जहानाबाद में सिर्फ 50 हजार में लॉन्च हुई इलेक्ट्रिक स्कूटी, बिक्री शुरू — कम खर्च में मिलेगा 80 KM का सफर

जहानाबाद: जिले में अब लोगों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन खरीदना और भी आसान हो गया है। स्कॉट इलेक्ट्रोराइड कंपनी ने जहानाबाद में अपनी किफायती इलेक्ट्रिक स्कूटियों की बिक्री शुरू कर दी है। कंपनी ने दो मॉडल—SL Pro और ZL Pro—लॉन्च किए हैं, जिनकी शुरुआती कीमत मात्र 50 हजार रुपये तय की गई है। कम बजट में बेहतर माइलेज और आधुनिक फीचर्स के कारण ये स्कूटियां लोगों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

एक यूनिट बिजली में चलेगी 80 किलोमीटर

कंपनी के अनुसार, स्कूटी की सबसे बड़ी खासियत इसकी चार्जिंग क्षमता है। इसे फुल चार्ज करने में मात्र 1 यूनिट बिजली की खपत होती है। पूरी चार्जिंग के बाद स्कूटी 80 किलोमीटर तक आराम से चलती है। रोज ऑफिस जाने वाले, छात्रों और शहर के भीतर यात्रा करने वालों के लिए यह स्कूटी बेहद किफायती विकल्प साबित हो रही है। बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बीच यह वाहन लोगों की जेब पर भी हल्का असर डालता है।

गांधी मैदान स्थित स्वाद देसी रेस्टोरेंट में उपलब्ध

इलेक्ट्रिक स्कूटी की बिक्री अभी जहानाबाद के गांधी मैदान स्थित स्वाद देसी रेस्टोरेंट से की जा रही है। यहां कंपनी ने अपना कार्यालय स्थापित किया है, जहां ग्राहक स्कूटी की जानकारी, टेस्ट राइड और खरीदारी कर सकते हैं।
कंपनी की ओर से एक फ्री सर्विसिंग और उसके बाद एक पेड सर्विसिंग की सुविधा भी दी जा रही है।

युवाओं के लिए बड़ा अवसर—डीलरशिप भी उपलब्ध

स्कॉट इलेक्ट्रोराइड सिर्फ वाहन नहीं बेच रही, बल्कि रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रही है। जहानाबाद के डीलर हिमांशु कश्यप ने बताया कि इलेक्ट्रिक वाहन बाजार तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में स्कूटी की डीलरशिप लेना युवाओं के लिए बेहतर व्यवसाय का मौका है।
उन्होंने कहा कि बेरोजगारी के समय में यह स्थायी और सुलभ रोजगार का विकल्प साबित हो सकता है। इच्छुक लोग स्वदेशी फैमिली रेस्टोरेंट पहुंचकर डीलरशिप की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं। कंपनी की ओर से डीलर्स को पूरा कॉर्पोरेट सहयोग भी दिया जाएगा।

पर्यावरण और बजट—दोनों के लिए फायदेमंद

इलेक्ट्रिक वाहन प्रदूषण कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कम खर्च, कम मेंटेनेंस और जीरो उत्सर्जन के साथ यह स्कूटी स्वच्छ और हरित बिहार बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
हिमांशु कश्यप के अनुसार, यह स्कूटी छोटे परिवारों, नौकरीपेशा लोगों और रोज 40–50 किलोमीटर की यात्रा करने वालों के लिए काफी आरामदायक है। उन्होंने लोगों से स्कूटी का टेस्ट राइड लेने और इसके फीचर्स को नजदीक से देखने की अपील की है।

जल्द बढ़ेगा कंपनी का नेटवर्क

वर्तमान में स्कॉट इलेक्ट्रोराइड पटना, जहानाबाद और अरवल में सक्रिय है। कंपनी जल्द ही बिहार के अन्य जिलों में भी आउटलेट और सर्विस सेंटर खोलने की तैयारी कर रही है।

कम कीमत, कम खर्च और बेहतरीन माइलेज — इन खूबियों के साथ यह इलेक्ट्रिक स्कूटी जहानाबाद के लोगों के लिए एक नया और सस्ता विकल्प बनकर उभर रही है।

2014 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ रची गई साजिश! पूर्व सांसद का सीआईए-मोसाद को लेकर चौंकाने वाला दावा

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद कुमार केतकर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को लेकर बड़ा बयान दिया है। कुमार केतकर ने दावा का है कि सीआईए और मोसाद, जो अमेरिका और इजराइल की जासूसी एजेंसियां हैं, ने 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की साजिश रची थी।

कांग्रेस की हार सीआईए और मोसाद की साजिश!

मुंबई में संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित कांग्रेस के एक कार्यक्रम में बुधवार को कांग्रेस नेता और राज्यसभा के पूर्व सदस्य कुमार केतकर ने एक चौंकाने वाला दावा किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी हार किसी सामान्य राजनीतिक परिवर्तन का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और इजराइल की मोसाद की कथित साजिश थी।

केतकर ने समझाया आंकड़ों का गणित

केतकर ने कहा कि दोनों एजेंसियों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया था कि कांग्रेस का सीट संख्या 206 से आगे न बढ़े और पार्टी सत्ता से बाहर हो जाए। केतकर ने याद दिलाया कि 2004 में कांग्रेस ने 145 सीटें जीती थीं और 2009 में यह आंकड़ा बढ़कर 206 हो गया था। उन्होंने कहा कि अगर यही ट्रेंड जारी रहता तो 2014 में कांग्रेस को 250 से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए थीं और वह आराम से सत्ता में वापस आ जाती। लेकिन अचानक सीटें घटकर सिर्फ 44 रह गईं। यह सामान्य जनादेश नहीं था।

भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की रणनीति

केतकर ने कहा कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने तय किया था कि किसी भी हाल में कांग्रेस को 206 सीटों से ज्यादा नहीं मिलने दी जाए। सीआईए और मोसाद ने डेटा इकट्ठा किया, रणनीति बनाई और ऐसा माहौल बनाया कि कांग्रेस सत्ता में न लौट सके। केतकर के मुताबिक, इन एजेंसियों को डर था कि यदि यूपीए दोबारा स्थिर सरकार बनाती, तो भारत की नीतियों पर उनका प्रभाव सीमित हो जाता और वे अपनी इच्छानुसार हस्तक्षेप नहीं कर पाते।

अपने अनुकूल सरकार बनाने की साजिश का आरोप

पूर्व पत्रकार रहे केतकर ने दावा किया कि इन विदेशी खुफिया एजेंसियों का उद्देश्य भारत में ऐसी सरकार तैयार करना था जो उनके लिए अनुकूल हो और उनकी नीतियों को आसानी से लागू कर सके। केतकर के मुताबिक, अगर कांग्रेस की स्थिर सरकार लौटती या गठबंधन सरकार मजबूत स्थिति में आती, तो विदेशी एजेंसियों के लिए भारत में हस्तक्षेप करना मुश्किल हो जाता है।

हेमंत सरकार का 'नियुक्ति वर्ष': 28 नवंबर को 9,000 युवाओं को सरकारी नौकरी का तोहफा!

रांची के मोरहाबादी मैदान में होगा समारोह; राज्य में सबसे अधिक 8,000 सहायक आचार्यों को मिलेंगे नियुक्ति पत्र

रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 28 नवंबर को 'नियुक्ति वर्ष' के रूप में मनाएगी। इस अवसर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में एक भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा, जहाँ मुख्यमंत्री लगभग 9,000 अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र वितरित करेंगे।

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मोरहाबादी मैदान में तैयारियां जोरों पर

नियुक्ति पत्र वितरण समारोह के लिए मोरहाबादी मैदान में बड़े पैमाने पर तैयारियां की जा रही हैं।

व्यवस्था: अभ्यर्थियों के लिए 10 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की जा रही है, और चारों तरफ होर्डिंग्स लगाए गए हैं।

नियुक्ति पत्र की सूची: अब तक 8,514 अभ्यर्थियों की सूची तैयार हो चुकी है, जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में की जाएगी।

एंटीबायोटिक्स का मकड़जाल

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प्रदीप श्रीवास्तव

किसी भी बीमारी के लिए, एंटीबायोटिक्स यानी रोग प्रतिरोधी दवाएँ बहुत कारगर मानी जाती है, शायद यही वजह है कि बाज़ार में सबसे ज़्यादा एंटीबायोटिक दवाएँ बिकती हैं। हालाँकि, इनके अंधाधुंध प्रयोग से हमारे देश में “सुपरबग्स” जैसी खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है, जहाँ दवाएँ बेअसर हो जाती हैं और सामान्य बीमारी भी जल्दी ठीक नहीं होती है और उनके इलाज पर बहुत ज़्यादा खर्च करना पड़ता है। चिंता की बात यह है कि पोल्ट्री और डेयरी फार्मिंग में भी एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है। नतीजतन, अगर हम खुद एंटीबायोटिक्स कम लें तो भी यह समस्या दूसरे रूप में हमें घेरे ही रहेगी। इसलिए सरकार ने एंटीबायोटिक्स के प्रयोग को लेकर गाइडलाइन जारी की है, जिसमें इनके इस्तेमाल को लेकर कई तरह के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। 

सन 1928 में लंदन के सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में कार्यरत स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक अलेक्ज़ेंडर फ़्लेमिंग ने जीवाणुओं (बैक्टीरिया) पर शोध करते हुए एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की खोज की। दूसरे विश्वयुद्ध में जब लाखों घायल सैनिक संक्रमण से मर रहे थे, तब पेनिसिलिन एक वरदान साबित हुई। इससे अनगिनत सैनिकों की जान बचाई गई। पेनिसिलिन ने चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदल दी और इसे आधुनिक एंटीबायोटिक युग की शुरुआत माना जाता है। 

हालाँकि, 1945 के बाद से ही फ़्लेमिंग ने खुद चेतावनी दी कि “एंटीबायोटिक के बहुत ज़्यादा प्रयोग से प्रतिरोध पैदा होगा”। और यही हुआ, एंटीबायोटिक का अंधाधुंध प्रयोग शुरू हो गया, जिससे बीमारी एक बार ठीक होने बाद, दोबारा होने पर उससे कई तरह की परेशानियाँ शुरू होने लगी। 

अब यह समस्या और बड़ी बनने लगी है, क्योंकि भारत जैसे देशों में बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक लेना, अधूरा कोर्स करना और छोटी-मोटी बीमारी में भी इस्तेमाल करना आम बात है। ज़्यादा एंटीबायोटिक के प्रयोग से हमारे शरीर के बैक्टीरिया, दवाइयों के प्रति प्रतिरोधक विकसित कर लेते है इसे एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस कहा जाता है और यह स्थिति “सुपरबग्स” के रूप में उभरकर सामने आती है, यानी ऐसी स्थिति जिसमें ताकतवर जीवाणु, दवाओं से नहीं मरते और उन पर साधारण एंटीबायोटिक काम नहीं करती। ऐसे में न सिर्फ, मरीजों पर दवाओँ का खर्च बढ़ता जाता है, बल्कि भविष्य में वह कई बीमारियों को न्योता देता है और सामान्य संक्रमण यानी खाँसी, बुखार, घाव का इन्फेक्शन होने पर इसका इलाज भी मुश्किल हो जाता है। 

पहले जिन बीमारियों का इलाज ₹100 की दवा से हो जाता था, उनके लिए अब लाखों रुपये की नई और महँगी दवाएँ या इंजेक्शन लगते हैं। क्योंकि वह छोटी या सामान्य बीमारी पर दवाएँ बेअसर होती है, उन्हें ठीक करने के लिए कई तरह की जाँचें करानी पड़ती है और नए किस्म की दवाएँ देनी पड़ती है और मरीज को अस्पताल में ज़्यादा दिन भर्ती रहना पड़ता है। 

बार-बार एंटीबायोटिक लेने से डायरिया, एलर्जी, त्वचा पर दाने जैसी समस्याएँ भी आने लगती हैं और लंबे समय में किडनी, लीवर और पेट पर असर पड़ता है। सबसे बड़ी बात है कि एंटीबायोटिक हानिकारक बैक्टीरिया के साथ-साथ अच्छे बैक्टीरिया को भी मार देते हैं। इससे खराब पाचन, इम्युनिटी कमज़ोर और बार-बार संक्रमण की समस्या हो सकती है। 

भारत पहले से ही एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस का हॉटस्पॉट बन चुका है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग 7 लाख लोग एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से जुड़ी बीमारियों से प्रभावित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अगर इस समस्या पर रोक नहीं लगी तो 2050 तक भारत समेत विश्व में एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस के कारण 1 करोड़ मौतें प्रति वर्ष हो सकती हैं। 

भारत में एंटीबायोटिक्स का बाज़ार बहुत बड़ा है, क्योंकि यहाँ संक्रमण संबंधी बीमारियाँ आम हैं। 2023 में भारत में एंटीबायोटिक्स का बाज़ार करीब 49,000 करोड़ रूपये का था। अनुमान है कि 2024–2030 के बीच यह बाज़ार लगभग 6–7% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ेगा और 2030 तक यह बाज़ार 83,000 करोड़ रूपये तक पहुँच सकता है। मालूम हो कि भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा एंटीबायोटिक उत्पादक देश है। यहाँ बनने वाले जेनेरिक एंटीबायोटिक्स का एक बड़ा हिस्सा अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका को निर्यात होता है। भारतीय फ़ार्मा कंपनियाँ दुनिया भर के 20% से अधिक जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करती हैं। 

द लैंसेट की 2022 रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक खपत दुनिया में सबसे अधिक है। अनुमान है कि हर साल भारत में लगभग 1,300 करोड़ से अधिक की खुराक एंटीबायोटिक की ली जाती हैं। इसमें से भी ग्रामीण और छोटे शहरों व कस्बों में एंटीबायोटिक का उपयोग बड़े शहरों की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। भारत सरकार ने शेड्यूल एच1 लागू किया है, जिसके तहत कई एंटीबायोटिक दवाएँ केवल पर्चे पर ही मिल सकती हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम को लागू किया जा रहा है ताकि दुरुपयोग कम हो, फिर भी समस्या जस की तस है। 

2025 में भारत की जनसंख्या लगभग 1.40 अरब है, यानी भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। देश में करीब लगभग 93 करोड़ आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जबकि शहरों में लगभग 50 करोड़ लोग निवास करते हैं। 

वहीं, सर्दी-खाँसी-जुकाम, बुखार, डायरिया जैसी बीमारियाँ से हर साल भारत में करीब 30–35 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होते हैं और लगभग 6.2 करोड़ डायबिटीज और 7.7 करोड़ हृदय रोग से पीड़ित हैं। 2024 तक हमारे देश में कुल पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या लगभग 13 लाख हैं, इनमें से 10.4 लाख एलोपैथिक डॉक्टर और 4.5 लाख आयुष डाक्टर (आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी आदि) हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार 1,000 की जनसंख्या पर कम से कम 1 डॉक्टर होना चाहिए। जबकि भारत में 1,000 की आबादी पर मात्र 0.7 डॉक्टर उपलब्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात और भी कम है और कई राज्यों में 1000 की आबादी पर मात्र 0.2 डाक्टर हैं। 

भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी, 2023 की रिपोर्ट की माने तो देश में 1.55 लाख सब-सेंटर, 25,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5,600 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें से लगभग 65–70% स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं। 

भले ही देश में करीब एक लाख से ज़्यादा स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण इलाकों में हों, लेकिन अभी भी यहाँ डाक्टरों और स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी है। देश में साधारण बीमारियों से हर साल करीब 30 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनका इलाज कुछ लाख डाक्टरों या स्वास्थ्य केंद्रों के भरोसे संभव नहीं है। 

हालाँकि, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और स्वास्थ्य मंत्रालय ने एंटीबायोटिक उपयोग पर नियंत्रण के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें ज़ोर दिया गया है कि एंटीबायोटिक केवल बैक्टीरियल संक्रमण में ही दी जाए और साधारण सर्दी-जुकाम या फ्लू में नहीं। डॉक्टर की पर्ची अनिवार्य होगी और अस्पतालों को एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम अपनाना होगा। साथ ही, दवा की अवधि को कम से कम रखने और मरीजों को पूरी जानकारी देने पर ज़ोर दिया गया है। 

मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एंटीबायोटिक को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, पहला एक्सेस यानी वे एंटीबायोटिक जो सामान्य संक्रमण के लिए सुरक्षित हैं और इनका कोई ज़्यादा साइड इफ़ेक्ट नहीं है। दूसरी श्रेणी है वॉच की, इनका उपयोग सीमित परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए और इनके लिए निगरानी ज़रूरी है। तीसरी श्रेणी है रिज़र्व की, ये अंतिम विकल्प की दवाइयाँ हैं, जिन्हें केवल जीवन-रक्षक स्थिति में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। भारत भी इसी गाइडलाइन का पालन करता है और डॉक्टरों को सलाह भी दी गई है कि वे केवल ज़रूरत पड़ने पर ही एंटीबायोटिक लिखें और मरीजों को पूरी जानकारी दें। 

एंटीबायोटिक की समस्या इसलिए भी बड़ी होती जा रही है क्योंकि इंसानों के साथ ही कृषि और पशुपालन क्षेत्र में भी एंटीबायोटिक का अंधाधुंध उपयोग होना शुरू हो चुका है, खासतौर पर मुर्गीपालन और डेयरी फार्मिंग में। 

खाद्य और कृषि संगठन (संयुक्त राष्ट्र), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में कुल एंटीबायोटिक खपत का 50% से अधिक हिस्सा पशुपालन में होता है। पोल्ट्री सेक्टर (मुर्गीपालन) का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 70–75% मुर्गीपालकों द्वारा चारे में एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जाता है। 

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की एक रिपोर्ट में बताया गया कि बाजार में बिकने वाले 40% से अधिक चिकन में एंटीबायोटिक रेज़िड्यू पाए गए। डेयरी फार्मिंग डेयरी सेक्टर में, दूध देने वाली गायों और भैंसों में संक्रमण रोकने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक का बार-बार प्रयोग किया जाता है। 2022 के एक सर्वे में पाया गया कि 10–12% दूध के सैंपल्स में एंटीबायोटिक अवशेष मौजूद थे। 

ईयू और अमेरिका जैसे देशों ने एंटीबायोटिक-युक्त मीट और डेयरी उत्पादों के आयात पर कड़ी पाबंदी लगा रखी है। 2017 में ईयू ने भारत से निर्यात किए गए 26% पोल्ट्री उत्पादों को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि उनमें एंटीबायोटिक अवशेष पाए गए। एंटीबायोटिक्स को ग्रोथ प्रमोटर के रूप में प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई है। पशुपालन में केवल चिकित्सकीय ज़रूरत पर ही डॉक्टर या वैटरनरी प्रिस्क्रिप्शन से उपयोग की सिफ़ारिश है। 

एंटीबायोटिक न सिर्फ जनस्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है, बल्कि निर्यात और खाद्य सुरक्षा पर भी सीधा असर डालता है। नई गाइडलाइन का उद्देश्य एंटीबायोटिक का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना और भविष्य में गंभीर संक्रमणों के इलाज के लिए उनकी प्रभावशीलता बनाए रखना है। यदि मरीज, डॉक्टर, अस्पताल और किसान सभी मिलकर इन नियमों का पालन करें, तो “सुपरबग्स” की समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए व्यापक जनजागरूकता, सख्त नियम और सतत निगरानी बेहद आवश्यक है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )

ड्रग्स के खिलाफ बड़ा कदम: सीएम योगी ने ANTF को और सशक्त करने के निर्देश दिए
लखनऊ । उत्तर प्रदेश में अवैध ड्रग नेटवर्क को समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) को और अधिक प्रभावी, सक्षम और संसाधन-संपन्न बनाने के स्पष्ट निर्देश दिए। बुधवार को आयोजित समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई केवल कानून-व्यवस्था का विषय नहीं बल्कि समाज और प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपराधियों को यह सख्त संदेश जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में अवैध ड्रग कारोबार किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सभी थानों व यूनिटों में स्थायी मैनपॉवर की तैनाती के निर्देश

सीएम योगी ने बताया कि ANTF की संरचना को मजबूत करते हुए इसके 6 थानों और 8 यूनिटों में निरीक्षक, उपनिरीक्षक, आरक्षी, कंप्यूटर ऑपरेटर और अन्य आवश्यक मैनपॉवर की स्थायी तैनाती तत्काल पूरी की जाए। उन्होंने कहा कि टीम को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाए ताकि कार्रवाई अधिक प्रभावी और पेशेवर ढंग से हो सके।

एएनटीएफ को आधुनिक तकनीक व डिजिटल सिस्टम से लैस किया जाएगा

मुख्यमंत्री ने एएनटीएफ को आधुनिक उपकरण, डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम, उन्नत निगरानी संसाधन और अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि तकनीकी क्षमता बढ़ने से कार्रवाई तेज, सटीक और परिणामकारी होगी।प्रस्तावित थानों के लिए न्यायालय आवंटन की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने के निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम मामलों की त्वरित सुनवाई और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि फोर्स के सभी थानों के लिए स्थायी भवन निर्माण भी आवश्यक है, जिससे कार्यप्रणाली और बेहतर होगी।

883 तस्कर गिरफ्तार किया

2023 से 2025 के बीच बड़ी कार्रवाई—310 मामले, 35 हजार किलो से अधिक ड्रग्स जब्त। बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार एएनटीएफ गठन के बाद कार्रवाई में महत्वपूर्ण सफलता मिली है।2023 से 2025 के बीच, 310 मुकदमे दर्ज, 35,313 किलो अवैध मादक पदार्थ जब्त, 883 तस्कर गिरफ्तार किया, जब्त माल की कीमत 343 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई

अब तक 2.61 लाख किलो ड्रग्स का विनष्टीकरण

समीक्षा के दौरान यह भी बताया गया कि सामान्य कार्रवाई के साथ-साथ बड़े नेटवर्क और माफियाओं पर भी कड़ी कार्रवाई की गई है।पिछले तीन वर्षों में  2,61,391 किलो अवैध मादक पदार्थों का विधिसम्मत विनष्टीकरण किया गया, जिसका अनुमानित कीमत लगभग 775 करोड़ रुपये है। मुख्यमंत्री ने कहा कि ड्रग्स का निस्तारण नियमित, पारदर्शी और विधिसम्मत तरीके से जारी रहना चाहिए ताकि किसी तरह की गड़बड़ी की संभावना न रहे।

ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई में समाज की भूमिका पर बल

मुख्यमंत्री योगी ने स्पष्ट कहा कि ड्रग्स के खिलाफ संघर्ष केवल पुलिस या सरकार का काम नहीं है, बल्कि यह युवाओं की सुरक्षा, परिवारों की भलाई और समाज की जिम्मेदारी का मुद्दा है। उन्होंने परिवारों, शैक्षणिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन से सहयोग बढ़ाने की अपील की।उन्होंने कहा हमारी कोशिश है कि नशे की पहुंच किसी भी हालत में युवाओं तक न हो। कानून सख्त है और कार्रवाई और सख्त होगी।”
डीजीपी ने किया आगरा कमिश्नरेट स्थापना दिवस का वर्चुअल उद्घाटन, संवेदनशील पुलिसिंग पर जोर

लखनऊ । आगरा पुलिस कमिश्नरेट की स्थापना के तीन वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम का वर्चुअल शुभारम्भ उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक  राजीव कृष्ण ने किया। इस अवसर पर उन्होंने पुलिस आयुक्त आगरा दीपक कुमार, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, सम्मानित नागरिकों और पत्रकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कमिश्नरेट व्यवस्था के अब तक के योगदान को महत्वपूर्ण बताया।

साल 2020 में यूपी में कमिश्नरी प्रणाली लागू की गई थी

डीजीपी ने अपने संबोधन में कहा कि  मुख्यमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश में पुलिस के प्रशासनिक ढांचे में ऐतिहासिक सुधार करते हुए कमिश्नरी प्रणाली लागू की गई थी। इसी क्रम में आगरा को तीन वर्ष पूर्व कमिश्नरेट का दर्जा दिया गया, जिसका उद्देश्य आमजन को अधिक प्रभावी, त्वरित और संवेदनशील पुलिस सेवा उपलब्ध कराना है।

कमिश्नरेट प्रणाली पहले से ही कई राज्यों में सफल मॉडल साबित हुई

उन्होंने बताया कि कमिश्नरेट प्रणाली पहले से ही देश के कई राज्यों में सफल मॉडल साबित हुई है। उत्तर प्रदेश में भी जहां-जहां यह व्यवस्था लागू की गई, वहाँ अपराध नियंत्रण, महिला सुरक्षा, साइबर अपराधों से निपटने और शिकायतों के समयबद्ध निस्तारण में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिले हैं। डीजीपी ने कहा कि आगरा पुलिस कमिश्नरेट ने भी इन सभी क्षेत्रों में प्रभावी कार्य किया है।

ट्रैफिक प्रबंधन और साइबर जागरूकता की सराहना

डीजीपी राजीव कृष्णा ने आगरा में प्रस्तावित मेट्रो परियोजना के चलते उत्पन्न यातायात चुनौतियों पर चर्चा करते हुए, पुलिस द्वारा किए जा रहे सुगम यातायात प्रबंधन प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने आगरा पुलिस द्वारा चलाए जा रहे साइबर अपराध जागरूकता अभियानों को भी अत्यंत महत्वपूर्ण बताया, जिनके माध्यम से नागरिकों को साइबर अपराधों के तरीकों और बचाव के उपायों की जानकारी दी जा रही है।

पुलिस कर्मियों को स्थापना दिवस पर डीजीपी ने दी शुभकामनाएं

कार्यक्रम के दौरान डीजीपी ने सभी उपस्थित नागरिकों, पत्रकारों और पुलिस कर्मियों को स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि इस अवसर पर यह संकल्प लिया जाना चाहिए कि कमिश्नरेट व्यवस्था के मूल उद्देश्योंजन शिकायतों का त्वरित निस्तारण, महिलाओं की सुरक्षा, अपराध नियंत्रण और संवेदनशील पुलिसिंग को निरंतर और बेहतर बनाया जाए।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आज संविधान दिवस है, और संविधान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को संविधान की भावना को आत्मसात करते हुए कार्य करने का आह्वान किया।
यूपी पुलिस का तकनीकी स्टॉल बना आकर्षण का केंद्र, डीजीपी राजीव कृष्णा पहुंचे निरीक्षण को


लखनऊ । भारत स्काउट्स एंड गाइड्स की डायमंड जुबली व 19वीं राष्ट्रीय जम्बूरी में उत्तर प्रदेश पुलिस का अत्याधुनिक तकनीक आधारित भव्य स्टॉल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बुधवार को उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कृष्ण ने स्टॉल का निरीक्षण किया। इस दौरान महानिदेशक यूपी-112 नीरा रावत ने उन्हें मोमेंटो भेंट कर स्वागत किया।

19 पुलिस विभागों को एक ही मंच पर दिखाया गया

स्टॉल में यूपी पुलिस की आधुनिक तकनीक, त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र और इंटीग्रेटेड सुरक्षा मॉडल को प्रभावशाली तरीके से प्रदर्शित किया गया है। इसके अंतर्गत कुल 19 पुलिस विभागों को एक ही मंच पर दिखाया गया है, जिनमें प्रमुख रूप से एटीएस, एसटीएफ, यूपी-112 और एसडीआरएफ की कार्यप्रणाली को विस्तार से समझाया गया। आगंतुकों को बताया गया कि कैसे ये इकाइयां मिलकर पूरे प्रदेश में मजबूत और समन्वित सुरक्षा कवच तैयार करती हैं।

तीन नये कानूनों को सरल तरीके से समझाया गया

स्टॉल में नए लागू तीन आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की मुख्य विशेषताओं और उनके प्रभाव को भी सरल रूप में समझाया गया, जिससे युवाओं और प्रतिभागियों को आधुनिक कानूनी ढांचे को समझने में आसानी हुई।

यूपी-112 की त्वरित सहायता प्रणाली मुख्य आकर्षण

स्टॉल का सबसे प्रमुख आकर्षण यूपी-112 की फास्ट रिस्पॉन्स सिस्टम रहा। ‘112 इंडिया ऐप’ के माध्यम से दुर्घटना, महिला सुरक्षा, आग, क्राइम और मेडिकल इमरजेंसी में तत्काल सहायता कैसे पहुंचती है—इसका डेमो भी दिया गया। मौके पर डीजी यूपी-112, डीजी साइबर क्राइम, एडीजी टेक्निकल और जीएसओ टू डीजीपी सहित वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
*जिले के शिशु मन्दिर योजना के पुरोधा एवं समाजसेवी राजेंद्र लोहिया का निधन,शोक*
सुलतानपुर,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक एवं जिले के सरस्वती शिशु मंदिर योजना के संस्थापक सदस्य एवं कसौधन समाज के 84 डीह के अध्यक्ष रहे राजेंद्र कुमार लोहिया का आज निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार जिले के हथिया नाला के पास श्मशान घाट पर किया गया। जिले के चौक स्थित लोहा व्यापारी एवं समाजसेवी , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार लोहिया का लगभग 90 वर्ष की अवस्था में बुधवार को निधन हो गया। पिछले एक सप्ताह से लखनऊ के एक अस्पताल मे भर्ती थे। आज सुबह चिकित्सकों ने उन्हें जब जवाब दे दिया तो रास्ते में आते समय उनका निधन हो गया। बाल कल्याण समिति के पूर्व मंत्री एवं नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष भोलानाथ अग्रवाल ने बताया कि राजेंद्र कुमार लोहिया के पी डब्लू डी के पास स्थित मकान पर सन 1965 में शिशु मंदिर विद्यालय की शुरुआत की थी । उसके बाद से शिशु मंदिर का सफर जिले में बढ़ता गया आज सुलतानपुर जिले में शिशु मंदिर एवं विद्या मंदिर की एक पहचान है। स्व श्री लोहिया के बड़े पुत्र विनोद कुमार लोहिया ने बताया कि पिता जी ने अपने मकान से ही शिशु मन्दिर स्कूल की शुरुवात की थी। स्वर्गीय श्री लोहिया बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं मंत्री भी कई बार रहे । नगर के प्रतिष्ठित विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक भी रहे। गोवर्धन दास कनोडिया ने बताया कि जिले मे सरस्वती शिशु मंदिर योजना के नीव के पत्थर थे । उनका जिले के लगभग सभी शिशु मन्दिर विद्यालयों मे बहुत बड़ा योगदान रहा है । जिले के समाजसेवी एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष आलोक कुमार आर्य ने बताया कि स्वर्गीय श्री राजेंद्र कुमार लोहिया एक अच्छे स्वयंसेवक के साथ-साथ का समाज के भी अध्यक्ष रहे । वह 84 डीह के अध्यक्ष बनाए गए थे। उनका समाज की सेवा के लिए भी एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। अपने पीछे दो पुत्र विनोद कुमार लोहिया एवं संजय कुमार लोहिया सहित भरा पूरा परिवार छोड़ दिया। उनके निधन पर शिशु मंदिर के पूर्व प्रधानाचार्य श्रीनाथ भार्गव, सरस्वती विद्या मंदिर के पूर्व प्रधानाचार्य शेषमणि , बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष विनोद सिंह, मंत्री हरिदर्शन राम, बनवारी लाल गुप्ता, डॉ रामजी गुप्ता , सरस्वती विद्या मंदिर के पूर्व प्रबंधक सुनील कुमार श्रीवास्तव आदि ने शोक व्यक्त किया है।
एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट का विपक्ष को झटका, कहा- चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की वैधता पर बहस शुरू हुई। देश के 12 राज्यों में चल रहे एसआईआर पर विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके पास ऐसा करने का पूरा संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि अगर इसमें कोई अनियमितता सामने आई तो वह तुरंत सुधार के आदेश देगा।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें एसआईआर की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एसआईआर के खिलाफ दायर तमिलनाडु, बंगाल और केरल की याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बुधवार को पहले केरल का मुद्दा उठा, जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने के आधार पर फिलहाल एसआइआर टालने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी। फिर तमिलनाडु का मुद्दा उठा, जहां कई याचिकाओं के जरिये एसआइआर को चुनौती दी गई है। इस पर और बंगाल के मामले में भी आयोग को जवाब देने का निर्देश देते हुए नौ दिसंबर की तारीख तय की गई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी डालने पर सवाल उठाया। उन्होंने दलील दी कि देश में लाखों-करोड़ों लोग निरक्षर हैं जो फॉर्म नहीं भर सकते। उनका कहना था कि मतदाता गणना फॉर्म भरवाना ही अपने आप में लोगों को सूची से बाहर करने का हथियार बन गया है। सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि मतदाता को गणना फॉर्म भरने के लिए क्यों कहा जा रहा है? चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दिया कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं? आधार कार्ड में जन्म तिथि और निवास स्थान दर्ज है। 18 साल से ऊपर कोई व्यक्ति अगर स्व-घोषणा कर दे कि वह भारतीय नागरिक है तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने के लिए यही काफी होना चाहिए।

“मतदाता सूची को शुद्ध-अपडेट रखना आयोग का संवैधानिक दायित्व”

इस पर सीजेआई सूर्याकांत ने कहा कि आपने दिल्ली में चुनाव लड़ा है, वहां बहुत लोग वोट डालने नहीं आते. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव त्योहार की तरह मनाया जाता है। वहां हर व्यक्ति को पता होता है कि गांव का निवासी कौन है और कौन नहीं। वहां अधिकतम मतदान होता है और लोग अपने वोट को लेकर बहुत सजग रहते हैं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मतदाता सूची को शुद्ध और अपडेट रखना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है और इसके लिए वह जरूरी कदम उठा सकता है।

“एसआईआर को लेकर कोई ठोस शिकायत नहीं”

बेंच ने स्पष्ट किया कि एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर कोई ठोस शिकायत अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए इसे रोकने का कोई आधार नहीं बनता। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर कोई वास्तविक शिकायत या अनियमितता सामने आती है तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा और सुधार के आदेश देगा।

मरांडी के आरोप घबराए विपक्ष की हताशा, झूठ का पुलिंदा ; जांच से नहीं, सच से डरते हैं बाबूलाल : विनोद पांडेय

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सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विपक्ष के आरोपों पर शुक्रवार को तीखी प्रतिक्रिया दी। झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा अवैध कोयला व्यापार को लेकर लगाए गए आरोपों को “बेबुनियाद, राजनीतिक रूप से प्रेरित और घबराहट में किया गया झूठा प्रहसन बताया।

उन्होंने कहा कि मरांडी जी जान लें—झूठ को सौ बार बोलने से वह सच नहीं हो जाता। झारखंड में कानून का राज है और किसी भी स्तर की अवैध गतिविधि पर कार्रवाई कार्रवाई जरूर होती है। ये जीरो टॉलरेंस वाली सरकार है। भाजपा सत्ता से बाहर है, इसलिए उसे हर जगह डर और भ्रम नजर आ रहा है।

महासचिव विनोद पांडेय ने आगे कहा कि झारखंड में भ्रष्टाचार और कोयला माफिया को बढ़ावा देने वाली कोई सरकार रही है, तो वह भाजपा के नेतृत्व में रही थी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सबसे पहले मरांडी जी यह बताएं कि उन्हें कोयला साइट्स, थानों की फीस, हवाला रूट और ‘महाराजा-सेनापति’ वाली पूरी स्क्रिप्ट किसने थमाई? यह आरोप कम और किसी फिल्मी लेखक की कहानी ज्यादा लगती है।

विनोद पांडेय ने कहा कि झारखंड सरकार ने पिछले एक वर्ष में अवैध खनन पर ऐतिहासिक स्तर पर रोक लगाई है। यह भाजपा को रास नहीं आ रहा, इसलिए झूठ की राजनीति की जा रही है।

उन्होंने कहा कि मरांडी द्वारा सरकार पर बेबुनियादी आरोप लगा रहे हैं यह उनकी राजनीतिक हताशा का चरम है। मरांडी जी के आरोपों में न तथ्य है, न सबूत। केवल मीडिया की सुर्खियों में बने रहने का प्रयास है। भाजपा अब झारखंड की जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। इसलिए वह रोज़ नए आरोप गढ़ रही है।

विनोद पांडेय ने कहा कि सरकार हर जांच के लिए तैयार है, लेकिन उसे तथ्यों और कानून के दायरे में होना चाहिए। मरांडी जी कब से अफवाहों को एफआईआर और सुनी-सुनाई बातों को ‘साइट मैप’ समझने लगे? उनके पास यदि एक भी ठोस तथ्य हो तो सामने लाएं। झारखंड सरकार किसी भी जांच से पीछे नहीं हटेगी।

वास्तविकता: भाजपा नेताओं से जुड़े रहे हैं तमाम कोयला कारोबारी

प्रवक्ता पांडेय ने आक्रमण करते हुए कहा कि भाजपा को आईना दिखाना जरूरी है। झारखंड में कोयला माफिया किस राजनीतिक दल के संरक्षण में पनपे, यह पूरी दुनिया जानती है। धनबाद से लेकर गिरिडीह तक भाजपा के नेताओं से जुड़े नाम आज भी कोर्ट में लंबित मुकदमों में दर्ज हैं। मरांडी जी यूं ही ‘साइट-वाइट’ की कहानी लिखने से पहले अपनी पार्टी का इतिहास पढ़ लें। भाजपा की बेचैनी को भला कौन नहीं जान-समझ रहा है। समय आने पर सभी नामों का पर्दाफाश किया जाएगा।

विकास और कानून व्यवस्था से भाजपा बौखलाई

महासचिव विनोद पांडेय ने कहा कि हेमंत सरकार 2.0 के एक वर्ष में अवैध खनन पर शिकंजा, खनन पट्टों में पारदर्शिता, पुलिस-प्रशासन की जवाबदेही, कोयला परिवहन पर डिजिटल ट्रैकिंग जैसे मजबूत कदम उठाए हैं। जो सरकार सिस्टम को मजबूत करे, भाजपा उसी पर हमला करती है। क्योंकि मजबूत सिस्टम से सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा की ‘माफिया पर आधारित राजनीति’ को होता है।

विनोद पांडेय ने कहा मरांडी जी जो कहानियां वे गढ़ रहे हैं, उससे साफ है कि वे राजनीति नहीं, कोई सस्पेंस थ्रिलर लिखने का प्रयास कर रहे हैं। जनता इन मनगढ़ंत कहानियों को स्वीकार नहीं करेगी। झामुमो ने स्पष्ट कहा कि झूठ फैलाकर सत्ता नहीं मिलती। भाजपा के आरोप निराधार हैं, और सरकार पारदर्शिता के साथ कार्रवाई कर रही है।

जहानाबाद में सिर्फ 50 हजार में लॉन्च हुई इलेक्ट्रिक स्कूटी, बिक्री शुरू — कम खर्च में मिलेगा 80 KM का सफर

जहानाबाद: जिले में अब लोगों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन खरीदना और भी आसान हो गया है। स्कॉट इलेक्ट्रोराइड कंपनी ने जहानाबाद में अपनी किफायती इलेक्ट्रिक स्कूटियों की बिक्री शुरू कर दी है। कंपनी ने दो मॉडल—SL Pro और ZL Pro—लॉन्च किए हैं, जिनकी शुरुआती कीमत मात्र 50 हजार रुपये तय की गई है। कम बजट में बेहतर माइलेज और आधुनिक फीचर्स के कारण ये स्कूटियां लोगों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

एक यूनिट बिजली में चलेगी 80 किलोमीटर

कंपनी के अनुसार, स्कूटी की सबसे बड़ी खासियत इसकी चार्जिंग क्षमता है। इसे फुल चार्ज करने में मात्र 1 यूनिट बिजली की खपत होती है। पूरी चार्जिंग के बाद स्कूटी 80 किलोमीटर तक आराम से चलती है। रोज ऑफिस जाने वाले, छात्रों और शहर के भीतर यात्रा करने वालों के लिए यह स्कूटी बेहद किफायती विकल्प साबित हो रही है। बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बीच यह वाहन लोगों की जेब पर भी हल्का असर डालता है।

गांधी मैदान स्थित स्वाद देसी रेस्टोरेंट में उपलब्ध

इलेक्ट्रिक स्कूटी की बिक्री अभी जहानाबाद के गांधी मैदान स्थित स्वाद देसी रेस्टोरेंट से की जा रही है। यहां कंपनी ने अपना कार्यालय स्थापित किया है, जहां ग्राहक स्कूटी की जानकारी, टेस्ट राइड और खरीदारी कर सकते हैं।
कंपनी की ओर से एक फ्री सर्विसिंग और उसके बाद एक पेड सर्विसिंग की सुविधा भी दी जा रही है।

युवाओं के लिए बड़ा अवसर—डीलरशिप भी उपलब्ध

स्कॉट इलेक्ट्रोराइड सिर्फ वाहन नहीं बेच रही, बल्कि रोजगार के अवसर भी प्रदान कर रही है। जहानाबाद के डीलर हिमांशु कश्यप ने बताया कि इलेक्ट्रिक वाहन बाजार तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में स्कूटी की डीलरशिप लेना युवाओं के लिए बेहतर व्यवसाय का मौका है।
उन्होंने कहा कि बेरोजगारी के समय में यह स्थायी और सुलभ रोजगार का विकल्प साबित हो सकता है। इच्छुक लोग स्वदेशी फैमिली रेस्टोरेंट पहुंचकर डीलरशिप की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं। कंपनी की ओर से डीलर्स को पूरा कॉर्पोरेट सहयोग भी दिया जाएगा।

पर्यावरण और बजट—दोनों के लिए फायदेमंद

इलेक्ट्रिक वाहन प्रदूषण कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कम खर्च, कम मेंटेनेंस और जीरो उत्सर्जन के साथ यह स्कूटी स्वच्छ और हरित बिहार बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
हिमांशु कश्यप के अनुसार, यह स्कूटी छोटे परिवारों, नौकरीपेशा लोगों और रोज 40–50 किलोमीटर की यात्रा करने वालों के लिए काफी आरामदायक है। उन्होंने लोगों से स्कूटी का टेस्ट राइड लेने और इसके फीचर्स को नजदीक से देखने की अपील की है।

जल्द बढ़ेगा कंपनी का नेटवर्क

वर्तमान में स्कॉट इलेक्ट्रोराइड पटना, जहानाबाद और अरवल में सक्रिय है। कंपनी जल्द ही बिहार के अन्य जिलों में भी आउटलेट और सर्विस सेंटर खोलने की तैयारी कर रही है।

कम कीमत, कम खर्च और बेहतरीन माइलेज — इन खूबियों के साथ यह इलेक्ट्रिक स्कूटी जहानाबाद के लोगों के लिए एक नया और सस्ता विकल्प बनकर उभर रही है।

2014 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ रची गई साजिश! पूर्व सांसद का सीआईए-मोसाद को लेकर चौंकाने वाला दावा

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद कुमार केतकर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को लेकर बड़ा बयान दिया है। कुमार केतकर ने दावा का है कि सीआईए और मोसाद, जो अमेरिका और इजराइल की जासूसी एजेंसियां हैं, ने 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की साजिश रची थी।

कांग्रेस की हार सीआईए और मोसाद की साजिश!

मुंबई में संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित कांग्रेस के एक कार्यक्रम में बुधवार को कांग्रेस नेता और राज्यसभा के पूर्व सदस्य कुमार केतकर ने एक चौंकाने वाला दावा किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी हार किसी सामान्य राजनीतिक परिवर्तन का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और इजराइल की मोसाद की कथित साजिश थी।

केतकर ने समझाया आंकड़ों का गणित

केतकर ने कहा कि दोनों एजेंसियों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया था कि कांग्रेस का सीट संख्या 206 से आगे न बढ़े और पार्टी सत्ता से बाहर हो जाए। केतकर ने याद दिलाया कि 2004 में कांग्रेस ने 145 सीटें जीती थीं और 2009 में यह आंकड़ा बढ़कर 206 हो गया था। उन्होंने कहा कि अगर यही ट्रेंड जारी रहता तो 2014 में कांग्रेस को 250 से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए थीं और वह आराम से सत्ता में वापस आ जाती। लेकिन अचानक सीटें घटकर सिर्फ 44 रह गईं। यह सामान्य जनादेश नहीं था।

भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की रणनीति

केतकर ने कहा कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने तय किया था कि किसी भी हाल में कांग्रेस को 206 सीटों से ज्यादा नहीं मिलने दी जाए। सीआईए और मोसाद ने डेटा इकट्ठा किया, रणनीति बनाई और ऐसा माहौल बनाया कि कांग्रेस सत्ता में न लौट सके। केतकर के मुताबिक, इन एजेंसियों को डर था कि यदि यूपीए दोबारा स्थिर सरकार बनाती, तो भारत की नीतियों पर उनका प्रभाव सीमित हो जाता और वे अपनी इच्छानुसार हस्तक्षेप नहीं कर पाते।

अपने अनुकूल सरकार बनाने की साजिश का आरोप

पूर्व पत्रकार रहे केतकर ने दावा किया कि इन विदेशी खुफिया एजेंसियों का उद्देश्य भारत में ऐसी सरकार तैयार करना था जो उनके लिए अनुकूल हो और उनकी नीतियों को आसानी से लागू कर सके। केतकर के मुताबिक, अगर कांग्रेस की स्थिर सरकार लौटती या गठबंधन सरकार मजबूत स्थिति में आती, तो विदेशी एजेंसियों के लिए भारत में हस्तक्षेप करना मुश्किल हो जाता है।

हेमंत सरकार का 'नियुक्ति वर्ष': 28 नवंबर को 9,000 युवाओं को सरकारी नौकरी का तोहफा!

रांची के मोरहाबादी मैदान में होगा समारोह; राज्य में सबसे अधिक 8,000 सहायक आचार्यों को मिलेंगे नियुक्ति पत्र

रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 28 नवंबर को 'नियुक्ति वर्ष' के रूप में मनाएगी। इस अवसर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में एक भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा, जहाँ मुख्यमंत्री लगभग 9,000 अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र वितरित करेंगे।

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मोरहाबादी मैदान में तैयारियां जोरों पर

नियुक्ति पत्र वितरण समारोह के लिए मोरहाबादी मैदान में बड़े पैमाने पर तैयारियां की जा रही हैं।

व्यवस्था: अभ्यर्थियों के लिए 10 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की जा रही है, और चारों तरफ होर्डिंग्स लगाए गए हैं।

नियुक्ति पत्र की सूची: अब तक 8,514 अभ्यर्थियों की सूची तैयार हो चुकी है, जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में की जाएगी।

एंटीबायोटिक्स का मकड़जाल

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प्रदीप श्रीवास्तव

किसी भी बीमारी के लिए, एंटीबायोटिक्स यानी रोग प्रतिरोधी दवाएँ बहुत कारगर मानी जाती है, शायद यही वजह है कि बाज़ार में सबसे ज़्यादा एंटीबायोटिक दवाएँ बिकती हैं। हालाँकि, इनके अंधाधुंध प्रयोग से हमारे देश में “सुपरबग्स” जैसी खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है, जहाँ दवाएँ बेअसर हो जाती हैं और सामान्य बीमारी भी जल्दी ठीक नहीं होती है और उनके इलाज पर बहुत ज़्यादा खर्च करना पड़ता है। चिंता की बात यह है कि पोल्ट्री और डेयरी फार्मिंग में भी एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है। नतीजतन, अगर हम खुद एंटीबायोटिक्स कम लें तो भी यह समस्या दूसरे रूप में हमें घेरे ही रहेगी। इसलिए सरकार ने एंटीबायोटिक्स के प्रयोग को लेकर गाइडलाइन जारी की है, जिसमें इनके इस्तेमाल को लेकर कई तरह के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। 

सन 1928 में लंदन के सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में कार्यरत स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक अलेक्ज़ेंडर फ़्लेमिंग ने जीवाणुओं (बैक्टीरिया) पर शोध करते हुए एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की खोज की। दूसरे विश्वयुद्ध में जब लाखों घायल सैनिक संक्रमण से मर रहे थे, तब पेनिसिलिन एक वरदान साबित हुई। इससे अनगिनत सैनिकों की जान बचाई गई। पेनिसिलिन ने चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदल दी और इसे आधुनिक एंटीबायोटिक युग की शुरुआत माना जाता है। 

हालाँकि, 1945 के बाद से ही फ़्लेमिंग ने खुद चेतावनी दी कि “एंटीबायोटिक के बहुत ज़्यादा प्रयोग से प्रतिरोध पैदा होगा”। और यही हुआ, एंटीबायोटिक का अंधाधुंध प्रयोग शुरू हो गया, जिससे बीमारी एक बार ठीक होने बाद, दोबारा होने पर उससे कई तरह की परेशानियाँ शुरू होने लगी। 

अब यह समस्या और बड़ी बनने लगी है, क्योंकि भारत जैसे देशों में बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक लेना, अधूरा कोर्स करना और छोटी-मोटी बीमारी में भी इस्तेमाल करना आम बात है। ज़्यादा एंटीबायोटिक के प्रयोग से हमारे शरीर के बैक्टीरिया, दवाइयों के प्रति प्रतिरोधक विकसित कर लेते है इसे एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस कहा जाता है और यह स्थिति “सुपरबग्स” के रूप में उभरकर सामने आती है, यानी ऐसी स्थिति जिसमें ताकतवर जीवाणु, दवाओं से नहीं मरते और उन पर साधारण एंटीबायोटिक काम नहीं करती। ऐसे में न सिर्फ, मरीजों पर दवाओँ का खर्च बढ़ता जाता है, बल्कि भविष्य में वह कई बीमारियों को न्योता देता है और सामान्य संक्रमण यानी खाँसी, बुखार, घाव का इन्फेक्शन होने पर इसका इलाज भी मुश्किल हो जाता है। 

पहले जिन बीमारियों का इलाज ₹100 की दवा से हो जाता था, उनके लिए अब लाखों रुपये की नई और महँगी दवाएँ या इंजेक्शन लगते हैं। क्योंकि वह छोटी या सामान्य बीमारी पर दवाएँ बेअसर होती है, उन्हें ठीक करने के लिए कई तरह की जाँचें करानी पड़ती है और नए किस्म की दवाएँ देनी पड़ती है और मरीज को अस्पताल में ज़्यादा दिन भर्ती रहना पड़ता है। 

बार-बार एंटीबायोटिक लेने से डायरिया, एलर्जी, त्वचा पर दाने जैसी समस्याएँ भी आने लगती हैं और लंबे समय में किडनी, लीवर और पेट पर असर पड़ता है। सबसे बड़ी बात है कि एंटीबायोटिक हानिकारक बैक्टीरिया के साथ-साथ अच्छे बैक्टीरिया को भी मार देते हैं। इससे खराब पाचन, इम्युनिटी कमज़ोर और बार-बार संक्रमण की समस्या हो सकती है। 

भारत पहले से ही एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस का हॉटस्पॉट बन चुका है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग 7 लाख लोग एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से जुड़ी बीमारियों से प्रभावित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अगर इस समस्या पर रोक नहीं लगी तो 2050 तक भारत समेत विश्व में एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस के कारण 1 करोड़ मौतें प्रति वर्ष हो सकती हैं। 

भारत में एंटीबायोटिक्स का बाज़ार बहुत बड़ा है, क्योंकि यहाँ संक्रमण संबंधी बीमारियाँ आम हैं। 2023 में भारत में एंटीबायोटिक्स का बाज़ार करीब 49,000 करोड़ रूपये का था। अनुमान है कि 2024–2030 के बीच यह बाज़ार लगभग 6–7% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ेगा और 2030 तक यह बाज़ार 83,000 करोड़ रूपये तक पहुँच सकता है। मालूम हो कि भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा एंटीबायोटिक उत्पादक देश है। यहाँ बनने वाले जेनेरिक एंटीबायोटिक्स का एक बड़ा हिस्सा अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका को निर्यात होता है। भारतीय फ़ार्मा कंपनियाँ दुनिया भर के 20% से अधिक जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करती हैं। 

द लैंसेट की 2022 रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक खपत दुनिया में सबसे अधिक है। अनुमान है कि हर साल भारत में लगभग 1,300 करोड़ से अधिक की खुराक एंटीबायोटिक की ली जाती हैं। इसमें से भी ग्रामीण और छोटे शहरों व कस्बों में एंटीबायोटिक का उपयोग बड़े शहरों की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। भारत सरकार ने शेड्यूल एच1 लागू किया है, जिसके तहत कई एंटीबायोटिक दवाएँ केवल पर्चे पर ही मिल सकती हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम को लागू किया जा रहा है ताकि दुरुपयोग कम हो, फिर भी समस्या जस की तस है। 

2025 में भारत की जनसंख्या लगभग 1.40 अरब है, यानी भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। देश में करीब लगभग 93 करोड़ आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जबकि शहरों में लगभग 50 करोड़ लोग निवास करते हैं। 

वहीं, सर्दी-खाँसी-जुकाम, बुखार, डायरिया जैसी बीमारियाँ से हर साल भारत में करीब 30–35 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होते हैं और लगभग 6.2 करोड़ डायबिटीज और 7.7 करोड़ हृदय रोग से पीड़ित हैं। 2024 तक हमारे देश में कुल पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या लगभग 13 लाख हैं, इनमें से 10.4 लाख एलोपैथिक डॉक्टर और 4.5 लाख आयुष डाक्टर (आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी आदि) हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार 1,000 की जनसंख्या पर कम से कम 1 डॉक्टर होना चाहिए। जबकि भारत में 1,000 की आबादी पर मात्र 0.7 डॉक्टर उपलब्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात और भी कम है और कई राज्यों में 1000 की आबादी पर मात्र 0.2 डाक्टर हैं। 

भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी, 2023 की रिपोर्ट की माने तो देश में 1.55 लाख सब-सेंटर, 25,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5,600 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें से लगभग 65–70% स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं। 

भले ही देश में करीब एक लाख से ज़्यादा स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण इलाकों में हों, लेकिन अभी भी यहाँ डाक्टरों और स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी है। देश में साधारण बीमारियों से हर साल करीब 30 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनका इलाज कुछ लाख डाक्टरों या स्वास्थ्य केंद्रों के भरोसे संभव नहीं है। 

हालाँकि, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और स्वास्थ्य मंत्रालय ने एंटीबायोटिक उपयोग पर नियंत्रण के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें ज़ोर दिया गया है कि एंटीबायोटिक केवल बैक्टीरियल संक्रमण में ही दी जाए और साधारण सर्दी-जुकाम या फ्लू में नहीं। डॉक्टर की पर्ची अनिवार्य होगी और अस्पतालों को एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम अपनाना होगा। साथ ही, दवा की अवधि को कम से कम रखने और मरीजों को पूरी जानकारी देने पर ज़ोर दिया गया है। 

मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एंटीबायोटिक को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, पहला एक्सेस यानी वे एंटीबायोटिक जो सामान्य संक्रमण के लिए सुरक्षित हैं और इनका कोई ज़्यादा साइड इफ़ेक्ट नहीं है। दूसरी श्रेणी है वॉच की, इनका उपयोग सीमित परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए और इनके लिए निगरानी ज़रूरी है। तीसरी श्रेणी है रिज़र्व की, ये अंतिम विकल्प की दवाइयाँ हैं, जिन्हें केवल जीवन-रक्षक स्थिति में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। भारत भी इसी गाइडलाइन का पालन करता है और डॉक्टरों को सलाह भी दी गई है कि वे केवल ज़रूरत पड़ने पर ही एंटीबायोटिक लिखें और मरीजों को पूरी जानकारी दें। 

एंटीबायोटिक की समस्या इसलिए भी बड़ी होती जा रही है क्योंकि इंसानों के साथ ही कृषि और पशुपालन क्षेत्र में भी एंटीबायोटिक का अंधाधुंध उपयोग होना शुरू हो चुका है, खासतौर पर मुर्गीपालन और डेयरी फार्मिंग में। 

खाद्य और कृषि संगठन (संयुक्त राष्ट्र), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में कुल एंटीबायोटिक खपत का 50% से अधिक हिस्सा पशुपालन में होता है। पोल्ट्री सेक्टर (मुर्गीपालन) का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 70–75% मुर्गीपालकों द्वारा चारे में एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जाता है। 

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की एक रिपोर्ट में बताया गया कि बाजार में बिकने वाले 40% से अधिक चिकन में एंटीबायोटिक रेज़िड्यू पाए गए। डेयरी फार्मिंग डेयरी सेक्टर में, दूध देने वाली गायों और भैंसों में संक्रमण रोकने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक का बार-बार प्रयोग किया जाता है। 2022 के एक सर्वे में पाया गया कि 10–12% दूध के सैंपल्स में एंटीबायोटिक अवशेष मौजूद थे। 

ईयू और अमेरिका जैसे देशों ने एंटीबायोटिक-युक्त मीट और डेयरी उत्पादों के आयात पर कड़ी पाबंदी लगा रखी है। 2017 में ईयू ने भारत से निर्यात किए गए 26% पोल्ट्री उत्पादों को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि उनमें एंटीबायोटिक अवशेष पाए गए। एंटीबायोटिक्स को ग्रोथ प्रमोटर के रूप में प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई है। पशुपालन में केवल चिकित्सकीय ज़रूरत पर ही डॉक्टर या वैटरनरी प्रिस्क्रिप्शन से उपयोग की सिफ़ारिश है। 

एंटीबायोटिक न सिर्फ जनस्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है, बल्कि निर्यात और खाद्य सुरक्षा पर भी सीधा असर डालता है। नई गाइडलाइन का उद्देश्य एंटीबायोटिक का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना और भविष्य में गंभीर संक्रमणों के इलाज के लिए उनकी प्रभावशीलता बनाए रखना है। यदि मरीज, डॉक्टर, अस्पताल और किसान सभी मिलकर इन नियमों का पालन करें, तो “सुपरबग्स” की समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए व्यापक जनजागरूकता, सख्त नियम और सतत निगरानी बेहद आवश्यक है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )

ड्रग्स के खिलाफ बड़ा कदम: सीएम योगी ने ANTF को और सशक्त करने के निर्देश दिए
लखनऊ । उत्तर प्रदेश में अवैध ड्रग नेटवर्क को समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) को और अधिक प्रभावी, सक्षम और संसाधन-संपन्न बनाने के स्पष्ट निर्देश दिए। बुधवार को आयोजित समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई केवल कानून-व्यवस्था का विषय नहीं बल्कि समाज और प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपराधियों को यह सख्त संदेश जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में अवैध ड्रग कारोबार किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सभी थानों व यूनिटों में स्थायी मैनपॉवर की तैनाती के निर्देश

सीएम योगी ने बताया कि ANTF की संरचना को मजबूत करते हुए इसके 6 थानों और 8 यूनिटों में निरीक्षक, उपनिरीक्षक, आरक्षी, कंप्यूटर ऑपरेटर और अन्य आवश्यक मैनपॉवर की स्थायी तैनाती तत्काल पूरी की जाए। उन्होंने कहा कि टीम को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाए ताकि कार्रवाई अधिक प्रभावी और पेशेवर ढंग से हो सके।

एएनटीएफ को आधुनिक तकनीक व डिजिटल सिस्टम से लैस किया जाएगा

मुख्यमंत्री ने एएनटीएफ को आधुनिक उपकरण, डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम, उन्नत निगरानी संसाधन और अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि तकनीकी क्षमता बढ़ने से कार्रवाई तेज, सटीक और परिणामकारी होगी।प्रस्तावित थानों के लिए न्यायालय आवंटन की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने के निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम मामलों की त्वरित सुनवाई और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि फोर्स के सभी थानों के लिए स्थायी भवन निर्माण भी आवश्यक है, जिससे कार्यप्रणाली और बेहतर होगी।

883 तस्कर गिरफ्तार किया

2023 से 2025 के बीच बड़ी कार्रवाई—310 मामले, 35 हजार किलो से अधिक ड्रग्स जब्त। बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार एएनटीएफ गठन के बाद कार्रवाई में महत्वपूर्ण सफलता मिली है।2023 से 2025 के बीच, 310 मुकदमे दर्ज, 35,313 किलो अवैध मादक पदार्थ जब्त, 883 तस्कर गिरफ्तार किया, जब्त माल की कीमत 343 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई

अब तक 2.61 लाख किलो ड्रग्स का विनष्टीकरण

समीक्षा के दौरान यह भी बताया गया कि सामान्य कार्रवाई के साथ-साथ बड़े नेटवर्क और माफियाओं पर भी कड़ी कार्रवाई की गई है।पिछले तीन वर्षों में  2,61,391 किलो अवैध मादक पदार्थों का विधिसम्मत विनष्टीकरण किया गया, जिसका अनुमानित कीमत लगभग 775 करोड़ रुपये है। मुख्यमंत्री ने कहा कि ड्रग्स का निस्तारण नियमित, पारदर्शी और विधिसम्मत तरीके से जारी रहना चाहिए ताकि किसी तरह की गड़बड़ी की संभावना न रहे।

ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई में समाज की भूमिका पर बल

मुख्यमंत्री योगी ने स्पष्ट कहा कि ड्रग्स के खिलाफ संघर्ष केवल पुलिस या सरकार का काम नहीं है, बल्कि यह युवाओं की सुरक्षा, परिवारों की भलाई और समाज की जिम्मेदारी का मुद्दा है। उन्होंने परिवारों, शैक्षणिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन से सहयोग बढ़ाने की अपील की।उन्होंने कहा हमारी कोशिश है कि नशे की पहुंच किसी भी हालत में युवाओं तक न हो। कानून सख्त है और कार्रवाई और सख्त होगी।”
डीजीपी ने किया आगरा कमिश्नरेट स्थापना दिवस का वर्चुअल उद्घाटन, संवेदनशील पुलिसिंग पर जोर

लखनऊ । आगरा पुलिस कमिश्नरेट की स्थापना के तीन वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम का वर्चुअल शुभारम्भ उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक  राजीव कृष्ण ने किया। इस अवसर पर उन्होंने पुलिस आयुक्त आगरा दीपक कुमार, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, सम्मानित नागरिकों और पत्रकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कमिश्नरेट व्यवस्था के अब तक के योगदान को महत्वपूर्ण बताया।

साल 2020 में यूपी में कमिश्नरी प्रणाली लागू की गई थी

डीजीपी ने अपने संबोधन में कहा कि  मुख्यमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश में पुलिस के प्रशासनिक ढांचे में ऐतिहासिक सुधार करते हुए कमिश्नरी प्रणाली लागू की गई थी। इसी क्रम में आगरा को तीन वर्ष पूर्व कमिश्नरेट का दर्जा दिया गया, जिसका उद्देश्य आमजन को अधिक प्रभावी, त्वरित और संवेदनशील पुलिस सेवा उपलब्ध कराना है।

कमिश्नरेट प्रणाली पहले से ही कई राज्यों में सफल मॉडल साबित हुई

उन्होंने बताया कि कमिश्नरेट प्रणाली पहले से ही देश के कई राज्यों में सफल मॉडल साबित हुई है। उत्तर प्रदेश में भी जहां-जहां यह व्यवस्था लागू की गई, वहाँ अपराध नियंत्रण, महिला सुरक्षा, साइबर अपराधों से निपटने और शिकायतों के समयबद्ध निस्तारण में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिले हैं। डीजीपी ने कहा कि आगरा पुलिस कमिश्नरेट ने भी इन सभी क्षेत्रों में प्रभावी कार्य किया है।

ट्रैफिक प्रबंधन और साइबर जागरूकता की सराहना

डीजीपी राजीव कृष्णा ने आगरा में प्रस्तावित मेट्रो परियोजना के चलते उत्पन्न यातायात चुनौतियों पर चर्चा करते हुए, पुलिस द्वारा किए जा रहे सुगम यातायात प्रबंधन प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने आगरा पुलिस द्वारा चलाए जा रहे साइबर अपराध जागरूकता अभियानों को भी अत्यंत महत्वपूर्ण बताया, जिनके माध्यम से नागरिकों को साइबर अपराधों के तरीकों और बचाव के उपायों की जानकारी दी जा रही है।

पुलिस कर्मियों को स्थापना दिवस पर डीजीपी ने दी शुभकामनाएं

कार्यक्रम के दौरान डीजीपी ने सभी उपस्थित नागरिकों, पत्रकारों और पुलिस कर्मियों को स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि इस अवसर पर यह संकल्प लिया जाना चाहिए कि कमिश्नरेट व्यवस्था के मूल उद्देश्योंजन शिकायतों का त्वरित निस्तारण, महिलाओं की सुरक्षा, अपराध नियंत्रण और संवेदनशील पुलिसिंग को निरंतर और बेहतर बनाया जाए।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आज संविधान दिवस है, और संविधान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को संविधान की भावना को आत्मसात करते हुए कार्य करने का आह्वान किया।
यूपी पुलिस का तकनीकी स्टॉल बना आकर्षण का केंद्र, डीजीपी राजीव कृष्णा पहुंचे निरीक्षण को


लखनऊ । भारत स्काउट्स एंड गाइड्स की डायमंड जुबली व 19वीं राष्ट्रीय जम्बूरी में उत्तर प्रदेश पुलिस का अत्याधुनिक तकनीक आधारित भव्य स्टॉल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बुधवार को उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कृष्ण ने स्टॉल का निरीक्षण किया। इस दौरान महानिदेशक यूपी-112 नीरा रावत ने उन्हें मोमेंटो भेंट कर स्वागत किया।

19 पुलिस विभागों को एक ही मंच पर दिखाया गया

स्टॉल में यूपी पुलिस की आधुनिक तकनीक, त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र और इंटीग्रेटेड सुरक्षा मॉडल को प्रभावशाली तरीके से प्रदर्शित किया गया है। इसके अंतर्गत कुल 19 पुलिस विभागों को एक ही मंच पर दिखाया गया है, जिनमें प्रमुख रूप से एटीएस, एसटीएफ, यूपी-112 और एसडीआरएफ की कार्यप्रणाली को विस्तार से समझाया गया। आगंतुकों को बताया गया कि कैसे ये इकाइयां मिलकर पूरे प्रदेश में मजबूत और समन्वित सुरक्षा कवच तैयार करती हैं।

तीन नये कानूनों को सरल तरीके से समझाया गया

स्टॉल में नए लागू तीन आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की मुख्य विशेषताओं और उनके प्रभाव को भी सरल रूप में समझाया गया, जिससे युवाओं और प्रतिभागियों को आधुनिक कानूनी ढांचे को समझने में आसानी हुई।

यूपी-112 की त्वरित सहायता प्रणाली मुख्य आकर्षण

स्टॉल का सबसे प्रमुख आकर्षण यूपी-112 की फास्ट रिस्पॉन्स सिस्टम रहा। ‘112 इंडिया ऐप’ के माध्यम से दुर्घटना, महिला सुरक्षा, आग, क्राइम और मेडिकल इमरजेंसी में तत्काल सहायता कैसे पहुंचती है—इसका डेमो भी दिया गया। मौके पर डीजी यूपी-112, डीजी साइबर क्राइम, एडीजी टेक्निकल और जीएसओ टू डीजीपी सहित वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
*जिले के शिशु मन्दिर योजना के पुरोधा एवं समाजसेवी राजेंद्र लोहिया का निधन,शोक*
सुलतानपुर,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक एवं जिले के सरस्वती शिशु मंदिर योजना के संस्थापक सदस्य एवं कसौधन समाज के 84 डीह के अध्यक्ष रहे राजेंद्र कुमार लोहिया का आज निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार जिले के हथिया नाला के पास श्मशान घाट पर किया गया। जिले के चौक स्थित लोहा व्यापारी एवं समाजसेवी , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार लोहिया का लगभग 90 वर्ष की अवस्था में बुधवार को निधन हो गया। पिछले एक सप्ताह से लखनऊ के एक अस्पताल मे भर्ती थे। आज सुबह चिकित्सकों ने उन्हें जब जवाब दे दिया तो रास्ते में आते समय उनका निधन हो गया। बाल कल्याण समिति के पूर्व मंत्री एवं नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष भोलानाथ अग्रवाल ने बताया कि राजेंद्र कुमार लोहिया के पी डब्लू डी के पास स्थित मकान पर सन 1965 में शिशु मंदिर विद्यालय की शुरुआत की थी । उसके बाद से शिशु मंदिर का सफर जिले में बढ़ता गया आज सुलतानपुर जिले में शिशु मंदिर एवं विद्या मंदिर की एक पहचान है। स्व श्री लोहिया के बड़े पुत्र विनोद कुमार लोहिया ने बताया कि पिता जी ने अपने मकान से ही शिशु मन्दिर स्कूल की शुरुवात की थी। स्वर्गीय श्री लोहिया बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं मंत्री भी कई बार रहे । नगर के प्रतिष्ठित विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक भी रहे। गोवर्धन दास कनोडिया ने बताया कि जिले मे सरस्वती शिशु मंदिर योजना के नीव के पत्थर थे । उनका जिले के लगभग सभी शिशु मन्दिर विद्यालयों मे बहुत बड़ा योगदान रहा है । जिले के समाजसेवी एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष आलोक कुमार आर्य ने बताया कि स्वर्गीय श्री राजेंद्र कुमार लोहिया एक अच्छे स्वयंसेवक के साथ-साथ का समाज के भी अध्यक्ष रहे । वह 84 डीह के अध्यक्ष बनाए गए थे। उनका समाज की सेवा के लिए भी एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। अपने पीछे दो पुत्र विनोद कुमार लोहिया एवं संजय कुमार लोहिया सहित भरा पूरा परिवार छोड़ दिया। उनके निधन पर शिशु मंदिर के पूर्व प्रधानाचार्य श्रीनाथ भार्गव, सरस्वती विद्या मंदिर के पूर्व प्रधानाचार्य शेषमणि , बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष विनोद सिंह, मंत्री हरिदर्शन राम, बनवारी लाल गुप्ता, डॉ रामजी गुप्ता , सरस्वती विद्या मंदिर के पूर्व प्रबंधक सुनील कुमार श्रीवास्तव आदि ने शोक व्यक्त किया है।
एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट का विपक्ष को झटका, कहा- चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की वैधता पर बहस शुरू हुई। देश के 12 राज्यों में चल रहे एसआईआर पर विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके पास ऐसा करने का पूरा संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि अगर इसमें कोई अनियमितता सामने आई तो वह तुरंत सुधार के आदेश देगा।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें एसआईआर की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एसआईआर के खिलाफ दायर तमिलनाडु, बंगाल और केरल की याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बुधवार को पहले केरल का मुद्दा उठा, जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने के आधार पर फिलहाल एसआइआर टालने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी। फिर तमिलनाडु का मुद्दा उठा, जहां कई याचिकाओं के जरिये एसआइआर को चुनौती दी गई है। इस पर और बंगाल के मामले में भी आयोग को जवाब देने का निर्देश देते हुए नौ दिसंबर की तारीख तय की गई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी डालने पर सवाल उठाया। उन्होंने दलील दी कि देश में लाखों-करोड़ों लोग निरक्षर हैं जो फॉर्म नहीं भर सकते। उनका कहना था कि मतदाता गणना फॉर्म भरवाना ही अपने आप में लोगों को सूची से बाहर करने का हथियार बन गया है। सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि मतदाता को गणना फॉर्म भरने के लिए क्यों कहा जा रहा है? चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दिया कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं? आधार कार्ड में जन्म तिथि और निवास स्थान दर्ज है। 18 साल से ऊपर कोई व्यक्ति अगर स्व-घोषणा कर दे कि वह भारतीय नागरिक है तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने के लिए यही काफी होना चाहिए।

“मतदाता सूची को शुद्ध-अपडेट रखना आयोग का संवैधानिक दायित्व”

इस पर सीजेआई सूर्याकांत ने कहा कि आपने दिल्ली में चुनाव लड़ा है, वहां बहुत लोग वोट डालने नहीं आते. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव त्योहार की तरह मनाया जाता है। वहां हर व्यक्ति को पता होता है कि गांव का निवासी कौन है और कौन नहीं। वहां अधिकतम मतदान होता है और लोग अपने वोट को लेकर बहुत सजग रहते हैं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मतदाता सूची को शुद्ध और अपडेट रखना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है और इसके लिए वह जरूरी कदम उठा सकता है।

“एसआईआर को लेकर कोई ठोस शिकायत नहीं”

बेंच ने स्पष्ट किया कि एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर कोई ठोस शिकायत अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए इसे रोकने का कोई आधार नहीं बनता। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर कोई वास्तविक शिकायत या अनियमितता सामने आती है तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा और सुधार के आदेश देगा।

मरांडी के आरोप घबराए विपक्ष की हताशा, झूठ का पुलिंदा ; जांच से नहीं, सच से डरते हैं बाबूलाल : विनोद पांडेय

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सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विपक्ष के आरोपों पर शुक्रवार को तीखी प्रतिक्रिया दी। झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा अवैध कोयला व्यापार को लेकर लगाए गए आरोपों को “बेबुनियाद, राजनीतिक रूप से प्रेरित और घबराहट में किया गया झूठा प्रहसन बताया।

उन्होंने कहा कि मरांडी जी जान लें—झूठ को सौ बार बोलने से वह सच नहीं हो जाता। झारखंड में कानून का राज है और किसी भी स्तर की अवैध गतिविधि पर कार्रवाई कार्रवाई जरूर होती है। ये जीरो टॉलरेंस वाली सरकार है। भाजपा सत्ता से बाहर है, इसलिए उसे हर जगह डर और भ्रम नजर आ रहा है।

महासचिव विनोद पांडेय ने आगे कहा कि झारखंड में भ्रष्टाचार और कोयला माफिया को बढ़ावा देने वाली कोई सरकार रही है, तो वह भाजपा के नेतृत्व में रही थी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सबसे पहले मरांडी जी यह बताएं कि उन्हें कोयला साइट्स, थानों की फीस, हवाला रूट और ‘महाराजा-सेनापति’ वाली पूरी स्क्रिप्ट किसने थमाई? यह आरोप कम और किसी फिल्मी लेखक की कहानी ज्यादा लगती है।

विनोद पांडेय ने कहा कि झारखंड सरकार ने पिछले एक वर्ष में अवैध खनन पर ऐतिहासिक स्तर पर रोक लगाई है। यह भाजपा को रास नहीं आ रहा, इसलिए झूठ की राजनीति की जा रही है।

उन्होंने कहा कि मरांडी द्वारा सरकार पर बेबुनियादी आरोप लगा रहे हैं यह उनकी राजनीतिक हताशा का चरम है। मरांडी जी के आरोपों में न तथ्य है, न सबूत। केवल मीडिया की सुर्खियों में बने रहने का प्रयास है। भाजपा अब झारखंड की जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। इसलिए वह रोज़ नए आरोप गढ़ रही है।

विनोद पांडेय ने कहा कि सरकार हर जांच के लिए तैयार है, लेकिन उसे तथ्यों और कानून के दायरे में होना चाहिए। मरांडी जी कब से अफवाहों को एफआईआर और सुनी-सुनाई बातों को ‘साइट मैप’ समझने लगे? उनके पास यदि एक भी ठोस तथ्य हो तो सामने लाएं। झारखंड सरकार किसी भी जांच से पीछे नहीं हटेगी।

वास्तविकता: भाजपा नेताओं से जुड़े रहे हैं तमाम कोयला कारोबारी

प्रवक्ता पांडेय ने आक्रमण करते हुए कहा कि भाजपा को आईना दिखाना जरूरी है। झारखंड में कोयला माफिया किस राजनीतिक दल के संरक्षण में पनपे, यह पूरी दुनिया जानती है। धनबाद से लेकर गिरिडीह तक भाजपा के नेताओं से जुड़े नाम आज भी कोर्ट में लंबित मुकदमों में दर्ज हैं। मरांडी जी यूं ही ‘साइट-वाइट’ की कहानी लिखने से पहले अपनी पार्टी का इतिहास पढ़ लें। भाजपा की बेचैनी को भला कौन नहीं जान-समझ रहा है। समय आने पर सभी नामों का पर्दाफाश किया जाएगा।

विकास और कानून व्यवस्था से भाजपा बौखलाई

महासचिव विनोद पांडेय ने कहा कि हेमंत सरकार 2.0 के एक वर्ष में अवैध खनन पर शिकंजा, खनन पट्टों में पारदर्शिता, पुलिस-प्रशासन की जवाबदेही, कोयला परिवहन पर डिजिटल ट्रैकिंग जैसे मजबूत कदम उठाए हैं। जो सरकार सिस्टम को मजबूत करे, भाजपा उसी पर हमला करती है। क्योंकि मजबूत सिस्टम से सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा की ‘माफिया पर आधारित राजनीति’ को होता है।

विनोद पांडेय ने कहा मरांडी जी जो कहानियां वे गढ़ रहे हैं, उससे साफ है कि वे राजनीति नहीं, कोई सस्पेंस थ्रिलर लिखने का प्रयास कर रहे हैं। जनता इन मनगढ़ंत कहानियों को स्वीकार नहीं करेगी। झामुमो ने स्पष्ट कहा कि झूठ फैलाकर सत्ता नहीं मिलती। भाजपा के आरोप निराधार हैं, और सरकार पारदर्शिता के साथ कार्रवाई कर रही है।