धरती के कारण चंद्रमा पर बन रहा है पानी, चंद्रयान-1 के डेटा स्टडी के बाद वैज्ञानिकों का दावा
#chandrayaan_1_data_suggests_electrons_from_earth_forming_water_on_moon
15 साल पहले लॉन्च हुए भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी का पता लगाया था। यह मिशन आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है। चंद्रयान-1 की ओर से भेजे गए डेटा की स्टडी के बाद अब खुलासा हो रहा है कि धरती की वजह से ही चांद पर पानी बन रहा है। चंद्रयान-1 के डेटा की स्टडी कर रहे अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने दावा किया है कि पृथ्वी के हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं, जो मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है, यानी इनके होने से ही पृथ्वी के मौसम में बदलाव होता है।
अमेरिका के मनोआ में हवाई विश्वविद्यालय (यूएच) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली टीम ने चंद्रयान-1 के रिमोट सेंसिंग डेटा का एनालिसिस किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर अपक्षय प्रक्रियाओं यानी चट्टानों और खनिजों के टूटने या घुलने में मदद कर रहे हैं। नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में इसे लेकर एक शोध प्रकाशित किया गया है। इस शोध में पाया गया कि इलेक्ट्रॉन चंद्र पिंड पर पानी का निर्माण करने में मदद किए होंगे।
इस स्टडी में कहा गया है कि भले ही चंद्रमा पर तेजी से पानी के उत्पादन के प्रमुख स्रोत के रूप में सोलर विंड के महत्व की पुष्टि की गई है, मगर धरती के प्लाज्मा शीट के अब तक नहीं देखे गए गुण भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। साइंटिस्टों ने कहा कि चंद्रमा पर पानी के जमाव और वितरण को जानना इसके गठन और विकास को समझने और भविष्य में मानव खोजों के लिए जल संसाधन उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले क्षेत्रों में पहले तलाशी गई बर्फ की उत्पत्ति को समझने के लिए चंद्रयान -1 मिशन के डेटा का उपयोग किया है। रिसर्चर्स ने पिछली रिसर्च पर और काम किया। इसमें पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में ऑक्सीजन की वजह से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में लोहे को जंग लगा रही है। साथ ही चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने पर सतह के मौसम में बदलाव की जांच करने का निर्णय लिया। ली शुआई जो इस रिसर्च में शामिल थे उन्होंने बताया, यह चंद्रमा की सतह पर पानी के गठन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक नैचुरल लैब मुहैया कराता है। जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा की वजह से बमबारी होती है। मैग्नेटोटेल के अंदर सौर हवा के प्रोटॉन लगभग न के बराबर होते हैं। ऐसे में पानी के निर्माण की उम्मीद जीरो थी।
आसान शब्दों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि चांद पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। यानी 14 दिन ही यहां पर सूरज की रोशनी होती है। जब यहां सूरज की रोशनी नहीं होती तो सोलर विंड की बौछार होती है। इसी दौरान पानी बनने का दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि नई खोज पहले खोजी गई पानी की बर्फ की उत्पत्ति को समझाने में भी मददगार हो सकती है।
मालूम हो कि चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल लॉन्च किया था। चंद्रयान-1 ने आठ महीने में चांद के 3,000 चक्कर लगाए और 70 हजार से ज्यादा तस्वीरें भेजीं। इनमें चांद पर बने पहाड़ों और क्रेटर को भी दिखाया गया था। चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधेरे इलाके के फोटो भी इसने भेजे। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी चांद पर पानी के होने की पुष्टि थी।
Sep 15 2023, 18:19