जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवै संदर्भ : अब इधर-उधर नहीं : नीतीश
भक्त शिरोमणि सूरदास जी का एक पद है,  मेरा मन अनत कहां सुख पावै, जैसे उड़ि जहाज को पंछी फिरि जहाज पर आवै। पद की उपरोक्त लाइन लगातार नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार पर सटीक बैठती है,  क्योंकि इंडिया गठबंधन रूपी नये जहाज का कप्तान ही जब बीच मझधार में उसे छोड़कर पुराने जहाज ( एनडीए ) पर बैठ जाये तो नया जहाज तो डूबेगा ही।
वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि " अब बस हुआ, इधर-उधर अब नहीं होगा, अब यहीं रहेंगे"। पीएम, गृह मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से नीतीश की मुलाकात में क्या रणनीति बनी,  यह आने वाले समय में उनकी कार्यशैली में परिलक्षित होगी।
दूसरी ओर बिहार की सत्ता पर काबिज होने के लिए लालू प्रसाद एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। उन्हें अब भी खेला होने की उम्मीद है। वहीं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की यात्रा गठबंधन के लिए शुभ साबित नहीं हुई। उनकी मोहब्बत की दुकान का प्रचार करने के लिए निकाली गयी यात्रा नंबर दो जिन जिन राज्यों से गुजरी वहां की पार्टियां गठबंधन से अलग हो गयी।  तृणमूल कांग्रेस, जदयू, आप और अब यूपी में जयंत चौधरी भी सीटों के बंटवारे पर अखिलेश यादव से नाराज दिखे रहे हैं। हो सकता है कि वे इंडिया गठबंधन को अलविदा कह दें।
लालू प्रसाद भी जानते हैं कि उनके दोनों युवराजों से बिहार संभलने वाला नहीं है।  अकेले राजद भी चुनाव में नहीं उतरना चाहता है। उसे किसी नये चेहरे की जरूरत है। इसलिए राजद सुप्रीमो बड़े पुत्र तेजस्वी यादव की पत्नी राजश्री को बिहार में लांच करना चाहते हैं। इसलिए राजश्री से इस तरह का पोस्ट डलवाया गया है ताकि खेला होने का माहौल बना रहे।
वहीं दूसरी ओर भाजपा,राजद और कांग्रेस सभी अपने - अपने विधायकों पर नजरें गड़ाये हुए हैं। सभी जानते हैं कि लालच क्या नहीं करवाता है। सत्ता धारी दल में टूट की संभावना नहीं रहती है। इसलिए एनडीए को बहुमत साबित करने में कोई परेशानी होती नहीं दिख रही है।
303 को भाजपा की 370 सीटों में बदलेगी, एनडीए 400 पार संदर्भ : मजबूत विपक्ष विहीन होने की ओर अग्रसर देश
मोदी, शाह और नड्डा की तिकड़ी के आगे विपक्ष धीरे-धीरे नतमस्तक होता जा रहा है।  किसी भी पार्टी की समझ में नहीं आ रहा है कि एनडीए के विजय रथ को कैसे रोका जाये ।
भाजपा की एक दशक की सरकार ने कई बार देशवासियों को अपने फैसलों से आश्चर्यचकित किया है।  भाजपा ने देश की आधी आबादी तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की है कि वही एक ऐसी पार्टी है जो उनके कल्याण के बारे में सोचती है।  इसलिए अंतरिम बजट में 9 से 14 आयु वर्ग की बच्चियों को सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए टीकाकरण की नयी योजना घोषित की गयी है। वहीं लखपति दीदी योजना का दायरा भी बढ़ा कर अब 3 करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
इन सब बातों का उद्देश्य महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करना है , क्योंकि भाजपा जानती है कि महिला मतदाताओं की संख्या विभिन्न राज्यों में 50% के आसपास है।
धीरे-धीरे अन्य दलों को भी एहसास हो रहा है क्योंकि महिलाएं न केवल बड़ी संख्या में मतदान करती हैं बल्कि उस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो रही हैं जिसने उनकी मदद की है । इसका उदाहरण मध्य प्रदेश की शिवराज चौहान सरकार की "लाडली बहन" योजना और मोदी सरकार की "उज्ज्वला" योजना है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा के जवाब में पीएम ने अबकी बार 400 पर का दावा किया । उन्होंने कहा कि देश में जो माहौल दिख रहा है उसे लगता है कि लोकसभा चुनाव में एनडीए 400 के पार और भाजपा 303 से आगे बढ़कर 370 तक पहुंच सकती है।
जरा सी आहट होती है तो डर लगता है, कहीं बीजेपी तो नहीं संदर्भ : कांग्रेस ने अपने विधायकों को तेलंगाना भेजा
आज कांग्रेस अपने विधायकों को बिखरने से बचाने के लिए कभी दिल्ली तो कभी तेलंगाना भेज रही है। उसने व्हिप भी जारी कर दिया है। इसलिए बिहार में अपने विधायकों को एकजुट रखने के लिए कांग्रेस आलाकमान चिंतित दिखायी दे रहा है।
सत्ता का नशा होता ही है ऐसा, जिसको एक बार लग गया वह फिर राजनीति से सीधे चार कंधों पर ही जाता है। जिस तरह सरकारी या प्राइवेट नौकरी में एक उम्र सीमा निर्धारित है। ये नियम राजनीतिज्ञों पर क्यों लागू नहीं होता। शरीर साथ नहीं दे रहा है मगर पद नहीं छोड़ेंगे। आज भी इसके कई उदाहरण मौजूद हैं।
बिहार में 12 फरवरी को नयी सरकार को बहुमत साबित करना है। इससे सबसे ज्यादा चिंता कांग्रेस को हो रही है। बिहार में जब भी सरकार बदलती है तो कांग्रेस आलाकमान को सबसे ज्यादा चिंता होती है । उसे डर रहता है इसके विधायक कहीं इधर-उधर ना हो जायें। कांग्रेस आलाकमान का यह डर वाजिब है।  इससे पहले भी कांग्रेस 2018 में इस स्थिति से गुजर चुकी है जब पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के साथ तीन विधान पार्षद जदयू में शामिल हो गये थे।
सदन में बहुमत साबित करने से पहले जदयू और राजद अपनी - अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं । कारण विधायकों में सत्ता सुख और मंत्री पद की लालसा चरम पर है । बताया जाता है कि कांग्रेस के कुछ विधायक नीतीश कुमार का साथ दे सकते हैं।
माना जाता है कि एनडीए को 12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट पास करने में कोई परेशानी नहीं होती दिख रही है। बहुमत का आंकड़ा 122 है। एनडीए में बीजेपी 78, जदयू 45 , हम चार और एक निर्दलीय कुल संख्या 128 होती है। इसलिए डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने तेजस्वी के बयान कि खेला होगा, पर कहा कि उनको खेलने के लिए खिलौना जरूर दिया जायेगा। इधर, फ्लोर टेस्ट से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अन्य भाजपा नेताओं से मिलेंगे।
दूसरी ओर मांझी अलग तेवर दिखा रहे हैं। वे बेटे को मिले मंत्रालय से खुश नहीं हैं। वहीं मांझी जानते हैं कि उनके एनडीए से अलग होने से उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मांझी केवल दबाव की राजनीति कर रहे हैं।
भारत में सनातनी इकोनामी होगी बूम संदर्भ : समृद्धि की नयी राह पर अयोध्या
22 जनवरी, 2024 एक ऐसी तिथि साबित हो रही है जिससे भारत की सनातनी इकोनामी तेजी से आगे बढ़ेगी। आज अयोध्या राम लला के आशीर्वाद से समृद्धि की नयी राह पर चल पड़ी है। राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के ग्यारहवें दिन तक करीब 25 लाख श्रद्धालु राम लला के दर्शन कर चुके थे। इस दौरान श्रद्धालुओं ने करीब 11 करोड़ रुपये दान किये। स्वर्णाभूषण और आन लाइन व चेक से भी श्रद्धालु चढ़ावा चढ़ा रहे हैं।
राम लला बनायेंगे सबके बिगड़े काम : संसार में एक अद्भुत और अलौकिक तीर्थ स्थल के रूप में अयोध्या उभर रही है। यह देश के ग्रोथ का इंजन बनती जा रही है।  राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन केवल अयोध्या में सवा लाख करोड़ का व्यापार हुआ था । वहीं सारे देश की बात करें तो करीब  - करीब हर राज्य में लाखों - करोड़ों का व्यवसाय हुआ।
कहते हैं कि बड़े - बड़े मंदिरों के आसपास अर्थव्यवस्था खुद-ब-खुद आकार लेने लगती है।  वहीं कई सदियों के इंतजार के बाद अयोध्या में राम लला की भव्य और अलौकिक मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा के बाद यूपी की अर्थव्यवस्था बूम कर सकती है। दूसरी ओर राम मंदिर के निर्माण के साथ ही साथ उत्तर प्रदेश का गोल्डन ट्रायंगल भी पूरा हो गया। यूपी के पर्यटन का यह गोल्डन ट्रायंगल यूपी के साथ-साथ देश की इकोनॉमी को भी नया स्वरूप देगा।
क्या है गोल्डन ट्रायंगल  : प्रयागराज, वाराणसी और अयोध्या को गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है।  उत्तर प्रदेश के नक्शे में इन तीनों शहरों की स्थिति एक त्रिभुज की आकृति बनाती है। यह त्रिभुज यूपी के पर्यटन का मुख्य केंद्र बनने वाला है। यह त्रिभुज लगभग 400 किलोमीटर के दायरे में है। एक दिन  में ही इन तीनों जगह का लोग भ्रमण कर सकते हैं। यूपी के वित्त वर्ष 27 - 28 तक पर्यटन के दम पर यूपी की अर्थव्यवस्था 500 विलियन डॉलर के पार जा सकती है।
आज अयोध्या ने अंगड़ाई लेना शुरू किया है।  बड़े-बड़े महानगरों को पीछे छोड़ते हुए अत्याधुनिक एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और न जाने  क्या-क्या आधुनिक सुविधाएं स्थानीय लोगों को उपलब्ध होने वाली हैं। कहा जा रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या पांच करोड़ तक बढ़ सकती है। पर्यटक आयेंगे तो रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। निवेश बढ़ेगा, नौकरियां बढ़ेंगी, कई कंपनियां और फैक्ट्रियां खुलेंगी । साथ ही सरकार के टैक्स रिवेन्यू पर भी 20 से 25 हजार करोड़ का इजाफा हो सकता है। आज देश-विदेश से भारतीय व्यवसायी अयोध्या का रुख कर रहे हैं। अयोध्या में रोजगार के नये-नये अवसर खुल रहे हैं।
मांझी नैया ढूंढे किनारा संदर्भ : सीएम पद का मांझी को मिल रहा आफर ?
आज राजनीति का उपयोग अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ज्यादा किया जाने लगा है । आपकी महत्वाकांक्षा जहां आहत हुई, विरोध शुरू हो जाता है। राजनीति का स्वरूप ऐसा हो गया है कि आज गठबंधन की सरकार चलाना मेंढ़क तौलने के समान है। जिसकी अभिलाषा पूरी नहीं होती वह छलांग मारने को तैयार रहता है।
बिहार में एनडीए की सरकार बन गयी। अब 12 फरवरी को सीएम नीतीश कुमार को विश्वास मत में हासिल करना है । सत्ता पक्ष ( एनडीए) और इंडिया गठबंधन के संख्या बल में अंतर ज्यादा नहीं है । इसलिए सभी दलों को अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती है।
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के सामने चुनौतियां कुछ ज्यादा ही हैं। कांग्रेस ऐसी स्थिति से एक बार गुजर चुकी है।  इस बार भी डोरे डाले जा रहे हैं । इंडिया गठबंधन से जदयू के अलग होने के बाद कांग्रेस बिहार में राजद से अधिक सीटों की मांग कर सकती है।
वहीं मंत्रिमंडल विस्तार के लिए भाजपा - जदयू में मंथन हो रहा है । वहीं जीतन राम मांझी ने भी एक और पद की मांग कर दी है । ऐसे भी मंत्रिमंडल का विस्तार विश्वास के बाद ही होने की उम्मीद है । कांग्रेस जीतन राम मांझी पर चारा डाल रही है । उन्हें सीएम पद का ऑफर दिया जा रहा है।  हालांकि मांझी कह चुके हैं कि वह एनडीए छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे। दूसरी ओर इस मसले पर राजद बिल्कुल चुप है।
दूसरी ओर पड़ोसी राज्य झारखंड में भी सियासी ड्रामा हर पल बदल रहा है।शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अपने समर्थक विधायकों को बिखरने से बचाने के लिए उन्हें हैदराबाद में जन्नत दिखायी जा रही है।
फरारी की सवारी रास नहीं आयी हेमंत को संदर्भ : झारखंड का सियासी ड्रामा
राजनीति क्या नहीं दिखाती। सीएम तेरह दिन की न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। वहीं झारखंड में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है। घोषित सीएम चंपई सोरेन शपथ ग्रहण करने के लिए राज्यपाल से गुहार पर गुहार लगा रहे हैं। इसी कड़ी में राज्यपाल ने चंपई सोरेन को देर रात राजभवन बुलाया और सरकार बनाने का न्योता दिया। उन्होंने बताया कि वे शुक्रवार को 12:30 बजे शपथ लेंगे।
सोरेन परिवार में कुर्सी पर रहते हुए फरार हो जाने की शायद पुरानी परंपरा है। तभी तो झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री 41 घंटे तक लापता रहे । राज्य की एजेंसियां भी यह पता नहीं लगा पायी कि हेमंत सोरेन कहां हैं। आखिर सीएम ने ऐसा कदम क्यों उठाया । यह रहस्य ही है ।  पर यह घटनाक्रम पहली बार नहीं हुआ है। 
इससे पहले हेमंत सोरेन के पिता श्री भी यह कारनामा कर चुके हैं । शिबू सोरेन मनमोहन सिंह सरकार में कोयला मंत्री थे । 17 जुलाई , 2004 में झारखंड के एक कोर्ट ने 1975 में हुए चिरुडीह नरसंहार ( जिसमें 13 बेकसूर लोग मारे गये थे। ) में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया था । इसकी भनक लगते ही कोयला मंत्री पद पर रहते हुए भी शिबू सोरेन फरार हो गये थे । वे 30 जुलाई को सामने आये। ।
एक- दो नहीं दस-दस समन ईडी ने जारी किये , मगर हेमंत सोरेन का ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हो कर फरार हो जाना चोर की दाढ़ी में तिनका  साबित करता है।
एक बात समझ में नहीं आ रही कि एक तरफ भावी मुख्यमंत्री चंपई सोरेन राजभवन में सरकार बनाने का दावा करते  हैं कि उन्हें 43 विधायकों का समर्थन है और दूसरी तरफ सभी विधायकों को चार्टड प्लेन से हैदराबाद चारमीनार दिखाने भेजा जा रहा है । क्या जेएमएम को विधायकों के छिटकने का डर सता रहा है।
हेमंत सोरेन  को न्यायिक हिरासत में 13 फरवरी तक बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा होटवार भेजा गया है। राज्यपाल की चुप्पी कुछ अलग ही इशारा करती दिखायी दे रही है। झारखंड में भी बिहार जैसा ही कुछ खेला होने के आसार नजर आ रहे हैं।
झारखंड का सियासी ड्रामा हर पल बदल रहा है। विधायकों के चारमीनार दर्शन की फ्लाइट फिलहाल खराब मौसम के कारण रद्द कर दी गयी। सभी विधायकों को एक घंटा प्लेन में बैठा कर वापस सर्किट हाउस ले जाया गया। जेएमएम और कांग्रेस दोनों को अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा।
सीएम की कुर्सी ने सोरेन परिवार में हलचल मचा दी है। लालू प्रसाद की तरह हेमंत सोरेन भी अपनी पत्नी कल्पना को सीएम बनाना चाहते थे। मगर परिवार में ही उनका विरोध होने पर चंपई सोरेन का नाम प्रस्तावित किया गया था।
चल अकेला, चल अकेला तेरा गठबंधन पीछे छुटा चल अकेला संदर्भ : इंडिया गठबंधन का निकला दिवाला
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। कांग्रेस की हालत बिल्ली की तरह ही हो गयी है। राम लला  प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र सोनिया गांधी द्वारा ठुकराना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। वहीं उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे नरेंद्र मोदी की तुलना पुतिन से करते हुए जनता को समझा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में फिर चुनाव नहीं होने वाला। कोई  दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम  से कर रहा है। इसका मतलब यही निकलता है कि कांग्रेस जान चुकी है कि एनडीए 400 प्लस सीटों पर विजय प्राप्त कर सकता है। ये सब कांग्रेस की हताशा का परिणाम लग रहा है।
इंडिया गठबंधन में बचे दल अब यह मान चुके हैं कि एनडीए को रोकना उनके बस की बात नहीं। गठबंधन के सृजन कर्ता नीतीश कुमार के पाला बदलते ही उसके कार्यालय में लगता है ताला लग गया है। इधर,  यूपी में सपा ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर कांग्रेस को आइना दिखा दिया है।
दूसरी ओर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम एक वर्ग विशेष को साध रहे हैं। वहीं गठबंधन के सभी दल कांग्रेस को अछूत मान रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस, आप, जदयू और सपा जैसी पार्टियों के गठबंधन से अलग होने के बाद अब राजद, कांग्रेस व वामदल  क्या करेंगे। गठबंधन में अब जान नहीं बची है। कभी चुनाव के बाद गठबंधन का चेहरा चुने जाने के उद्देश्य से एकत्रित हुआ भानुमती का कुनबा समय के साथ बिखरता चला गया।
आज सभी एकला चलो की नीति पर चल पड़े हैं।
और अंत में इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे की चिंता अबतक किसी को भी नहीं दिखती। एक वर्ग विशेष के क्षेत्रों में ही राहुल बाबा अपनी मोहब्बत की दुकान का प्रचार करने से फुर्सत नहीं, लालू एंड फैमिली ईडी के चक्कर में पड़े हुई है। ऐसी स्थिति में एनडीए को विपक्ष की तरफ से कोई टक्कर नहीं दिखायी पड़ रही है।
बिछड़े सभी बारी - बारी , देखी दलों की यारी संदर्भ : इंडी गठबंधन में अब सिर्फ भ्रष्टाचारी
अब कोई गिरगिट से तुलना करे या पलटू कुमार कहे बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बन  ही गयी। इससे जहां नीतीश अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे , वहीं एनडीए की सरकार बिहार में काबिज हो गयी। लेकिन इस बार नीतीश को फ्री हैंड नहीं मिलेगा। भारतीय जनता पार्टी एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम कर रही है। मंत्रिमंडल का गठन भी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जातीय समीकरण के तहत किया गया है।
बीजेपी की सारी कवायद 2024 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों को लेकर की गयी है।  जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक था। इसका फायदा उसे अवश्य मिलेगा। उसकी 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव पर भी नजर है।
वहीं दूसरी ओर जिस उद्देश्य से इंडिया गठबंधन का गठन किया गया था,वह पूरा होता नहीं दिख रहा। साथ ही घटक दलों के नेताओं की बयानबाजी के साथ सीटों की शेयरिंग में हो रही देरी और तृणमूल कांग्रेस व आप के अलग-अलग हो जाने से गठबंधन का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। शेष बचे दल इस राजनीतिक हलचल का ठिकरा कांग्रेस पर फोड़ रहे हैं। गठबंधन में अब सिर्फ भ्रष्टाचारी बच गये हैं।
दूसरी ओर लालू प्रसाद का खेल नीतीश कुमार ने ऐन वक्त पर बिगाड़ दिया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद इस घटनाक्रम से हैरान हैं। वे शांत बैठने वाले नहीं। वे ललन सिंह ग्रुप के कुछ विधायकों को प्रलोभन देने का प्रयास कर सकते हैं।  दूसरी ओर तेजस्वी यादव को बार बार खेला होने की बात कह रहे हैं।  वे शायद कांग्रेस या जदयू के विधायकों पर चारा फेंक रहे हैं।
इस तरह  की स्थिति आने पर एनडीए का दूसरा प्लान भी है। वैसे लगता है कि इसकी जरूरत शायद नहीं पड़े। वहीं भाजपा से भी कांग्रेसी विधायकों के संपर्क में होने की हवा में चल रही है। भाजपा किसी भी परिस्थिति का सामना करने को तैयार है।
और अंत में नीतीश कुमार को ममता बनर्जी को धन्यवाद कहना चाहिए क्योंकि अगर उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव गठबंधन के अध्यक्ष पद के लिए न रखा होता तो नीतीश का ध्यान गठबंधन में ही लगा रहता। इस घटनाक्रम के बाद ही वे गठबंधन में अपने को कंफर्ट महसूस नहीं कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर लगता है कि अब लालू प्रसाद परिवार पर परेशानी की बारिश होने वाली है। वहीं एनडीए शासित राज्यों की संख्या भी अब 17 हो गयी है।

बिहार में भी अब राम राज संदर्भ : नीतीश कुमार बनेंगे नौंवी बार सीएम
राजनीति एक ऐसी काजल की कोठरी है, जिसमें से निकलने के बाद भी कपड़े पर दाग नहीं लगता है। अर्थात कोई किसी का पर्मानेंट दुश्मन नहीं होता। परिस्थितियां दलों के इधर-उधर होने का कारण बनती हैं।
राजद के साथ साझा सरकार जब तक चल रही थी, सब कुछ ठीक था। मगर जैसे ही नीतीश को लगा कि उनकी पार्टी पर ही खतरा उत्पन्न हो रहा है, उन्होंने राजद से अलग होने का निर्णय  ले लिया।
दूसरी ओर राजद के साथ आने के बाद बिहार में फिर जंगल राज वाली स्थिति दिखायी पड़ रही थी। आम जनता भी ला एंड आर्डर में फर्क महसूस कर रही थी। बड़े भाई लालू प्रसाद भी जानते थे कि छोटे भाई के सहारे ही उनके पुत्र मोह की लालसा पूरी हो सकती थी। मगर रोहिणी आचार्य प्रकरण ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही थी।
28 जनवरी,  2024 को बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के साथ सरकार बनायेंगे। आज नीतीश कुमार एनडीए विधायक दल के नेता चुने जायेंगे और शाम सात बजे वे अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ ग्रहण करेंगे। सम्राट चौधरी बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गये। नीतीश कुमार के साथ ही सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे।
और अंत में बिहार में हुए सियासी परिवर्तन के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया जा रहा है।
आज की रात बड़ी भारी है संदर्भ : संयोजक नहीं बनना नीतीश के लिए रहा फायदेमंद
बिहार में चल रही सियासी हलचल का पटाक्षेप कुछ घंटों में हो जायेगा। इसका फायदा केवल और केवल दो पार्टियों को होगा। पहला भाजपा को, वह बिहार को साधना चाहती थी, जो हो गया। दूसरा जदयू, नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गये। लेकिन भाजपा इस बार फूंक - फूंक कर और सोच-समझकर ही कदम उठा रही है।
दूसरी ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की बेचैनी उनके पुत्र मोह को उजागर कर रही है। वे अब दबाव की राजनीति पर उतर आये हैं। लेकिन लगता है अब बाजी उनके हाथों से निकल चुकी है।
वहीं कांग्रेस को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह बिहार के इस हालात पर क्या करे। कांग्रेस के बड़े नेता और लालू प्रसाद फोन पर एक बार बात करने को लालायित हैं लेकिन नीतीश कोई भाव नहीं दे रहे। इससे सारा मामला साफ है कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार  बनायेंगे और नौवीं बार बिहार के सीएम बनेंगे।
भाजपा एक सोची-समझी रणनीति पर काम कर रही है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है वहां एनडीए की सरकार बनाना चाहती है। उदाहरण महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान है। अब इसमें बिहार का नाम और जुड़ गया है।
बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में एनडीए की सरकार चाहती थी। भानुमती के कुनबे को एकजुट करने वाले नीतीश जब गठबंधन में पीएम का चेहरा नहीं बन पाने से नाराज दिखे, तभी बीजेपी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिये।
और अंत में 2024  की शुरुआत बीजेपी के लिए बहुत ही शुभ साबित हो रही है। पहले 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य और अलौकिक मंदिर में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा, 24 जनवरी को जन नायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा और अब 28 जनवरी को बिहार में एनडीए की सरकार ( संभावित) ।