रूस ने यूक्रेन पर की मिसाइलों की बरसात, 90 से अधिक मिसाइलों और ड्रोन से हमला, अंधेरे में डूबा देश

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रूस-यूक्रेन के बीच लगभग तीन साल से चल रहे युद्ध में हाल के दिनों में तनाव बढ़ा है, जिसमें दोनों पक्ष नए हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिकी और ब्रिटिश हथियारों से मॉस्को पर हमले के बाद से ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन बौखलाए हुए हैं। व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कीव में निर्णय लेने वाले केंद्रों पर रूस की नई हाइपरसोनिक मिसाइल से हमले की धमकी दी। इस धमकी के कुछ घंटों बाद ही रूस ने गुरुवार को यूक्रेन पर मिसाइलों की बारिश की। इस हमले के जरिए उसने यूक्रेन के ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर दूसरा सबसे बड़ा अटैक किया। हमले के कारण दस लाख लोग बिजली से वंचित हो गए।

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि यूक्रेन की ओर से रूस में लंबी दूरी की ATACMS मिसाइलों से किए गए हमले के जवाब में यह हमला किया गया है। इसके अलावा उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि भविष्य में कीव में 'निर्णय लेने वाले केंद्र' निशाना बन सकते हैं।पुतिन ने दावा किया कि रूस ने 17 लक्ष्यों को निशाना बनाया जो सैन्य सुविधाएं, रक्षा उद्योग और उनकी सहायता प्रणाली थीं। उन्होंने बिजली के बुनियादी ढांचे पर हमलों को स्वीकार नहीं किया।

पुतिन ने कजाखिस्तान की राजधानी अस्ताना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हम कीव समेत सैन्य और निर्णय लेने वाले केंद्रों के खिलाफ हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल करने से इंकार नहीं करते।"

क्लस्टर हथियारों के साथ क्रूज मिसाइलों के इस्तेमाल का आरोप

वहीं, न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने रूस पर “घृणित वृद्धि” का आरोप लगाते हुए कहा कि उसने क्लस्टर हथियारों के साथ क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने रूस पर “घृणित वृद्धि” का आरोप लगाते हुए कहा कि उसने क्लस्टर हथियारों के साथ क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया है।

ज़ेलेंस्की ने इन नेताओं से मांगी मदद

बाद में अपने रात के वीडियो संबोधन में, ज़ेलेंस्की ने कहा कि वह नाटो महासचिव मार्क रूटे, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर और जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ सहित पश्चिमी नेताओं से बात कर रहे थे, ताकि “स्थिति को और अधिक असहनीय बनाने और युद्ध को लम्बा खींचने के रूस के प्रयास” का जवाब दिया जा सके। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि हम अपनी स्थिति – यूक्रेन और हमारे भागीदारों की स्थिति को मजबूत करें।”

भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए”, जयशंकर के इन चुभते सवालों के क्या हैं मायने?*
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भारतीय विदेश मंत्री अपनी हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं। एस जयशंकर अपने जवाब से अच्छे-अच्छों को लाजवाब कर चुके हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर भारत के रूस से तेल खरीदने को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पश्चिमी देशों को दो टूक जवाब दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने-अपने हित होते हैं और यह समझना जरूरी है। उन्होंने यूरोप के चयनात्मक दृष्टिकोण की आलोचना की और पूछा कि अगर यह सिद्धांतों का मामला है, तो यूरोप ने खुद रूस के साथ अपने कारोबार में कटौती क्यों नहीं की। इटली में इतालवी न्यूज़पेपर कोरिएरे डेला सेरा को दिए इंटरव्यू में एस जयशंकर ने दुनिया के अन्य हिस्सों से यूरोप की अनुचित अपेक्षाओं पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही एस जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर बात की और यूक्रेन वॉर डिप्लोमैटिक हल पर जोर दिया। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान भारत-चीन संबंधों समेत कई मुद्दों पर भी बात की। जयशंकर ने कहा, दुनिया के इस हिस्से (पश्चिमी देश) को यह समझना होगा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने हित हैं। यूरोप की प्राथमिकताएं स्वाभाविक रूप से एशिया या अफ्रीका या लैटिन अमेरिका के देशों से अलग होंगी। अगर सब कुछ इतने गहरे सिद्धांत का मामला है तो यूरोप को खुद ही रूस के साथ अपने सभी व्यापार खत्म कर देने चाहिए थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह बहुत ही चयनात्मक रहा है और उसने बहुत ही सावधानी से अपने अलगाव को आगे बढ़ाया है। इसलिए, यह कहना कि यह क्षेत्र (यूरोप) अपने लोगों की चिंता करेगा और दूसरों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, उचित नहीं है।' *जयशंकर के तीखे सवाल* जयशंकर ने आगे पूछा कि भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए। उन्होंने बताया कि यूरोप ने पहले रूस से ऊर्जा खरीदी थी, लेकिन अब वह अन्य देशों से ऊर्जा खरीद रहा है, जिससे बाजार में दबाव बढ़ा है। भारत को इस स्थिति में अपनी कीमतें क्यों बढ़ानी चाहिए? *रूसी तेल खरीदने को लेकर पहले भी दे चुके हैं जवाब* यह पहली बार नहीं है जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सस्ता रूसी तेल खरीदने के लिए भारत के रुख को जाहिर किया हो। पहले भी कई मंचों पर वे भारत का रुख साफ शब्दों में रख चुके हैं। जयशंकर ने कहा कि रूस एक सोर्स है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनने का अधिकार है।
*ट्रंप के आने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के खत्म होने की कितनी उम्मीद, क्या बाइडेन ने बढ़ा दी है मुश्किलें?

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा चुने जाने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध अब कौन सा मोड़ ले सकता है, इस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा होने के तुरंत बाद जेलेंस्की ने ट्रंप को बधाई देते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति स्थापित होने की उम्मीद जाहिर की है। वहीं राष्ट्रपति पुतिन के क्रेमलिन कार्यालय ने भी कहा है कि अमेरिका अगर चाहता है तो मॉस्को बातचीत का विकल्प खुला रखेगा। मगर साथ में रूस ने यह भी कहा कि जब जनवरी में ट्रंप अपना कार्यभार संभालेंगे तो रूस-यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका की क्या नई पॉलिसी होगी, इस पर उसकी नजर बनी है।

अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के तहत यूक्रेन को रूस के खिलाफ जंग में पर्याप्त सैन्य सहायता प्राप्त हुई है। यही वजह है कि रूस और अमेरिका के रिश्ते तनाव के चरम पर हैं। हालांकि, ट्रंप की वापसी के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यूक्रेन रूस युद्ध रुक सकता है। अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बाइडेन की नीतियों का विरोध किया था। देश की जनता के सामने ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह राष्ट्रपति होते, तो यूक्रेन जंग शुरू ही नहीं होती।साथ ही व्हाइट हाउस वापसी के बाद उन्होंने जंग खत्म करने का वादा किया है। लेकिन जो बाइडेन के हालिया कदम से ऐसा लग रहा है कि वे ट्रंप के इस वादे को पूरा नहीं होने देंगे।

दरअसल, गाजा और यूक्रेन जंग के लंबा खिंचने के पीछे भी ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की कमजोर नीतियों को जिम्मेदार बताया है। लेकिन बाइडेन ने अपने आखिरी दिनों में यूक्रेन को फ्री हैंड दे दिया है।जो बाइडेन ने यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों के घातक हथियारों से रूसी जमीन पर हमला करने की छूट दे दी है। अब तक यूक्रेन को लंबी दूरी और घातक हथियारों से रूस पर हमले की परमिशन नहीं थी।

क्या युद्ध को बढ़ावा दे रहे बाइडन?

बाइडेन ने यूक्रेन को एटीएसीएमएस मिसाइलों से रूस पर हमले की मंजूरी दी। अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की के इरादों को जैसे पंख लग गए। इसके बाद यूक्रेन ने रूस पर मिसाइलें दाग भी दी। यूक्रेन ने अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों की मदद से रूस पर कई हमले किए। इसके जवाब में रूस की ओर से इस युद्ध में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया गया।

बाइडेन के फैसले से युद्ध में नया मोड़ लिया

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के यूक्रेन को युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की अनुमति युद्ध में एक नया मोड़ ला दिया है। ट्रंप की वापसी के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यूक्रेन रूस युद्ध रुक सकता है। लेकिन बाइडेन ने अपने आखिरी दिनों में यूक्रेन को फ्री हैंड दे दिया है। बाइडेन के इस फैसले का विरोध रूस में बड़े पैमाने पर देखने को मिला है। रूसी पार्लियामेंट के अपर हाउस फेडरेशन काउंसिल के सीनियर मेंबर आंद्रेई क्लिशास ने टेलीग्राम पर अमेरिका के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों ने तनाव को इस स्तर तक बढ़ा दिया है कि इससे यूक्रेन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इसके अलावा रूस के अंतरराष्ट्रीय मामलों के अधिकारी दिमीर दज़बारोव ने कहा कि अगर यूक्रेन रूस के अंदर हमला करता है, तो यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का कदम होगा।

“बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करना चाहते हैं”

बाइडेन प्रशासन के इस फैसले पर डोनाल्ड के सबसे बड़े बेटे ट्रंप जूनियर ने राष्ट्रपति बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि मेरे पिता को शांति कायम करने का मौका मिलने से पहले ही, बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करना चाहते हैं।

रूस ने यूक्रेन पर दागी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल, कीव का चौंकाने वाला दावा


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रूस ने यूक्रेन पर हमले के दौरान एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) लॉन्च की, जो चल रहे संघर्ष में इस तरह के शक्तिशाली, परमाणु-सक्षम हथियार का पहला उपयोग है, रॉयटर्स ने यूक्रेन की वायु सेना के हवाले से बताया। वायु सेना ने कहा कि मिसाइल ने गुरुवार को सुबह-सुबह नीपर शहर को निशाना बनाया। एक सूत्र ने AFP को पुष्टि की कि 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से रूस द्वारा इस हथियार की यह पहली तैनाती थी। इस प्रक्षेपण से पहले यूक्रेन ने इस सप्ताह की शुरुआत में रूस के अंदर लक्ष्यों के खिलाफ अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों का इस्तेमाल किया था, जिसके बारे में मास्को ने चेतावनी दी थी कि इसे 33 महीने के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण वृद्धि के रूप में देखा जाएगा। रूस, जिसने फरवरी 2022 में युद्ध शुरू किया था, ने अभी तक यूक्रेनी वायु सेना के बयान पर प्रतिक्रिया नहीं दी है।

रूसी मिसाइल हमला

अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM) रणनीतिक हथियार हैं जिन्हें मुख्य रूप से परमाणु हथियार ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह रूस के परमाणु निवारक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, यूक्रेन ने मिसाइल के प्रकार या उसके द्वारा ले जाए जाने वाले वारहेड के बारे में नहीं बताया, लेकिन इस बात का कोई संकेत नहीं था कि यह परमाणु-सशस्त्र था। वायु सेना के अनुसार, रूसी हमले ने मध्य-पूर्वी यूक्रेन के शहर द्निप्रो में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और औद्योगिक स्थलों को निशाना बनाया।

वायु सेना ने मिसाइल के विशिष्ट लक्ष्य या नुकसान की सीमा को स्पष्ट नहीं किया। हालांकि, क्षेत्रीय गवर्नर ने पुष्टि की कि हमले ने द्निप्रो में एक औद्योगिक सुविधा को नुकसान पहुंचाया और आग लग गई, जिससे दो लोग घायल हो गए। यूक्रेन की वायु सेना के अनुसार, रूस ने हमले के दौरान एक किंजल हाइपरसोनिक मिसाइल और सात ख-101 क्रूज मिसाइलें भी लॉन्च कीं, जिनमें से छह क्रूज मिसाइलों को रोक दिया गया। वायु सेना ने कहा, "विशेष रूप से, रूसी संघ के अस्त्राखान क्षेत्र से एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की गई थी," लेकिन इस्तेमाल किए गए ICBM के प्रकार को निर्दिष्ट नहीं किया।

रूस-यूक्रेन युद्ध

इस सप्ताह तनाव बढ़ गया क्योंकि युद्ध अपने 1,000वें दिन पर पहुंच गया। बुधवार को, टेलीग्राम पर रूसी युद्ध संवाददाताओं और एक अनाम अधिकारी ने दावा किया कि कीव ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो क्रूज मिसाइलों को लॉन्च किया, जो यूक्रेन की सीमा पर है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ के एक प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है, और रूस ने हमलों की तुरंत पुष्टि नहीं की। किसी भी परिणामी क्षति की सीमा अभी भी अस्पष्ट है। मंगलवार को, यूक्रेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन से मंजूरी के बाद रूस के खिलाफ अमेरिका द्वारा आपूर्ति की गई ATACMS मिसाइलों का इस्तेमाल किया। यह निर्णय बिडेन के पद छोड़ने से ठीक दो महीने पहले आया है, जब डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस में लौटने की तैयारी कर रहे हैं।

रूस ने यूक्रेन पर दागी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, जंग में पहली बार इस हथियार का इस्तेमाल*
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रूस और यूक्रेन के बीच जंग अपने चरम पर पहुंचती दिख रही है। इस युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन बीत गए हैं। अब दोनों के देशों के बीच इस लड़ाई में नई तेजी आ गई है। रूस ने यूक्रेन से लड़ने के लिए उत्‍तर कोरिया के हजारों सैनिकों को मैदान में उतार दिया है। वहीं इससे भड़के अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का इस्‍तेमाल करने की अनुमति दे दी है। इसके बाद यूक्रेन ने अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों की मदद से रूस पर कई हमले किए हैं। इसके जवाब में रूस की ओर से इस युद्ध में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया गया है। रूस ने गुरुवार को यूक्रेन पर एक बड़ा हमला किया, जिसमें उसने अपने दक्षिण आस्त्रखान क्षेत्र से इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल दागी। यह पहली बार है, जब रूस ने इस तरह की शक्तिशाली और लंबी दूरी वाली मिसाइल का इस्तेमाल किया। यूक्रेनी वायुसेना ने यह जानकारी दी। मॉस्को की ओर से इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल से हमला उस समय हुआ है, जब यूक्रेन ने इस हफ्ते अमेरिका और ब्रिटेन की मिसाइलों का उपयोग करके रूस के अंदर कुछ लक्ष्यों को निशाना बनाया, जिसके बारे में मॉस्को ने महीनों पहले चेतावनी दी थी कि यह तनाव को बहुत अधिक बढ़ा सकता है। रूस के आस्त्रखान क्षेत्र से लॉन्च की गई एक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, ताम्बोव क्षेत्र में मिग-31K फाइटर जेट से दागी गई। वायु सेना के एक सूत्र ने एएफपी को बताया कि रूस ने गुरुवार को यूक्रेन में जो इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की, उसमें परमाणु चार्ज नहीं था। यूक्रेनी वायु सेना के सूत्र ने एएफपी को बताया कि यह स्पष्ट था कि जिस हथियार का पहली बार यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था, उसमें कोई परमाणु हथियार नहीं था। यह पहली बार है जब रूस ने युद्ध के दौरान इतनी शक्तिशाली, लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल किया है। यह हमला यूक्रेन द्वारा युद्ध के बाद पहली बार रूस के अंदर लक्ष्यों पर ब्रिटिश-फ्रांसीसी निर्मित स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को दागने के एक दिन बाद हुआ है। मॉस्को ने महीनों पहले चेतावनी दी थी कि इस तरह के हमले को एक बड़ी वृद्धि के रूप में देखा जाएगा।
पुतिन की परमाणु हमले की चेतावनी बेअसरःयूक्रेन ने पहले अमेरिकी और अब ब्रिटिश मिसाइल से बोला हमला

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रूस के राष्ट्रपति पुतिन की परमाणु चेतावनी भी बेअसर नज़र आ रही है। यूक्रेन ने अमेरिका से मिली लंबी दूरी की मिसाइलों से पहली बार रूस के अंदर हमला किया। इस हमले को लेकर रूस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी। हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर इसका असर होता तो नहीं दिख रहा है। पहले यूक्रेन ने मंगलवार को जहां रूस पर अमेरिकी ATCAMS मिसाइल से हमला किया था तो वहीं बुधवार को कीव ने रूस के खिलाफ ब्रिटिश निर्मित स्टॉर्म शैडो मिसाइल दागी है।यूक्रेन द्वारा यूके की लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल ऐसे समय हुआ है, जब इसे लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही भड़के हुए हैं और उन्होंने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी हुई है।

अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की और फायर हो चुके हैं। यूक्रेन अब रूस पर ताबड़तोड़ अटैक कर रहा है। अमेरिकी लॉन्ग रेंज मिसाइलों से हमला करने के बाद अब यूक्रेन ने ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइल से रूस पर हमला किया है।यूक्रेन ने लंबी दूरी वाली अमेरिकी मिसाइलें दागने के एक दिन बाद रूसी इलाकों में सैन्य ठिकानों पर ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दागीं।

रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया शैडो मिसाइल का मलबा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस द्वारा यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर उत्तर कोरियाई सैनिकों को तैनात करने के जवाब में यूके ने भी अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की मंजूरी यूक्रेन को दे दी थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्टॉर्म शैडो मिसाइल का मलबा रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया है, जो यूक्रेन के उत्तर में स्थित है। वहीं यिस्क और दक्षिणी क्रसनोदर इलाके में एक बंदरगाह पर भी दो स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया गया है।

ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल को लेकर गोल-मोल जवाब

हालांकि, यूक्रेन के रक्षा मंत्री रुस्तम उमेरोव ने ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया। जब उमेरोव से पूछा गया कि क्या यूक्रेन ने रूस के अंदर किसी लक्ष्य को निशाना बनाने के लिए ‘स्टॉर्म शैडो’ मिसाइलों का इस्तेमाल किया है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘हम अपने देश की रक्षा के लिए सभी साधनों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिए हम विस्तार में नहीं जाएंगे। लेकिन हम सिर्फ यही बता रहे हैं कि हम जवाब देने में सक्षम हैं।’ उमेरोव ने आगे कहा, ‘हम अपना बचाव करेंगे और हमारे पास मौजूद तमाम साधनों से मुंहतोड़ जवाब देंगे।

रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका

बता दें कि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सप्ताह अपनी नीति में बदलाव करते हुए यूक्रेन को रूस में अंदर तक हमला करने के लिए अमेरिकी निर्मित हथियारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। बाइडेन प्रशासन के इस फैसले के बाद रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अगर किसी परमाणु संपन्न देश के सहयोग से कोई देश रूस पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। यही नहीं नए परमाणु सिद्धांतों के अनुसार, रूस पर अगर किसी सैन्य गठबंधन का देश हमला करता है तो रूस उसे पूरे ब्लॉक का हमला मानेगा। पुतिन के इस फैसले के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ गई है।

अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
#us_shut_down_kyiv_embassy_over_potential_russian_air_attack_threat *
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
भारत-रूस के बीच पांत्सिर एयर डिफेंस सिस्टम के लिए समझौता, हवा में ही “दुश्मन” होगा तबाह*
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रूस बीते ढाई साल से यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। इस युद्ध ने भारत के साथ रूस के कई प्रमुख रक्षा सौदों को भी प्रभावित किया है। रूस भारत को समय से हथियारों की डिलीवरी करने में नाकामयाब हो रहा है। जिन सौदों में देरी हुई है, उनमें बेहद अहम S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के अलावा युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हैं। हालांकि इस बीच एक अहम खबर मिल रही है। भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस सिस्टम को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। भारत सरकार ने रूस से एडवांस पांत्सिर एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने का निर्णय लिया है। गोवा में आयोजित 5वें भारत-रूस इंटर गवर्नमेंटल कमिशन सबग्रुप मीटिंग के दौरान यह समझौता हुआ। यह सिस्टम ऑटोमेटिक लैंड से हवा में मार करने वाली एंटी मिसाइल और एंटी एयरक्राफ्ट प्रणाली है। इसमें प्लेन हेलीकॉप्टर, सटीक मार करने वाले हथियारों और क्रूज मिसाइलों को भी नष्ट करने की क्षमता है। पांत्सिर सिस्टम दुश्मन के हवाई हमलों से सैन्य, औद्योगिक और प्रशासनिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करता है और ड्रोन को भी नष्ट करने में सक्षम है। इस सिस्टम में छोटी से मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली 12 मिसाइलें लगी हैं। इसमें दोहरी 30 मिमी ऑटोमैटिक तोप लगी हैं, जो कई लेवल पर रक्षा करती है। *कितनी है रेंज?* पैंटसिर एक मोबाइल डिफेंस सिस्टम हैं जो ट्रक चेसिस पर लगाई जाती है। अलग-अलग इलाकों में यह बेहतर गतिशीलता देता है। यह सिस्टम उन्नत रडार सिस्टम से लैस है जो 36 किमी दूर और 15 किमी तक ऊंचे टार्गेट का पता लगा सकता है और उस पर हमला कर सकता है। लंबी दूरी तक ट्रैकिंग की क्षमता खतरों का पता लगाने और उन्हें समय रहते रोकने में सहायक है। पैंटसिर के मिसाइल की रेंज 1 से 12 किमी है। जबकि 30 मिमी वाली तोपें 0.2 से 4 किमी के बीच के टार्गेट को भेद सकती हैं। यह विशेषताएं इसे एक बहुमुखी प्रणाली बनाती हैं जो विभिन्न दूरी पर तेजी से बढ़ते हवाई टार्गेट जैसे ड्रोन, हेलीकॉप्टर और क्रूज मिसाइलों को बेअसर करने में सक्षम है। *भारत ने साइन की थी 5 अरब डॉलर की डील* भारत ने 2018 में रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए डील की थी। इस डील के तहत अगले 5 सालों में भारत को ये सभी एयर डिफेंस सिस्टम मिलने थे। भारत को अभी तक रूस ने सिर्फ 3 ही एयर डिफेंस सिस्टम भारत को दिए है। अभी भी 2 एस-400 भारत को मिलना बाकी हैं। इसके पीछे की एक बड़ी वजह यूक्रेन जंग को माना जा रहा है, जिसके चलते एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी में देरी हो रही है।
रूस और ईरान की दोस्तीःअमेरिका और इजरायल के लिए क्यों है चिंता का विषय
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picture credit: Emirates policy






हाल के वर्षों में, रूस और ईरान के बीच बढ़ती साझेदारी मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक संतुलन के एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरी है, जो वॉशिंगटन और जेरूसलम में चिंता का कारण बन गई है। जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, वे क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ एक प्रभावशाली ताकत के रूप में सामने आ रहे हैं। सीरिया से लेकर मध्य पूर्व तक, यह रणनीतिक गठबंधन लंबे समय से अमेरिका के प्रभाव को बाधित करने और इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को जटिल बनाने की क्षमता रखता है।

*रूस-ईरान संबंधों की जड़ें*

ऐतिहासिक रूप से, रूस और ईरान स्वाभाविक सहयोगी नहीं रहे हैं। उनका सहयोग मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और पश्चिमी प्रभाव के खिलाफ उनके विरोध के कारण विकसित हुआ है। जबकि रूस ने हमेशा मध्य पूर्व में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने की कोशिश की है, ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने और अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने के तरीकों की तलाश की है, विशेष रूप से उन प्रतिबंधों से जो अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान पर लगाए हैं।


उनकी साझेदारी में पहला महत्वपूर्ण मील का पत्थर सीरिया गृह युद्ध के दौरान आया। रूस और ईरान दोनों ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन का समर्थन किया, हालांकि उनके समर्थन के कारण अलग थे, लेकिन उनके पास असद के शासन को बनाए रखने में समान हित थे। रूस के लिए, सीरिया में एक ठोस आधार बनाए रखना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से टार्टस में अपने नौसैनिक अड्डे और हमीमिम में अपने हवाई अड्डे के जरिए।

ईरान के लिए, असद का समर्थन एक महत्वपूर्ण सहयोगी को बनाए रखने में मदद करता है और लेबनान में हिजबुल्लाह सहित शिया मिलिशियाओं के लिए हथियारों और लड़ाकों के परिवहन के लिए एक गलियारा प्रदान करता है, जिससे तेहरान का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ता है।


हाल के वर्षों में, रूस और ईरान का सहयोग सिर्फ सीरिया तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसमें सैन्य सहयोग, ऊर्जा साझेदारी, और संयुक्त राजनयिक प्रयास भी शामिल हो गए हैं, जैसे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर। इस बढ़ते गठबंधन ने वॉशिंगटन और तेल अवीव में चिंता बढ़ा दी है, जहां अधिकारी मानते हैं कि रूस-ईरान गठबंधन अमेरिका की नीतियों और इज़राइल की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है।


*अमेरिका और इज़राइल के हितों के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी*

अमेरिका और इज़राइल दोनों लंबे समय से ईरान को एक बड़ा खतरा मानते हैं, इसके परमाणु महत्वाकांक्षाओं, हिजबुल्लाह और हामस जैसे आतंकवादी समूहों के समर्थन, और क्षेत्र में इसके विघटनकारी प्रभाव के कारण। हालांकि, रूस और ईरान के बढ़ते रिश्ते ने अमेरिका और इज़राइल के लिए ईरान की शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिशों को और जटिल बना दिया है।


**सैन्य सहयोग**: रूस-ईरान साझेदारी के सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक उनका बढ़ता सैन्य सहयोग है। रूस ने ईरान को उन्नत हथियारों की आपूर्ति की है, जिनमें S-300 एयर डिफेंस सिस्टम शामिल है, जिससे ईरान को इज़राइल की हवाई हमलों या अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप से खुद को बचाने की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। ये उन्नत प्रणालियाँ, जो लड़ाकू जेट और मिसाइलों को लक्ष्य बना सकती हैं, इज़राइल के लिए ईरानी परमाणु स्थलों या सीरिया में ईरानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले करने को बहुत कठिन बना देती हैं। यह बढ़ता सैन्य सहयोग इज़राइल के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है, जो हमेशा ईरान की सैन्य वृद्धि को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में देखता है।


**संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान**: पिछले कुछ वर्षों में, रूस और ईरान ने सीरिया में संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जो इस बात का प्रदर्शन है कि वे अमेरिकी और इज़राइली हितों को सीधे चुनौती देने के लिए सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हैं। ये अभ्यास उनके बढ़ते सैन्य एकीकरण का संकेत देते हैं और पश्चिमी शक्तियों के साथ किसी संभावित टकराव की स्थिति में भविष्य के सहयोग के लिए एक रूपरेखा हो सकते हैं। यह समन्वय ईरान को अमेरिकी और इज़राइली सैन्य रणनीतियों को बेहतर तरीके से समझने की अनुमति देता है, जिससे पश्चिमी शक्तियों के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करना अधिक कठिन हो जाता है।


*आर्थिक और ऊर्जा संबंध गठबंधन को मजबूत करते हैं*

सैन्य सहयोग के अलावा, रूस-ईरान गठबंधन आर्थिक क्षेत्र में भी मजबूत हुआ है। दोनों देशों ने व्यापारिक सौदों और संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार करने की कोशिश की है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में। रूस, जो दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में से एक है, ईरान के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक था, जिसके पास विशाल तेल और गैस संसाधन हैं, लेकिन जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहा है।

**ऊर्जा सहयोग**: रूस और ईरान ने हाल के वर्षों में अपने ऊर्जा संबंधों को मजबूत किया है। मॉस्को ने ईरान में परमाणु पावर प्लांट बनाने का समझौता किया है, जबकि तेहरान ने अपने तेल और गैस भंडारों को रूसी कंपनियों के लिए खोल दिया है। इसके बदले में, रूस ने ईरान को अपनी ऊर्जा निर्यात बढ़ाने में मदद की है, जिससे तेहरान को अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सहारा मिल रहा है।

ये आर्थिक संबंध दोनों देशों को पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव से बचने में मदद करते हैं। रूस के लिए, ईरान के ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करना खाड़ी क्षेत्र में एक रणनीतिक पकड़ हासिल करने का एक तरीका है, जो वैश्विक तेल और गैस बाजारों के लिए महत्वपूर्ण है। ईरान के लिए, रूस का आर्थिक समर्थन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़े विनाशकारी प्रभावों को कम करने में मदद करता है, विशेष रूप से 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका की निकासी के बाद।


*संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों में कूटनीतिक दबदबा*

रूस, ईरान का एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक साझेदार बन गया है, जो संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसे समर्थन प्रदान करता है। मॉस्को ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने या उसके मध्य पूर्व में किए गए कार्यों की निंदा करने वाले प्रस्तावों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके अवरुद्ध किया है। इस कूटनीतिक समर्थन ने ईरान को अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए एक प्रकार का सुरक्षा कवच प्रदान किया है, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों से।

इसके अलावा, दोनों देश संयुक्त रूप से वैश्विक कूटनीतिक प्रयासों में सहयोग कर रहे हैं। रूस और ईरान दोनों पश्चिमी देशों द्वारा मध्य पूर्व में किए गए सैन्य हस्तक्षेपों, जैसे इराक, लीबिया और यमन में, का विरोध करते हैं। अपने विदेश नीति के मिलते-जुलते दृष्टिकोणों से, रूस और ईरान पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ एक शक्तिशाली काउंटरबैलेंस बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो भविष्य में शक्ति संतुलन को फिर से बदल सकता है।

*इज़राइल की सुरक्षा पर प्रभाव*

इज़राइल के लिए, रूस-ईरान गठबंधन विशेष रूप से चिंताजनक है। इज़राइल ने हमेशा स्पष्ट किया है कि वह परमाणु-सक्षम ईरान को सहन नहीं करेगा और उसने सीरिया में ईरानी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक करके हिजबुल्लाह और अन्य ईरानी-समर्थित समूहों को उन्नत हथियारों की आपूर्ति को रोकने की कोशिश की है। हालांकि, रूस के सैन्य ठिकानों की सीरिया में मौजूदगी और ईरान के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों के कारण, इज़राइल के लिए सीरिया में हवाई हमले करना और भी जटिल हो गया है। रूस के साथ सीधी टकराव की संभावना इज़राइल के सैन्य रणनीति को और कठिन बना देती है।

इसके अतिरिक्त, इज़राइल ईरान के हिजबुल्लाह और अन्य मिलिशियाओं के समर्थन को लेकर गहरे चिंतित है, जो इज़राइल की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा पैदा करते हैं। ईरान ने सीरिया और इराक में अपनी स्थिति का उपयोग इन प्रॉक्सी समूहों के विस्तार के लिए किया है, जिससे इज़राइल की सीमाओं पर इन सशस्त्र मिलिशियाओं का खतरा बढ़ गया है। रूस-ईरान सहयोग इन समूहों को और अधिक स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है, जिससे इज़राइल के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा बनाए रखना और भी कठिन हो जाता है।



वॉशिंगटन और तेल अवीव के लिए, रूस-ईरान गठबंधन का बढ़ता हुआ प्रभाव एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो क्षेत्र में बदलते गठबंधनों और शक्ति संतुलन को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाए। जैसे-जैसे अमेरिका और इज़राइल इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, रूस-ईरान धारा क्षेत्रीय सुरक्षा की गतिशीलता को बदलने में एक प्रमुख तत्व बने रहेंगे।


रूस-ईरान गठबंधन केवल एक अस्थायी साझेदारी नहीं है; यह मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक आदेश में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। अमेरिका और इज़राइल के लिए, मॉस्को और तेहरान के बढ़ते संबंध एक स्पष्ट और वर्तमान खतरा प्रस्तुत करते हैं, जो क्षेत्र में उनके रणनीतिक उद्देश्यों को जटिल बना रहे हैं। जैसे-जैसे दोनों देश अपनी साझेदारी को मजबूत करते हैं, इसके परिणाम वॉशिंगटन की विदेश नीति और इज़राइल की सुरक्षा पर लंबे समय तक महसूस किए जाएंगे।