*वैदिक कालीन शिक्षा की मूल्यपरक परंपरा हमें पुनः आत्मचिंतन का अवसर देती है- डॉ. शिल्पी सिंह*
शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा वैदिक कालीन शिक्षा की वर्तमान में प्रासंगिकता विषयक संगोष्ठी का आयोजन हुआ
सुलतानपुर,राणा प्रताप पी.जी. कॉलेज के शिक्षाशास्त्र विभाग द्वारा “वैदिक कालीन शिक्षा की वर्तमान में प्रासंगिकता” विषय पर एक सारगर्भित विद्यार्थी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विभागाध्यक्ष डॉ. शिल्पी सिंह ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन व पुष्प अर्पित कर किया। विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. शिल्पी सिंह ने कहा कि वैदिक शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन न होकर व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण और समाजोत्थान था।
आज के समय में जब शिक्षा मात्र रोजगार का माध्यम बनती जा रही है, ऐसे में वैदिक कालीन शिक्षा की मूल्यपरक परंपरा हमें पुनः आत्मचिंतन का अवसर देती है। उन्होंने कहा कि वैदिक शिक्षा में गुरु-शिष्य संबंध, नैतिक मूल्यों, अनुशासन, आत्मसंयम और लोकमंगल की भावना निहित थी, जो वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भी अत्यंत आवश्यक है।
संगोष्ठी में विभिन्न सेमेस्टरों के विद्यार्थियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।अनामिका (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा का मूल आधार आत्मज्ञान था। विद्यार्थी को समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराया जाता था। आज के युग में इस आदर्श को पुनः अपनाने की आवश्यकता है।सुहानी (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा विद्यार्थियों को जीवन के चार पुरुषार्थों—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—का संतुलन सिखाती थी। आधुनिक शिक्षा में यह संतुलन खो गया है जिसे पुनः स्थापित करना होगा।
कामिनी साहू (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा ने महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार दिया। गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं की परंपरा आज भी प्रेरणादायक है। नेहा (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा में पर्यावरण, प्रकृति और मानव के संबंध को विशेष महत्व दिया गया था। आज की शिक्षा में भी पर्यावरण चेतना को उसी रूप में जोड़ा जाना चाहिए। प्रिया (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा मन, वाणी और कर्म की एकता पर बल देती थी। यही समग्र विकास का वास्तविक आधार है। सुहानी सिंह (बी.ए. प्रथम सेमेस्टर) ने कहा कि वर्तमान शिक्षा में नैतिकता और संस्कारों का अभाव दिखाई देता है। वैदिक शिक्षा के आदर्शों को अपनाकर ही हम नैतिक समाज की स्थापना कर सकते हैं।सृष्टि (बी.ए. पंचम सेमेस्टर) ने कहा कि आज जब शिक्षा प्रतिस्पर्धा और भौतिकता में उलझ रही है, तब वैदिक शिक्षा का आध्यात्मिक दृष्टिकोण हमें संतुलित और सार्थक जीवन की दिशा दिखाता है। जिगर अहमद (बी.ए. पंचम सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा में संवाद, तर्क और ज्ञान की स्वतंत्रता थी। यह लोकतांत्रिक शिक्षा की आधारशिला थी, जिसे हमें पुनः जीवित करने की आवश्यकता है। देवेन्द्र तिवारी (बी.ए. पंचम सेमेस्टर) ने कहा कि आज की शिक्षा में अनुशासन और गुरु के प्रति सम्मान का जो ह्रास हुआ है, वह चिंता का विषय है। वैदिक शिक्षा इस दिशा में आदर्श प्रस्तुत करती है।
खुशी मोदनवाल (बी.ए. तृतीय सेमेस्टर) ने कहा कि वैदिक शिक्षा आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती थी। आज ‘स्किल डेवलपमेंट’ के रूप में हम उसी परंपरा को आधुनिक रूप में पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों ने वैदिक ऋचाओं के उच्चारण के साथ वैदिक संस्कृति के पुनरुत्थान का संकल्प लिया। कार्यक्रम का संचालन विभाग की वरिष्ठ छात्रा सृष्टि ने किया तथा आभार व्यक्त देवेन्द्र तिवारी ने किया। अंत में डॉ. शिल्पी सिंह ने सभी विद्यार्थियों को उनके चिंतनशील वक्तव्यों के लिए सराहा और कहा कि इस प्रकार की संगोष्ठियाँ न केवल ज्ञानवर्धक होती हैं बल्कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में भी सहायक सिद्ध होती हैं।
Nov 06 2025, 05:54
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