अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावःकैसे चुना जाता है नया राष्ट्रपति, क्या है 'इलेक्टोरल कॉलेज' सिस्टम

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अमेरिका में आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं, अब से कुछ ही घंटों बाद जब अमेरिका में सुबह होगी तो लाखों करोड़ों अमेरिकी अपने-अपने मतों का इस्तेमाल करने घर से बाहर निकलेंगे। अमेरिका में महीनों से चल रही राष्ट्रपति पद की रेस का प्रचार 4 नवंबर की रात थम गया। अब इंतजार है मंगलवार की सुबह 7 बजे से शुरु होने वाले मतदान का जो तय करेगा कि व्हाइट हाउस में अगले 4 साल के लिए कौन सा चेहरा होगा। अमेरिका के दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस चुनावी मैदान में हैं। दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होनी है, लिहाजा चुनावी नतीजे भी काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं।

वोटिंग का समय क्या है?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग अलग-अलग राज्यों के स्थानीय समयानुसार सुबह 7 बजे से लेकर 9 बजे के बीच शुरू होगी। यह भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे से लेकर रात 9:30 बजे तक का समय होगा। वहीं मतदान के लिए अंतिम समय की बात करें तो ज्यादातर वोटिंग सेंटर्स शाम 6 बजे से लेकर देर रात तक जारी रह सकते हैं। यानी अमेरिका में वोटिंग खत्म होने तक भारत में अगला दिन शुरू हो जाएगा। यानी अमेरिका में मतदान भारतीय समयानुसार बुधवार की सुबह 4:30 बजे तक खत्म हो सकते हैं। कई राज्यों में यह समय और अधिक हो सकता है क्योंकि अमेरिका के राज्य कई अलग-अलग टाइम जोन में बंटे हुए हैं।

कब आएंगे नतीजे?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग खत्म होते ही मतों की गिनती शुरू हो जाएगी। काउंटिंग खत्म होने पर पॉपुलर वोट (जनता के वोट) का विजेता घोषित किया जाता है, लेकिन यह हर बार जरूरी नहीं कि जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले हैं वह वाकई में राष्ट्रपति पद का विजेता हो। क्योंकि अमेरिका में असल में राष्ट्रपति का चुनाव पॉपुलर वोट्स नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज करते हैं। इसके अलावा कई बार ऐसा भी हो सकता है कि किसी राज्य में अनुमानित विजेता घोषित किया जा रहा हो जबकि दूसरे में वोटिंग जारी हो। लिहाजा कई बार सटीक नतीजे आने में एक-दो दिन का समय लग जाता है। वहीं दिसंबर में इलेक्टर्स की वोटिंग के बाद 25 दिसंबर तक सारे इलेक्टोरल सर्टिफिकेट सीनेट के प्रेसिडेंट को सौंप दिए जाएंगे। इसके बाद 6 जनवरी, 2025 को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में इलेक्टर्स के वोटों की गिनती होगी, इसी दिन उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस सदन में विजेता के नाम का ऐलान करेंगी।

इलेक्टोरल कॉलेज क्या होते हैं?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका सबसे अहम होती है। इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका के हर राज्य के लिए तय किए गए इलेक्टर्स की संख्या है। किसी भी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए 538 में से 270 इलेक्टोरल कॉलेज जीतने होंगे। हर राज्य को यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और अमेरिकी सीनेट में उसके प्रतिनिधियों की संख्या के अनुसार ही इलेक्टर्स मिलते हैं। वर्तमान में सबसे ज्यादा 55 इलेक्टर्स कैलिफोर्निया स्टेट में हैं, वहीं सबसे कम इलेक्टर्स की संख्या 3 है, जो कि अमेरिका के वायोमिंग समेत 6 राज्यों में हैं। हालांकि सबसे ज्यादा अहमियत 7 स्विंग स्टेट्स की होती है क्योंकि ज्यादातर राज्यों की तरह इनका रुख पहले से साफ नहीं होता है और यही वजह है कि इन स्विंग स्टेट्स को प्रमुख ‘बैटल फील्ड’ माना जाता है।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

क्या होते हैं स्विंग स्टेट?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में स्विंग स्टेट्स या युद्धक्षेत्र वाले राज्य, उन राज्यों को कहा जाता है, जो चुनाव में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी, किसी भी तरफ झुक सकते हैं। अमेरिका में कई राज्य अक्सर किसी एक ही पार्टी को वोट देते आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में मुकाबला कड़ा रहता है और जिनका तय नहीं है कि वे किस तरफ जाएंगे, उन्हें ही स्विंग स्टेट कहा जाता है। इन राज्यों में दोनों पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के दौरान ज्यादा धन और समय लगाते हैं। स्विंग स्टेट की पहचान के लिए कोई परिभाषा या नियम नहीं है और चुनाव के दौरान ही इन राज्यों का निर्धारण होता है।

कनाडा के ब्रैम्पटन में मंदिर पर हुए हमले पर पहले पीएम मोदी ने सुनाया, अब एस जयशंकर बोले- ये बेहद चिंताजनक

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कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू महासभा मंदिर को खालिस्तान समर्थकों ने निशाना बनाया। हिंदू भक्तों पर भी हमला भी किया गया। हिंदू मंदिर और हिंदू समुदाय के लोगों पर खालिस्तानियों के हमले की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।कनाडा मामले पर पीएम मोदी ने पहली बार बोला और कनाडा को खूब सुनाया। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जस्टिन ट्रूडो की सरकार घेरा है।कनाडा मामले पर एस जयशंकर ने साफ कहा कि कनाडा चरमपंथी ताकतों को जगह देता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि घटना बेहद चिंताजनक है।

हिंसा के ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कमजोर नहीं कर सकते-जयशंकर

विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने मंगलवार को अपने बयान में कहा कि 'सोमवार को खालिस्तानी झंडे लिए प्रदर्शनकारियों द्वारा टोरंटो के पास कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर में की गई हिंसा 'बेहद चिंताजनक' है।' विदेश मंत्री एस जयशंकर इन दिनों ऑस्ट्रेलिया के आधिकारिक दौरे पर हैं और वहीं से उन्होंने यह बयान दिया। इसके अलावा सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में भी विदेश मंत्री ने कनाडा की घटना पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने लिखा कि 'मैं कनाडा में एक हिंदू मंदिर पर जानबूझकर किए गए हमले की कड़ी निंदा करता हूं। हमारे राजनयिकों को डराने-धमकाने के कायराना प्रयास भी उतने ही भयावह हैं। हिंसा के ऐसे कृत्य कभी भी भारत के संकल्प को कमजोर नहीं कर सकते। हम उम्मीद करते हैं कि कनाडा सरकार न्याय सुनिश्चित करेगी और कानून व्यवस्था बनाए रखेगी।'

कनाडा घटना पर पीएम मोदी ने क्या कहा?

इससे पहले कनाडा में मंदिर में हमले की पीएम मोदी ने निंदा की। पीएम मोदी ने कहा कि हिंसा के ऐसे काम भारत के संकल्प को कमजोर नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा, मैं कनाडा में एक हिंदू मंदिर पर जानबूझकर किए गए हमले की कड़ी निंदा करता हूं। हमारे राजनयिकों को डराने-धमकाने की कायरतापूर्ण कोशिशें भी उतनी ही भयावह हैं। हिंसा के ऐसे कृत्य कभी भी भारत के संकल्प को कमजोर नहीं करेंगे। हम कनाडा सरकार से न्याय सुनिश्चित करने और कानून के शासन को बनाए रखने की उम्मीद करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सख्त लहजे में ये प्रतिक्रिया दी है। इसे कायराना हरकत करार दिया है।

पीएम मोदी के बयान से कनाडा के हिन्दुओं का भी हौसला जगा है। कनाडा के ब्रैम्पटन मंदिर के पुजारी ने कहा है कि कनाडा में हिंदुओं को एकजुट होने की जरूरत है। आप एकजुट रहेंगे तो सुरक्षित बने रहेंगे। उन्होंने कहा, आज हम लोगों को अपने बारे में नहीं अपने आने वाली संतति के बारे में सोचना पड़ेगा। सबको एक होना पड़ेगा। हम किसी का विरोध नहीं करते हैं।

भारत ने हिंसा में शामिल लोगों पर कार्रवाई की उम्मीद जताई

वहीं, सोमवार को विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत कट्टरपंथियों और अलगाववादियों द्वारा की गई हिंसा की निंदा करता है और उम्मीद करता है कि हिंसा में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाया जाएगा। सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में टोरंटो के उपनगर ब्रैम्पटन में खालिस्तानियों का हिंदू मंदिर पर अटैक साफ दिख रहा है। उन्होंने झंडे के डंडे से वार मंदिर और मंदिर में मौजूद लोगों पर हमला किया। इस घटना ने कनाडा और भारत के बीच और सिख अलगाववादियों और भारतीय राजनयिकों के बीच तनाव बढ़ा दिया है।

दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, पूछा- प्रतिबंध के बाद भी क्यों फोड़े गए पटाखे

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देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक लेबल पर पहुंच गया है। बढ़ते प्रदूषण के बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखों को लेकर दिए गए आदेश का पालन नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए दिल्ली सरकार को खूब फटकार लगाई है। कोर्ट ने दिल्ली में दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। कोर्ट ने पटाखों पर बैन के बावजूद उनके इस्तेमाल पर गहरी आपत्ति जताई और पूछा कि अगले साल इस प्रतिबंध का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

पटाखों पर बैन सख्ती से क्यों लागू नहीं किया गया?

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस ओका के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय बेंच ने सवाल किया, अखबारों में बड़े पैमाने पर खबरें आ रही हैं कि पटाखों पर प्रतिबंध लागू नहीं हुआ। दिल्ली सरकार की ओर से कौन पेश हो रहा है? दिल्ली सरकार जवाब दे कि यह बैन क्यों सख्ती से लागू नहीं किया गया? इस बेंच में जस्टिस ओका के अलावा जस्टिस ऑगस्टीन मसीह भी शामिल थे

दिल्ली सरकार को नोटिस

सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमाइकस ने जिस रिपोर्ट का हवाला दिया, उससे यह बात साफ हो गई है कि इस बार प्रदूषण का स्तर अब तक के उच्चतम स्तर पर है। यहां तक कि रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ताड़ की आग भी उच्च समय पर बढ़ रही थी। हम दिल्ली सरकार को प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं।

पराली जलाने पर भी हलफनामा देने का निर्देश

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को प्रतिबंध लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में हलफनामा दायर करने का भी निर्देश देते हैं। दोनों को इस बात पर प्रकाश डालना चाहिए कि वे क्या कदम उठाने का प्रस्ताव रखते हैं ताकि अगले साल ऐसा न हो। इसमें सार्वजनिक अभियान के कदम भी शामिल होने चाहिए। अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा राज्यों द्वारा पराली जलाने के पिछले 10 दिनों के विवरण के संबंध में हलफनामा भी दायर किया जाना चाहिए।

बता दें कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। दिवाली के बाद इसमें और बढ़ोतरी हुई। कई इलाकों में एक्यूआई 400-500 के बीच दर्ज किया गया। दमघोंटू हवा का असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। इसके बाद भी प्रदूषण के स्तर पर में अभी तक कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: डोनाल्ड ट्रंप या कमला हैरिस, भारत के लिए कौन होगा बेहतर?

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अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए पांच नवंबर को वोटिंग होगी। जिसके लिए कुठ ही घंटे बचे हुए हैं।मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप के बीच है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का विश्व राजनीति और विभिन्न देशों के साथ उसके संबंधों पर गहरा असर पड़ता है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अमेरिका और भारत के संबंध मजबूत रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति पद पर इस बार किसका कब्जा होता है, इससे इन संबंधों की दिशा बदल सकती है। एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप हैं जो भारत के साथ दोस्ताना संबंधों के पक्षधर हैं और उनकी पीएम मोदी के साथ दोस्ती जगजाहिर है। तो वहीं दूसरी तरफ कमला हैरिस हैं जिनके भारतीय मूल की वजह से भारत के लोग उन्हें ज्यादा करीबी मानते हैं।

हाल के सालों में भारत-अमेरिका के रिश्तों रहे सकारात्मक

अमेरिका के चुनाव नतीजों का भारत समेत पूरी दुनिया पर असर पड़ता है। भारत के लिहाज़ से भी कई चीज़ें हमेशा इस बात पर टिकी होती हैं कि अमेरिका का भारत के लिए रुख़ कैसा है? भारत और अमेरिका के रिश्तों का इतिहास हाल के वर्षों में काफी सकारात्मक रहा है। चाहे डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल हो या वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन का, भारत के साथ संबंध लगातार मजबूत बने रहे हैं। अब अगर चुनाव के बाद व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी होती है तो पीएम मोदी के साथ मजबूत व्यक्तिगत संबंधों का लाभ दोनों देशों को मिल सकता है। अमेरिका और भारत समेत दुनिया के सामने सबसे बड़ा चुनौती चीन से है। इस मोर्चे पर, ट्रंप और बाइडन दोनों की नीतियां चीन को लेकर सख्त और यथार्थवादी रही हैं। लोगों का मानना है कि अगर कमला हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं, तो बाइडन की वर्तमान विदेश नीति जारी रह सकती है।

भारत के लिए रिपब्लिकन प्रशासन बेहतर रहा

अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों की मानें तो भारत के लिए नीतिगत स्तर पर रिपब्लिकन प्रशासन बेहतर साबित होता आया है। जितने भी बड़े इतिहास बनाने वाले समझौते हुए हैं, वो रिपब्लिकन प्रशासन के दौरान हुए हैं, लेकिन इस बार के उम्मीदवारों की बात करें, तो डोनाल्ड ट्रंप का पीएम मोदी के साथ रिश्ता अपनी जगह है। ट्रंप की व्यापार नीति में संरक्षणवाद इतना हावी है कि इससे भारत के लिए अपनी अपेक्षाओं को पूरा करना मुश्किल हो सकता है। भारत को अब अपना माल जितनी जल्दी हो सके, जितना ज़्यादा हो सके विदेशों में बेचना है उसी से भारत उन्नति कर सकता है। तो उसके रास्ते में ट्रंप का प्रशासन आता है तो बहुत बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है।

आप्रवासन नीति में भी ट्रंप की सख्ती हो सकती है चुनौती

आप्रवासन नीति में भी ट्रंप की सख्ती भारत के हितों को चुनौती देती है। वे खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करते हैं जिनसे अन्य देश डरते हैं, लेकिन उनकी अनिश्चितता के कारण भरोसे का मुद्दा भी उठता है।

भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप होगा कम

वहीं, नई दिल्ली स्थित विदेश नीति थिंक टैंक, नेटस्ट्रैट के वरिष्ठ रिसर्च फेलो डॉ. राज कुमार शर्मा की भी राय है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का मतलब भारत के आंतरिक मामलों में बहुत कम हस्तक्षेप होगा। स्पुतनिक इंडिया से बात करते हुए शर्मा ने कहा, ट्रंप को भारत के आंतरिक मुद्दों जैसे मानवाधिकार की स्थिति और देश में लोकतंत्र की स्थिति की बहुत कम परवाह है। इसकी तुलना में, वर्तमान बाइडन प्रशासन ने भारत में घरेलू मुद्दों के बारे में कुछ हालिया टिप्पणियां की हैं, जो भारत के साथ कभी भी अच्छी नहीं रहीं।

टैरिफ के मुद्दे पर खड़ी कर सकते हैं परेशानी

टैरिफ के मुद्दे पर भी ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। ट्रंप पहले भी टैरिफ के मुद्दे पर भारत की आलोचना कर चुके हैं। इसमें संदेह नहीं है कि अगर ट्रंप जीतते हैं, तो वह बड़ी संख्या में बहुत भारी टैरिफ लगाने का प्रयास करेंगे। वह किस हद तक सफल होंगे यह कांग्रेस के समर्थन पर निर्भर करेगा। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने भारतीय इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों पर आयात शुल्क भी बढ़ाया।

कश्मीर को लेकर मुखर रही हैं हैरिस

वहीं, कमला हैरिस की बात करें तो वो आधी भारतीय हैं। उनकी मां तमिलनाडु से थीं और पिता जमैका से थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हैरिस को भारतीय परंपराओं और भारतीय विश्वदृष्टिकोण की बहुत ज्यादा समझ है। कई मुद्दों पर उनके पिछले बयानों और रुख को देखते हुए, कोई यह नहीं कह सकता कि वह वास्तव में भारत समर्थक हैं। भारत ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, तो हैरिस ने कहा, “हमें कश्मीरियों को याद दिलाना होगा कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। अगर स्थिति की मांग हो तो हस्तक्षेप करने की जरूरत है।'' उन्होंने इशारों-इशारों में यहां तक कह दिया कि अमेरिका, भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने पर विचार कर सकता है।

नुक्ताचीनी की रही है डेमोक्रेट्स की नीतियां

जानकारों का ये भी मानना है कि अगर कमला हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं, तो बाइडन की वर्तमान विदेश नीति जारी रह सकती है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि जब भारत और भारतीय मामलों की बात आती है तो वह हमेशा बाइडन प्रशासन की नीति पर चलती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान बाइडन प्रशासन ने भारत में घरेलू मुद्दों के बारे में कुछ टिप्पणियां की हैं - विशेष रूप से मानवाधिकार की स्थिति और लोकतंत्र की स्थिति जैसे विषयों पर। उदाहरण के लिए, बाइडन प्रशासन ने मोदी सरकार पर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करने का आरोप लगाया है, पिछले जून में वाशिंगटन की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस आरोप का खंडन किया था। लेकिन अभी यह अनिश्चित है कि हैरिस इस नीति का पालन करेंगी या नहीं।

कनाडा में गूंजा योगी आदित्‍यनाथ का 'बंटोगे तो कटोगे' का नारा, मंदिरों ने कनाडाई नेताओं की एंट्री पर लगाया बैन

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिया नारा अब कनाडा तक पहुंच गया है। कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर खालिस्तानी हमले के बाद हिंदुओं ने एकजुट होने का आह्वान किया है।खालिस्तान समर्थकों के हमले से नाराज हिंदू एकजुटता के लिए सीएम योगी के ‘बंटोगे तो कटोगे’ नारे का इस्तेमाल किया है।

कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर के पास रविवार को भक्‍तों पर हमला किया गया। बताया जा रहा है कि खालिस्तानी चरमपंथियों के प्रदर्शन ने हिंसात्मक रूप ले लिया। हिंसा से जुड़े एक वीडियो में कुछ लोग हाथापाई और एक-दूसरे पर डंडों से हमला करते हुए नजर आ रहे हैं। मंदिर से जुड़ा एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें हिंदू समुदाय के लोग यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के नारे 'बंटोगे तो कटोगे' लगाते नजर आ रहे हैं।

ब्रेम्पटन मंदिर के पुजारी ने हिंदुओं से एकजुटता की अपील करते हुए ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा लगाया। पुजारी लोगों से नारे लगवाते हुए कहते हैं, “बटोगे तो कहोगे।” इसके बाद उन्होंने कहा, ये हमला कोई अकेला हमला नहीं है। ये हमला हिंदू सभा पर हमला नहीं है। ये हमला पूरे विश्व में जितने हिंदू हैं उनके ऊपर है। उन्होंने कनाडा में मौजूद हिंदू समुदाय से कहा कि अगर हम एकजुट रहेंगे तो सुरक्षित रहें। इस नारे को सुनकर वहां मौजूद लोग करतल ध्‍वनि के बीच हाथ उठाकर समर्थन कर रहे हैं।

इसके अलावा ये भी खबर सामने आई है कि कनाडा की राष्ट्रीय हिंदू परिषद और हिंदू फेडरेशन ने मंदिर के नेताओं और हिंदू समूहों के साथ मिलकर हिंदू मंदिर पर हमले के बाद एक आधिकारिक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि अब किसी राजनीतिक दलों के किसी राजनेता को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मंदिर की सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इससे पहले रविवार को ब्रेम्पटन मंदिर और भक्तों के समूह पर खालिस्तान समर्थकों ने हमला कर दिया। खालिस्तान समर्थकों ने भक्तों से हाथापाई कर डंडे से वार किया। जानकारी के मुताबिक हमलावर मंदिर के बाहर नारेबाजी कर रहे थे, रोके जाने पर इन लोगों ने भक्तों के साथ मारपीट की। आरोप हैं कि स्थानीय पुलिस घटना के वक्त मंदिर के बाहर मौजूद थी लेकिन उसने खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।

अल्मोड़ा में भीषण बस दुर्घटना, 38 की मौत, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री सहित सभी ने जताया शोक

देहरादून। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में रामनगर के समीप माचुर्ला में आज सुबह हुए बस हादसे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, अनेक केन्द्रीय मंत्रियों सहित वरिष्ठ राजनेताओं ने गहरा दु:ख जताया है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने इस दुर्घटना में मृतक के परिजनों को पीएमएनआरएफ से दो लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को एक लाख व अपेक्षाकृत कम घायलों को 50 हजार रुपये सहायता राशि देने की घोषणा की है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में सड़क दुर्घटना में महिलाओं और बच्चों सहित कई लोगों की मृत्यु का समाचार हृदय विदारक है। मैं शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहन संवेदनाएं व्यक्त करती हूं तथा घायल हुए लोगों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करती हूं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुए सड़क हादसे में जिन्होंने अपनों को खोया है, उनके प्रति मेरी शोक-संवेदनाएं। इसके साथ ही मैं सभी घायलों की शीघ्र कुशलता की कामना करता हूं। राज्य सरकार की देखरेख में स्थानीय प्रशासन राहत और बचाव के हर संभव प्रयास में जुटा है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा है कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुई बस दुर्घटना अत्यंत दु:खद है। इस हादसे में अपना जीवन गंवाने वाले लोगों के परिजनों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। स्थानीय प्रशासन द्वारा घायलों को त्वरित उपचार उपलब्ध कराया जा रहा है। ईश्वर से घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने जताया दु:ख

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अल्मोड़ा बस हादसे में मृतकों के प्रति गहरा दु:ख जताया। मुख्यमंत्री धामी ने प्रत्येक मृतक के आश्रितों को चार-चार लाख रुपये व घायलों को एक-एक लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है।

बस हादसे में 38 यात्रियों की हुई है मौत, एआरटीओ निलंबित, बैठाई मजिस्ट्रेट जांच

अल्मोड़ा में हुए बस हादसे में अब तक कुल 38 यात्रियों की मौत हो चुकी है जबकि 24 यात्री घायल हैं। घायलों का विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। गंभीर रूप से घायलों को एम्स (ऋषिकेश) भेजा गया है। राहत व बचाव कार्य लगातार जारी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं राहत एवं बचाव कार्य पर नजर बनाए हुए हैं। हादसे को लेकर पुलिस-प्रशासन व परिवहन विभाग में हड़कंप मच गया है। वहीं स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड पर है। हादसे का कारण क्षमता से अधिक सवारियों का होना (ओवरलोडिंग) बताया जा रहा है। यह एक 42 सीटर बस थी, जिसमें 60 के करीब यात्री सवार थे। दीपावली का त्योहार पूर्ण होने के चलते सवारियों की संख्या अधिक थी। इसके चलते मुख्यमंत्री धामी ने कार्रवाई करते हुए संबंधित उप क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) को तत्काल निलंबित करने के आदेश दे दिए हैं। साथ ही इस दुर्घटना की मजिस्ट्रेट से जांच कराए जाने की घोषणा की है।

वक्फ बिल की राह में रोड़ा बनेगी टीडीपी? जानें संसद सत्र से पहले कैसे बढ़ी भाजपा की टेंशन

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केन्द्र सरकार वक्फ़ संशोधन बिल योजना लाने की तैयारी में है। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार मुख्य रूप से वक्फ विधेयक को पारित करने का पूरा प्रयास करेगी।संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हो सकता है। हालांकि, इससे पहले केन्द्र की बीजेपी की अगुवाई वाली नरेन्द्र मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। दरअसल, संसद के शीतकाली सत्र से पहले एनडीए के घटक दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। टीडीपी के नेता और आंध्र पदेश इकाई के उपाध्यक्ष नवाब जान का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि सबको मिलकर वक्फ संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकना चाहिए।

चंद्रबाबू नायडू के कहने पर जेपीसी का गठन?

टीडीपी के उपाध्यक्ष नवाब जान उर्फ अमीर बाबू ने वक्फ संशोधन बिल को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह बिल मुसलमानों के दिलों में दर्द पैदा कर रहा है। उनका कहना है कि चंद्रबाबू नायडू के कहने पर ही वक्फ संशोधन बिल को लेकर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया गया है। नवाब जान ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू के अनुसार इस बिल को लेकर सभी का राय मशवि‍रा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस मुद्दे पर राय मशविरा चल रहा है और चंद्रबाबू नायडू ने सभी से सर्वे करने का आग्रह किया है। उनका मानना है कि यह आवश्यक है कि इस विषय पर सभी पक्षों की बात सुनी जाए।

“नायडू के शासन में मुसलमानों को बहुत लाभ मिले”

नवाब जान ने कहा कि, चंद्रबाबू हमेशा कहते रहे हैं कि उनकी दो आंखें हैं- एक हिंदू और एक मुस्लिम। एक आंख को नुकसान पहुंचाने से पूरे शरीर पर असर पड़ता है और हमें विकास के पथ पर आगे बढ़ते समय इसे ध्यान में रखना चाहिए। नवाब जान ने ये भी कहा कि देश की आजादी के बाद से नायडू के शासन में मुसलमानों को जो लाभ मिले वे अभूतपूर्व हैं।

बता दें कि रविवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में संविधान बचाओ सम्मेलन किया था। इसमें नवाब ने लोगों से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को संसद में पारित होने से रोकने के लिए एकजुट होने की अपील की।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने क्या कहा?

टीडीपी उपाध्यक्ष के बयान के बाद से इस विधेयक के पारित होने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। वहीं, जमीयत ने टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार से इस मामले में मुसलमानों की भावनाओं पर ध्यान देने की गुजारिश की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा- अगर वक्फ बिल पास होता है तो टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे, क्योंकि केंद्र सरकार इनकी बैसाखी पर ही चल रही है।

मदनी ने कहा कि सांप्रदायिक नीतियों के कारण ही भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला। मुस्लिम बाहर से नहीं आए हैं, बल्कि इस देश के मूल निवासी हैं। अगर हिंदू गुर्जर, जाट हैं तो मुस्लिम भी गुर्जर और जाट हैं तथा कश्मीर में तो मुस्लिम भी ब्राह्मण हैं। जमीयत ने कहा कि एनडीए में शामिल जो दल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, उन्हें इस खतरनाक कानून का समर्थन करने से खुद को दूर रखना चाहिए।

यूपी, पंजाब, केरल में उपचुनाव की तारीख बदली, 14 सीटों पर अब 13 की जगह 20 नवंबर को वोटिंग, जानें क्या है वजह

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महाराष्‍ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ पंजाब, केरल और उत्‍तर प्रदेश में उपचुनाव कराए जाने का ऐलान किया गया था। अब चुनाव आयोग ने उपचुनाव की तारीखों में बदलाव किया है। 13 नवंबर की जगह अब 20 नवंबर को सभी स्‍थानों पर उपचुनाव के लिए मतदान होगा। इसके बाद 23 नवंबर को नतीजों की घोषणा की जाएगी। त्‍योहारों की वजह से चुनाव आयोग ने उपचुनाव में मतदान की तारीख में बदलाव किया है।

पहले 13 नवंबर को वोटिंग होनी थी। लेकिन कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) सहित कई दलों ने विभिन्न त्योहारों के मद्देनजर आयोग से चुनावों की तारीख पुनर्निर्धारित करने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि 13 नंवबर को चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत पर असर पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव को लेकर बीजेपी, बीएसपी और आरएलडी ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में लोग कार्तिक पूर्णिमा के लिए तीन-चार दिन पहले यात्रा करते हैं, जो 15 नवंबर को मनाई जाएगी।

इसी तरह केरल कांग्रेस के अनुसार, केरल की पलक्कड़ विधानसभा सीट पर वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा 13 से 15 नवंबर तक कल्पती रास्तोलवम का त्योहार मनाएगा। इसी तरह पंजाब में कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि 15 नवंबर को श्री गुरुनानक देव का 555वां प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। इस वजह से 13 नवंबर से अखंड पाठ का आयोजन किया जाएगा।

जिसके बाद आयोग ने वोटिंग की तारीखों में फेरबदल कर दिया। अब 20 नवंबर को वोटिंग कराई जाएगी। मतों की गणना पहले से तय 23 नवंबर को ही कराई जाएगी।

चुनाव आयोग की ओर से पहले से घोषित कार्यक्रम के अनुसार, इन 3 राज्यों समेत कुल 15 राज्यों की 48 रिक्त पड़ी विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कराए जा रहे थे। साथ ही खाली पड़ी लोकसभा की 2 सीटों पर भी वोटिंग कराई जानी थी। इसके लिए 13 नवंबर को वोटिंग की तारीख तय की गई थी। लेकिन यूपी, पंजाब और केरल में त्योहारों की वजह से तारीखों में बदलाव करना पड़ा।

लोकसभा की जिन 2 खाली पड़ी सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें केरल की वायनाड लोकसभा सीट भी है जहां पर जून में आए लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राहुल गांधी ने रायबरेली सीट को बरकरार रखते हुए वायनाड सीट छोड़ दी थी। कांग्रेस ने अब राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को यहां से खड़ा किया है। इसके अलावा महाराष्ट्र की नांदेड सीट पर भी उपचुनाव कराए जा रहे हैं। सांसद वसंत राव चव्हाण के निधन की वजह से यहां पर वोटिंग कराई जा रही है।

पटरी पर लौट रहे भारत-चीन के कूटनीतिक संबंध, डिसइंगेजमेंट के बाद पड़ोसी देश के साथ रिश्तों पर क्या कुछ बोले जयशंकर

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भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर सैन्य तनाव कम हो रहा है। 2020 में हुए टकराव के बाद दोनों देशों की सेना पीछे हट चुकी हैं।डेमचोक और देपसांग में दोनों देशों के सैनिक पीछे हट चुके हैं। संयुक्त रूप से गश्त शुरू हो गई है। भारत और चीन के बीच सीमा समझौते के बाद दोनों देशों के रिश्ते पटरी पर दिख रहे हैं। ये बात खुद भारतीय विदेश मंत्री एस जशंकर ने कही है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया में कार्यक्रम के दौरान कहा कि पहले भारत-चीन के संबंध बेहद खराब हो गए थे लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है।

विदेशमंत्री एस जयशंकर इन दिनों ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं।यहां उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि भारत और चीन के संदर्भ में हां, हमने कुछ प्रगति की है। आप जानते हैं, हमारे संबंध बहुत बहुत अशांत थे, जिसके कारण आप सभी जानते हैं। हमने उस दिशा में कुछ प्रगति की है जिसे हम विघटन कहते हैं। सैनिक एक-दूसरे के बहुत करीब थे, जिससे कुछ अप्रिय घटना होने की संभावना थी, लेकिन डिसइंगेजमेंट काफी सुधरी है।

विदेश मंत्री ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तैनात हैं, जो 2020 से पहले वहां नहीं थे और बदले में हमने भी जवाबी तैनाती की। इस अवधि के दौरान संबंधों के अन्य पहलू भी प्रभावित हुए हैं। इसलिए स्पष्ट रूप से, हमें पीछे हटने के बाद देखना होगा कि हम किस दिशा में आगे बढ़ते हैं। जयशंकर ने कहा, लेकिन, हमें लगता है कि पीछे हटना एक स्वागत योग्य कदम है। इससे यह संभावना खुलती है कि अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं।

जयशंकर ने कहा कि पिछले महीने रूस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात के बाद उम्मीद थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और मैं दोनों अपने समकक्षों से मिलेंगे। तो चीजें इस तरह हुई हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत विकास के पथ पर अग्रसर है और दुनिया के साथ आगे बढ़ना चाहता है। जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया के देशों में भारत के साथ काम करने की सदिच्छा और भावना है।

महाराष्ट्र चुनाव: महायुति और एमवीए को राहत! मनोज जरांगे नहीं लड़ेंगे विधानसभा चुनाव, सभी सीटों से वापस लेंगे नामांकन

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में आज नामांकन वापसी का आखिरी दिन है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए आवेदन वापस लेने के आखिरी दिन सोमवार को मनोज जरांगे पाटिल ने बड़ा ऐलान किया है। मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे मनोज जारांगे पाटिल ने आगमा विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।मनोज जरांगे ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है। उन्होंने नामांकन के अंतिम दिन अपने समर्थकों को नामांकन वापस लेने की सलाह दी। साथ ही मनोज जरांगे पाटील ने साफ कर दिया है कि उनका संगठन किसी उम्मीदवार या पार्टी का समर्थन नहीं करेगा।

मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने सोमवार को घोषणा की कि वह आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में किसी भी उम्मीदवार या पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे। इससे पहले, जरांगे ने विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों का समर्थन या विरोध करने की योजना बनाई थी, लेकिन अब उन्होंने अपना फैसला बदल दिया है। अंतरवाली सारथी गांव में बोलते हुए जंरागे ने कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद मैंने राज्य में कोई भी उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। मराठा समुदाय खुद तय करेगा कि किसे हराना है और किसे चुनना है। मेरा किसी भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल से कोई संबंध या समर्थन नहीं है। जरांगे ने कहा कि ऐसा करने के लिए उनके ऊपर किसी भी दल की तरफ से दबाव नहीं है। जरांगे ने कहा कि मराठा समुदाय खुद फैसला लेगा कि समर्थन करना है।

बता दें कि एक दिन पहले ही उन्होंने 25 में से 15 सीटों पर चुनाव लड़वाने को ऐलान कर दिया था। आज बाकी बची 10 सीटों पर भी आज फैसला होना था। लेकिन आज मनोज जरांगे ने कहा कि सभी भाई अपना नामांकन वापस लेंगे। उन्होंने आज सुबह एक प्रेस वार्ता में बताया कि हम रात में साढ़े 3 बजे तक चर्चा कर रहे थे। हम दलित और मुस्लिमों को मैदान में उतारना चाह रहे थे, एक जाति के दम पर चुनाव लड़ना और जीतना संभव नहीं है। हम नए हैं।

मनोज जारांगे पाटिल ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरक्षण मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन जारी है, उन्होंने बताया कि चुनाव खत्म होने के बाद हमारा आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि किसी एक जाति पर चुनाव लड़ना संभव नहीं है। हम एक जाति से नहीं जीत सकते। जारांगे पाटिल ने बताया कि अकेले कैसे लड़ सकते हैं। जारांगे पाटिल ने कहा कि वह चुनाव से पीछे नहीं हटे हैं लेकिन आप इसे गुरिल्ला रणनीति (जेनेमी कावा) कह सकते हैं।