खुद कर रखें ख्याल और खुश रहें संदर्भ : नकारात्मक सोच से दूर रहें
नकारात्मक विचार आपके मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डालते हैं। अगर जिंदगी में कुछ ठीक नहीं चल रहा होता है तो आप नकारात्मक सोच से घिर जाते हैं। इससे आपका हौसला और आत्मविश्वास दोनों कमजोर होने लगते हैं। यह स्थिति आपको अपने लक्ष्य से भटका सकती है।
नेगेटिव थिंकिंग हमें बीमार कर सकती है। नकारात्मक विचार एंजायटी, डिप्रैशन, स्ट्रेस जैसी समस्याओं का कारण बन जाते हैं। वही समस्या आगे बढ़ जाए तो इसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ने  लगता है। डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम का कारण स्ट्रेस को ही माना जाता है।
दूसरी ओर सफलता सकारात्मक सोच से ही प्राप्त होती है। जिंदगी जिंदादिली का नाम है , इसलिए खुद से प्यार करें और दयालु बने। जिंदगी में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि लोगों से नाता टूट जाता है। इसलिए दोस्तों से नियमित मिलते रहें या मोबाइल पर हालचाल पूछते ‌रहें। जिंदादिल इंसान बनें।
परिवार की खुशी के अलावा खुद का ख्याल रखना आपकी पहले जिम्मेवारी है। नकारात्मकता से बचने के लिए उन लोगों के साथ बात करने में समय बताएं जो आपकी परवाह करते हैं।
अपने शौक को पहचानें :  आप किसी भी ऐसे कार्य में समय बितायें  जहां आपको अच्छा लगता हो। अगर आपकी रुचि कुकिंग, पेंटिंग या डांसिंग में है तो उसे पूरी निष्ठा से करें।
खुश रहने का प्रयास करें : अगर आपको घूमना पसंद है तो घूमने निकलें। प्रकृति के नजदीक जाने से हमारे मन - मस्तिष्क को सुकून मिलता है। इसलिए नकारात्मकता को छोड़ मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीखा था चक्रव्यूह भेदन संदर्भ : 'टाटा-कलाम' जैसी संतान के लिए ऐप से जतन कर रहे पेरेंट्स
क्या गर्भ में बच्चा संस्कार सीख सकता है । विज्ञान के इस पर अलग-अलग विचार हैं पर हिंदू माइथोलॉजी के अनुसार कोई भी बालक बड़ा होकर किस प्रकार का मनुष्य बनेगा, कैसे आचरण करेगा, कैसा व्यवहार करेगा यह सब उसे उसकी मां के गर्भ के भीतर ही मिलना शुरू हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अभिमन्यु और ऋषि अष्टावक्र हैं।
महाभारत की वह कहानी तो सबको मालूम ही होगी। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए ही सीख ली थी । उसके पिता अर्जुन जब सुभद्रा को चक्रव्यूह को भेद कर बाहर निकालने की प्रक्रिया बता रहे थे,  तभी सुभद्रा को नींद आ गयी और इस प्रकार अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकालने की कला नहीं सीख पाया और महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।
वहीं ऋषि अष्टावक्र के पिता ऋषि कहोड़ और माता सुजाता महान ऋषि आरुणि के आश्रम में वेद सीखते थे । सुजाता जब गर्भवती हुई तो अजन्मे भ्रूण ने गर्भ में ही वेदों का सही पाठ और उच्चारण सीख लिया । एक दिन उनके पिता माता सुजाता को वेदों का रहस्य समझ रहे थे तो उनकी आठ गलतियों को गर्भस्थ शिशु ने सुधार करवाया। उसके पिता जब भी गलत उच्चारण करते थे तो गर्भस्थ शिशु पेट में लात मारकर इशारा करता था। इस पर उनके पिता  इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र को ही शाप दे दिया कि वह आठ जगहों से वक्र (टेढ़ा) जन्म लेगा । जन्म के वक्त वह बच्चा आठ जगहों से टेढ़ा था इसलिए उसका नाम अष्टावक्र पड़ा।
इन दोनों दृष्टांतों से यह बात पता चलती है कि गर्भस्थ शिशु पर सांसारिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है। एक कहावत भी है कि जैसा खाये अन्न वैसा हो मन। इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान रखना को कहा जाता था। गर्भस्थ शिशु अपनी मां की आंखों से बाहर के वातावरण को महसूस करता है।
आजकल की युवा पीढ़ी आधुनिक जीवनशैली से उब कर पुरानी सनातन परंपरा की ओर लौटती दिख रही है। इसलिए माता-पिता अपने बच्चों को हर तरह से परफेक्ट बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं।  इसी कड़ी में गर्भ संस्कार ऐप उन गुणों का सुझाव देता है जो माता-पिता दुनिया में पैदा होने वाले बच्चों को देना चाहते हैं। आज मार्केट में ऐसे कई ऐप हैं जो शिशु के जन्म से पहले और उसके बाद की सारी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
हर दिन उत्सव मनाएं , जिंदगी का क्या भरोसा
जिंदगी जिंदा दिली का नाम है मुर्दा दिल खाक जिया करते हैं । इमाम बख्श नासिख की ग़ज़ल की यह पंक्तियां आज बहुत ही मौजूं हो गयी है । आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज एक-  दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़-सी लगी है। अपनों के लिए वक्त नहीं, दूसरों के लिए कहां से निकालेंगे।
वक्त ही कुछ बेरहम सा हो रहा है।
जिसको देखो वही कांटे बो रहा है।।
आदमी की भीड़ में किस-किस से पूछें।
जिंदगी वह जी रहा या ढो रहा है।।
सभी भाग रहे हैं। अरे भाई जरा ठहरो , रुको और सोचो। जिंदगी में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आ जाएं, जो उनका सामना हंसते हुए करता है, वही जिंदा दिल इंसान होता है।
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि देश के लोगों में फौलाद की नसें होनी चाहिए। इससे उनका तात्पर्य था कि हर भारतीय जिंदादिल यानी बहादुर हो। क्या मात्र जीने का नाम ही जिंदगी है । ऐसे तो पशु - पक्षी , कीट पतंग भी जीते हैं पर उन्हें भावनाएं नहीं होती ।
इसके विपरीत मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह कभी खुश होता है तो कभी दुखी, क्योंकि उसमें भावनाएं हैं। आज सभी जीवन के हर क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं लेकिन सफलता को प्राप्त करने में कई कठिनाइयां सामने आती हैं। सफलता तभी मिलती है जब सकारात्मक विचार ,मेहनत और लगन का सही मिश्रण होता है। जिसमें यह तीनों गुण विद्यमान होते हैं वही सच्चे अर्थों में जिंदा दिल कहलाता है । किसी के लिए कुछ करने या देने की भावना आपको भी संतुष्टि देती है।
और अंत में दूसरों की मदद करें , माफ करना सीखें ,जहां भी जाएं माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश करें । ये छोटे-छोटे नुस्खे आत्मसंतुष्टि का एहसास करायेंगे और आप जिंदा दिल बने रहेंगे।
बिहार में क्राइम अनकंट्रोल संदर्भ : कोर्ट में पेशी के लिए आये अपराधी को गोलियों से भूना
एक बार फिर बिहार में अपराधियों का बोलबाला बढ़ रहा है । ज्यादातर अपराधी युवा हैं।  यह तो सभी को मालूम है कि बिहार सहित पूरे देश में बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । इसकी वजह से युवा गलत रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं ।
शराबबंदी के बाद लगता है बिहार अब " उड़ता पंजाब " बनता जा रहा है। युवाओं का अब ड्रग एडिक्शन की ओर झुकाव बढ़ रहा है जो इन्हें आसानी से उपलब्ध हो जाती है। अखबार में प्रतिदिन खबर रहती है नशीली दवाओं की खेप बरामद। आखिर ये दवाएं आती कहां से हैं। इसके पीछे पुलिस अपराधी गठजोड़ काम करता है।
इन नशीली दवाओं के लिए उन्हें पैसे की जरूरत होती है । यह भी बिहार में अपराध के बढ़ने का एक कारण हो सकता है वहीं दूसरी ओर अपराध बढ़ने का कारण रंगदारी और भूमि विवाद भी है । पुलिस की तमाम चौकसी के बाद भी अपराधी संगीन घटनाओं को अंजाम देते हैं । दिसंबर माह की शुरुआत ही जमीन कारोबारी की हत्या से हुई थी। आज तक कम से कम हत्या की सात-आठ घटनाएं घटी चुकी हैं।
जिस प्रकार संस्कृत सभी भाषाओं की जननी कही जाती है । उसी प्रकार बेरोजगारी को भी हम सभी समस्याओं की जड़ का सकते हैं । यह मनुष्य को स्वार्थी बना देती है और युवा अपराध की ओर कदम बढ़ा देते हैं । सरकार को ड्रग माफिया और नशीली दवाओं का व्यापार करने वालों पर विशेष निगरानी रखनी होगी,तभी युवा पीढ़ी इस दलदल से बाहर निकल सकेगी।
और अंत में सरकार को अपराध पर रोकथाम लगाने के लिए सबसे पहले युवाओं की बेरोजगारी को दूर करना होगा और युवाओं को रचनात्मक कार्यों के प्रति आकर्षित करना होगा।
बुनियादी सुविधाओं को करना होगा दुरुस्त संदर्भ : राज्यों के बजट पर आरबीआई की रिपोर्ट
शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता और उसके व्यक्तित्व को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए सामाजीकृत करती है। साथ ही समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेवार नागरिक बनने के लिए आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
एक समय बिहार शिक्षा के मामले में काफी समृद्ध था। नालंदा और विक्रमशिला दो प्रमुख विश्वविद्यालय हुआ करते थे, जिनकी चर्चा पूरी दुनिया में होती थी। बड़ी संख्या में विदेशी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। परंतु दुर्भाग्य से इन दोनों विश्वविद्यालयों को आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। कहा जाता है कि मुस्लिम शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। बताते हैं कि विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थी कि तीन महीने तक आग धधकती रही।
प्राचीन काल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रसिद्ध बिहार में आज शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट दिख रही है । आज के समय में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था बिहार में है वह संतोषजनक नहीं कही जा सकती । किसी भी राज्य के विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है । बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में बजटीय प्रावधान में भी कमी है।
राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ समस्याएं दिखायी पड़ती है ।इनमें नामांकन दर में कमी और बुनियादी ढांचे में गुणवत्ता की कमी शामिल है। वहीं उच्च शिक्षा में एक गंभीर समस्या है नकल और परीक्षा का पेपर लीक होना। इन दोनों ही समस्याओं से बिहार की शिक्षा व्यवस्था जूझती रहती है लेकिन इसका अब तक कोई उचित समाधान नहीं निकल पाया है।
पिछले कुछ वर्षों पर निगाह डालें तो बिहार में सबसे ज्यादा पेपर लीक  के मामले हुए वहीं नकल कराने के मामले में तो बिहार प्रसिद्ध है ही। आपको 2016 का टॉपर घोटाला याद भी होगा , इससे बिहार की शिक्षा विभाग को काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी ।
और अंत में नयी शिक्षा नीति का असर दिखायी तो दे रहा है मगर लगता है कि सरकार की मंशा मात्र इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने तक ही सीमित रह गयी है। शिक्षा का स्तर सुधारने का कोई कार्य धरातल पर दिखायी नहीं देता । बिहार के ज्यादातर गांवों में गुलाबी रंग के स्कूल भवन तो दिखायी देते हैं परंतु वहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है । भ्रष्टाचार शिक्षा व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहा है। इस पर रोक लगानी होगी तभी अपेक्षित परिणाम मिल सकेंगे।
कश्मीर पर सुप्रीम फैसला संदर्भ : धारा 370 को हटाने का केंद्र का फैसला सही : सुप्रीम कोर्ट
कश्मीर स्थित शालीमार बाग को देखकर मुगल सम्राट अकबर के बड़े बेटे जहांगीर ने कहा था " गर फिरदौस बर रूये अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त " यानी धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है यही है।
कश्मीर यानी डल झील, शिकारे, बर्फ से ढंके पहाड़ और खूबसूरत वादियां। मगर अपने अस्तित्व में आने के बाद ये खूबसूरत वादियां आतंकवादी घटनाओं से दो-चार होने लगीं। पड़ोसी देश पाकिस्तान से सीमा पर हमेशा गोलीबारी होने लगी, जिससे हमारे सैनिकों की जान चली जाती थी। इसके बाद वहां कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जाने लगा। इससे परेशान होकर उन्होंने वहां से पलायन कर लिया।
दूसरी ओर अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तान का समर्थन किये जाने से हालात और बदतर हो गये। यह देख केंद्र सरकार ने सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गयी। मगर अलगाववादी नौजवानों को बरगला कर सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करवाने लगे। वहीं पाकिस्तान द्वारा सुरक्षा बलों को भी निशाना बनाया जाने लगा। बड़ी संख्या में सैनिकों की जान चली गयी। पाकिस्तान द्वारा देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया जाने लगा। देशवासियों में इससे काफी आक्रोश था।
मालूम हो कि ये सब कश्मीर को विशेष दर्जा दिये जाने के कारण हुआ। 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी उपबंध के रूप में भारतीय संविधान में जोड़ा गया था जिसमें जम्मू और कश्मीर को विशेष छूट प्रदान की गयी थी। इसे अपने स्वयं के संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को नियंत्रित रखा गया ।
दूसरी ओर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने का विरोध जवाहरलाल नेहरू के दौर में ही कांग्रेस पार्टी में होने लगा था । संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर भी अनुच्छेद 370 के विरोधी थे । उस समय हिंदू महासभा,  भारतीय जन संघ , भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य पार्टियां कश्मीर को विशेष दर्जा दिये जाने अर्थात अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग करती आ रही थीं।
कश्मीर में पाकिस्तान की बढ़ती आतंकी हरकतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को एक ऐतिहासिक निर्णय अचानक लिया। यह तिथि एक ऐतिहासिक तिथि बन गयी, जब भारत सरकार ने राज्यसभा में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया, जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्र के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया।
भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के 4 साल बाद 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि इस विषय पर चर्चा ठीक नहीं । सुप्रीम कोर्ट की पांच  सदस्यीय बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पांच अगस्त , 2019 को केंद्र सरकार ने जो फैसला लिया था वह सही था और यह बरकरार रहेगा ।
भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कांग्रेस ने इसका काफी विरोध किया था लेकिन अब सुप्रीम मुहर लगने के बाद वह वहां जल्द चुनाव कराने की बात करने लगी है।
इन चार सालों में जम्मू-कश्मीर में काफी बदलाव देखे जा रहे हैं। पत्थरबाजी बंद है। पाकिस्तान के नापाक इरादों पर लगाम लग चुकी है (ऐसे वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा )। अलगाववादी या तो खत्म हो गये या दूसरी पार्टियों में शामिल हो गये हैं।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे संदर्भ : कांग्रेस नेता के यहां मिले 354 करोड़ नकद
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान लगता है लेकिन जब बात अपने पर आती है तो सारे कानून - कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं । ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि पांच-छह दिनों से लगातार छापेमारी के बाद कांग्रेस सांसद धीरज साहू के ठिकानों से 354 करोड़ हार्ड कैश और अकूत आभूषण आयकर विभाग को मिले। इस राशि को गिनने के लिए 40-50 मशीनें लगायी गयी। नोटों की गड्डियां इस तरह से आलमारी में रखी गयी थीं कि नोट आपस में चिपके हुए थे, जिन्हें मशीन में डालते ही वह नोटों को नहीं गिन पायी और खराब हो गयी। छापेमारी अभी भी जारी है।
वैसे एक साल पहले कांग्रेस सांसद धीरज साहू ने कहा था कि इस देश में  फैले भ्रष्टाचार को सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही मिटा सकती है।
वहीं कांग्रेस सांसद के ठिकानों से इतनी बड़ी संख्या में नोटों के मिलने पर अभी I.N.D.I.A गठबंधन के सारे नेता चुप बैठे हैं। कांग्रेस को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या बोले। कांग्रेस के युवा नेता व मोहब्ब्त की दुकान चलाने वाले राहुल गांधी भी शांत बैठे हैं।
इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि सांसद के पास इतनी संपत्ति कहां से आयी। इससे यही साबित होता है कि कांग्रेस पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।
सच कुछ देर के लिए छुपाया जा सकता है लेकिन जब वह सामने आ जाता है तो सभी भौंचक रह जाते हैं । सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के बारे में अब कुछ ऐसे-  ऐसे खुलासे हो रहे हैं जिसे जानकर जनता भी अब सोचने लगी है। रही सही कसर झारखंड में कांग्रेस के सांसद धीरज साहू के यहां 354 करोड़ नकद मिलने के बाद अब सभी सोचने पर मजबूर हो गये हैं कि कांग्रेस पार्टी क्या सचमुच भ्रष्टाचार की पोषक रही है। कांग्रेस के किसी भी माननीय के यहां इतनी बड़ी मात्रा में नकद का मिलना तो यही साबित करता है।
और अंत में इतनी राशि कहां से आयी , किसकी है और क्यों सांसद के यहां रखी, यह बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है।
अचंभित कर देता है इंद्रजाल संदर्भ : बच्चे, बूढ़े और जवान सभी को आता है पसंद
जब हम तिलिस्म, रहस्यमय , उत्तेजना बढ़ाने वाली और आश्चर्यजनक चीजों को देखते हैं तो अनायास ही मुंह से निकल जाता है कि वाह क्या जादू है। जादू बच्चों को बहुत पसंद आता है। कारण एक तो जादूगर की ड्रेस, मंच पर रंग-बिरंगी रोशनी और बैकग्राउंड से बजता रहस्यमय संगीत यह उन्हें मंत्रमुग्ध कर देता है।
बचपन में मदारी का खेल तो हमारी पीढ़ी के लोगों ने अवश्य देखा होगा।
सड़क के किनारे एक व्यक्ति ढोलक बजा कर लोगों को एकत्रित करता था। जब लोग जमा हो जाते थे तो दूसरा व्यक्ति बीन बजाने लगता था। पास में रखी टोकरी से एक रस्सी निकल कर आसमान की ओर खड़ी हो कर लहराने लगती थी। इसके बाद दूसरा व्यक्ति उस पर चढ़कर ऊपर जाकर गायब हो जाता था। दर्शक मंत्रमुग्ध। कहां गया वो। थोड़े सस्पेंस के बाद वह व्यक्ति दर्शकों के बीच से निकल कर अभिवादन करता था।
भारत का यह जादू विदेशियों को खूब पसंद आता था। इसलिए इस विद्या को सीखने के लिए बहुत से विदेशी भारत आते थे। एक समय था जब समाज में मदारी, जादूगर, नट, सम्मोहन विद्या जानने वालों की अच्छी खासी आबादी थी। उस समय अंग्रेजों की गुलामी के दर्द को भूलकर लोग इस तरह के जादू देख कर आनंदित होते थे क्योंकि उस समय मोबाइल फोन तो था नहीं और मनोरंजन के अन्य कोई साधन थे नहीं।
जादू शो की शुरुआत सड़क से ही हुई और फिर मंच और थियेटरों तक पहुंच गया। भारत में जादू की दुनिया हैरी पॉटर और गेम्स आफ थ्रोन्स से पहले आ चुकी थी।
जादू या तिलिस्म की दुनिया का रोचक वर्णन 1888 में देवकीनंदन खत्री ने अपने पहले उपन्यास चंद्रकांता में किया। इसमें उन्होंने एय्यार (जो जादू करना और रूप बदलने की कला में पारंगत होते थे) और तिलिस्म का ऐसा वर्णन किया कि लोगों ने इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिंदी सीख ली।
चंद्रकांता के बाद देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता संतति और भूतनाथ जैसे रहस्यमय उपन्यास लिखे। उनके उपन्यास पर एक सीरियल चंद्रकांता भी काफी लोकप्रिय हुआ था।
और अंत में जादू शो ऐसा होता है कि जिसे बच्चे, बूढ़े और जवान सभी देखना पसंद करते हैं।
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय संदर्भ : पाकिस्तान में दुबके भारत के गुनहगारों में फैली दहशत
अंग्रेजों के शासन से भारत आजाद तो हो गया था , मगर उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी बंटवारे के रूप में । 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ यानी हमसे एक दिन पहले पाकिस्तान आजाद हुआ । 15 अगस्त,  1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने ।
अपने जन्म के साथ ही पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। इसलिए उसने स्वतंत्र होने के दो महीने बाद ही कश्मीर को कब्जे में लेने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया । दो नये- नये स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच पहला युद्ध 1947 48 में हुआ ।
इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया , जिसे POK ( पाक अधिकृत कश्मीर)  कहा जाता है। इसके बाद पाकिस्तान में जितने भी शासक हुए वे अपने कार्यकाल में भारतीय सीमा पर हमेशा गोलीबारी के साथ-साथ ही भारत के विभिन्न शहरों में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहे ।
ऐसी कई घटनाएं हैं जिनकी लोगों के जेहन में आज तक खौफनाक तस्वीरें घूमती रहती हैं। 6/11 ताज होटल हमला , अक्षरधाम मंदिर हमला, पुलवामा हमला। ऐसी कई घटनाएं हैं जिन्हें हम भूल नहीं सकते । भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले खूंखार आतंकियों को पाकिस्तान ने शरण दे रखी है।
पर कहते हैं न कि समय एक सा नहीं रहता । पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को जहन्नुम बनाने का ख्वाब देखने वाला पाकिस्तान आज खुद आतंक की आग में जल रहा है। उसके पाले- पोसे आतंकवादी आज उसे ही आंखें दिखा रहे हैं। भारत सरकार ने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।
जैसी करनी वैसी भरनी : आज पाकिस्तान जिन हालात से गुजर रहा है, वह तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरी दुनिया को दिखा रहा है।  कुछ साल पहले तक जिस तरह की आतंकवादी गतिविधियों से भारत परेशान रहा करता था, अब उसी तरह की आतंकवादी घटनाएं पाकिस्तान में होने लगी हैं। 
दूसरी ओर भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधियों  को ( जिन्होंने पाकिस्तान में ही शरण ले रखी थी) अज्ञात हमलावरों द्वारा चुन चुन कर गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है। उनमें इतना खौफ है कि वे अपने- अपने मोबाइल को आफ कर लगातार अपने ठिकाने बदल रहे हैं ।
भारत के गुनहगारों में शामिल पांच मोस्ट वांटेड अपराधियों ( दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, मसूद अजहर , टाइगर मेमन और सैयद सलाहुद्दीन ) में इतनी दहशत फैल गयी है कि वह पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के पनाह में छुप कर बैठे हैं ।
दूसरी ओर बुधवार को संसद में गृह मंत्री ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि पाक अधिकृत कश्मीर हमारा है।
और अंत में लगता है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कुछ होने वाला है।
शब्दों की चोट कभी नहीं भरती संदर्भ : बातचीत में शब्दों का इस्तेमाल सावधानी से करें
मनुष्य की प्रवृत्ति है छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना । गुस्से में किसी को डांट देना, अपशब्द कहना या कुछ ऐसा कह देना जो हमें नहीं कहना चाहिए। गुस्से में कभी-कभी हम अपने मित्रों, परिजनों या दूसरे लोगों से इतनी कड़वी बात कह देते हैं कि मित्र हमसे नाराज हो जाते हैं । बसे- बसाये घर उजड़ जाते हैं। और दूसरे लोगों से हम दुश्मनी मोल ले लेते हैं।
इंसान क्रोध में सबसे पहले अपना विवेक खो देता है । शास्त्रों में भी कहा गया है कि तीर -गोली आदि का घाव तो मरहम - पट्टी से भर जाता है , लेकिन शब्दों का प्रहार ऐसा होता है  कि वह एक बार चुभ जाता है तो बरसों तक याद रहता है ।
हमारे शब्द ही अमृत और जहर होते हैं । कहते हैं कि शब्दों के दांत नहीं होते लेकिन जब शब्द काटते हैं तब बहुत दर्द होता है । और कभी-कभी घाव इतने गहरे होते हैं कि जीवन समाप्त हो जाता है पर घाव भर नहीं पाता।
पति-पत्नी का रिश्ता बहुत ही खास होता है।  इसमें पति-पत्नी मिलकर एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं । लेकिन मौजूदा समय में यह देखने को ज्यादा मिल रहा है कि कई युवा जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सही ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं । इस तरह के रिश्तों में बात-बात पर बहस और झगड़ा होने लगता  है, जिससे घर में हमेशा तनाव बना रहता है । इस दौरान पति-पत्नी एक - दूसरे के बीच कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बैठते हैं जिसकी गूंज हमेशा कानों में गूंजती रहती है । वहीं जिन रिश्तों में विश्वास नहीं रहता वह रिश्ता कभी लंबा नहीं चल पाता। वहीं एक दूसरे के प्रति भरोसा भी कम होता जाता है।
इसलिए किसी को कुछ भी बोलने से पहले एक बार जरूर सोचें कि हम क्या बोल रहे हैं।  चाहे हम किसी से गुस्से में बोल रहे हो या बिना गुस्से के। ये सोचें कि जो हम बोल रहे हैं अगर वही हमारे लिए बोला जायेगा तो हमें कैसा महसूस होगा । इसलिए जो भी बोलें अच्छी तरह सोच- विचार कर बोलें।
पति- पत्नी दोनों का फर्ज बनता है कि एक -दूसरे पर भरोसा रखें । एक -दूसरे का सम्मान करें । पति-पत्नी के खुशहाल रिश्ते की प्यारी शर्त होती है एक दूसरे की इज्जत करना। कई बार देखा गया है कि पति-पत्नी एक दूसरे से प्यार तो करते हैं लेकिन एक- दूसरे की प्रॉब्लम नहीं सुनना चाहते या उन्हें महत्व नहीं देते । इसलिए पार्टनर की समस्याओं को सुनें और उसका समाधान निकालने की कोशिश करें । इससे रिश्ते में भी मजबूती आयेगी और एक- दूसरे के लिए प्यार भी बढ़ेगा।
और अंत में किसी ने क्या खूब कहा है "लफ्ज भी क्या चीज है महके तो लगाव और बहके तो घाव"।