*सरकार की GST में छूट या फिर खेल, कौन कौन सामानों पर मिली छूट,या फिर सभी को उठानी पड़ेगी आवाज,तभी मिलेगा लाभ,जानें GST का पूरा सच*
टूथपेस्ट से ट्रैक्टर तक चमकदार मंच पर बताया गया जीएसटी उत्सव मगर असलियत कहीं और है 22 सितंबर 2025 के जीएसटी 2.0 के हेयरकट में 12 परसेंट स्लैब को बदलकर 5% 18% का नया ढांचा दिखाया गया पर यह शर्लिकरण नहीं सुनियोजित चाल है प्रचार कहता है कि दम गिरे फैक्ट्री की रसद पैकेजिंग और रॉ मैटेरियल पर ऊंचा जीएसटी वैसे का वैसा रहा,मतलब रहता कागजों पर और बोझ आपकी जेब पर,यह केवल अर्थव्यवस्था का मामला नहीं यह समय निर्धारित राजनीतिक सह है जिसमें मध्यम वर्ग की कमर चुपके से मरोड़ी जा रही है गुस्सा उठेगा सवाल खड़े होंगे और सच्चाई ढूंढने पर ही पता चलेगा कि उत्सव राहत नहीं लूट उत्सव है तो आगे चलते हैं और देखते हैं कौन-कौन सी चीज सच में सस्ती हुई किसने मुनाफा चोरी किया और सरकार किस तरह इस तमाशा की पर्दागिरी कर रही है।
डॉक्टर वी.शुक्ल ने बताया कि सरकारी पहल के पीछे जो चल रहा है वह जश्न नहीं बल्कि उथल-पुथल भारी लूट का एक सुनियोजित तमाशा है और उसे अब नाम देने का वक्त आ गया है। GST बचत उत्सव के बुलंद गुलदस्ते के बीच जो कागजी राहत दिखाई जा रही है उसका असली चेहरे पर उतरना सिर्फ एक मृत सुरक्षित हुआ है जीएसटी का री डिजाइन 12% स्लैब का उन्मूलन 5% 18% के बीच के सरलीकरण की बातें और कुछ रोजमर्रा की वस्तुओं को चुनकर दिखावा यह सब केवल एक रणनीति का हिस्सा है जनता को दिखाने की राहत दी गई जबकि असल में राजस्व संरचना और बड़े उद्योगों के हितों को बचाए रखा गया जो लोग यह समझाने में सहज है कि सरकार ने राहत दी,उन्हें यह जानना होगा कि राहत का पैकेज किसके लिए बनाया गया और किसके ऊपर बोझ है चढ़ाया गया। सबसे पहले जो सीधे दिखता है वह यह स्लैबो का पुनर्विन्यास कितनी सटीक नियोजित तरीके से किया गया। कुछ बेसिक आइटमों को पांच प्रतिशत में डालकर विंडो ड्रेसिंग की गई ताकि मीडिया में बड़े विज्ञापन के साथ इस उपभोक्ताओ को राहत के रूप में परोसा जा सके,पर वही सिस्टम जो इस वस्तुओं के बनने के इस चरण को नियंत्रित करता है। रॉ मटेरियल पैकेजिंग लेबलिंग लिंक लॉजिस्टिक्स उन पर ये दरें जस की तस रखी गई या जटिल नियमों के जाल में रखा गया नतीजा यह हुआ कि फिनिश्ड प्रोडक्ट पर दिखाई गई कटौती जमीन पर कहीं गुम हो गई दुकानदार वही पुराना स्टॉक भेजते रहे छोटे निर्माता आईटीसी की उलझन में फंसे रहे और बड़ी कंपनियां धीरे-धीरे कीमतें समायोजित कर अपनी मार्जिन बरकरार रखती गई। यह फर्क केवल अकीदो का नहीं जेब का है। हर एक परिवार के मासिक खर्च में छोटे-छोटे गुड़ा जोड़कर सालाना भारी राशि बन जाती है लेकिन खेल देखिए की सबसे बड़ा सच यह बदलाव टाइमिंग के साथ एक राजनीतिक शिल्प है जब संसद में सुरक्षा अर्थव्यवस्था और जल रोज के मुद्दे सरकार के लिए संकट बनते हैं तब अचानक बड़े ऐलान कर जनता का ध्यान कहीं और मोड़ दिया जाता है उत्सव की भाषा लोग मानस पर असर करती है वह संदेश सरल और भावनात्मक होता है हमें राहत मिली पर नीति निर्णय तकनीकी वही मात्र राजनीतिक भी होता है किस वस्तु को किस स्लैब में रखा जाए या केवल अर्थशास्त्र नहीं लॉबिंग और चुनावी हिसाब और राज्य का मिला-जुला फैसला होता है इसलिए व्यस्त में जो दिखाने के काम आती है उन्हें नीचे रखा गया और वह जिसे राजस्व आता है उन्हें ऊपर स्लैब में कैसे रखा गया परिणाम स्वरुप गरीबों को उनसे मिलना अमीरों को कोई खास फर्क नहीं और मध्यम वर्ग को चुपचाप बोझ बढ़कर मिला, एक तहखाना एनफोर्समेंट का है सरकार ने एंटी प्रोसेसिंग का तंज चलाया शिकायत चैनल खोलें व्हाट्सएप और टोल फ्री नंबर घोषित किया और प्रवर्तन धीमा और जटिल रहा और शिकायत दर्ज होती है मामला लंबी चलता है तब तक बाजार में पैकेट का साईज घटा दिया जाता है, दाम कम कर दिए जाते है रिटेल प्रमोशंस बंद कर दिए जाते हैं ग्राहक के हाथ में बिल होते हैं और उसकी समझ नहीं होती कि उसे बिल में दर्शीईं का दर कितना सार्थक प्रभाव होना चाहिए था छोटे कार्यबारियों के पास अकाउंटिंग का इंतजाम नहीं वो पुरानी दरों पर खरीदी हुई इन्वेंटरी निपटाने को मजबूर है और बड़ी कंपनियां मार्केट शेयर बढाकर इस संक्रमण काल का मुनाफा उठाते एक और पहलू है और शायद सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि जो लोग धर्म संस्कृति और हिंदुत्व के भाव में गहरे बह चुके हैं उन्हें यह समझना होगा कि राजनीतिक वादे और नीतिगत गणित दोनों अलग-अलग है किसी भी सरकार के बड़े-बड़े विज्ञापन और नए अंदाज में पेश निर्णय के पीछे राजनीतिक संदेश होता है उसे देखकर अपनी आस्था का ऑडिट कर लेना ही नागरिक जिम्मेदारी है भक्ति और राष्ट्रीयता की मिठास में डूबे लोग जब आर्थिक धोखे का शिकार होते हैं तो उनका भरोसा सिर्फ भावनात्मक स्तर पर तो उठता ही है साथी में अपनी वास्तविक आर्थिक हित की रक्षा करने में असमर्थ भी रह जाते हैं यही वह समय है जब नागरिक क्षेत्र की जरूरत सबसे ज्यादा दिखाई देती है अंत में यही कहेंगे कि यह कोई सहयोग नहीं है कि जीएसटी उत्सव का नाटक चुनावी संदर्भ और राजनीतिक संकट के बीच आया यह एक व्यवस्थित सुनियोजित रणनीति है बड़े मंच पर दिखाओ की सरकार ने कर घटाया जनता में उत्सव बोल दो और जमीन पर ऐसा जाल बिछा दो की वास्तविक राहत नजर ना आए यह उत्सव तभी टूटेगी जब आवाम मीडिया और न्यायिक निगरानी मिलकर उन तत्वों को उजागर करेंगे जो आज छुपे हुए नागरिकों के पास एक सहज रास्ता है हर खरीद पर बल मांगिए पुराने स्टॉक और नई दरों के बीच अंतर समझिए दुकानदार और निर्माता से खुलकर पूछिए कि किस आधार पर क़ीमत नहीं बदली। और लाभ अगर जमीन पर नहीं दिखी तो लिखित शिकायत दर्ज कराइए। साथ ही स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर इन मामलों की लगातार रिपोर्टिंग कीजिए क्योंकि सार्वजनिक दबाव ही तेजी से बदलाव लाता है हम छोटे मीडिया घरानों कि मीडिया निर्णायक है जब सरकार की राजनीति पढ़कर आगे नहीं बढ़ना, दुकानों से हकीकत कीमती इकट्ठा करना छोटे निर्माता के हाथों की पड़ताल करना इनपुट क्लास और आईटीसी के प्रभाव की गणना करना और एंटी प्रोक्टरिंग के मामले में रियल टाइम ट्रैक रखना यही फील्ड जांच की गंभीरता इस तमाशा को बेनकाब कर सकती है साथ ही नीति नियंत्रण के रूप में सुझाव स्पष्ट है अगर सरकार सचमुच जनता के हित में है तो इनपुट लेवल पर सामान कटौती लागू करें छोटे व्यापारियों के लिए आईटीसी प्रवेश आसान बनाएं एंटी प्रॉपर्टी और सार्वजनिक कार्यवाही सुनिश्चित करें और जीएसटी काउंसिल के निर्णय का राजस्व इंपैक्ट सार्वजनिक कर दे सीधी बात जीएसटी उत्सव उत्सव नहीं, यह एक पारदर्शी दिखावटी चाल है जो कुछ समुदायों को दिखाने वाला लाभ दे रही है और मध्यम वर्ग कि कुछ कमर थपथापाई जा रही है। जो कुछ लोग जश्न की मिठास में खोए हुए हैं वह जागे और अपने अधिकार मांगे साथ ही सच बताने की शक्ति रखते हैं वह मैदान में उतरे और हर दुकान हर फैक्ट्री की गहराई खोलें तभी यह उत्सव नाटक अपने असली नाम पर दिखेगा और लूट का जश्न और तभी जनता का सच सामने आएगा।
कुल मिलाकर पीएम जी की अपनी GST रिफार्म वाली यात्रा हो सकता है कि उन लोगों को खबर बड़ी दिखे और जीएसटी उत्सव की पूरी की पूरी महायात्रा चल रही होगी तब आपके दुकान मकान के पास किनारे खड़े हुए लोग जो इनका गुणगान करेंगे,लेकिन तब उन लोगों के पास कोई जीएसटी नंबर नहीं होगा,अगर आपको लगता है कि जीएसटी की बचत सिर्फ दिखावा है,आपको लगता है कि टूथपेस्ट का दाम मतलब GST घटा कर रॉ मटेरियल पर GST बढ़ा कर या वही रखकर सरकार ने आपको कोई राहत दी है। तो अपना कमेंट जरुर करें क्योंकि आप लिखेंगे नहीं तो कौन सुनेगा और पड़ेगा कौन हमारे साथ ही ने अलग-अलग जगह जाकर आपको बताने और जताने का प्रयास किया है। कि आखिर असली खेल क्या है।
Sep 27 2025, 10:58