दिवाली पर छा जाता अंधेरा, खुशियां नहीं शोक मनाते हैं इन गांवों के लोग; वजह जान हैरान रह जाएंगे आप?
दिवाली के मौके पर लोग खुशियां मनाते हैं. अपने घरों में दिये जलाकर उन्हें रोशन करते हैं. एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और खुशियां बांटते हैं. इस बार 20 अक्टूबर को देशभर में दिवाली की रौनक होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ जगह ऐसी भी हैं, जहां पर दिवाली के मौके पर लोग खुशियां नहीं, बल्कि शोक मनाते हैं. वह दिवाली पर दिए नहीं जलाते. बल्कि अपने घरों में अंधेरा कर लेते हैं.
ऐसा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के कुछ गांवों में होता है. दिवाली के दिन कुछ गांवों में हर घर में सन्नाटा छा जाता है. इनमें राजगढ़ क्षेत्र के भांवा, अटारी और आसपास के गांवों के नाम शामिल हैं, जहां रहने वाले चौहान वंश के क्षत्रिय परिवार दिवाली नहीं मनाते, बल्कि इस दिन को शोक दिवस के रूप में बिताते हैं. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि दिवाली के दिन ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी, जिन्हें वह अपना पूर्वज और वीर योद्धा मानते हैं.
दिवाली पर छा जाता है अंधेरा
यही वजह है कि इन गांवों में न रंगोली सजती है, न दीप जलते हैं और न ही कोई उत्सव होता है. यहां के दिवाली के दिन खुश नहीं होते, बल्कि अपने पूर्वज को याद कर दुखी होते हैं. यहां के लोगों के घरों में दिवाली पर मिठाई नहीं खिलाई जाती और न ही रंगोली बनाई जाती है. दिवाली की रात जहां, देशभर में रौनक होती है. चारों तरह दिए जलते हैं और लोगों के घर जगमग होते हैं. यहां के घरों में दिवाली के दिन अंधेरा छा जाता है.
एक दीया जलाकर करते हैं पूजा
हालांकि, इन गावों में कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो सिर्फ एक दीया जलाकर लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं और थोड़ी देर बाद उसे भी बुझा देते हैं. यह परंपरा इन गांवों में अब से नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से चलती आ रही है, जिसे यहां के लोग निभाते चले आ रहे हैं. वह दिवाली के दिन शांत होकर दिन गुजारते हैं. उनके लिए दिवाली खुशियों का त्योहर नहीं, बल्कि शोक है
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