आरएसएस में होगा NRC पर मंथन, पांच साल से मोदी सरकार की चुप्पी का क्या?
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की कर्नाटक के बेंगलुरु में बड़ी बैठक होली के बाद होने जा रही है। आरएसएस की सर्वोच्च निर्णायक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की वार्षिक बैठक तीन दिनों तक चलेगी। इस बैठक में आरएसएस के 100 साल के कार्य विस्तार की समीक्षा के साथ-साथ आगामी 100 सालों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों, आयोजन और अभियानों की रूपरेखा तैयार की जाएगी। यही नहीं संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आगामी राज्यों के चुनाव का फुलप्रूफ प्लान तैयार किया जा सकता है। इसके अलावा मुख्य एजेंडे में एनआरसी शामिल होने की संभावना है। सूत्रों ने बताया कि एबीपीएस पूरे भारत में एनआरसी के लागू करने पर चर्चा कर सकती है। साथ ही, कुछ राज्यों में इसे कैसे लागू किया जाए, इस पर भी विचार-विमर्श हो सकता है।
2019 में केन्द्र की मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन बिल पास करवाया था। जिसके बाद पूरे देश में एनआरसी को लेकर विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद विरोध को थामने के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी को आगे आना पड़ा था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर, 2019 को दिल्ली की एक जनसभा में कहा था कि उनकी सरकार ने सत्ता में वापसी के बाद से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर कोई चर्चा नहीं की है। तब से लेकर अब तक इस मुद्दे पर बात नहीं हुई है। हालांकि, यह मुद्दा अब राष्ट्रीय राजनीतिक चर्चा में फिर से उभरता दिख रहा है।
संघ के एक पदाधिकारी ने कहा, 'घुसपैठ के कारण देश के कई राज्यों की जनसांख्यिकी बदल गई है। झारखंड में मुसलमानों की तुलना में ईसाई आबादी भी घट रही है। बांग्लादेश से आने वाले लोगों के कारण अरुणाचल प्रदेश जैसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों की जनसांख्यिकी भी तेजी से बदल रही है। हम सभी जानते हैं कि असम और पश्चिम बंगाल में क्या हुआ है। गैरकानूनी अप्रवासियों की पहचान करना और उन्हें वापस भेजना केंद्र सरकार का कर्तव्य है।'संघ पदाधिकारी के अनुसार, एबीपीएस इस बात पर चर्चा करेगा कि एनआरसी को कैसे लागू किया जाए ताकि किसी भी 'भारतीय नागरिक' को खतरा महसूस न हो।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शिखर सम्मेलन आरएसएस की सबसे महत्वपूर्ण बैठक है। इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत और दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय होसबले समेत सभी शीर्ष नेता उपस्थित रहेंगे। साथ ही, भाजपा अध्यक्ष और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी बैठक में शामिल हो सकते हैं। चर्चा किए गए मुद्दे और लिए गए फैसले न केवल अगले वर्ष के लिए संघ को दिशा देते हैं बल्कि सरकार को यह भी संकेत देते हैं कि वह नीतिगत स्तर पर क्या लागू करना चाहता है।
भाजपा समेत ये संगठन होंगे शामिल
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ के 45 प्रांत के साथ-साथ सभी क्षेत्र के क्षेत्र प्रमुख, प्रांत प्रमुख मौजूद रहते हैं। इसके अतिरिक्त संघ के सभी 32 सहयोगी संगठनों के पदाधिकारी भी मौजूद रहेंगे, जिसमें विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्र सेविका समिति, जैसे सभी संगठन के पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। प्रतिवर्ष ये बैठक मार्च में होती है और हर 3 साल बाद यह बैठक चुनावी वर्ष के रूप में मानी जाती है। हर तीसरे वर्ष नागपुर में बैठक संपन्न होती है। पिछले वर्ष यह बैठक नागपुर में हुई थी और इस वर्ष यह बैठक बेंगलुरु में हो रही है।
बिहार-बंगाल चुनाव पर होगी चर्चा
इस बैठक से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बिहार दौरा काफी अहम माना जा रहा है। आरएसएस के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस बैठक में बिहार चुनाव के संबंध में भी चर्चा होगी। बिहार चुनाव से संबंधित सभी सहयोगी संगठनों को कार्य करने का दिशा निर्देश भी तय किया जाएगा। बिहार प्रवास से पहले आरएसएस के सरसंचालक मोहन भागवत पूर्वी भारत के प्रवास पर थे। 10 दिन का बंगाल प्रवास, 5 दिन का असम प्रवास, चार दिन का अरुणाचल का प्रवास, अब बिहार का प्रवास। 2026 के मार्च-अप्रैल के महीने में बंगाल का भी चुनाव होने की संभावना है। उस संबंध में भी इस बैठक में चर्चा होने की पूरी संभावना बताई जा रही है।
Mar 07 2025, 19:57