भारतीय वायुसेना होगी और ताकतवर, लड़ाकू विमानों की “फौज” बनाने की तैयारी
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भारत का पड़ोसी देश चीन लगातार अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रहा है। चीन अपनी सेना और हथियारों को अत्याधुनिक बनाने की कोशिश में जुटा है। चीन की बढ़ती ताकत सबसे पहले भारत के लिए खतरा पैदा कर सकती है। ऐसे में भारत को भी अपनी ताकत बढ़ाने की जरूरत है। इसी क्रम में भारतीय वायुसेना अपनी ताकत बढ़ाने के लिए 114 नए मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी में है।
रक्षा मंत्रालय की एक कमेटी ने इस जरूरत को सही ठहराया है। पुराने सोवियत विमानों के रिटायर होने और नए विमानों की कमी के चलते वायुसेना के स्क्वाड्रनों की संख्या घट रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए नए विमान जरूरी हैं। इसका बजट अरबों डॉलर का होगा और इसमें कई बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हिस्सा लेंगी।
भारत ने वायुसेना के 20 अरब डॉलर के मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) कार्यक्रम के तहत 114 मल्टीरोल फाइटर जेट खरीदने की भी योजना बनाई है। इस योजना के तहत विदेशी जेट विमानों को भारत में बनाने की शर्त रखी गई है, जिसमें तकनीक हस्तांतरण (ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी) की जरूरत होगी और यही इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी चुनौती है। यह प्रोजेक्ट साल 2019 से रुका हुआ है।
वायुसेना चीफ एपी सिंह ने कहा है कि नए लड़ाकू विमानों का निर्माण C-295 मॉडल पर किया जाना चाहिए। यह वही मॉडल है जिसके तहत एयरबस और टाटा मिलकर भारत में सैन्य परिवहन विमान बना रहे हैं। इसी तरह, कोई भी विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी के साथ साझेदारी कर इन लड़ाकू विमानों को भारत में बनाएगी। इससे भारतीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और तकनीकी क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी।
भारत सरकार और फ्रांस सरकार के बीच राफेल विमानों की खरीद पर हुई अलोचना के बाद, अब भारतीय सरकार चाहती है कि यह डील पूरी तरह पारदर्शी और बिना किसी विवाद के हो। इस डील के लिए पांच जेट विमान दौड़ में है, जिनमें राफेल सबसे आगे है क्योंकि यह पहले से ही भारतीय वायुसेना में इस्तेमाल हो रहा है।
इस सौदे में बोइंग (F/A 18 सुपर हॉर्नेट), लॉकहीड मार्टिन (F 21), डसॉल्ट (राफेल) और साब (ग्रिपेन) जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हो सकती हैं। इसमें से बोइंग और महिंद्रा पहले ही इस प्रोजेक्ट पर चर्चा कर चुके हैं। वहीं, लॉकहीड मार्टिन टाटा के साथ मिलकर काम कर सकती है। हालांकि, इसका F-35 विमान इस दौड़ में शामिल नहीं होगा, क्योंकि भारत चाहता है कि नए विमान भारत में ही बनाए जाएं और साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी हो।
जबकि फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट ने एक प्रस्ताव भेजा है कि अगर उसे 114 विमानों का ऑर्डर मिलता है, तो वह भारत में एक सहायक कंपनी बनाएगी, जो भारतीय वायुसेना के लिए और निर्यात के लिए विमान बनाएगी। स्वीडन की कंपनी 'साब' पहले अडानी डिफेंस के साथ काम कर रही थी, लेकिन अब यह समझौता दोनों के बीच समाप्त हो गया है। रूस भी अपने लड़ाकू विमान पेश करने को तैयार है, लेकिन भारतीय वायुसेना को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और उन्नत तकनीक वाले विमान चाहिए, जो चीन की चुनौती का सामना कर सकें।
Mar 07 2025, 10:06