ब्रिक्स देशों को ट्रंप की चेतावनी, 10% अतिरिक्‍त टैरिफलगाने की धमकी, क्या भारत की बढ़ने वाली है परेशानी?

#americadonaldtrumpwarns10percenttariffonbrics_countries

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर ब्रिक्स देशों को धमकाने की कोशिश की है। ब्राजील में चल रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को बड़ी चेतावनी दे डाली। उन्होंने कहा कि अगर ब्रिक्स देश अमेरिका विरोधी नीति का समर्थन करते हैं तो उन पर 10 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। ब्रिक्स सम्मेलन में ईरान पर अमेरिका और इजराइल के हमलों की निंदा किए जाने के बाद ट्रंप ने नाराजगी जताते हुए ब्रिक्स देशों को चेताया।

यह बयान उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर साझा किया। डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा, ‘ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों से जुड़ने वाले किसी भी देश पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। इस नीति में कोई अपवाद नहीं होगा। इस मामले पर आपका ध्यान देने के लिए धन्यवाद!’

अमेरिका का नाम लिए बिना ईरान पर हमले और टैरिफ की निंदा की

दरअसल, ब्राजील में चल रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल देशों ने अमेरिका का नाम लिए बिना ईरान पर हुए हालिया हमले और व्यापार शुल्क (टैरिफ) की निंदा की। इजराइल की मध्य पूर्व में की जा रही सैन्य कार्रवाई की आलोचना की गई। सम्मेलन के पहले ब्रिक्स देशों ने अमेरिका पर सीधा हमला नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि बढ़ते टैरिफ (शुल्क) से वैश्विक व्यापार पर बुरा असर पड़ रहा है और यह डब्ल्यूटीओ के नियमों के खिलाफ है।

क्या भारत के लिए है बड़ा संदेश

हालांकि, ट्रंप ने इस बयान में यह स्पष्ट नहीं किया कि वह ‘अमेरिका विरोधी नीतियां’ किसे मानते हैं। यही कारण है कि इसके व्याख्या को लेकर भ्रम की स्थिति है। हालांकि उन्होंने जिस अपवाद की बात की है वह सीधे तौर पर भारत है। खासकर भारत जैसे देशों के लिए जो ब्रिक्स का हिस्सा भी हैं और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी भी निभा रहे हैं।

भारत के लिए बड़ी चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप ब्रिक्स को 'एंटी अमेरिका' मानते हैं और उन्हें डर है कि ब्रिक्स देश डॉलर के खिलाफ नई करेंसी जारी कर सकते हैं, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। ऐसे में भारत के लिए यह स्थिति काफी ज्यादा संवेदनशील और मुश्किल हो जाती है, क्योंकि वह अमेरिका का करीबी सहयोगी भी है और ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य भी। ऐसे में ट्रंप की धमकी भारत के लिए थोड़ी मुश्किल हो जाती है। इसका असर भारत-अमेरिका कारोबार पर भी पड़ता है। अब जब वे खुलेआम अतिरिक्त टैरिफ की चेतावनी दे रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि भारत जैसे देश इस आर्थिक दबाव से कैसे निपटेंगे?

भारत ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की भूमिका में

ब्रिक्स की शुरुआत 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन के साथ हुई थी, बाद में दक्षिण अफ्रीका और 2023 में ईरान, सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, इंडोनेशिया और इथियोपिया जैसे देश भी इस समूह में शामिल हो गए। ब्रिक्स के भीतर भारत ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की भूमिका भी निभा रहा है। भारत ने हमेशा इस मंच का उपयोग बहुपक्षीयता, वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने और विकासशील देशों के लिए समावेशी व्यवस्था की मांग करने के लिए किया है। हालांकि, चीन और रूस जैसे देशों के कारण ब्रिक्स पर "पश्चिम विरोधी" छवि भी चिपक गई है।

ग्लोबल साउथ के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया”, ब्रिक्स समिट से पीएम मोदी ने किसे दिया कड़ा संदेश?

#bricssummitpmmodimessageonterrorism

ब्राजील के रियो डी जनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ब्रिक्स देशों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वैश्विक आतंकवाद की कड़ी निंदा की और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से एकजुटता का आह्वान किया। ब्रिक्स के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बहुपक्षवाद, आर्थिक-वित्तीय मामलों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मजबूत करने' के विषय पर आयोजित सत्र के दौरान बड़ी ताकतों को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा कि कहा कि ग्लोबल साउथ को जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी पहुंच पर सिर्फ दिखावटी चीजें मिली हैं।

आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपनाने वालों को संदेश

प्रधानमंत्री मोदी अपनी पांच देशों की यात्रा के चौथे चरण में ब्राजील पहुंचे हैं। इससे पहले वे घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो और अर्जेंटीना जा चुके हैं। रियो डी जनेरियो में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट और स्पष्ट रुख अपनाने की अपील की। पीएम मोदी ने आतंकवाद को मानवता के खिलाफ अपराध करार देते हुए कहा कि आतंकवाद की निंदा हमारा सिद्धांत होनी चाहिए, न कि सुविधा। यह देखना कि हमला किस देश में हुआ और किसके खिलाफ, मानवता के साथ विश्वासघात है। पीएम का यह बयान सीधे तौर पर चीन को संदेश के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों चीन में आयोजित एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में उसने संयुक्त बयान के मसौदे में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जिक्र नहीं किया।

ग्लोबल साउथ 'डबल स्टैंडर्ड' का शिकार-पीएम मोदी

पीएम मोदी ने आगे कहा कि ग्लोबल साउथ को जो कुछ भी मिला है, वह सिर्फ "टोकन जेस्चर" है। मतलब है कि उन्हें सिर्फ दिखावे के लिए कुछ चीजें दी गई हैं, वास्तव में उनकी मदद नहीं की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि ग्लोबल साउथ 'डबल स्टैंडर्ड' का शिकार रहा है। मतलब, उनके साथ अलग-अलग नियमों के हिसाब से व्यवहार किया गया है।

वैश्विक संस्थाओं में सुधार की जरूरत-पीएम मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में बने वैश्विक संगठन आज की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। दुनिया भर में चल रहे युद्ध हों, महामारी हो, आर्थिक संकट हो या साइबर दुनिया में नई चुनौतियां, इन संगठनों के पास कोई समाधान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आज दुनिया को एक नई, बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की जरूरत है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थानों में व्यापक सुधारों से करनी होगी। सुधार केवल दिखावटी नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखना चाहिए। दुनिया को ऐसे नए सिस्टम की ज़रूरत है जिसमें कई देशों की बात सुनी जाए और सबको शामिल किया जाए। पुराने संगठनों में बदलाव ज़रूरी हैं, और ये बदलाव सिर्फ नाम के लिए नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका असर भी दिखना चाहिए।

सांसद विवेक ठाकुर ने ब्राज़ील में BRICS संसदीय मंच में किया भारत का प्रतिनिधित्व*
*

विवेक ठाकुर ने ब्रासीलिया, ब्राज़ील में आयोजित 11वें BRICS संसदीय मंच में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस मंच में उन्होंने "सतत विकास के लिए निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा" विषय पर भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। ठाकुर ने कहा कि BRICS देशों के बीच तकनीकी सहयोग, निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करना न केवल सदस्य राष्ट्रों के विकास के लिए, बल्कि समूचे वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत ने डिजिटल समावेशन, सतत ऊर्जा और नवाचार के क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह वैश्विक साझेदारी के लिए एक प्रेरक मॉडल बन चुकी है। *BRICS संसदीय मंच के बारे में मुख्य बातें:* - *मंच का उद्देश्य*: वैश्विक सहयोग, लोकतांत्रिक संवाद और सतत विकास को लेकर BRICS राष्ट्रों के सांसदों के बीच विचार-विमर्श करना। - *मंच का विषय*: अधिक समावेशी और टिकाऊ वैश्विक शासन के निर्माण में BRICS संसदों की भूमिका। - *प्रतिभागी*: BRICS देशों के पीठासीन अधिकारी और संसद सदस्य, साथ ही अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) की अध्यक्ष तुलिया एक्सन। - *लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की भूमिका*: बिरला ने इस मंच में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और जिम्मेदार और समावेशी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए अंतर-संसदीय सहयोग जैसे विषयों पर चर्चा की¹ ²।
शपथ लेते ही डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS को धमकी, भारत लिए क्या है मायने
#president_donald_trump_threatens_100_percent_tariffs_on_brics_nations
* डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार, 20 जनवरी को अमेरिकी संसद कैपिटल हिल में 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। ट्रम्प ने सत्ता संभालते ही देश से लेकर विदेश तक अमेरिकी नीतियों में कई बड़े बदलाव लाने की बात कही। शपथ के बाद 30 मिनट के भाषण में डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के तहत दूसरे देशों पर टैरिफ लगाने की बात कही। ट्रंप चुनाव जीतने के बाद ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी भी दी थी। इससे अलावा वो चीन, कनाडा और मेक्सिको पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की धमकी दे चुके हैं। राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर बैठते ही डोनाल्ड ट्रंप का एक्शन शुरू हो गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को खुलेआम धमकी दे दी है। सोमवार को शपथ लेते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि स्पेन समेत ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाया जा सकता है। ब्रिक्स में दस देश शामिल हैं। ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात। स्पेन ब्रिक्स का हिस्सा नहीं है। बावजूद वह भी ट्रंप के रडार में है। हालांकि, दिसंबर में ही डोनाल्ड ट्रंप ने इसका इशारा कर दिया था कि वह ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाएंगे। हालांकि, उन्होंने इसके लिए एक शर्त रखी थी। बता दें कि ट्रंप पहले ब्रिक्स की ओर से एक अलग करेंसी लाने का विरोध कर चुके हैं। ट्रंप की इस घोषणा के बाद ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से उसके टकराव बढ़ सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप की इस धमकी का मतलब है कि भारत भी इसके लपेटे में आएगा। भारत ब्रिक्स का अहम सदस्य है। ट्रंप का बयान इसलिए भी अहम है, क्योंकि कुछ समय पहले यह खबर आई थी कि ब्रिक्स देश अपनी नई करेंसी पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, उस पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं है। अगर ट्रंप की धमकी सही साबित होती है तो ब्रिक्स देशों के लिए बड़ी मुसीबत होगी। ऐसे में भारत के लिए भी अमेरिका से आयात-निर्यात करना बहुत कठिन हो जाएगा।
ब्रिक्स में शामिल हुआ दुनिया का सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश, पाकिस्तान के सपनों पर फिरा पानी

#indonesiabecomefullmemberof_brics

दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के औपचारिक समूह ब्रिक्स में देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब ब्रिक्स में एक और देश शामिल हो गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बन गया है। इंडोनेशिया सोमवार को ब्रिक्स समूह का दसवां पूर्ण सदस्य बन गया। इसका ऐलान 2025 तक ब्रिक्स की अध्यक्षता करने वाले ब्राजील ने किया है।

ब्राजील ने की घोषणा

ब्रिक्स के मौजूदा अध्यक्ष ब्राजील ने मंगलवार को इस बात का ऐलान किया कि इंडोनेशिया ब्रिक्स समूह का पूरी तरह से सदस्य बन गया है। ब्राजील के आधिकारिक बयान में कहा गया है, ब्राजील सरकार ब्रिक्स में इंडोनेशिया के प्रवेश का स्वागत करती है। ब्राजील ने कहा कि 2023 में जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन में ब्लॉक के सदस्यों ने इंडोनेशिया की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। जिसके बाद इंडोनेशिया को समूह में शामिल करने का फैसला लिया गया।

पाकिस्तान को लगा झटका

इंडोनेशिया का ब्रिक्स में आना पाकिस्तान के लिए झटके की तरह है। दरअसल पाकिस्तान नहीं चाहता था कि दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया इस ग्रुप में आए। इसके उलट पाकिस्तान खुद ब्रिक्स में आने की जुगत में लगा था। इसके लिए वह चीन को भी रिझा रहा था। साल 2023 में पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि ब्रिक्स के सदस्य उसकी सदस्यता को मंजूरी देंगे। लेकिन उसे अब निराशा हाथ लगी है। ब्रिक्स का दरवाजा उसके लिए नहीं खुला और इंडोनेशिया को एंट्री मिल गई।

पाकिस्तान के लिए क्यों मुश्किल है सदस्यता?

ब्रिक्स की सदस्यता आम सहमति से मिलती है। यानी अगर सभी सदस्य न चाहें तो कोई भी देश ब्रिक्स में शामिल नहीं हो सकता है। जाहिर तौर पर भारत ने इंडोनेशिया की सदस्यता का समर्थन किया। भारत इसमें शामिल है जो पाकिस्तान के लिए हमेशा चिंता की बात रही है। पाकिस्तानी मीडिया हर बार यह कहता रहा है कि भारत उसकी सदस्यता ब्लॉक कर रहा है।

कई देश चाहते हैं ब्रिक्स की सदस्यता

साल 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने मिलकर इस ग्रुप की स्थापना की थी। साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ था। पिछले साल इस समूह में मिस्र, ईरान, इथियोपिया और यूएई को शामिल किया गया था। सऊदी अरब को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन अभी तक वह इसमें शामिल नहीं हुआ है। तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने औपचारिक रूप से सदस्यता के लिए आवेदन किया है। कुछ और देश भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं।

ब्रिक्स को अमेरिका एक पश्चिम विरोधी गुट के तौर पर देखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल के वर्षों में रूस और चीन डॉलर का विकल्प खोजने में लगे हैं। वह ब्रिक्स की करेंसी बनाना चाहते हैं।

LAC पर गतिरोध खत्म करने को लेकर बनी रजामंदी के बाद क्या कर रही चीनी सेना, भारत ने भी दिया जवाब

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जारी विवाद थमता नजर आ रहा है. चीन के रक्षा मंत्रालय ने कल गुरुवार को कहा कि भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को खत्म करने के लिए हुए समझौते को “व्यापक और प्रभावी ढंग से” लागू कर रही हैं और इस संबंध में “स्थिर प्रगति” हुई है. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भी इस मसले पर कहा कि वहां पर स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है.

चीनी रक्षा प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल झांग शियाओगांग (Zhang Xiaogang) ने 18 दिसंबर को विशेष प्रतिनिधियों के साथ हुई वार्ता पर एक सवाल का जवाब देते हुए बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “वर्तमान में, भारत और चीन की सेनाएं दोनों पक्षों के बीच बॉर्डर से संबंधित समाधानों को व्यापक और प्रभावी ढंग से लागू कर रही हैं और इस संबंध में स्थिर प्रगति हुई है.”

अक्टूबर में दोनों देशों में बनी सहमति

उन्होंने यह भी कहा कि हाल के दिनों में, दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सहमति के आधार पर, भारत और चीन ने कूटनीतिक तथा सैन्य चैनलों के जरिए बॉर्डर की स्थिति पर करीबी संवाद बनाए रखा और बड़ी प्रगति हासिल की है.

एनएसए अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मुलाकात की और समझौते के कार्यान्वयन तथा अप्रैल 2020 में आपसी गतिरोध शुरू होने के बाद ठंडे पड़े रिश्तों को बहाल करने को लेकर व्यापक स्तर पर बातचीत की. अक्टूबर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS summit) के मौके पर रूस के कजान शहर में मुलाकात की और 21 अक्टूबर के समझौते को मंजूरी दी.

ठोस प्रयास करने को तैयारः कर्नल झांग

कर्नल झांग ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को सही रास्ते पर लाना दोनों देशों और दोनों लोगों के मौलिक हितों की पूर्ति करता है. उन्होंने आगे कहा, “चीनी सेना दोनों नेताओं के बीच बनी अहम सहमति को ईमानदारी से लागू करने, अधिक आदान-प्रदान, बातचीत करने और बॉर्डर क्षेत्र में संयुक्त रूप से स्थायी शांति तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए भारत-चीन सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पक्ष के साथ ठोस प्रयास करने के लिए तैयार है.”

वहीं भारत की ओर से इस संबंध में सकारात्मक प्रतिक्रिया की गई है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समग्र स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है, “समान और पारस्परिक सुरक्षा” के सिद्धांतों के आधार पर जमीनी स्थिति को बहाल करने के लिए आपस में व्यापक तौर पर सहमति बनी है. मंत्रालय की ओर से यह बयान पूर्वी लद्दाख में पिछले दो टकराव बिंदुओं से भारतीय और चीनी सेनाओं के पीछे हटने के कुछ हफ्ते बाद दिया गया है.

LAC पर स्थिति स्थिर लेकिन संवेदनशीलः रक्षा मंत्रालय

साल के अंत में रिव्यू के दौरान रक्षा मंत्रालय ने 21 अक्टूबर को दोनों पक्षों के बीच पीछे हटने को लेकर आपसी सहमति का उल्लेख किया और कहा कि देपसांग और डेमचोक में पारंपरिक क्षेत्रों में अब पेट्रोलिंग शुरू हो चुकी है. इसने कहा, “एलएसी पर कुल मिलाकर स्थिति स्थिर लेकिन संवेदनशील है.”

मंत्रालय ने कहा, “दोनों देशों के बीच डेपसांग और डेमचोक के टकराव वाले क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाना, उन्हें रिलोकेट करना और उसके बाद संयुक्त सत्यापन शामिल है. फिलहाल दोनों पक्षों की ओर से ब्लॉकिंग पोजिशन को हटा दिया गया है और संयुक्त सत्यापन का काम भी पूरा हो गया है. डेपसांग और डेमचोक में पारंपरिक गश्त वाले क्षेत्रों में पेट्रोलिंग भी शुरू हो चुकी है.” मंत्रालय ने कहा कि सेना ने एलएसी और नियंत्रण रेखा (LoC) सहित सभी सीमाओं पर स्थिरता और प्रभुत्व सुनिश्चित करने के लिए परिचालन तैयारियों की उच्च स्थिति बनाए रखी है.

पाकिस्तान और BRICS: रणनीतिक रिश्ते और भविष्य की संभावनाएँ

पाकिस्तान का BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) के साथ संबंध जटिल रहा है, जिसमें देश सदस्य नहीं है, लेकिन विभिन्न तरीकों से इस समूह के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ इस संबंध का एक अवलोकन है:

1. गैर-सदस्य स्थिति:

पाकिस्तान BRICS का सदस्य नहीं है। इस समूह की शुरुआत 2006 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन (BRIC) से हुई थी, और दक्षिण अफ्रीका 2010 में शामिल हुआ। हालांकि पाकिस्तान ने इस समूह में शामिल होने की इच्छा जताई है, खासकर इसके आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्व के कारण, लेकिन इसे अब तक पूर्ण सदस्य बनने का निमंत्रण नहीं मिला है। यह सदस्यता न मिलने की एक बड़ी वजह भारत के साथ क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है, जो BRICS का एक मुख्य सदस्य है।

2. आर्थिक संलिप्तता:

सदस्य न होने के बावजूद, पाकिस्तान BRICS के कई देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध बनाए रखता है। यह चीन, जो BRICS के भीतर प्रमुख साझेदार है, के साथ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के ढांचे में जुड़ा हुआ है, जो पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग क्षेत्र से जोड़ता है। यह रणनीतिक गठबंधन पाकिस्तान को क्षेत्रीय आर्थिक गतिवधियों में महत्वपूर्ण बनाता है, जिससे यह अप्रत्यक्ष रूप से चीन के माध्यम से BRICS से जुड़ा हुआ है।

3. भारत के साथ संबंध:

BRICS में भारत की सदस्यता पाकिस्तान के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर लंबी प्रतिस्पर्धा रही है। इस प्रतिस्पर्धा के कारण, पाकिस्तान का BRICS में शामिल होने का प्रयास अक्सर विफल होता है। भारत के साथ कूटनीतिक और भू-राजनीतिक तनाव की वजह से पाकिस्तान के लिए BRICS में सदस्यता पाना मुश्किल है।

4. कूटनीतिक और रणनीतिक हित:

पाकिस्तान ने विभिन्न तरीकों से BRICS के साथ जुड़ने की कोशिश की है। यह कुछ BRICS आउटरिच सम्मेलनों में दक्षिण एशियाई क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के रूप में शामिल हुआ है, लेकिन जब भी भारत से जुड़ी संवेदनशील समस्याएँ उठती हैं, तो इसे अक्सर मुख्य चर्चाओं से बाहर रखा जाता है। रूस के साथ पाकिस्तान के संबंधों में वृद्धि हो रही है, और दोनों देशों ने रक्षा और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने में रुचि दिखाई है। यह बढ़ता हुआ संबंध BRICS से पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष भागीदारी के लिए अवसर खोल सकता है।

5. चीन की भूमिका:

BRICS में चीन का प्रभाव पाकिस्तान के इस समूह के साथ संबंधों में एक महत्वपूर्ण कारक है। पाकिस्तान ने चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, और यह रणनीतिक साझेदारी पाकिस्तान के व्यापक कूटनीतिक रुख को प्रभावित करती है। जबकि BRICS स्वयं पाकिस्तान को औपचारिक रूप से शामिल नहीं करता है, पाकिस्तान का चीन के साथ संबंध अक्सर इसे विभिन्न द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संदर्भों में समूह के करीब लाता है।

6. भविष्य की संभावनाएँ:

भविष्य में BRICS के विस्तार को लेकर चर्चा रही है, और पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों ने इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है। हालांकि, BRICS के निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल है, और कोई भी विस्तार मौजूदा सदस्य देशों के हितों को संतुलित करना होगा, खासकर भारत और चीन के, जो इस समूह की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पाकिस्तान का BRICS के साथ संबंध मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष है, लेकिन यह चीन के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी और भारत के साथ उसकी प्रतिस्पर्धा से प्रभावित होता है। जबकि यह औपचारिक संरचना से बाहर है, पाकिस्तान व्यापार, ऊर्जा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से BRICS देशों के साथ द्विपक्षीय आधार पर जुड़ा हुआ है, खासकर चीन के साथ। पाकिस्तान की BRICS में भागीदारी के लिए भविष्य की संभावनाएँ व्यापक भू-राजनीतिक परिवर्तनों पर निर्भर करती हैं, जिसमें चीन, भारत और अन्य प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के बीच बदलते हुए रिश्ते शामिल हैं।

पाकिस्तान को बड़ा झटकाः ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज की लिस्ट में भी नहीं मिली जगह, भारत के वीटो के आगे हुआ पस्त

#bigsetbackforpakistandidnotgetplaceinlistofbricspartner_countries

ब्रिक्स में सदस्यता पाने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान का सपना चूर हो गया है। पाकिस्तान की ब्रिक्स की सदस्यता पाने की उम्मीदों को भारत के सख्त विरोध ने चकनाचूर कर दिया है। भारत के कड़े विरोध की वजह से पाकिस्तान न सिर्फ ब्रिक्स की सदस्यता से वंचित हुआ, बल्कि उसे पार्टनर कंट्रीज की सूची में भी जगह नहीं मिल पाई। इस बीच, तुर्किए ने खुद को ब्रिक्स पार्टनर कंट्रीज की सूची में शामिल कराकर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त किया है।

रूस ने हाल ही में 13 नए पार्टनर कंट्रीज की घोषणा की है। रूस ने इन 13 देशों को ब्रिक्‍स में पार्टनर कंट्री बनने का न्‍योता भेजा है जिसमें से 9 ने इसकी पुष्टि कर दी है। ये नौ देश हैं- बेलारूस, बोलविया, इंडोनेशिया, कजाखस्‍तान, क्‍यूबा, मलेशिया, थाइलैंड, यूगांडा, उज्‍बेकिस्‍तान। ये पार्टनर कंट्रीज आगे चलकर ब्रिक्‍स के सदस्‍य बनेंगे। ये देश 1 जनवरी 2025 से ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज बनेंगे

चीन-रूस का समर्थन भी नहीं आया काम

हालांकि, इन 13 देशों में पाकिस्‍तान का नाम नहीं है। पाकिस्तान, जो चीन और रूस के समर्थन से ब्रिक्स में प्रवेश की कोशिश कर रहा था, इस सूची में अपनी जगह बनाने में असफल रहा।

ब्रिक्स में भारत का सख्त रुख

भारत का विरोध पाकिस्तान की ब्रिक्स में सदस्यता के प्रयासों के लिए सबसे बड़ा अवरोध साबित हुआ। पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए चीन और रूस से समर्थन प्राप्त किया था, लेकिन भारत ने साफ तौर पर इसका विरोध किया। ब्रिक्स के नए सदस्य देशों को शामिल करने के लिए सभी संस्थापक सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। भारत ने पाकिस्तान की दावेदारी का कड़ा विरोध किया, जिससे उसके लिए दरवाजे बंद हो गए। भारत का यह विरोध पाकिस्तान की विदेश नीति के कमजोर पक्ष को उजागर करता है। भारत के सख्त रुख के कारण पाकिस्तान के लिए ब्रिक्स का दरवाजा बंद हो गया।

कश्‍मीर को लेकर तुर्की के बदले रूख का असर?

ब्रिक्‍स के 13 नए पार्टनर कंट्रीज का ऐलान हो गया है जिसमें सबसे बड़ा फायदा तुर्की को हुआ है। इन दिनों कश्‍मीर मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उठाने से परहेज कर रहे तुर्की को पार्टनर कंट्रीज में जगह मिल गई है। माना जा रहा है कि कश्‍मीर को लेकर तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगन के रुख में आए बदलाव की वजह से भारत ने ब्रिक्‍स में उसकी दावेदारी का विरोध नहीं किया।

राजनयिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन

विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की की ब्रिक्‍स में भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि कूटनीतिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन के माध्यम से देशों को महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ मिल सकता है। तुर्की ने अपने कूटनीतिक रिश्तों में लचीलापन दिखाते हुए भारत के साथ अपने पुराने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने तुर्की के पक्ष में सहमति जताई। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपने राजनयिक प्रयासों में उस लचीलापन और समायोजन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे उसे इस अवसर का लाभ मिल सकता था। पाकिस्तान को अब अपनी कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

ब्रिक्‍स में पाकिस्‍तान की बड़ी व‍िफलता

ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज में भी पाकिस्तान को जगह नहीं मिलने की बड़ी वजह उसकी विदेश नीति है। कुछ पाकिस्‍तानी विश्लेषकों भी ये बात मानते हैं। पाकिस्‍तान की विदेश मामलों की जानकार और चर्चित पत्रकार मरियाना बाबर ने एक्‍स पर लिखा', ' यह पाकिस्‍तान के विदेश मंत्रालय की पूरी तरह से विफलता है। वह भी तब जब इशाक डार विदेश मंत्री हैं जिनकी विदेशी मामलों में सबसे कम रुच‍ि है। यहां तक कि नाइजीरिया ने पाकिस्‍तान से बेहतर किया है। पाकिस्‍तान को रूस, चीन और भारत ने ब्रिक्‍स से बाहर रखा।' बता दें कि इशाक डार नवाज शरीफ के समधी और मरियम नवाज के ससुर हैं। इशाक डार पहले वित्‍त मंत्री हुआ करते थे लेकिन अब उन्‍हें शहबाज शरीफ के विरोध के बाद मजबूरन विदेश मंत्रालय से संतोष करना पड़ रहा है।

पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी थी ब्रिक्स की सदस्यता

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान को अगर ब्रिक्स में सदस्यता मिल जाती, तो इसके माध्यम से उसे कई लाभ मिल सकते थे। ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान को व्यापार और निवेश के क्षेत्र में नए अवसर मिल सकते थे। ब्रिक्स का सदस्य बनने से पाकिस्तान को विभिन्न वैश्विक मंचों पर भी अधिक प्रभाव मिल सकता था। इसके अलावा, ब्रिक्स के सदस्य देशों से आर्थिक सहायता और सहयोग पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता था।

विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान को अपनी कूटनीतिक रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। इसे अपनी विदेश नीति को अधिक लचीला और समायोजनीय बनाना होगा, ताकि भविष्य में इसे इस तरह के अवसरों से वंचित नहीं होना पड़े।

Pooja Enterprises, led by Mr. Sanjay Kaushal, revolutionizes the uniform and disposable wear industry across India and globally.

Pooja Enterprises from the city of Chandigarh has emerged as a manufacturing and supplying company of supreme quality uniforms and disposable wear. Initially it was operating since 2004 under sole proprietorship but the company has grown into a recognized organization not only in India but also in the international market offering segmented solutions in different sectors such as education, healthcare, corporate & hospitality.

Pooja Enterprises has wide popularity due to the vast assortment in its offer, including school uniform, formal wear, hospital uniform, chefs uniform, disposable shoe cover, disposable bouffant caps, blazers, corporate uniforms, laboratory coat with pocket, beard cover, and plastic disposable gloves. They come in durable material, quality texture and are effective when it comes to color fading; they are comfortable and thus serve the best satisfaction of the professionals and students. In this case the company sets itself apart from other manufacturers of pendants in that they can produce the designs in the logos of the brands in question.

Its collection of school uniforms, skirts, T-shirts, trousers, and the latest KV School Uniform makes Pooja Enterprises stand out in this niche. These uniforms are also crafted with minute attention to detail, offering both style and practicality. It takes the process further by arranging school uniform counters at school premises for easy accessibility by parents and students.

For the corporate world, Pooja Enterprises caters to high-end shirts and T-shirts, providing professional appeal along with comfort. Their hospital uniforms, comprising medical lab coats and other specialized ladies' uniforms, meet high standards for quality and hygiene, as they address the challenging needs of the healthcare industry. Even the hospitality sector benefits from its range of chef coats and designer chef uniforms, which are both functional and fashionable.

Behind the success of the company lies a robust manufacturing facility that is equipped with the latest machinery, enabling bulk production while upholding international standards. Wrinkle-free fabrics and perfect stitching ensure durability and aesthetic appeal for each product. The infrastructure also enables them to deliver orders on time, neatly ironed, and packed.

Mr. Sanjay Kaushal's leadership has greatly contributed to the success story of this company. With his innovative approach and strong connections in the industry, Pooja Enterprises has always been very responsive to the market's demands. Under his guidance, the company has exported its products to the United States, United Kingdom, Germany, Nepal, and Italy, increasing its international presence.

Client satisfaction is at the heart of Pooja Enterprises' philosophy. The company actively seeks feedback to refine its products and services, ensuring that every order meets the unique needs of its clients. With a focus on affordability and reliability, Pooja Enterprises has built strong partnerships with key customers such as Manchanda Mix Bag and New Public Departmental Stores.

As such, the quality assurance in which Pooja Enterprises is certified ensures that only quality raw materials are used to meet domestic and international standards. Their commitment to excellence has earned them a reputation for being unmatched in their quality uniforms and disposable wear. Hence, they emerge as an ideal choice for schools, corporations, hospitals, and hotels.

As the company continues growing, Pooja Enterprises strives to provide innovative, high-quality solutions that meet the demands of its clients while also solidifying its market leadership in the uniform and disposable wear industry.

ट्रंप ने भारत समेत ब्रिक्स देशों को क्यों दी चेतावनी, किस बात की है बौखलाहट?

#worried_about_the_dollar_trump_threatens_brics 

अमेरिकी के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी शपथ ग्रहण नहीं किया है। हालांकि, पदभार ग्रहण करने से पहले ही ट्रंप एक्शन में दिख रहे हैं। एक तरफ ट्रंप अपनी टीम बनाने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ अपनी धमकी भरी घोषणाओं से सनसनी फैलाने में लगे हैं। अब अमेरिका के नए चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) देशों को चेतावनी दी है। ट्रंप ने चेताया है कि अगर इन देशों ने अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उसका कोई विकल्प लाने का प्रयास किया तो उन्हें अमेरिकी बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है। बता दें कि ब्रिक्स में केवल रूस और चीन जैसे अमेरिका विरोधी माने जाने वाले देश ही नहीं हैं, बल्कि भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के साथ ही अब इजिप्ट, ईरान और यूएई भी शामिल हैं।

ट्रंप ने कहा है कि अगर ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साऊथ अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का समूह) देशों ने अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करने की कोशिश की तो उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा।यही नहीं, यहां तक कह दिया कि फिर वे देश अमेरिकी बाजार तक पहुंचने का ख्वाब छोड़ दें। अब बड़ा सवाल ये है कि ट्रंप की इस धमकी की वजह क्या है? क्या अमेरिका को अपने डॉलर का दबदबा घटता नजर आ रहा है? या फिर अमेरिका दुनियाभर के देशों के बदलते समीकरण से चिंतित है?

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के अपने हैंडल पर लिखा, “डॉलर से दूर होने की ब्रिक्स देशों की कोशिश में हम मूकदर्शक बने रहें, यह दौर अब ख़त्म हो गया है। हमें इन देशों से प्रतिबद्धता की ज़रूरत है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही ताक़तवर अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी मुद्रा का समर्थन करेंगे, वरना उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ़ का सामना करना पड़ेगा।”

ट्रंप ने लिखा, “अगर ब्रिक्स देश ऐसा करते हैं तो उन्हें शानदार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपने उत्पाद बेचने को विदा कहना होगा। वे किसी दूसरी जगह तलाश सकते हैं। इसकी कोई संभावना नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर की जगह ले पाएगा और ऐसा करने वाले किसी भी देश को अमेरिका को गुडबॉय कह देना चाहिए।”

क्या ब्रिक्स करेंसी की आहट से डरा अमेरिका?

ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों के अक्टूबर में हुए शिखर सम्मेलन का जवाब माना जा रहा है, जिसमें नॉन-डॉलर ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर चर्चा की गई थी। हालांकि सम्मेलन के आखिर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने साफ कर दिया था कि सिस्टम सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशल टेलिकम्युनिकेशन (SWIFT) जैसी वित्तीय संरचना का विकल्प खड़ा करने की दिशा में अब तक ठोस कुछ नहीं किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि ब्रिक्स को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उसकी छवि ऐसी बने कि वह वैश्विक संस्थानों की जगह लेना चाहता है।

अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहता है ब्रिक्स

बता दें कि ब्रिक्स 9 देशों का एक समूह है, जो अपने हितों को ध्यान में रखकर आपसी व्यापार को बढ़ावा देने का काम करता है। भारत इसका कोर मेंबर है। भारत, चीन, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका ने 2009 में इस ग्रुप का गठन किया था। ब्रिक्स देशों ने वैश्विक व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसका ताजा उदाहरण है, भारत और चीन द्वारा रूस से तेल खरीदना। इस सौदे के लिए डॉलर का उपयोग नहीं किया गया।

रूस और यूक्रेन में लड़ाई के चलते अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद, रूस, भारत और चीन ने अपनी-अपनी करेंसियों का इस्तेमाल करके व्यापार किया। अमेरिका को लग रहा था कि बिना डॉलर रूस का तेल बिक नहीं पाएगा, मगर ऐसा हुआ नहीं। भारत और चीन ने रूस से ताबड़तोड़ तेल खरीदा। ये बात अमेरिकी को काफी चुभी है।

दुनियाभर में कम हो रहा डॉलर का दबदबा?

बता दें कि दुनियाभर में डॉलर का दबदबा है, क्योंकि इसे ही व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। हर देश अपने रिजर्व में डॉलर को रखना चाहता है, क्योंकि किसी भी स्थिति में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरे देशों द्वारा डॉलर को रिजर्व मे रखने से इस करेंसी की मांग बढ़ी रहती है। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका के लिए कर्ज लेना आसान हो जाता है और उसे कम ब्याज चुकानी पड़ती है।भारत या अन्य देशों को कर्ज लेने पर ज्यादा ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं। ऐसे में वह अपनी वित्तीय पूंजी की पूर्ति के लिए भी डॉलर का इस्तेमाल करता है। हालांकि, रूस-युक्रेन युद्ध के बाद से हालात बदले हैं। यह बदलाव अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती की तरह है।

ब्रिक्स देशों को ट्रंप की चेतावनी, 10% अतिरिक्‍त टैरिफलगाने की धमकी, क्या भारत की बढ़ने वाली है परेशानी?

#americadonaldtrumpwarns10percenttariffonbrics_countries

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर ब्रिक्स देशों को धमकाने की कोशिश की है। ब्राजील में चल रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को बड़ी चेतावनी दे डाली। उन्होंने कहा कि अगर ब्रिक्स देश अमेरिका विरोधी नीति का समर्थन करते हैं तो उन पर 10 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। ब्रिक्स सम्मेलन में ईरान पर अमेरिका और इजराइल के हमलों की निंदा किए जाने के बाद ट्रंप ने नाराजगी जताते हुए ब्रिक्स देशों को चेताया।

यह बयान उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर साझा किया। डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा, ‘ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों से जुड़ने वाले किसी भी देश पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। इस नीति में कोई अपवाद नहीं होगा। इस मामले पर आपका ध्यान देने के लिए धन्यवाद!’

अमेरिका का नाम लिए बिना ईरान पर हमले और टैरिफ की निंदा की

दरअसल, ब्राजील में चल रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल देशों ने अमेरिका का नाम लिए बिना ईरान पर हुए हालिया हमले और व्यापार शुल्क (टैरिफ) की निंदा की। इजराइल की मध्य पूर्व में की जा रही सैन्य कार्रवाई की आलोचना की गई। सम्मेलन के पहले ब्रिक्स देशों ने अमेरिका पर सीधा हमला नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि बढ़ते टैरिफ (शुल्क) से वैश्विक व्यापार पर बुरा असर पड़ रहा है और यह डब्ल्यूटीओ के नियमों के खिलाफ है।

क्या भारत के लिए है बड़ा संदेश

हालांकि, ट्रंप ने इस बयान में यह स्पष्ट नहीं किया कि वह ‘अमेरिका विरोधी नीतियां’ किसे मानते हैं। यही कारण है कि इसके व्याख्या को लेकर भ्रम की स्थिति है। हालांकि उन्होंने जिस अपवाद की बात की है वह सीधे तौर पर भारत है। खासकर भारत जैसे देशों के लिए जो ब्रिक्स का हिस्सा भी हैं और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी भी निभा रहे हैं।

भारत के लिए बड़ी चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप ब्रिक्स को 'एंटी अमेरिका' मानते हैं और उन्हें डर है कि ब्रिक्स देश डॉलर के खिलाफ नई करेंसी जारी कर सकते हैं, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। ऐसे में भारत के लिए यह स्थिति काफी ज्यादा संवेदनशील और मुश्किल हो जाती है, क्योंकि वह अमेरिका का करीबी सहयोगी भी है और ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य भी। ऐसे में ट्रंप की धमकी भारत के लिए थोड़ी मुश्किल हो जाती है। इसका असर भारत-अमेरिका कारोबार पर भी पड़ता है। अब जब वे खुलेआम अतिरिक्त टैरिफ की चेतावनी दे रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि भारत जैसे देश इस आर्थिक दबाव से कैसे निपटेंगे?

भारत ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की भूमिका में

ब्रिक्स की शुरुआत 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन के साथ हुई थी, बाद में दक्षिण अफ्रीका और 2023 में ईरान, सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, इंडोनेशिया और इथियोपिया जैसे देश भी इस समूह में शामिल हो गए। ब्रिक्स के भीतर भारत ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की भूमिका भी निभा रहा है। भारत ने हमेशा इस मंच का उपयोग बहुपक्षीयता, वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने और विकासशील देशों के लिए समावेशी व्यवस्था की मांग करने के लिए किया है। हालांकि, चीन और रूस जैसे देशों के कारण ब्रिक्स पर "पश्चिम विरोधी" छवि भी चिपक गई है।

ग्लोबल साउथ के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया”, ब्रिक्स समिट से पीएम मोदी ने किसे दिया कड़ा संदेश?

#bricssummitpmmodimessageonterrorism

ब्राजील के रियो डी जनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ब्रिक्स देशों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वैश्विक आतंकवाद की कड़ी निंदा की और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से एकजुटता का आह्वान किया। ब्रिक्स के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बहुपक्षवाद, आर्थिक-वित्तीय मामलों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मजबूत करने' के विषय पर आयोजित सत्र के दौरान बड़ी ताकतों को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा कि कहा कि ग्लोबल साउथ को जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी पहुंच पर सिर्फ दिखावटी चीजें मिली हैं।

आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपनाने वालों को संदेश

प्रधानमंत्री मोदी अपनी पांच देशों की यात्रा के चौथे चरण में ब्राजील पहुंचे हैं। इससे पहले वे घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो और अर्जेंटीना जा चुके हैं। रियो डी जनेरियो में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट और स्पष्ट रुख अपनाने की अपील की। पीएम मोदी ने आतंकवाद को मानवता के खिलाफ अपराध करार देते हुए कहा कि आतंकवाद की निंदा हमारा सिद्धांत होनी चाहिए, न कि सुविधा। यह देखना कि हमला किस देश में हुआ और किसके खिलाफ, मानवता के साथ विश्वासघात है। पीएम का यह बयान सीधे तौर पर चीन को संदेश के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों चीन में आयोजित एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में उसने संयुक्त बयान के मसौदे में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जिक्र नहीं किया।

ग्लोबल साउथ 'डबल स्टैंडर्ड' का शिकार-पीएम मोदी

पीएम मोदी ने आगे कहा कि ग्लोबल साउथ को जो कुछ भी मिला है, वह सिर्फ "टोकन जेस्चर" है। मतलब है कि उन्हें सिर्फ दिखावे के लिए कुछ चीजें दी गई हैं, वास्तव में उनकी मदद नहीं की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि ग्लोबल साउथ 'डबल स्टैंडर्ड' का शिकार रहा है। मतलब, उनके साथ अलग-अलग नियमों के हिसाब से व्यवहार किया गया है।

वैश्विक संस्थाओं में सुधार की जरूरत-पीएम मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में बने वैश्विक संगठन आज की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। दुनिया भर में चल रहे युद्ध हों, महामारी हो, आर्थिक संकट हो या साइबर दुनिया में नई चुनौतियां, इन संगठनों के पास कोई समाधान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आज दुनिया को एक नई, बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की जरूरत है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थानों में व्यापक सुधारों से करनी होगी। सुधार केवल दिखावटी नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखना चाहिए। दुनिया को ऐसे नए सिस्टम की ज़रूरत है जिसमें कई देशों की बात सुनी जाए और सबको शामिल किया जाए। पुराने संगठनों में बदलाव ज़रूरी हैं, और ये बदलाव सिर्फ नाम के लिए नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका असर भी दिखना चाहिए।

सांसद विवेक ठाकुर ने ब्राज़ील में BRICS संसदीय मंच में किया भारत का प्रतिनिधित्व*
*

विवेक ठाकुर ने ब्रासीलिया, ब्राज़ील में आयोजित 11वें BRICS संसदीय मंच में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस मंच में उन्होंने "सतत विकास के लिए निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा" विषय पर भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। ठाकुर ने कहा कि BRICS देशों के बीच तकनीकी सहयोग, निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करना न केवल सदस्य राष्ट्रों के विकास के लिए, बल्कि समूचे वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत ने डिजिटल समावेशन, सतत ऊर्जा और नवाचार के क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह वैश्विक साझेदारी के लिए एक प्रेरक मॉडल बन चुकी है। *BRICS संसदीय मंच के बारे में मुख्य बातें:* - *मंच का उद्देश्य*: वैश्विक सहयोग, लोकतांत्रिक संवाद और सतत विकास को लेकर BRICS राष्ट्रों के सांसदों के बीच विचार-विमर्श करना। - *मंच का विषय*: अधिक समावेशी और टिकाऊ वैश्विक शासन के निर्माण में BRICS संसदों की भूमिका। - *प्रतिभागी*: BRICS देशों के पीठासीन अधिकारी और संसद सदस्य, साथ ही अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) की अध्यक्ष तुलिया एक्सन। - *लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की भूमिका*: बिरला ने इस मंच में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और जिम्मेदार और समावेशी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए अंतर-संसदीय सहयोग जैसे विषयों पर चर्चा की¹ ²।
शपथ लेते ही डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS को धमकी, भारत लिए क्या है मायने
#president_donald_trump_threatens_100_percent_tariffs_on_brics_nations
* डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार, 20 जनवरी को अमेरिकी संसद कैपिटल हिल में 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। ट्रम्प ने सत्ता संभालते ही देश से लेकर विदेश तक अमेरिकी नीतियों में कई बड़े बदलाव लाने की बात कही। शपथ के बाद 30 मिनट के भाषण में डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के तहत दूसरे देशों पर टैरिफ लगाने की बात कही। ट्रंप चुनाव जीतने के बाद ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी भी दी थी। इससे अलावा वो चीन, कनाडा और मेक्सिको पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की धमकी दे चुके हैं। राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर बैठते ही डोनाल्ड ट्रंप का एक्शन शुरू हो गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को खुलेआम धमकी दे दी है। सोमवार को शपथ लेते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि स्पेन समेत ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाया जा सकता है। ब्रिक्स में दस देश शामिल हैं। ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात। स्पेन ब्रिक्स का हिस्सा नहीं है। बावजूद वह भी ट्रंप के रडार में है। हालांकि, दिसंबर में ही डोनाल्ड ट्रंप ने इसका इशारा कर दिया था कि वह ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाएंगे। हालांकि, उन्होंने इसके लिए एक शर्त रखी थी। बता दें कि ट्रंप पहले ब्रिक्स की ओर से एक अलग करेंसी लाने का विरोध कर चुके हैं। ट्रंप की इस घोषणा के बाद ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से उसके टकराव बढ़ सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप की इस धमकी का मतलब है कि भारत भी इसके लपेटे में आएगा। भारत ब्रिक्स का अहम सदस्य है। ट्रंप का बयान इसलिए भी अहम है, क्योंकि कुछ समय पहले यह खबर आई थी कि ब्रिक्स देश अपनी नई करेंसी पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, उस पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं है। अगर ट्रंप की धमकी सही साबित होती है तो ब्रिक्स देशों के लिए बड़ी मुसीबत होगी। ऐसे में भारत के लिए भी अमेरिका से आयात-निर्यात करना बहुत कठिन हो जाएगा।
ब्रिक्स में शामिल हुआ दुनिया का सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश, पाकिस्तान के सपनों पर फिरा पानी

#indonesiabecomefullmemberof_brics

दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के औपचारिक समूह ब्रिक्स में देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब ब्रिक्स में एक और देश शामिल हो गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बन गया है। इंडोनेशिया सोमवार को ब्रिक्स समूह का दसवां पूर्ण सदस्य बन गया। इसका ऐलान 2025 तक ब्रिक्स की अध्यक्षता करने वाले ब्राजील ने किया है।

ब्राजील ने की घोषणा

ब्रिक्स के मौजूदा अध्यक्ष ब्राजील ने मंगलवार को इस बात का ऐलान किया कि इंडोनेशिया ब्रिक्स समूह का पूरी तरह से सदस्य बन गया है। ब्राजील के आधिकारिक बयान में कहा गया है, ब्राजील सरकार ब्रिक्स में इंडोनेशिया के प्रवेश का स्वागत करती है। ब्राजील ने कहा कि 2023 में जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन में ब्लॉक के सदस्यों ने इंडोनेशिया की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। जिसके बाद इंडोनेशिया को समूह में शामिल करने का फैसला लिया गया।

पाकिस्तान को लगा झटका

इंडोनेशिया का ब्रिक्स में आना पाकिस्तान के लिए झटके की तरह है। दरअसल पाकिस्तान नहीं चाहता था कि दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया इस ग्रुप में आए। इसके उलट पाकिस्तान खुद ब्रिक्स में आने की जुगत में लगा था। इसके लिए वह चीन को भी रिझा रहा था। साल 2023 में पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि ब्रिक्स के सदस्य उसकी सदस्यता को मंजूरी देंगे। लेकिन उसे अब निराशा हाथ लगी है। ब्रिक्स का दरवाजा उसके लिए नहीं खुला और इंडोनेशिया को एंट्री मिल गई।

पाकिस्तान के लिए क्यों मुश्किल है सदस्यता?

ब्रिक्स की सदस्यता आम सहमति से मिलती है। यानी अगर सभी सदस्य न चाहें तो कोई भी देश ब्रिक्स में शामिल नहीं हो सकता है। जाहिर तौर पर भारत ने इंडोनेशिया की सदस्यता का समर्थन किया। भारत इसमें शामिल है जो पाकिस्तान के लिए हमेशा चिंता की बात रही है। पाकिस्तानी मीडिया हर बार यह कहता रहा है कि भारत उसकी सदस्यता ब्लॉक कर रहा है।

कई देश चाहते हैं ब्रिक्स की सदस्यता

साल 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने मिलकर इस ग्रुप की स्थापना की थी। साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ था। पिछले साल इस समूह में मिस्र, ईरान, इथियोपिया और यूएई को शामिल किया गया था। सऊदी अरब को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन अभी तक वह इसमें शामिल नहीं हुआ है। तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने औपचारिक रूप से सदस्यता के लिए आवेदन किया है। कुछ और देश भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं।

ब्रिक्स को अमेरिका एक पश्चिम विरोधी गुट के तौर पर देखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल के वर्षों में रूस और चीन डॉलर का विकल्प खोजने में लगे हैं। वह ब्रिक्स की करेंसी बनाना चाहते हैं।

LAC पर गतिरोध खत्म करने को लेकर बनी रजामंदी के बाद क्या कर रही चीनी सेना, भारत ने भी दिया जवाब

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जारी विवाद थमता नजर आ रहा है. चीन के रक्षा मंत्रालय ने कल गुरुवार को कहा कि भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को खत्म करने के लिए हुए समझौते को “व्यापक और प्रभावी ढंग से” लागू कर रही हैं और इस संबंध में “स्थिर प्रगति” हुई है. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भी इस मसले पर कहा कि वहां पर स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है.

चीनी रक्षा प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल झांग शियाओगांग (Zhang Xiaogang) ने 18 दिसंबर को विशेष प्रतिनिधियों के साथ हुई वार्ता पर एक सवाल का जवाब देते हुए बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “वर्तमान में, भारत और चीन की सेनाएं दोनों पक्षों के बीच बॉर्डर से संबंधित समाधानों को व्यापक और प्रभावी ढंग से लागू कर रही हैं और इस संबंध में स्थिर प्रगति हुई है.”

अक्टूबर में दोनों देशों में बनी सहमति

उन्होंने यह भी कहा कि हाल के दिनों में, दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सहमति के आधार पर, भारत और चीन ने कूटनीतिक तथा सैन्य चैनलों के जरिए बॉर्डर की स्थिति पर करीबी संवाद बनाए रखा और बड़ी प्रगति हासिल की है.

एनएसए अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मुलाकात की और समझौते के कार्यान्वयन तथा अप्रैल 2020 में आपसी गतिरोध शुरू होने के बाद ठंडे पड़े रिश्तों को बहाल करने को लेकर व्यापक स्तर पर बातचीत की. अक्टूबर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS summit) के मौके पर रूस के कजान शहर में मुलाकात की और 21 अक्टूबर के समझौते को मंजूरी दी.

ठोस प्रयास करने को तैयारः कर्नल झांग

कर्नल झांग ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को सही रास्ते पर लाना दोनों देशों और दोनों लोगों के मौलिक हितों की पूर्ति करता है. उन्होंने आगे कहा, “चीनी सेना दोनों नेताओं के बीच बनी अहम सहमति को ईमानदारी से लागू करने, अधिक आदान-प्रदान, बातचीत करने और बॉर्डर क्षेत्र में संयुक्त रूप से स्थायी शांति तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए भारत-चीन सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पक्ष के साथ ठोस प्रयास करने के लिए तैयार है.”

वहीं भारत की ओर से इस संबंध में सकारात्मक प्रतिक्रिया की गई है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समग्र स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है, “समान और पारस्परिक सुरक्षा” के सिद्धांतों के आधार पर जमीनी स्थिति को बहाल करने के लिए आपस में व्यापक तौर पर सहमति बनी है. मंत्रालय की ओर से यह बयान पूर्वी लद्दाख में पिछले दो टकराव बिंदुओं से भारतीय और चीनी सेनाओं के पीछे हटने के कुछ हफ्ते बाद दिया गया है.

LAC पर स्थिति स्थिर लेकिन संवेदनशीलः रक्षा मंत्रालय

साल के अंत में रिव्यू के दौरान रक्षा मंत्रालय ने 21 अक्टूबर को दोनों पक्षों के बीच पीछे हटने को लेकर आपसी सहमति का उल्लेख किया और कहा कि देपसांग और डेमचोक में पारंपरिक क्षेत्रों में अब पेट्रोलिंग शुरू हो चुकी है. इसने कहा, “एलएसी पर कुल मिलाकर स्थिति स्थिर लेकिन संवेदनशील है.”

मंत्रालय ने कहा, “दोनों देशों के बीच डेपसांग और डेमचोक के टकराव वाले क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाना, उन्हें रिलोकेट करना और उसके बाद संयुक्त सत्यापन शामिल है. फिलहाल दोनों पक्षों की ओर से ब्लॉकिंग पोजिशन को हटा दिया गया है और संयुक्त सत्यापन का काम भी पूरा हो गया है. डेपसांग और डेमचोक में पारंपरिक गश्त वाले क्षेत्रों में पेट्रोलिंग भी शुरू हो चुकी है.” मंत्रालय ने कहा कि सेना ने एलएसी और नियंत्रण रेखा (LoC) सहित सभी सीमाओं पर स्थिरता और प्रभुत्व सुनिश्चित करने के लिए परिचालन तैयारियों की उच्च स्थिति बनाए रखी है.

पाकिस्तान और BRICS: रणनीतिक रिश्ते और भविष्य की संभावनाएँ

पाकिस्तान का BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) के साथ संबंध जटिल रहा है, जिसमें देश सदस्य नहीं है, लेकिन विभिन्न तरीकों से इस समूह के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ इस संबंध का एक अवलोकन है:

1. गैर-सदस्य स्थिति:

पाकिस्तान BRICS का सदस्य नहीं है। इस समूह की शुरुआत 2006 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन (BRIC) से हुई थी, और दक्षिण अफ्रीका 2010 में शामिल हुआ। हालांकि पाकिस्तान ने इस समूह में शामिल होने की इच्छा जताई है, खासकर इसके आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्व के कारण, लेकिन इसे अब तक पूर्ण सदस्य बनने का निमंत्रण नहीं मिला है। यह सदस्यता न मिलने की एक बड़ी वजह भारत के साथ क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है, जो BRICS का एक मुख्य सदस्य है।

2. आर्थिक संलिप्तता:

सदस्य न होने के बावजूद, पाकिस्तान BRICS के कई देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध बनाए रखता है। यह चीन, जो BRICS के भीतर प्रमुख साझेदार है, के साथ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के ढांचे में जुड़ा हुआ है, जो पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग क्षेत्र से जोड़ता है। यह रणनीतिक गठबंधन पाकिस्तान को क्षेत्रीय आर्थिक गतिवधियों में महत्वपूर्ण बनाता है, जिससे यह अप्रत्यक्ष रूप से चीन के माध्यम से BRICS से जुड़ा हुआ है।

3. भारत के साथ संबंध:

BRICS में भारत की सदस्यता पाकिस्तान के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर लंबी प्रतिस्पर्धा रही है। इस प्रतिस्पर्धा के कारण, पाकिस्तान का BRICS में शामिल होने का प्रयास अक्सर विफल होता है। भारत के साथ कूटनीतिक और भू-राजनीतिक तनाव की वजह से पाकिस्तान के लिए BRICS में सदस्यता पाना मुश्किल है।

4. कूटनीतिक और रणनीतिक हित:

पाकिस्तान ने विभिन्न तरीकों से BRICS के साथ जुड़ने की कोशिश की है। यह कुछ BRICS आउटरिच सम्मेलनों में दक्षिण एशियाई क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के रूप में शामिल हुआ है, लेकिन जब भी भारत से जुड़ी संवेदनशील समस्याएँ उठती हैं, तो इसे अक्सर मुख्य चर्चाओं से बाहर रखा जाता है। रूस के साथ पाकिस्तान के संबंधों में वृद्धि हो रही है, और दोनों देशों ने रक्षा और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने में रुचि दिखाई है। यह बढ़ता हुआ संबंध BRICS से पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष भागीदारी के लिए अवसर खोल सकता है।

5. चीन की भूमिका:

BRICS में चीन का प्रभाव पाकिस्तान के इस समूह के साथ संबंधों में एक महत्वपूर्ण कारक है। पाकिस्तान ने चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, और यह रणनीतिक साझेदारी पाकिस्तान के व्यापक कूटनीतिक रुख को प्रभावित करती है। जबकि BRICS स्वयं पाकिस्तान को औपचारिक रूप से शामिल नहीं करता है, पाकिस्तान का चीन के साथ संबंध अक्सर इसे विभिन्न द्विपक्षीय और क्षेत्रीय संदर्भों में समूह के करीब लाता है।

6. भविष्य की संभावनाएँ:

भविष्य में BRICS के विस्तार को लेकर चर्चा रही है, और पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों ने इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है। हालांकि, BRICS के निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल है, और कोई भी विस्तार मौजूदा सदस्य देशों के हितों को संतुलित करना होगा, खासकर भारत और चीन के, जो इस समूह की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पाकिस्तान का BRICS के साथ संबंध मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष है, लेकिन यह चीन के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी और भारत के साथ उसकी प्रतिस्पर्धा से प्रभावित होता है। जबकि यह औपचारिक संरचना से बाहर है, पाकिस्तान व्यापार, ऊर्जा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से BRICS देशों के साथ द्विपक्षीय आधार पर जुड़ा हुआ है, खासकर चीन के साथ। पाकिस्तान की BRICS में भागीदारी के लिए भविष्य की संभावनाएँ व्यापक भू-राजनीतिक परिवर्तनों पर निर्भर करती हैं, जिसमें चीन, भारत और अन्य प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के बीच बदलते हुए रिश्ते शामिल हैं।

पाकिस्तान को बड़ा झटकाः ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज की लिस्ट में भी नहीं मिली जगह, भारत के वीटो के आगे हुआ पस्त

#bigsetbackforpakistandidnotgetplaceinlistofbricspartner_countries

ब्रिक्स में सदस्यता पाने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान का सपना चूर हो गया है। पाकिस्तान की ब्रिक्स की सदस्यता पाने की उम्मीदों को भारत के सख्त विरोध ने चकनाचूर कर दिया है। भारत के कड़े विरोध की वजह से पाकिस्तान न सिर्फ ब्रिक्स की सदस्यता से वंचित हुआ, बल्कि उसे पार्टनर कंट्रीज की सूची में भी जगह नहीं मिल पाई। इस बीच, तुर्किए ने खुद को ब्रिक्स पार्टनर कंट्रीज की सूची में शामिल कराकर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त किया है।

रूस ने हाल ही में 13 नए पार्टनर कंट्रीज की घोषणा की है। रूस ने इन 13 देशों को ब्रिक्‍स में पार्टनर कंट्री बनने का न्‍योता भेजा है जिसमें से 9 ने इसकी पुष्टि कर दी है। ये नौ देश हैं- बेलारूस, बोलविया, इंडोनेशिया, कजाखस्‍तान, क्‍यूबा, मलेशिया, थाइलैंड, यूगांडा, उज्‍बेकिस्‍तान। ये पार्टनर कंट्रीज आगे चलकर ब्रिक्‍स के सदस्‍य बनेंगे। ये देश 1 जनवरी 2025 से ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज बनेंगे

चीन-रूस का समर्थन भी नहीं आया काम

हालांकि, इन 13 देशों में पाकिस्‍तान का नाम नहीं है। पाकिस्तान, जो चीन और रूस के समर्थन से ब्रिक्स में प्रवेश की कोशिश कर रहा था, इस सूची में अपनी जगह बनाने में असफल रहा।

ब्रिक्स में भारत का सख्त रुख

भारत का विरोध पाकिस्तान की ब्रिक्स में सदस्यता के प्रयासों के लिए सबसे बड़ा अवरोध साबित हुआ। पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए चीन और रूस से समर्थन प्राप्त किया था, लेकिन भारत ने साफ तौर पर इसका विरोध किया। ब्रिक्स के नए सदस्य देशों को शामिल करने के लिए सभी संस्थापक सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। भारत ने पाकिस्तान की दावेदारी का कड़ा विरोध किया, जिससे उसके लिए दरवाजे बंद हो गए। भारत का यह विरोध पाकिस्तान की विदेश नीति के कमजोर पक्ष को उजागर करता है। भारत के सख्त रुख के कारण पाकिस्तान के लिए ब्रिक्स का दरवाजा बंद हो गया।

कश्‍मीर को लेकर तुर्की के बदले रूख का असर?

ब्रिक्‍स के 13 नए पार्टनर कंट्रीज का ऐलान हो गया है जिसमें सबसे बड़ा फायदा तुर्की को हुआ है। इन दिनों कश्‍मीर मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उठाने से परहेज कर रहे तुर्की को पार्टनर कंट्रीज में जगह मिल गई है। माना जा रहा है कि कश्‍मीर को लेकर तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगन के रुख में आए बदलाव की वजह से भारत ने ब्रिक्‍स में उसकी दावेदारी का विरोध नहीं किया।

राजनयिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन

विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की की ब्रिक्‍स में भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि कूटनीतिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन के माध्यम से देशों को महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ मिल सकता है। तुर्की ने अपने कूटनीतिक रिश्तों में लचीलापन दिखाते हुए भारत के साथ अपने पुराने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने तुर्की के पक्ष में सहमति जताई। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपने राजनयिक प्रयासों में उस लचीलापन और समायोजन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे उसे इस अवसर का लाभ मिल सकता था। पाकिस्तान को अब अपनी कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

ब्रिक्‍स में पाकिस्‍तान की बड़ी व‍िफलता

ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज में भी पाकिस्तान को जगह नहीं मिलने की बड़ी वजह उसकी विदेश नीति है। कुछ पाकिस्‍तानी विश्लेषकों भी ये बात मानते हैं। पाकिस्‍तान की विदेश मामलों की जानकार और चर्चित पत्रकार मरियाना बाबर ने एक्‍स पर लिखा', ' यह पाकिस्‍तान के विदेश मंत्रालय की पूरी तरह से विफलता है। वह भी तब जब इशाक डार विदेश मंत्री हैं जिनकी विदेशी मामलों में सबसे कम रुच‍ि है। यहां तक कि नाइजीरिया ने पाकिस्‍तान से बेहतर किया है। पाकिस्‍तान को रूस, चीन और भारत ने ब्रिक्‍स से बाहर रखा।' बता दें कि इशाक डार नवाज शरीफ के समधी और मरियम नवाज के ससुर हैं। इशाक डार पहले वित्‍त मंत्री हुआ करते थे लेकिन अब उन्‍हें शहबाज शरीफ के विरोध के बाद मजबूरन विदेश मंत्रालय से संतोष करना पड़ रहा है।

पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी थी ब्रिक्स की सदस्यता

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान को अगर ब्रिक्स में सदस्यता मिल जाती, तो इसके माध्यम से उसे कई लाभ मिल सकते थे। ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान को व्यापार और निवेश के क्षेत्र में नए अवसर मिल सकते थे। ब्रिक्स का सदस्य बनने से पाकिस्तान को विभिन्न वैश्विक मंचों पर भी अधिक प्रभाव मिल सकता था। इसके अलावा, ब्रिक्स के सदस्य देशों से आर्थिक सहायता और सहयोग पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता था।

विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान को अपनी कूटनीतिक रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। इसे अपनी विदेश नीति को अधिक लचीला और समायोजनीय बनाना होगा, ताकि भविष्य में इसे इस तरह के अवसरों से वंचित नहीं होना पड़े।

Pooja Enterprises, led by Mr. Sanjay Kaushal, revolutionizes the uniform and disposable wear industry across India and globally.

Pooja Enterprises from the city of Chandigarh has emerged as a manufacturing and supplying company of supreme quality uniforms and disposable wear. Initially it was operating since 2004 under sole proprietorship but the company has grown into a recognized organization not only in India but also in the international market offering segmented solutions in different sectors such as education, healthcare, corporate & hospitality.

Pooja Enterprises has wide popularity due to the vast assortment in its offer, including school uniform, formal wear, hospital uniform, chefs uniform, disposable shoe cover, disposable bouffant caps, blazers, corporate uniforms, laboratory coat with pocket, beard cover, and plastic disposable gloves. They come in durable material, quality texture and are effective when it comes to color fading; they are comfortable and thus serve the best satisfaction of the professionals and students. In this case the company sets itself apart from other manufacturers of pendants in that they can produce the designs in the logos of the brands in question.

Its collection of school uniforms, skirts, T-shirts, trousers, and the latest KV School Uniform makes Pooja Enterprises stand out in this niche. These uniforms are also crafted with minute attention to detail, offering both style and practicality. It takes the process further by arranging school uniform counters at school premises for easy accessibility by parents and students.

For the corporate world, Pooja Enterprises caters to high-end shirts and T-shirts, providing professional appeal along with comfort. Their hospital uniforms, comprising medical lab coats and other specialized ladies' uniforms, meet high standards for quality and hygiene, as they address the challenging needs of the healthcare industry. Even the hospitality sector benefits from its range of chef coats and designer chef uniforms, which are both functional and fashionable.

Behind the success of the company lies a robust manufacturing facility that is equipped with the latest machinery, enabling bulk production while upholding international standards. Wrinkle-free fabrics and perfect stitching ensure durability and aesthetic appeal for each product. The infrastructure also enables them to deliver orders on time, neatly ironed, and packed.

Mr. Sanjay Kaushal's leadership has greatly contributed to the success story of this company. With his innovative approach and strong connections in the industry, Pooja Enterprises has always been very responsive to the market's demands. Under his guidance, the company has exported its products to the United States, United Kingdom, Germany, Nepal, and Italy, increasing its international presence.

Client satisfaction is at the heart of Pooja Enterprises' philosophy. The company actively seeks feedback to refine its products and services, ensuring that every order meets the unique needs of its clients. With a focus on affordability and reliability, Pooja Enterprises has built strong partnerships with key customers such as Manchanda Mix Bag and New Public Departmental Stores.

As such, the quality assurance in which Pooja Enterprises is certified ensures that only quality raw materials are used to meet domestic and international standards. Their commitment to excellence has earned them a reputation for being unmatched in their quality uniforms and disposable wear. Hence, they emerge as an ideal choice for schools, corporations, hospitals, and hotels.

As the company continues growing, Pooja Enterprises strives to provide innovative, high-quality solutions that meet the demands of its clients while also solidifying its market leadership in the uniform and disposable wear industry.

ट्रंप ने भारत समेत ब्रिक्स देशों को क्यों दी चेतावनी, किस बात की है बौखलाहट?

#worried_about_the_dollar_trump_threatens_brics 

अमेरिकी के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी शपथ ग्रहण नहीं किया है। हालांकि, पदभार ग्रहण करने से पहले ही ट्रंप एक्शन में दिख रहे हैं। एक तरफ ट्रंप अपनी टीम बनाने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ अपनी धमकी भरी घोषणाओं से सनसनी फैलाने में लगे हैं। अब अमेरिका के नए चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) देशों को चेतावनी दी है। ट्रंप ने चेताया है कि अगर इन देशों ने अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उसका कोई विकल्प लाने का प्रयास किया तो उन्हें अमेरिकी बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है। बता दें कि ब्रिक्स में केवल रूस और चीन जैसे अमेरिका विरोधी माने जाने वाले देश ही नहीं हैं, बल्कि भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के साथ ही अब इजिप्ट, ईरान और यूएई भी शामिल हैं।

ट्रंप ने कहा है कि अगर ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साऊथ अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का समूह) देशों ने अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करने की कोशिश की तो उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा।यही नहीं, यहां तक कह दिया कि फिर वे देश अमेरिकी बाजार तक पहुंचने का ख्वाब छोड़ दें। अब बड़ा सवाल ये है कि ट्रंप की इस धमकी की वजह क्या है? क्या अमेरिका को अपने डॉलर का दबदबा घटता नजर आ रहा है? या फिर अमेरिका दुनियाभर के देशों के बदलते समीकरण से चिंतित है?

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के अपने हैंडल पर लिखा, “डॉलर से दूर होने की ब्रिक्स देशों की कोशिश में हम मूकदर्शक बने रहें, यह दौर अब ख़त्म हो गया है। हमें इन देशों से प्रतिबद्धता की ज़रूरत है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही ताक़तवर अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी मुद्रा का समर्थन करेंगे, वरना उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ़ का सामना करना पड़ेगा।”

ट्रंप ने लिखा, “अगर ब्रिक्स देश ऐसा करते हैं तो उन्हें शानदार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपने उत्पाद बेचने को विदा कहना होगा। वे किसी दूसरी जगह तलाश सकते हैं। इसकी कोई संभावना नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर की जगह ले पाएगा और ऐसा करने वाले किसी भी देश को अमेरिका को गुडबॉय कह देना चाहिए।”

क्या ब्रिक्स करेंसी की आहट से डरा अमेरिका?

ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों के अक्टूबर में हुए शिखर सम्मेलन का जवाब माना जा रहा है, जिसमें नॉन-डॉलर ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर चर्चा की गई थी। हालांकि सम्मेलन के आखिर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने साफ कर दिया था कि सिस्टम सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशल टेलिकम्युनिकेशन (SWIFT) जैसी वित्तीय संरचना का विकल्प खड़ा करने की दिशा में अब तक ठोस कुछ नहीं किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि ब्रिक्स को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उसकी छवि ऐसी बने कि वह वैश्विक संस्थानों की जगह लेना चाहता है।

अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहता है ब्रिक्स

बता दें कि ब्रिक्स 9 देशों का एक समूह है, जो अपने हितों को ध्यान में रखकर आपसी व्यापार को बढ़ावा देने का काम करता है। भारत इसका कोर मेंबर है। भारत, चीन, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका ने 2009 में इस ग्रुप का गठन किया था। ब्रिक्स देशों ने वैश्विक व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसका ताजा उदाहरण है, भारत और चीन द्वारा रूस से तेल खरीदना। इस सौदे के लिए डॉलर का उपयोग नहीं किया गया।

रूस और यूक्रेन में लड़ाई के चलते अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद, रूस, भारत और चीन ने अपनी-अपनी करेंसियों का इस्तेमाल करके व्यापार किया। अमेरिका को लग रहा था कि बिना डॉलर रूस का तेल बिक नहीं पाएगा, मगर ऐसा हुआ नहीं। भारत और चीन ने रूस से ताबड़तोड़ तेल खरीदा। ये बात अमेरिकी को काफी चुभी है।

दुनियाभर में कम हो रहा डॉलर का दबदबा?

बता दें कि दुनियाभर में डॉलर का दबदबा है, क्योंकि इसे ही व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। हर देश अपने रिजर्व में डॉलर को रखना चाहता है, क्योंकि किसी भी स्थिति में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरे देशों द्वारा डॉलर को रिजर्व मे रखने से इस करेंसी की मांग बढ़ी रहती है। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका के लिए कर्ज लेना आसान हो जाता है और उसे कम ब्याज चुकानी पड़ती है।भारत या अन्य देशों को कर्ज लेने पर ज्यादा ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं। ऐसे में वह अपनी वित्तीय पूंजी की पूर्ति के लिए भी डॉलर का इस्तेमाल करता है। हालांकि, रूस-युक्रेन युद्ध के बाद से हालात बदले हैं। यह बदलाव अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती की तरह है।