भारत में पहली बार बनेंगे C-295 मिलिट्री एयरक्राफ्ट, रफ्तार देख थम जाएगी दुश्मनों की सांस, जानें इसकी खासियत

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अब एयरबस के C-295 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भारत में ही बनेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात के वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) परिसर में C-295 एयरक्राफ्ट के निर्माण के लिए टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी के साथ स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज भी मौजूद रहे। भारत के C-295 कार्यक्रम में कुल 56 एयरक्राफ्ट होंगे जिनमें से 16 सीधे एयरबस डिलीवर करेगा और बाकी 40 भारत में बनाए जाएंगे। इन 40 C-295 विमानों को बनाने की जिम्मेदारी 'टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड' की होगी। इसके साथ ही भारत के रक्षा क्षेत्र में बड़ा कायाकप्ल होगा।

यह प्रोजेक्ट अहम इसलिए भी है, क्योंकि पहली बार देश में कोई निजी कंपनी सेना के लिए प्लेन बनाएगी। यह पहली बार है जब कोई निजी कंपनी भारत में पूरा का पूरा मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगी। साल 2021 में 56 C-295 एयरक्राफ्ट के लिए 21हजार 935 करोड़ रुपये की टाटा-एयरबस प्रोजेक्ट के तहत डील हुई थी। इस डील के तहत भारत को पिछले साल सितंबर के पहला C-295 एयरक्राफ्ट मिल गया था। डील में 56 विमानों में से पहले 16 विमान स्पेन और बाकी भारत में बनाए जाएंगे। 40 C-295 एयरक्राफ्ट के निर्माण के लिए वडोदरा में टाटा ने एयरबस के साथ मिलकर मैनुफैक्चरिंग कॉम्लेक्स बनाया है।

यह विमान सैनिकों को ध्यान में रखकर खास डिजाइन किया गया है। इसे कार्गो से लेकर जवानों तक को ट्रांसपोर्ट करने के लिए यूज किया जा सकता है। एयरक्राफ्ट को कई तरह के मिशनों के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें ट्रांसपोर्ट, पैराशूट ड्रॉपिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस (ELINT), मेडिकल निकासी (MEDEVAC), और समुद्री गश्त शामिल हैं। बाकी कार्गो विमानों की तुलना में इस विमान का टेकऑफ टाइम कम है।सी-295 एक मीडियम साइज का विमान जो किसी भी तरह की हवाई पट्टी पर उतारा जा सकता है।

कम वजन के ट्रांस्पोर्टेशन के लिए अहम C-295 एयरक्राफ्ट

यह कॉम्प्लेक्स देश का पहला निजी फाइनल असेंबली लाइन है, जो मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगा। भारतीय वायुसेना, के लिए ट्रांसपोर्ट विमान भारत के लिए बेहद जरूरी है, जिससे सैनिकों, हथियारों, ईंधन और हार्डवेयर को जगह से दूसरी जगह पहुंचा सकें। C-295 कम वजन के ट्रांसपोर्टेशन में भी भारतीय सेना केलिए अहम साबित होने वाला है।

C-295 एयरक्राफ्ट की कितनी है क्षमता?

सी-295 एयरक्राफ्ट की फंक्शनिंग की बात करें तो इसे दो पायलट्स उड़ाते हैं। इसमें एक साथ 73 सैनिक, 48 पैराट्रूपर्स, 12 स्ट्रेचर इंटेसिंव केयर मेडवैक, या 27 स्ट्रेचर मेडवैक के साथ 4 मिडिकल अटेंडेंट सफर कर सकते हैं। डायमेंशंस का उल्लेख करें तो यह C-295 एयरक्राफ्ट 9250 KG का वजन उठा सकता है। इसकी लंबाई 80.3 फीट, विंगस्पैन 84.8 फीट, ऊंचाई 28.5 फीट है।

कौन हैं पाक के नए चीफ जस्टिस याह्या अफरीदी, जानें नियुक्ति पर क्यों हो रहा बवाल?

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पाकिस्तान की विशेष संसदीय कमेटी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस को चुन लिया। कमेटी ने लंबी चली बैठक के बाद तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों में अगले चीफ जस्टिस के रूप में याह्या अफरीदी को नामित किया है।अफरीदी का चयन हाल ही में हुए 26 वें संविधान संशोधन के तहत किया गया है, इस संशोधन ने न्यायपालिका में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। जिसमें मुख्य न्यायाधीश के चयन के लिए एक विशेष संसदीय समिति (SPC) की स्थापना शामिल है।

हाल ही में किए गए संविधान के 26वें संशोधन ने न्यायपालिका के संबंध में कई बदलाव लागू किए, जिनमें से एक विशेष संसदीय समिति (एसपीसी) द्वारा तीन शीर्ष न्यायाधीशों में से चीफ जस्टिस की नियुक्ति करना शामिल था, जबकि पिछले नियम के हिसाब से सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को वरिष्ठता सिद्धांत के तहत चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाता था।

विशेष संसदीय समिति (SPC) की स्थापना से पहले वरिष्ठता के आधार पर चीफ जस्टिस का चयन होता था। याह्या अफरीदी के साथ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर भी इस दौड़ में शामिल थे। पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा 25 अक्टूबर को शीर्ष न्यायाधीश से रिटायर होने वाले हैं। न्यायमूर्ति शाह को पहले वरिष्ठता सिद्धांत के तहत अगला CJP बनाया जाना था।

हालांकि, अनुच्छेद-175ए के खंड-3 में किए गए संशोधन के बाद राष्ट्रपति 'शीर्ष अदालत के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश' को चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त नहीं कर सकेंगे। इसके बजाय, अब विशेष संसदीय समिति की सिफारिश के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों में से किसी एक को चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त किया जाएगा।

याह्या अफरीदी कौन हैं

जस्टिस अफरीदी का जन्म 23 जनवरी 1965 को डेरा इस्माइल खान में हुआ था। वह कोहाट सीमांत क्षेत्र में स्थित अफरीदी जनजाति से हैं। वो बांदा गांव के निवासी हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के एचीसन कॉलेज में प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से अर्थशास्त्र में कला में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उल्लेखनीय है कि 59 वर्षीय अफरीदी ने 1990 में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और देश के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के बाद 2018 में उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

ज्यादा बच्चे पैदा करने की पैरवी नायडू-स्टालिन, जानें क्या डर सता रहा दोनों नेताओं को

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भारत की आबादी को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। इसकी शुरूआत दक्षिण के राज्यों से ही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने अपने-अपने राज्यों के लोगों से कहा है कि अधिक बच्चे पैदा करें। आंध्र प्रदेश के सीएम ने राज्य की 'वृद्ध होती आबादी' का मुद्दा उठाया, जबकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 2026 तक होने वाले परिसीमन के लिए 'समाधान' के रूप में '16 बच्चे' पालने वाले दंपतियों की बात की। मामले को लेकर राजनीति भी अपने चरम पर है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सोमवार को जनसांख्यिकीय परिवर्तन के मुद्दे को परिसीमन प्रक्रिया से जोड़ते हुए सुझाव दिया कि राज्य में लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए। तमिनलाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोमवार को कहा कि लोकसभा परिसीमन प्रक्रिया से कई दंपतियों के 16 (तरह की संपत्ति) बच्चों की तमिल कहावत की ओर वापस लौटने की उम्मीदें बढ़ सकती हैं। स्टालिन ने कहा कि अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जहां लोगों को लगता है कि अब उन्हें सचमुच 16 बच्चे पैदा करने चाहिए, न कि एक छोटा और खुशहाल परिवार रखना चाहिए। मुख्यमंत्री ने जनगणना और लोसकभा परिसीमन प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि नवविवाहित जोड़े अब कम बच्चे पैदा करने का विचार त्याग सकते हैं।

स्टालिन की यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की तरफ से अधिक बच्चे पैदा करने की इसी तरह के बयान के एक दिन बाद आई है। इससे पहले नायडू ने रविवार को घोषणा की कि उनका प्रशासन एक ऐसा कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके तहत केवल दो या उससे अधिक बच्चे वाले व्यक्ति ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे। उन्होंने राज्य की बढ़ती उम्र की आबादी और जनसांख्यिकीय संतुलन पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए परिवारों से अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया था।

चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि दक्षिण भारत में आबादी बूढ़ी हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक महिला को अपने जीवनकाल में दो से अधिक बच्चों को जन्म देना चाहिए। आंध्र प्रदेश की जन्म दर प्रति महिला 2.1 जीवित जन्मों के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। नायडू का कहना था कि हमें अपनी जनसंख्या को मैनेज करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 2047 तक, हमारे पास जनसांख्यिकीय लाभांश होगा, अधिक युवा होंगे। 2047 के बाद, अधिक बूढ़े लोग होंगे। ऐसे में यदि दो से कम बच्चे (प्रति महिला) जन्म लेते हैं, तो जनसंख्या कम हो जाएगी। यदि आप (प्रत्येक महिला) दो से अधिक बच्चों को जन्म देती हैं, तो जनसंख्या बढ़ेगी।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब तमिलनाडु सहित अन्य दक्षिणी राज्यों को 2026 में होने वाले परिसीमन के कारण संसदीय प्रतिनिधित्व में संभावित बदलावों का सामना करना पड़ रहा है। अगर भारत में 2026 में निर्धारित परिसीमन किया जाता है, तो 2029 में होने वाले लोकसभा चुनावों में उत्तरी राज्यों को 32 सीटों का फायदा होगा, जबकि दक्षिणी राज्यों को 24 सीटों का नुकसान होगा। थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस द्वारा 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रकाशित ‘भारत के प्रतिनिधित्व का उभरता संकट’ शीर्षक वाले अध्ययन में कहा गया था कि इस प्रक्रिया में तमिलनाडु और केरल राज्य मिलकर 16 सीटें खो देंगे।

Find Your Vibe: where FOMO is never on the table

 

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Event Recap: Strike Showdown – 22nd Sept 2024

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बाबा सिद्दीकी को मिली थी Y कैटेगरी की सिक्योरिटी, फिर कैसे हो गई हत्या?

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महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की मुंबई में दशहरा उत्सव पर हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।पूर्व मंत्री और एनसीपी अजित पवार गुट के नेता बाबा सिद्दीकी को Y श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी।जानकारी के मुताबिक 15 दिन पहले बाबा सिद्दीकी को जान से मारने की धमकी मिली थी और इसके बाद उनकी सुरक्षा को बढ़ा दिया गया था। उन्हें Y कैटेगरी की सुरक्षा दी गई थी, लेकिन इसके बाद भी शनिवार रात को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।

बाबा की हत्या को लेकर उनकी सुरक्षा के मद्देनजर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये उठ रहे हैं कि बाबा सिद्दीकी को जब Y कैटेगरी की सिक्योरिटी मिली हुई थी फिर भी उनकी हत्या कैसे कर दी गई। हर किसी की जुबान पर लगभग यही बात है कि Y कैटेगरी की सिक्योरिटी होने के बावजूद राकांपा नेता को आरिपियों ने इतने नजदीक जाकर कैसे गोली मार दी? 

पटाखों के शोर के बीच फिल्मी अंदाज में मारी गोली

दरअसल, शनिवार रात मुंबई के बांद्रा ईस्ट इलाके में तीन लोगों ने बाबा सिद्दीकी के बेटे एवं विधायक जीशान सिद्दीकी के ऑफिस के बाहर फिल्मी अंदाज में 3 राउंड लगातार फायरिंग की। इसके बाद आरोपियों ने पटाखों के शोर के बीच गोली मारकर कथित तौर पर 66 साल के बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी। इसके बाद बाबा सिद्दीकी को लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

कानून और व्यवस्था पर उठ रहे सवाल

‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त एवं सत्तारूढ़ पार्टी के नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जो कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस घटना के बाद कहा, यह भयावह घटना महाराष्ट्र में कानून और व्यवस्था की पूर्ण विफलता को उजागर करती है। सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और न्याय होना चाहिए।

वहीं,वरिष्ठ नेता शरद पवार ने भी राज्य सरकार को घेरा है. शरद पवार ने यह कहकर लोगों को खतरे से अवगत करा दिया है कि अगर गृह मंत्री और शासक इतनी सज्जनता से राज्य की गाड़ी को आगे बढ़ाएंगे तो यह आम लोगों के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।

क्या होती है Y कैटेगरी की सुरक्षा? 

भारत सरकार उन लोगों को वाई लेवल की सुरक्षा देती है, जिनकी जान को खतरा होता है। यह सुरक्षा कवर का चौथा स्तर है। सुरक्षा दल में 11 लोग होते हैं, जिनमें 1 से 2 पुलिस अधिकारी शामिल होते हैं। इसमें दो पीएसओ भी होते हैं, जो निजी सुरक्षा गार्ड होते हैं। ज़्यादातर मामलों में, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) या राज्य पुलिस के लोगों को वाई ग्रुप में सुरक्षा का जिम्मा सौंपा जाता है। सुरक्षा कवर के साथ एक कार आती है जिसमें बुनियादी सुरक्षा सुविधाएं होती हैं।

वरिष्ठ सरकारी नेता, न्यायाधीश और अन्य लोग जिन्हें जान का खतरा हो सकता है, उन्हें अक्सर वाई स्तर की सुरक्षा दी जाती है। वाई स्तर की सुरक्षा कवर मशहूर हस्तियों, व्यापारियों और पत्रकारों को भी दी जा सकती है, जिन्हें जान जाने का खतरा होता है।

चुनाव से पहले महायुति में तनाव! कैबिनेट की बैठक छोड़कर क्यों निकले अजित पवार

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महाराष्‍ट्र की सत्‍तारूढ़ महायुति (शिवसेना-बीजेपी-एनसीपी) सरकार में शायद सब कुछ टीक नहीं चल रहा है। राज्य में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। महायुति में तनाव की खबरें आ रही है। दरअसल, विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले गुरुवार को यह आखिरी कैबिनेट बैठक थी। उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार सिर्फ 10 मिनट के लिए बैठक में आये और रतन टाटा को श्रद्धांजलि देने के फौरन बाद चले गए। उनके जाने के बाद ढाई घंटे तक चली बैठक में 38 फैसले ने लिये।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले शिंदे सरकार दनादन कई बड़ी घोषणाएं कर रही है। दरअसल, आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। गुरुवार को इसी संदर्भ में मुख्‍यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्‍व में एक ऐसी ही कैबिनेट मीटिंग बुलाई गई। लेकिन जैसे ही मीटिंग शुरू हुई उसके 10 मिनट के भीतर ही डिप्‍टी सीएम और एनसीपी नेता मीटिंग छोड़कर चले गए। ऐसा तब हुआ जब उसके बाद भी मीटिंग करीब ढाई घंटे चली। उसमें वित्‍त विभाग के कई प्रोजेक्‍ट भी शामिल थे जिन पर फैसले हुए। जबकि वित्‍त विभाग का प्रभार अजित पवार के पास है।

द टाइम्‍स ऑफ इंडिया (टीओआई) की इस रिपोर्ट के मुताबिक कयास लगाए जा रहे हैं कि अजित पवार इस बात से नाराज थे कि अंतिम समय में अर्जेंट बेसिस पर मीटिंग में कई प्रस्‍तावों को रख लिया गया और इसका कोई सर्कुलर पहले से जारी नहीं किया गया था। वित्‍त विभाग ने कई मसलों पर आपत्तियां उठाई हैं जिनको कैबिनेट में पेश किया गया है।

अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह संभव है कि वह कुछ फैसलों से नाखुश थे और अंतिम समय में बिना पूर्व सूचना के कैबिनेट बैठक में बड़ी संख्या में जरूरी प्रस्ताव लाए गए थे। पिछले कुछ हफ्तों में वित्त विभाग ने कैबिनेट में लाए गए कई प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी। हालांकि बार-बार प्रयास करने के बावजूद अजित पवार से उनकी टिप्पणियों के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।

बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले भूमि आवंटन, सब्सिडी और गारंटी को मंजूरी देने की होड़ मची हुई है। वित्त विभाग पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है। विभाग ने चेतावनी दी है कि राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% को पार कर गया है, जो कि महाराष्ट्र राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन अधिनियम द्वारा तय सीमा है।

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति में हालिया दिनों में शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की टकराहट देखने को मिली है। 'लड़की बहन योजना' को लेकर दरार काफी दिनों से उभरी हुई है। शिवसेना शिंदे गुट के मंत्री ने योजना के विज्ञापनों और प्रचार सामग्री से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम "हटाने" के लिए सहयोगी एनसीपी और उसके अध्यक्ष अजित पवार के खिलाफ खुलेआम आपत्ति जताई गई। शिवसेना से राज्य के उत्पाद शुल्क मंत्री शंभूराज देसाई ने डिप्टी सीएम पवार द्वारा 'मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन' योजना को वस्तुतः "हाइजैक" करने का आरोप लगाया। इसके जरिये पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने की घोषणा की गई है। इस योजना का पूरा श्रेय अजित पवार की पार्टी ले रही है।

चीन-म्यामांर से घिरा लाओस भारत के लिए कितना अहम? जहां के दौरे पर हैं पीएम मोदी*
#pm_modi_on_visit_to_laos_why_this-country_important_for_india * प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय लाओस दौरे पर पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री यहां 21वें आसियान-भारत समिट और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। लाओस की राजधानी वियनतियाने में समिट का आयोजन किया जाएगा। इस साल लाओस आसियान सम्मेलन का मेजबान और वर्तमान अध्यक्ष है। लाओस एक छोटा सा देश है, जिसकी कुल आबादी महज 75 लाख के करीब है। भारत में बिहार की राजधानी पटना की कुल आबादी भी मौजूदा वक्‍त में करीब 75 लाख ही है। पीएम मोदी की लाओस यात्रा के बीच ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत के लिए ये छोटा सा देश रणनीतिक रूप से कितना जरूरी है। भारत-लाओस के संबंध कैसे हैं और भारत के लिए इसे प्राथमिकता देना क्यों जरूरी है। रणनीतिक रूप से यह इसलिए अहम है क्योंकि लाओस की सीमा उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में थाईलैंड से लगती है। चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण भारत के लिए इस देश की रणनीतिक महत्ता बढ़ जाती है। दरअसल, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, लाओस हमेशा से व्यापारिक नजरिए से भी अहम रहा है। यही कारण है कि इसपर कभी फ्रांस ने तो कभी जापान ने कब्जा जमाया। 1953 में जब लाओस को आजादी मिली तो चीन ने भी लाओस में अपने प्रभाव को आजमाना शुरू किया।दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की दादागिरी से हर कोई वाफिफ है। चीन इस क्षेत्र में अपने सभी पड़ोसियों पर धोंस जमाने की कोशिश से बाज नहीं आता। इन देशों में लाओस भी शामिल है। *भारत के लिए क्यों अहम है लाओस?* लाओस वैसे तो एक छोटा सा देश है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के चलते यह भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर काफी अहम माना जाता है। इसकी सीमा चीन और म्यांमार से लगती है, लिहाजा चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण यह देश रणनीतिक तौर पर भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भारत के इंडो-पैसिफिक विजन का महत्वपूर्ण स्तंभ है, साथ ही साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। व्यापारिक नजरिए की बात करें तो दक्षिण पूर्व एशिया में लाओस की भौगोलिक स्थिति के कारण भी यह हमेशा से अहम रहा है। भारत के लिए लाओस कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में और पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 में ही लाओस का दौरा किया था। लाओस को फ्रांस के कब्जे से मुक्ति दिलाने में भी भारत ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एंड कंट्रोल (ICSC) के चेयरमैन के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। जुलाई 1954 में जेनेवा संधि के आधार पर ICSC की स्थापना की गई थी, इसका उद्देश्य भारत-चीन के बीच दुश्मनी को खत्म करने और लाओस से फ्रांसिसी उपनिवेशवादी शक्तियों की वापसी कराना था। *भारत और लाओस के बीच संबंध* भारत और लाओस के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1956 में डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित हुए। तब से अब तक दोनों देशों की ओर से द्विपक्षीय यात्राएं होती रहीं हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में ही लाओस का दौरा किया था। इसके बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाओस की आधिकारिक यात्रा की थी। 2004 में मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री मोदी आसियान-भारत समिट में हिस्सा लेने के लिए लाओस का दौरा कर चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत की ओर से 50 हजार कोवैक्सीन की डोज और दवाइयां लाओस भेजी गईं थीं। हाल ही में आए तूफान यागी के दौरान भी भारत ने करीब एक लाख डॉलर की आपदा राहत सामग्री लाओस भेजी थी। इसके अलावा लाओस के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सिविलाइजेशनल संबंध रहें हैं। बौद्ध धर्म और रामायण दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं। इसी साल 15 से 31 जनवरी के बीच लाओस के रॉयल बैलेट थियेटर के 14 आर्टिस्ट ने भारत में 7वें इंटरनेशनल रामायण मेला में भी हिस्सा लिया था।
हरियाणा में हैट्रिकः क्या है बीजेपी के तीसरे बार जीत की वजह?

#reasonswhybjphattickin_haryana 

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल के बाद कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही थी। चुनाव प्रचार और एग्जिट पोल में कांग्रेस की आंधी दिखी, लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आए।कांग्रेस, हरियाणा में लगातार तीसरी बार हार गई है।

हरियाणा में बीजेपी के जीत निश्चित रूप से अप्रत्याशित है। अप्रत्याशित इसलिए कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद पार्टी के सामने टिकट बंटवारे के बाद पार्टी के कई नेताओं की बगावत चुनौती बनकर सामने आई। एग्जिट पोल में भी बीजेपी की हार की संभावना जताई गई। इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत निश्चित रूप से बहुत खास है।हरियाणा में बीजेपी की जीत के पीछे क्या कुछ फैक्टर हो सकते हैं देखते हैः-

गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला हिट

बीजेपी 2014 में पहली बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज हुई।लोगों को उम्मीद थी कि किसी जाट को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, क्योंकि पिछले कई दशक से हरियाणा का मुख्यमंत्री जाट ही बन रहा था, भले ही वो किसी भी दल का हो। लेकिन बीजेपी ने पंजाबी समाज के मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया। पहली बार विधायक बने खट्टर को पीएम नरेंद्र मोदी की पसंद बताया गया। खट्टर को सीएम बनाने के बाद ही यह चर्चा चल उठी कि बीजेपी जाट राजनीति को खत्म करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी से जाटों की नाराजगी यहीं से शुरू हुई। बीजेपी कभी जाटों को मनाने की कोशिश करती हुई नजर नहीं आई। उसने पंजाबी, ओबीसी और दलित वोटों को एकजुट रखने की कोशिशें जारी रखीं। 

चुनाव से पहले खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाने का दांव

भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपने सीएम को बदल दिया था। मनोहर लाल खट्टर को लेकर लोगों में नाराजगी नजर को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें हटाकर नायब सिंह सैनी को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। सैनी की माली जाति हरियाणा की बड़ी और ताकतवर ओबीसी जाति है। यानी कि बीजेपी की गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला एक बार फिर काम कर गया है। हरियाणा में गैर जाट जातियां आज भी बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ी नजर आ रही हैं।

जाटों ने बीजेपी का समर्थन किया है

ऐसा नहीं है कि जाट बीजेपी से नाराज ही हैं। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि इस बार के चुनाव में बीजेपी ने जाट बहुल सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है। बीजेपी ने 2019 के चुनाव में 30 फीसद जाट बहुल सीटें जीत ली थीं। वहीं 2024 के चुनाव में उसने 51 फीसदी जाट बहुल सीटों पर बढ़त बनाई है। इसका मतलब यह हुआ कि जाट बीजेपी से बहुत नाराज नहीं हैं। हालांकि हरियाणा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को मिले वोटों का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। 

कुमारी सैलजा की नाराजगी

दलितों में कुमारी सैलजा को सबसे बड़ा जाटव नेता माना जाता है। कुमारी सैलजा की नाराजगी के कारण यह वोट बैंक कांग्रेस से खिसका। इसके अलावा इसमें टर्निंग पॉइंट अशोक तंवर की वापसी से आया। इससे सैलजा की जाति में मैसेज गया कि हुड्डा ने उनका कद कम करने के लिए तंवर की वापसी कराई है।

राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयान

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयानों को भी बीजेपी ने चुनावी सभा में खूब भुनाया। इस मैसेज को दलितों की बस्ती में घर घर तक ले जाने का काम संघ के स्वयं सेवकों ने किया। कुछ सीटों पर आप के कैंडिडेट ने भी कांग्रेस के वोट काटने का काम किया।

हरियाणा में जीतते-जीतते कैसे हार गई कांग्रेस? सैलजा, हुड्डा या कोई और वजह

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हरियाणा में बीजेपी ने हैट्रिक लगाई है। भाजपा एक बार फिर सूबे में सरकार बनाती नजर आ रही है। 10 साल से वनवास झेल रही कांग्रेस एक बार फिर सत्ता के करीब आते-आते रह गई।लगभग एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिख रही थी, लेकिन चुनावी नतीजों ने कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर दिया। 60 सीटों पर जीत का दावा करने वाली ओल्ड ग्रैंड पार्टी 40 के नीचे सिमट गई है। इस सियासी जनादेश की वजह से कांग्रेस फिर से 5 साल के लिए सत्ता से दूर हो गई है।

वोटिंग के बाद सामने आए एग्जिट पोल के सर्वे में अनुमान जताया गया था कि हरियाणा में कांग्रेस दमदार तरीके से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है, लेकिन चुनावी नतीजे और रुझान उसके उलट नजर आए। हरियाणा में मोहब्बत की दुकान खोलने वाली कांग्रेस बीजेपी के सियासी समीकरण को पछाड़ने में पूरी तरह से नाकाम रही। हरियाणा में चुनाव परिणाम आने के बाद अब इस सवाल के जवाब तलाशे जा रहे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में क्यों पिछड़ गई?

कांग्रेस की हार के कारण

हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार

हरियाणा कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पार्टी की हार के सबसे बड़े कारक माने जा रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार था। बीते डेढ़-दो साल से हरियाणा कांग्रेस के बड़े फैसले हुड्डा ही ले रहे थे। फिर चाहे प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की नियुक्ति हो या लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा हो, इन सबमें हुड्डा ही अकेले पॉवर सेंटर बनकर उभरे। चुनाव में राहुल गांधी समेत पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने हुड्डा पर विश्वास किया, लेकिन अब हरियाणा में लगातार तीसरी बार कांग्रेस की नैया डूब नजर आ रही है।हुड्डा के पसंद के उम्मीदवार को तरजीह

इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 90 में से 70 से अधिक सीटें हुड्डा के कहने पर बंटे। टिकट बंटवारे में को लेकर जब दिल्ली में हरियाणा कांग्रेस की बैठक हुई थी तब भी हुड्डा की ही चली थी। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा हुड्डा समर्थक उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 90 में से करीब-करीब 70 सीटों पर हुड्डा के पसंद वाले उम्मीदवारों को मौका दिया गया। तब कुमारी सैलजा समेत कई नेताओं ने खुले तौर पर तो नहीं लेकिन अंदरूनी रूप से नाराजगी भी जताई थी, लेकिन हाईकमान ने ध्यान नहीं दिया। अब उसका असर चुनाव के नतीजों में देखने को मिल रहे हैं।

दिग्गज नेताओं की नाराजगी

कांग्रेस के दिग्गज नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला टिकट बंटवारे से खुश नहीं थे। दोनों नेताओं ने अपने करीबियों और समर्थकों के लिए प्रचार किया। सूबे की बाकी सीटों पर चुनाव प्रचार करने नहीं गए। कुमारी सैलजा ने लंबे समय तक चुनाव प्रचार से दूरी रखी, इसके बाद वे लौटीं। हालांकि, तब भी कई इंटरव्यूज में सैलजा ने इशारों-इशारों में बताया कि उनकी हुड्डा से बातचीत नहीं है।

गठबंधन दलों को तरजीह नहीं देना

कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के दलों को तरजीह नहीं दी। अहीरवाल बेल्ट में पार्टी ओवर कन्फिडेंस में रही। यहां पर सपा सीट मांग रही थी। हुड्डा ने साफ-साफ कह दिया कि हरियाणा में इंडिया का गठबंधन नहीं होगा। कई सीटों पर आप को भी अच्छे-खासे वोट मिले हैं। चुनाव से पहले आप ने कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के कहने पर कांग्रेस ने हाथ नहीं मिलाया। इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव के परिणाम में देखने को मिल रहा है।

पाकिस्तान पहुंचे जाकिर नाइक ने क्यों की भारत की तारीफ, जानें हिंदू को लेकर क्या कहा?

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विवादित इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाइक इन दिनों पाक्सितान के दौरे पर है। पाकिस्तान के साथ गलबहिंया और भारत के खिलाफ जहर उगलने वाला जाकिर नाइक को पाकिस्तान की मेहमाननवाजी कुछ खास रास नहीं आई। तभी तो उसने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) पर की जमकर आलोचना की। यही नहीं उसने एक कार्यक्रम के दौरान हजारों पाकिस्तानियों के सामने भारत की तारीफ कर दी। इससे जुड़ा वीडियो काफी वायरल हो रहा है।

दरअसल, पीआईए ने उसके एक्स्ट्रा लगेज के लिए शुल्क माफ नहीं किया। आर्थिक तंगी झेल रहे पीआईए ने नाइक से 50 प्रतिशत छूट की पेशकश की थी, जिससे वह असंतुष्ट था। इसके बाद पाकिस्तानी सरजमीं पर ही उसने पाकिस्तानियों की जमकर क्लास ले ली।

मलेशिया से 1000 किलोग्राम सामान लेकर वो पाकिस्तान पहुंचा था। उसे यह गलतफहमी थी कि पाकिस्तान एयरलाइंस उसके सामानों के पैसे नहीं वसूलेंगे, लेकिन पाकिस्तान एयरलाइंस ने उसे उसके 50 प्रतिशत सामानों पर ही छूट देने की पेशकश की। यह बात जाकिर नाइक को पसंद नहीं आई।

इसके बाद नाइक ने पड़ोसी मुल्क के सरजमीं पर उन्हीं के सामने उनके ही एयरलाइंस की जमकर आलोचना की। उसने कहा कि वो पाकिस्तान सरकार के बुलावे पर मेहमान बनकर आए हैं इसके बावजूद एयरलाइंस ने उनके सामानों के पैसे वसूले। अगर यही वो भारत में रहते तो वहां की हवाई जहाज कंपनी बस उनका नाम सुनकर लगेज का पैसा माफ कर देती।

सोशल मीडिया पर इसका वीडियो भी वायरल हुआ है। वायरल हो रहे वीडियो में जाकिर नाइक पाकिस्तानियों को संबोधित करते हुए नजर आ रहा है। जाकिर नाइक ने अपने साथ हुए घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मैं एयरपोर्ट पर था। मेरे पास हजार किलो सामान था। एयरपोर्ट पर मुझे रोक दिया गया। मैंने पाकिस्तान एयरलाइंस के अफसरों से बात की, जिसमें सीईओ से लेकर कंट्री मैनेजर, एयरपोर्ट मैनेजर तक शामिल थे। उसने कहा कि वो मेरे लिए कुछ भी करेंगे। मैंने कहा कि हम लोग कुल 6 लोग जा रहे थे। हमारे पास 500-600 किलो सामान ज्यादा था। इस पर एयरपोर्ट अधिकारियों ने कहा कि कोई बात नहीं हम 50 फीसदी किराया माफ कर देंगे। मैंने कहा कि 50 फीसदी डिस्काउंट के बदले में 4 लोगों को लेकर आ जाऊं तो सस्ता पड़ेगा ना। देना है तो मुफ्त में करें, वरना पूरा पैसा ले लो। ऐसा कहकर मैंने उसका ऑफर ठुकरा दिया।

वहीं, जाकिर नाइक ने कहा कि जब कोई गैर-मुस्लिम उसे भारत में देखता है तो वो उसे मुफ्त में जाने देता है। उसने कहा, भारत के लोग डॉ जाकिर नाइक को देखते हैं और 1000 से 2000 किलोग्राम अतिरिक्त सामान माफ कर देते हैं। लेकिन पाकिस्तान सरकार का मैं मेहमान हूं फिर भी पाकिस्तान एयरलाइंस मेरे सामान पर पैसे ले रहे हैं।

भारत में पहली बार बनेंगे C-295 मिलिट्री एयरक्राफ्ट, रफ्तार देख थम जाएगी दुश्मनों की सांस, जानें इसकी खासियत

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अब एयरबस के C-295 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भारत में ही बनेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात के वडोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) परिसर में C-295 एयरक्राफ्ट के निर्माण के लिए टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी के साथ स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज भी मौजूद रहे। भारत के C-295 कार्यक्रम में कुल 56 एयरक्राफ्ट होंगे जिनमें से 16 सीधे एयरबस डिलीवर करेगा और बाकी 40 भारत में बनाए जाएंगे। इन 40 C-295 विमानों को बनाने की जिम्मेदारी 'टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड' की होगी। इसके साथ ही भारत के रक्षा क्षेत्र में बड़ा कायाकप्ल होगा।

यह प्रोजेक्ट अहम इसलिए भी है, क्योंकि पहली बार देश में कोई निजी कंपनी सेना के लिए प्लेन बनाएगी। यह पहली बार है जब कोई निजी कंपनी भारत में पूरा का पूरा मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगी। साल 2021 में 56 C-295 एयरक्राफ्ट के लिए 21हजार 935 करोड़ रुपये की टाटा-एयरबस प्रोजेक्ट के तहत डील हुई थी। इस डील के तहत भारत को पिछले साल सितंबर के पहला C-295 एयरक्राफ्ट मिल गया था। डील में 56 विमानों में से पहले 16 विमान स्पेन और बाकी भारत में बनाए जाएंगे। 40 C-295 एयरक्राफ्ट के निर्माण के लिए वडोदरा में टाटा ने एयरबस के साथ मिलकर मैनुफैक्चरिंग कॉम्लेक्स बनाया है।

यह विमान सैनिकों को ध्यान में रखकर खास डिजाइन किया गया है। इसे कार्गो से लेकर जवानों तक को ट्रांसपोर्ट करने के लिए यूज किया जा सकता है। एयरक्राफ्ट को कई तरह के मिशनों के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें ट्रांसपोर्ट, पैराशूट ड्रॉपिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस (ELINT), मेडिकल निकासी (MEDEVAC), और समुद्री गश्त शामिल हैं। बाकी कार्गो विमानों की तुलना में इस विमान का टेकऑफ टाइम कम है।सी-295 एक मीडियम साइज का विमान जो किसी भी तरह की हवाई पट्टी पर उतारा जा सकता है।

कम वजन के ट्रांस्पोर्टेशन के लिए अहम C-295 एयरक्राफ्ट

यह कॉम्प्लेक्स देश का पहला निजी फाइनल असेंबली लाइन है, जो मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगा। भारतीय वायुसेना, के लिए ट्रांसपोर्ट विमान भारत के लिए बेहद जरूरी है, जिससे सैनिकों, हथियारों, ईंधन और हार्डवेयर को जगह से दूसरी जगह पहुंचा सकें। C-295 कम वजन के ट्रांसपोर्टेशन में भी भारतीय सेना केलिए अहम साबित होने वाला है।

C-295 एयरक्राफ्ट की कितनी है क्षमता?

सी-295 एयरक्राफ्ट की फंक्शनिंग की बात करें तो इसे दो पायलट्स उड़ाते हैं। इसमें एक साथ 73 सैनिक, 48 पैराट्रूपर्स, 12 स्ट्रेचर इंटेसिंव केयर मेडवैक, या 27 स्ट्रेचर मेडवैक के साथ 4 मिडिकल अटेंडेंट सफर कर सकते हैं। डायमेंशंस का उल्लेख करें तो यह C-295 एयरक्राफ्ट 9250 KG का वजन उठा सकता है। इसकी लंबाई 80.3 फीट, विंगस्पैन 84.8 फीट, ऊंचाई 28.5 फीट है।

कौन हैं पाक के नए चीफ जस्टिस याह्या अफरीदी, जानें नियुक्ति पर क्यों हो रहा बवाल?

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पाकिस्तान की विशेष संसदीय कमेटी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस को चुन लिया। कमेटी ने लंबी चली बैठक के बाद तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों में अगले चीफ जस्टिस के रूप में याह्या अफरीदी को नामित किया है।अफरीदी का चयन हाल ही में हुए 26 वें संविधान संशोधन के तहत किया गया है, इस संशोधन ने न्यायपालिका में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। जिसमें मुख्य न्यायाधीश के चयन के लिए एक विशेष संसदीय समिति (SPC) की स्थापना शामिल है।

हाल ही में किए गए संविधान के 26वें संशोधन ने न्यायपालिका के संबंध में कई बदलाव लागू किए, जिनमें से एक विशेष संसदीय समिति (एसपीसी) द्वारा तीन शीर्ष न्यायाधीशों में से चीफ जस्टिस की नियुक्ति करना शामिल था, जबकि पिछले नियम के हिसाब से सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को वरिष्ठता सिद्धांत के तहत चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाता था।

विशेष संसदीय समिति (SPC) की स्थापना से पहले वरिष्ठता के आधार पर चीफ जस्टिस का चयन होता था। याह्या अफरीदी के साथ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर भी इस दौड़ में शामिल थे। पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा 25 अक्टूबर को शीर्ष न्यायाधीश से रिटायर होने वाले हैं। न्यायमूर्ति शाह को पहले वरिष्ठता सिद्धांत के तहत अगला CJP बनाया जाना था।

हालांकि, अनुच्छेद-175ए के खंड-3 में किए गए संशोधन के बाद राष्ट्रपति 'शीर्ष अदालत के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश' को चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त नहीं कर सकेंगे। इसके बजाय, अब विशेष संसदीय समिति की सिफारिश के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के तीन सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों में से किसी एक को चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त किया जाएगा।

याह्या अफरीदी कौन हैं

जस्टिस अफरीदी का जन्म 23 जनवरी 1965 को डेरा इस्माइल खान में हुआ था। वह कोहाट सीमांत क्षेत्र में स्थित अफरीदी जनजाति से हैं। वो बांदा गांव के निवासी हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के एचीसन कॉलेज में प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से अर्थशास्त्र में कला में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उल्लेखनीय है कि 59 वर्षीय अफरीदी ने 1990 में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया और देश के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के बाद 2018 में उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

ज्यादा बच्चे पैदा करने की पैरवी नायडू-स्टालिन, जानें क्या डर सता रहा दोनों नेताओं को

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भारत की आबादी को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। इसकी शुरूआत दक्षिण के राज्यों से ही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने अपने-अपने राज्यों के लोगों से कहा है कि अधिक बच्चे पैदा करें। आंध्र प्रदेश के सीएम ने राज्य की 'वृद्ध होती आबादी' का मुद्दा उठाया, जबकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 2026 तक होने वाले परिसीमन के लिए 'समाधान' के रूप में '16 बच्चे' पालने वाले दंपतियों की बात की। मामले को लेकर राजनीति भी अपने चरम पर है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सोमवार को जनसांख्यिकीय परिवर्तन के मुद्दे को परिसीमन प्रक्रिया से जोड़ते हुए सुझाव दिया कि राज्य में लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए। तमिनलाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोमवार को कहा कि लोकसभा परिसीमन प्रक्रिया से कई दंपतियों के 16 (तरह की संपत्ति) बच्चों की तमिल कहावत की ओर वापस लौटने की उम्मीदें बढ़ सकती हैं। स्टालिन ने कहा कि अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जहां लोगों को लगता है कि अब उन्हें सचमुच 16 बच्चे पैदा करने चाहिए, न कि एक छोटा और खुशहाल परिवार रखना चाहिए। मुख्यमंत्री ने जनगणना और लोसकभा परिसीमन प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि नवविवाहित जोड़े अब कम बच्चे पैदा करने का विचार त्याग सकते हैं।

स्टालिन की यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की तरफ से अधिक बच्चे पैदा करने की इसी तरह के बयान के एक दिन बाद आई है। इससे पहले नायडू ने रविवार को घोषणा की कि उनका प्रशासन एक ऐसा कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके तहत केवल दो या उससे अधिक बच्चे वाले व्यक्ति ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे। उन्होंने राज्य की बढ़ती उम्र की आबादी और जनसांख्यिकीय संतुलन पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए परिवारों से अधिक बच्चे पैदा करने का आग्रह किया था।

चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि दक्षिण भारत में आबादी बूढ़ी हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक महिला को अपने जीवनकाल में दो से अधिक बच्चों को जन्म देना चाहिए। आंध्र प्रदेश की जन्म दर प्रति महिला 2.1 जीवित जन्मों के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। नायडू का कहना था कि हमें अपनी जनसंख्या को मैनेज करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 2047 तक, हमारे पास जनसांख्यिकीय लाभांश होगा, अधिक युवा होंगे। 2047 के बाद, अधिक बूढ़े लोग होंगे। ऐसे में यदि दो से कम बच्चे (प्रति महिला) जन्म लेते हैं, तो जनसंख्या कम हो जाएगी। यदि आप (प्रत्येक महिला) दो से अधिक बच्चों को जन्म देती हैं, तो जनसंख्या बढ़ेगी।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब तमिलनाडु सहित अन्य दक्षिणी राज्यों को 2026 में होने वाले परिसीमन के कारण संसदीय प्रतिनिधित्व में संभावित बदलावों का सामना करना पड़ रहा है। अगर भारत में 2026 में निर्धारित परिसीमन किया जाता है, तो 2029 में होने वाले लोकसभा चुनावों में उत्तरी राज्यों को 32 सीटों का फायदा होगा, जबकि दक्षिणी राज्यों को 24 सीटों का नुकसान होगा। थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस द्वारा 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रकाशित ‘भारत के प्रतिनिधित्व का उभरता संकट’ शीर्षक वाले अध्ययन में कहा गया था कि इस प्रक्रिया में तमिलनाडु और केरल राज्य मिलकर 16 सीटें खो देंगे।

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बाबा सिद्दीकी को मिली थी Y कैटेगरी की सिक्योरिटी, फिर कैसे हो गई हत्या?

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महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की मुंबई में दशहरा उत्सव पर हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।पूर्व मंत्री और एनसीपी अजित पवार गुट के नेता बाबा सिद्दीकी को Y श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी।जानकारी के मुताबिक 15 दिन पहले बाबा सिद्दीकी को जान से मारने की धमकी मिली थी और इसके बाद उनकी सुरक्षा को बढ़ा दिया गया था। उन्हें Y कैटेगरी की सुरक्षा दी गई थी, लेकिन इसके बाद भी शनिवार रात को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।

बाबा की हत्या को लेकर उनकी सुरक्षा के मद्देनजर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये उठ रहे हैं कि बाबा सिद्दीकी को जब Y कैटेगरी की सिक्योरिटी मिली हुई थी फिर भी उनकी हत्या कैसे कर दी गई। हर किसी की जुबान पर लगभग यही बात है कि Y कैटेगरी की सिक्योरिटी होने के बावजूद राकांपा नेता को आरिपियों ने इतने नजदीक जाकर कैसे गोली मार दी? 

पटाखों के शोर के बीच फिल्मी अंदाज में मारी गोली

दरअसल, शनिवार रात मुंबई के बांद्रा ईस्ट इलाके में तीन लोगों ने बाबा सिद्दीकी के बेटे एवं विधायक जीशान सिद्दीकी के ऑफिस के बाहर फिल्मी अंदाज में 3 राउंड लगातार फायरिंग की। इसके बाद आरोपियों ने पटाखों के शोर के बीच गोली मारकर कथित तौर पर 66 साल के बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी। इसके बाद बाबा सिद्दीकी को लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

कानून और व्यवस्था पर उठ रहे सवाल

‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त एवं सत्तारूढ़ पार्टी के नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जो कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस घटना के बाद कहा, यह भयावह घटना महाराष्ट्र में कानून और व्यवस्था की पूर्ण विफलता को उजागर करती है। सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और न्याय होना चाहिए।

वहीं,वरिष्ठ नेता शरद पवार ने भी राज्य सरकार को घेरा है. शरद पवार ने यह कहकर लोगों को खतरे से अवगत करा दिया है कि अगर गृह मंत्री और शासक इतनी सज्जनता से राज्य की गाड़ी को आगे बढ़ाएंगे तो यह आम लोगों के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।

क्या होती है Y कैटेगरी की सुरक्षा? 

भारत सरकार उन लोगों को वाई लेवल की सुरक्षा देती है, जिनकी जान को खतरा होता है। यह सुरक्षा कवर का चौथा स्तर है। सुरक्षा दल में 11 लोग होते हैं, जिनमें 1 से 2 पुलिस अधिकारी शामिल होते हैं। इसमें दो पीएसओ भी होते हैं, जो निजी सुरक्षा गार्ड होते हैं। ज़्यादातर मामलों में, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) या राज्य पुलिस के लोगों को वाई ग्रुप में सुरक्षा का जिम्मा सौंपा जाता है। सुरक्षा कवर के साथ एक कार आती है जिसमें बुनियादी सुरक्षा सुविधाएं होती हैं।

वरिष्ठ सरकारी नेता, न्यायाधीश और अन्य लोग जिन्हें जान का खतरा हो सकता है, उन्हें अक्सर वाई स्तर की सुरक्षा दी जाती है। वाई स्तर की सुरक्षा कवर मशहूर हस्तियों, व्यापारियों और पत्रकारों को भी दी जा सकती है, जिन्हें जान जाने का खतरा होता है।

चुनाव से पहले महायुति में तनाव! कैबिनेट की बैठक छोड़कर क्यों निकले अजित पवार

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महाराष्‍ट्र की सत्‍तारूढ़ महायुति (शिवसेना-बीजेपी-एनसीपी) सरकार में शायद सब कुछ टीक नहीं चल रहा है। राज्य में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। महायुति में तनाव की खबरें आ रही है। दरअसल, विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले गुरुवार को यह आखिरी कैबिनेट बैठक थी। उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार सिर्फ 10 मिनट के लिए बैठक में आये और रतन टाटा को श्रद्धांजलि देने के फौरन बाद चले गए। उनके जाने के बाद ढाई घंटे तक चली बैठक में 38 फैसले ने लिये।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले शिंदे सरकार दनादन कई बड़ी घोषणाएं कर रही है। दरअसल, आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। गुरुवार को इसी संदर्भ में मुख्‍यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्‍व में एक ऐसी ही कैबिनेट मीटिंग बुलाई गई। लेकिन जैसे ही मीटिंग शुरू हुई उसके 10 मिनट के भीतर ही डिप्‍टी सीएम और एनसीपी नेता मीटिंग छोड़कर चले गए। ऐसा तब हुआ जब उसके बाद भी मीटिंग करीब ढाई घंटे चली। उसमें वित्‍त विभाग के कई प्रोजेक्‍ट भी शामिल थे जिन पर फैसले हुए। जबकि वित्‍त विभाग का प्रभार अजित पवार के पास है।

द टाइम्‍स ऑफ इंडिया (टीओआई) की इस रिपोर्ट के मुताबिक कयास लगाए जा रहे हैं कि अजित पवार इस बात से नाराज थे कि अंतिम समय में अर्जेंट बेसिस पर मीटिंग में कई प्रस्‍तावों को रख लिया गया और इसका कोई सर्कुलर पहले से जारी नहीं किया गया था। वित्‍त विभाग ने कई मसलों पर आपत्तियां उठाई हैं जिनको कैबिनेट में पेश किया गया है।

अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह संभव है कि वह कुछ फैसलों से नाखुश थे और अंतिम समय में बिना पूर्व सूचना के कैबिनेट बैठक में बड़ी संख्या में जरूरी प्रस्ताव लाए गए थे। पिछले कुछ हफ्तों में वित्त विभाग ने कैबिनेट में लाए गए कई प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी। हालांकि बार-बार प्रयास करने के बावजूद अजित पवार से उनकी टिप्पणियों के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।

बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले भूमि आवंटन, सब्सिडी और गारंटी को मंजूरी देने की होड़ मची हुई है। वित्त विभाग पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है। विभाग ने चेतावनी दी है कि राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% को पार कर गया है, जो कि महाराष्ट्र राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन अधिनियम द्वारा तय सीमा है।

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति में हालिया दिनों में शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की टकराहट देखने को मिली है। 'लड़की बहन योजना' को लेकर दरार काफी दिनों से उभरी हुई है। शिवसेना शिंदे गुट के मंत्री ने योजना के विज्ञापनों और प्रचार सामग्री से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम "हटाने" के लिए सहयोगी एनसीपी और उसके अध्यक्ष अजित पवार के खिलाफ खुलेआम आपत्ति जताई गई। शिवसेना से राज्य के उत्पाद शुल्क मंत्री शंभूराज देसाई ने डिप्टी सीएम पवार द्वारा 'मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन' योजना को वस्तुतः "हाइजैक" करने का आरोप लगाया। इसके जरिये पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने की घोषणा की गई है। इस योजना का पूरा श्रेय अजित पवार की पार्टी ले रही है।

चीन-म्यामांर से घिरा लाओस भारत के लिए कितना अहम? जहां के दौरे पर हैं पीएम मोदी*
#pm_modi_on_visit_to_laos_why_this-country_important_for_india * प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय लाओस दौरे पर पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री यहां 21वें आसियान-भारत समिट और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। लाओस की राजधानी वियनतियाने में समिट का आयोजन किया जाएगा। इस साल लाओस आसियान सम्मेलन का मेजबान और वर्तमान अध्यक्ष है। लाओस एक छोटा सा देश है, जिसकी कुल आबादी महज 75 लाख के करीब है। भारत में बिहार की राजधानी पटना की कुल आबादी भी मौजूदा वक्‍त में करीब 75 लाख ही है। पीएम मोदी की लाओस यात्रा के बीच ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत के लिए ये छोटा सा देश रणनीतिक रूप से कितना जरूरी है। भारत-लाओस के संबंध कैसे हैं और भारत के लिए इसे प्राथमिकता देना क्यों जरूरी है। रणनीतिक रूप से यह इसलिए अहम है क्योंकि लाओस की सीमा उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में थाईलैंड से लगती है। चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण भारत के लिए इस देश की रणनीतिक महत्ता बढ़ जाती है। दरअसल, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, लाओस हमेशा से व्यापारिक नजरिए से भी अहम रहा है। यही कारण है कि इसपर कभी फ्रांस ने तो कभी जापान ने कब्जा जमाया। 1953 में जब लाओस को आजादी मिली तो चीन ने भी लाओस में अपने प्रभाव को आजमाना शुरू किया।दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की दादागिरी से हर कोई वाफिफ है। चीन इस क्षेत्र में अपने सभी पड़ोसियों पर धोंस जमाने की कोशिश से बाज नहीं आता। इन देशों में लाओस भी शामिल है। *भारत के लिए क्यों अहम है लाओस?* लाओस वैसे तो एक छोटा सा देश है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के चलते यह भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर काफी अहम माना जाता है। इसकी सीमा चीन और म्यांमार से लगती है, लिहाजा चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण यह देश रणनीतिक तौर पर भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भारत के इंडो-पैसिफिक विजन का महत्वपूर्ण स्तंभ है, साथ ही साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। व्यापारिक नजरिए की बात करें तो दक्षिण पूर्व एशिया में लाओस की भौगोलिक स्थिति के कारण भी यह हमेशा से अहम रहा है। भारत के लिए लाओस कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में और पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 में ही लाओस का दौरा किया था। लाओस को फ्रांस के कब्जे से मुक्ति दिलाने में भी भारत ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एंड कंट्रोल (ICSC) के चेयरमैन के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। जुलाई 1954 में जेनेवा संधि के आधार पर ICSC की स्थापना की गई थी, इसका उद्देश्य भारत-चीन के बीच दुश्मनी को खत्म करने और लाओस से फ्रांसिसी उपनिवेशवादी शक्तियों की वापसी कराना था। *भारत और लाओस के बीच संबंध* भारत और लाओस के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1956 में डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित हुए। तब से अब तक दोनों देशों की ओर से द्विपक्षीय यात्राएं होती रहीं हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में ही लाओस का दौरा किया था। इसके बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाओस की आधिकारिक यात्रा की थी। 2004 में मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री मोदी आसियान-भारत समिट में हिस्सा लेने के लिए लाओस का दौरा कर चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत की ओर से 50 हजार कोवैक्सीन की डोज और दवाइयां लाओस भेजी गईं थीं। हाल ही में आए तूफान यागी के दौरान भी भारत ने करीब एक लाख डॉलर की आपदा राहत सामग्री लाओस भेजी थी। इसके अलावा लाओस के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सिविलाइजेशनल संबंध रहें हैं। बौद्ध धर्म और रामायण दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं। इसी साल 15 से 31 जनवरी के बीच लाओस के रॉयल बैलेट थियेटर के 14 आर्टिस्ट ने भारत में 7वें इंटरनेशनल रामायण मेला में भी हिस्सा लिया था।
हरियाणा में हैट्रिकः क्या है बीजेपी के तीसरे बार जीत की वजह?

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल के बाद कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही थी। चुनाव प्रचार और एग्जिट पोल में कांग्रेस की आंधी दिखी, लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आए।कांग्रेस, हरियाणा में लगातार तीसरी बार हार गई है।

हरियाणा में बीजेपी के जीत निश्चित रूप से अप्रत्याशित है। अप्रत्याशित इसलिए कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद पार्टी के सामने टिकट बंटवारे के बाद पार्टी के कई नेताओं की बगावत चुनौती बनकर सामने आई। एग्जिट पोल में भी बीजेपी की हार की संभावना जताई गई। इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत निश्चित रूप से बहुत खास है।हरियाणा में बीजेपी की जीत के पीछे क्या कुछ फैक्टर हो सकते हैं देखते हैः-

गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला हिट

बीजेपी 2014 में पहली बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज हुई।लोगों को उम्मीद थी कि किसी जाट को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, क्योंकि पिछले कई दशक से हरियाणा का मुख्यमंत्री जाट ही बन रहा था, भले ही वो किसी भी दल का हो। लेकिन बीजेपी ने पंजाबी समाज के मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया। पहली बार विधायक बने खट्टर को पीएम नरेंद्र मोदी की पसंद बताया गया। खट्टर को सीएम बनाने के बाद ही यह चर्चा चल उठी कि बीजेपी जाट राजनीति को खत्म करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी से जाटों की नाराजगी यहीं से शुरू हुई। बीजेपी कभी जाटों को मनाने की कोशिश करती हुई नजर नहीं आई। उसने पंजाबी, ओबीसी और दलित वोटों को एकजुट रखने की कोशिशें जारी रखीं। 

चुनाव से पहले खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाने का दांव

भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपने सीएम को बदल दिया था। मनोहर लाल खट्टर को लेकर लोगों में नाराजगी नजर को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें हटाकर नायब सिंह सैनी को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। सैनी की माली जाति हरियाणा की बड़ी और ताकतवर ओबीसी जाति है। यानी कि बीजेपी की गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला एक बार फिर काम कर गया है। हरियाणा में गैर जाट जातियां आज भी बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ी नजर आ रही हैं।

जाटों ने बीजेपी का समर्थन किया है

ऐसा नहीं है कि जाट बीजेपी से नाराज ही हैं। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि इस बार के चुनाव में बीजेपी ने जाट बहुल सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है। बीजेपी ने 2019 के चुनाव में 30 फीसद जाट बहुल सीटें जीत ली थीं। वहीं 2024 के चुनाव में उसने 51 फीसदी जाट बहुल सीटों पर बढ़त बनाई है। इसका मतलब यह हुआ कि जाट बीजेपी से बहुत नाराज नहीं हैं। हालांकि हरियाणा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को मिले वोटों का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। 

कुमारी सैलजा की नाराजगी

दलितों में कुमारी सैलजा को सबसे बड़ा जाटव नेता माना जाता है। कुमारी सैलजा की नाराजगी के कारण यह वोट बैंक कांग्रेस से खिसका। इसके अलावा इसमें टर्निंग पॉइंट अशोक तंवर की वापसी से आया। इससे सैलजा की जाति में मैसेज गया कि हुड्डा ने उनका कद कम करने के लिए तंवर की वापसी कराई है।

राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयान

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयानों को भी बीजेपी ने चुनावी सभा में खूब भुनाया। इस मैसेज को दलितों की बस्ती में घर घर तक ले जाने का काम संघ के स्वयं सेवकों ने किया। कुछ सीटों पर आप के कैंडिडेट ने भी कांग्रेस के वोट काटने का काम किया।

हरियाणा में जीतते-जीतते कैसे हार गई कांग्रेस? सैलजा, हुड्डा या कोई और वजह

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हरियाणा में बीजेपी ने हैट्रिक लगाई है। भाजपा एक बार फिर सूबे में सरकार बनाती नजर आ रही है। 10 साल से वनवास झेल रही कांग्रेस एक बार फिर सत्ता के करीब आते-आते रह गई।लगभग एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिख रही थी, लेकिन चुनावी नतीजों ने कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर दिया। 60 सीटों पर जीत का दावा करने वाली ओल्ड ग्रैंड पार्टी 40 के नीचे सिमट गई है। इस सियासी जनादेश की वजह से कांग्रेस फिर से 5 साल के लिए सत्ता से दूर हो गई है।

वोटिंग के बाद सामने आए एग्जिट पोल के सर्वे में अनुमान जताया गया था कि हरियाणा में कांग्रेस दमदार तरीके से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है, लेकिन चुनावी नतीजे और रुझान उसके उलट नजर आए। हरियाणा में मोहब्बत की दुकान खोलने वाली कांग्रेस बीजेपी के सियासी समीकरण को पछाड़ने में पूरी तरह से नाकाम रही। हरियाणा में चुनाव परिणाम आने के बाद अब इस सवाल के जवाब तलाशे जा रहे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में क्यों पिछड़ गई?

कांग्रेस की हार के कारण

हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार

हरियाणा कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पार्टी की हार के सबसे बड़े कारक माने जा रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार था। बीते डेढ़-दो साल से हरियाणा कांग्रेस के बड़े फैसले हुड्डा ही ले रहे थे। फिर चाहे प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की नियुक्ति हो या लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा हो, इन सबमें हुड्डा ही अकेले पॉवर सेंटर बनकर उभरे। चुनाव में राहुल गांधी समेत पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने हुड्डा पर विश्वास किया, लेकिन अब हरियाणा में लगातार तीसरी बार कांग्रेस की नैया डूब नजर आ रही है।हुड्डा के पसंद के उम्मीदवार को तरजीह

इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 90 में से 70 से अधिक सीटें हुड्डा के कहने पर बंटे। टिकट बंटवारे में को लेकर जब दिल्ली में हरियाणा कांग्रेस की बैठक हुई थी तब भी हुड्डा की ही चली थी। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा हुड्डा समर्थक उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 90 में से करीब-करीब 70 सीटों पर हुड्डा के पसंद वाले उम्मीदवारों को मौका दिया गया। तब कुमारी सैलजा समेत कई नेताओं ने खुले तौर पर तो नहीं लेकिन अंदरूनी रूप से नाराजगी भी जताई थी, लेकिन हाईकमान ने ध्यान नहीं दिया। अब उसका असर चुनाव के नतीजों में देखने को मिल रहे हैं।

दिग्गज नेताओं की नाराजगी

कांग्रेस के दिग्गज नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला टिकट बंटवारे से खुश नहीं थे। दोनों नेताओं ने अपने करीबियों और समर्थकों के लिए प्रचार किया। सूबे की बाकी सीटों पर चुनाव प्रचार करने नहीं गए। कुमारी सैलजा ने लंबे समय तक चुनाव प्रचार से दूरी रखी, इसके बाद वे लौटीं। हालांकि, तब भी कई इंटरव्यूज में सैलजा ने इशारों-इशारों में बताया कि उनकी हुड्डा से बातचीत नहीं है।

गठबंधन दलों को तरजीह नहीं देना

कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के दलों को तरजीह नहीं दी। अहीरवाल बेल्ट में पार्टी ओवर कन्फिडेंस में रही। यहां पर सपा सीट मांग रही थी। हुड्डा ने साफ-साफ कह दिया कि हरियाणा में इंडिया का गठबंधन नहीं होगा। कई सीटों पर आप को भी अच्छे-खासे वोट मिले हैं। चुनाव से पहले आप ने कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के कहने पर कांग्रेस ने हाथ नहीं मिलाया। इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव के परिणाम में देखने को मिल रहा है।

पाकिस्तान पहुंचे जाकिर नाइक ने क्यों की भारत की तारीफ, जानें हिंदू को लेकर क्या कहा?

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विवादित इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाइक इन दिनों पाक्सितान के दौरे पर है। पाकिस्तान के साथ गलबहिंया और भारत के खिलाफ जहर उगलने वाला जाकिर नाइक को पाकिस्तान की मेहमाननवाजी कुछ खास रास नहीं आई। तभी तो उसने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) पर की जमकर आलोचना की। यही नहीं उसने एक कार्यक्रम के दौरान हजारों पाकिस्तानियों के सामने भारत की तारीफ कर दी। इससे जुड़ा वीडियो काफी वायरल हो रहा है।

दरअसल, पीआईए ने उसके एक्स्ट्रा लगेज के लिए शुल्क माफ नहीं किया। आर्थिक तंगी झेल रहे पीआईए ने नाइक से 50 प्रतिशत छूट की पेशकश की थी, जिससे वह असंतुष्ट था। इसके बाद पाकिस्तानी सरजमीं पर ही उसने पाकिस्तानियों की जमकर क्लास ले ली।

मलेशिया से 1000 किलोग्राम सामान लेकर वो पाकिस्तान पहुंचा था। उसे यह गलतफहमी थी कि पाकिस्तान एयरलाइंस उसके सामानों के पैसे नहीं वसूलेंगे, लेकिन पाकिस्तान एयरलाइंस ने उसे उसके 50 प्रतिशत सामानों पर ही छूट देने की पेशकश की। यह बात जाकिर नाइक को पसंद नहीं आई।

इसके बाद नाइक ने पड़ोसी मुल्क के सरजमीं पर उन्हीं के सामने उनके ही एयरलाइंस की जमकर आलोचना की। उसने कहा कि वो पाकिस्तान सरकार के बुलावे पर मेहमान बनकर आए हैं इसके बावजूद एयरलाइंस ने उनके सामानों के पैसे वसूले। अगर यही वो भारत में रहते तो वहां की हवाई जहाज कंपनी बस उनका नाम सुनकर लगेज का पैसा माफ कर देती।

सोशल मीडिया पर इसका वीडियो भी वायरल हुआ है। वायरल हो रहे वीडियो में जाकिर नाइक पाकिस्तानियों को संबोधित करते हुए नजर आ रहा है। जाकिर नाइक ने अपने साथ हुए घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मैं एयरपोर्ट पर था। मेरे पास हजार किलो सामान था। एयरपोर्ट पर मुझे रोक दिया गया। मैंने पाकिस्तान एयरलाइंस के अफसरों से बात की, जिसमें सीईओ से लेकर कंट्री मैनेजर, एयरपोर्ट मैनेजर तक शामिल थे। उसने कहा कि वो मेरे लिए कुछ भी करेंगे। मैंने कहा कि हम लोग कुल 6 लोग जा रहे थे। हमारे पास 500-600 किलो सामान ज्यादा था। इस पर एयरपोर्ट अधिकारियों ने कहा कि कोई बात नहीं हम 50 फीसदी किराया माफ कर देंगे। मैंने कहा कि 50 फीसदी डिस्काउंट के बदले में 4 लोगों को लेकर आ जाऊं तो सस्ता पड़ेगा ना। देना है तो मुफ्त में करें, वरना पूरा पैसा ले लो। ऐसा कहकर मैंने उसका ऑफर ठुकरा दिया।

वहीं, जाकिर नाइक ने कहा कि जब कोई गैर-मुस्लिम उसे भारत में देखता है तो वो उसे मुफ्त में जाने देता है। उसने कहा, भारत के लोग डॉ जाकिर नाइक को देखते हैं और 1000 से 2000 किलोग्राम अतिरिक्त सामान माफ कर देते हैं। लेकिन पाकिस्तान सरकार का मैं मेहमान हूं फिर भी पाकिस्तान एयरलाइंस मेरे सामान पर पैसे ले रहे हैं।