन, ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

आज 4 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है।आज मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस पूजा से मां की कृपा बनी रहती है और उसको कार्यों में सफलता मिलती है। 

आज के दिन वैधृति योग, चित्रा नक्षत्र का संयोग बना है और तुला राशि का चंद्रमा है। मां ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र में कमंडल एवं जप की माला धारण करने वाली हैं। वे अपनी कठोर साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। इस वजह से उनको ब्रह्मचारिणी कहते हैं। वे दूसरी नवदुर्गा हैं। 

पूजा के दौरान मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत और शक्कर का भोग लगाना चाहिए. इससे देवी प्रसन्न होती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

नवरात्रि के दूसरे दिन सुबह में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत और मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का संकल्प करते हैं। उसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अक्षत्, कुमकुम, फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करते हैं। 

पूजा के समय उनके मंत्रों का उच्चारण करें। मां ब्रह्मचारिणी को चमेली के फूलों की माला पहनाएं। उसके बाद शक्कर और पंचामृत का भोग लगाएं। दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती भी पढ़ें। पूजा के अंत में मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें।

इधर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति व्रत रखकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि विधान से करता है। उसको कार्यों में सफलता मिलती है। उसके अंदर जप, तप, त्याग आदि जैसे सात्विक गुणों का विकास होता है। वह विषम परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम बन सकता है।

इस बाऱ डोली पर सवार होकर आयीं जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा,

नवरात्र के पहले दिन के आधार पर मां दुर्गा की सवारी के बारे में पता चलता है। नवरात्र में माता की सवारी का विशेष महत्त्व होता है। अगर नवरात्र का आरम्भ सोमवार या रविवार को हो, तो इसका मतलब है कि माता हाथी पर आयेंगी। 

शनिवार और मंगलवार को माता अश्व ; अर्थात घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र का आरम्भ हो रहा हो, तब माता डोली या पालकी पर आती हैं।बुधवार के दिन नवरात्र पूजा आरम्भ होने पर माता नाव पर आरूढ़ होकर आती हैं।

 शारदीय नवरात्र गुरुवार 03 अक्टूबर 2024 से आरम्भ होगा। मां दुर्गा की सवारी जब डोली या पालकी पर आती है, तो यह अच्छा संकेत नहीं है। मां दुर्गा का पालकी पर आना सभी के लिए चिन्ता बढ़ाने वाला माना जा रहा है।

नवरात्र का पहला दिन विशेष महत्त्व रखता है

नवरात्र का पहला दिन विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन को माता रानी के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना का विधान है। नवरात्र पूजा की शुरुआत घटस्थापना के साथ होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि पूरे विधि-विधान के साथ घटस्थापना की जाये, तो इससे माता रानी का साधक के घर में आगमन होता है। 

ऐसे में घटस्थापना की सामग्री में इन चीजों को जरूर शामिल करें, ताकि आपकी पूजा में किसी तरह की बाधा न पंहुचे।

शारदीय नवरात्रःपहले दिन हो रही शैलपुत्री स्वरूप की पूजा, जानें क्या है कथा

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नवरात्रि, देवी दुर्गा को समर्पित नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इन दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती आ रही है। इसमें महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, रक्तदंतिका, शाकुंभरी देवी, दुर्गा, भ्रामरी देवी व चंडिका प्रमुख हैं। इन नौ रूपों को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से जाना जाता है।

शारदीय नवरात्रि पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और नवमी तिथि तक चलता है। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का विधान है। इस दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

ऐसा है मां शैलपुत्री का स्वरूप

शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो मां के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वे नंदी बैल की सवारी करती हैं।

मां शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा

मां दुर्गा अपने पहले स्वरुप में 'शैलपुत्री' के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।

देवी सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं,तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई। भगवान शिव ने कहा-''प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं,अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'' शंकर जी के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ। पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।

सती ने खुद को योगाग्नि में खुद को भस्म कर दिया

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है,दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं, उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया।

शैलपुत्री के रूप में फिर शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं

इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती,हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।

आज नवरात्रि का कलश स्थापना, मुहूर्त और पूजन विधि एवं मंत्र

नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा पूजा और अनुष्ठान में विघ्न बाधा न आए इसके लिए शांति कलश की स्थापना की जाती है। शांति कलश की स्थापना के बाद ही दुर्गा माता की पूजा की जाती है। इसलिए दुर्गा पूजा में कलश स्थापना और जयंती बोने का बड़ा ही महत्व है।

 तो आइए जानते हैं नवरात्रि कलश स्थापना करने का शुभ महूर्त कब से कब तक है और कलश स्थापना की विधि विधान और मंत्र क्या है।

कलश स्थापना का मुहूर्त : 


कलश स्थापना में सबसे जरूरी यह होता है कि इसमें चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग का त्याग करके कलश बैठाया जाता है। अबकी बार संयोग ऐसा बना है कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग कलश स्थापना में बाधक नहीं बना है। क्योंकि चित्रा नक्षत्र शाम से लग रहा है जबकि वैधृति योग द्वितीय तिथि को लगने जा रहा है। ऐसे मे इस वर्ष कलश स्थापना का कार्य घरों में आप सुबह 6 बजकर 15 मिनट से कर सकते हैं। सुबह में 9 9 बजकर 30 मिनट तक का समय शुभ रहेगा। 

इसके बाद आप अभिजीत मुहूर्त में 11 बजे से 12 बजकर 30 मिनट के बीच में घट स्थापना यानी कलश स्थापना करें तो यह उत्तम होगा।

घट स्थापना पूजा विधि


कलश स्थापना करने से पहले स्नान ध्यान करके नए वस्त्र धारण करें। बेहतर होगा कि बिना सिलाई किए हुए वस्त्र यानी धोती धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा ओर मुंह करके बैठें। सबसे पहले हाथ में कुश लें और हाथ में जल लेकर सभी पूजन सामग्री सहित सहित सभी वस्तुओं पर जल छिड़कें और जल छिड़कते हुए मंत्र बोलें। 

ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।

इसके बाद चंदन लगाएं


चंदनस्य महतपुण्यं पवित्रं पाप नाशनम। आपदं हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा।। इस मंत्र को बोलते हुए अपने माथे पर चंदन लगाएं।

नवरात्रि कलश स्थापना की तैयारी


सबसे पहले कलश जहां बैठा रहे हों वहां पर मिट्टी में बालू सप्तमृतिका मिलाकर पीठ बना लें। यानी अच्छे से फैलाकर गोलाकर बना लें। बीच में थोड़ा सा गहरा रखे ताकि कलश सही से बैठ पाए। इससे पहले कलश को धोकर उसके ऊपर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीखा लगाएं। फिर इस कलश को मिट्टी से बनाएं पीठ पर रखे। कलश के गले में मोली लपेटे। वैसे आपको कलश को उत्तर अथवा उत्तर पूर्व दिशा में रखना चाहिए।

नवरात्र कलश स्थापना पृथ्वी माता की पूजा


कलश के नीचे जो आपने मिट्टी को फैलाया है उसे दाएं हाथ से स्पर्श करते हुए मंत्र बोलें – 

ओम भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रीं। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृग्वंग ह पृथिवीं मा हि ग्वंग सीः।।

कलश के नीचे जौ और सप्तधान बिछाने का मंत्र


ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।। 

इस मंत्र को बोलते हुए सप्तधान और जौ को कलश की नीचे मिट्टी पर फैला दें।

नवरात्रि कलश की पूजा

कलश को स्पर्श करते हए मंत्र बोलें – 

ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।। 

इसके बाद कलश पर एक फूल भी रख दे।

कलश में जल भरने का मंत्र

कलश को कभी भी खाली नहीं रखा जाता है इसलिए कलश में जल भरा जाता है। और इसके लिए जल भरते हुए यह मंत्र बोलना चाहिए। 

ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।। 

इस मंत्र को बोलते हुए कलश में गर्दन तक जल भर दें।

कलश में चंदन अर्पित करने का मंत्र


एक फूल हाथ में लेकर उसमें चंदन लगाएं इसके बाद, ओम त्वां गन्धर्वा अखनस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।। 

इस मंत्र से अब कलश में चंदन लगाएं। और यह फूल भी कलश में छोड़ दें।

कलश में सर्वौषधि डालने का मंत्र

कलश को आरोग्य प्रदान करने वाला माना गया है। इसलिए कलश स्थापना के समय कलश में सर्वौषधि रखते हैं। इससे कलश का जल अत्यंत प्रभावशाली बन जाता है। कलश में सर्वोषधि डालने का मंत्र - 

ओम या ओषधी: पूर्वाजातादेवेभ्यस्त्रियुगंपुरा। मनै नु बभ्रूणामह ग्वंग शतं धामानि सप्त च।

कलश पर पंच पल्लव रखने का मंत्र

कलश में मूल रूप से आम का पल्लव रखा जाता है लेकिन विधि है कि इसमें पंच पल्लव रखने चाहिए। अगर पंच पल्लव नहीं हो तो केवल आम का पल्लव भी रख सकते हैं। पल्लव रखते हुए यह मंत्र बोले। 

ओम अश्वस्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्।।

कलश में सप्तमृत्तिका डालने का मंत्र

अब इसके बाद कलश में सात प्रकार की मिट्टी जिसे 

सप्तमृतिका कहते हैं डालें। ओम स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः।

कलश में सुपारी छोड़ने का मंत्र

अब आप कलश में एक सुपारी और पान छोड़ें और यह मंत्र बोलें। 

ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ग्वंग हसः।।

कलश में अब एक सिक्का रखें

कलश में अब आपको एक सिक्का चाहे वह सोने का हो, चांदी का हो वह छोड़ना चाहिए और यह मंत्र बोलना चाहए।

ओम हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।

कलश को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र

ओम सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः । वासो अग्ने विश्वरूप ग्वंग सं व्ययस्व विभावसो।।

 इस मंत्र को बोलते हुए आप एक लाल अथवा पीला कपड़ा कलश के गर्दन पर लपेट दें।

कलश पर चावल रखें एक मिट्टी के बर्तन में चावल भरकर, 

ओम पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्वंग शतक्रतो।।

इस मंत्र को बोलते हुए कलश के ऊपर चावल से भरा पात्र रख दें।

कलश पर नारियल स्थपित करने का मंत्र

कलश पर नारियल अर्पित करने से पहले नारियल पर एक वस्त्र लपेट दें।

ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः।।

 इस मंत्र को बोलते हुए नारियल को कलश पर चावल से भरे पात्र के ऊपर स्थापित करना चाहिए। कलश को अब आप दीप दिखाएं और इसके बाद शांति कलश की पूजा सपरिवार करे।

कलश में वरुण सहित सभी देवी देवताओं का आह्वान

ओम तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ग्वंग स मा न आयुः प्र मोषीः। अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ‘ओम अपां पतये वरुणाय नमः।

 इस तरह कलश में समस्त देवताओं और तीर्थों का वास होगा।

अब कलश को भगवान गणेश मानकर पंचोपचार सहित पूजा करें। कलश में पंचदेवता, दशदिक्पाल और चारों वेदों को आकर विराजने के लिए प्रार्थना करें। और यह प्रार्थना करें कि आपकी पूजा अनुष्ठान में कोई विघ्न न आए। इसके बाद नवरात्रि पर्यंत देवी की उपसान के लिए हाथ में फल, सुपारी, पान, चंदना, एक सिक्का लेकर संकल्प करें।

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आश्विन मास की नवमी तक मैं ( गोत्र का नाम लें।) देवी दुर्गा की उपासना करुंगा, देवी मेरे परिवार और मुझ पर कृपा बनाए रखें। इस तरह संकल्प लेकर गणेश सहित सभी देवी देवताओं की पूजा करें।

नोट :- स्ट्रीटबुज़ज़ का सलाह है पूजा विधि और मंत्र किसी जानकार पंडित के देख रेख में करें

आज का पंचांग- 3 अक्टूबर 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आश्विन

अमांत- भाद्रपद

तिथि

प्रतिपदा - 02:58 ए एम, अक्टूबर 04 तक

नक्षत्र

हस्त - 03:32 पी एम तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 06:15 ए एम

सूर्यास्त- 06:04 पी एम

चन्द्रोदय- 06:32 ए एम

चन्द्रास्त- 06:20 पी एम

अशुभ काल

राहू- 01:38 पी एम से 03:07 पी एम

यम गण्ड- 06:15 ए एम से 07:44 ए एम

कुलिक- 09:12 ए एम से 10:41 ए एम

दुर्मुहूर्त- 10:12 ए एम से 10:59 ए एम

वर्ज्यम्- 12:34 ए एम, अक्टूबर 04 से 02:22 ए एम, अक्टूबर 04

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:33 पी एम

अमृत काल- 08:45 ए एम से 10:33 ए एम

ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:27 ए एम

शुभ योग

इन्द्र - 04:24 ए एम, अक्टूबर 04 तक

आज का राशिफल 3 अक्टूबर: कैसा रहेगा आपके लिए नवरात्रि का पहला दिन? पढ़ें मेष से लेकर मीन राशिफल तक

ग्रहों की स्थिति : गुरु वृषभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, सूर्य, बुध,चंद्रमा और केतु कन्या राशि में, शुक्र तुला राशि में, शनि वक्री होकर के कुंभ राशि में और राहु मीन राशि के गोचर में चल रहे हैं। राशिफल देखते हैं-

मेष राशि- शारीरिक और मानसिक दबाव बना रहेगा। स्वास्थ्य प्रभावित दिख रहा है। प्रेम, संतान मध्यम, व्यापार लगभग ठीक रहेगा। हरी वस्तु का दान करें।

वृषभ राशि- मानसिक स्थिति दबाव में रहेगी। बच्चों की सेहत को लेकर मन परेशान रहेगा। प्रेम में तू-तू मैं-मैं के संकेत हैं। स्वास्थ्य ठीक-ठाक, प्रेम संतान मध्यम। व्यापार सही चलेगा। हरी वस्तु पास रखें।

मिथुन राशि- गृह कलह के संकेत हैं। भूमि, भवन और वाहन की खरीदारी में परेशानी का अनुभव करेंगे। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम, संतान अच्छा है। व्यापार भी ठीक है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कर्क राशि- नाक, कान, गला की परेशानी होगी। व्यापार में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम, संतान की स्थिति मध्यम, व्यापार भी मध्यम। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- मुख रोग के शिकार हो सकते हैं। निवेश वर्जित रहेगा पर कुटुंबों से न उलझें। स्वास्थ्य मध्यम। प्रेम, संतान ठीक है। व्यापार भी ठीक है। पीली वस्तु पास रखें।

कन्या राशि- ऊर्जा का स्तर घटता बढ़ता रहेगा। घबराहट, बेचैनी बनी रहेगी। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम, संतान ठीक है। व्यापार भी लगभग ठीक रहेगा। हरी वस्तु पास रखें।

तुला राशि- मानसिक स्थिति गड़बड़ रहेगी। सर में चोट-चपेट लग सकती है। नेत्र विकार संभव है। प्रेम, संतान सही है। व्यापार मध्यम रहेगा। हरी वस्तु पास रखें।

वृश्चिक राशि- आय में उतार चढ़ाव बना रहेगा। भ्रामक समाचार की प्राप्ति होगी। यात्रा में कष्ट संभव है। मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ रहेगा। प्रेम, संतान मध्यम, व्यापार ठीक है। हरी वास्तु का दान करें।

धनु राशि- कोर्ट-कचहरी से बचें। पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। कुछ अधिकारियों से देंगे बाजी न करें। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम, संतान ठीक-ठाक। व्यापार मध्यम। हरी वस्तु का दान करें।

मकर राशि- अपमानित होने का भय रहेगा। यात्रा में कष्ट संभव है। पूजा-पाठ में अतिवादी न बनें। स्वास्थ्य ठीक-ठाक, प्रेम, संतान अच्छा है। व्यापार भी अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कुंभ राशि- चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। प्रेम, संतान ठीक-ठाक। व्यापार ठीक रहेगा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- स्वयं के स्वास्थ्य पे और जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। नौकरी-चाकरी की स्थिति मध्यम। हर दृष्टिकोण से एक मध्यम समय का निर्माण हो रहा है। बचकर पार करें। गणेश जी को प्रणाम करते रहें।

आज का राशिफल, 2अक्टूबर 2024:जानिये राशि के अनुसार आज का दिन कैसे रहेगा..?

मेष राशि- शत्रु शमन का योग है। शत्रु सामने पड़ने की हिमाकत नहीं करेंगे लेकिन डिस्टर्ब जरूर होंगे आप। स्वास्थ्य से, मानसिक स्थिति से, प्रेम से, संतान से, व्यापार आपका अच्छा चलेगा। हरी वस्तु का दान करें।

वृषभ राशि- मन परेशान रहेगा। प्रेम में तू-तू मैं-मैं के संकेत हैं। बच्चों को लेकर के मन परेशान रहेगा। स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ रहेगा, प्रेम, संतान गड़बड़ रहेगा, व्यापार ठीक रहेगा। शनि देव को प्रणाम करते रहें।

मिथुन राशि- घरेलू सुख बाधित रहेगा। कोई बड़ा ग्रह कलह हो सकता है। भूमि, भवन और वाहन की खरीदारी में परेशानी होगी। स्वास्थ्य मध्यम, सीने में विकार संभव। प्रेम, संतान अच्छा है। व्यापार भी अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कर्क राशि- नाक, कान, गला की परेशानी होगी। स्वास्थ्य मध्यम, व्यापारिक दृष्टिकोण से खराब समय कहा जाएगा। प्रेम, संतान भी मध्यम दिख रहा है। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- धन हानि के संकेत हैं। निवेश वर्जित रहेगा और जुबान पर नियंत्रण रखें। स्वास्थ्य मध्यम, मुख रोग के शिकार हो सकते हैं। प्रेम संतान अच्छा है। व्यापार लगभग ठीक रहेगा। शनि देव को प्रणाम करते रहें।

कन्या राशि- आपके अंदर तूफान रहेगा। बहुत घबराहट, बेचैनी, मानसिक दबाव, शारीरिक दबाव बना रहेगा। प्रेम, संतान लगभग ठीक रहेगा। व्यापार भी लगभग ठीक रहेगा। हरी वस्तु पास रखें।

तुला राशि- खर्च की अधिकता, अनजाना भय, सर दर्द, नेत्र पीड़ा, पार्टनरशिप की प्रॉब्लम, मानसिक बिल्कुल खराबी बनी रहेगी। प्रेम संतान लगभग ठीक रहेगा और व्यापारिक दृष्टिकोण से मध्यम समय रहेगा। हरी वस्तु पास रखें।

वृश्चिक राशि- आय के उतार-चढ़ाव को आप बहुत मैनेज नहीं कर पाएंगे। यात्रा बहुत अच्छी नहीं होगी। समाचार की प्रति जो होगी, वो असमंजस वाली होगी। अच्छा बुरा मिला करके होगा। कुल मिला करके मध्यम समय,स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार के लिए। लाल वस्तु पास रखें।

धनु राशि- कोर्ट-कचहरी से बचें। नए व्यापार की शुरुआत न करें। पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। स्वयं के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। प्रेम संतान ठीक-ठाक। लाल वास्तु पास रखें।

मकर राशि- अपमानित होने का भय रहेगा। यात्रा में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। धर्म-कर्म में ऊपर नीचे चलता रहेगा मन। एक विस्मयकारी या डरावनी सी बात रहेगी। बाकी स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार ठीक दिख रहा है। सूर्य को जल देते रहें।

कुंभ राशि- चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। बहुत बचकर पार करें। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार किसी में भी कोई रिस्क मत लीजिएगा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। स्वयं के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। नौकरी-चाकरी पे तलवार लटकती रहेगी। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार खराब दिख रहा है। बचके पार करें। शिवजी का जलाभिषेक करें। शुभ होगा।