सांसदों के वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी, जानें अब कितनी होगी सैलरी

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केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन में इजाफे का ऐलान किया है। केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन में 24 प्रतिशत की वृद्धि की सूचना दी है। 1 अप्रैल 2023 से सांसदों को एक लाख की जगह 1.24 लाख रुपये वेतन के तौर पर मिलेंगे। सरकार की ओर से सांसदों की पेंशन और भत्ता में भी इजाफा किया गया है।

संसदीय कार्य मंत्रालय ने सोमवार को एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया। नोटिफिकेशन के अनुसार, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों का वेतन 1 लाख रुपये से बढ़कर 1.24 लाख रुपये प्रति माह हो गया है। वहीं, दैनिक भत्ता 2,000 रुपये से बढ़कर 2,500 रुपये हो गया है।

नए वेतन और भत्ते इस प्रकार हैं:

सांसदों का मासिक वेतन

पहले: ₹1,00,000 प्रति माह

अब: ₹1,24,000 प्रति माह

दैनिक भत्ता (संसद सत्र के दौरान बैठकों में भाग लेने पर)

पहले: ₹2,000 प्रति दिन

अब: ₹2,500 प्रति दिन

पूर्व सांसदों की मासिक पेंशन

पहले: ₹25,000 प्रति माह

अब: ₹31,000 प्रति माह

अतिरिक्त पेंशन (पांच वर्ष की सेवा से अधिक के प्रत्येक वर्ष के लिए)

पहले: ₹2,000 प्रति माह

अब: ₹2,500 प्रति माह

सरकार ने सैलरी में ये बढ़ोतरी महंगाई को ध्यान में रखते हुए की है, जिससे सांसदों को काफी मदद मिलेगी। इसपर सरकार का कहना है कि यह सैलरी इजाफा पिछले 5 सालों में बढ़ी महंगाई को देखते हुए की गई है। आरबीआई द्वारा निर्धारित महंगाई दर और लागत सूचकांक के आधार पर यह बदलाव किया गया है। इसका लाभ वर्तमान और पूर्व सांसदों को मिलेगा।

इससे पहले, सांसदों के वेतन और भत्तों में बदलाव अप्रैल 2018 में किया गया था।2018 में सांसदों का मूल वेतन 1 लाख रुपये महीना तय किया गया था। इसका मकसद था कि उनकी सैलरी महंगाई और जीवन यापन की बढ़ती लागत के हिसाब से हो। 2018 के बदलाव के अनुसार, सांसदों को अपने क्षेत्र में ऑफिस चलाने और लोगों से मिलने-जुलने के लिए 70 हजार रुपये का भत्ता मिलता है। इसके अलावा, उन्हें ऑफिस के खर्च के लिए 60 हजार रुपये महीना और संसद सत्र के दौरान हर दिन 2 हजार रुपये का भत्ता मिलता है। अब इन भत्तों में भी बढ़ोतरी की जाएगी।

एलन मस्क की कंपनी 'एक्स' ने किया भारत सरकार पर मुकदमा, जानें पूरा मामला

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एलन मस्क की कंपनी एक्स कॉर्प ने भारत सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 79(3)(बी) को चुनौती दी गई है। कंपनी का आरोप है कि यह नियम सरकार को अनुचित और गैरकानूनी सेंसरशिप लागू करने की शक्ति देता है, जिससे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संचालन पर गंभीर असर पड़ रहा है। एक्स का तर्क है कि यह नियम सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करता है और ऑनलाइन स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कमजोर करता है।

आईटी एक्ट की धारा 79(3)(बी) के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह कुछ खास परिस्थितियों में इंटरनेट पर मौजूद कंटेंट को हटाने या ब्लॉक करने का आदेश दे सकती है। यदि कोई प्लेटफॉर्म 36 घंटों के भीतर अनुपालन करने में विफल रहता है, तो उसे धारा 79(1) के तहत और उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) सहित विभिन्न कानूनों के तहत जवाबदेह ठहराया जा सकता है। यह नियम ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों को अवैध सामग्री को हटाने के लिए जवाबदेह बनाने के लिए डिजाइन किया गया है और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि ऑनलाइन सामग्री कानूनी और नैतिक मानकों का पालन करती है।

हालांकि, एक्स कॉर्प का दावा है कि सरकार इस प्रावधान का दुरुपयोग कर रही है। कंपनी के मुताबिक, कंटेंट हटाने के लिए सरकार को लिखित में ठोस कारण बताना चाहिए, प्रभावित पक्ष को सुनवाई का मौका देना चाहिए और इस फैसले को कानूनी रूप से चुनौती देने का अधिकार भी होना चाहिए। एक्स ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत सरकार ने इनमें से किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

सेंसरशिप के लिए कानून के दुरुपयोग का आरोप

एक्स ने आरोप लगाया है कि सरकार उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने ढंग से सेंसरशिप लागू करने के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है। एक्स का मानना है कि यह प्रावधान सरकार को सामग्री को नियंत्रित करने के लिए अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करता है।

ग्रोक को लेकर गहराया विवाद

यह विवाद तब और गहरा गया, जब केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक्स कॉर्प से उसके एआई चैटबॉट ग्रोक को लेकर स्पष्टीकरण मांगा। ग्रोक, जिसे एक्स की मूल कंपनी xAI ने विकसित किया है, हाल ही में कुछ सवालों के जवाब में अभद्र भाषा और गालियों का इस्तेमाल करता पाया गया। भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए कंपनी से जवाब तलब किया है।

बता दें कि एलन मस्क के एआई चैटबॉट ग्रोक ने हाल ही में उपयोगकर्ताओं की तरफ से उकसाने के बाद हिंदी में अपशब्दों से भरी प्रतिक्रिया दी।

पहेल भी हो चुका है तनाव

इससे पहले भी साल 2022 में सरकार ने धारा 69ए के तहत एक्स को कुछ कंटेंट हटाने का निर्देश दिया था, जिसे लेकर कंपनी और सरकार के बीच तनाव देखा गया था।

आप सांसद हरभजन सिंह ने अपनी ही पार्टी की सरकार को घेरा, पंजाब में बुलडोजर एक्शन पर उठाया सवाल

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पंजाब में भगवंत मान सरकार का ड्रग्स माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ एक्शन जारी है। पुलिस अपराधियों को सबक सिखाने के लिए बुलडोजर चला रही है। इस बीच आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद और पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने अपनी ही पार्टी की सरकार के एक्शन पर सवाल उठाया है। हरभजन सिंह ने पंजाब सरकार की मुहिम को लेकर पार्टी विचारधारा से अलग बयान दिया है। हरभजन सिंह ने कहा कि कोई नशा बेचता है तो उसका घर गिरा दिया, मैं इस बात के हक में नहीं हूं।

हरभजन किसी का घर तोड़ने के पक्ष में नहीं

हरभजन सिंह ने कहा कि नशे के खात्मे के लिए नशा तस्करों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जो लोग नशे की तस्करी कर रहे हैं, उन्हें पकड़कर सजा दी जानी चाहिए। जो नशा बेच रहे हैं, उन पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें यह सीखना चाहिए कि नशा लोगों की सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। उन्होंने कहा कि हालांकि, वह किसी का घर तोड़ने के पक्ष में नहीं हैं।

सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे पर दिया सुझाव

हरभजन सिंह ने साफ तौर से कहा कि अगर किसी व्यक्ति का घर पहले से बना हुआ है और वह किसी छत के नीचे रह रहा है, तो सबसे पहले यह देखा जाना चाहिए कि वह घर किस तरीके से बना है। अगर घर अवैध तरीके से बना है, तो उस पर कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन घरों को नष्ट करना सही तरीका नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर किसी ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है, तो सरकार को अपनी जमीन जरूर वापस लेनी चाहिए। हालांकि, यदि किसी ने घर बना लिया है, तो सरकार को उसे कहीं और स्थानांतरित करने का उचित इंतजाम करना चाहिए।

नशे के खिलाफ काम करने की अपील

पंजाब सरकार नशे के खिलाफ ‘युद्ध नशेयां विरुद्ध’ मुहिम चला रही है। हरभजन सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा नशे के खिलाफ मुहीम चलाई जा रही है। नशा एक बहुत ही खतरनाक चीज है। यह लोगों को समझना चाहिए कि नशे से उनकी जिंदगी के साथ-साथ उनका शरीर भी खराब हो रहा है। नशा पूरे के पूरे परिवार को ही खत्म कर देता है। हम सभी पंजाबियों की जिम्मेदारी है कि एक मूव को शुरू किया जाए और हर एक पंजाबी को नशे के खिलाफ काम करना चाहिए।

मोहम्मद यूनुस ने अपने ही राजदूत का पासपोर्ट किया रद्द, सच बोलने की दी सजा

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बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार अपने ही राजदूत हारून रशीद का पासपोर्ट रद्द करने जा रही है। उनके साथ ही उनके परिवार के पासपोर्ट भी रद्द किए जाएँगे। दरअसल, मोरक्को में बांग्लादेश के राजदूत हारुन अल रशीद ने अपनी ही सरकार को घेरा था। राजदूत हारुन अल रशीद ने मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों का समर्थन करने और देश में अराजकता फैलाने का गंभीर आरोप लगाए थे। रशीद के इस फेसबुक पोस्ट से जब यूनुस सरकार ने अपनी पोल खुलती देखी, तो फिर दबाव में आ गए।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में दावा किया कि रशीद को दिसम्बर, 2024 में ही अपना पद छोड़कर बांग्लादेश वापस बुलाया गया था। विदेश मंत्रालय ने बताया कि रशीद इसमें आनाकानी करते रहे और फरवरी, 2025 में उन्होंने अपना पद भी छोड़ दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि रशीद अब कनाडा चले गए हैं।

मोहम्मद यूनुस सरकार की आलोचना को विदेश मंत्रालय ने एजेंडा करार दिया है। यूनुस सरकार ने कहा है कि रशीद के बयान सच्चाई से इतर हैं। विदेश मंत्रालय ने यूनुस सरकार की आलोचना को सिम्पथी बटोरने का एक साधन करार दिया है।

बांग्लादेश की पहचान को नष्ट करने का आरोप

इससे पहले हारून रशीद ने 14 मार्च को फेसबुक पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट किया था। हारुन अल रशीद ने पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश आतंक और अराजकता की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के शासन में कट्टरपंथियों को खुली छूट दी गई है और मीडिया को दबा दिया गया है, जिससे अत्याचार की खबरें सामने नहीं आ रही हैं। रशीद ने लिखा, यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने में लगे हैं। ये लोग संग्रहालयों, सूफी दरगाहों और हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं।

कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन देने का आरोप

रशीद ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के बाद से मुहम्मद यूनुस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। वह अब एक सुधारक नहीं बल्कि एक अत्याचारी शासक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने जिस बांग्लादेश का निर्माण किया था, यूनुस ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि यूनुस के शासन के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। कट्टरपंथी संगठन जैसे हिजब-उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा खुलेआम इस्लामी शासन की मांग कर रहे हैं और इन्हें यूनुस का समर्थन मिल रहा है।

यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

रशीद ने आगे कहा कि, बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन अब कट्टरपंथी इस पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना दोनों ही चरमपंथियों के निशाने पर रहे हैं, और अब यूनुस भी इन्हें शह दे रहे हैं।

जीएसटी पर गरमाई राजनीति, पॉपकॉर्न के बाद डोनट्स को लेकर कांग्रेस के निशाने पर सरकार

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केंद्र सरकार की जीएसटी को लेकर कांग्रेस के निशाने पर है। कांग्रेस ने शनिवार को जीएसटी की अलग-अलग दरें लागू करने को लेकर केन्द्र पर एक बार फिर से तीखा प्रहार किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार (15 मार्च) को कहा कि पॉपकॉर्न के बाद अब ‘डोनट’ पर भी जीएसटी का असर देखने को मिल रहा है। उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश को अब ‘जीएसटी 2.0’ की जरूरत है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सिंगापुर स्थित चेन मैड ओवर डोनट्स को अपने व्यवसाय को कथित रूप से गलत तरीके से वर्गीकृत करने और 5 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान करने के लिए 100 करोड़ रुपये का कर नोटिस का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी ने दावा किया कि यह एक रेस्टोरेंट सेवा है, जबकि बेकरी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत कर का भुगतान किया जा रहा है। इस वजह से कंपनी पर भारी टैक्स बकाया हो गया। अब ये मामला मुंबई हाई कोर्ट में पहुंच चुका है जहां इस पर कानूनी लड़ाई जारी है।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की हकीकत यही- जयराम रमेश

जयराम रमेश ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये पूरा मामला बताता है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की असलियत क्या है। सरकार इस नारे का इस्तेमाल तो करती है, लेकिन हकीकत में व्यापारियों को बेवजह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रमेश ने कहा कि टैक्स प्रणाली में कई विसंगतियां हैं और इसलिए अब जीएसटी 2.0 की जरूरत महसूस हो रही है ताकि सभी व्यापारियों को समान अवसर और राहत मिल सके।

जीएसटी को लेकर पहले भी सवाल उठा चुकी कांग्रेस

पिछले साल दिसंबर में, कांग्रेस ने कहा था कि जीएसटी के तहत पॉपकॉर्न के लिए तीन अलग-अलग टैक्स स्लैब की "बेतुकी" व्यवस्था केवल सिस्टम की बढ़ती जटिलता को उजागर करती है और पूछा कि क्या मोदी सरकार जीएसटी 2.0 को लागू करने के लिए पूरी तरह से बदलाव करने का साहस दिखाएगी।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?

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देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

गोधरा कांड को लेकर केन्द्र का अहम फैसला, गवाहों की सुरक्षा हटी, 14 लोगों की हिफाजत कर रहे थे 150 जवान

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गोधरा कांड को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अहम फैसला लिया है। गोधरा कांड के 14 गवाहों की सुरक्षा हटा दी गई है। जिन्हें सीआईएसएफ के 150 जवानों द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही थी। सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय ने एसआईटी की रिकमेंडेशन रिपोर्ट के आधार पर 14 गवाहों की सुरक्षा को हटाने का फैसला लिया है। गोधरा कांड पर बनी एसआईटी ने 10 नवंबर 2023 को इन गवाहों की सुरक्षा हटाने की अपनी रिपोर्ट दी थी। वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा में सारबमती एक्सप्रेस आगजनी में अयोध्या से लौट रहे 59 हिंदू तीर्थयात्रियों की जलकर मौत हो गई थी। इस घटना के बाद गुजरात में व्यापक स्तर पर दंगे भड़के थे, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे।

गोधरा कांड के गवाहों को 2009 से तत्कालीन यूपीए सरकार के रिकमेंडेशन पर सुरक्षा मिल रही थी, दो दिनों पहले ये सुरक्षा हटाई गई। पूर्व पीएम दिवंगत मनमोहन सिंह सरकार ने इन गवाहों को सुरक्षा मुहैया करवाई थी। गवाहों की सुरक्षा में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के 150 से ज्यादा जवान तैनात थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गोधरा कांड की जांच करने वाली एसआईटी के सुझाव पर यह फैसला लिया है।

क्या है गोधरा कांड

27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी में आग लगा दी गई थी। इस हादसे में 58 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे राज्य में दंगे भड़के थे, जिसके बाद केंद्र सरकार को भारी सेना भेजनी पड़ी थी। मामला यहां थमा नहीं था, इसके बाद बलात्कार, लूटपाट और संपत्ति के नुकसान, घरों और दुकानों को जलाने की भी कई खबरें सामने आईं थीं।

ये भारत में सबसे भीषण सांप्रदायिक हिंसा में से एक था। इस हादसे में जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदुओं सहित 1044 लोग मारे गए थे। इस हादसे के बाद लगभग 2 लाख लोग विस्थापित हुए, जिसमें से कई लोग अपने घरों में वापस नहीं जा सके और नए इलाकों में बस गए।

भगवान भरोसे हिमाचल की सरकार, आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार ने मंदिरों से मांगी मदद

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हिमाचल प्रदेश आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है। वहीं अब कांग्रेस सरकार इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए “भगवान की शरण” में हैं। हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट के बीच सुक्खू सरकार के पास अपनी योजनाओं को चलाने के लिए पैसा नहीं है। इसी के चलते अब सरकार ने प्रदेश के बड़े मंदिरों से पैसा मांगा है। सरकार ने मंदिरों को मिलने वाले चढ़ावे से धन की मांग की है। सीएम ने राज्य सरकार के तहत आने वाले सभी मंदिरों और उनको संभाल रहे स्थानीय डीसी को पत्र लिखा है और चढ़ावे के पैसे में से दो सरकारी योजनाओं के लिए पैसे देने का आग्रह किया है।

29 जनवरी को हिमाचल प्रदेश सरकार के भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर ट्रस्ट को एक पत्र लिखा था और मंदिर कमेटियों से जरूरतमंद बच्चों की मदद का आग्रह किया। सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दो योजनाओं के लिए मंदिरों से आर्थिक सहायता मांगी है। इन दो सरकारी योजनाओं में पहली योजना का नाम है मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना और दूसरी मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना।

सरकार की अपील पर डीसी ने मंदिर न्यास को आर्थिक मदद करने के लिए पत्र जारी किए हैं। पत्र में लिखा गया है कि मुख्यमंत्री सुखाश्रय और सुख शिक्षा योजना की मदद सरकार के अधीन आने वाले मंदिरों के ट्रस्ट भी करेंगे। भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर कमेटियों से जरूरतमंद बच्चों की मदद का आग्रह किया है।

मुख्य आयुक्त मंदिर, सचिव भाषा एवं संस्कृति की ओर से जारी पत्र में कहा गया कि प्रदेश के सभी मंदिर न्यासों में चढ़ावे से हो रही आय के अनुरूप मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना के लिए धन जुटाया जाए। इस पत्र के संदर्भ में उपायुक्तों ने मंदिर न्यास के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिवों को आदेश जारी किए हैं कि न्यास की बैठकें बुलाकर इस योजना के लिए धन का प्रावधान किया जाए।

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सरकार की इस कमजोरी पर सवाल उठाया है।हिमाचल प्रदेश विधानसभा एलओपी ने कहा कि राज्य सरकार के नियंत्रण में लगभग 36 प्रमुख मंदिर हैं, और इन मंदिरों से सरकारी योजना को चलाने के लिए धन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है।एक तरफ, सुख सरकार सनातन धर्म का विरोध करती है, हिंदू विरोधी बयान देती रहती है और दूसरी तरफ, वह मंदिरों से पैसा लेकर सरकार की प्रमुख योजना चलाना चाहती है। सरकार मंदिरों से पैसा मांग रही है, और अधिकारियों पर पैसा सरकार को भेजने का दबाव डाला जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी सरकार के इस फैसले का विरोध करती है।

अब दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक और अस्पतालों की खुली पोले,CAG रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

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दिल्ली विधानसभा सत्र का आज चौथा दिन है। दिल्ली विधानसभा का आज का दिन भी अहम है। आज यानी शुक्रवार को स्वास्थ्य विभाग की कैग रिपोर्ट पेश होगी। यह रिपोर्ट एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की परेशानी बढ़ा सकती है।दरअसल दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर कैग की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। जिसे लेकर आज विधानसभा में एक बार फिर से हंगामे के आसार हैं।

सूत्रों का कहना है कि कैग रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं। कैग रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली के अस्पतालों में बिस्तरों की भारी कमी है। साथ ही कोविड के दौरान जितने पैसे मिले थे, उतने खर्च भी नहीं हुए। रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार से मिले 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए, जबकि बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई। इसके चलते कोरोना संकट के दौरान जरूरी सुविधाओं की भारी कमी रही।

सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी

दिल्ली सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन सिर्फ 1,357 बेड ही जोड़े गए, जो कि कुल लक्ष्य का मात्र 4.24% है। राजधानी के कई अस्पतालों में बेड की भारी कमी देखी गई, जहां बेड ऑक्यूपेंसी 101% से 189% तक रही, यानी एक ही बेड पर दो-दो मरीजों को रखा गया या मरीजों को फर्श पर इलाज कराना पड़ा।

डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी

रिपोर्ट में अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ की भारी कमी का भी जिक्र किया गया है। इतना ही नहीं, इसमें साफ-साफ कहा गया है कि मोहल्ला क्लीनिक आने वाले मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर एक मिनट से ज्यादा वक्त नहीं देते थे। इतना ही नहीं, इनमें से कई क्लीनिक में पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, एक्स-रे व्यूअर, थर्मामीटर और ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग डिवाइस जैसी बुनियादी चिकित्सा उपकरण भी नहीं थे। ऑडिट में यह भी सामने आया है कि जिन क्लीनिक का मूल्यांकन किया गया, उनमें से 18% क्लीनिक 15 दिनों से लेकर 23 महीनों तक बंद रहे। इसकी मुख्य वजह डॉक्टरों की अनुपलब्धता, इस्तीफे और डी-एम्पैनलमेंट रही।

बड़े पैमाने पर खाली पद भरे ही नहीं गए*

दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े पैमाने पर खाली पद भरे ही नहीं गए, जिससे आधारभूत ढांचा खराब हुआ। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में 3268 पद DGHS में 1532 पद स्टेट हेल्थ मिशन में 1036 पद ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में 75 पद खाली हैं। भर्तियां नहीं होने की वजह से दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में 503 पद, लोक नायक अस्पताल में 581 पद, RGSSH में 579 पद खाली रह गए। पद खाली होने से मरीजों के इलाज में देरी होने लगी सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी और जलने वाली सर्जरी में लोकनायक जय प्रकाश जैसे अस्पताल में 12 महीने की वेटिंग है जबकि बच्चों की सर्जरी में साल भर की वेटिंग चाचा नेहरु बाल चिकित्सालय में है।

बता दें कि इससे पहले दिल्ली शराब नीति पर कैग रिपोर्ट पेश की जा चुकी है। कैग रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार के राजस्व को 2002 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

खड़गे ने एससी-एसटी-ओबीसी और अल्पसंख्यकों की छात्रवृत्ति में 'गिरावट' का लगाया आरोप, क्या कहते हैं आंकड़े

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया है कि केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के युवाओं की छात्रवृत्तियां छीन ली हैं। साथ ही खड़गे ने दावा किया कि बीजेपी का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ कमजोर वर्गों की आकांक्षाओं का मजाक उड़ाता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में ये दावा का।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए पोस्ट में लिखा कि 'देश के एससी, एसटी और ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं की छात्रवृत्तियों को आपकी सरकार ने हथियाने का काम किया है। सरकारी आंकड़े बातते हैं कि सभी वजीफों में मोदी सरकार ने लाभार्थियों की भारी कटौती तो की है, साथ ही साल-दर-साल फंड में औसतन 25 फीसदी कम खर्च किया है।'

लाभार्थियों की संख्या में चार साल में 94% की गिरावट

खरगे के मुताबिक, अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाले प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या में पिछले चार बरस के दौरान 94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या पिछले चार बरस ही में 83 फीसदी तक घटी है। इसके अलावा, मेरिट कम मीन्स छात्रवृत्ति योजना, जो अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाती है, उसके लाभार्थियों की संख्या में चार बरस के भीतर 51 फीसदी तक की कमी आई है।

अब अगर सरकार के हवाले ही से सामने आए कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि जरूर स्कॉलरशिप के कई स्कीम्स में लाभार्थियों और बजट का आवंटन घटा हैः-

प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप एक साल में 40 फीसदी घटा

संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आवंटित बजट 1,378 करोड़ रुपये थी। जो 2024-25 में घटकर 326 करोड़ रुपये के करीब रह गई। वहीं, इस वित्त वर्ष के लिए सरकार ने महज 198 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए किया है। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस बार का आवंटन 40 फीसदी तक घट गया है। अगर लाभार्थियों की बात की जाए तो 2021-22 में सरकार ने जहां 28 लाख 90 हजार छात्रों को ये स्कॉलरशिप दिया। तो 2023-24 में सरकार महज 4 लाख 91 हजार छात्रों को ही वजीफा दे सकी। लाभार्थियों और फंड में इतनी बड़ी गिरावट की वजह सरकार का क्लास 1 से लेकर 8 तक के छात्रों के लिए इस स्कीम को बंद करना रहा। अब ये स्कीम केवल नौवीं और दसवीं के छात्रों को दी जाती है। सरकार का कहना है कि 1 से लेकर 8 तक के छात्रों को पहले ही सरकार शिक्षा के अधिकार कानून के जरिये मदद कर रही है।

पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप का आवंटन 64 फीसदी घटा

वहीं, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में सरकार ने 2023-24 में इस मद में 1145 करोड़ रुपये का आवंटन किया था मगर सरकार 1065 करोड़ ही खर्च कर पाई। वर्ष 2024-25 में सरकार ने ज्यादा खर्च किया, और यह बढ़कर 1,145 करोड़ रुपये तक पहुंचा। मगर इस 2025-26 के बजट में इस योजना के लिए बजट का आवंटन पिछले साल के मुकाबले 64 फीसदी तक घट चुका है। सरकार ने इस साल के बजट में महज 414 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। ये पिछले साल के मुकाबले कम से कम सात सौ करोड़ रुपये कम है। इस तरह ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि फंड का आवंटन कम होने से लाभार्थियों की संख्या पर भी इसका असर पड़ेगा।

मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप 78 फीसदी तक घटा

ये वजीफा अल्पसंख्यक समुदाय के उन छात्रों को दिया जाता है जो ग्रैजुएशन या फिर पोस्ट ग्रैजुएशन प्रोफेशनल औऱ टेक्निकल कोर्स में करना चाहते हैं। 2020-21 में इस मद में जहां सरकार का बजट आवंटन 400 करोड़ था, वह अगले अकादमिक वर्ष में 325 करोड़ रुपये रह गया। वहीं ये आवंटन 2023-24 में 44 करोड़ जबकि 2024-25 में आवंटन घटकर महज 34 करोड़ रुपये के करीब रह गया। अगर इस बरस के आवंटन की बात की जाए तो यह पिछले बरस के मुकाबले 78 फीसदी तक घट चुका है। इस साल सरकार ने बजट में इस वजीफे के लिए महज 7 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। पोस्ट-मैट्रिक वजीफे ही की तरह मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप के फंड में आवंटन घटने से इसके लाभार्थियों की संख्या पर भी असर पड़ेगा।

सांसदों के वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी, जानें अब कितनी होगी सैलरी

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केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन में इजाफे का ऐलान किया है। केंद्र सरकार ने सांसदों के वेतन में 24 प्रतिशत की वृद्धि की सूचना दी है। 1 अप्रैल 2023 से सांसदों को एक लाख की जगह 1.24 लाख रुपये वेतन के तौर पर मिलेंगे। सरकार की ओर से सांसदों की पेंशन और भत्ता में भी इजाफा किया गया है।

संसदीय कार्य मंत्रालय ने सोमवार को एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया। नोटिफिकेशन के अनुसार, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों का वेतन 1 लाख रुपये से बढ़कर 1.24 लाख रुपये प्रति माह हो गया है। वहीं, दैनिक भत्ता 2,000 रुपये से बढ़कर 2,500 रुपये हो गया है।

नए वेतन और भत्ते इस प्रकार हैं:

सांसदों का मासिक वेतन

पहले: ₹1,00,000 प्रति माह

अब: ₹1,24,000 प्रति माह

दैनिक भत्ता (संसद सत्र के दौरान बैठकों में भाग लेने पर)

पहले: ₹2,000 प्रति दिन

अब: ₹2,500 प्रति दिन

पूर्व सांसदों की मासिक पेंशन

पहले: ₹25,000 प्रति माह

अब: ₹31,000 प्रति माह

अतिरिक्त पेंशन (पांच वर्ष की सेवा से अधिक के प्रत्येक वर्ष के लिए)

पहले: ₹2,000 प्रति माह

अब: ₹2,500 प्रति माह

सरकार ने सैलरी में ये बढ़ोतरी महंगाई को ध्यान में रखते हुए की है, जिससे सांसदों को काफी मदद मिलेगी। इसपर सरकार का कहना है कि यह सैलरी इजाफा पिछले 5 सालों में बढ़ी महंगाई को देखते हुए की गई है। आरबीआई द्वारा निर्धारित महंगाई दर और लागत सूचकांक के आधार पर यह बदलाव किया गया है। इसका लाभ वर्तमान और पूर्व सांसदों को मिलेगा।

इससे पहले, सांसदों के वेतन और भत्तों में बदलाव अप्रैल 2018 में किया गया था।2018 में सांसदों का मूल वेतन 1 लाख रुपये महीना तय किया गया था। इसका मकसद था कि उनकी सैलरी महंगाई और जीवन यापन की बढ़ती लागत के हिसाब से हो। 2018 के बदलाव के अनुसार, सांसदों को अपने क्षेत्र में ऑफिस चलाने और लोगों से मिलने-जुलने के लिए 70 हजार रुपये का भत्ता मिलता है। इसके अलावा, उन्हें ऑफिस के खर्च के लिए 60 हजार रुपये महीना और संसद सत्र के दौरान हर दिन 2 हजार रुपये का भत्ता मिलता है। अब इन भत्तों में भी बढ़ोतरी की जाएगी।

एलन मस्क की कंपनी 'एक्स' ने किया भारत सरकार पर मुकदमा, जानें पूरा मामला

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एलन मस्क की कंपनी एक्स कॉर्प ने भारत सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 79(3)(बी) को चुनौती दी गई है। कंपनी का आरोप है कि यह नियम सरकार को अनुचित और गैरकानूनी सेंसरशिप लागू करने की शक्ति देता है, जिससे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संचालन पर गंभीर असर पड़ रहा है। एक्स का तर्क है कि यह नियम सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करता है और ऑनलाइन स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कमजोर करता है।

आईटी एक्ट की धारा 79(3)(बी) के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह कुछ खास परिस्थितियों में इंटरनेट पर मौजूद कंटेंट को हटाने या ब्लॉक करने का आदेश दे सकती है। यदि कोई प्लेटफॉर्म 36 घंटों के भीतर अनुपालन करने में विफल रहता है, तो उसे धारा 79(1) के तहत और उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) सहित विभिन्न कानूनों के तहत जवाबदेह ठहराया जा सकता है। यह नियम ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों को अवैध सामग्री को हटाने के लिए जवाबदेह बनाने के लिए डिजाइन किया गया है और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि ऑनलाइन सामग्री कानूनी और नैतिक मानकों का पालन करती है।

हालांकि, एक्स कॉर्प का दावा है कि सरकार इस प्रावधान का दुरुपयोग कर रही है। कंपनी के मुताबिक, कंटेंट हटाने के लिए सरकार को लिखित में ठोस कारण बताना चाहिए, प्रभावित पक्ष को सुनवाई का मौका देना चाहिए और इस फैसले को कानूनी रूप से चुनौती देने का अधिकार भी होना चाहिए। एक्स ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत सरकार ने इनमें से किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

सेंसरशिप के लिए कानून के दुरुपयोग का आरोप

एक्स ने आरोप लगाया है कि सरकार उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने ढंग से सेंसरशिप लागू करने के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है। एक्स का मानना है कि यह प्रावधान सरकार को सामग्री को नियंत्रित करने के लिए अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है और ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करता है।

ग्रोक को लेकर गहराया विवाद

यह विवाद तब और गहरा गया, जब केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक्स कॉर्प से उसके एआई चैटबॉट ग्रोक को लेकर स्पष्टीकरण मांगा। ग्रोक, जिसे एक्स की मूल कंपनी xAI ने विकसित किया है, हाल ही में कुछ सवालों के जवाब में अभद्र भाषा और गालियों का इस्तेमाल करता पाया गया। भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए कंपनी से जवाब तलब किया है।

बता दें कि एलन मस्क के एआई चैटबॉट ग्रोक ने हाल ही में उपयोगकर्ताओं की तरफ से उकसाने के बाद हिंदी में अपशब्दों से भरी प्रतिक्रिया दी।

पहेल भी हो चुका है तनाव

इससे पहले भी साल 2022 में सरकार ने धारा 69ए के तहत एक्स को कुछ कंटेंट हटाने का निर्देश दिया था, जिसे लेकर कंपनी और सरकार के बीच तनाव देखा गया था।

आप सांसद हरभजन सिंह ने अपनी ही पार्टी की सरकार को घेरा, पंजाब में बुलडोजर एक्शन पर उठाया सवाल

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पंजाब में भगवंत मान सरकार का ड्रग्स माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ एक्शन जारी है। पुलिस अपराधियों को सबक सिखाने के लिए बुलडोजर चला रही है। इस बीच आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद और पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने अपनी ही पार्टी की सरकार के एक्शन पर सवाल उठाया है। हरभजन सिंह ने पंजाब सरकार की मुहिम को लेकर पार्टी विचारधारा से अलग बयान दिया है। हरभजन सिंह ने कहा कि कोई नशा बेचता है तो उसका घर गिरा दिया, मैं इस बात के हक में नहीं हूं।

हरभजन किसी का घर तोड़ने के पक्ष में नहीं

हरभजन सिंह ने कहा कि नशे के खात्मे के लिए नशा तस्करों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जो लोग नशे की तस्करी कर रहे हैं, उन्हें पकड़कर सजा दी जानी चाहिए। जो नशा बेच रहे हैं, उन पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें यह सीखना चाहिए कि नशा लोगों की सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। उन्होंने कहा कि हालांकि, वह किसी का घर तोड़ने के पक्ष में नहीं हैं।

सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे पर दिया सुझाव

हरभजन सिंह ने साफ तौर से कहा कि अगर किसी व्यक्ति का घर पहले से बना हुआ है और वह किसी छत के नीचे रह रहा है, तो सबसे पहले यह देखा जाना चाहिए कि वह घर किस तरीके से बना है। अगर घर अवैध तरीके से बना है, तो उस पर कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन घरों को नष्ट करना सही तरीका नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर किसी ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है, तो सरकार को अपनी जमीन जरूर वापस लेनी चाहिए। हालांकि, यदि किसी ने घर बना लिया है, तो सरकार को उसे कहीं और स्थानांतरित करने का उचित इंतजाम करना चाहिए।

नशे के खिलाफ काम करने की अपील

पंजाब सरकार नशे के खिलाफ ‘युद्ध नशेयां विरुद्ध’ मुहिम चला रही है। हरभजन सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा नशे के खिलाफ मुहीम चलाई जा रही है। नशा एक बहुत ही खतरनाक चीज है। यह लोगों को समझना चाहिए कि नशे से उनकी जिंदगी के साथ-साथ उनका शरीर भी खराब हो रहा है। नशा पूरे के पूरे परिवार को ही खत्म कर देता है। हम सभी पंजाबियों की जिम्मेदारी है कि एक मूव को शुरू किया जाए और हर एक पंजाबी को नशे के खिलाफ काम करना चाहिए।

मोहम्मद यूनुस ने अपने ही राजदूत का पासपोर्ट किया रद्द, सच बोलने की दी सजा

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बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार अपने ही राजदूत हारून रशीद का पासपोर्ट रद्द करने जा रही है। उनके साथ ही उनके परिवार के पासपोर्ट भी रद्द किए जाएँगे। दरअसल, मोरक्को में बांग्लादेश के राजदूत हारुन अल रशीद ने अपनी ही सरकार को घेरा था। राजदूत हारुन अल रशीद ने मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों का समर्थन करने और देश में अराजकता फैलाने का गंभीर आरोप लगाए थे। रशीद के इस फेसबुक पोस्ट से जब यूनुस सरकार ने अपनी पोल खुलती देखी, तो फिर दबाव में आ गए।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में दावा किया कि रशीद को दिसम्बर, 2024 में ही अपना पद छोड़कर बांग्लादेश वापस बुलाया गया था। विदेश मंत्रालय ने बताया कि रशीद इसमें आनाकानी करते रहे और फरवरी, 2025 में उन्होंने अपना पद भी छोड़ दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि रशीद अब कनाडा चले गए हैं।

मोहम्मद यूनुस सरकार की आलोचना को विदेश मंत्रालय ने एजेंडा करार दिया है। यूनुस सरकार ने कहा है कि रशीद के बयान सच्चाई से इतर हैं। विदेश मंत्रालय ने यूनुस सरकार की आलोचना को सिम्पथी बटोरने का एक साधन करार दिया है।

बांग्लादेश की पहचान को नष्ट करने का आरोप

इससे पहले हारून रशीद ने 14 मार्च को फेसबुक पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट किया था। हारुन अल रशीद ने पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश आतंक और अराजकता की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के शासन में कट्टरपंथियों को खुली छूट दी गई है और मीडिया को दबा दिया गया है, जिससे अत्याचार की खबरें सामने नहीं आ रही हैं। रशीद ने लिखा, यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने में लगे हैं। ये लोग संग्रहालयों, सूफी दरगाहों और हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं।

कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन देने का आरोप

रशीद ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के बाद से मुहम्मद यूनुस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। वह अब एक सुधारक नहीं बल्कि एक अत्याचारी शासक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने जिस बांग्लादेश का निर्माण किया था, यूनुस ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि यूनुस के शासन के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। कट्टरपंथी संगठन जैसे हिजब-उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा खुलेआम इस्लामी शासन की मांग कर रहे हैं और इन्हें यूनुस का समर्थन मिल रहा है।

यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

रशीद ने आगे कहा कि, बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन अब कट्टरपंथी इस पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना दोनों ही चरमपंथियों के निशाने पर रहे हैं, और अब यूनुस भी इन्हें शह दे रहे हैं।

जीएसटी पर गरमाई राजनीति, पॉपकॉर्न के बाद डोनट्स को लेकर कांग्रेस के निशाने पर सरकार

#jairamrameshcongressslamsgovtongst_policy

केंद्र सरकार की जीएसटी को लेकर कांग्रेस के निशाने पर है। कांग्रेस ने शनिवार को जीएसटी की अलग-अलग दरें लागू करने को लेकर केन्द्र पर एक बार फिर से तीखा प्रहार किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार (15 मार्च) को कहा कि पॉपकॉर्न के बाद अब ‘डोनट’ पर भी जीएसटी का असर देखने को मिल रहा है। उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश को अब ‘जीएसटी 2.0’ की जरूरत है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सिंगापुर स्थित चेन मैड ओवर डोनट्स को अपने व्यवसाय को कथित रूप से गलत तरीके से वर्गीकृत करने और 5 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान करने के लिए 100 करोड़ रुपये का कर नोटिस का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी ने दावा किया कि यह एक रेस्टोरेंट सेवा है, जबकि बेकरी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत कर का भुगतान किया जा रहा है। इस वजह से कंपनी पर भारी टैक्स बकाया हो गया। अब ये मामला मुंबई हाई कोर्ट में पहुंच चुका है जहां इस पर कानूनी लड़ाई जारी है।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की हकीकत यही- जयराम रमेश

जयराम रमेश ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये पूरा मामला बताता है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की असलियत क्या है। सरकार इस नारे का इस्तेमाल तो करती है, लेकिन हकीकत में व्यापारियों को बेवजह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रमेश ने कहा कि टैक्स प्रणाली में कई विसंगतियां हैं और इसलिए अब जीएसटी 2.0 की जरूरत महसूस हो रही है ताकि सभी व्यापारियों को समान अवसर और राहत मिल सके।

जीएसटी को लेकर पहले भी सवाल उठा चुकी कांग्रेस

पिछले साल दिसंबर में, कांग्रेस ने कहा था कि जीएसटी के तहत पॉपकॉर्न के लिए तीन अलग-अलग टैक्स स्लैब की "बेतुकी" व्यवस्था केवल सिस्टम की बढ़ती जटिलता को उजागर करती है और पूछा कि क्या मोदी सरकार जीएसटी 2.0 को लागू करने के लिए पूरी तरह से बदलाव करने का साहस दिखाएगी।

तमिलनाडु सरकार ने बदला दिया रुपये का प्रतीक चिन्ह, जानिए क्या है नियम?

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देश में भाषा को लेकर बहस चल रही है। इस बीच डीएमके की अगुआई वाली तमिलनाडु सरकार ने भाषा विवाद को और भड़का दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट 2025-26 से रुपये के आधिकारिक प्रतीक (₹) को बदल कर आग में घी डालने का काम किया है। तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदला हो। तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के इस कदम को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?

तमिलनाडु द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव का यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह का कदम नहीं उठाया। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देश भर में मान्य इस रुपये के चिह्न को राज्य सरकार बदल सकती है?

बता दें कि केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम या निर्देश नहीं हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार की तरफ से उठाया गया यह कदम कानून का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है। यह जरूर है कि इस कदम को अदालत में चुनौती देकर स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है।

यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती तो इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।

गोधरा कांड को लेकर केन्द्र का अहम फैसला, गवाहों की सुरक्षा हटी, 14 लोगों की हिफाजत कर रहे थे 150 जवान

#godhra_incident_central_govt_withdraws_security_of_14_witnesses

गोधरा कांड को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अहम फैसला लिया है। गोधरा कांड के 14 गवाहों की सुरक्षा हटा दी गई है। जिन्हें सीआईएसएफ के 150 जवानों द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही थी। सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय ने एसआईटी की रिकमेंडेशन रिपोर्ट के आधार पर 14 गवाहों की सुरक्षा को हटाने का फैसला लिया है। गोधरा कांड पर बनी एसआईटी ने 10 नवंबर 2023 को इन गवाहों की सुरक्षा हटाने की अपनी रिपोर्ट दी थी। वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा में सारबमती एक्सप्रेस आगजनी में अयोध्या से लौट रहे 59 हिंदू तीर्थयात्रियों की जलकर मौत हो गई थी। इस घटना के बाद गुजरात में व्यापक स्तर पर दंगे भड़के थे, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे।

गोधरा कांड के गवाहों को 2009 से तत्कालीन यूपीए सरकार के रिकमेंडेशन पर सुरक्षा मिल रही थी, दो दिनों पहले ये सुरक्षा हटाई गई। पूर्व पीएम दिवंगत मनमोहन सिंह सरकार ने इन गवाहों को सुरक्षा मुहैया करवाई थी। गवाहों की सुरक्षा में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के 150 से ज्यादा जवान तैनात थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गोधरा कांड की जांच करने वाली एसआईटी के सुझाव पर यह फैसला लिया है।

क्या है गोधरा कांड

27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी में आग लगा दी गई थी। इस हादसे में 58 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे राज्य में दंगे भड़के थे, जिसके बाद केंद्र सरकार को भारी सेना भेजनी पड़ी थी। मामला यहां थमा नहीं था, इसके बाद बलात्कार, लूटपाट और संपत्ति के नुकसान, घरों और दुकानों को जलाने की भी कई खबरें सामने आईं थीं।

ये भारत में सबसे भीषण सांप्रदायिक हिंसा में से एक था। इस हादसे में जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदुओं सहित 1044 लोग मारे गए थे। इस हादसे के बाद लगभग 2 लाख लोग विस्थापित हुए, जिसमें से कई लोग अपने घरों में वापस नहीं जा सके और नए इलाकों में बस गए।

भगवान भरोसे हिमाचल की सरकार, आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार ने मंदिरों से मांगी मदद

#shimla_himachal_economic_crisis_sukhu_govt_seek_help_from_temples 

हिमाचल प्रदेश आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है। वहीं अब कांग्रेस सरकार इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए “भगवान की शरण” में हैं। हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट के बीच सुक्खू सरकार के पास अपनी योजनाओं को चलाने के लिए पैसा नहीं है। इसी के चलते अब सरकार ने प्रदेश के बड़े मंदिरों से पैसा मांगा है। सरकार ने मंदिरों को मिलने वाले चढ़ावे से धन की मांग की है। सीएम ने राज्य सरकार के तहत आने वाले सभी मंदिरों और उनको संभाल रहे स्थानीय डीसी को पत्र लिखा है और चढ़ावे के पैसे में से दो सरकारी योजनाओं के लिए पैसे देने का आग्रह किया है।

29 जनवरी को हिमाचल प्रदेश सरकार के भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर ट्रस्ट को एक पत्र लिखा था और मंदिर कमेटियों से जरूरतमंद बच्चों की मदद का आग्रह किया। सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दो योजनाओं के लिए मंदिरों से आर्थिक सहायता मांगी है। इन दो सरकारी योजनाओं में पहली योजना का नाम है मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना और दूसरी मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना।

सरकार की अपील पर डीसी ने मंदिर न्यास को आर्थिक मदद करने के लिए पत्र जारी किए हैं। पत्र में लिखा गया है कि मुख्यमंत्री सुखाश्रय और सुख शिक्षा योजना की मदद सरकार के अधीन आने वाले मंदिरों के ट्रस्ट भी करेंगे। भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर कमेटियों से जरूरतमंद बच्चों की मदद का आग्रह किया है।

मुख्य आयुक्त मंदिर, सचिव भाषा एवं संस्कृति की ओर से जारी पत्र में कहा गया कि प्रदेश के सभी मंदिर न्यासों में चढ़ावे से हो रही आय के अनुरूप मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना के लिए धन जुटाया जाए। इस पत्र के संदर्भ में उपायुक्तों ने मंदिर न्यास के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिवों को आदेश जारी किए हैं कि न्यास की बैठकें बुलाकर इस योजना के लिए धन का प्रावधान किया जाए।

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सरकार की इस कमजोरी पर सवाल उठाया है।हिमाचल प्रदेश विधानसभा एलओपी ने कहा कि राज्य सरकार के नियंत्रण में लगभग 36 प्रमुख मंदिर हैं, और इन मंदिरों से सरकारी योजना को चलाने के लिए धन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है।एक तरफ, सुख सरकार सनातन धर्म का विरोध करती है, हिंदू विरोधी बयान देती रहती है और दूसरी तरफ, वह मंदिरों से पैसा लेकर सरकार की प्रमुख योजना चलाना चाहती है। सरकार मंदिरों से पैसा मांग रही है, और अधिकारियों पर पैसा सरकार को भेजने का दबाव डाला जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी सरकार के इस फैसले का विरोध करती है।

अब दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक और अस्पतालों की खुली पोले,CAG रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

#cagreportonhealthservicesmohallaclinicaapgovt

दिल्ली विधानसभा सत्र का आज चौथा दिन है। दिल्ली विधानसभा का आज का दिन भी अहम है। आज यानी शुक्रवार को स्वास्थ्य विभाग की कैग रिपोर्ट पेश होगी। यह रिपोर्ट एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की परेशानी बढ़ा सकती है।दरअसल दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर कैग की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। जिसे लेकर आज विधानसभा में एक बार फिर से हंगामे के आसार हैं।

सूत्रों का कहना है कि कैग रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं। कैग रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली के अस्पतालों में बिस्तरों की भारी कमी है। साथ ही कोविड के दौरान जितने पैसे मिले थे, उतने खर्च भी नहीं हुए। रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार से मिले 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए, जबकि बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई। इसके चलते कोरोना संकट के दौरान जरूरी सुविधाओं की भारी कमी रही।

सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी

दिल्ली सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन सिर्फ 1,357 बेड ही जोड़े गए, जो कि कुल लक्ष्य का मात्र 4.24% है। राजधानी के कई अस्पतालों में बेड की भारी कमी देखी गई, जहां बेड ऑक्यूपेंसी 101% से 189% तक रही, यानी एक ही बेड पर दो-दो मरीजों को रखा गया या मरीजों को फर्श पर इलाज कराना पड़ा।

डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी

रिपोर्ट में अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ की भारी कमी का भी जिक्र किया गया है। इतना ही नहीं, इसमें साफ-साफ कहा गया है कि मोहल्ला क्लीनिक आने वाले मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर एक मिनट से ज्यादा वक्त नहीं देते थे। इतना ही नहीं, इनमें से कई क्लीनिक में पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, एक्स-रे व्यूअर, थर्मामीटर और ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग डिवाइस जैसी बुनियादी चिकित्सा उपकरण भी नहीं थे। ऑडिट में यह भी सामने आया है कि जिन क्लीनिक का मूल्यांकन किया गया, उनमें से 18% क्लीनिक 15 दिनों से लेकर 23 महीनों तक बंद रहे। इसकी मुख्य वजह डॉक्टरों की अनुपलब्धता, इस्तीफे और डी-एम्पैनलमेंट रही।

बड़े पैमाने पर खाली पद भरे ही नहीं गए*

दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े पैमाने पर खाली पद भरे ही नहीं गए, जिससे आधारभूत ढांचा खराब हुआ। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में 3268 पद DGHS में 1532 पद स्टेट हेल्थ मिशन में 1036 पद ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में 75 पद खाली हैं। भर्तियां नहीं होने की वजह से दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में 503 पद, लोक नायक अस्पताल में 581 पद, RGSSH में 579 पद खाली रह गए। पद खाली होने से मरीजों के इलाज में देरी होने लगी सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी और जलने वाली सर्जरी में लोकनायक जय प्रकाश जैसे अस्पताल में 12 महीने की वेटिंग है जबकि बच्चों की सर्जरी में साल भर की वेटिंग चाचा नेहरु बाल चिकित्सालय में है।

बता दें कि इससे पहले दिल्ली शराब नीति पर कैग रिपोर्ट पेश की जा चुकी है। कैग रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार के राजस्व को 2002 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

खड़गे ने एससी-एसटी-ओबीसी और अल्पसंख्यकों की छात्रवृत्ति में 'गिरावट' का लगाया आरोप, क्या कहते हैं आंकड़े

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया है कि केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के युवाओं की छात्रवृत्तियां छीन ली हैं। साथ ही खड़गे ने दावा किया कि बीजेपी का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ कमजोर वर्गों की आकांक्षाओं का मजाक उड़ाता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में ये दावा का।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए पोस्ट में लिखा कि 'देश के एससी, एसटी और ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं की छात्रवृत्तियों को आपकी सरकार ने हथियाने का काम किया है। सरकारी आंकड़े बातते हैं कि सभी वजीफों में मोदी सरकार ने लाभार्थियों की भारी कटौती तो की है, साथ ही साल-दर-साल फंड में औसतन 25 फीसदी कम खर्च किया है।'

लाभार्थियों की संख्या में चार साल में 94% की गिरावट

खरगे के मुताबिक, अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाले प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या में पिछले चार बरस के दौरान 94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या पिछले चार बरस ही में 83 फीसदी तक घटी है। इसके अलावा, मेरिट कम मीन्स छात्रवृत्ति योजना, जो अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाती है, उसके लाभार्थियों की संख्या में चार बरस के भीतर 51 फीसदी तक की कमी आई है।

अब अगर सरकार के हवाले ही से सामने आए कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि जरूर स्कॉलरशिप के कई स्कीम्स में लाभार्थियों और बजट का आवंटन घटा हैः-

प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप एक साल में 40 फीसदी घटा

संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आवंटित बजट 1,378 करोड़ रुपये थी। जो 2024-25 में घटकर 326 करोड़ रुपये के करीब रह गई। वहीं, इस वित्त वर्ष के लिए सरकार ने महज 198 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए किया है। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस बार का आवंटन 40 फीसदी तक घट गया है। अगर लाभार्थियों की बात की जाए तो 2021-22 में सरकार ने जहां 28 लाख 90 हजार छात्रों को ये स्कॉलरशिप दिया। तो 2023-24 में सरकार महज 4 लाख 91 हजार छात्रों को ही वजीफा दे सकी। लाभार्थियों और फंड में इतनी बड़ी गिरावट की वजह सरकार का क्लास 1 से लेकर 8 तक के छात्रों के लिए इस स्कीम को बंद करना रहा। अब ये स्कीम केवल नौवीं और दसवीं के छात्रों को दी जाती है। सरकार का कहना है कि 1 से लेकर 8 तक के छात्रों को पहले ही सरकार शिक्षा के अधिकार कानून के जरिये मदद कर रही है।

पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप का आवंटन 64 फीसदी घटा

वहीं, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में सरकार ने 2023-24 में इस मद में 1145 करोड़ रुपये का आवंटन किया था मगर सरकार 1065 करोड़ ही खर्च कर पाई। वर्ष 2024-25 में सरकार ने ज्यादा खर्च किया, और यह बढ़कर 1,145 करोड़ रुपये तक पहुंचा। मगर इस 2025-26 के बजट में इस योजना के लिए बजट का आवंटन पिछले साल के मुकाबले 64 फीसदी तक घट चुका है। सरकार ने इस साल के बजट में महज 414 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। ये पिछले साल के मुकाबले कम से कम सात सौ करोड़ रुपये कम है। इस तरह ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि फंड का आवंटन कम होने से लाभार्थियों की संख्या पर भी इसका असर पड़ेगा।

मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप 78 फीसदी तक घटा

ये वजीफा अल्पसंख्यक समुदाय के उन छात्रों को दिया जाता है जो ग्रैजुएशन या फिर पोस्ट ग्रैजुएशन प्रोफेशनल औऱ टेक्निकल कोर्स में करना चाहते हैं। 2020-21 में इस मद में जहां सरकार का बजट आवंटन 400 करोड़ था, वह अगले अकादमिक वर्ष में 325 करोड़ रुपये रह गया। वहीं ये आवंटन 2023-24 में 44 करोड़ जबकि 2024-25 में आवंटन घटकर महज 34 करोड़ रुपये के करीब रह गया। अगर इस बरस के आवंटन की बात की जाए तो यह पिछले बरस के मुकाबले 78 फीसदी तक घट चुका है। इस साल सरकार ने बजट में इस वजीफे के लिए महज 7 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। पोस्ट-मैट्रिक वजीफे ही की तरह मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप के फंड में आवंटन घटने से इसके लाभार्थियों की संख्या पर भी असर पड़ेगा।