एक ही परिवार के चार लोगों के शव मिलने से मचा हड़कंप,पुलिस को मिली सुसाइड नोट

महाराष्ट्र के नागपुर जिले में एक ही परिवार के चार लोगों के शव मिलने से हड़कंप मच गया. एक घर में दंपति और उनके दो बेटे अपने घर में मृत पाए गए. पुलिस को आत्महत्या करने का संदेह है. पड़ोसियों ने जब घर में सन्नाटा पसरा देखा तो पुलिस को सूचना दी थी. मौके पर पहुंची पुलिस ने घर का दरवाजा तोड़ा तो सभी के शव फंदे से लटक रहे थे. वहीं मौके से पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला है.

नागपुर में हुई इस घटना से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पुलिस ने बताया कि मृतकों की पहचान 68 वर्षीय विजय मधुकर पचोरी, 55 वर्षीया मामा, जोकि मधुकर पचोरी की पत्नी थीं और उनके बेटे गणेश और दीपक के रुप में हुई है.

पड़ोसियों ने पुलिस को दी सूचना

घर में सन्नाटा पसरा देख पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी थी. पुलिस ने पहुंचकर घर का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने पर दरवाजे को तोड़ दिया. दरवाजा तोड़ जैसे ही घर के अंदर घुसे तो देखा कि परिवार के चारों लोगों के शव फंदे से लटक रहे थे. पुलिस ने सभी शवों को नीचे उतरवाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट मिला है. जिससे ये साफ है कि परिवार के सभी लोगों ने एक मामले में बड़े बेटे के जेल जाने की वजह से आत्महत्या कर ली है.

तनाव में था परिवार

नागपुर ग्रामीण पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि घर में मिले सुसाइड नोट से पता चला है कि धोखाधड़ी के एक मामले में बेटे की गिरफ्तारी के कारण परिवार तनाव में था. पुलिस अधिकारी ने जानकारी देते हुए कहा कि घर का दरवाजा तोड़ा गया तो परिवार के सभी सदस्य फंदे से लटके हुए पाए गए. जिनकी पहचान की गई है.

पुलिस को मिला सुसाइड नोट

अधिकारियों ने बताया कि मौके से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है. सुसाइड नोट पर परिवार के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. उन्होंने बताया कि पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच में जुट गई है. उन्होंने बताया कि वहां बरामद एक सुसाइड नोट से पता चलता है कि इस वर्ष की शुरुआत में मध्य प्रदेश के पंढुरना पुलिस थाने में दर्ज धोखाधड़ी के एक मामले में बड़े बेटे की गिरफ्तारी के कारण परिवार बहुत तनाव में था.

ओंकारेश्वर की भूतड़ी अमावस्या: नर्मदा में डुबकी लगाने से दूर हो जाती हैं प्रेत-बाधाएं, पहुंचते हैं लाखों भक्त

मध्यप्रदेश की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में हर साल भूतड़ी अमावस्या के दिन भूतों का मेला लगता है. मान्यता है कि इस दिन नर्मदा में स्नान करने से प्रेत-बाधाएं दूर हो जाती हैं. इस धार्मिक परंपरा के चलते लाखों भक्त यहां आते हैं और नर्मदा में डुबकी लगाते हैं. मान्यता है कि एक ही डुबकी से बुरी आत्माओं से छुटकारा मिल सकता है. आज भूतड़ी अमावस्या के दिन हज़ारों श्रद्धालु ओंकारेश्वर पहुंचे हैं, और देर रात तक डुबकी लगाने का सिलसिला जारी रहता है.

सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद

श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. पुलिस और प्रशासन की टीमें घाटों पर तैनात हैं ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके. संगम घाट, नवीन घाट, नागर घाट, ब्रह्मपुरी घाट और गोमुख घाट पर भक्तों की भारी भीड़ जमा है. शाम से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो जाता है, जो देर रात तक चलता रहता है.

तांत्रिक पूजा और झाड़-फूंक का दौर

रात के समय संगम घाट पर झाड़-फूंक और तांत्रिक पूजा का सिलसिला शुरू हो जाता है. यहां वे लोग आते हैं, जो खुद को प्रेत-बाधाओं से पीड़ित मानते हैं. उन्हें नर्मदा में स्नान करवाया जाता है और तांत्रिक विधियों से इलाज किया जाता है. कई श्रद्धालु यह मानते हैं कि इन तांत्रिक विधियों से बुरी आत्माओं का साया हट जाता है.

अजब-गजब मान्यताओं का नजारा

भूतड़ी अमावस्या के मौके पर मध्यप्रदेश के विभिन्न नर्मदा घाटों पर अजीबोगरीब नजारे भी देखने को मिलते हैं. कहीं कथित भूत-प्रेत से छुटकारा पाने के लिए नदियों में स्नान किया जाता है. इस दिन को बुरी आत्माओं को भगाने का विशेष दिन माना जाता है, इसलिए मध्यप्रदेश के नर्मदा घाटों पर भूतों का मेला लगता है.

ओंकारेश्वर में सबसे बड़ा मेला

ओंकारेश्वर के अलावा बड़वाह, नर्मदापुरम, उज्जैन, सिवनी-मालवा सहित अन्य स्थानों पर भी इस दिन मेलों का आयोजन होता है, लेकिन सबसे बड़ा मेला ओंकारेश्वर में लगता है. यहां ओझा-बाबाओं का भी जमावड़ा होता है, जो लोगों को यह बताते हैं कि उनके ऊपर भूत का साया है या नहीं, और फिर इसे हटाने का दावा भी करते हैं.

पान मसाला, गुटखा खाकर सड़कों पर थूकने वालों की तस्वीर अखबार में छपे,नितिन गडकरी

2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर देशभर में स्वच्छता समारोह का आयोजन किया जा रहा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आज नागपुर महानगरपालिका के स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम में शामिल हुए, जहां उन्होंने लोगों को गांधीगिरी का संदेश दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग पान मसाला, गुटखा खाकर सड़कों पर थूकते हैं, उनकी तस्वीरें लेकर अखबार में छापी जानी चाहिए.

मैं चॉकलेट खाता हूं, लेकिन रैपर घर फेंकता हूं

अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “हमारे देश के लोग बड़े चालाक हैं. चॉकलेट खाते हैं और उसका रैपर सड़कों पर फेंक देते हैं. वही व्यक्ति जब विदेश जाते हैं तो चॉकलेट का रैपर अपनी जेब में रखते हैं और वहां अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन यहां सड़कों पर कचरा फेंक देते हैं.” गडकरी ने लोगों को समझाने के लिए खुद का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, “मैं भी आजकल चॉकलेट खाता हूँ, लेकिन चॉकलेट का रैपर घर जाकर फेंकता हूँ. पहले मुझे भी आदत थी कि गाड़ी में खाकर रैपर बाहर फेंक देता था.”

दुनिया सबसे बड़ा जन आंदोलन

देशभर में स्वच्छता अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली में बच्चों के साथ झाड़ू उठाकर सफाई की. इस अवसर पर पीएम मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा और सफल जनआंदोलन बताया. उन्होंने कहा कि विकसित भारत की यात्रा में स्वच्छता का योगदान समृद्धि के मंत्र को मजबूत करेगा. पीएम मोदी ने इस अवसर पर जल संरक्षण और नदियों की सफाई के महत्व पर भी बात की. उन्होंने स्वच्छता का पर्यटन पर सकारात्मक प्रभाव बताते हुए कहा कि देशवासियों को पर्यटन स्थलों, सांस्कृतिक धरोहरों और पवित्र तीर्थ स्थलों की साफ-सफाई बनाए रखनी चाहिए.

आगे उन्होंने कहा मैं उन सभी लोगों को सलाम करता हूँ जिन्होंने इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए योगदान दिया है. आज 2 अक्टूबर के दिन मैं कर्तव्यबोध से भरा हुआ हूँ और भावुक भी हूँ. स्वच्छ भारत मिशन के दस साल पूरे हो गए हैं. पीएम मोदी ने लोगों से इस कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर जुड़ने की अपील की.

जन्म के समय बच्चे का वजन क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?, जाने

आपने देखा होगा कि जन्म के समय बच्चे का वजन मांपा जाता है पर कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है. दरअसल, जन्म के समय बच्चे का वजन एक सामान्य वजन जितना होना चाहिए, उससे कम वजन के बच्चों को शारीरिक तौर पर कमजोर माना जाता है और माना जाता है कि उस बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाया और उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत है. ऐसे बच्चे काफी कमजोर होते हैं और उन्हें कई बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है.

कितना होना चाहिए सामान्य वजन

अपने पूरे समय पर हुए बच्चे का वजन जन्म के समय 2.5 किलो से अधिक होना चाहिए. जो बच्चे 10वें महीने में पैदा होते हैं उनका वजन 3 से 4 किलो तक चला जाता है वही इसके उल्ट जो बच्चे समय से पूर्व यानी कि सातवें या आठवें महीने में होते हैं उनका वजन कई बार सामान्य वजन से भी कम होता है. कई बार महिला को जुड़वा बच्चे होने की स्थिति में भी बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है. लेकिन जन्म के समय 2.5 से 3 किलो के बच्चे को स्वस्थ माना जाता है. वही 1.5 किलो से कम के बच्चे को लो बर्थ वेट बेबी कहा जाता है.

जन्म के समय वजन कम होना खतरनाक

जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना ठीक नहीं माना जाता. कई बार किसी अंग के विकसित न होने पर और बच्चे का समय से पूर्व पैदा होने पर वजन कम होता है. ऐसे बच्चों को एक्सट्रा केयर की जरूरत होती है क्योंकि ऐसे बच्चे खुद से दूध पीने की स्थिति में भी नहीं होते. साथ ही कई बार ऐसे बच्चों को सांस लेने में भी परेशानी होती है. ऐसे में इन्हें पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट में सपोर्ट सिस्टम में रखा जाता है. जहां इन्हें मशीनों की मदद से रखा जाता है.

जॉन्डिस की शिकायत

कम वजन वाले बच्चों को सामान्य वजन वाले बच्चों के मुकाबले जॉन्डिस होने का खतरा ज्यादा रहता है. इन बच्चों का शरीर जन्म के समय पीला पड़ जाता है क्योंकि इन बच्चों में बिलीरूबिन की कमी होती है. ऐसे में इन बच्चों को फोटोथेरेपी दी जाती है. ये एक प्रकार का उपचार है जिसमें बच्चे को इनक्यूबेटर में रोशनी के नीचे लिटाया जाता है और उसकी आंखें ढक दी जाती है ताकि तेज रोशनी बच्चे की आंखों पर न पड़े. इसमें रखने के बाद बच्चे का बिलीरूबिन चेक किया जाता है वर्ना बच्चे को कई दिनों तक इस मशीन में रखना पड़ता है.

इंफेक्शन का खतरा

वैसे तो आमतौर पर सभी छोटे बच्चों को इंफेक्शन होने का खतरा होता है लेकिन जिन बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है उनकी इम्यूनिटी बेहद कम होने के कारण उनको बार-बार इंफेक्शन होने का डर बना रहता है.

एनीमिया का खतरा

वजन कम होने की वजह से बच्चे को एनीमिया यानी कि खून की कमी की शिकायत भी हो सकती है. इसमें शरीर में आयरन की कमी हो जाती है. एनीमिया बेहद गंभीर स्थिति है ऐसे में कई बार बच्चे को खून भी चढ़ाना पड़ सकता है.

बच्चे का वजन मैंटेन कैसे करें

मां को प्रेगनेंसी के दौरान ही अपने खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए. साथ ही समय-समय पर अल्ट्रासाउंड की मदद से बच्चे का वजन मॉनीटर करते रहना चाहिए ताकि बच्चा स्वस्थ वजन के साथ पैदा हो और सेहतमंद रहे.

सिरदर्द की अनदेखी पड़ी भारी: पूर्व सैनिक को मिली जिंदगी की सबसे बड़ी चुनौती

इंसानी शरीर बहुत ही विचित्र होता है. हल्का-फुल्का दर्द, छोटी-मोटी बीमारी इंसान को लगी ही रहती है. इस वजह से वो लोग मामूली समस्याओं में अस्पताल नहीं जाते.

पर कई बार ये मामूली समस्याएं ही बड़ा मोड़ ले लेती हैं, जिससे लोगों को कई तरह की तकलीफें हो जाती हैं. ऐसा ही वेल्स के रहने वाले एक पूर्व सैनिक के साथ हुआ. शख्स को अचानक सिर में दर्द हुआ, तो उसे लगा कि वो मामूली दर्द है. पहली बार में डॉक्टर ने भी यही कहा कि उसे माइग्रेन हो सकता है. मगर जब उसकी दोबारा जांच हुई, तो उससे मालूम चला कि उसके पास जीने के लिए सिर्फ 12 से 18 महीने बाकी हैं.

न्यूयॉर्क पोस्ट वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार रॉयल मरीने के पूर्व सैनिक, 42 साल के जेम्स ग्रीनवुड वेल्स में अपनी 31 साल की गर्लफ्रेंड रेशियल जोन्स के साथ रहते हैं और इसी साल मई में एक दिन वो अपने बहन के पति से बातें कर रहे थे, जब अचानक उन्हें चक्कर आने लगे और सिर में दर्द होने लगा. उनकी आंखों के सामने धुंधला नजारा दिखने लगा. 5 जून को वो डॉक्टर के पास गए और जब उन्होंने अपने लक्षणों के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि या तो डिहाइड्रेशन, या फिर आंखों पर जोर पड़ने की वजह से उनके साथ ऐसा हो रहा है. उन्हें आंख का टेस्ट कराने की सलाह भी डॉक्टर ने दे डाली.

डॉक्टर ने बताया माइग्रेन

उनका ब्लड टेस्ट हुआ, ईसीजी हुआ, मगर चिंता की कोई बात नहीं निकली. पर 10 जून को जब वो मैनचेस्टर में थे, तब उनके साथ एक हैरान करने वाली घटना घटी. वो सड़क पर चल रहे थे, अचानक उनके सिर में जोरदार दर्द हुआ, उन्हें लगा कि उनके आसपास की सब चीजें रुक गईं. उसी दिन वो फौरन डॉक्टर के पास गए. डॉक्टर ने कहा कि उन्हें माइग्रेन है, पर उससे पहले उन्हें कभी माइग्रेन नहीं हुआ. उन्हें माइग्रेन की दवा दी गई और 1 हफ्ते बाद दोबारा दिखाने को कहा गया. पर 12 जून की रात उन्हें भयानक दर्द हुआ, जिसकी वजह से उन्हें इमर्जेंसी में अस्पताल में एडमिट होना पड़ा. इसके बाद उनका सीटी स्कैन हुआ, जिससे मालूम चला कि दिमाग के राइट टेंपोरल लोब में अखरोट के आकार का मास बढ़ा हुआ है जो असल में एक ब्रेन ट्यूमर था. ये जानकर वो हैरान हो गए.

शख्स के दिमाग में निकला ट्यूमर

जेम्स की ब्रेन सर्जरी हुई और 28 जून को उनका ब्रेन ट्यूमर निकाला गया. अगस्त में पता चला कि उन्हें चौथे ग्रेड का ग्लियोब्लास्टोमा है जिसे ब्रेन कैंसर का सबसे खतरनाक रूप माना जाता है. इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें 12 महीने से लेकर 18 महीने तक वक्त दिया. 6 हफ्ते के कीमोथेरापी के बाद अब जेम्स इस बात के इंताजर में हैं कि क्या उसका फायदा उन्हें हुआ या नहीं. अगर फायदा होता है तो अक्टूबर के अंत में उनकी इंटेंस कीमोथेरापी चलेगी. अब उनके कुछ दोस्त उनके ऑपरेशन के लिए पैसे जुटा रहे हैं. साथ ही जेम्स का कहना है कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि उनके साथ ऐसा कुछ हो रहा है, ये सब उन्हें सपने जैसा लग रहा है.

Navratri 2024: नवरात्रि में घट स्थापना की विधि और शुभ मुहूर्त, जानें कैसे करें देवी दुर्गा की पूजा

हिन्दुओं धर्म का सबसे बड़ा पर्व शारदीय नवरात्रि कल यानि 3 अक्टूबर से शुरू होने वाला है. नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाएगी. नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घट स्थापना कर दुर्गा मां का आवाहन किया जाता है और फिर भक्ति-भाव से पूरे 9 दिनों तक उनके 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में 9 दिन की अखंड ज्योत भी प्रजवल्ति की जाती है. श्रद्धालु दुर्गा माता को प्रसन्न करने के लिए 9 दिनों का उपवास भी रखते हैं. नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है. इस दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने से माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और हर मनोकामना पूरी होती है.

नवरात्रि तिथि

पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा ति​थि 3 अक्टूबर को 00:18 बजे शुरू होगी. यह तिथि 4 अक्टूबर को तड़के सुबह 02 बजकर 58 मिनट तक मान्य रहेगी. ऐसे में उदयाति​थि के आधार पर इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से होगा.

घट स्थापना शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि काे पहले दिन घट स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. घट स्थापना के लिए पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 15 मिनट से 7 बजकर 22 मिनट तक है और घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय मिलेगा.

दूसरा मुहूर्त घट स्थापना के लिए दोपहर में भी अभिजीत मुहूर्त में बन रहा है. यह मुहूर्त सबसे अच्छा माना जाता है. दिन में आप 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट के बीच कभी भी घट स्थापना कर सकते हैं. दोपहर में आपको 47 मिनट का शुभ समय मिलेगा.

घट स्थापना की विधि

1,नवरात्रि में जौ का खास महत्व होता है. एक दिन पहले जौ को पानी में भिगो कर रख लें और अंकुरित होने दें.

2,अगले दिन यानी घट स्थापना के समय पूजा घर को गंगाजल छिड़कर शुद्ध कर लें.

3,फिर माता दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा लगाएं. बालू में पानी डालें और जौ को रख दें.

4,घट स्थापना करने से पहले ध्यान दें कि घट की पूर्व या उत्तर दिशा या फिर ईशान कोण में स्थापना करें.

5,जौ के ऊपर घट में पानी भरकर पानी, गंगाजल, सिक्का, रोली, हल्दी गांठ, दूर्वा, सुपारी डालकर स्थापित करें.

6,घट के ऊपर कलावा बांधकर नारियल अवश्य रखें. एक पात्र में स्वच्छ मिट्टी डालकर 7 तरह के अनाज बोएं और इसे चौकी पर रख दें.

7,घट स्थापना के साथ धूप और दीप अवश्य जलाएं. बाए तरफ धूप और दाहिने तरफ दीप जलाएं.

8,अंत में दीप जलाकर गणपति, माता जी, नवग्रहों का आवाहन करें. फिर विधि-विधान से देवी की पूजा करें.

9,घट के ऊपर आम के पत्ते अवश्य रखें. साथ ही हर रोज पुष्प, नैवेद्य अर्पण करें.

10,घट स्थापना के बाद पूरे 9 दिन तक पाठ अवश्य करें.

11,किसी जानकार पंडित को बुलाकर ही विधि विधान से मंत्रोच्चारण के साथ घट स्थापना कराना चाहिए.

मां शैलपुत्री का होता है आगमन

नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा था. मां शैलपुत्री ने शिव को बहुत कठिन तप के बाद पति के रूप में पाया था. इन्हें करुणा, धैर्य और स्नेह का प्रतीक माना जाता है. मां शैलुपत्री की पूजा से जीवन में चल रही सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं. कुवांरी कन्याओं की सुयोग्य वर की तलाश पूरी होती है और वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहता है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री का आगमन होता है और उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्जना की जाती है.

मां शैलपुत्री की पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले विधि-विधान से घट स्थापना करें और अखंड ज्योति जलाएं.

भगवान गणेश का आवाहन करें और देवी शैलपुत्री को सफेद रंग प्रिय है, हालांकि नारंगी और लाल कलर की रंग भी देवी को सबसे प्रिय है.

घट स्थापना के बाद षोडोपचार विधि से मां शैलुपत्री की विधि-विधान से पूजा करें.

मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, हल्दी, अक्षत, सिंदूर, पान, सुपारी, लौंग, नारियल 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें.

देवी को सफेद रंग की पुष्प, सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं.

मां शैलपुत्री के बीज मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें.

शाम के समय भी मां की आरती करें और लोगों को प्रसाद वितरित करें.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान में लिया हिस्सा - दिल्ली में स्कूली बच्चों के साथ लगाई झाड़ू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छता आभियान में हिस्सा लिया। उन्होंने दिल्ली में स्कूली बच्चों के साथ झाड़ू लगाई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने लोगों से स्वच्छता आभियान में शिरकत करने की अपील की। उन्होंने कहा कि मेरा आप सभी से आग्रह है कि आज आप भी अपने आसपास स्वच्छता से जुड़ी मुहिम का हिस्सा जरूर बनें। आपकी इस पहल से 'स्वच्छ भारत' की भावना और मजबूत होगी।

स्वच्छता ही सेवा 2024' कार्यक्रम को पीएम ने किया संबोधित

स्वच्छता ही सेवा 2024' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जिस भारत का सपना गांधी जी और देश की महान विभूतियों ने देखा था, वो सपना हम सब मिलकर पूरा करें। आज का दिन हमें ये प्रेरणा देता है। आज 2 अक्टूबर के दिन मैं कर्तव्यबोध से भी भरा हुआ हूं और उतना ही भावुक भी हूं। आज स्वच्छ भारत मिशन की यात्रा 10 साल के मुकाम पर पहुंच चुकी है।

28 करोड़ से ज्यादा लोगों ने 'स्वच्छता ही सेवा' कार्यक्रमों में लिया हिस्सा

कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बीते पखवाड़े में देश भर में करोड़ों लोगों ने 'स्वच्छता ही सेवा' कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। मुझे जानकारी दी गई है कि 'सेवा पखवाड़ा' के 15 दिनों में देशभर में 27 लाख से ज्यादा कार्यक्रम हुए। जिनमें 28 करोड़ से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। निरंतर प्रयास करके ही हम अपने भारत को स्वच्छ बना सकते हैं। मैं प्रत्येक भारतीय का आभार व्यक्त करता हूं।

पीएम मोदी ने जनता को दिया ये संदेश

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर आज स्वच्छता से जुड़े करीब 10 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स की भी शुरुआत हुई है। मिशन अमृत के तहत देश के अनेक शहरों में वॉटर और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे। नमामि गंगे से जुड़ा काम हो या फिर कचरे से बायोगैस पैदा करने वाले गोबरधन प्लांट, ये काम स्वच्छ भारत मिशन को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

स्वच्छ भारत मिशन जितना सफल होगा, उतना ही हमारा देश ज्यादा चमकेगा। स्वच्छता मिशन में शामिल होने वाले स्वच्छता कार्यकर्ताओं, धर्म गुरुओं, एथलीटों, मशहूर हस्तियों, गैर सरकारी संगठनों समेत सभी लोगों की पीएम मोदी ने जमकर तारीफ की।

केरल के लाल की अनोखी कहानी: थॉमस चेरियन का शव 56 साल तक बर्फ में रहा दबा,अब मिले अवशेष

केरल के पथानामथिट्टा निवासी 22 वर्षीय थॉमस चेरियन की साल 1968 में प्लेन दुर्घटना में मौत हो गई थी. वह भारतीय सेना के जवान थे.

उनका शव रोहतांग की बर्फ में सालों तक दबा रहा. अब जाकर उनके अवशेष मिले हैं. 56 साल बाद जाकर अब थॉमस चेरियन के शव को उनके अपने गांव की मिट्टी नसीब होगी.

7 फरवरी 1968 को चंडीगढ़ से लेह के लिए इंडियन एयरफोर्स के एक विमान ने उड़ान भरी थी. इस विमान में 102 लोग सवार थे. लेकिन हिमाचल के रोहतांग दर्रे के पास विमान का संपर्क टूट गया था और फिर आगे बातल के ऊपर चंद्रभागा रैंज में विमान क्रैश हो गया था. इसमें सभी की मौत हो गई थी. मरने वालों में एक थे केरल के रहने वाले थॉमस चेरियन. वो भारतीय सेना के जवान थे. क्रैश के बाद उनका शव कहां गया, किसी को पता नहीं लग सका. अब जाकर उनके अवशेष मिले हैं.

आखिरकार मौत के 56 साल बाद अब इस जवान को अपने गांव की मिट्टी नसीब होगी. थॉमस चेरियन के घर वालों ने कहा- हम खुशी मनाएं या गम समझ नहीं आ रहा. जब थॉमस चेरियन की मौत हुई तो उस समय वो महज 22 साल के थे.

जानकारी के मुताबिक, पथानामथिट्टा निवासी ओडालिल परिवार के ओम थॉमस के पांच बच्चों में से चेरियन दूसरे नंबर पर थे. वायु सेना से उनके लापता होने की सूचना मिलने के बाद परिवार ने दुख में 56 साल तक इंतजार किया. 30 सितंबर को परिवार को बताया गया कि उनके अवशेष बरामद कर लिए गए हैं.

उनके छोटे भाई थॉमस वर्गीस और भतीजे शैजू के मैथ्यू सहित परिवार के जीवित सदस्य अभी भी परिवार के घर में रहते हैं. वर्गीस, जो अपने भाई के लापता होने के समय केवल आठ वर्ष के थे, को वह दिन अच्छी तरह याद है, जब 7 फरवरी, 1968 को विमान के लापता होने की सूचना देने वाला टेलीग्राम आया था.

2003 में हुई हादसे की पुष्टि

2003 में, अधिकारियों ने पुष्टि की कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और कुछ शव बरामद किए गए थे. जिसके बाद अरनमुला से स्थानीय पुलिस ने थॉमस चेरियन के बारे में विवरण सत्यापित करने के लिए उनके घर का दौरा किया, जहां उनका परिवार रहता है. भाई थॉमस वर्गीस को समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसे समय क्या करें. हालांकि, उन्होंने दुख और राहत दोनों व्यक्त करते हुए कहा कि, यह उनके लिए दुखद भरा क्षण है लेकिन कब्र में दफनाने के लिए अपने भाई के अवशेषों को प्राप्त करने से कुछ शांति मिली है.

तीन शवों की पहचान

शैजू मैथ्यू ने बताया- परिवार 56 वर्षों के बाद भी उनकी निरंतर खोज के लिए सरकार और सेना के प्रति आभार व्यक्त करता है. केरल के कई अन्य सैनिक भी AN12 विमान में सवार थे, जिनमें कोट्टायम के केपी पनिकर, केके राजपन और आर्मी सर्विस कोर के एस भास्करन पिल्लई शामिल थे. इन सैनिकों के शव अभी तक नहीं मिले हैं. सितंबर में रोहतांग दर्रे में चार और शव मिले थे, और इनमें से तीन की पहचान हो गई है, जिसमें थॉमस चेरियन का शव भी शामिल है. स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि चौथा शव रन्नी के एक सैनिक पीएस जोसेफ का हो सकता है, जो विमान में भी था.

शास्त्री जी की ईमानदारी: जब प्रधानमंत्री ने अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया,वे फैसले जो बन गए मिसाल


आज देश के दो बड़े महापुरुषों का जन्मदिन है। गांधी जी के अलावा आज के ही दिन पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को यूपी के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी कद में छोटे थे लेकिन अपने बड़े फैसलों और उच्च विचारों के लिए याद किए जाते हैं। उन्होंने जीवन भर आम आदमी के हितों की वकालत की। शास्त्री ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के तीसरे प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

जय जवान, जय किसान का दिया नारा

शास्त्री को 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और उनके प्रतिष्ठित नारे जय जवान, जय किसान (सैनिक की जय, किसान की जय) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। वह भष्ट्राचार के खिलाफ लिए जाने वाले फैसलों और अपने विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति जगजाहिर है।

अपने बेटे का प्रमोशन रोका

लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया था। दरअसल, उन्हें जानकारी मिली की उनके बेटे का नौकरी में अनुचित तरीके से प्रमोशन दिया गया है। इससे वह नाराज हो गए और तुरंत पदोन्नति वापस लेने के लिए आदेश जारी कर दिया। बताया जाता है कि वह बेटे का प्रमोशन करने वाले अधिकारी से काफी नाराज हुए थे। शास्त्री जी का यह फैसला और भी नेताओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

ट्रैफिक में फंसे लेकिन आम लोगों को परेशानी नहीं होने दी

एक बार की बात है जब वह देश के गृह मंत्री थे तो एक सरकारी काम से कलकत्ता (अब कोलकाता) गए तो वापस आने के लिए देर गए हो गई। फ्लाइट छूटने का डर था। वह रोड के रास्ते एयरपोर्ट जा रहे थे तो ट्रैफिक जाम में फंस गए। पुलिस कमिश्नर चाह रहे थे कि सायरन वाला एस्कॉट काफिले के आगे कर दिया जाए ताकि जाम से वे निकल जाए। लेकिन शास्त्री ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि ऐसा करने से आम लोगों को परेशानी होगी।

एक टाइम भोजन करने की अपील की

साल 1965 में जब पाकिस्तान से जंग छिड़ गई तो देश में खाद्य संकट पैदा हो गया। इस दौरान उन्होंने पत्नी से कहा कि वह सिर्फ एक टाइम भोजन बनाएं। उन्होंने परिवार के सदस्यों से सिर्फ एक टाइम खाना खाने को कहा और बच्चों को दूध और फल देने को कहा।

आइए जानते है लाल बहादुर शास्त्री की बचपन की कहानी? और कब बने प्रधानमंत्री

एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके साहस और आत्मविश्वास के चलते विश्व को उनका लोहा मानना पड़ा था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी से भरपूर रहा, उनके विचारों ने समय-समय पर भारत के युवाओं का मार्गदर्शन करने का काम किया है। लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। वे एक महान नेता थे, जिन्होंने अपने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। लाल बहादुर शास्त्री जब महज ग्यारह साल के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर काम करने का मन बना लिया था। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आग्रह किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री सिर्फ 16 साल के थे।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता का बचपन में ही निधन हो गया, और उनकी मां ने कठिन परिस्थितियों में उनका पालन-पोषण किया। पढ़ाई के लिए शास्त्री जी को गंगा नदी तैरकर पार करनी पड़ती थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1926 में काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद, वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हुए और कई आंदोलनों में भाग लिया। उनकी सादगी, अनुशासन और देशभक्ति ने उन्हें भारत का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया। उनका जीवन संघर्ष और साहस की मिसाल है।

लाल बहादुर शास्त्री की बचपन की कहानी

एक छोटा लड़का जिसके पास नदी पार करने के लिए नाव वाले को देने के लिए पैसे नहीं है। परंतु उसकी पढ़ाई को लेकर लगन इतनी है कि वह सर पर किताब किताबें बांध कर वह गंगा नदी को पार कर जाता है। उसको गंगा नदी को दिन में दो बार तैर कर पार करना होता था। यह साहस की दास्तान है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम रामदुलारी था। लाल बहादुर शास्त्री के पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था उसके बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उनकी मां उठाती थी।

लाल बहादुर शास्त्री बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे। वे अपने स्कूल में स्कॉलर थे जिस वजह से उन्हें स्कॉलरशिप के रूप में तीन रुपए भी मिलते थे। शास्त्री जे के बचपन की एक और कहानी कभी प्रचलित है कि वे अपने दोस्तो के साथ कई अपने स्कूल आते जाते थे और इस रास्ते के बीच में एक बाग पड़ता था। एक दिन बाग की रखवाली करने वाला वहां नहीं था तो उन्हें और उनके साथियों को लगा कि यह अच्छा मौका है और उन्होंने बाग में से उन्होंने कई फल- फूल तोड़े और इतने में माली अ गया।

उसके आते ही सभी वहां से भाग गए पर वहां पर सिर्फ शास्त्री जी खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्होंने उसी बाग से तोड़ा था। माली ने इस हालत में देख कर उन्हें एक तेज तमाचा मार दिया । तमाचा लगते ही वे तेजी से रोने लगे और उन्होंने मासूम लहजे में कहा कि तुम नहीं जानते, मेरा पिता जी नहीं हैं फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।

शास्त्री जी को लगा कि इस बात को कहने से माली की ओर से उन्हें सहानुभूति मिलेगी परंतु हुआ इसका उलटा, माली ने उनके एक और तेज तमाचा मारा और कहा कि जब तुम्हारे पिता जी नहीं हैं, तब तो तुम्हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। तुम्‍हें तो नेक और ईमानदार बनना चाहिए। यह बात उनके दिल में घर कर गई।

ऐसी रही लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की यात्रा

शास्त्री जी महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावित थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में 1920 में शामिल हुए। 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया जिसके लिए उन्हें दो साल से ज्यादा की जेल भी हुई।

भारत की आजादी के बाद शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बनें। इसके बाद वे 1947 में परिवहान मंत्री भी रहें। इस समय उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला भी लियाा। उन्होंने पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की थी। इसके बाद रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने 1955 में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली मशीन स्थापित की थी।

लाल बहादुर शास्त्री 9 जून, 1664 को भारत के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल में श्वेत क्रांति को प्रोत्साहन दिया। इसके साथ ही उन्होंने खेती को और बेहतर करने के लिए हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया।

लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री कब बनें?

1964 से 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। इससे पहले (1961 से 1963 तक) उन्होंने भारत के छठे गृह मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था।

जानें लाल बहादुर शास्त्री की उपलब्धियां के बारे में

1965 में भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया था।

1920 में ‘भारत सेवक संघ’ से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे।

1947 में वे पुलिस एवं परिवहन मंत्री भी बने।

1951 में शास्त्री को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया।

1952 में शास्त्री जी यूपी से राज्यसभा के लिए चुने गए

1955 में रेल मंत्री रहते हुए चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली मशीन लगवाई।

1957 में शास्त्री जी फिर से परिवहन और संचार मंत्री और फिर वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने।

1961 में उन्हें गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

1964 को लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधान मंत्री बने थे।

1966 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु

11 जनवरी, 1966 को लाल बहादुर शास्त्री का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। कहा जाता है की 1966 को ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में हुई, जहाँ वे पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने गए थे। उन्हें 1966 में मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया। यह पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।