परिसीमन पर स्टालिन ने चेन्नई में बुलाई बड़ी बैठक, बोले-आंदोलन की शुरूआत

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चेन्नई में आज बड़ा राजनीतिक जुटान होने वाला है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने परिसीमन पर आज चेन्नई में बड़ी बैठक बुलाई है। बैठक में भाग लेने के लिए कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के रेवंत रेड्डी और पंजाब के भगवंत मान के शामिल होने की उम्मीद है। कर्नाटक का प्रतिनिधित्व उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार करेंगे, जबकि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा के नवीन पटनायक अपने पार्टी प्रतिनिधि को भेजेंगे।

तृणमूल ने किया किनारा

पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने शुक्रवार को बताया कि चेन्नई में 22 मार्च को बुलाई गई परिसीमन बैठक के लिए कोई प्रतिनिधि नहीं भेजेगी। वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन बैठक में भाग लेने के लिए चेन्नई पहुंच गए हैं।

स्टालिन ने बताया राष्ट्रीय आंदोलन

बैठक से पहले स्टालिन ने कहा, भारतीय संघवाद के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है। स्टालिन ने शुक्रवार को कहा, एक्स पर एक वीडियो संदेश साझा करते हुए बताया कि डीएमके सरकार 22 मार्च को चेन्नई में बैठक और पहले दौर की चर्चा क्यों आयोजित कर रही है। पोस्ट में स्टालिन ने इस बात पर जोर दिया कि तमिलनाडु की पहल के रूप में जो शुरू हुआ वह अब निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है, जिसमें राज्य संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के अनुचित आवंटन के विरोध में एकजुट हो रहे हैं।

बीजेपी ने कहा 'भ्रामक नाटक'

वहीं, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि परिसीमन पर बैठक एक 'भ्रामक नाटक' है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा, तमिलनाडु की पहल से शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है, जिसमें पूरे भारत के राज्य निष्पक्ष प्रतिनिधित्व की मांग के लिए हाथ मिला रहे हैं।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?

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देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

केंद्र और तमिलनाडु में विवाद और गहराया, स्टालिन सरकार ने बजट में हटाया रुपये का चिन्ह

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केन्द्र सरकार और तमिलनाडु के स्टालिन सरकार के बीच विवाद गहराता जा रहा है। भाषा विवाद के बीच तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने करेंसी सिम्बल (₹) पर बड़ा फैसला लिया है। एमके स्टालिन सरकार ने राज्य सरकार के बजट 2025-26 से रुपये (₹) का प्रतीक चिह्न हटा दिया है। इसकी जगह अब तमिल लिपि का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह तमिलनाडु सरकार ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) के विरोध में अपना रुख और मजबूत किया है।

केंद्र सरकार और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम यानी डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने एनईपी व त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने से मना कर दिया है। इसके चलते केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत मिलने वाली 573 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता रोक दी है। एसएसए फंडिंग पाने के लिए राज्यों को एनईपी के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है। फंड रोके जाने से सीएम स्टालिन बिफरे हुए हैं। उन्होंने दक्षिणी राज्यों में हिंदी थोपने का आरोप लगाया है।

एनईपी पर चल रहे विवाद के बीच स्टालिन सरकार ने ये अहम कदम उठाया है। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने नेशनल करेंसी सिम्बल को अस्वीकार कर दिया है। बजट 2025 के लोगो वाली तस्वीर सामने आई है। इसमें साफ दिख रहा है कि बजट से रुपए का चिह्न (₹) गायब है। उसकी जगह पर तमिल लिपी का इस्तेमाल किया गया है। अब तक किसी भी राज्य ने भाषा के आधार पर इस तरह का फैसला नहीं लिया था।

बता दें कि रुपये का चिन्ह ₹ आधिकारिक तौर पर 15 जुलाई, 2010 को अपनाया गया था। 5 मार्च, 2009 को सरकार द्वारा घोषित एक डिजाइन प्रतियोगिता के बाद ये हुआ था। 2010 के बजट के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने एक ऐसा प्रतीक पेश करने की घोषणा की थी जो भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित और समाहित करेगा। इस घोषणा के बाद एक सार्वजनिक प्रतियोगिता शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान डिज़ाइन का चयन किया गया।

तमिल में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा शुरू कर दो...', भाषा विवाद के बीच अमित शाह का स्टालिन पर तंज

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भाषा को लेकर तमिलनाडु और केन्द्र सरकार आमने-सामने हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पिछले कुछ दिनों से लगातार केंद्र सरकार पर नेशनल एजूकेशन पॉलिसी के जरिए तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य करने और तमिल भाषा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं। अब तक शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने स्टालिन के हमले को लेकर मोर्टा समभाल रखा था। ब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पर पलटवार किया। उन्होंने स्टालिन से राज्य में तमिल में इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा शुरू करने की बात कही है।

भाषा के मुद्दे विशेष रूप से स्टालिन के हिंदी विरोध को लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने बदलाव किए और अब यह सुनिश्चित किया है कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के उम्मीदवार अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा दे सकें।

शाह ने दावा किया कि एमके स्टालिन ने तमिल भाषा के विकास के संबंध में पर्याप्त काम नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए अपनी भर्ती नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। शाह ने कहा, अभी तक सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) भर्ती में मातृभाषा के लिए कोई जगह नहीं थी। पीएम मोदी ने फैसला किया है कि हमारे युवा अब तमिल सहित आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में सीएपीएफ परीक्षा दे सकेंगे। मैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वे जल्द से जल्द तमिल भाषा में मेडिकल और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम शुरू करने की दिशा में कदम उठाएं।

क्या है केंद्र और राज्य के बीच विवाद?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच पिछले कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

स्टालिन ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार जबरन तमिलनाडु पर हिंदी थोपना चाह रही है। इसके कारण कई क्षेत्रीय भाषाएं पहले ही खत्म हो चुकी हैं, हम अपने यहां की भाषाएं खत्म नहीं होने देंगे।

स्टालिन ने परिसीमन को लेकर की सर्वदलीय बैठक, बोले- दक्षिण के राज्य जॉइंट एक्शन कमेटी बनाएं, भाजपा का किनारा

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को लोकसभा सीटों के परिसीमन पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर एक जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा। सर्वदलीय बैठक में मुख्य विपक्षी दल अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम, कांग्रेस और वामपंथी दल, अभिनेता से नेता बने विजय की तमिलगा वेट्री कषगम (टीवीके) समेत अन्य ने बैठक में हिस्सा लिया। वहीं, भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य कुछ पार्टी इस बैठक से खुद को किनारा करते हुए नजर आई।

स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर एक जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा। स्टालिन ने कहा कि अगर संसद में सीटें बढ़ती है तो 1971 की जनगणना को आधार बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग करते हुए कहा कि 2026 के बाद अगले 30 साल तक लोकसभा सीटों के बाउंड्री करते समय 1971 की जनगणना को ही मानक माना जाए।

स्टालिन ने कहा कि अगर संसदीय सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो हमें 22 अतिरिक्त सीटें मिलनी चाहिए। हालांकि, मौजूदा आबादी के हिसाब से हमें सिर्फ 10 अतिरिक्त सीटें मिलेंगी, जिसका मतलब है कि हम 12 सीटें खो देंगे। यह भारतीय लोकतंत्र में तमिलनाडु के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा कि परिसीमन के जरिए तमिलनाडु की आवाज को दबाया जा रहा है। अपने लोगों के हितों की रक्षा करने में हमारे राज्य की ताकत को कम किया जा रहा है। हम परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह पिछले 50 वर्षों में सामाजिक और आर्थिक कल्याण योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की सजा नहीं होनी चाहिए। इस सर्वदलीय बैठक में मांग की गई है कि 2026 की जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया नहीं की जानी चाहिए।

इसके अलावा स्टालिन ने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को तमिलों का दुश्मन करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार वोट की खातिर तमिल भाषा के प्रति केवल दिखावटी प्रेम रखती है। स्टालिन ने आरोप लगाया कि भाजपा दावा करती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिल को बहुत सम्मान देते है और त्रिभाषा फार्मूला राज्यों की भाषाओं के विकास के लिए है, लेकिन तमिल और संस्कृत के लिए धन के आवंटन में अंतर से यह स्पष्ट है कि वे तमिल के दुश्मन हैं। उन्होंने आरोप लगाया, 'केंद्र सरकार पूरी तरह से भाषाई आधिपत्य की भावना के साथ काम कर रही है और वोट की खातिर तमिल को केवल दिखावटी समर्थन दे रही है। ट्राई लैंग्वेज को लेकर केंद्र पर हमला करते हुए स्टालिन ने कहा कि अगर भाजपा का यह दावा सच है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री को तमिल से बहुत प्यार है, तो यह कभी भी काम में क्यों नहीं दिखता?

तुरंत बच्चे पैदा करें', परिसीमन विवाद के बीच तमिलनाडु सीएम स्टालिन की अपील

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दक्षिण भारतीय राज्यों से परिसीमन को लेकर आशंकाएं जताई जा रही है। इस बीच तमिलाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य के लोगों से अपील की है कि वे जल्द से जल्द बच्चे पैदा करें। एमके स्टालिन ने कथित तौर पर केंद्र की प्रस्तावित परिसीमन योजना पर व्यंग्यात्मक रूप से हमला किया है। स्टालिन सोमवार को नागपट्टिनम जिले के पार्टी सेक्रेटरी की वेडिंग एनिवर्सरी में शामिल होने पहुंचे थे। यहीं पर उन्होंने राज्य की जनता से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की।

दक्षिण के सभी विपक्षी दलों के नेता परिसीमन के खिलाफ हैं। विरोध के स्वर तमिलनाडु में सबसे तेज हैं। सीएम एमके स्टालिन इस मुद्दे पर लगातार केंद्र पर निशाना साध रहे हैं। सीएम ने कहा कि राज्य में सफलतापूर्वक जनसंख्या नियंत्रण करने का खामियाजा अब भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने लोगों को चेताया कि अगर जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का परिसीमन होता है तो इसका तमिलनाडु को नुकसान हो सकता है। एमके स्टालिन ने एक शादी समारोह में परिसीमन पर मजेदार तंज कसते हुए वर-वधू को जल्दी बच्चे पैदा करने की सलाह दे डाली।

नागपट्टिनम में डीएमके के जिला सचिव के विवाह समारोह में स्टालिन ने कहा, मैं पहले नवविवाहितों से फैमिली प्लानिंग के लिए थोड़ा वक्त लेने को कहता था, लेकिन अब परिसीमन जैसी नीतियों के कारण जिसे केंद्र सरकार लागू करने की योजना बना रही है, मैं ऐसा नहीं कहूंगा। तमिलनाडु में हमने परिवार नियोजन पर ध्यान केंद्रित किया और जनसंख्या नियंत्रित करने में सफल रहे, लेकिन इस मामले में हमारी सफलता ने ही हमें मुश्किल परिस्थिति में डाल दिया है। इसलिए मैं अब नवविवाहितों से कहूंगा कि वे जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करें।

स्टालिन ने तमिलनाडु के भविष्य पर चर्चा करने के लिए 5 मार्च को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने सभी विपक्षी दलों से इसमें शामिल होने की अपील करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर हमें एकजुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।

इससे पहले अपने 72वें जन्मदिवस के मौके पर तमिलनाडु सीएम ने अपनी पार्टी के कैडर से अपील करते हुए कहा कि आज तमिलनाडु दो अहम चुनौतियों से जूझ रहा है। इनमें से एक है भाषा की लड़ाई, जो हमारी जीवनरेखा है। वहीं दूसरी लड़ाई है परिसीमन की, जो हमारा अधिकार है। मैं आपसे अपील करता हूं कि इस लड़ाई के बारे में लोगों को बताया जाए। परिसीमन का सीधा असर राज्य के आत्म सम्मान, सामाजिक न्याय और लोगों की कल्याणकारी योजनाओं पर होगा। आपको इस संदेश को लोगों तक लेकर जाना होगा ताकि राज्य का हर नागरिक राज्य को बचाने के लिए एकजुट हो सके।

गौरतलब है कि साल 2026 से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी। अगर परिसीमन जनसंख्या के आधार पर हुआ तो इससे दक्षिण के राज्यों में लोकसभा सीटें घट सकती हैं और उत्तरी राज्यों में सीटें बढ़ सकती हैं। इसका दक्षिण के राज्य विरोध कर रहे हैं।

तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
क्या IUML सांसद ने मंदिर में खाया नॉनवेज, बीजेपी नेता अन्नामलाई के आरोपों के बाद दोनों आमने-सामने

#biryani-controversyintamilnadu

तमिलनाडु में बिरयानी खाने को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के लोकसभा सांसद के नवसकानी और तमिलनाडु बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई एक दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने सांसद पर आरोप लगाया है कि उन्होंने मदुरै में तिरुपरंगुनराम सुब्रमण्यम स्वामी हिल जिसको हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, वहां जाकर मांसाहारी खाना (बिरयानी) खाया।

एक बयान में अन्नामलाई ने कहा कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता बरकरार रखी जानी चाहिए। भगवान मुरुगन के छह निवासों में से पहला, थिरुप्पारनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर में हाल के घटनाक्रम अवांछनीय हैं। खासकर सांसद नवाज कानी की हरकतें बेहद निंदनीय हैं। थिरुप्पारनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी पहाड़ी, जिसे हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है, पर एक समूह को इकट्ठा करने और मांसाहारी भोजन करने का उनका कृत्य न केवल एक गंभीर गलती है, बल्कि इससे सांप्रदायिक तनाव भड़कने की भी संभावना है।

IUML सांसद को बर्खास्त करने की मांग

तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने समूह को इकट्ठा करने और मांसाहारी भोजन का सेवन करने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेता और रामनाथपुरम के सांसद नवास कानी की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मौजूदा सांसद, जिसने भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन करने की शपथ ली है। उस स्थान पर जाने और मांसाहारी खाने का फैसला किया है, जो हजारों वर्षों से हिंदू समुदाय के लिए पवित्र रहा है। उन्होंने कहा कि यह तमिलनाडु की राजनीति का हाल है। राज्य में जो कुछ हो रहा है उस पर तुष्टिकरण की राजनीति हावी हो गई है। इस सांसद को बर्खास्त किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपनी शपथ का उल्लंघन किया है।

IUML सांसद ने पेश की सफाई

बीजेपी के आरोप पर अब लोकसभा सांसद के नवसकानी ने सफाई पेश की है। उन्होंने कहा, मदुरै में उसी पहाड़ी पर सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर है वहां पर एक सिकंदर दरगाह भी है। मैं उसी दरगाह में गया था। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा, बीजेपी इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। मैं सिर्फ लोगों से बातचीत करने, उनकी समस्याओं के बारे में जानने के लिए दरगाह में गया था। उन्होंने दरगाह के बारे में बात करते हुए कहा, दरगाह में न सिर्फ मुस्लिम बल्कि सभी धर्मों के लोग प्रार्थना करने के लिए आते हैं। वहां कई वर्षों तक बकरे और मुर्गों की बलि दी जाती रही है। लोग पहाड़ी के नीचे रहते हैं और बकरी और मुर्गों को पालते हैं, इसके बाद लोग पहाड़ी पर जाकर बकरियों और मुर्गियों की बलि देते हैं और फिर खाना पकाया जाता है और वहीं खाया जाता है। उन्होंने आगे कहा, दरगाह वक्फ बोर्ड के अंदर आती है, इसलिए वो यह समझने के लिए वहां गए थे कि दरगाह पर आने वाले लोगों को असुविधा क्यों हो रही है। उन्होंने कहा, दरगाह के पीछे काशी विश्वनाथ मंदिर है।

बीजेपी जो उत्तर भारत में करती है वही वो तमिलनाडु में करने की कोशिश- नवसकानी

सांसद ने अन्नामलाई पर झूठे दावे फैलाने का आरोप लगाया। नवसकानी ने कहा, अन्नामलाई झूठ फैला रहे हैं। बीजेपी राजनीति के लिए ऐसा कर रही है। वे ऐसा दर्शाने की कोशिश करते हैं कि हम मंदिर परिसर में बिरयानी खाते हैं, लेकिन वो अपना मकसद हासिल नहीं कर पाएंगे। साथ ही उन्होंने कहा, बीजेपी जो उत्तर भारत में करती है वही वो तमिलनाडु में करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं होगा

तमिलनाडु विधानसभा में हुआ राष्ट्रगान का अपमान! राज्यपाल ने सदन से किया वॉकआउट
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* तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि विधानसभा सत्र के दौरान राष्ट्रगान के कथित अपमान से नाराज हो गए और विधानसभा सत्र को बिना संबोधित किए ही सदन से चले गए। राज्यपाल के कार्यालय ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और विधानसभा स्पीकर ने तमिल थाई वाज़्थु गाए जाने के बाद राष्ट्रगान बजाने से इनकार कर दिया। जबकि राज्यपाल ने उन से मानक के तहत राष्ट्रगान गाने के लिए कहा था। तमिलनाडु विधानसभा के साल 2025 के पहले विधानसभा सत्र की शुरुआत हो रही है। नियमों के तहत विधानसभा सत्र की शुरुआत राज्यपाल आरएन रवि के संबोधन से होनी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विधानसभा सत्र की शुरुआत में तमिलनाडु सरकार के राज्य गीत 'तमिल थाई वजथु' का गायन हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि राज्यपाल आरएन रवि ने तमिलनाडु के राज्य गीत के बाद राष्ट्रगान वादन की मांग की, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई। इस बात से राज्यपाल इस कदर नाराज हो गए कि विधानसभा सत्र को संबोधित किए बिना ही सदन से चले गए। राज्यपाल के आधिकारिक निवास, राजभवन ने कहा, राज्यपाल ने विधानसभा को बीच में इसीलिए छोड़ दिया और वो चले गए क्योंकि सदन ने मानक के तहत राष्ट्रगान बजाने से “इनकार” कर दिया था।तमिलनाडु के राजभवन ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर कहा, भारत के संविधान और राष्ट्रगान का एक बार फिर तमिलनाडु की असेंबली में अपमान हुआ। राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारा पहला मौलिक कर्तव्य है। इसे सभी राज्य विधानमंडलों में राज्यपाल के अभिभाषण के शुरू और आखिर में गाया जाता है। आज जब राज्यपाल हाउस में पहुंचे तो सिर्फ तमिल थाई वाज़्थु गाया गया। इसी के बाद जब राज्यपाल ने सभी को संवैधानिक ड्यूटी याद दिलाई और सीएम एम के स्टालिन और स्पीकर से राष्ट्रगान पढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा गया, यह गंभीर चिंता का विषय है। संविधान और राष्ट्रगान के इस तरह के बेशर्मी भरे अपमान में भागीदार नहीं बनना चाहते थे, इसलिए राज्यपाल गहरी पीड़ा में सदन से चले गए। बता दें कि बीते दो साल से विधानसभा सत्र में राज्यपाल के संबोधन के दौरान खासा विवाद देखने को मिला है। पिछली बार राज्यपाल ने संबोधन के दौरान सरकार के बयान की कुछ लाइनें पढ़ने से इनकार कर दिया था। जिस पर खूब विवाद हुआ था।
परिसीमन पर स्टालिन ने चेन्नई में बुलाई बड़ी बैठक, बोले-आंदोलन की शुरूआत

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चेन्नई में आज बड़ा राजनीतिक जुटान होने वाला है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने परिसीमन पर आज चेन्नई में बड़ी बैठक बुलाई है। बैठक में भाग लेने के लिए कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के रेवंत रेड्डी और पंजाब के भगवंत मान के शामिल होने की उम्मीद है। कर्नाटक का प्रतिनिधित्व उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार करेंगे, जबकि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा के नवीन पटनायक अपने पार्टी प्रतिनिधि को भेजेंगे।

तृणमूल ने किया किनारा

पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने शुक्रवार को बताया कि चेन्नई में 22 मार्च को बुलाई गई परिसीमन बैठक के लिए कोई प्रतिनिधि नहीं भेजेगी। वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन बैठक में भाग लेने के लिए चेन्नई पहुंच गए हैं।

स्टालिन ने बताया राष्ट्रीय आंदोलन

बैठक से पहले स्टालिन ने कहा, भारतीय संघवाद के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है। स्टालिन ने शुक्रवार को कहा, एक्स पर एक वीडियो संदेश साझा करते हुए बताया कि डीएमके सरकार 22 मार्च को चेन्नई में बैठक और पहले दौर की चर्चा क्यों आयोजित कर रही है। पोस्ट में स्टालिन ने इस बात पर जोर दिया कि तमिलनाडु की पहल के रूप में जो शुरू हुआ वह अब निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है, जिसमें राज्य संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के अनुचित आवंटन के विरोध में एकजुट हो रहे हैं।

बीजेपी ने कहा 'भ्रामक नाटक'

वहीं, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि परिसीमन पर बैठक एक 'भ्रामक नाटक' है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा, तमिलनाडु की पहल से शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है, जिसमें पूरे भारत के राज्य निष्पक्ष प्रतिनिधित्व की मांग के लिए हाथ मिला रहे हैं।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?

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देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

केंद्र और तमिलनाडु में विवाद और गहराया, स्टालिन सरकार ने बजट में हटाया रुपये का चिन्ह

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केन्द्र सरकार और तमिलनाडु के स्टालिन सरकार के बीच विवाद गहराता जा रहा है। भाषा विवाद के बीच तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने करेंसी सिम्बल (₹) पर बड़ा फैसला लिया है। एमके स्टालिन सरकार ने राज्य सरकार के बजट 2025-26 से रुपये (₹) का प्रतीक चिह्न हटा दिया है। इसकी जगह अब तमिल लिपि का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह तमिलनाडु सरकार ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) के विरोध में अपना रुख और मजबूत किया है।

केंद्र सरकार और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम यानी डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने एनईपी व त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने से मना कर दिया है। इसके चलते केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत मिलने वाली 573 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता रोक दी है। एसएसए फंडिंग पाने के लिए राज्यों को एनईपी के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है। फंड रोके जाने से सीएम स्टालिन बिफरे हुए हैं। उन्होंने दक्षिणी राज्यों में हिंदी थोपने का आरोप लगाया है।

एनईपी पर चल रहे विवाद के बीच स्टालिन सरकार ने ये अहम कदम उठाया है। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने नेशनल करेंसी सिम्बल को अस्वीकार कर दिया है। बजट 2025 के लोगो वाली तस्वीर सामने आई है। इसमें साफ दिख रहा है कि बजट से रुपए का चिह्न (₹) गायब है। उसकी जगह पर तमिल लिपी का इस्तेमाल किया गया है। अब तक किसी भी राज्य ने भाषा के आधार पर इस तरह का फैसला नहीं लिया था।

बता दें कि रुपये का चिन्ह ₹ आधिकारिक तौर पर 15 जुलाई, 2010 को अपनाया गया था। 5 मार्च, 2009 को सरकार द्वारा घोषित एक डिजाइन प्रतियोगिता के बाद ये हुआ था। 2010 के बजट के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने एक ऐसा प्रतीक पेश करने की घोषणा की थी जो भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित और समाहित करेगा। इस घोषणा के बाद एक सार्वजनिक प्रतियोगिता शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान डिज़ाइन का चयन किया गया।

तमिल में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा शुरू कर दो...', भाषा विवाद के बीच अमित शाह का स्टालिन पर तंज

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भाषा को लेकर तमिलनाडु और केन्द्र सरकार आमने-सामने हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पिछले कुछ दिनों से लगातार केंद्र सरकार पर नेशनल एजूकेशन पॉलिसी के जरिए तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य करने और तमिल भाषा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं। अब तक शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने स्टालिन के हमले को लेकर मोर्टा समभाल रखा था। ब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पर पलटवार किया। उन्होंने स्टालिन से राज्य में तमिल में इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा शुरू करने की बात कही है।

भाषा के मुद्दे विशेष रूप से स्टालिन के हिंदी विरोध को लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने बदलाव किए और अब यह सुनिश्चित किया है कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के उम्मीदवार अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा दे सकें।

शाह ने दावा किया कि एमके स्टालिन ने तमिल भाषा के विकास के संबंध में पर्याप्त काम नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए अपनी भर्ती नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। शाह ने कहा, अभी तक सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) भर्ती में मातृभाषा के लिए कोई जगह नहीं थी। पीएम मोदी ने फैसला किया है कि हमारे युवा अब तमिल सहित आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में सीएपीएफ परीक्षा दे सकेंगे। मैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वे जल्द से जल्द तमिल भाषा में मेडिकल और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम शुरू करने की दिशा में कदम उठाएं।

क्या है केंद्र और राज्य के बीच विवाद?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच पिछले कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

स्टालिन ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार जबरन तमिलनाडु पर हिंदी थोपना चाह रही है। इसके कारण कई क्षेत्रीय भाषाएं पहले ही खत्म हो चुकी हैं, हम अपने यहां की भाषाएं खत्म नहीं होने देंगे।

स्टालिन ने परिसीमन को लेकर की सर्वदलीय बैठक, बोले- दक्षिण के राज्य जॉइंट एक्शन कमेटी बनाएं, भाजपा का किनारा

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को लोकसभा सीटों के परिसीमन पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर एक जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा। सर्वदलीय बैठक में मुख्य विपक्षी दल अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम, कांग्रेस और वामपंथी दल, अभिनेता से नेता बने विजय की तमिलगा वेट्री कषगम (टीवीके) समेत अन्य ने बैठक में हिस्सा लिया। वहीं, भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य कुछ पार्टी इस बैठक से खुद को किनारा करते हुए नजर आई।

स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर एक जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा। स्टालिन ने कहा कि अगर संसद में सीटें बढ़ती है तो 1971 की जनगणना को आधार बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग करते हुए कहा कि 2026 के बाद अगले 30 साल तक लोकसभा सीटों के बाउंड्री करते समय 1971 की जनगणना को ही मानक माना जाए।

स्टालिन ने कहा कि अगर संसदीय सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो हमें 22 अतिरिक्त सीटें मिलनी चाहिए। हालांकि, मौजूदा आबादी के हिसाब से हमें सिर्फ 10 अतिरिक्त सीटें मिलेंगी, जिसका मतलब है कि हम 12 सीटें खो देंगे। यह भारतीय लोकतंत्र में तमिलनाडु के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा कि परिसीमन के जरिए तमिलनाडु की आवाज को दबाया जा रहा है। अपने लोगों के हितों की रक्षा करने में हमारे राज्य की ताकत को कम किया जा रहा है। हम परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह पिछले 50 वर्षों में सामाजिक और आर्थिक कल्याण योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की सजा नहीं होनी चाहिए। इस सर्वदलीय बैठक में मांग की गई है कि 2026 की जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया नहीं की जानी चाहिए।

इसके अलावा स्टालिन ने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को तमिलों का दुश्मन करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार वोट की खातिर तमिल भाषा के प्रति केवल दिखावटी प्रेम रखती है। स्टालिन ने आरोप लगाया कि भाजपा दावा करती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिल को बहुत सम्मान देते है और त्रिभाषा फार्मूला राज्यों की भाषाओं के विकास के लिए है, लेकिन तमिल और संस्कृत के लिए धन के आवंटन में अंतर से यह स्पष्ट है कि वे तमिल के दुश्मन हैं। उन्होंने आरोप लगाया, 'केंद्र सरकार पूरी तरह से भाषाई आधिपत्य की भावना के साथ काम कर रही है और वोट की खातिर तमिल को केवल दिखावटी समर्थन दे रही है। ट्राई लैंग्वेज को लेकर केंद्र पर हमला करते हुए स्टालिन ने कहा कि अगर भाजपा का यह दावा सच है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री को तमिल से बहुत प्यार है, तो यह कभी भी काम में क्यों नहीं दिखता?

तुरंत बच्चे पैदा करें', परिसीमन विवाद के बीच तमिलनाडु सीएम स्टालिन की अपील

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दक्षिण भारतीय राज्यों से परिसीमन को लेकर आशंकाएं जताई जा रही है। इस बीच तमिलाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य के लोगों से अपील की है कि वे जल्द से जल्द बच्चे पैदा करें। एमके स्टालिन ने कथित तौर पर केंद्र की प्रस्तावित परिसीमन योजना पर व्यंग्यात्मक रूप से हमला किया है। स्टालिन सोमवार को नागपट्टिनम जिले के पार्टी सेक्रेटरी की वेडिंग एनिवर्सरी में शामिल होने पहुंचे थे। यहीं पर उन्होंने राज्य की जनता से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की।

दक्षिण के सभी विपक्षी दलों के नेता परिसीमन के खिलाफ हैं। विरोध के स्वर तमिलनाडु में सबसे तेज हैं। सीएम एमके स्टालिन इस मुद्दे पर लगातार केंद्र पर निशाना साध रहे हैं। सीएम ने कहा कि राज्य में सफलतापूर्वक जनसंख्या नियंत्रण करने का खामियाजा अब भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने लोगों को चेताया कि अगर जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का परिसीमन होता है तो इसका तमिलनाडु को नुकसान हो सकता है। एमके स्टालिन ने एक शादी समारोह में परिसीमन पर मजेदार तंज कसते हुए वर-वधू को जल्दी बच्चे पैदा करने की सलाह दे डाली।

नागपट्टिनम में डीएमके के जिला सचिव के विवाह समारोह में स्टालिन ने कहा, मैं पहले नवविवाहितों से फैमिली प्लानिंग के लिए थोड़ा वक्त लेने को कहता था, लेकिन अब परिसीमन जैसी नीतियों के कारण जिसे केंद्र सरकार लागू करने की योजना बना रही है, मैं ऐसा नहीं कहूंगा। तमिलनाडु में हमने परिवार नियोजन पर ध्यान केंद्रित किया और जनसंख्या नियंत्रित करने में सफल रहे, लेकिन इस मामले में हमारी सफलता ने ही हमें मुश्किल परिस्थिति में डाल दिया है। इसलिए मैं अब नवविवाहितों से कहूंगा कि वे जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करें।

स्टालिन ने तमिलनाडु के भविष्य पर चर्चा करने के लिए 5 मार्च को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने सभी विपक्षी दलों से इसमें शामिल होने की अपील करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर हमें एकजुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।

इससे पहले अपने 72वें जन्मदिवस के मौके पर तमिलनाडु सीएम ने अपनी पार्टी के कैडर से अपील करते हुए कहा कि आज तमिलनाडु दो अहम चुनौतियों से जूझ रहा है। इनमें से एक है भाषा की लड़ाई, जो हमारी जीवनरेखा है। वहीं दूसरी लड़ाई है परिसीमन की, जो हमारा अधिकार है। मैं आपसे अपील करता हूं कि इस लड़ाई के बारे में लोगों को बताया जाए। परिसीमन का सीधा असर राज्य के आत्म सम्मान, सामाजिक न्याय और लोगों की कल्याणकारी योजनाओं पर होगा। आपको इस संदेश को लोगों तक लेकर जाना होगा ताकि राज्य का हर नागरिक राज्य को बचाने के लिए एकजुट हो सके।

गौरतलब है कि साल 2026 से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी। अगर परिसीमन जनसंख्या के आधार पर हुआ तो इससे दक्षिण के राज्यों में लोकसभा सीटें घट सकती हैं और उत्तरी राज्यों में सीटें बढ़ सकती हैं। इसका दक्षिण के राज्य विरोध कर रहे हैं।

तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
क्या IUML सांसद ने मंदिर में खाया नॉनवेज, बीजेपी नेता अन्नामलाई के आरोपों के बाद दोनों आमने-सामने

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तमिलनाडु में बिरयानी खाने को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के लोकसभा सांसद के नवसकानी और तमिलनाडु बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई एक दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने सांसद पर आरोप लगाया है कि उन्होंने मदुरै में तिरुपरंगुनराम सुब्रमण्यम स्वामी हिल जिसको हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, वहां जाकर मांसाहारी खाना (बिरयानी) खाया।

एक बयान में अन्नामलाई ने कहा कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता बरकरार रखी जानी चाहिए। भगवान मुरुगन के छह निवासों में से पहला, थिरुप्पारनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर में हाल के घटनाक्रम अवांछनीय हैं। खासकर सांसद नवाज कानी की हरकतें बेहद निंदनीय हैं। थिरुप्पारनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी पहाड़ी, जिसे हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है, पर एक समूह को इकट्ठा करने और मांसाहारी भोजन करने का उनका कृत्य न केवल एक गंभीर गलती है, बल्कि इससे सांप्रदायिक तनाव भड़कने की भी संभावना है।

IUML सांसद को बर्खास्त करने की मांग

तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने समूह को इकट्ठा करने और मांसाहारी भोजन का सेवन करने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेता और रामनाथपुरम के सांसद नवास कानी की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मौजूदा सांसद, जिसने भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन करने की शपथ ली है। उस स्थान पर जाने और मांसाहारी खाने का फैसला किया है, जो हजारों वर्षों से हिंदू समुदाय के लिए पवित्र रहा है। उन्होंने कहा कि यह तमिलनाडु की राजनीति का हाल है। राज्य में जो कुछ हो रहा है उस पर तुष्टिकरण की राजनीति हावी हो गई है। इस सांसद को बर्खास्त किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपनी शपथ का उल्लंघन किया है।

IUML सांसद ने पेश की सफाई

बीजेपी के आरोप पर अब लोकसभा सांसद के नवसकानी ने सफाई पेश की है। उन्होंने कहा, मदुरै में उसी पहाड़ी पर सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर है वहां पर एक सिकंदर दरगाह भी है। मैं उसी दरगाह में गया था। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा, बीजेपी इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। मैं सिर्फ लोगों से बातचीत करने, उनकी समस्याओं के बारे में जानने के लिए दरगाह में गया था। उन्होंने दरगाह के बारे में बात करते हुए कहा, दरगाह में न सिर्फ मुस्लिम बल्कि सभी धर्मों के लोग प्रार्थना करने के लिए आते हैं। वहां कई वर्षों तक बकरे और मुर्गों की बलि दी जाती रही है। लोग पहाड़ी के नीचे रहते हैं और बकरी और मुर्गों को पालते हैं, इसके बाद लोग पहाड़ी पर जाकर बकरियों और मुर्गियों की बलि देते हैं और फिर खाना पकाया जाता है और वहीं खाया जाता है। उन्होंने आगे कहा, दरगाह वक्फ बोर्ड के अंदर आती है, इसलिए वो यह समझने के लिए वहां गए थे कि दरगाह पर आने वाले लोगों को असुविधा क्यों हो रही है। उन्होंने कहा, दरगाह के पीछे काशी विश्वनाथ मंदिर है।

बीजेपी जो उत्तर भारत में करती है वही वो तमिलनाडु में करने की कोशिश- नवसकानी

सांसद ने अन्नामलाई पर झूठे दावे फैलाने का आरोप लगाया। नवसकानी ने कहा, अन्नामलाई झूठ फैला रहे हैं। बीजेपी राजनीति के लिए ऐसा कर रही है। वे ऐसा दर्शाने की कोशिश करते हैं कि हम मंदिर परिसर में बिरयानी खाते हैं, लेकिन वो अपना मकसद हासिल नहीं कर पाएंगे। साथ ही उन्होंने कहा, बीजेपी जो उत्तर भारत में करती है वही वो तमिलनाडु में करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं होगा

तमिलनाडु विधानसभा में हुआ राष्ट्रगान का अपमान! राज्यपाल ने सदन से किया वॉकआउट
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* तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि विधानसभा सत्र के दौरान राष्ट्रगान के कथित अपमान से नाराज हो गए और विधानसभा सत्र को बिना संबोधित किए ही सदन से चले गए। राज्यपाल के कार्यालय ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और विधानसभा स्पीकर ने तमिल थाई वाज़्थु गाए जाने के बाद राष्ट्रगान बजाने से इनकार कर दिया। जबकि राज्यपाल ने उन से मानक के तहत राष्ट्रगान गाने के लिए कहा था। तमिलनाडु विधानसभा के साल 2025 के पहले विधानसभा सत्र की शुरुआत हो रही है। नियमों के तहत विधानसभा सत्र की शुरुआत राज्यपाल आरएन रवि के संबोधन से होनी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विधानसभा सत्र की शुरुआत में तमिलनाडु सरकार के राज्य गीत 'तमिल थाई वजथु' का गायन हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि राज्यपाल आरएन रवि ने तमिलनाडु के राज्य गीत के बाद राष्ट्रगान वादन की मांग की, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई। इस बात से राज्यपाल इस कदर नाराज हो गए कि विधानसभा सत्र को संबोधित किए बिना ही सदन से चले गए। राज्यपाल के आधिकारिक निवास, राजभवन ने कहा, राज्यपाल ने विधानसभा को बीच में इसीलिए छोड़ दिया और वो चले गए क्योंकि सदन ने मानक के तहत राष्ट्रगान बजाने से “इनकार” कर दिया था।तमिलनाडु के राजभवन ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर कहा, भारत के संविधान और राष्ट्रगान का एक बार फिर तमिलनाडु की असेंबली में अपमान हुआ। राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारा पहला मौलिक कर्तव्य है। इसे सभी राज्य विधानमंडलों में राज्यपाल के अभिभाषण के शुरू और आखिर में गाया जाता है। आज जब राज्यपाल हाउस में पहुंचे तो सिर्फ तमिल थाई वाज़्थु गाया गया। इसी के बाद जब राज्यपाल ने सभी को संवैधानिक ड्यूटी याद दिलाई और सीएम एम के स्टालिन और स्पीकर से राष्ट्रगान पढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा गया, यह गंभीर चिंता का विषय है। संविधान और राष्ट्रगान के इस तरह के बेशर्मी भरे अपमान में भागीदार नहीं बनना चाहते थे, इसलिए राज्यपाल गहरी पीड़ा में सदन से चले गए। बता दें कि बीते दो साल से विधानसभा सत्र में राज्यपाल के संबोधन के दौरान खासा विवाद देखने को मिला है। पिछली बार राज्यपाल ने संबोधन के दौरान सरकार के बयान की कुछ लाइनें पढ़ने से इनकार कर दिया था। जिस पर खूब विवाद हुआ था।