अब बांग्लादेश की बारी, गंगा संधि की समीक्षा की तैयारी मे मोदी सरकार, पड़ोसी देश पर डाला दबाव

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भारत को पड़ोसी देश उसे आंखे दिखाने से बाज नहीं आ रहे। ऐसे में भारत सरकार ने भी इनपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु समझौते को निलंबित कर दिया है। अब मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि पर फिर से बातचीत करने का फैसला किया है।

बांग्लादेश को पहुंचाया संदेश

भारत ने बांग्लादेश के साथ भी गंगा जल संधि पर फिर दोबारा विचार शुरू कर दिया है। बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि की मियाद अगले साल ही पूरी होने वाली है। ऐसे में भारत ने अभी से बांग्लादेश को यह संदेश पहुंचा दिया है कि उसे अपनी जरूरत पूरा करने लिए और पानी चाहिए। भारत ने अपने समकक्ष को बताया है कि उसे अपनी विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता है।

छोटी अवधी के लिए हो सकती है नई संधि

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अगर संधि बढ़ी भी तो पहली जितनी लंबी अवधि के लिए नहीं होगी। नई संधि संभवतः छोटी अवधि की होगी, जो 10 से 15 वर्ष तक चलेगी। छोटी अवधि दोनों देशों के लिए आगे बढ़ने में लचीलापन और अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देगी।

बता दें कि गंगा जल संधि पर 12 दिसम्बर 1996 को हस्ताक्षर किये गये थे, जिसमें जल बंटवारे, विशेष रूप से कम वर्षा वाले मौसम में फरक्का बैराज के आसपास जल बंटवारे पर जोर दिया गया था।

पहलगाम हमले के बाद स्थिति बदली

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि पहले सरकार गंगा जल संधि को पहले की तरह 30 साल के लिए बढ़ाना चाहती थी। लेकिन, पहलगाम की घटना के बाद स्थिति बदल गई। मई में बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ एक बैठक हुई थी। अधिकारी ने कहा कि यह एक सामान्य बैठक थी, जो साल में दो बार होती है। इस बैठक में भारत ने अपने लिए पानी की जरूरत के बारे में बताया।

कैसे होता है गंगा जल संधि के तहत पानी का बंटवारा

1996 की गंगा जल संधि के अनुसार अगर फरक्का में पानी की उपलब्धता 70,000 क्यूसेक या उससे कम रहती है, तो दोनों देशों को आधा-आधा पानी मिलता है। लेकिन, अगर यह उपलब्धता 70,000 क्यूसेक से 75,000 क्यूसेक के बीच होता है तो बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक और भारत को बाकी हिस्सा मिलता है। लेकिन, अगर पानी की उपलब्धता 75,000 क्यूसेक या उससे भी ज्यादा होता है तो भारत उसका 40,000 क्यूसेक हिस्सा इस्तेमाल कर सकता है और बाकी प्रवाह बांग्लादेश को जाता है

ऑपरेशन सिंदूर के बाद अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों पर एक्शन, वापस भेजे गए 2000 से ज्यादा लोग

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ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद से 2000 से ज़्यादा अवैध प्रवासियों को बांग्लादेश वापस भेजा गया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देश में छुपे बैठे अवैध प्रवासियों पर एक्शन शुरू हुआ। गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, असम आदि राज्यों ने इस अभियान को आगे बढ़ाया और अप्रवासियों की पहचान कर वापस उनके देश भेजा गया। इस दौरान अब तक लगभग 2000 से अधिक अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को सीमा पार कर उनके देश भेज दिया गया है।

इन राज्यों से भेजे गए अवैध प्रवासी

भारत सरकार ने देश में रह रहे अवैध प्रवासियों को वापस बांग्लादेश भेजने का अभियान चलाया है। इस अभियान की शुरुआत गुजरात से हुई, जहां सबसे पहले बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा गया। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, असम, महाराष्ट्र और राजस्थान ने भी इस अभियान को आगे बढ़ाया। इन सभी राज्यों ने मिलकर बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजा।

'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद कार्यवाई में तेजी

रिपोर्ट के मुताबिक, संबंधित अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो यह एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद इसमें तेजी दिखी है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीमा पार अपने देश वापस जाने वाले अधिकतर प्रवासियों ने खुद से ही यह फैसला लिया है, जिसका कारण कार्रवाई का डर बताया जा रहा है।अवैध बांग्लादेशियों को उनके दस्तावेजों के सत्यापन के बाद वापस भेजा गया है।

इस तरह बांग्लादेश भेजे जा रहे अवैध बांग्लादेशी

सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। अवैध प्रवासियों की वजह से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए उन्हें वापस भेजना ज़रूरी है। सरकार यह भी सुनिश्चित कर रही है कि इस प्रक्रिया में किसी के साथ भी गलत व्यवहार न हो। सभी नियमों और कानूनों का पालन किया जा रहा है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख बने रहेंगे मोहम्मद यूनुस, इमरजेंसी मीटिंग के बाद “यूटर्न

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस अपने पद पर बने रहेंगे।बांग्लादेश के अंतरिम मुखिया मोहम्मद यूनुस के इस्तीफे की अटकलों के बीच बुलाई गई आपात बैठक के बाद ये साफ हो गया है कि यूनुस फिलहाल अपने पद पर बने रहेंगे। उनके मंत्रिमंडल के एक सलाहकार ने शनिवार को यह जानकारी दी। दो दिन पहले यूनुस के एक प्रमुख सहयोगी ने कहा था कि वह इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं। अब उन्होंने इसे पूरी तरह से नकार दिया है।

शनिवार को सलाहकार परिषद की एक गैर-निर्धारित बैठक के बाद योजना सलाहकार वहीदुद्दीन महमूद ने कहा कि यूनुस ने यह नहीं कहा था कि वह पद छोड़ देंगे। उन्होंने कहा था कि हमें सौंपे गए काम और जिम्मेदारियों को पूरा करने में कई बाधाएं आ रही हैं, लेकिन हम उन पर काबू पाने की कोशिश रहे हैं। वहीदुद्दीन महमूद ने आगे कहा- वे निश्चित रूप से बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोई भी सलाहकार कहीं नहीं जा रहा है क्योंकि हमें सौंपी गई जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है; हम इस कर्तव्य को नहीं छोड़ सकते। यह बयान ऐसे समय आया है जब यूनुस के इस्तीफे की अटकलें दो दिन पहले सामने आई थीं।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने शनिवार को अपने प्रशासन, राजनीतिक दलों और सेना के बीच बढ़ती असहजता की समीक्षा के लिए सलाहकार परिषद की एक बैठक बुलाई थी। इससे पहले यूनुस ने मुख्य सलाहकार के पद से हटने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने बदलाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण काम करने में आ रहीं परेशानियों का हवाला दिया था।

देश की राजनीति इस समय अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार को सत्ता से हटाए जाने के बाद से हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। विरोधी पार्टियों, छात्र संगठनों और ट्रेड यूनियनों ने पिछले कुछ दिनों में ढाका की सड़कों पर प्रदर्शन तेज कर दिया है। यूनुस की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को भंग कर दिया है और उसके कई वरिष्ठ नेताओं को जेल भेज दिया है। इधर बीएनपी की मांग है कि जल्द से जल्द चुनाव की तारीख घोषित की जाए। पार्टी ने इस सप्ताह बड़े प्रदर्शन भी किए हैं। साथ ही, उन्होंने कैबिनेट से छात्र प्रतिनिधियों को हटाने की मांग की है, जबकि एनसीपी ने दो सलाहकारों को हटाने की बात कही है, जिन पर बीएनपी के हित में काम करने का आरोप है।

बांग्लादेश में फिर होगा तख्तापलट! जानें मोहम्मद यूनुस के सामने कैसे बढ़ा संकट

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बांग्लादेश एक बार फिर बड़े राजनीतिक संकट की ओर बढ़ रहा है। 9 महीने बाद ही देश में फिर पहले ही वाले हालात पैदा हो गए हैं। दरअसल, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस जो वहां अंतरिम सरकार चला रहे हैं, उन्होंने इस्तीफे का संकेत दे दिया है। जिसका कारण राजनीतिक दलों में आपसी मतभेद, सुधारों में रुकावट और जनता का बढ़ता गुस्सा बताया जा रहा है। इस बीच अंतरिम सरकार के मुखिया और सेना के बीच तनाव की खबरें भी सुर्खियां बटोर रही हैं। ऐसे में बांग्लादेश मे एक बार फिर सत्ता परिवर्तन और तख्तापलट को लेकर अटकलें लगने लगी है।

पिछले साल अगस्त में शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भारत भागना पड़ा था। इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया। लेकिन अब यूनुस चारों ओर से घिरते नजर आ रहे हैं। सेना, विपक्षी दल जैसे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, और यहां तक कि उनके अपने समर्थक भी उनसे नाखुश हैं।

इस बीच यूनुस ने एक बैठक में कहा, मैं बंधक जैसा महसूस कर रहा हूं। बिना राजनीतिक समर्थन के इस पद पर रहने का कोई मतलब नहीं।

यूनुस के इस्तीफे की खबरें उस समय आई हैं जब सेना और अंतरिम सरकार के बीच भी तनाव की खबरें सामने आई हैं। खासकर दो मुद्दों पर मतभेद है – पहला चुनाव की समयसीमा – सेना चाहती है कि चुनाव दिसंबर तक हो जाएं। दूसरा म्यांमार के रखाइन राज्य में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर – सेना को इस पर आपत्ति है। तीन दिन पहले सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने नौसेना और वायुसेना प्रमुखों के साथ मिलकर यूनुस से मुलाकात की और चुनाव की समयसीमा तय करने की बात दोहराई। 

अगली सुबह सेना प्रमुख ने एक बैठक में कहा कि कई अहम फैसलों की जानकारी उन्हें नहीं दी गई, जिससे यह संकेत मिला कि सेना अपनी स्थिति मजबूत कर रही है।सेना प्रमुख की कड़ी टिप्पणी के बाद अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और छात्रों की नवगठित नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता नाहिद इस्लाम के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। नाहिद ने बताया कि मोहम्मद यूनुस ने इस्तीफा देने की पेशकश की है। इसके बाद राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की तरफ कई बयान दिए गए, जिसमें यूनुस से इस्तीफा न देने का अनुरोध किया गया। इसके साथ ही सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की गई।

भारत के नए एक्शन से बांग्लादेश पर कितना होगा असर?

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भारत सरकार ने बांग्लादेश से आने वाले कई अहम उत्पादों के आयात पर नई पाबंदियां लगा दी है। नए नियमों के अनुसार, बांग्लादेश से आने वाले कुछ खास सामान जैसे रेडीमेड कपड़े, प्रोसेस्ड फूड और प्लास्टिक के सामान अब कुछ खास समुद्री बंदरगाहों से ही भारत में आ सकेंगे। कुछ सामान को तो जमीनी रास्तों से पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। इससे पहले, पिछले महीने की शुरुआत में भारत ने बांग्लादेश को दी गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा भी वापस ले ली थी। इस कदम से बांग्लादेश की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ने की संभावना है।

770 मिलियन डॉलर के आयात पर प्रतिबंध

भारत सरकार के नए आदेश के तहत बांग्लादेश से होने वाले 770 मिलियन डॉलर के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह आंकड़ा दोनों देशों के द्विपक्षीय आयात का लगभग 42 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक़, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत और बांग्लादेश के बीच कुल 14 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। इस दौरान बांग्लादेश ने भारत को लगभग 1.97 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया। बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यात उत्पाद रेडीमेड गारमेंट है। आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश की कुल निर्यात आय का लगभग 83 प्रतिशत हिस्सा रेडीमेड गारमेंट्स से आता है।

बांग्लादेश से भारत आने वाले रेडीमेड गारमेंट्स की कुल अनुमानित क़ीमत 618 मिलियन डॉलर है। अब ये कपड़े केवल कोलकाता और न्हावा शेवा की बंदरगाहों के ज़रिए ही भारत में आ सकेंगे।

नए प्रतिबंधों का बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?

गारमेंट इंडस्ट्री- पिछले साल, बांग्लादेश से भारत में रेडीमेड गारमेंट्स का एक्सपोर्ट 700 मिलियन डॉलर (करीब 6,000 करोड़ रुपए) का था। इनमें से 93% रेडीमेड गारमेंट एक्सपोर्ट भारत के लैंड रूट्स के जरिए हुए। समुद्री रास्ते पर शिफ्ट होने से शिपिंग कॉस्ट 20-30% बढ़ जाएगी, जिससे ये प्रोडक्ट कम कॉम्पिटिटिव होंगे।

ट्रेड घट जाएगा- इन प्रतिबंधों से बांग्लादेश का भारत के लिए 2 बिलियन डॉलर (करीब 17 हजार करोड़ रुपए) का एक्सपोर्ट मार्केट 15-20% तक कम हो सकता है। इससे उसका व्यापार घाटा बढ़ जाएगा। गारमेंट, फूड प्रोसेसिंग, और लॉजिस्टिक्स सेक्टर में हजारों नौकरियां खतरे में आ सकती है।

आर्थिक दबाव- विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और टका के अवमूल्यन के बीच, एक्सपोर्ट कॉस्ट बढ़ने से बांग्लादेश के पेमेंट बैलेंस पर और प्रेशर आएगा। वहीं, सख्त नियमों के कारण छोटे और मध्यम उद्यमों की कॉम्पिटिटिवनेस कम होगी।

बांग्लादेश पर कौन से नए आयात प्रतिबंध लगाए हैं?

जवाब: भारत ने बांग्लादेश से कई उपभोक्ता सामानों के आयात पर लैंड बॉर्डर के माध्यम से रोक लगा दी है। इनमें शामिल हैं:

• शर्ट, पैंट, टी-शर्ट जैसे रेडीमेड गारमेंट्स

• बिस्किट, चिप्स, कनफेक्शनरी, स्नैक्स प्रोसेस्ड फूड आइटम

• कार्बोनेटेड और एनर्जी ड्रिंक्स

• बाल्टी, खिलौने, कुर्सियां जैसे प्लास्टिक उत्पाद

• कॉटन वेस्ट और इंडस्ट्रियल ग्रेड कॉटन बाय प्रोडक्ट

• सोफा, बेड, टेबल, कुर्सियां जैसे लकड़ी के फर्नीचर

ये सामान अब नॉर्थ-ईस्ट (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) और पश्चिम बंगाल के लैंड कस्टम स्टेशनों या इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट्स जैसे पेट्रापोल (पश्चिम बंगाल), सुतरकंडी (असम), या डॉकी (मेघालय) जैसे लैंड पोर्ट्स के माध्यम से भारत में प्रवेश नहीं कर सकते। इसके बजाय, बांग्लादेश को मुंबई के नवा शेवा पोर्ट या कोलकाता के श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट के माध्यम से समुद्री रास्ते का उपयोग करना होगा।

हालांकि, कुछ आवश्यक वस्तुओं जैसे मछली और समुद्री भोजन, एलपीजी, एडिबल ऑयल और क्रस्ट स्टोन पर ये प्रतिबंध लागू नहीं होंगे। साथ ही, नेपाल और भूटान को बांग्लादेश के माध्यम से भेजे जाने वाले सामान पर भी कोई रोक नहीं लगाई गई है, क्योंकि भारत इन देशों के साथ फ्रेंडली रिलेशन बनाए रखना चाहता है।

भारत-पाकिस्तान टेंशन के बीच पूर्वोत्तर पर बांग्लादेश की बुरी नजर, पूर्व सैन्य अधिकारी का दुस्साहस!

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद से भारत लगातार पाकिस्तान की गीदड़भभकी सुन रहा है। हालांकि, भारत चुप नहीं बैठा है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार लगातार एक के बाद एक कार्रवाई कर रही है ताकि आतंक को पालने वाले जिन्ना के मुल्क पर नकेल कसी जा सके। भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के से हालात बने हुए हैं। इस बीच एक और पड़ोसी देश ने उस जंग में हाथ सेंकने का काम किया है।बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि अगर नई दिल्ली पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू करता है तो ढाका को चीन की मदद से भारत के पूर्वोत्तर पर कब्जा कर लेना चाहिए।

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के एक अधिकारी और एक रिटायर्ड बांग्लादेशी मेजर जनरल एएलएम फजलुर रहमान ने विवाद खड़ा करने वाला बयान दिया है। फजलुर रहमान ने कहा है कि अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान पर हमला करता है तो बांग्लादेश को भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए।

चीन के साथ सैन्य व्यवस्था बनाने की कही बात

पूर्व जनरल ने कहा कि मुझे लगता है कि चीन के साथ संयुक्त सैन्य व्यवस्था पर चर्चा शुरू करना आवश्यक है। फजलुर रहमान ने सोशल मीडिया पोस्ट में यह टिप्पणी की है। एक फेसबुक पोस्ट में रहमान ने कहा, अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को पूर्वोत्तर के सात राज्यों पर कब्जा करना चाहिए। इस संबंध में मुझे लगता है कि चीन के साथ एक संयुक्त सैन्य प्रणाली पर चर्चा शुरू करना आवश्यक है। बांग्लादेश की तरफ से यह भड़काऊ टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव चरम पर है। नियंत्रण रेखा पर पिछले कई दिनों से गोलीबारी चल रही है।

बयान को हल्‍के में नहीं लिया जा सकता

बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के प्रमुख रहे रहमान बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस का करीबी हैं। चीन दौरे के दौरान यूनुस ने नॉर्थ ईस्‍ट भारत के लिए खुद को इस क्षेत्र का रहनुमा करार देकर सनसनी मचा दी थी। ऐसे में रहमान के बयान को हल्‍के में नहीं लिया जा सकता।

दरअसल, शेख हसीना सरकार के भारत से अच्‍छे संबंध थे लेकिन तख्‍तापलट के बाद बांग्‍लादेश में इस वक्‍त भारत विरोधी ताकतों ने पैर पसारा हुआ है। बांग्‍लादेश में लगातार हिन्‍दुओं पर हमले हो रहे हैं। हसीना को वापस लाने के लिए बांग्‍लादेश भारत के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट तक जा पहुंचा है। इतना ही नहीं बॉर्डर पर भी दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

बांग्लादेश के हिंदू संत चिन्मय दास को मिली जमानत, देशद्रोह के आरोप में जेल में थे बंद*

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बांग्लादेश के ढाका हाईकोर्ट ने जेल में बंद हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को बुधवार को जमानत दे दी। चिन्मय दास पिछले 5 महीनों से देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार ने इसकी पुष्टि की है। द डेली स्टार ने चिन्मय दास के वकील के हवाले से बताया है कि अभी चिन्मय की रिहाई तय नहीं हुई है। अगर बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक नहीं लगाता है तो चिन्मय को रिहा कर दिया जाएगा।

हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों के विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व

इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर 2024 को बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया था। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले साधु चिन्मय कृष्ण दास को ढाका पुलिस की जासूसी शाखा ने 25 नवंबर को ढाका हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया था। उन पर देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे "न्यायिक उत्पीड़न" करार दिया था। भारत ने भी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी पर बांग्लादेश के सामने कड़ा विरोध दर्ज कराया था।

चिन्मय पर देशद्रोह का मामला क्यों दर्ज हुआ?

25 अक्टूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में नातन जागरण मंच ने 8 सूत्री मांगों को लेकर एक रैली की थी। इसे चिन्मय कृष्ण दास ने भी संबोधित किया था। इस दौरान न्यू मार्केट चौक पर कुछ लोगों ने आजादी स्तंभ पर भगवा ध्वज फहराया था। इस ध्वज पर आमी सनातनी लिखा हुआ था।

रैली के बाद 31 अक्टूबर को बेगम खालिदा जिया की बीएनपी पार्टी के नेता फिरोज खान ने चिन्मय कृष्ण दास समेत 19 लोगों के खिलाफ चटगांव में राजद्रोह का केस दर्ज कराया था। उन पर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप है

जेल में बीमार और पीड़ित थे

इस्कॉन और अन्य हिंदू संगठनों द्वारा उनकी गिरफ्तारी की व्यापक निंदा किए जाने के बाद उनकी जमानत याचिका कई बार खारिज की गई। उन्हें 26 नवंबर को जेल भेज दिया गया और 11 दिसंबर को उनकी याचिका खारिज कर दी गई। ऐसी भी खबरें थीं कि वह गंभीर रूप से बीमार थे और जेल में उनका उचित इलाज नहीं किया गया।चिन्मय दास के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने आरोप लगाया था कि उनके मुवक्किल बिना किसी सुनवाई के कारावास के दौरान बीमार और पीड़ित थे।

बंगाल हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी से भड़का भारत, अल्पसंख्यकों को लेकर दो टूक

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों भड़की हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी को लेकर विदेश मंत्रालय ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेश को इस घटना पर कोई टिप्पणी करने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। साथ ही बांग्लादेश को हमारे घरेलू मसलों पर गैर-जरूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा, हम पश्चिम बंगाल की घटनाओं के संबंध में बांग्लादेश की टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं। यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी उत्पीड़न पर भारत की चिंताओं के साथ तुलना करने का एक छिपा हुआ और कपटपूर्ण प्रयास है, जहां इस तरह के कृत्यों के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। अनुचित टिप्पणियां करने और सद्गुणों का प्रदर्शन करने के बजाय, बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत को मुस्लिमों पर दिया था ज्ञान

इससे पहले बांग्लादेश ने भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को लेकर बयान दिया है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी शफीकुल आलम ने नई दिल्ली से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आग्रह किया था। बृहस्पतिवार को विदेश सेवा अकादमी में एक प्रेस वार्ता के दौरान आलम ने कहा, हम मुर्शिदाबाद सांप्रदायिक हिंसा में बांग्लादेश को शामिल करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से खंडन करते हैं। आलम ने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने मुसलमानों पर हमलों की निंदा की है, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, हम भारत और पश्चिम बंगाल सरकार से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आग्रह करते हैं।

मुर्शिदाबाद हिंसा में भूमिका

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में भारत सरकार के वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा के बाद इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई है। अब तक 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में कथित तौर पर हिंसा में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों की संलिप्तता का संकेत मिला है।

बदला लेने की कोशिश में बांग्लादेश ने अपने पैर में मारी कुल्हाड़ी, भारत से जमीनी मार्ग से कच्चे धागे के आयात पर रोक

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भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में बीते कुछ समय से तनातनी देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच का तनाव अब व्यापार को भी प्रभावित करता दिख रहा है। बांग्लादेश ने भारत के साथ लैंड बॉर्डर ट्रेड को प्रभावित करने वाले कई कदम उठाए हैं।बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है। यही नहीं, बांग्लादेश ने भारत के साथ तीन लैंड पोर्ट से व्‍यापार बंद करने का ऐलान कर दिया है और एक से ट्रेड से कुछ समय के लिए स्‍थगित कर दिया है।

बांग्‍लादेश में जब से सत्‍ता मोहम्‍मद यूनुस के हाथों में आई है, तब से ही उसका झुकाव पाकिस्‍तान और चीन की ओर बढ़ता ही जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने जमीनी बंदरगाहों के माध्यम से भारत से होने वाले कच्चे धागे के आयात को निलंबित कर दिया है। बांग्लादेश के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के आदेश के बाद अब बेनापोल, भोमरा, सोनमस्जिद, बंग्लाबांदा और बुरीमारी भूमि बंदरगाहों के माध्यम से कच्चे धागे के आयात की अनुमति नहीं होगी। ये बंदरगाह भारत से कच्चे धागे के आयात के प्राथमिक प्रवेश बिंदु थे।

फैसले के पीछे बांग्लादेश ने बताई ये वजह

बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट ढाका ट्रिब्यून ने एनबीआर के हवाले से बताया कि भूमि बंदरगाहों के माध्यम से अब धागे का आयात नहीं किया जा सकता है। हालांकि, समुद्र या अन्य मार्गों के माध्यम से आयात की अनुमति अभी भी दी जाएगी। इस साल फरवरी में बांग्लादेश टेक्सटाइल्स मिल्स एसोसिएशन ने सरकार के जमीनी रास्तों से भारत से धागे का आयात रोकने का आग्रह किया था।

आयात रोकने के लिए तर्क दिया गया था कि सस्ता भारतीय सूत स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बाद मार्च में बांग्लादेश व्यापार और टैरिफ आयोग ने घरेलू कपड़ा उद्योग की रक्षा के लिए जमीनी बंदरगाह आयात को अस्थायी रूप से निलंबित करने की सिफारिश की।

टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री में यूनूस को लेकर नाराजगी

वहीं, बांग्‍लादेश टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री ने यूनूस के इन कदमों को ‘आत्‍मघाती’ बताया है और वे बांग्‍लादेश सरकार से खासे नाराज हैं। भारत से धागा की आपूर्ति बाधित होने से छोटे और मध्यम आकार की गारमेंट कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि ये इकाइयां मुख्य रूप से भारतीय यार्न पर निर्भर रहती हैं। सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश ने भारतीय धागा पर बैन का फैसला इसलिए लिया है ताकि पाकिस्‍तान से ज्‍यादा यार्न बांग्‍लादेश आ सके। सरकार के इस फैसले से पाकिस्‍तान को तो भले ही फायदा हो जाए, बांग्‍लादेश को नुकसान ही नुकसान है क्‍योंकि भारतीय धागा के मुकाबले पाकिस्‍तानी धागा महंगा है। यूनूस का यह कदम भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संबंधों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जो आखिरकार बांग्‍लादेश के लिए ही घातक साबित होगा।

भारत ने बांग्लादेश से ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ली

पिछले कुछ महीनों से भारत और बांग्लादेश आमने-सामने हैं। हालांकि, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाकात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी।

लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली। इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था।

मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर को लेकर दिया था बयान

दरअसल, भारत ने ये फैसला मोहम्मद यूनुस के एक बयान के बाद लिया था। मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे। इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था। मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था। यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाके का अभिभावक है। मोहम्मद यूनुस ने कहा था, भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं। इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है। इस इलाके के अभिभावक हम हैं। चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं। चीन यहाँ कई चीजें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है।

बांग्लादेश की पूर्वोत्तर पर बुरी नजर

बता दें कि पूर्वोत्तर भारत दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहा है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है। भारत का यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है।

करीब आ रहे भारत के दो ‘दुश्मन’, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच 15 साल बाद फिर वार्ता शुरू

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बांग्लादेश से शेख हसीना शासन के पतन के बाद पाकिस्तान से इसकी नजदीकी तेजी से बढ़ रही है। अब करीब 15 साल बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के टॉप डिप्लोमैट्स एक ही टेबल पर आमने-सामने बैठने वाले है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गुरुवार 17 अप्रैल को ढाका में विदेश सचिव स्तर की विदेश कार्यालय परामर्श आयोजित होने जा रही है। इसके लिए पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच इस्लामाबाद के प्रतिनिधिमंडल के साथ बुधवार को ढाका पहुंच चुकीं हैं।

दोनों देशों के बीच आखिरी फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन की बैठक 2010 में हुई थी। बांग्लादेश की तरफ से विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन राज्य अतिथि गृह पद्मा में होने वाली इस बैठक का नेतृत्व करेंगे। विदेश मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि बैठक के लिए कोई खास एजेंडा तय नहीं किया है, लेकिन चर्चा के दौरान आपसी हितों के सभी क्षेत्रों को शामिल किए जाने की संभावना है। अधिकारी ने बताया कि इतने लंबे समय के बाद हो रही वार्ता में पहले से विषयों को प्राथमिकता देना मुश्किल है, लेकिन वार्ता व्यापक होगी।

ये मीटिंग ऐसे वक्त में होने जा रही है जब भारत बांग्लादेश के रिश्ते पहले जैसे मजबूत नहीं रहे हैं। अब डेढ़ दशक बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान ऐसा कुछ करने जा रहे हैं, जो भारत की टेंशन बढ़ाएगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने रिश्तों को नई दिशा देने की तैयारी में हैं। चर्चा है कि इस दौरे के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार भी ढाका आ सकते हैं जो कि 2012 के बाद किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का पहला बांग्लादेश दौरा होगा।

विदेश सचिव स्तर की बैठक के अलावा पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार इस महीने के अंत में ढाका का दौरा करने वाले हैं। 2012 के बाद यह किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की पहली बांग्लादेश यात्रा होगी। विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, हम अभी तारीख तय कर रहे हैं, लेकिन यात्रा अप्रैल के अंतिम सप्ताह में होने की संभावना है।

अब बांग्लादेश की बारी, गंगा संधि की समीक्षा की तैयारी मे मोदी सरकार, पड़ोसी देश पर डाला दबाव

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भारत को पड़ोसी देश उसे आंखे दिखाने से बाज नहीं आ रहे। ऐसे में भारत सरकार ने भी इनपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु समझौते को निलंबित कर दिया है। अब मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि पर फिर से बातचीत करने का फैसला किया है।

बांग्लादेश को पहुंचाया संदेश

भारत ने बांग्लादेश के साथ भी गंगा जल संधि पर फिर दोबारा विचार शुरू कर दिया है। बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि की मियाद अगले साल ही पूरी होने वाली है। ऐसे में भारत ने अभी से बांग्लादेश को यह संदेश पहुंचा दिया है कि उसे अपनी जरूरत पूरा करने लिए और पानी चाहिए। भारत ने अपने समकक्ष को बताया है कि उसे अपनी विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता है।

छोटी अवधी के लिए हो सकती है नई संधि

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अगर संधि बढ़ी भी तो पहली जितनी लंबी अवधि के लिए नहीं होगी। नई संधि संभवतः छोटी अवधि की होगी, जो 10 से 15 वर्ष तक चलेगी। छोटी अवधि दोनों देशों के लिए आगे बढ़ने में लचीलापन और अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देगी।

बता दें कि गंगा जल संधि पर 12 दिसम्बर 1996 को हस्ताक्षर किये गये थे, जिसमें जल बंटवारे, विशेष रूप से कम वर्षा वाले मौसम में फरक्का बैराज के आसपास जल बंटवारे पर जोर दिया गया था।

पहलगाम हमले के बाद स्थिति बदली

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि पहले सरकार गंगा जल संधि को पहले की तरह 30 साल के लिए बढ़ाना चाहती थी। लेकिन, पहलगाम की घटना के बाद स्थिति बदल गई। मई में बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ एक बैठक हुई थी। अधिकारी ने कहा कि यह एक सामान्य बैठक थी, जो साल में दो बार होती है। इस बैठक में भारत ने अपने लिए पानी की जरूरत के बारे में बताया।

कैसे होता है गंगा जल संधि के तहत पानी का बंटवारा

1996 की गंगा जल संधि के अनुसार अगर फरक्का में पानी की उपलब्धता 70,000 क्यूसेक या उससे कम रहती है, तो दोनों देशों को आधा-आधा पानी मिलता है। लेकिन, अगर यह उपलब्धता 70,000 क्यूसेक से 75,000 क्यूसेक के बीच होता है तो बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक और भारत को बाकी हिस्सा मिलता है। लेकिन, अगर पानी की उपलब्धता 75,000 क्यूसेक या उससे भी ज्यादा होता है तो भारत उसका 40,000 क्यूसेक हिस्सा इस्तेमाल कर सकता है और बाकी प्रवाह बांग्लादेश को जाता है

ऑपरेशन सिंदूर के बाद अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों पर एक्शन, वापस भेजे गए 2000 से ज्यादा लोग

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ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद से 2000 से ज़्यादा अवैध प्रवासियों को बांग्लादेश वापस भेजा गया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देश में छुपे बैठे अवैध प्रवासियों पर एक्शन शुरू हुआ। गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, असम आदि राज्यों ने इस अभियान को आगे बढ़ाया और अप्रवासियों की पहचान कर वापस उनके देश भेजा गया। इस दौरान अब तक लगभग 2000 से अधिक अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को सीमा पार कर उनके देश भेज दिया गया है।

इन राज्यों से भेजे गए अवैध प्रवासी

भारत सरकार ने देश में रह रहे अवैध प्रवासियों को वापस बांग्लादेश भेजने का अभियान चलाया है। इस अभियान की शुरुआत गुजरात से हुई, जहां सबसे पहले बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा गया। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, असम, महाराष्ट्र और राजस्थान ने भी इस अभियान को आगे बढ़ाया। इन सभी राज्यों ने मिलकर बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजा।

'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद कार्यवाई में तेजी

रिपोर्ट के मुताबिक, संबंधित अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो यह एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद इसमें तेजी दिखी है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीमा पार अपने देश वापस जाने वाले अधिकतर प्रवासियों ने खुद से ही यह फैसला लिया है, जिसका कारण कार्रवाई का डर बताया जा रहा है।अवैध बांग्लादेशियों को उनके दस्तावेजों के सत्यापन के बाद वापस भेजा गया है।

इस तरह बांग्लादेश भेजे जा रहे अवैध बांग्लादेशी

सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। अवैध प्रवासियों की वजह से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए उन्हें वापस भेजना ज़रूरी है। सरकार यह भी सुनिश्चित कर रही है कि इस प्रक्रिया में किसी के साथ भी गलत व्यवहार न हो। सभी नियमों और कानूनों का पालन किया जा रहा है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख बने रहेंगे मोहम्मद यूनुस, इमरजेंसी मीटिंग के बाद “यूटर्न

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस अपने पद पर बने रहेंगे।बांग्लादेश के अंतरिम मुखिया मोहम्मद यूनुस के इस्तीफे की अटकलों के बीच बुलाई गई आपात बैठक के बाद ये साफ हो गया है कि यूनुस फिलहाल अपने पद पर बने रहेंगे। उनके मंत्रिमंडल के एक सलाहकार ने शनिवार को यह जानकारी दी। दो दिन पहले यूनुस के एक प्रमुख सहयोगी ने कहा था कि वह इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं। अब उन्होंने इसे पूरी तरह से नकार दिया है।

शनिवार को सलाहकार परिषद की एक गैर-निर्धारित बैठक के बाद योजना सलाहकार वहीदुद्दीन महमूद ने कहा कि यूनुस ने यह नहीं कहा था कि वह पद छोड़ देंगे। उन्होंने कहा था कि हमें सौंपे गए काम और जिम्मेदारियों को पूरा करने में कई बाधाएं आ रही हैं, लेकिन हम उन पर काबू पाने की कोशिश रहे हैं। वहीदुद्दीन महमूद ने आगे कहा- वे निश्चित रूप से बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोई भी सलाहकार कहीं नहीं जा रहा है क्योंकि हमें सौंपी गई जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है; हम इस कर्तव्य को नहीं छोड़ सकते। यह बयान ऐसे समय आया है जब यूनुस के इस्तीफे की अटकलें दो दिन पहले सामने आई थीं।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने शनिवार को अपने प्रशासन, राजनीतिक दलों और सेना के बीच बढ़ती असहजता की समीक्षा के लिए सलाहकार परिषद की एक बैठक बुलाई थी। इससे पहले यूनुस ने मुख्य सलाहकार के पद से हटने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने बदलाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण काम करने में आ रहीं परेशानियों का हवाला दिया था।

देश की राजनीति इस समय अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार को सत्ता से हटाए जाने के बाद से हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। विरोधी पार्टियों, छात्र संगठनों और ट्रेड यूनियनों ने पिछले कुछ दिनों में ढाका की सड़कों पर प्रदर्शन तेज कर दिया है। यूनुस की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को भंग कर दिया है और उसके कई वरिष्ठ नेताओं को जेल भेज दिया है। इधर बीएनपी की मांग है कि जल्द से जल्द चुनाव की तारीख घोषित की जाए। पार्टी ने इस सप्ताह बड़े प्रदर्शन भी किए हैं। साथ ही, उन्होंने कैबिनेट से छात्र प्रतिनिधियों को हटाने की मांग की है, जबकि एनसीपी ने दो सलाहकारों को हटाने की बात कही है, जिन पर बीएनपी के हित में काम करने का आरोप है।

बांग्लादेश में फिर होगा तख्तापलट! जानें मोहम्मद यूनुस के सामने कैसे बढ़ा संकट

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बांग्लादेश एक बार फिर बड़े राजनीतिक संकट की ओर बढ़ रहा है। 9 महीने बाद ही देश में फिर पहले ही वाले हालात पैदा हो गए हैं। दरअसल, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस जो वहां अंतरिम सरकार चला रहे हैं, उन्होंने इस्तीफे का संकेत दे दिया है। जिसका कारण राजनीतिक दलों में आपसी मतभेद, सुधारों में रुकावट और जनता का बढ़ता गुस्सा बताया जा रहा है। इस बीच अंतरिम सरकार के मुखिया और सेना के बीच तनाव की खबरें भी सुर्खियां बटोर रही हैं। ऐसे में बांग्लादेश मे एक बार फिर सत्ता परिवर्तन और तख्तापलट को लेकर अटकलें लगने लगी है।

पिछले साल अगस्त में शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भारत भागना पड़ा था। इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया। लेकिन अब यूनुस चारों ओर से घिरते नजर आ रहे हैं। सेना, विपक्षी दल जैसे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, और यहां तक कि उनके अपने समर्थक भी उनसे नाखुश हैं।

इस बीच यूनुस ने एक बैठक में कहा, मैं बंधक जैसा महसूस कर रहा हूं। बिना राजनीतिक समर्थन के इस पद पर रहने का कोई मतलब नहीं।

यूनुस के इस्तीफे की खबरें उस समय आई हैं जब सेना और अंतरिम सरकार के बीच भी तनाव की खबरें सामने आई हैं। खासकर दो मुद्दों पर मतभेद है – पहला चुनाव की समयसीमा – सेना चाहती है कि चुनाव दिसंबर तक हो जाएं। दूसरा म्यांमार के रखाइन राज्य में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर – सेना को इस पर आपत्ति है। तीन दिन पहले सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने नौसेना और वायुसेना प्रमुखों के साथ मिलकर यूनुस से मुलाकात की और चुनाव की समयसीमा तय करने की बात दोहराई। 

अगली सुबह सेना प्रमुख ने एक बैठक में कहा कि कई अहम फैसलों की जानकारी उन्हें नहीं दी गई, जिससे यह संकेत मिला कि सेना अपनी स्थिति मजबूत कर रही है।सेना प्रमुख की कड़ी टिप्पणी के बाद अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और छात्रों की नवगठित नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता नाहिद इस्लाम के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। नाहिद ने बताया कि मोहम्मद यूनुस ने इस्तीफा देने की पेशकश की है। इसके बाद राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की तरफ कई बयान दिए गए, जिसमें यूनुस से इस्तीफा न देने का अनुरोध किया गया। इसके साथ ही सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की गई।

भारत के नए एक्शन से बांग्लादेश पर कितना होगा असर?

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भारत सरकार ने बांग्लादेश से आने वाले कई अहम उत्पादों के आयात पर नई पाबंदियां लगा दी है। नए नियमों के अनुसार, बांग्लादेश से आने वाले कुछ खास सामान जैसे रेडीमेड कपड़े, प्रोसेस्ड फूड और प्लास्टिक के सामान अब कुछ खास समुद्री बंदरगाहों से ही भारत में आ सकेंगे। कुछ सामान को तो जमीनी रास्तों से पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। इससे पहले, पिछले महीने की शुरुआत में भारत ने बांग्लादेश को दी गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा भी वापस ले ली थी। इस कदम से बांग्लादेश की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ने की संभावना है।

770 मिलियन डॉलर के आयात पर प्रतिबंध

भारत सरकार के नए आदेश के तहत बांग्लादेश से होने वाले 770 मिलियन डॉलर के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह आंकड़ा दोनों देशों के द्विपक्षीय आयात का लगभग 42 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक़, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत और बांग्लादेश के बीच कुल 14 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। इस दौरान बांग्लादेश ने भारत को लगभग 1.97 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया। बांग्लादेश का सबसे बड़ा निर्यात उत्पाद रेडीमेड गारमेंट है। आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश की कुल निर्यात आय का लगभग 83 प्रतिशत हिस्सा रेडीमेड गारमेंट्स से आता है।

बांग्लादेश से भारत आने वाले रेडीमेड गारमेंट्स की कुल अनुमानित क़ीमत 618 मिलियन डॉलर है। अब ये कपड़े केवल कोलकाता और न्हावा शेवा की बंदरगाहों के ज़रिए ही भारत में आ सकेंगे।

नए प्रतिबंधों का बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?

गारमेंट इंडस्ट्री- पिछले साल, बांग्लादेश से भारत में रेडीमेड गारमेंट्स का एक्सपोर्ट 700 मिलियन डॉलर (करीब 6,000 करोड़ रुपए) का था। इनमें से 93% रेडीमेड गारमेंट एक्सपोर्ट भारत के लैंड रूट्स के जरिए हुए। समुद्री रास्ते पर शिफ्ट होने से शिपिंग कॉस्ट 20-30% बढ़ जाएगी, जिससे ये प्रोडक्ट कम कॉम्पिटिटिव होंगे।

ट्रेड घट जाएगा- इन प्रतिबंधों से बांग्लादेश का भारत के लिए 2 बिलियन डॉलर (करीब 17 हजार करोड़ रुपए) का एक्सपोर्ट मार्केट 15-20% तक कम हो सकता है। इससे उसका व्यापार घाटा बढ़ जाएगा। गारमेंट, फूड प्रोसेसिंग, और लॉजिस्टिक्स सेक्टर में हजारों नौकरियां खतरे में आ सकती है।

आर्थिक दबाव- विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और टका के अवमूल्यन के बीच, एक्सपोर्ट कॉस्ट बढ़ने से बांग्लादेश के पेमेंट बैलेंस पर और प्रेशर आएगा। वहीं, सख्त नियमों के कारण छोटे और मध्यम उद्यमों की कॉम्पिटिटिवनेस कम होगी।

बांग्लादेश पर कौन से नए आयात प्रतिबंध लगाए हैं?

जवाब: भारत ने बांग्लादेश से कई उपभोक्ता सामानों के आयात पर लैंड बॉर्डर के माध्यम से रोक लगा दी है। इनमें शामिल हैं:

• शर्ट, पैंट, टी-शर्ट जैसे रेडीमेड गारमेंट्स

• बिस्किट, चिप्स, कनफेक्शनरी, स्नैक्स प्रोसेस्ड फूड आइटम

• कार्बोनेटेड और एनर्जी ड्रिंक्स

• बाल्टी, खिलौने, कुर्सियां जैसे प्लास्टिक उत्पाद

• कॉटन वेस्ट और इंडस्ट्रियल ग्रेड कॉटन बाय प्रोडक्ट

• सोफा, बेड, टेबल, कुर्सियां जैसे लकड़ी के फर्नीचर

ये सामान अब नॉर्थ-ईस्ट (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) और पश्चिम बंगाल के लैंड कस्टम स्टेशनों या इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट्स जैसे पेट्रापोल (पश्चिम बंगाल), सुतरकंडी (असम), या डॉकी (मेघालय) जैसे लैंड पोर्ट्स के माध्यम से भारत में प्रवेश नहीं कर सकते। इसके बजाय, बांग्लादेश को मुंबई के नवा शेवा पोर्ट या कोलकाता के श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट के माध्यम से समुद्री रास्ते का उपयोग करना होगा।

हालांकि, कुछ आवश्यक वस्तुओं जैसे मछली और समुद्री भोजन, एलपीजी, एडिबल ऑयल और क्रस्ट स्टोन पर ये प्रतिबंध लागू नहीं होंगे। साथ ही, नेपाल और भूटान को बांग्लादेश के माध्यम से भेजे जाने वाले सामान पर भी कोई रोक नहीं लगाई गई है, क्योंकि भारत इन देशों के साथ फ्रेंडली रिलेशन बनाए रखना चाहता है।

भारत-पाकिस्तान टेंशन के बीच पूर्वोत्तर पर बांग्लादेश की बुरी नजर, पूर्व सैन्य अधिकारी का दुस्साहस!

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद से भारत लगातार पाकिस्तान की गीदड़भभकी सुन रहा है। हालांकि, भारत चुप नहीं बैठा है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार लगातार एक के बाद एक कार्रवाई कर रही है ताकि आतंक को पालने वाले जिन्ना के मुल्क पर नकेल कसी जा सके। भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के से हालात बने हुए हैं। इस बीच एक और पड़ोसी देश ने उस जंग में हाथ सेंकने का काम किया है।बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि अगर नई दिल्ली पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू करता है तो ढाका को चीन की मदद से भारत के पूर्वोत्तर पर कब्जा कर लेना चाहिए।

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के एक अधिकारी और एक रिटायर्ड बांग्लादेशी मेजर जनरल एएलएम फजलुर रहमान ने विवाद खड़ा करने वाला बयान दिया है। फजलुर रहमान ने कहा है कि अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान पर हमला करता है तो बांग्लादेश को भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए।

चीन के साथ सैन्य व्यवस्था बनाने की कही बात

पूर्व जनरल ने कहा कि मुझे लगता है कि चीन के साथ संयुक्त सैन्य व्यवस्था पर चर्चा शुरू करना आवश्यक है। फजलुर रहमान ने सोशल मीडिया पोस्ट में यह टिप्पणी की है। एक फेसबुक पोस्ट में रहमान ने कहा, अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को पूर्वोत्तर के सात राज्यों पर कब्जा करना चाहिए। इस संबंध में मुझे लगता है कि चीन के साथ एक संयुक्त सैन्य प्रणाली पर चर्चा शुरू करना आवश्यक है। बांग्लादेश की तरफ से यह भड़काऊ टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव चरम पर है। नियंत्रण रेखा पर पिछले कई दिनों से गोलीबारी चल रही है।

बयान को हल्‍के में नहीं लिया जा सकता

बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के प्रमुख रहे रहमान बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस का करीबी हैं। चीन दौरे के दौरान यूनुस ने नॉर्थ ईस्‍ट भारत के लिए खुद को इस क्षेत्र का रहनुमा करार देकर सनसनी मचा दी थी। ऐसे में रहमान के बयान को हल्‍के में नहीं लिया जा सकता।

दरअसल, शेख हसीना सरकार के भारत से अच्‍छे संबंध थे लेकिन तख्‍तापलट के बाद बांग्‍लादेश में इस वक्‍त भारत विरोधी ताकतों ने पैर पसारा हुआ है। बांग्‍लादेश में लगातार हिन्‍दुओं पर हमले हो रहे हैं। हसीना को वापस लाने के लिए बांग्‍लादेश भारत के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट तक जा पहुंचा है। इतना ही नहीं बॉर्डर पर भी दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

बांग्लादेश के हिंदू संत चिन्मय दास को मिली जमानत, देशद्रोह के आरोप में जेल में थे बंद*

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बांग्लादेश के ढाका हाईकोर्ट ने जेल में बंद हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को बुधवार को जमानत दे दी। चिन्मय दास पिछले 5 महीनों से देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार ने इसकी पुष्टि की है। द डेली स्टार ने चिन्मय दास के वकील के हवाले से बताया है कि अभी चिन्मय की रिहाई तय नहीं हुई है। अगर बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक नहीं लगाता है तो चिन्मय को रिहा कर दिया जाएगा।

हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों के विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व

इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर 2024 को बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया था। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले साधु चिन्मय कृष्ण दास को ढाका पुलिस की जासूसी शाखा ने 25 नवंबर को ढाका हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया था। उन पर देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे "न्यायिक उत्पीड़न" करार दिया था। भारत ने भी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी पर बांग्लादेश के सामने कड़ा विरोध दर्ज कराया था।

चिन्मय पर देशद्रोह का मामला क्यों दर्ज हुआ?

25 अक्टूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में नातन जागरण मंच ने 8 सूत्री मांगों को लेकर एक रैली की थी। इसे चिन्मय कृष्ण दास ने भी संबोधित किया था। इस दौरान न्यू मार्केट चौक पर कुछ लोगों ने आजादी स्तंभ पर भगवा ध्वज फहराया था। इस ध्वज पर आमी सनातनी लिखा हुआ था।

रैली के बाद 31 अक्टूबर को बेगम खालिदा जिया की बीएनपी पार्टी के नेता फिरोज खान ने चिन्मय कृष्ण दास समेत 19 लोगों के खिलाफ चटगांव में राजद्रोह का केस दर्ज कराया था। उन पर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप है

जेल में बीमार और पीड़ित थे

इस्कॉन और अन्य हिंदू संगठनों द्वारा उनकी गिरफ्तारी की व्यापक निंदा किए जाने के बाद उनकी जमानत याचिका कई बार खारिज की गई। उन्हें 26 नवंबर को जेल भेज दिया गया और 11 दिसंबर को उनकी याचिका खारिज कर दी गई। ऐसी भी खबरें थीं कि वह गंभीर रूप से बीमार थे और जेल में उनका उचित इलाज नहीं किया गया।चिन्मय दास के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने आरोप लगाया था कि उनके मुवक्किल बिना किसी सुनवाई के कारावास के दौरान बीमार और पीड़ित थे।

बंगाल हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी से भड़का भारत, अल्पसंख्यकों को लेकर दो टूक

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों भड़की हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी को लेकर विदेश मंत्रालय ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेश को इस घटना पर कोई टिप्पणी करने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। साथ ही बांग्लादेश को हमारे घरेलू मसलों पर गैर-जरूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा, हम पश्चिम बंगाल की घटनाओं के संबंध में बांग्लादेश की टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं। यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी उत्पीड़न पर भारत की चिंताओं के साथ तुलना करने का एक छिपा हुआ और कपटपूर्ण प्रयास है, जहां इस तरह के कृत्यों के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। अनुचित टिप्पणियां करने और सद्गुणों का प्रदर्शन करने के बजाय, बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत को मुस्लिमों पर दिया था ज्ञान

इससे पहले बांग्लादेश ने भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को लेकर बयान दिया है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी शफीकुल आलम ने नई दिल्ली से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आग्रह किया था। बृहस्पतिवार को विदेश सेवा अकादमी में एक प्रेस वार्ता के दौरान आलम ने कहा, हम मुर्शिदाबाद सांप्रदायिक हिंसा में बांग्लादेश को शामिल करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से खंडन करते हैं। आलम ने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने मुसलमानों पर हमलों की निंदा की है, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, हम भारत और पश्चिम बंगाल सरकार से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आग्रह करते हैं।

मुर्शिदाबाद हिंसा में भूमिका

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में भारत सरकार के वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा के बाद इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई है। अब तक 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में कथित तौर पर हिंसा में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों की संलिप्तता का संकेत मिला है।

बदला लेने की कोशिश में बांग्लादेश ने अपने पैर में मारी कुल्हाड़ी, भारत से जमीनी मार्ग से कच्चे धागे के आयात पर रोक

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भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में बीते कुछ समय से तनातनी देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच का तनाव अब व्यापार को भी प्रभावित करता दिख रहा है। बांग्लादेश ने भारत के साथ लैंड बॉर्डर ट्रेड को प्रभावित करने वाले कई कदम उठाए हैं।बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है। यही नहीं, बांग्लादेश ने भारत के साथ तीन लैंड पोर्ट से व्‍यापार बंद करने का ऐलान कर दिया है और एक से ट्रेड से कुछ समय के लिए स्‍थगित कर दिया है।

बांग्‍लादेश में जब से सत्‍ता मोहम्‍मद यूनुस के हाथों में आई है, तब से ही उसका झुकाव पाकिस्‍तान और चीन की ओर बढ़ता ही जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने जमीनी बंदरगाहों के माध्यम से भारत से होने वाले कच्चे धागे के आयात को निलंबित कर दिया है। बांग्लादेश के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के आदेश के बाद अब बेनापोल, भोमरा, सोनमस्जिद, बंग्लाबांदा और बुरीमारी भूमि बंदरगाहों के माध्यम से कच्चे धागे के आयात की अनुमति नहीं होगी। ये बंदरगाह भारत से कच्चे धागे के आयात के प्राथमिक प्रवेश बिंदु थे।

फैसले के पीछे बांग्लादेश ने बताई ये वजह

बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट ढाका ट्रिब्यून ने एनबीआर के हवाले से बताया कि भूमि बंदरगाहों के माध्यम से अब धागे का आयात नहीं किया जा सकता है। हालांकि, समुद्र या अन्य मार्गों के माध्यम से आयात की अनुमति अभी भी दी जाएगी। इस साल फरवरी में बांग्लादेश टेक्सटाइल्स मिल्स एसोसिएशन ने सरकार के जमीनी रास्तों से भारत से धागे का आयात रोकने का आग्रह किया था।

आयात रोकने के लिए तर्क दिया गया था कि सस्ता भारतीय सूत स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बाद मार्च में बांग्लादेश व्यापार और टैरिफ आयोग ने घरेलू कपड़ा उद्योग की रक्षा के लिए जमीनी बंदरगाह आयात को अस्थायी रूप से निलंबित करने की सिफारिश की।

टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री में यूनूस को लेकर नाराजगी

वहीं, बांग्‍लादेश टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री ने यूनूस के इन कदमों को ‘आत्‍मघाती’ बताया है और वे बांग्‍लादेश सरकार से खासे नाराज हैं। भारत से धागा की आपूर्ति बाधित होने से छोटे और मध्यम आकार की गारमेंट कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि ये इकाइयां मुख्य रूप से भारतीय यार्न पर निर्भर रहती हैं। सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश ने भारतीय धागा पर बैन का फैसला इसलिए लिया है ताकि पाकिस्‍तान से ज्‍यादा यार्न बांग्‍लादेश आ सके। सरकार के इस फैसले से पाकिस्‍तान को तो भले ही फायदा हो जाए, बांग्‍लादेश को नुकसान ही नुकसान है क्‍योंकि भारतीय धागा के मुकाबले पाकिस्‍तानी धागा महंगा है। यूनूस का यह कदम भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संबंधों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जो आखिरकार बांग्‍लादेश के लिए ही घातक साबित होगा।

भारत ने बांग्लादेश से ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ली

पिछले कुछ महीनों से भारत और बांग्लादेश आमने-सामने हैं। हालांकि, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाकात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी।

लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली। इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था।

मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर को लेकर दिया था बयान

दरअसल, भारत ने ये फैसला मोहम्मद यूनुस के एक बयान के बाद लिया था। मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे। इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था। मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था। यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाके का अभिभावक है। मोहम्मद यूनुस ने कहा था, भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं। इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है। इस इलाके के अभिभावक हम हैं। चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं। चीन यहाँ कई चीजें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है।

बांग्लादेश की पूर्वोत्तर पर बुरी नजर

बता दें कि पूर्वोत्तर भारत दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहा है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है। भारत का यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है।

करीब आ रहे भारत के दो ‘दुश्मन’, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच 15 साल बाद फिर वार्ता शुरू

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बांग्लादेश से शेख हसीना शासन के पतन के बाद पाकिस्तान से इसकी नजदीकी तेजी से बढ़ रही है। अब करीब 15 साल बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के टॉप डिप्लोमैट्स एक ही टेबल पर आमने-सामने बैठने वाले है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गुरुवार 17 अप्रैल को ढाका में विदेश सचिव स्तर की विदेश कार्यालय परामर्श आयोजित होने जा रही है। इसके लिए पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच इस्लामाबाद के प्रतिनिधिमंडल के साथ बुधवार को ढाका पहुंच चुकीं हैं।

दोनों देशों के बीच आखिरी फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन की बैठक 2010 में हुई थी। बांग्लादेश की तरफ से विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन राज्य अतिथि गृह पद्मा में होने वाली इस बैठक का नेतृत्व करेंगे। विदेश मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि बैठक के लिए कोई खास एजेंडा तय नहीं किया है, लेकिन चर्चा के दौरान आपसी हितों के सभी क्षेत्रों को शामिल किए जाने की संभावना है। अधिकारी ने बताया कि इतने लंबे समय के बाद हो रही वार्ता में पहले से विषयों को प्राथमिकता देना मुश्किल है, लेकिन वार्ता व्यापक होगी।

ये मीटिंग ऐसे वक्त में होने जा रही है जब भारत बांग्लादेश के रिश्ते पहले जैसे मजबूत नहीं रहे हैं। अब डेढ़ दशक बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान ऐसा कुछ करने जा रहे हैं, जो भारत की टेंशन बढ़ाएगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने रिश्तों को नई दिशा देने की तैयारी में हैं। चर्चा है कि इस दौरे के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार भी ढाका आ सकते हैं जो कि 2012 के बाद किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का पहला बांग्लादेश दौरा होगा।

विदेश सचिव स्तर की बैठक के अलावा पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार इस महीने के अंत में ढाका का दौरा करने वाले हैं। 2012 के बाद यह किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की पहली बांग्लादेश यात्रा होगी। विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, हम अभी तारीख तय कर रहे हैं, लेकिन यात्रा अप्रैल के अंतिम सप्ताह में होने की संभावना है।