श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद पर फिर से मथुरा की अदालत में होगी सुनवाई
डेस्क: मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच चल रहे जमीन विवाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीधे तौर पर फैसला सुनाने के बजाय मामले को वापस मथुरा की अदालत में भेज दिया है। हाई कोर्ट ने मथुरा की जिला अदालत को इस मामले में फिर से नए सिरे से सुनवाई कर फैसला सुनाने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने मथुरा की अदालत से यह भी कहा है कि वह इस केस से जुड़े पक्षकारों की सभी दलीलों और आपत्तियों पर विचार करने के बाद ही कोई फैसला पारित करे।
हाई कोर्ट के फैसले का हिंदू पक्ष ने किया स्वागत
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद मथुरा जमीन विवाद मामले की जांच एक बार फिर से अब मथुरा की जिला अदालत ही करेगी। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट की याचिका को निस्तारित करते हुए जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच ने आज अपना फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट के फैसले का हिंदू पक्ष ने स्वागत किया है। हिंदू पक्ष के वकीलों का कहना है कि हाई कोर्ट के इस फैसले से केस की सुनवाई दोबारा शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। दोबारा सुनवाई शुरू होने पर उनकी संभावनाएं बरकरार रहेंगी। दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह इस फैसले की समीक्षा करेगा। उसके बाद ही अपनी कोई प्रतिक्रिया देगा।
13.37 एकड़ जमीन हिंदुओं को सौंपे जाने की मांग
दरअसल, साल 2020 में भगवान श्री कृष्ण विराजमान के वाद मित्र के तौर पर मथुरा की अदालत में एक सिविल वाद दायर किया गया। इस वाद में श्री कृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद की 13.37 एकड़ जमीन हिंदुओं को सौंपे जाने की मांग की गई। यह दलील दी गई कि जमीन विवाद को लेकर 20 जुलाई 1973 के आपसी समझौते के फैसले को रद्द कर दिया जाए और विवादित जमीन हिंदुओं को दी जाए। मथुरा के सिविल जज ने 30 सितंबर 2020 को यह सिविल वाद यानी अर्जी खारिज कर दी।
1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की दी गई दलील
याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को जिला जज की कोर्ट में चुनौती दी। इस रिवीजन अर्जी पर सुनवाई करते हुए जिला जज की अदालत ने 19 मई 2022 को अपना फैसला सुनाया। फैसले में सिविल कोर्ट के वाद खारिज होने के आदेश को रद्द कर दिया गया और सुनवाई करने का आदेश दिया गया। जिला जज के आदेश पर सिविल कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई। जिला जज के इस आदेश को शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। दलील दी गई कि 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इस मामले में सुनवाई नहीं की जा सकती। इसके अलावा जमीन की बाजारू कीमत 25 लाख रुपये से ज्यादा है, इसलिए जिला जज की कोर्ट को मामले में सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार ही नहीं है। मस्जिद ट्रस्ट और वक्फ बोर्ड की अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने जिला जज के फैसले पर रोक लगा दी थी।
May 01 2023, 19:20