आदिवासी क्यों कर रहे हैं समान नागरिक संहिता का विरोध, कई राज्यों में उठ रहे विरोध में स्वर
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता को लेकर जबसे बयान दिया है, तब से देशभर में इस पर बहस जारी है।लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पूरी सियासत इसी यूनिफार्म सिविल कोड के ईदगिर्द ही नजर आएगी। इसलिए केंद्र सरकार भी इस दिशा में तेजी से काम करते हुए दिखाई दे रही है।माना जा रहा है कि मोदी सरकार मानसून सत्र में ही यूसीसी विधेयक ला सकती है। विधि आयोग ने हाल ही में लोगों से नागरिक संहिता पर राय मांगी थी। देश भर से अब तक 8.5 लाख लोगों ने इस पर अपना विचार भी साझा किया है। हालांकि इसी बीच समाज के कई वर्गों से भी तीव्र और तीखा विरोध भी सुनने को मिल रहा है। नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समाज के साथ आदिवासी समाज में भी नजर आ रहा है। आदिवासी समाज भी केंद्र सरकार की इस कोशिश के विरोध में आवाज बुलंद कर रहा है।
यूसीसी के लागू होने से ये अधिकार खत्म होने का डर
देश के कई आदिवासी संगठन इस आशंका में हैं कि अगर यह कानून लागू हुआ तो उनके रीति-रिवाजों पर भी इसका असर पड़ेगा। झारखंड के भी 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने ये निर्णय लिया है कि वो विधि आयोग के सामने यूनिफॉर्म सिविल कोड के विचार को वापस लेने की मांग रखेंगे। इन आदिवासी संगठनों का मानना है कि यूसीसी के कारण आदिवासियों की पहचान ख़तरे में पड़ जाएगी। आदिवासी संगठनों का कहना है कि समान नागरिक संहिता के आने से आदिवासियों के सभी प्रथागत कानून खत्म हो जाएंगे। छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट, संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, एसपीटी एक्ट, पेसा एक्ट के तहत आदिवासियों को झारखंड में जमीन को लेकर विशेष अधिकार हैं। आदिवासियों को भय है कि यूसीसी के लागू होने से ये अधिकार खत्म हो जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में यूसीसी पर भी आदिवासी संगठनों को ऐतराज
छत्तीसगढ़ में यूसीसी पर भी आदिवासी संगठनों को ऐतराज है। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने पीएम मोदी से सीधा सवाल पूछा है कि इस कानून के लागू होने के बाद आदिवासी संस्कृति और प्रथाओं का क्या होगा। छत्तीसगढ़ में हमारे पास आदिवासी लोग हैं उनकी मान्यताओं और रूढ़िवादी नियमों का क्या होगा, जिनके माध्यम से वे अपने समाज पर शासन करते हैं। अगर यूसीसी लागू हो गया तो उनकी परंपरा का क्या होगा। हिंदुओ में भी कई जाति समूह हैं जिनके अपने नियम हैं।
पूर्वोत्तर के राज्यों में भी यूसीसी का विरोध
पूर्वोत्तर के राज्यों में भी समान नागरिक संहिता का विरोध तेजी से हो रहा है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मिजोरम, नागालैंड और मेघालय में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक है। मिजो नेशनल फ्रंट के नेता थंगमविया ने कहा था कि सिद्धांत के रूप में यूसीसी की चर्चा करना आसान है, लेकिन इसे मिजोरम में लागू नहीं किया जा सकता है। अगर इसे लागू किया गया तो यहां कड़ा विरोध होगा। मेघालय में आदिवासियों की आबादी 86.1 फीसदी है। जानकारी के अनुसार, मेघालय की खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ने 24 जून को एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि समान नागरिक संहिता खासी समुदाय के रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रथाओं, शादी और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को प्रभावित करेगा। मेघालय में खासी, गारो और जयंतिया समुदाय के अपने नियम हैं। ये तीनों ही मातृसत्तात्मक समुदाय हैं और इनके नियम निश्चित रूप से यूसीसी से टकराएंगे। जबकि नागालैंड में नागालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल के अलावा नागालैंड ट्राइबल काउंसिल ने भी यूसीसी का विरोध करने की घोषणा की है।
आदिवासी अपने रीति-रिवाजों में फेरबदल नहीं चाहते
दरअसल, भारत में अभी शादी, तलाक़, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं। यूसीसी आने के बाद भारत में किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह किए बग़ैर सब पर इकलौता क़ानून लागू होगा। आदिवासी अपने रीति-रिवाजों में फेरबदल नहीं चाह रहे हैं। आदिवासियों का कहना है कि उनके कानून संवैधानिक रूप से संहिताबद्ध नहीं हैं और उन्हें डर है कि यूसीसी उनकी प्राचीन पहचान को कमजोर कर देगा।
बता दें कि प्रधानमंत्री ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि 'एक ही परिवार में दो लोगों के अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा? पीएम मोदी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है। सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है. कहता है कॉमन सिविल कोड लाओ। लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं। लेकिन भाजपा सबका साथ, सबका विकास की भावना से काम कर रही है।
Jul 04 2023, 10:34