क्रिकेटर ईशान किशन 2023 के आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप के 13वें संस्करण को खेलने के बाद औरंगाबाद के दाउदनगर आएंगे

औरंगाबाद: भारतीय क्रिकेट टीम के बहुचर्चित युवा क्रिकेटर ईशान किशन 2023 के आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप के 13वें संस्करण को खेलने के बाद  बिहार के औरंगाबाद जिले के दाउदनगर आएंगे। 

यह घोषणा ईशान के पिता प्रणव पांडेय उर्फ चुन्नू बाबू ने दाउदनगर के भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कॉलेज में सत्र 2020-22 के स्टूडेंट्स के विदाई समारोह में की। 

कॉलेज के सचिव व लोजपा(रामविलास) के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. प्रकाश चंद्रा को जन्मदिन की बधाई देने आए ईशान के पिता ने ईशान को यहां बुलाने के स्टूडेंट्स के आग्रह पर कहा कि 2023 का वर्ल्ड कप 5 अक्टूबर से आरंभ होने जा रहा है, जिसका फाईनल 19 नवम्बर को होगा। फाईनल खेलकर लौटने के बाद ईशान यहां जरूर आएंगे। वही कॉलेज के सचिव डॉ. चंद्रा ने कहा कि हम दाउदनगरवासियों को ईशान किशन पर गर्व है। वें स्टार क्रिकेटर है और हमारे हीं प्रखंड के गोरडीहा गांव के है। उनका दाउदनगर प्रखंड का होना ही हमारा गौरव की बात है। हम सब खुद को खुद को और अधिक गौरवान्वित इसलिए भी महसूस करते हैं कि अपने गांव, शहर के बच्चे ने पूरे विश्व में हमारे शहर और हमारे राज्य का नाम रौशन किया है।

उन्होने ईशान के पिता प्रणव बाबू की ओर से मिली जन्मदिन की शभकामना को सहर्ष स्वीकार करते हुए कहा कि हम प्रणव बाबू जैसे पिता को धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने अपने बच्चे के सपने को पूरा करने में हरसंभव साथ दिया और उनके आर्शीवाद और ईशान किशन की मेहनत का प्रतिफल है जो हमारे देश को ऐसा कोहिनूर मिला। कहा कि जब प्रणव बाबू ने कह दिया कि वर्ल्ड कप खेलने के बाद ईशान यहां आएंगे, तो उनका आना तय मानिएं। प्रणव बाबू वर्ल्ड कप समाप्त होते ही ईशान किशन के यहां आने की तारीख भी बता देंगे। उनके आने का दिन हम सबके लिए गौरव के दिन होंगे। हम सब उनका तहेदिल से सम्मान और स्वागत करेंगे। 

इसके पूर्व कॉलेज के सचिव डॉ. प्रकाश चंद्रा ने कार्यक्रम में क्रिकेटर ईशान किशन के पिता प्रणव पांडेय को अंगवस्त्र, पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कॉलेज के स्टूडेंट्स भी उन्हें अपने बीच पा कर बेहद खुश हुए। गौरतलब है कि ईशान किशन प्रदेश की राजधानी पटना में रहते है और वहां उनके पिता प्रणव पांडेय मेडिकल स्टोर चलाते है। 

ईशान किशन का पैतृक गांव दाउदनगर प्रखंड का गोरडीहा है, जहां उनके दादा राम उग्रह सिंह रहकर खेती किसानी कराते है। उनकी दादी डॉ. सावित्री देवी नवादा की सिविल सर्जन रही है और रिटायर होने के बाद वही बनाए घर पर रहती है। ईशान का अपने दादा से गहरा लगाव है। 

इसी वजह से जब भी मौका मिलता है, वें दाउदनगर आ जाते है। ईशान किशन के पटना स्थित घर के पास ही कॉलेज के सचिव प्रकाश चंद्रा का भी घर है।

बिजली करंट की चपेट में आने से किशोर की मौत


औरंगाबाद (बिहार)

उपहारा थाना क्षेत्र के हमीदनगर गांव निवासी रामकृत चौधरी का 16 वर्षीय पुत्र नीरज कुमार का शुक्रवार की संध्या हाई वोल्टेज बिजली तार के संपर्क में आने से मौत हो गई।

बताते चलें कि मृत किशोर नीरज कुमार अपने गांव से पश्चिम बघोई गांव के बाधार में पशु चरा रहा था इसी दौरान पहले से जर्जर हो कर गिरे हाई वोल्टेज बिजली तार के संपर्क में आ गया और वह मूर्छित होकर गिर पड़ा।

आनन - फानन में ग्रामीणों व परिजनों द्वारा उक्त किशोर को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोह में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने शव को कब्जे में

लेकर अंत्य परिक्षण हेतु सदर अस्पताल औरंगाबाद भेज दिया है। घटना के बाद गांव में मातम पसरा हुआ है वहीं परिजनों का रो-रो कर हाल बेहाल है।

कुमारी जिज्ञासा , प्रखंड संवाददाता गोह 

बनतारा गांव में 28 सितंबर को होगा मुशायरे का आयोजन

औरंगाबाद (बिहार) गोह प्रखंड के बनतारा गांव में 28 सितंबर को हजरत मुबारक शाह चौधरी के दरगाह पर सालाना उर्स पर मुशायरे का आयोजन किया जाएगा। जानकारी देते हुए कमेटी के सदस्य अंजार खान,

मुबारक खान, अजमीतुल्ला खान उर्फ मिंटू ने बताया कि इस आयोजन में शायर तनवीर अहमद मौऊवी, अशद महताब खलिलाबादी,

तबरेज हाशमी, शायरा चांदनी शबनम व तजसूस हाशमी अपने-अपने कलाम पेश करेंगे। वहीं मुशायरा कार्यक्रम का संचालन कनवर नदीम मुबारकबादी करेंगे।

गोह से गौतम कुमार 

मारपीट के मामले में दोषी करार दिए गए तीन अभियुक्तों को कोर्ट ने सुनाई कारावास की सज़ा

औरंगाबाद - आज़ व्यवहार न्यायालय औरंगाबाद में एडिजे चार ब्रजेश कुमार सिंह ने माली थाना कांड संख्या -31/10 में सज़ा के बिन्दु पर सुनवाई करते हुए 20/09/23 को दोषी करार तीन अभियुक्तों को विभिन्न धाराओं में सज़ा सुनाई है। 

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि कल निर्णय पर तीन अभियुक्त पार्वती देवी, भागवत पाठक,बसंत पाठक रेगनिया मंझोली माली को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त किया गया था। वहीं अन्य तीन अभियुक्त रामदत्त पाठक , संतोष पाठक, रमेश पाठक रेगनिया मंझोली माली को कल विभिन्न धाराओं में दोषी करार दिया गया था।  

आज सजा के बिन्दु पर सुनवाई करते हुए न्यायधीश ने अभियुक्त रामदत्त पाठक को भादंवि धारा 324 में एक साल छः माह की सजा और पांच हजार जुर्माना लगाया है। धारा 147 में छः माह की सजा, एक हजार जुर्माना , धारा 448 में एगआरह माह की सजा एक हजार जुर्माना तथा धारा 323 में एगआरह माह की सजा एक हजार जुर्माना लगाया है। सभी सजाएं साथ साथ चलेंगी। वहीं अभियुक्त संतोष पाठक और रमेश पाठक को धारा 324 छोड़कर 147,448,323 की उल्लेखित सज़ा मिली है। 

 अधिवक्ता ने बताया कि प्राथमिकी सूचक बलभद्र पाठक ने बताया कि 27/04/10 को मेरे घर के पीछे जमीनी विवाद करते हुए अभियुक्तों ने लाठी डंडे से मारपीट कर घायल कर दिया। अभियुक्त रामदत्त पाठक ने रड से सूचक के सिर पर हमला कर दिया था। आज सभी तीनों अभियुक्तों को सज़ा सुनाये जाने के पश्चात अपील के लिए जमानत पर छोड़ दिया गया है। 

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

गणेश मंदिर में आयोजित गणेशोत्सव में शामलि हुए लोजपा(रामविलास) के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. प्रकाश चंद्रा

औरंगाबाद - गणेश वंदना के त्योहार गणेश चतुर्थी के पर शहर के गणेश मंदिर में आयोजित गणेशोत्सव में बुधवार को देर शाम लोजपा(रामविलास) के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. प्रकाश चंद्रा शामिल हुए। उन्होने विघ्न विनायक की महा आरती की। 

गणपति की महा आरती के बाद उन्होने अपने हाथों से श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद भी वितरित किया।उन्होने विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश से सभी का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से परिपूर्ण होने की प्रार्थना की।

इस दौरान गणेशोत्सव आयोजन समिति द्वारा उन्हे अंगवस्त्र भेंट कर के सम्मानित किया गया। 

वहीं यह दिन डॉ. चंद्रा का जन्मदिन होने के कारण और भी खास बन गया। आयोजन समिति के सदस्यों ने केक काट कर उनका जन्मदिन भी मनाया।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

औरंगाबाद शहर के महादलित टोला के इस स्कूल में बच्चों को नहीं मिलती कोई सरकारी सुविधा, जानिए इस विद्यालय की पूरी स्थिति

औरंगाबाद : शहर के गांधी मैदान के पास स्थित राजकीय बापू प्राथमिक विद्यालय की हालत बिहार सरकार के बयानवीर शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव केके पाठक के लिए देखने लायक है। इसके पीछे माकूल वजह है। वजह यह कि महादलित टोला में स्थित बिहार का यह एकमात्र ऐसा विद्यालय है, जहां बच्चे ड्रेस में तो आते हैं लेकिन यह ड्रेस उन्हें सरकारी व्यवस्था से नही मिली है। ये पोशाक उन्होने माता-पिता के पैसे से खरीदे है। 

अभिभावक शौक से बच्चों को अपने पैसे से खरीदी गई पोशाक पहनाकर स्कूल भेजते है। इस दलित बस्ती के अधिकांश अभिभावक भंगी हैं और शहर की गंदगी साफ करना इनका रोजमर्रा हैं। इनमें बच्चों को पढ़ाने के प्रति इच्छाशक्ति सरकार की इच्छाशक्ति से ज्यादा दृढ़ है।

विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों ने बताया कि न तो विद्यालय की चहारदीवारी है और न ही पानी का नल। अगर प्यास लगती है तो बच्चे विद्यालय के पास ही लगे सरकारी नल से पानी पीते हैं। विद्यालय में बिजली का कनेक्शन भी नहीं है। इस कारण बच्चें स्कूल के कमरों में गर्मी में पसीने से तर बतर होकर पढ़ने को मजबूर है। हद यह कि स्कूल के शौचालय में हमेशा ताला लगा रहता है। ऐसे में बच्चे शौच के लिए इधर उधर भटकते हैं। 

विद्यालय में चहारदीवारी नही होने के कारण शाम होते ही यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा हो जाता है। इस कारण विद्यालय के नल और हैंडपंप के हैंडल चोरी हो गए है और प्रतिदिन सफाई के बाद भी यहां गंदगी का अंबार लगा है। बच्चों के माता-पिता ने बताया कि उन्हें पोशाक की राशि नहीं मिलती है। इस कारण उन्होने अपने पैसे से बच्चों के ड्रेस बनवाए है। जिसे पहनाकर वें बच्चों को विद्यालय भेजते हैं। अभिभावको ने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से विद्यालय की स्थिति में सुधार लाने की मांग की है।

विद्यालय चहारदीवारी निर्माण के लिए अभिभावकों से मांगे जाते हैं पैसे

अभिभावकों ने बताया कि विद्यालय की चहारदीवारी निर्माण के लिए हमलोगों से पैसे की मांग की जाती है। विद्यालय की प्रभारी प्रधानाध्यापिका कैमरे के सामने बोलने से इंकार कर गई। लेकिन मौखिक तौर पर बताया कि यह विद्यालय पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था और नया बना है और पिछले वर्ष के जून माह से ही यहां विद्यालय संचालित हो रहा है। यहां बच्चों की संख्या 95 है जहां कक्षा 5 तक की पढ़ाई कराई जाती है। स्कूल में कमरे पांच है लेकिन तीन कमरों में ही सभी बच्चों को बैठाना पड़ता है।

यू डायस कोड नहीं होने से सरकारी लाभ से वंचित हैं बच्चे

विद्यालय का यू डायस कोड नही होने के कारण बच्चे सरकारी लाभ नहीं ले पाते है।इसका खामियाजा यहां के शिक्षकों को भी भुगतना पड़ता है। यू डायस कोड नहीं होने के कारण विद्यालय का अपना कोई खाता नहीं है।इस कारण बैठने के लिए टेबल और कुर्सी तक शिक्षकों के द्वारा चंदा कर के मंगाए गए हैं।विद्यालय की अधिकतर सामग्रियां असामाजिक तत्वों के द्वारा चोरी कर ली गई लेकिन विद्यालय का अपना फंड नहीं होने के कारण यहां किसी भी प्रकार के कार्य नहीं हो पाते। विभाग द्वारा जो प्राप्त होता है, वही बच्चों को मिल पाता है। यू डायस कोड नहीं होने के कारण बच्चे सरकारी लाभ से वंचित हैं। 

उन्होंने बताया कि सितंबर माह में कोड जेनरेट होता है। यदि कोड मिल जाता है तो खाते में डेवलपमेंट के लिए आए पैसे से विद्यालय की स्थिति सुधर जाएगी।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

औरंगाबाद मे कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए प्राइवेट अस्पताल बांट रहे मौत, पढिए यह खास रिपोर्ट

औरंगाबाद : जिले में प्राईवेट हॉस्पिटल्स कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए है। इनमें वैध-अवैध दोनों तरह के अस्पताल शामिल है। खास बात यह है कि दोनों ही मौत बांट रहे है। 

लंबें समय की बात छोड़कर यदि सिर्फ तीन माह की ही बात करे तो यहां इन अस्पतालों में तीन माह में तीन मौतें हो चुकी है। मतलब औसत प्रति माह एक मौत का है। मौत बांटने वाले सभी अस्पतालों पर आरोप एक ही है। गलत इलाज करने का। 

हाल-फिलहाल की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो पहला मामला औरंगाबाद शहर के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. बी किशोर के प्राईवेट हॉस्पिटल का है। डॉ. किशोर के अस्पताल में कुटुम्बा थाना के जमुआ गांव निवासी अनीश कुमार सिंह के नवजात शिशु की मौत का है। नवजात शिशु को एनआइसीयू में भर्ती कराया गया था, जहां उसकी मौत हो गई थी। उस वक्त परिजनों ने हंगामा भी किया था। पुलिस के आने पर मामला शांत हुआ था। 

कहा जाता है कि मामले को शांत या कहे मैनेज कराने में सत्ताधारी दल राजद के जिला प्रवक्ता डॉ. रमेश यादव ने अहम भूमिका निभाई थी। क्योकि हॉस्पिटल के संचालक डॉ. किशोर उनके स्वजातीय है। 

दूसरा मामला शहर के सत्येंद्रनगर स्थित डॉ. संतोष कुमार के हॉस्पिटल का हैं और यह मामला राजद के जिला प्रवक्ता डॉ. रमेश यादव से ही जुड़ा है। डॉ. यादव का भतीजा मनीष कुमार(22) बाइक से अपनी मां को साथ लेकर खुद अपना ही फीवर का इलाज कराने आया था, जहां स्लाइन चढ़ाने के बाद उसकी मौत हो गई। मौत के बाद चिकित्सक फरार हो गया। 

वही मामले में राजद के जिला प्रवक्ता डॉ. रमेश यादव के दो चेहरे सामने आए है। पहला चेहरा डॉ. बी किशोर के अस्पताल में नवजात की मौत पर मामले को मैनेज कराने वाला है। वही दूसरा चेहरा आंदोलन वाला है। चूंकि उनके भतीजे की मौत हुई है। इस कारण राजद नेता आंदोलन पर है। शायद मामले में उनका सगा नही होता तो आंदोलन करने के बजाय यहां भी मैनेज कराने का काम करते। फिलहाल डॉ. संतोष का अस्पताल बंद है और वह फरार है। 

इधर राजद नेता डॉक्टर की गिरफ्तारी और चिकित्सक का निबंधन रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलनरत है और घटना के विरोध कैंडल मार्च तक निकाला जा चुका है। 

तीसरा मामला ओबरा के अरविंद हॉस्पिटल में अदमा गांव की सीता देवी की मौत का है। महिला इलाज कराने आई थी। अस्पताल में स्लाइन चढ़ाने के बाद उसकी हालत बिगड़ गई। इसके बाद इलाज करने वाले डॉक्टर ने एंबुलेंस से दाउदनगर स्थित अपने ही अस्पताल में भेज दिया, जहां उसकी मौत हो गई। मौत के बाद दाउदनगर के अरविंद हॉस्पिटल ने मृतका का शव उसके गांव भेज दिया। गांव में शव आते ही परिजनों ने ओबरा आकर अरविंद हॉस्पिटल पर प्रदर्शन भी किया। गलत इलाज करने का आरोप लगाया। 

प्रदर्शन की सूचना पर पुलिस आई हंगामें को शांत कराई। अस्पताल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। साथ ही अस्पताल की ओर से भी प्रदर्शन करने वालों पर एक एफआईआर दर्ज कर लिया। 

दरअसल ताजातरीन ये तीन मामले प्राइवेट अस्पतालों की कारगुजारियों की बानगी मात्र है। पूर्व में भी ऐसे अस्पताल थोक के भाव में मौत बांट चुके है लेकिन आजतक इन पर कोई कार्रवाई नही हुई है। नतीजतन ये अस्पताल आज भी सीना तान कर खड़े है। 

पूरे मामले में पूछे जाने पर औरंगाबाद के सिविल सर्जन सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. रविभूषण श्रीवास्तव ने कहा कि दो निजी अस्पतालों में दो की मौत की शिकायत उनके संज्ञान में आई है। दोनों ही मामलों में चिकित्सक पर गलत इलाज करने का आरोप है। मामले की जांच के लिए उनके नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमिटी गठित की गई है। जांच कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

औरंगाबाद में नहीं है एनेस्थीसिया डॉक्टर:पिछले 6 महीने में नहीं हुए एक भी ऑपरेशन, 9 साल पहले मॉडल अस्पताल का मिल चुका है दर्जा

औरंगाबाद सदर अस्पताल को मॉडल अस्पताल का दर्जा 9 साल पहले ही प्राप्त हो चुका है। लेकिन आज भी अस्पताल में मरीजों को वह सारी सुविधा नहीं मिल पा रही, जो कि एक मॉडल अस्पताल में होनी चाहिए। अस्पताल प्रबंधन ने अभी हाल में ही पुरुष नसबंदी एवं महिला बंध्याकरण को लेकर जागरूकता पखवाड़ा चलाया था। लेकिन पिछले 6 महीने से सदर अस्पताल में एक ही सिजेरियन नहीं हुआ है। सिजेरियन ना होने का कारण एनेस्थीसिया के चिकित्सक का ना होना बताया जा रहा है। सदर अस्पताल में मामूली ऑपरेशन के लिए आए मरीज को निजी क्लीनिक का सहारा लेना पड़ता है।

ऐसे में उन्हें छोटे-छोटे ऑपरेशन के लिए 40 से 50 हजार तक बेवजह खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन इसकी फिक्र ना तो सरकार को है और ना ही अस्पताल प्रबंधन को। स्थिति यह हो गई है कि यहां का ऑपरेशन थिएटर में एक भी मरीज का ऑपरेशन नहीं हुआ है। प्रतिदिन यहां ग्रामीण क्षेत्र के मरीज ऑपरेशन की आस को लेकर आते हैं। लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। हालांकि सदर अस्पताल में ऑपरेशन की व्यवस्था बहाल करने के लिए पूर्व में राज्य सरकार के द्वारा एक वर्ष पूर्व तीन एनेस्थीसिया चिकित्सक भेजे गए। लेकिन उनमें से दो ने योगदान दिया लेकिन एक दिन भी ऑपरेशन के कार्य में शामिल नहीं हुए और नौकरी छोड़कर चले गए।

उस वक्त गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉक्टर कुमार महेंद्र थे और उन्होंने एनेस्थीसिया की ट्रेनिंग ले रखी थी। जिसके कारण सदर अस्पताल में ऑपरेशन हुए। परंतु उनका पदस्थापन जमुई सीएस के रूप में हो गया और वे यहां से चले गए। उनके जाने के बाद अस्पताल में ऑपरेशन का कार्य बंद हो गया।

जानकारी के अनुसार जिले के तीन अस्पतालों में सिजेरियन की व्यवस्था की गई है। जिसमें सदर अस्पताल, रेफरल अस्पताल कुटुंबा और अनुमंडल अस्पताल दाउदनगर शामिल है। लेकिन कहीं भी एनेस्थीसिया के डॉक्टर नहीं होने के कारण ऑपरेशन नहीं हो पा रहे हैं। सदर अस्पताल में एक महीना में 50 ऑपरेशन का लक्ष्य है। लेकिन अभी तक वह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है। यानी की 6 महीना में एक भी जरूरतमंद का ऑपरेशन सदर अस्पताल में नहीं हुआ है।

इस संबंध में सिविल सर्जन डॉक्टर रवि भूषण श्रीवास्तव ने बताया कि सदर अस्पताल में एनेस्थीसिया के चिकित्सक के न होने के कारण यहां ऑपरेशन का कार्य पिछले 6 माह से बंद है। उन्होंने बताया कि चिकित्सक चाहे तो ऑपरेशन कर सकते हैं लेकिन चिकित्सीय एथिक्स के अनुसार वह सही नहीं है। ऐसी स्थिति में कोई चिकित्सक रिस्क नहीं लेना चाहता। क्योंकि कभी कोई केस खराब हो जायेगा तो परेशानी उत्पन्न हो सकती है।

जानकारी मिली है कि सदर अस्पताल के अलावा कुछ पीएचसी और सीएचसी में चिकित्सक अपने रिस्क पर जरूरतमंद लोगों का ऑपरेशन कर रहे हैं। जिससे उन अस्पतालों का टारगेट तो पूरा नहीं हो पा रहा है। लेकिन स्थिति शून्य नही है।सिविल सर्जन ने बताया कि एनेस्थीसिया चिकित्सक के लिए विभाग को पत्र लिखा गया है और उम्मीद है कि शीघ्र ही सदर अस्पताल सहित अन्य अस्पताल को एनेस्थीसिया के चिकित्सक प्राप्त होंगे।जिससे ऑपरेशन का कार्य संपादित किया जा सकेगा।

औरंगाबाद -16 लाख से लगाए गए हीरा बोरिंग से खेतों को सिंचाई के लिए नहीं मिल पा रहा पानी

खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। कुछ ऐसा हाल है ओबरा प्रखंड के नारायणपुर गांव की है। इस गांव में वर्ष 2003-04 में किसानों की सुविधा के लिए हीरा बोरिंग का निर्माण कराया गया था। इस निर्माण कार्य में लगभग 16 लाख रुपए खर्च कर 400 बिगहा जमीन को सिंचित करने के लिए बनाया गया था। यह हीरा बोरिंग उक्त गांव के समीप पुनपुन नदी के किनारे बनाया गया ताकि पुनपुन नदी से पानी लेकर किसानों के खेतों तक पहुंचाया जा सके।

इसके लिए हीरा बोरिंग से लेकर किसान के खेतों तक पाइप लाइन बिछाई गई। शुरुआती दौर में ये लगभग 2 साल सही तरीके से चला। किसान भी काफी खुश थे क्योंकि उनके खेतों तक पानी पहुंच रही थी। लेकिन सही तरीके से पाइप लाइन नहीं बिछाने के कारण वह कहीं कहीं जाम हो गया तो कहीं टूटकर ध्वस्त हो गया। जिसके कारण किसानों के खेतों तक सिंचाई के लिए पानी नहीं पहुंच सका। विभागीय उदासीनता के कारण उसके बाद यह पूरी तरह से बंद पड़ा रह गया। लगभग 14 सालों से यह योजना बंद पड़ा हुआ है।

किसानों ने कहा- सिंचाई विभाग की लापरवाही के कारण बंद पड़ा है यह योजना : स्थानीय किसान अंबुज शर्मा, अरुण शर्मा, कपिल देव नारायण सिंह, पिंटू शर्मा, सच्चिदानंद सिंह, विक्रम शर्मा, अखिलेश शर्मा, महेश शर्मा सहित अन्य ने बताया कि हीरा बोरिंग का निर्माण होने से हम सभी किसानों में एक उम्मीद की किरण जगी थी कि अगर बरसात कम हो तो भी इसके माध्यम से हम सभी किसान अच्छे फसल का पैदावार कर सकते हैं। लेकिन कुछ ही दिन में यह बंद हो गया।

फिर एक माह से बंद पड़ा है हीरा बोरिंग किसानों ने बताया कि लगभग एक माह से हीरा बोरिंग फिर से बंद पड़ा है। जब चालू था तो आसपास के कुछ किसान डिलीवरी पाइप से अपने खेतों तक पानी ले जा रहे थे। लेकिन जिस उद्देश्य के साथ इसका निर्माण किया गया था। वह उद्देश्य सफल नहीं हो सका।

कोर्ट के आदेश की अवहेलना करना थाना प्रभारी को पड़ा महंगा, वेतन कटौती का जारी हुआ आदेश

औरंगाबाद: आज व्यवहार न्यायालय औरंगाबाद के एडीजे सप्तम सुनील कुमार सिंह ने नगर थाना प्रभारी के वेतन से दस हजार रुपए कटौती का आदेश जारी किया है। 

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि नगर थाना कांड संख्या -513/23 में नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायधीश ने यह आदेश दिया है। 

अधिवक्ता ने बताया कि इस वाद में नगर थाना से कांड दैनिकी और अभियुक्त के अपराधिक इतिहास की मांग 24/08/23 को की गई थी। स्मारपत्र 05/09/23 को भेजा गया था, इसके बावजूद कोर्ट से मांगी गई प्रतिवेदन न्यायालय में पेश नहीं किया गया। 

आदेश के अवमानना को देखते हुए पुनः कारण पृच्छा 14/09/23 को की गई, जो अभी तक अप्राप्त है। आज न्यायधीश ने आदेश में कहा है कि आदेश का अवहेलना को देखते हुए विधि सम्मत कार्यवाही उचित प्रतीत होता है आदेश के घोर अवहेलना के कारण याचिका पर सुनवाई लम्बित है इसलिए थानाप्रभारी के वेतन से दस हजार रुपए कटौती का आदेश दिया जाता है। 

इसके अनुपालन के लिए आरक्षी अधीक्षक और कोषागार पदाधिकारी औरंगाबाद को आदेश का एक एक कोपी भेजा जा रहा है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र