ट्रंप भारत के दोस्त या दुश्मन? जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर का जवाब

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप की वापसी के बाद से ही दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप ने भारत का नाम लेकर भी धमकी दी है। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात की है।

जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख करते हुए डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अहम बात कही। जयशंकर ने ट्रंप को एक 'अमेरिकी राष्ट्रवादी' बताया। विदेश मंत्री जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक कार्यक्रम में मौजूद थे। इस दौरान ट्रंप भारत के मित्र हैं या शत्रु, इस बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि मैंने हाल ही में उनके (ट्रंप के) शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मेरा मानना है कि वह एक अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप की नीतियां वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती रहेगी।

जयशंकर ने कहा, ट्रंप बहुत सी चीजें बदलेंगे। हो सकता है कि कुछ चीजें उम्मीद के अनुरूप नहीं हों, लेकिन हमें देश के हित में विदेश नीतियों के संदर्भ में खुला रहना होगा। कुछ मुद्दे हो सकते हैं जिन पर हम एकमत न हों, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होंगे जहां चीजें हमारे दायरे में होंगी। जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंधों पर भी जोर देते हुए कहा क‍ि अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत हैं और मोदी के ट्रंप के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं।

भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर क्या बोले

इस दौरान, एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और देश के बारे में बदलती धारणाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा, यहां तक कि अब गैर-भारतीय भी खुद को भारतीय कहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे उन्हें विमान में सीट मिलने में मदद मिलेगी।

खुद के राजनीति में आने पर क्या कहा?

डॉ. एस. जयशंकर ने शिक्षा क्षेत्र और कूटनीति से राजनीति में आने का उल्लेख करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नौकरशाह बनूंगा। राजनीति में मैं अचानक आ गया, या तो इसे भाग्य कहें, या इसे मोदी कहें। उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) मुझे इस तरह से आगे बढ़ाया कि कोई भी मना नहीं कर सका। उन्होंने रेखांकित किया कि विदेश में रहने वाले भारतीय अभी भी समर्थन के लिए अपनी मातृभूमि पर निर्भर हैं और कहा, जो भी देश के बाहर जाते हैं, वे हमारे पास ही आते हैं। बाहर हम ही रखवाले हैं।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

दुनिया में भारत का बढ़ता कदः ट्रंप के शपथ ग्रहण में दिखी झलक, पहली पंक्ति में दिखे जयशंकर
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* भारत एक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति वाला देश है। यह एक विशाल जनसंख्या वाला देश भी है, जो इसे विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में से एक बनाता है। हाल के वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक प्रभाव में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। नतीजतन, भारत विश्व पटल पर एक बढ़ती शक्ति के रूप में उभर रहा है। दुनियाभर के देशों में भारत के बढ़ते धमक की एक झलक अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखी।इस दौरान एक बात ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा और वो ये था कि ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को पहली पंक्ति में ट्रंप के मंच के ठीक सामने बिठाया गया था। यह वैश्विक परिदृश्य में भारत के ऊंचे होते कद का उदाहरण है। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ले ली है। शपथ ग्रहण के समारोह के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिनिधि पहुंचे। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे मेहमानों में जयशंकर की चर्चा इसलिए हो रही है क्यों कि उनको मेहमानों की पहली पक्ति में जगह दी गई थी। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जयशंकर इक्वाडोर के राष्ट्रपति डेनियल नोबोआ के साथ आगे की पंक्ति में बैठे नजर आए, जो आधिकारिक प्रोटोकॉल है। इस दौरान जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया पीछे बैठे नजर आए। इस तस्वीर को बदलते भारत और अमेरिका और भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल होने अमेरिका पहुंचे थे। जब डोनाल्ड ट्रंप पोडियम पर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले रहे थे, तब एस जयशंकर उनके बिल्कुल सामने बैठे हुए थे। यह तस्वीर अपने आप में काफी कुछ कह रही है।एस जयशंकर की इस तस्वीर को अमेरिका में भारत की धाक के तौर पर देखा जा सकता है। उनको ट्रंप के बिल्कुल सामने यानी कि पहली पंक्ति में जगह मिलना यह दिखाता है कि भारत की धाक दुनियाभर में है। पूरी दुनिया का नजरिया भारत के प्रति बदल रहा है। विदेश मंत्री ने ट्रंप के शपथ ग्रहण की कुछ तस्वीरें अपने एक्स हैंडल पर शेयर की हैं। जिसमें उन्होंने कहा है कि ट्रंप और जेडी वेंस के शपथ ग्रहण में भारत का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए बहुत ही सम्मान की बात है।
एस. जयशंकर ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन से की मुलाकात, क्या हुई बातचीत?

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भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस समय अपने 6 दिवसीय अमेरिकी दौरे पर हैं। जहां वे 29 दिसंबर तक रहने वाले हैं। अपने छह दिवसीय अमेरिकी यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और कई महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। विदेश मंत्री ने आज यानी शुक्रवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के प्रमुख जेक सुलिवन के साथ मुलाकात की। इस दौरान एस. जयशंकर और अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन ने भारत-अमेरिका के रणनीतिक साझेदारी की प्रगति के विषय पर चर्चा की।

इस मुलाकात के बारे में जयशंकर ने एक्स पर पोस्ट कर जानकारी दी। एस जयशंकर ने कहा कि बुधवार वाशिंगटन डी.सी. में अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन से मिलकर अच्छा लगा। जयशंकर ने भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी की प्रगति पर व्यापक चर्चा की है। उन्होंने आगे कहा, एनएसए के साथ भारत और अमेरिका के रणनीतिक साझेदारी के प्रगति को लेकर व्यापक रूप से चर्चा की। वर्तमान क्षेत्रीय और वैश्विक विकास पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।

जयशंकर के अमेरिकी दौरे को लेकर विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जयशंकर 24 दिसंबर से 29 दिसंबर तक अमेरिका की यात्रा पर हैं। इस यात्रा के दौरान, वह प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने समकक्षों से मिलेंगे। साथ ही, वह अमेरिका में भारत के महावाणिज्यदूतों के एक सम्मेलन की अध्यक्षता भी करेंगे।

बता दें कि जयशंकर की यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सितंबर में अमेरिका यात्रा और चौथे क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद हो रही है। अमेरिका और भारत के बीच उच्च स्तरीय बातचीत लगातार जारी है।

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जयशंकर पहुंचे अमेरिका, क्या ट्रंप से होगी मुलाकात?

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपत‍ि डोनाल्‍ड ट्रंप 20 जनवरी को पदभार संभालेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर मंगलवार से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भारत की ओर से अमेरिका की यह पहली उच्च स्तरीय यात्रा होगी। ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर बाइडन प्रशासन के सदस्यों के साथ-साथ ट्रंप 2.0 के प्रमुख सदस्यों से मिलने के लिए अमेरिका के दौरे पर हैं। इस दौरान वह आने वाले प्रशासन की प्राथमिकताओं और अगले चार वर्षों के लिए भारत की अपेक्षाओं पर चर्चा की जा सके।

विदेश मंत्रालय ने उनके दौरे का पूरा कार्यक्रम तो शेयर नहीं क‍िया है, लेकिन सूत्रों के मुता‍बिक, जयशंकर ट्रंप की टीम को भारत की जरूरतें समझाने की कोश‍िश करेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा टैर‍िफ को लेकर है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते टैर‍िफ को लेकर भारत के प्रति अध‍िक सख्त रुख अपनाने के संकेत द‍िए थे। ट्रंप ने कहा था क‍ि अगर वे हम पर कर लगाते हैं, तो हम भी उन पर उतना ही कर लगाएंगे। उन्‍होंने कहा, ‘म्‍यूचुअल’ शब्द काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर भारत हमसे 100 प्रतिशत टैक्‍स लेता है, तो क्या हम उससे इसके लिए कुछ भी नहीं लेंगे? आप जानते हैं, वे साइकिल भेजते हैं, और हम उन्हें साइकिल भेजते हैं। वे हमसे 100 और 200 फीसदी टैर‍िफ लेते हैं। भारत बहुत ज़्यादा टैक्‍स लेता है। ब्राजील बहुत ज्‍यादा टैक्‍स लेता है। अगर वे हमसे टैक्‍स लेना चाहते हैं, तो ठीक है, लेकिन हम उनसे वही टैक्‍स वसूलेंगे।

विदेश मंत्री जयशंकर प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाकात करेंगे। जयशंकर के एजेंडा में क्वाड समिट शामिल है। भारत 2025 में इसकी मेजबानी करने वाला है। आईसीईटी, दक्षिण एशिया की स्थिति, खालिस्तानी उग्रवाद और रक्षा साझेदारी इसमें प्रमुख मुद्दा रहेगा। ट्रंप टीम के साथ चर्चा, व्यापार और टैरिफ पर राष्ट्रपति के फोकस के अलावा, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर साझेदारी के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की संभावना है। विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि एस जयशंकर अमेरिका में स्थित भारत के महावाणिज्य दूत के एक सम्मेलन की भी अध्यक्षता करेंगे।

इसी साल जून में मोदी सरकार के सत्‍ता में आने के बाद जयशंकर की यह दूसरी अमेर‍िकी यात्रा है. जयशंकर ने पिछली बार अमेरिका का दौरा तब किया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति जो बा‍इडेन, ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानी और पूर्व जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ क्वाड लीडर्स समिट में भाग लेने के लिए अमेर‍िका गए थे. तब बा‍इडेन ने डेलावेयर के विलमिंगटन में अपने निजी आवास पर पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया था

हमने नहीं नरसिम्हा राव ने की थी शुरुआत”, विदेश नीति में बदलाव की जरूरत पर क्या बोले एस जयशंकर?
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* विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बदलते परिदृश्य में विदेश नीति में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि विदेश नीति में बदलाव को राजनीतिक हमले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। आईसीसी में इंडियाज वर्ल्ड पत्रिका के विमोचन के बाद आयोजित कार्यक्रम में जयशंकर ने विदेश नीति मामलों के विशेषज्ञ सी. राजा मोहन के साथ परिचर्चा के दौरान ये बातें कहीं। 'इंडियाज व‌र्ल्ड' मैगजीन की शुरुआत के अवसर पर जयशंकर ने कहा कि ऐसे चार बड़े कारक हैं, जिनके कारण भारत में लोगों को स्वयं से पूछना चाहिए कि विदेश नीति में कौन से परिवर्तन आवश्यक हैं। एक बदलाव तो ऐसा है, जिसके बारे में उन्हें शनिवार को बात करने का मौका मिला था। डॉ. अरविंद पनगढि़या की पुस्तक के विमोचन समारोह में जयशंकर ने कहा था, 'नेहरू विकास मॉडल ने नेहरू की विदेश नीति को जन्म दिया और हम विदेश में इसे सही करना चाहते हैं, जैसे देश में इस मॉडल के परिणामों को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं।' विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि जब हम विदेश नीति में बदलाव की बात करते हैं और अगर नेहरू के बाद की बात होती है तो इसे राजनीतिक हमले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि विदेश नीति में बदलाव के लिए नरेन्द्र मोदी की जरूरत नहीं थी। नरसिम्हा राव ने इसकी शुरुआत की थी। एस जयशंकर ने कहा कई सालों तक हमारे पास नेहरू विकास मॉडल था। नेहरू विकास मॉडल ने नेहरूवादी विदेश नीति तैयार की। यह सिर्फ हमारे देश में क्या हो रहा था, इस बारे में नहीं था, 1940, 50, 60 और 70 के दशक में एक अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य था, जो द्विध्रुवीय था। फिर एकध्रुवीय परिदृश्य था। पिछले 25 वर्षों में बहुत तीव्र वैश्वीकरण, देशों के बीच बहुत मजबूत अंतर-निर्भरता देखी है इसलिए एक तरह से एक-दूसरे के प्रति राज्यों के संबंध और व्यवहार में भी बदलाव आया है। अगर कोई प्रौद्योगिकी के प्रभाव को देखता है, जैसे- विदेश नीति पर प्रौद्योगिकी, राज्य की क्षमता पर प्रौद्योगिकी और हमारे दैनिक जीवन पर प्रौद्योगिकी, तो वह भी बदल गया है इसलिए यदि घरेलू मॉडल बदल गया है। अगर परिदृश्य बदल गया है, राज्यों के व्यवहार पैटर्न बदल गए हैं और विदेश नीति के उपकरण बदल गए हैं तो विदेश नीति एक जैसी कैसे रह सकती है। विदेश मंत्री ने कहा, 'इसलिए मुझे लगता है कि हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। हमें यथार्थवादी होने की जरूरत है। हमें इस देश में व्यावहारिक होने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि डिजिटल युग की बदलती जरूरतों के अनुसार विदेश नीति अपनाने की जरूरत है। डिजिटल युग मौलिक रूप से विनिर्माण युग से अलग है, क्योंकि यह वैश्विक साझेदारी बनाने और अपने डाटा के साथ दूसरों पर भरोसा करने जैसी नई चुनौतियां पेश करता है।
चीन के साथ कैसे सुधरे संबंध? एस जयशंकर ने लोकसभा में बताई कूटनीतिक कामयाबी की कहानी*
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भारत-चीन के संबंध में हाल के दिनों में बेहतर हुए हैं। गलवां घाटी झड़प के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। हालांकि, कई दौर के बातचीत के बाद संबंध पटरी पर लौटे हैं। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को लोकसभा में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मौजूदा हालात की जानकारी दी और बताया कि अब हालात बेहतर हैं।जयशंकर ने साफ किया कि पूर्वी लद्दाख के इलाकों में डिसइंगेजमेंट पूरी तरह पूरा हो चुका है। अब दोनों देश आगे तनाव न हो इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन एलएसी पर सीमा विवाद खत्म करने के लिए दशकों से बात कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमलोग आपसी सहमति से विवाद हल करने के लिए सहमत हुए हैं। उन्होंने बताया कि मई-जून 2020 में चीन ने एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की थी जिसके बाद भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग में दिक्कत आई थी। गलवां में हुए तनाव के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी काफी बढ़ गई थी। इसके बाद भारत ने भी एलएसी पर बड़ी संख्या में हथियार और सैनिकों की तैनाती की थी। जयशंकर ने आगे कहा कि यह सदन जानता है कि चीन ने 1962 के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं में अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में चीन को 5,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र अवैध रूप से सौंप दिया था। भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों से बातचीत की है। एस जयशंकर ने कहा, हम एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य सीमा समाधान के लिए बायलेट्रल बातचीत के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। *कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, सीमा पर हालात सुधारने के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि, कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा और सहमति से ही सभी मसलों का समाधान किया जाएगा। चीन से बातचीत के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, सीमा पर हालात सामान्य होने के बाद ही चीन से बातचीत की गई है। *एलएसी पर बहाली के लिए सेना को श्रेय- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने कहा कि, एलएसी पर बहाली का पूरा श्रेय सेना को जाता है। उन्होंने आगे कहा कि, कूटनीतिक पहल से सीमा पर हालात सामान्य हुए हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच सहमति बनी है कि यथास्थिति में एकतरफा बदलाव नहीं किया जाएगा और साथ ही दोनों देशों के बीच पुराने समझौतों का पालन किया जाएगा। सीमा पर शांति के बिना भारत-चीन के संबंध सामान्य नहीं रह सकते। *विवादित जगह से हटीं दोनों देशों की सेनाएं* बता दें कि बीते 21 अक्तूबर को भारत और चीन की सेनाओं ने विवादित पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों से अपने-अपने सामान समेटने शुरू किए थे और नवंबर महीने से पहले ही इसे पूरा कर लिया गया था। भारत और चीन के संबंध 2020 के जून में गलवान घाटी में हुई घातक झड़प के बाद काफी बिगड़ गए थे। यह झड़प दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष थी।
ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करे बांग्‍लादेश की सरकार”, हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक

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बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से हालात तनावपूर्ण हैं। अल्पसंख्यक हिंदू आबादी को पांच अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से देश के 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमलों का सामना करना पड़ा है। इस हफ्ते हालात तब और खराब हो गए जब हिंदू आध्यात्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्हें एक अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद राजधानी ढाका और बंदरगाह शहर चटगांव सहित कई जगहों पर समुदाय के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। भारत सरकार भी बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर चिंता जाहिर कर चुकी है। अब बांग्‍लादेश में ह‍िन्‍दुओं के ख‍िलाफ ह‍िंंसा पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में जवाब द‍िया।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की-जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि अगस्त 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर कई हमले हुए हैं। दुर्गा पूजा के दौरान भी मंदिरों और पूजा पंडालों पर हमले की खबरें आईं। भारत सरकार ने इन घटनाओं पर बांग्लादेश सरकार से चिंता जताई है। जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश के सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की है।

बांग्लादेश के हालात पर भारत सरकार की चिंता

उधर, विदेश मंत्रालय ने भी इस बारे में भारत सरकार की चिंता बताई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍त रणधीर जायसवाल ने कहा, भारत ने बांग्लादेश सरकार के साथ ह‍िन्‍दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों को लगातार और दृढ़ता से उठाया है। इस मामले पर हमारी स्थिति स्पष्ट है। अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

बांग्लादेश के हालात पर भारत में उठ रहे सवाल

बता दें कि भारत में कई राजनेताओं ने, जिनमें विपक्षी नेता भी शामिल हैं, चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा पर चिंता जताई है। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी गिरफ्तार हिंदू साधु का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए”, जयशंकर के इन चुभते सवालों के क्या हैं मायने?*
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भारतीय विदेश मंत्री अपनी हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं। एस जयशंकर अपने जवाब से अच्छे-अच्छों को लाजवाब कर चुके हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर भारत के रूस से तेल खरीदने को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पश्चिमी देशों को दो टूक जवाब दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने-अपने हित होते हैं और यह समझना जरूरी है। उन्होंने यूरोप के चयनात्मक दृष्टिकोण की आलोचना की और पूछा कि अगर यह सिद्धांतों का मामला है, तो यूरोप ने खुद रूस के साथ अपने कारोबार में कटौती क्यों नहीं की। इटली में इतालवी न्यूज़पेपर कोरिएरे डेला सेरा को दिए इंटरव्यू में एस जयशंकर ने दुनिया के अन्य हिस्सों से यूरोप की अनुचित अपेक्षाओं पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही एस जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर बात की और यूक्रेन वॉर डिप्लोमैटिक हल पर जोर दिया। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान भारत-चीन संबंधों समेत कई मुद्दों पर भी बात की। जयशंकर ने कहा, दुनिया के इस हिस्से (पश्चिमी देश) को यह समझना होगा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने हित हैं। यूरोप की प्राथमिकताएं स्वाभाविक रूप से एशिया या अफ्रीका या लैटिन अमेरिका के देशों से अलग होंगी। अगर सब कुछ इतने गहरे सिद्धांत का मामला है तो यूरोप को खुद ही रूस के साथ अपने सभी व्यापार खत्म कर देने चाहिए थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह बहुत ही चयनात्मक रहा है और उसने बहुत ही सावधानी से अपने अलगाव को आगे बढ़ाया है। इसलिए, यह कहना कि यह क्षेत्र (यूरोप) अपने लोगों की चिंता करेगा और दूसरों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, उचित नहीं है।' *जयशंकर के तीखे सवाल* जयशंकर ने आगे पूछा कि भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए। उन्होंने बताया कि यूरोप ने पहले रूस से ऊर्जा खरीदी थी, लेकिन अब वह अन्य देशों से ऊर्जा खरीद रहा है, जिससे बाजार में दबाव बढ़ा है। भारत को इस स्थिति में अपनी कीमतें क्यों बढ़ानी चाहिए? *रूसी तेल खरीदने को लेकर पहले भी दे चुके हैं जवाब* यह पहली बार नहीं है जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सस्ता रूसी तेल खरीदने के लिए भारत के रुख को जाहिर किया हो। पहले भी कई मंचों पर वे भारत का रुख साफ शब्दों में रख चुके हैं। जयशंकर ने कहा कि रूस एक सोर्स है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनने का अधिकार है।
रूस-भारत की दोस्ती पर उठाया सवाल, एस जयशंकर ने आस्ट्रेलियाई एंकर को ऐसे किया “लाजवाब”

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विदेश मंत्री एस जशंकर अपने बयानों के लिए जानें जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों और कूटनीति से जुड़े मामलों में भाषा की बारीकी, उसके टोन, टेनर पर बड़ा ध्यान दिया जाता है। भारतीय विदेश मंत्री इन चीजों में माहीर हैं। इसी कड़ी में एस जयशंकर ने भारत-रूस संबंध पर उठाए गए सवाल का ऐसा जवाब दिया कि वहां मौजूद लोगों की बोलती बंद हो गई।

दरअसल, जयशंकर पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे। इस दौरान वहां के एक टीवी चैनल ने उनका इंटरव्यू किया। इंटरव्यू करने वाली पत्रकार एंकर ने भारत की रूस के साथ दोस्ती पर सवाल उठाया और कहा कि इससे ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। इस पर हाजिरजवाब जयशंकर ने जो कहा उसके आगे एंकर की बोलने की हिम्मत नहीं हुई। विदेश मंत्री ने अपने जवाब के समर्थन में पाकिस्तान का उदाहरण दिया और कहा कि आपको जैसा दिख रहा है दरअसल वास्तविकता में वैसा नहीं होता।

ऑस्ट्रेलिया की एंकर ने जयशंकर से सवाल किया कि क्या रूस के साथ भारत की दोस्ती से ऑस्ट्रेलिया के साथ रिश्तों में कोई दिक्कत आ रही है। जयशंकर ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसा नहीं लगता। उन्होंने कहा कि आज के समय में किसी भी देश के एक्सक्लूसिव रिश्ते नहीं होते। जयशंकर ने पाकिस्तान का उदाहरण देते हुए कहा, 'अगर हम आपके तर्क के हिसाब से सोचें तो हम कह सकते हैं कि पाकिस्तान के साथ कई देशों के रिश्ते हैं। ऐसे में भारत को भी परेशान होने की जरूरत है।'

बताया भारत-रूस संबंध का दुनिया पर क्या असर पड़ा

जयशंकर ने इस दौरान भारत-रूस संबंध का दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव की भी बात की। उन्होंने कहा कि आपके सवाल के उलट रूस के साथ भारत के रिश्ते से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को फायदा हो रहा है। प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले के संदर्भ में उन्होंने कहा कि अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो वैश्विक ऊर्जा बाजार पूरी तरह तबाह हो जाता। वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संकट पैदा हो गया होता। इससे पूरी दुनिया में महंगाई चरम पर होती।

रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की भूमिका पर कही ये बात

जयशंकर ने इसमें आगे जोड़ा कि रूस के साथ भारत के रिश्ते की वजह से ही हम इस संघर्ष को वार्ता की मेज पर लाने में कामयाब हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि रूस के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। ऐसे में हम रूस और यूक्रेन दोनों के साथ बातचीत करने में सक्षम हैं। हम मानते है कि दुनिया और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया को भी ऐसे देश की जरूरत है जो जंग को वार्ता की मेज तक लाने में सहयोग कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा विरले होता है जब कोई जंग युद्ध के मैदान में खत्म हुआ हो, बल्कि अधिकतर समय में यह बातचीत की मेज पर खत्म होता है।

ट्रंप भारत के दोस्त या दुश्मन? जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर का जवाब

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप की वापसी के बाद से ही दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप ने भारत का नाम लेकर भी धमकी दी है। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात की है।

जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख करते हुए डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अहम बात कही। जयशंकर ने ट्रंप को एक 'अमेरिकी राष्ट्रवादी' बताया। विदेश मंत्री जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक कार्यक्रम में मौजूद थे। इस दौरान ट्रंप भारत के मित्र हैं या शत्रु, इस बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि मैंने हाल ही में उनके (ट्रंप के) शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मेरा मानना है कि वह एक अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप की नीतियां वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती रहेगी।

जयशंकर ने कहा, ट्रंप बहुत सी चीजें बदलेंगे। हो सकता है कि कुछ चीजें उम्मीद के अनुरूप नहीं हों, लेकिन हमें देश के हित में विदेश नीतियों के संदर्भ में खुला रहना होगा। कुछ मुद्दे हो सकते हैं जिन पर हम एकमत न हों, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होंगे जहां चीजें हमारे दायरे में होंगी। जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंधों पर भी जोर देते हुए कहा क‍ि अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत हैं और मोदी के ट्रंप के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं।

भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर क्या बोले

इस दौरान, एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और देश के बारे में बदलती धारणाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा, यहां तक कि अब गैर-भारतीय भी खुद को भारतीय कहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे उन्हें विमान में सीट मिलने में मदद मिलेगी।

खुद के राजनीति में आने पर क्या कहा?

डॉ. एस. जयशंकर ने शिक्षा क्षेत्र और कूटनीति से राजनीति में आने का उल्लेख करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नौकरशाह बनूंगा। राजनीति में मैं अचानक आ गया, या तो इसे भाग्य कहें, या इसे मोदी कहें। उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) मुझे इस तरह से आगे बढ़ाया कि कोई भी मना नहीं कर सका। उन्होंने रेखांकित किया कि विदेश में रहने वाले भारतीय अभी भी समर्थन के लिए अपनी मातृभूमि पर निर्भर हैं और कहा, जो भी देश के बाहर जाते हैं, वे हमारे पास ही आते हैं। बाहर हम ही रखवाले हैं।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

दुनिया में भारत का बढ़ता कदः ट्रंप के शपथ ग्रहण में दिखी झलक, पहली पंक्ति में दिखे जयशंकर
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* भारत एक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति वाला देश है। यह एक विशाल जनसंख्या वाला देश भी है, जो इसे विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में से एक बनाता है। हाल के वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक प्रभाव में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। नतीजतन, भारत विश्व पटल पर एक बढ़ती शक्ति के रूप में उभर रहा है। दुनियाभर के देशों में भारत के बढ़ते धमक की एक झलक अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखी।इस दौरान एक बात ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा और वो ये था कि ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को पहली पंक्ति में ट्रंप के मंच के ठीक सामने बिठाया गया था। यह वैश्विक परिदृश्य में भारत के ऊंचे होते कद का उदाहरण है। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ले ली है। शपथ ग्रहण के समारोह के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिनिधि पहुंचे। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे मेहमानों में जयशंकर की चर्चा इसलिए हो रही है क्यों कि उनको मेहमानों की पहली पक्ति में जगह दी गई थी। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जयशंकर इक्वाडोर के राष्ट्रपति डेनियल नोबोआ के साथ आगे की पंक्ति में बैठे नजर आए, जो आधिकारिक प्रोटोकॉल है। इस दौरान जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया पीछे बैठे नजर आए। इस तस्वीर को बदलते भारत और अमेरिका और भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल होने अमेरिका पहुंचे थे। जब डोनाल्ड ट्रंप पोडियम पर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले रहे थे, तब एस जयशंकर उनके बिल्कुल सामने बैठे हुए थे। यह तस्वीर अपने आप में काफी कुछ कह रही है।एस जयशंकर की इस तस्वीर को अमेरिका में भारत की धाक के तौर पर देखा जा सकता है। उनको ट्रंप के बिल्कुल सामने यानी कि पहली पंक्ति में जगह मिलना यह दिखाता है कि भारत की धाक दुनियाभर में है। पूरी दुनिया का नजरिया भारत के प्रति बदल रहा है। विदेश मंत्री ने ट्रंप के शपथ ग्रहण की कुछ तस्वीरें अपने एक्स हैंडल पर शेयर की हैं। जिसमें उन्होंने कहा है कि ट्रंप और जेडी वेंस के शपथ ग्रहण में भारत का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए बहुत ही सम्मान की बात है।
एस. जयशंकर ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन से की मुलाकात, क्या हुई बातचीत?

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भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस समय अपने 6 दिवसीय अमेरिकी दौरे पर हैं। जहां वे 29 दिसंबर तक रहने वाले हैं। अपने छह दिवसीय अमेरिकी यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और कई महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। विदेश मंत्री ने आज यानी शुक्रवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के प्रमुख जेक सुलिवन के साथ मुलाकात की। इस दौरान एस. जयशंकर और अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन ने भारत-अमेरिका के रणनीतिक साझेदारी की प्रगति के विषय पर चर्चा की।

इस मुलाकात के बारे में जयशंकर ने एक्स पर पोस्ट कर जानकारी दी। एस जयशंकर ने कहा कि बुधवार वाशिंगटन डी.सी. में अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन से मिलकर अच्छा लगा। जयशंकर ने भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी की प्रगति पर व्यापक चर्चा की है। उन्होंने आगे कहा, एनएसए के साथ भारत और अमेरिका के रणनीतिक साझेदारी के प्रगति को लेकर व्यापक रूप से चर्चा की। वर्तमान क्षेत्रीय और वैश्विक विकास पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।

जयशंकर के अमेरिकी दौरे को लेकर विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जयशंकर 24 दिसंबर से 29 दिसंबर तक अमेरिका की यात्रा पर हैं। इस यात्रा के दौरान, वह प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने समकक्षों से मिलेंगे। साथ ही, वह अमेरिका में भारत के महावाणिज्यदूतों के एक सम्मेलन की अध्यक्षता भी करेंगे।

बता दें कि जयशंकर की यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सितंबर में अमेरिका यात्रा और चौथे क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद हो रही है। अमेरिका और भारत के बीच उच्च स्तरीय बातचीत लगातार जारी है।

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जयशंकर पहुंचे अमेरिका, क्या ट्रंप से होगी मुलाकात?

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपत‍ि डोनाल्‍ड ट्रंप 20 जनवरी को पदभार संभालेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर मंगलवार से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भारत की ओर से अमेरिका की यह पहली उच्च स्तरीय यात्रा होगी। ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर बाइडन प्रशासन के सदस्यों के साथ-साथ ट्रंप 2.0 के प्रमुख सदस्यों से मिलने के लिए अमेरिका के दौरे पर हैं। इस दौरान वह आने वाले प्रशासन की प्राथमिकताओं और अगले चार वर्षों के लिए भारत की अपेक्षाओं पर चर्चा की जा सके।

विदेश मंत्रालय ने उनके दौरे का पूरा कार्यक्रम तो शेयर नहीं क‍िया है, लेकिन सूत्रों के मुता‍बिक, जयशंकर ट्रंप की टीम को भारत की जरूरतें समझाने की कोश‍िश करेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा टैर‍िफ को लेकर है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते टैर‍िफ को लेकर भारत के प्रति अध‍िक सख्त रुख अपनाने के संकेत द‍िए थे। ट्रंप ने कहा था क‍ि अगर वे हम पर कर लगाते हैं, तो हम भी उन पर उतना ही कर लगाएंगे। उन्‍होंने कहा, ‘म्‍यूचुअल’ शब्द काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर भारत हमसे 100 प्रतिशत टैक्‍स लेता है, तो क्या हम उससे इसके लिए कुछ भी नहीं लेंगे? आप जानते हैं, वे साइकिल भेजते हैं, और हम उन्हें साइकिल भेजते हैं। वे हमसे 100 और 200 फीसदी टैर‍िफ लेते हैं। भारत बहुत ज़्यादा टैक्‍स लेता है। ब्राजील बहुत ज्‍यादा टैक्‍स लेता है। अगर वे हमसे टैक्‍स लेना चाहते हैं, तो ठीक है, लेकिन हम उनसे वही टैक्‍स वसूलेंगे।

विदेश मंत्री जयशंकर प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाकात करेंगे। जयशंकर के एजेंडा में क्वाड समिट शामिल है। भारत 2025 में इसकी मेजबानी करने वाला है। आईसीईटी, दक्षिण एशिया की स्थिति, खालिस्तानी उग्रवाद और रक्षा साझेदारी इसमें प्रमुख मुद्दा रहेगा। ट्रंप टीम के साथ चर्चा, व्यापार और टैरिफ पर राष्ट्रपति के फोकस के अलावा, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर साझेदारी के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की संभावना है। विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि एस जयशंकर अमेरिका में स्थित भारत के महावाणिज्य दूत के एक सम्मेलन की भी अध्यक्षता करेंगे।

इसी साल जून में मोदी सरकार के सत्‍ता में आने के बाद जयशंकर की यह दूसरी अमेर‍िकी यात्रा है. जयशंकर ने पिछली बार अमेरिका का दौरा तब किया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति जो बा‍इडेन, ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानी और पूर्व जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ क्वाड लीडर्स समिट में भाग लेने के लिए अमेर‍िका गए थे. तब बा‍इडेन ने डेलावेयर के विलमिंगटन में अपने निजी आवास पर पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया था

हमने नहीं नरसिम्हा राव ने की थी शुरुआत”, विदेश नीति में बदलाव की जरूरत पर क्या बोले एस जयशंकर?
#s_jaishankar_on_needed_to_change_nehru_foreign_policy
* विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बदलते परिदृश्य में विदेश नीति में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि विदेश नीति में बदलाव को राजनीतिक हमले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। आईसीसी में इंडियाज वर्ल्ड पत्रिका के विमोचन के बाद आयोजित कार्यक्रम में जयशंकर ने विदेश नीति मामलों के विशेषज्ञ सी. राजा मोहन के साथ परिचर्चा के दौरान ये बातें कहीं। 'इंडियाज व‌र्ल्ड' मैगजीन की शुरुआत के अवसर पर जयशंकर ने कहा कि ऐसे चार बड़े कारक हैं, जिनके कारण भारत में लोगों को स्वयं से पूछना चाहिए कि विदेश नीति में कौन से परिवर्तन आवश्यक हैं। एक बदलाव तो ऐसा है, जिसके बारे में उन्हें शनिवार को बात करने का मौका मिला था। डॉ. अरविंद पनगढि़या की पुस्तक के विमोचन समारोह में जयशंकर ने कहा था, 'नेहरू विकास मॉडल ने नेहरू की विदेश नीति को जन्म दिया और हम विदेश में इसे सही करना चाहते हैं, जैसे देश में इस मॉडल के परिणामों को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं।' विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि जब हम विदेश नीति में बदलाव की बात करते हैं और अगर नेहरू के बाद की बात होती है तो इसे राजनीतिक हमले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि विदेश नीति में बदलाव के लिए नरेन्द्र मोदी की जरूरत नहीं थी। नरसिम्हा राव ने इसकी शुरुआत की थी। एस जयशंकर ने कहा कई सालों तक हमारे पास नेहरू विकास मॉडल था। नेहरू विकास मॉडल ने नेहरूवादी विदेश नीति तैयार की। यह सिर्फ हमारे देश में क्या हो रहा था, इस बारे में नहीं था, 1940, 50, 60 और 70 के दशक में एक अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य था, जो द्विध्रुवीय था। फिर एकध्रुवीय परिदृश्य था। पिछले 25 वर्षों में बहुत तीव्र वैश्वीकरण, देशों के बीच बहुत मजबूत अंतर-निर्भरता देखी है इसलिए एक तरह से एक-दूसरे के प्रति राज्यों के संबंध और व्यवहार में भी बदलाव आया है। अगर कोई प्रौद्योगिकी के प्रभाव को देखता है, जैसे- विदेश नीति पर प्रौद्योगिकी, राज्य की क्षमता पर प्रौद्योगिकी और हमारे दैनिक जीवन पर प्रौद्योगिकी, तो वह भी बदल गया है इसलिए यदि घरेलू मॉडल बदल गया है। अगर परिदृश्य बदल गया है, राज्यों के व्यवहार पैटर्न बदल गए हैं और विदेश नीति के उपकरण बदल गए हैं तो विदेश नीति एक जैसी कैसे रह सकती है। विदेश मंत्री ने कहा, 'इसलिए मुझे लगता है कि हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। हमें यथार्थवादी होने की जरूरत है। हमें इस देश में व्यावहारिक होने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि डिजिटल युग की बदलती जरूरतों के अनुसार विदेश नीति अपनाने की जरूरत है। डिजिटल युग मौलिक रूप से विनिर्माण युग से अलग है, क्योंकि यह वैश्विक साझेदारी बनाने और अपने डाटा के साथ दूसरों पर भरोसा करने जैसी नई चुनौतियां पेश करता है।
चीन के साथ कैसे सुधरे संबंध? एस जयशंकर ने लोकसभा में बताई कूटनीतिक कामयाबी की कहानी*
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भारत-चीन के संबंध में हाल के दिनों में बेहतर हुए हैं। गलवां घाटी झड़प के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। हालांकि, कई दौर के बातचीत के बाद संबंध पटरी पर लौटे हैं। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को लोकसभा में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मौजूदा हालात की जानकारी दी और बताया कि अब हालात बेहतर हैं।जयशंकर ने साफ किया कि पूर्वी लद्दाख के इलाकों में डिसइंगेजमेंट पूरी तरह पूरा हो चुका है। अब दोनों देश आगे तनाव न हो इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन एलएसी पर सीमा विवाद खत्म करने के लिए दशकों से बात कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमलोग आपसी सहमति से विवाद हल करने के लिए सहमत हुए हैं। उन्होंने बताया कि मई-जून 2020 में चीन ने एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की थी जिसके बाद भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग में दिक्कत आई थी। गलवां में हुए तनाव के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी काफी बढ़ गई थी। इसके बाद भारत ने भी एलएसी पर बड़ी संख्या में हथियार और सैनिकों की तैनाती की थी। जयशंकर ने आगे कहा कि यह सदन जानता है कि चीन ने 1962 के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं में अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में चीन को 5,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र अवैध रूप से सौंप दिया था। भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों से बातचीत की है। एस जयशंकर ने कहा, हम एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य सीमा समाधान के लिए बायलेट्रल बातचीत के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। *कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, सीमा पर हालात सुधारने के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि, कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा और सहमति से ही सभी मसलों का समाधान किया जाएगा। चीन से बातचीत के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, सीमा पर हालात सामान्य होने के बाद ही चीन से बातचीत की गई है। *एलएसी पर बहाली के लिए सेना को श्रेय- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने कहा कि, एलएसी पर बहाली का पूरा श्रेय सेना को जाता है। उन्होंने आगे कहा कि, कूटनीतिक पहल से सीमा पर हालात सामान्य हुए हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच सहमति बनी है कि यथास्थिति में एकतरफा बदलाव नहीं किया जाएगा और साथ ही दोनों देशों के बीच पुराने समझौतों का पालन किया जाएगा। सीमा पर शांति के बिना भारत-चीन के संबंध सामान्य नहीं रह सकते। *विवादित जगह से हटीं दोनों देशों की सेनाएं* बता दें कि बीते 21 अक्तूबर को भारत और चीन की सेनाओं ने विवादित पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों से अपने-अपने सामान समेटने शुरू किए थे और नवंबर महीने से पहले ही इसे पूरा कर लिया गया था। भारत और चीन के संबंध 2020 के जून में गलवान घाटी में हुई घातक झड़प के बाद काफी बिगड़ गए थे। यह झड़प दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष थी।
ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करे बांग्‍लादेश की सरकार”, हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक

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बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से हालात तनावपूर्ण हैं। अल्पसंख्यक हिंदू आबादी को पांच अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से देश के 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमलों का सामना करना पड़ा है। इस हफ्ते हालात तब और खराब हो गए जब हिंदू आध्यात्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्हें एक अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद राजधानी ढाका और बंदरगाह शहर चटगांव सहित कई जगहों पर समुदाय के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। भारत सरकार भी बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर चिंता जाहिर कर चुकी है। अब बांग्‍लादेश में ह‍िन्‍दुओं के ख‍िलाफ ह‍िंंसा पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में जवाब द‍िया।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की-जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि अगस्त 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर कई हमले हुए हैं। दुर्गा पूजा के दौरान भी मंदिरों और पूजा पंडालों पर हमले की खबरें आईं। भारत सरकार ने इन घटनाओं पर बांग्लादेश सरकार से चिंता जताई है। जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश के सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की है।

बांग्लादेश के हालात पर भारत सरकार की चिंता

उधर, विदेश मंत्रालय ने भी इस बारे में भारत सरकार की चिंता बताई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍त रणधीर जायसवाल ने कहा, भारत ने बांग्लादेश सरकार के साथ ह‍िन्‍दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों को लगातार और दृढ़ता से उठाया है। इस मामले पर हमारी स्थिति स्पष्ट है। अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

बांग्लादेश के हालात पर भारत में उठ रहे सवाल

बता दें कि भारत में कई राजनेताओं ने, जिनमें विपक्षी नेता भी शामिल हैं, चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा पर चिंता जताई है। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी गिरफ्तार हिंदू साधु का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए”, जयशंकर के इन चुभते सवालों के क्या हैं मायने?*
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भारतीय विदेश मंत्री अपनी हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं। एस जयशंकर अपने जवाब से अच्छे-अच्छों को लाजवाब कर चुके हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर भारत के रूस से तेल खरीदने को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पश्चिमी देशों को दो टूक जवाब दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने-अपने हित होते हैं और यह समझना जरूरी है। उन्होंने यूरोप के चयनात्मक दृष्टिकोण की आलोचना की और पूछा कि अगर यह सिद्धांतों का मामला है, तो यूरोप ने खुद रूस के साथ अपने कारोबार में कटौती क्यों नहीं की। इटली में इतालवी न्यूज़पेपर कोरिएरे डेला सेरा को दिए इंटरव्यू में एस जयशंकर ने दुनिया के अन्य हिस्सों से यूरोप की अनुचित अपेक्षाओं पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही एस जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर बात की और यूक्रेन वॉर डिप्लोमैटिक हल पर जोर दिया। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान भारत-चीन संबंधों समेत कई मुद्दों पर भी बात की। जयशंकर ने कहा, दुनिया के इस हिस्से (पश्चिमी देश) को यह समझना होगा कि दुनिया के हर हिस्से के अपने हित हैं। यूरोप की प्राथमिकताएं स्वाभाविक रूप से एशिया या अफ्रीका या लैटिन अमेरिका के देशों से अलग होंगी। अगर सब कुछ इतने गहरे सिद्धांत का मामला है तो यूरोप को खुद ही रूस के साथ अपने सभी व्यापार खत्म कर देने चाहिए थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह बहुत ही चयनात्मक रहा है और उसने बहुत ही सावधानी से अपने अलगाव को आगे बढ़ाया है। इसलिए, यह कहना कि यह क्षेत्र (यूरोप) अपने लोगों की चिंता करेगा और दूसरों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, उचित नहीं है।' *जयशंकर के तीखे सवाल* जयशंकर ने आगे पूछा कि भारत को सिर्फ यूरोप को खुश करने के लिए ऊंची कीमतें क्यों चुकानी चाहिए। उन्होंने बताया कि यूरोप ने पहले रूस से ऊर्जा खरीदी थी, लेकिन अब वह अन्य देशों से ऊर्जा खरीद रहा है, जिससे बाजार में दबाव बढ़ा है। भारत को इस स्थिति में अपनी कीमतें क्यों बढ़ानी चाहिए? *रूसी तेल खरीदने को लेकर पहले भी दे चुके हैं जवाब* यह पहली बार नहीं है जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सस्ता रूसी तेल खरीदने के लिए भारत के रुख को जाहिर किया हो। पहले भी कई मंचों पर वे भारत का रुख साफ शब्दों में रख चुके हैं। जयशंकर ने कहा कि रूस एक सोर्स है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनने का अधिकार है।
रूस-भारत की दोस्ती पर उठाया सवाल, एस जयशंकर ने आस्ट्रेलियाई एंकर को ऐसे किया “लाजवाब”

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विदेश मंत्री एस जशंकर अपने बयानों के लिए जानें जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों और कूटनीति से जुड़े मामलों में भाषा की बारीकी, उसके टोन, टेनर पर बड़ा ध्यान दिया जाता है। भारतीय विदेश मंत्री इन चीजों में माहीर हैं। इसी कड़ी में एस जयशंकर ने भारत-रूस संबंध पर उठाए गए सवाल का ऐसा जवाब दिया कि वहां मौजूद लोगों की बोलती बंद हो गई।

दरअसल, जयशंकर पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे। इस दौरान वहां के एक टीवी चैनल ने उनका इंटरव्यू किया। इंटरव्यू करने वाली पत्रकार एंकर ने भारत की रूस के साथ दोस्ती पर सवाल उठाया और कहा कि इससे ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। इस पर हाजिरजवाब जयशंकर ने जो कहा उसके आगे एंकर की बोलने की हिम्मत नहीं हुई। विदेश मंत्री ने अपने जवाब के समर्थन में पाकिस्तान का उदाहरण दिया और कहा कि आपको जैसा दिख रहा है दरअसल वास्तविकता में वैसा नहीं होता।

ऑस्ट्रेलिया की एंकर ने जयशंकर से सवाल किया कि क्या रूस के साथ भारत की दोस्ती से ऑस्ट्रेलिया के साथ रिश्तों में कोई दिक्कत आ रही है। जयशंकर ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसा नहीं लगता। उन्होंने कहा कि आज के समय में किसी भी देश के एक्सक्लूसिव रिश्ते नहीं होते। जयशंकर ने पाकिस्तान का उदाहरण देते हुए कहा, 'अगर हम आपके तर्क के हिसाब से सोचें तो हम कह सकते हैं कि पाकिस्तान के साथ कई देशों के रिश्ते हैं। ऐसे में भारत को भी परेशान होने की जरूरत है।'

बताया भारत-रूस संबंध का दुनिया पर क्या असर पड़ा

जयशंकर ने इस दौरान भारत-रूस संबंध का दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव की भी बात की। उन्होंने कहा कि आपके सवाल के उलट रूस के साथ भारत के रिश्ते से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को फायदा हो रहा है। प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले के संदर्भ में उन्होंने कहा कि अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो वैश्विक ऊर्जा बाजार पूरी तरह तबाह हो जाता। वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संकट पैदा हो गया होता। इससे पूरी दुनिया में महंगाई चरम पर होती।

रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की भूमिका पर कही ये बात

जयशंकर ने इसमें आगे जोड़ा कि रूस के साथ भारत के रिश्ते की वजह से ही हम इस संघर्ष को वार्ता की मेज पर लाने में कामयाब हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि रूस के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। ऐसे में हम रूस और यूक्रेन दोनों के साथ बातचीत करने में सक्षम हैं। हम मानते है कि दुनिया और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया को भी ऐसे देश की जरूरत है जो जंग को वार्ता की मेज तक लाने में सहयोग कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा विरले होता है जब कोई जंग युद्ध के मैदान में खत्म हुआ हो, बल्कि अधिकतर समय में यह बातचीत की मेज पर खत्म होता है।