सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में ही क्यों ली शरण?
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सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के अधिनायकवादी शासन का अंत हो गया।हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने 11 दिन के अंदर सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट कर दिया, इस बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद आनन-फानन में इस्तीफा देकर मॉस्को पहुंच गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तख्तापलट से पहले ही उनका परिवार भी मॉस्को पहुंच चुका था।
13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां?
सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना?
रूस असद के लिए सुरक्षित ठिकाना
अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।
हालांकि, ईरान में इजाराइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।
रूस से सीरिया ने मांगी मदद
असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।
हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे।
2015 में असद सरकार गिरने वाली थी, लेकिन इसे रूस ने अवसर की तरह लिया और असद सरकार को बचाने के लिए सीधा दखल दे दिया। इसके साथ ही रूसी सेना की सीरिया में एंट्री हो गई और रूस की मिडिल ईस्ट में भी मौजूदगी आ गई। पिछले महीने तक रूस ने असद सरकार को सफलता पूर्वक विद्रोहियों से बचा रखा था।
क्या फायदा हो रहा था रूस को?
साल 2015 में रूसी राष्ट्रपति ने हजारों की तादाद में सैनिक भेजकर राष्ट्रपति असद को मजबूत किया। सीरिया को सैन्य सहायता के बदले सीरियाई अधिकारियों ने रूस को हमीमिम में हवाई अड्डे और टार्टस में नौसैनिक अड्डे पर 49 साल का पट्टा दिया। इसके साथ ही रूस ने पूर्वी भूमध्य सागर में एक महत्वपूर्ण पैर जमा लिया था। ये अड्डे अफ्रीका में और बाहर रूसी सैन्य ठेकेदारों की आवाजाही के लिए अहम केंद्र बन गए थे।
बशर अल असद मिडिल ईस्ट में रूस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। रूस ने असद के लिए हर तरह से मदद की। अब असद के जाने के बाद रूस के लिए इसकी भरपाई मुश्किल होगी। यह रूस के लिए बड़ा झटका है।
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