నిజంనిప్పులాంటిది

Apr 18 2024, 07:16

భారతీయుడు అడుగుపెట్టే వరకు జాబిల్లి యాత్రలు: ఇస్రో చీఫ్

అహ్మదాబాద్‌: అందని ద్రాక్షగా ఉన్న చందమామ దక్షిణ ధ్రువంపైకి విజయవంతంగా ల్యాండర్‌ను దింపి అంతరిక్ష రంగంలో సరికొత్త చరిత్రను లిఖించింది భారత్‌. ఈ ప్రయోగం గురించి తాజాగా దేశ అంతరిక్ష పరిశోధనా సంస్థ (ISRO) ఛైర్మన్‌ ఎస్‌.సోమనాథ్ (Somanath) మరోసారి స్పందించారు..

భవిష్యత్తుల్లోనూ మరిన్ని జాబిల్లి యాత్రలు (Lunar Missions) చేపడతామని చెప్పారు.

గుజరాత్‌లోని అహ్మదాబాద్‌లో ఆస్ట్రోనాటికల్‌ సొసైటీ ఆఫ్‌ ఇండియా నిర్వహించిన కార్యక్రమంలో ఇస్రో ఛైర్మన్‌ పాల్గొన్నారు. ఈసందర్భంగా మీడియాతో మాట్లాడుతూ.. ''చంద్రయాన్‌-3 (Chandrayaan 3) విజయవంతమైంది. దాన్నుంచి డేటాను సేకరించి శాస్త్రీయ అధ్యయనం చేస్తున్నాం.

ఇక, జాబిల్లిపై భారతీయుడు అడుగుపెట్టేంతవరకు చంద్రయాన్‌ సిరీస్‌లను కొనసాగించాలని అనుకుంటున్నాం. అంతకంటే ముందు ఇంకా చాలా సాంకేతికతలపై పట్టు సాధించాలి. అక్కడికి వెళ్లి తిరిగి రావడంపై పరిశోధనలు చేయాలి. తదుపరి మిషన్‌లో దీన్ని ప్రయత్నిస్తాం'' అని వెల్లడించారు..

భారత్‌ త్వరలో చేపట్టబోయే గగన్‌యాన్‌ గురించి సోమనాథ్‌ మాట్లాడారు. ''దీనికంటే ముందు ఈ ఏడాది ఓ మానవరహిత మిషన్‌ను చేపట్టనున్నాం. ఏప్రిల్‌ 24న ఎయిర్‌డ్రాప్‌ వ్యవస్థను పరీక్షించనున్నాం. ఆ తర్వాత వచ్చే ఏడాది మరో రెండు మానవరహిత యాత్రలను చేపట్టబోతున్నాం. అన్నీ అనుకూలిస్తే 2025 చివరికి గగన్‌యాన్‌ ప్రయోగం చేపడతాం'' అని పేర్కొన్నారు..

గగన్‌యాన్‌ మిషన్‌ కోసం ఇప్పటికే నలుగురు వ్యోమగాములను ఎంపిక చేసిన సంగతి తెలిసిందే. ఇటీవల ఈ ప్రాజెక్టులో ఇస్రో కీలక ముందడుగు వేసింది. మనుషులను సురక్షితంగా తీసుకెళ్లడానికి అనువైన CE20 క్రయోజనిక్‌ ఇంజిన్‌ను సిద్ధం చేసింది. ఈ ప్రయోగంతో వ్యోమగాములను 400 కిలోమీటర్ల ఎత్తులో భూకక్ష్యలోకి పంపుతారు. ఇందుకోసం ఎల్‌వీఎం-మార్క్‌3 రాకెట్‌ను ఉపయోగించనున్నారు. దాదాపు 3 రోజుల తర్వాత భూమికి తిరిగొస్తారు. తిరుగు ప్రయాణంలో వ్యోమనౌక సముద్ర జలాల్లో ల్యాండ్‌ అవుతుంది..

India

Nov 20 2023, 20:05

अंतरिक्ष की दुनिया में एक छलांग लगाने की तैयारी में इसरो, अब चांद से आएगी मिट्टी, उतरेगा 350 किलो का रोवर

#isrochandrayaan4tobringbacksoilsamplesfromthe_moon

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के हौसले मिशन चंद्रयान-3 की सफलता के बाद बुलंद है। यही वजह है कि इस मिशन की लॉन्चिंग के इतने कम समय के बाद इसरो अपने अगले प्रोजेक्ट में जुट गया है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब दो अन्य चंद्र अन्वेषण मिशनों पर काम कर रहा है।अब इसरो ल्यूपेक्स मिशन की तैयारी में जुट गया है। ल्यूपेक्स के साथ साथ चंद्रयान-4 भी लिस्ट में शामिल किया गया है। इस मिशन का लक्ष्य चंद्रमा से मिट्टी के नमूने वापस लाना है।

पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के 62वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre-SAC) के निदेशक नीलेश देसाई ने कहा कि चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की सतह से मिट्टी का एक नमूना वापस लाने का लक्ष्य शामिल होगी। उन्होंने कहा कि इस मिशन में लैंडिंग चंद्रयान-3 के समान ही होगी।

मॉड्यूल चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी के नमूने के साथ आएगा वापस

नीलेश देसाई ने कहा कि चंद्रयान-4 का केंद्रीय मॉड्यूल चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले मॉड्यूल के साथ उतरने के बाद वापस आ जाएगा। जो बाद में पृथ्वी के वायुमंडल के पास अलग हो जाएगा। इसके साथ ही लगा पुनः प्रवेश मॉड्यूल चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी के नमूने के साथ वापस आ जाएगा। यह एक बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन है। उम्मीद है कि अगले पांच से सात साल में हम चंद्रमा की सतह से नमूना लाने की इस चुनौती को पूरा कर लेंगे। यह मिशन चंद्रयान-3 की तुलना में अधिक जटिल होने की उम्मीद है।

चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में उतरेगा 350 किलोग्राम का रोवर

नीलेश देसाई ने आगे कहा कि चंद्रयान 3 मिशन के बाद अब हम जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के सहयोग से संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन ल्यूपेक्स पर काम करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 मिशन में हम 70 डिग्री तक गए। लेकिन ल्यूपेक्स मिशन के जरिए हम चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्र का निरीक्षण करने के लिए 90 डिग्री तक जाएंगे। इतना ही नहीं पहले से करीब 10 गुना भारी रोवर भेजेंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्र में बड़ा रोवर उतारेंगे जिसका वजन 350 किलोग्राम होगा। चंद्रयान-3 रोवर का वजन केवल 30 किलोग्राम था।

Purnea

Nov 16 2023, 16:21

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Patna

Nov 16 2023, 16:16

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Muzaffarpur

Nov 16 2023, 16:15

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Gaya

Nov 16 2023, 16:11

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Aurangabad

Nov 16 2023, 16:07

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

India

Nov 16 2023, 15:28

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan_3_launch_rocket_lvm3_m4_part_enters_earth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

India

Sep 28 2023, 15:15

चीन ने भारत के मिशन चंद्र की सफलता पर उठाया सवाल, कहा- चांद के दक्षिण ध्रुव पर नहीं उतरा चंद्रयान-3

#chinesescientistclaimsindiaschandrayaan3didnotlandednearmoonsouthpole

भारत और चीन के बीच का तनाव किसी से छुपा नहीं है। चीन अक्सर भारतीय क्षेत्रों पर अपने दावे करता रहता है। इस बीच चीन ने ऐसा दावा किया जिससे साफ जाहिर होता है कि ड्रैगन को भारत की सफलता पची नहीं है। दरअसल, एक शीर्ष चीनी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि भारत का चंद्र मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव या उसके आसपास नहीं उतरा।बता दें कि, भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरा था और ऐसा करने वाला भारत पहला देश बन गया था।लेकिन अब चीनी वैज्ञानिक ने कहा है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र है ही नहीं।

चीन के वैज्ञानिक ने यह दावा ऐसे समय पर किया है जब भारत विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को फिर से सक्रिय करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा है।यह टिप्पणियां बुधवार को चीनी ब्रह्मांड रसायनज्ञ ओयांग ज़ियुआन द्वारा की गईं। जो चीन के पहले चंद्र मिशन के मुख्य वैज्ञानिक थे।उन्‍होंने यह भी दावा किया कि भारत के चंद्रयान 3 ने न तो दक्षिणी ध्रुव पर या न ही उसके पास लैंडिंग की है। चीनी वैज्ञानिक ने कहा, चंद्रयान-3 का लैंडिंग साइट चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव नहीं था। न ही चंद्रमा का ध्रुवीय इलाका या अंटारकटिक का ध्रुवीय इलाका।

चीनी वैज्ञानिक ने दिया ये तर्क

ज़ियुआन ने आधिकारिक साइंस टाइम्स अखबार से बातचीत करते हुए कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र को लेकर अलग-अलग धारणाओं से उपजा है।चीनी वैज्ञानिक अपने दावे के समर्थन में दलील देते हैं कि चूंकि चंद्रमा 1.5 डिग्री झुका है, ऐसे में उसका दक्षिणी ध्रुव का इलाका धरती के मुकाबले बहुत छोटा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मानना है कि चंद्रमा का दक्षिणी इलाका 80 से 90 डिग्री के बीच है। वहीं चीनी वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि यह 88.5 से 90 डिग्री के बीच है जो काफी छोटा है।जियूआन कहते हैं कि यह चंद्रमा के 1.5 डिग्री झुकाव की वजह से है।

किसी भी वैज्ञानिक ने भारत की सफलता का खंडन नहीं किया

अब तक दुनिया के किसी भी वैज्ञानिक ने भारत के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने के दावे का खंडन नहीं किया है। यही नहीं नासा और यूरोपीय स्‍पेस एजेंसी ने तो इसरो के वैज्ञानिकों की जमकर तारीफ की है। वहीं चीन के ही हांगकांग यूनिवर्सिटी के स्‍पेस रीसर्य लेब्रोटरी ने चीनी वैज्ञानिक जियूआन के दावे को खारिज कर दिया है। लेब्रोटरी के चीनी वैज्ञानिक क्‍वेंटिन पार्कर कहते हैं कि जिस क्षण आप दक्षिणी ध्रुव के नजदीक अपना रोवर उतारते हैं, जिसे दक्षिणी ध्रुव माना गया है, वह अपने आप में ही बड़ी उपलब्धि है।

भारत बना चांद के साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश

अगर चंद्रयान-3 मिशन की बात करें तो 14 जुलाई को इसे लॉन्च किया गया था, 23 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर की चांद के दक्षिणी हिस्से पर सफलतम लैंडिंग हुई। भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बना है, जबकि चांद के साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश है। इस हिस्से को भारत ने ‘शिवशक्ति प्वाइंट’ नाम दिया है। 23 अगस्त के बाद से ही विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर ने काम शुरू किया, अभी के हिसाब से 2 सितंबर तक इनकी लाइफलाइन है।

India

Sep 15 2023, 15:58

धरती के कारण चंद्रमा पर बन रहा है पानी, चंद्रयान-1 के डेटा स्टडी के बाद वैज्ञानिकों का दावा

#chandrayaan_1_data_suggests_electrons_from_earth_forming_water_on_moon

15 साल पहले लॉन्‍च हुए भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी का पता लगाया था। यह मिशन आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है। चंद्रयान-1 की ओर से भेजे गए डेटा की स्टडी के बाद अब खुलासा हो रहा है कि धरती की वजह से ही चांद पर पानी बन रहा है। चंद्रयान-1 के डेटा की स्टडी कर रहे अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने दावा किया है कि पृथ्वी के हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं, जो मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है, यानी इनके होने से ही पृथ्वी के मौसम में बदलाव होता है।

अमेरिका के मनोआ में हवाई विश्वविद्यालय (यूएच) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली टीम ने चंद्रयान-1 के रिमोट सेंसिंग डेटा का एनालिसिस किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर अपक्षय प्रक्रियाओं यानी चट्टानों और खनिजों के टूटने या घुलने में मदद कर रहे हैं। नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में इसे लेकर एक शोध प्रकाशित किया गया है। इस शोध में पाया गया कि इलेक्ट्रॉन चंद्र पिंड पर पानी का निर्माण करने में मदद किए होंगे। 

इस स्टडी में कहा गया है कि भले ही चंद्रमा पर तेजी से पानी के उत्पादन के प्रमुख स्रोत के रूप में सोलर विंड के महत्व की पुष्टि की गई है, मगर धरती के प्लाज्मा शीट के अब तक नहीं देखे गए गुण भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। साइंटिस्टों ने कहा कि चंद्रमा पर पानी के जमाव और वितरण को जानना इसके गठन और विकास को समझने और भविष्य में मानव खोजों के लिए जल संसाधन उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण है।

रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले क्षेत्रों में पहले तलाशी गई बर्फ की उत्पत्ति को समझने के लिए चंद्रयान -1 मिशन के डेटा का उपयोग किया है। रिसर्चर्स ने पिछली रिसर्च पर और काम किया। इसमें पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में ऑक्सीजन की वजह से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में लोहे को जंग लगा रही है। साथ ही चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने पर सतह के मौसम में बदलाव की जांच करने का निर्णय लिया। ली शुआई जो इस रिसर्च में शामिल थे उन्‍होंने बताया, यह चंद्रमा की सतह पर पानी के गठन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक नैचुरल लैब मुहैया कराता है। जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा की वजह से बमबारी होती है। मैग्नेटोटेल के अंदर सौर हवा के प्रोटॉन लगभग न के बराबर होते हैं। ऐसे में पानी के निर्माण की उम्‍मीद जीरो थी।

आसान शब्दों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि चांद पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। यानी 14 दिन ही यहां पर सूरज की रोशनी होती है। जब यहां सूरज की रोशनी नहीं होती तो सोलर विंड की बौछार होती है। इसी दौरान पानी बनने का दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि नई खोज पहले खोजी गई पानी की बर्फ की उत्पत्ति को समझाने में भी मददगार हो सकती है।

 मालूम हो कि चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल लॉन्च किया था। चंद्रयान-1 ने आठ महीने में चांद के 3,000 चक्कर लगाए और 70 हजार से ज्यादा तस्वीरें भेजीं। इनमें चांद पर बने पहाड़ों और क्रेटर को भी दिखाया गया था। चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधेरे इलाके के फोटो भी इसने भेजे। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी चांद पर पानी के होने की पुष्टि थी।

నిజంనిప్పులాంటిది

Apr 18 2024, 07:16

భారతీయుడు అడుగుపెట్టే వరకు జాబిల్లి యాత్రలు: ఇస్రో చీఫ్

అహ్మదాబాద్‌: అందని ద్రాక్షగా ఉన్న చందమామ దక్షిణ ధ్రువంపైకి విజయవంతంగా ల్యాండర్‌ను దింపి అంతరిక్ష రంగంలో సరికొత్త చరిత్రను లిఖించింది భారత్‌. ఈ ప్రయోగం గురించి తాజాగా దేశ అంతరిక్ష పరిశోధనా సంస్థ (ISRO) ఛైర్మన్‌ ఎస్‌.సోమనాథ్ (Somanath) మరోసారి స్పందించారు..

భవిష్యత్తుల్లోనూ మరిన్ని జాబిల్లి యాత్రలు (Lunar Missions) చేపడతామని చెప్పారు.

గుజరాత్‌లోని అహ్మదాబాద్‌లో ఆస్ట్రోనాటికల్‌ సొసైటీ ఆఫ్‌ ఇండియా నిర్వహించిన కార్యక్రమంలో ఇస్రో ఛైర్మన్‌ పాల్గొన్నారు. ఈసందర్భంగా మీడియాతో మాట్లాడుతూ.. ''చంద్రయాన్‌-3 (Chandrayaan 3) విజయవంతమైంది. దాన్నుంచి డేటాను సేకరించి శాస్త్రీయ అధ్యయనం చేస్తున్నాం.

ఇక, జాబిల్లిపై భారతీయుడు అడుగుపెట్టేంతవరకు చంద్రయాన్‌ సిరీస్‌లను కొనసాగించాలని అనుకుంటున్నాం. అంతకంటే ముందు ఇంకా చాలా సాంకేతికతలపై పట్టు సాధించాలి. అక్కడికి వెళ్లి తిరిగి రావడంపై పరిశోధనలు చేయాలి. తదుపరి మిషన్‌లో దీన్ని ప్రయత్నిస్తాం'' అని వెల్లడించారు..

భారత్‌ త్వరలో చేపట్టబోయే గగన్‌యాన్‌ గురించి సోమనాథ్‌ మాట్లాడారు. ''దీనికంటే ముందు ఈ ఏడాది ఓ మానవరహిత మిషన్‌ను చేపట్టనున్నాం. ఏప్రిల్‌ 24న ఎయిర్‌డ్రాప్‌ వ్యవస్థను పరీక్షించనున్నాం. ఆ తర్వాత వచ్చే ఏడాది మరో రెండు మానవరహిత యాత్రలను చేపట్టబోతున్నాం. అన్నీ అనుకూలిస్తే 2025 చివరికి గగన్‌యాన్‌ ప్రయోగం చేపడతాం'' అని పేర్కొన్నారు..

గగన్‌యాన్‌ మిషన్‌ కోసం ఇప్పటికే నలుగురు వ్యోమగాములను ఎంపిక చేసిన సంగతి తెలిసిందే. ఇటీవల ఈ ప్రాజెక్టులో ఇస్రో కీలక ముందడుగు వేసింది. మనుషులను సురక్షితంగా తీసుకెళ్లడానికి అనువైన CE20 క్రయోజనిక్‌ ఇంజిన్‌ను సిద్ధం చేసింది. ఈ ప్రయోగంతో వ్యోమగాములను 400 కిలోమీటర్ల ఎత్తులో భూకక్ష్యలోకి పంపుతారు. ఇందుకోసం ఎల్‌వీఎం-మార్క్‌3 రాకెట్‌ను ఉపయోగించనున్నారు. దాదాపు 3 రోజుల తర్వాత భూమికి తిరిగొస్తారు. తిరుగు ప్రయాణంలో వ్యోమనౌక సముద్ర జలాల్లో ల్యాండ్‌ అవుతుంది..

India

Nov 20 2023, 20:05

अंतरिक्ष की दुनिया में एक छलांग लगाने की तैयारी में इसरो, अब चांद से आएगी मिट्टी, उतरेगा 350 किलो का रोवर

#isrochandrayaan4tobringbacksoilsamplesfromthe_moon

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के हौसले मिशन चंद्रयान-3 की सफलता के बाद बुलंद है। यही वजह है कि इस मिशन की लॉन्चिंग के इतने कम समय के बाद इसरो अपने अगले प्रोजेक्ट में जुट गया है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब दो अन्य चंद्र अन्वेषण मिशनों पर काम कर रहा है।अब इसरो ल्यूपेक्स मिशन की तैयारी में जुट गया है। ल्यूपेक्स के साथ साथ चंद्रयान-4 भी लिस्ट में शामिल किया गया है। इस मिशन का लक्ष्य चंद्रमा से मिट्टी के नमूने वापस लाना है।

पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के 62वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre-SAC) के निदेशक नीलेश देसाई ने कहा कि चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की सतह से मिट्टी का एक नमूना वापस लाने का लक्ष्य शामिल होगी। उन्होंने कहा कि इस मिशन में लैंडिंग चंद्रयान-3 के समान ही होगी।

मॉड्यूल चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी के नमूने के साथ आएगा वापस

नीलेश देसाई ने कहा कि चंद्रयान-4 का केंद्रीय मॉड्यूल चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले मॉड्यूल के साथ उतरने के बाद वापस आ जाएगा। जो बाद में पृथ्वी के वायुमंडल के पास अलग हो जाएगा। इसके साथ ही लगा पुनः प्रवेश मॉड्यूल चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी के नमूने के साथ वापस आ जाएगा। यह एक बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन है। उम्मीद है कि अगले पांच से सात साल में हम चंद्रमा की सतह से नमूना लाने की इस चुनौती को पूरा कर लेंगे। यह मिशन चंद्रयान-3 की तुलना में अधिक जटिल होने की उम्मीद है।

चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में उतरेगा 350 किलोग्राम का रोवर

नीलेश देसाई ने आगे कहा कि चंद्रयान 3 मिशन के बाद अब हम जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के सहयोग से संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन ल्यूपेक्स पर काम करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 मिशन में हम 70 डिग्री तक गए। लेकिन ल्यूपेक्स मिशन के जरिए हम चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्र का निरीक्षण करने के लिए 90 डिग्री तक जाएंगे। इतना ही नहीं पहले से करीब 10 गुना भारी रोवर भेजेंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्र में बड़ा रोवर उतारेंगे जिसका वजन 350 किलोग्राम होगा। चंद्रयान-3 रोवर का वजन केवल 30 किलोग्राम था।

Purnea

Nov 16 2023, 16:21

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Patna

Nov 16 2023, 16:16

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Muzaffarpur

Nov 16 2023, 16:15

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

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इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Gaya

Nov 16 2023, 16:11

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

Aurangabad

Nov 16 2023, 16:07

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan3launchrocketlvm3m4partentersearth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

India

Nov 16 2023, 15:28

चंद्रयान-3 के लॉन्‍चर व्हीकल का एक हिस्सा अनियंत्रित होकर पृथ्वी के वातावरण में वापस लौटा, पैसिफिक ओशन में हो सकता है क्रैश

#chandrayaan_3_launch_rocket_lvm3_m4_part_enters_earth_atmosphere

इस साल 23 अगस्त की तारीख को भारत ने चांद के दक्षिणी हिस्से में चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवा कर इतिहास रच दिया था। चंद्रयान के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा की सतह पर सौरमंडल निर्माण के रहस्य, पानी और कई चीजों पर रिसर्च किया था।इस बीच खबर आ रही है कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में ले जाने वाले लॉन्च व्हीकल एलवीएम3एम4 के ऊपरी क्रायोजनिक हिस्से ने बुधवार को धरती के वातावरण में अनियंत्रित वापसी की है। इसकी जानकारी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने दी।

प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश

इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने वाले एलवीएम3 एम4 प्रक्षेपण यान का ‘क्रायोजेनिक’ ऊपरी हिस्सा बुधवार को पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित रूप से फिर से प्रवेश कर गया है। इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि रॉकेट बॉडी जो कि चंद्रयान-3 यान का हिस्सा था, वह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस से प्रवेश कर गया है रॉकेट का यह हिस्सा धरती के वायुमंडल में 15 नवंबर की दोपहर करीब 2.42 बजे दाखिल हुआ। बता दें कि रॉकेट बॉडी के फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश इसके प्रक्षेपण के 124 दिनों के भीतर हुई है।

धरती पर कहां होगा रॉकेट के हिस्से का इम्‍पैक्‍ट

इसरो के मुताबिक, इसका इम्पैक्ट पॉइंट उत्तरी प्रशांत महासागर के ऊपर लगाया गया है। फाइनल ग्राउंड ट्रैक भारत के ऊपर से नहीं गुजरा। इसरो ने कहा कि उसने दुर्घटनावश होने वाले किसी भी संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करने के लिए सभी अवशिष्ट प्रणोदक और ऊर्जा स्रोतों को हटाने की प्रक्रिया के तहत यान के इस ऊपरी चरण को निष्क्रिय कर दिया था। ऐसा अंतरिक्ष मलबा निस्तारण के लिए तय संयुक्त राष्ट्र और आईएडीसी के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है। इसरो ने कहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रॉकेट बॉडी को निष्क्रिय करना और मिशन के बाद उसका निपटान फिर बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता को संरक्षित करने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

बता दें कि लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता से अंजाम देकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई रिसर्च की थी। काम समाप्त होने और चंद्रमा में अंधेरे का समय आने के बाद इसरो ने दोनों उपकरणों को स्लीप मोड में डाल दिया था। हालांकि, विक्रम लैंडर के रिसीवर को ऑन ही रखा गया था ताकि इससे धरती से दोबारा संपर्क स्थापित किया जा सके।

India

Sep 28 2023, 15:15

चीन ने भारत के मिशन चंद्र की सफलता पर उठाया सवाल, कहा- चांद के दक्षिण ध्रुव पर नहीं उतरा चंद्रयान-3

#chinesescientistclaimsindiaschandrayaan3didnotlandednearmoonsouthpole

भारत और चीन के बीच का तनाव किसी से छुपा नहीं है। चीन अक्सर भारतीय क्षेत्रों पर अपने दावे करता रहता है। इस बीच चीन ने ऐसा दावा किया जिससे साफ जाहिर होता है कि ड्रैगन को भारत की सफलता पची नहीं है। दरअसल, एक शीर्ष चीनी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि भारत का चंद्र मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव या उसके आसपास नहीं उतरा।बता दें कि, भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरा था और ऐसा करने वाला भारत पहला देश बन गया था।लेकिन अब चीनी वैज्ञानिक ने कहा है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र है ही नहीं।

चीन के वैज्ञानिक ने यह दावा ऐसे समय पर किया है जब भारत विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को फिर से सक्रिय करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा है।यह टिप्पणियां बुधवार को चीनी ब्रह्मांड रसायनज्ञ ओयांग ज़ियुआन द्वारा की गईं। जो चीन के पहले चंद्र मिशन के मुख्य वैज्ञानिक थे।उन्‍होंने यह भी दावा किया कि भारत के चंद्रयान 3 ने न तो दक्षिणी ध्रुव पर या न ही उसके पास लैंडिंग की है। चीनी वैज्ञानिक ने कहा, चंद्रयान-3 का लैंडिंग साइट चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव नहीं था। न ही चंद्रमा का ध्रुवीय इलाका या अंटारकटिक का ध्रुवीय इलाका।

चीनी वैज्ञानिक ने दिया ये तर्क

ज़ियुआन ने आधिकारिक साइंस टाइम्स अखबार से बातचीत करते हुए कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र को लेकर अलग-अलग धारणाओं से उपजा है।चीनी वैज्ञानिक अपने दावे के समर्थन में दलील देते हैं कि चूंकि चंद्रमा 1.5 डिग्री झुका है, ऐसे में उसका दक्षिणी ध्रुव का इलाका धरती के मुकाबले बहुत छोटा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मानना है कि चंद्रमा का दक्षिणी इलाका 80 से 90 डिग्री के बीच है। वहीं चीनी वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि यह 88.5 से 90 डिग्री के बीच है जो काफी छोटा है।जियूआन कहते हैं कि यह चंद्रमा के 1.5 डिग्री झुकाव की वजह से है।

किसी भी वैज्ञानिक ने भारत की सफलता का खंडन नहीं किया

अब तक दुनिया के किसी भी वैज्ञानिक ने भारत के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने के दावे का खंडन नहीं किया है। यही नहीं नासा और यूरोपीय स्‍पेस एजेंसी ने तो इसरो के वैज्ञानिकों की जमकर तारीफ की है। वहीं चीन के ही हांगकांग यूनिवर्सिटी के स्‍पेस रीसर्य लेब्रोटरी ने चीनी वैज्ञानिक जियूआन के दावे को खारिज कर दिया है। लेब्रोटरी के चीनी वैज्ञानिक क्‍वेंटिन पार्कर कहते हैं कि जिस क्षण आप दक्षिणी ध्रुव के नजदीक अपना रोवर उतारते हैं, जिसे दक्षिणी ध्रुव माना गया है, वह अपने आप में ही बड़ी उपलब्धि है।

भारत बना चांद के साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश

अगर चंद्रयान-3 मिशन की बात करें तो 14 जुलाई को इसे लॉन्च किया गया था, 23 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर की चांद के दक्षिणी हिस्से पर सफलतम लैंडिंग हुई। भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बना है, जबकि चांद के साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश है। इस हिस्से को भारत ने ‘शिवशक्ति प्वाइंट’ नाम दिया है। 23 अगस्त के बाद से ही विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर ने काम शुरू किया, अभी के हिसाब से 2 सितंबर तक इनकी लाइफलाइन है।

India

Sep 15 2023, 15:58

धरती के कारण चंद्रमा पर बन रहा है पानी, चंद्रयान-1 के डेटा स्टडी के बाद वैज्ञानिकों का दावा

#chandrayaan_1_data_suggests_electrons_from_earth_forming_water_on_moon

15 साल पहले लॉन्‍च हुए भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी का पता लगाया था। यह मिशन आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है। चंद्रयान-1 की ओर से भेजे गए डेटा की स्टडी के बाद अब खुलासा हो रहा है कि धरती की वजह से ही चांद पर पानी बन रहा है। चंद्रयान-1 के डेटा की स्टडी कर रहे अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने दावा किया है कि पृथ्वी के हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं, जो मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है, यानी इनके होने से ही पृथ्वी के मौसम में बदलाव होता है।

अमेरिका के मनोआ में हवाई विश्वविद्यालय (यूएच) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली टीम ने चंद्रयान-1 के रिमोट सेंसिंग डेटा का एनालिसिस किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर अपक्षय प्रक्रियाओं यानी चट्टानों और खनिजों के टूटने या घुलने में मदद कर रहे हैं। नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में इसे लेकर एक शोध प्रकाशित किया गया है। इस शोध में पाया गया कि इलेक्ट्रॉन चंद्र पिंड पर पानी का निर्माण करने में मदद किए होंगे। 

इस स्टडी में कहा गया है कि भले ही चंद्रमा पर तेजी से पानी के उत्पादन के प्रमुख स्रोत के रूप में सोलर विंड के महत्व की पुष्टि की गई है, मगर धरती के प्लाज्मा शीट के अब तक नहीं देखे गए गुण भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। साइंटिस्टों ने कहा कि चंद्रमा पर पानी के जमाव और वितरण को जानना इसके गठन और विकास को समझने और भविष्य में मानव खोजों के लिए जल संसाधन उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण है।

रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले क्षेत्रों में पहले तलाशी गई बर्फ की उत्पत्ति को समझने के लिए चंद्रयान -1 मिशन के डेटा का उपयोग किया है। रिसर्चर्स ने पिछली रिसर्च पर और काम किया। इसमें पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में ऑक्सीजन की वजह से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में लोहे को जंग लगा रही है। साथ ही चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने पर सतह के मौसम में बदलाव की जांच करने का निर्णय लिया। ली शुआई जो इस रिसर्च में शामिल थे उन्‍होंने बताया, यह चंद्रमा की सतह पर पानी के गठन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक नैचुरल लैब मुहैया कराता है। जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा की वजह से बमबारी होती है। मैग्नेटोटेल के अंदर सौर हवा के प्रोटॉन लगभग न के बराबर होते हैं। ऐसे में पानी के निर्माण की उम्‍मीद जीरो थी।

आसान शब्दों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि चांद पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। यानी 14 दिन ही यहां पर सूरज की रोशनी होती है। जब यहां सूरज की रोशनी नहीं होती तो सोलर विंड की बौछार होती है। इसी दौरान पानी बनने का दावा किया गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि नई खोज पहले खोजी गई पानी की बर्फ की उत्पत्ति को समझाने में भी मददगार हो सकती है।

 मालूम हो कि चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल लॉन्च किया था। चंद्रयान-1 ने आठ महीने में चांद के 3,000 चक्कर लगाए और 70 हजार से ज्यादा तस्वीरें भेजीं। इनमें चांद पर बने पहाड़ों और क्रेटर को भी दिखाया गया था। चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधेरे इलाके के फोटो भी इसने भेजे। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी चांद पर पानी के होने की पुष्टि थी।