रमज़ान के अंतिम अशरे में इबादत का सिलसिला तेज
गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान का अंतिम अशरा चल रहा है। शनिवार को 26वां रोजा मुकम्मल हो गया। चंद रोज़े और बचे हुए हैं। माह-ए-रमज़ान रुखसत होने वाला है। ईद का त्योहार आने वाला है। ईद के लिए मुस्लिम घरों में तैयारियां तेज हैं। सेवईयों व सूखे मेवों की बिक्री बढ़ गई है। वहीं बाज़ार में ईद की जमकर खरीदारी हो रही है। रोजेदारों के हौसले के आगे सूरज शिकस्त खा चुका है। इबादत का सिलसिला तेज है। तरावीह की नमाज़ पढ़ी जारी है। तिलावत-ए-कुरआन जारी है। एतिकाफ में बंदे खूब इबादत कर रहे हैं। शब-ए-कद्र में पूरी रात जागकर इबादत हो रही है। शबे कद्र की चौथी (27वीं) ताक रात में लोगों ने खूब इबादत की और रो-रो कर दुआएं मांगीं।
ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह का ईनाम है : मुफ्ती अख्तर
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे लैलतुल जाइजा यानी ईनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है। ईदैन की रात यानी शबे ईद-उल-फित्र और शबे ईद-उल-अज़हा में सवाब के लिए खूब इबादत करनी चाहिए। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ईद तो दरअसल उन खुशनसीब मुसलमानों के लिए है जिन्होंने रमज़ानुल मुबारक को रोज़ा, नमाज़ और दीगर इबादतों में गुजारा, तो यह ईद उनके लिए अल्लाह की तरफ से मजदूरी मिलने का दिन है। ईद की नमाज़ से पहले सदका-ए-फित्र अदा कर देना चाहिए। कसरत से सदका देना चाहिए। आपस में मुबारकबाद देना बाद नमाज़े ईद हाथ मिलाना और गले मिलना बेहतर है। इससे भाईचारगी बढ़ती है।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने बताया कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यदि समाज का एक तबका अपनी जायज़ जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है तो आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे उसे खुशहाल ज़िन्दगी बसर करने में मदद करें। यही अल्लाह के नेक बंदों का काम है। इस तरह ईद अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने में पुल का काम करती है।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि माह-ए-रमज़ान के आखिरी दस दिनों में एक अहम रात है जिसे लैलतुल कद्र या शबे कद्र के नाम से जाना जाता है। जिसमें इबादत करने को अल्लाह तआला ने हज़ार महीनों यानी पूरी ज़िंदगी की इबादत से ज़्यादा अफज़ल क़रार दिया है। इसी अहम रात की इबादत को हासिल करने के लिए 2 हिजरी में रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ होने के बाद से पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा आख़िरी अशरे का एतिकाफ फरमाया करते थे। अल्लाह हम सबको इस मुबारक महीने की कद्र करने वाला बनाए और शबे कद्र में इबादत करने की तौफीक़ अता फरमाए। रमज़ान के बचे रोज़ों में खूब इबादत कर अल्लाह को राज़ी कर लें।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर के इमाम मौलाना मो. फिरोज निजामी ने कहा कि रमज़ान का तीसरा अशरा जहन्नम से निजात का है। इस अशरे में अल्लाह की इबादत करने वालों को जहन्नम की आग से निजात मिलती है। रमज़ान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें। सिर्फ भूखे प्यासे न रहें बल्कि हर गैर मुनासिब काम से बचने की कोशिश करें। मुक़द्दस रमज़ान वो है जो इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाता है।
गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने बताया कि जरूरतमंद लोगों की ईद को खुशगवार बनाने के लिए मुसलमानों को सदका-ए-फित्र देने का हुक्म दिया गया है। यह उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जो जकात के हकदार हैं यानी गरीब, मजलूम और मिस्कीन मुसलमान। ईद की नमाज़ पढ़ने से पहले अनाज या पैसे की शक्ल में सदका-ए-फित्र निकाल देना चाहिए। अनाज के बजाए उसकी कीमत देना ज्यादा बेहतर है।
थैलेसीमिया पीड़ित मोहम्मद हसन ने रखा ज़िंदगी का पहला रोज़ा
जमुनहिया बाग गोरखनाथ निवासी आसिफ़ महमूद व शीरीन सिद्दीकी के नौ वर्षीय पुत्र मोहम्मद हसन ने जिंदगी का पहला रोजा रखकर खूब इबादत की। पहली कक्षा में पढ़ने वाले हसन थैलेसीमिया जैसी बहुत ही गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। जिसमें हसन को हर महीने खून चढ़ावाया जाता है। हसन ने सुबह परिवार के साथ सहरी खाई। दिन भर इबादत की। भूख, प्यास व तेज धूप की शिद्दत भी हसन की हिम्मत व हौंसले के आगे पस्त नज़र आई। इनके दादा हाजी रईस अहमद ने हौसला बढ़ाया। शाम में जब इफ्तार का वक्त हुआ तो हसन ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए परिवार के साथ रोज़ा खोला। हसन को खूब सारे तोहफे व दुआ मिली। जिससे दिनभर की भूख प्यास खुशी में बदल गई।
औरतों पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं : उलमा किराम
उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमजान हेल्पलाइन नंबर पर शनिवार को रोज़ा, नमाज़, जकात, सदका-ए-फित्र व ईद की नमाज़ आदि के बारे में सवाल आते रहे। उलमा किराम ने शरीअत की रोशनी में जवाब दिया।
1. सवाल : औरतों पर ईद की नमाज पढ़ने का क्या हुक्म है? (सफिया वारसी, सूरजकुंड कॉलोनी)
जवाब : ईद की नमाज़ मर्दों पर वाजिब है। औरतों पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं। (मुफ्ती अख्तर)
2. सवाल : क्या औरतें फातिहा दे सकती हैं? (इमरान, जाफरा बाजार)
जवाब : हां। इसमें कोई हर्ज नहीं। (मुफ्ती मेराज)
3. सवाल: बेवा औरत ईद पर नए कपड़े पहन सकती है? (मोईन, झुंगिया बाजार)
जवाब: इद्दत के दिन गुजारने के बाद ईद पर नए कपड़े भी पहन सकती है और हर तरह की जायज़ खुशी में भी शरीक हो सकती है इसमें कोई हर्ज नहीं है। (मौलाना जहांगीर
Apr 07 2024, 09:21