/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1632639995521680.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1632639995521680.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1632639995521680.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif StreetBuzz s:why
*বড়মার মন্দিরে এলেন দেব*

সোমবার নৈহাটি বড়মার মন্দিরে পুজো দিলেন অভিনেতা তথা তৃণমূল কংগ্রেসের সাংসদ দেব ।

 

भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहा बीएनपी, बांग्लादेश के लिए “Boycott India” कितना मुश्किल
#boycott_india_reason_why_it_is_not_possible_for_bangladesh
* शेख हसीना के तख्तापलट और नई अंतरिम सरकार के गठन के बाद बांग्लादेश ने एक अलग ही राह पकड़ ली है। वो राह जो भारत से दूर करता है। बीते कुछ दिनों से लगातार भारत के खिलाफ मुखर बांग्लादेश अब हदों को पार करता हुआ नजर आ रहा है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के महासचिव ने अपनी पत्नी का भारतीय साड़ी जलाने के साथ ऐलान किया कि मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स का बायकाट किया जाएगा। बांग्लादेश, भारत से आने वाली किसी भी सामान का बहिष्कार करेगा। हालांकि, ये तकनीकि रूप से असंभव सा है। बांग्लादेश की जैसी भौगोलिक स्थिति है, उसमें भारत के साथ उसके संबंध काफ़ी अहम हो जाते हैं। बांग्लादेश को 'इंडिया लॉक्ड' मुल्क कहा जाता है। दरसअल, बांग्लादेश की 94 प्रतिशत सीमा भारत से लगती है। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,367 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है और यह उसकी अंतरराष्ट्रीय सीमा का 94 फ़ीसदी है। यानी बांग्लादेश लगभग चारों तरफ़ से भारत से घिरा हुआ है। ऐसे में बांग्लादेश सुरक्षा और व्यापार के मामले में भारत पर निर्भर है। हाल ही में बीएनपी के महासचिव ने रूहुल कबीर रिजवी ने अपनी पत्नी की भारत से ली हुई साड़ी जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। रिज़वी ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि भारतीय प्रोडक्ट्स का समर्थन करने के बजाय हमें अपनी अर्थव्यवस्था में निवेश करना चाहिए। वहीं उनका ये भी मानना है कि भारतीय प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट शांतिपूर्वक लेकिन सबसे ताकतवर जवाब है। रिजवी के मुताबिक चाहे हम (बांग्लादेशी आवाम)दिन में एक ही बार खाना खा पाएं लेकिन उसके बाद भी हम गर्व से खड़े होंगे और आत्मनिर्भर रहेंगे। *किस हद तक निर्भरता?* बीएनपी का ये “बायकाट इंडिया” का आह्वान बड़ा ही हास्यास्पद है।बांग्लादेश चावल, गेहूं, प्याज, लहसुन, चीनी, कॉटन, अनाज, रिफाइंड पेट्रोलियम, इलेक्ट्रिक उपकरण, प्लास्टिक और इस्पात के लिए भारत पर निर्भर है। बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग भारत से जाने वाले कच्चे माल पर निर्भर है। अगर भारत से बांग्लादेश का संबंध और बिगड़ता है तो उसका निर्यात प्रभावित होगा। इसका असर जीडीपी पर पड़ेगा और फिर महंगाई के साथ बेरोज़गारी बढ़ेगी। बांग्लादेश के लिए भारत से संबंध खराब होने की कीमत चुकाना आसान नहीं होगा। *एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार* बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। बांग्लादेश एशिया में सबसे ज़्यादा निर्यात भारत में करता है। बांग्लादेश ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में दो अरब डॉलर का निर्यात किया था। वित्त वर्ष 2022-23 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 15.9 अरब डॉलर का था। 2021 में बांग्लादेश में भारत का निर्यात 14 अरब डॉलर का था जो कि 2022 में 13.8 अरब डॉलर था। 2023 में यह घटकर 11.3 अरब डॉलर हो गया। बांग्लादेश में भारत के निर्यात कम होने के पीछे की मुख्य वजह मांगों में आई कमी थी। जानकार बताते हैं कि मांग में ये कमी रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग से सप्लाई चेन में आई बाधा के कारण हुई। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के पहले वाले दौर में अब भी नहीं आ पाई है। इसी बीच शेख़ हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा। भारत के साथ ख़राब होते संबंधों के कारण बांग्लादेश को आर्थिक मोर्चे पर एक और चोट लग सकती है। *पाक-चीन के करीब आ रहा बांग्लादेश* पिछले महीने ही पाकिस्तान का एक मालवाहक पोत कराची से बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित चटगांव बंदरगाह पर पहुँचा था। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच यह पहला समुद्री संपर्क हुआ था। इससे पहले दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या कोलंबो के जरिए होता था। यह पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ने की ठोस शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। बांग्लादेश में निवेश का चीन सबसे बड़ा स्रोत है। बांग्लादेश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। चीन ने बांग्लादेश में सात अरब डॉलर का निवेश किया है और 2023 में चीन ने बांग्लादेश में 22 अरब डॉलर का निर्यात किया था। *क्या भारत की जगह कोई और ले सकता है?* हालांकि, पिछले डेढ़ दशक में बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति की जो राह पकड़ी थी, वो राह भारत से ख़राब होते संबंधों के कारण अड़चनों से भरती दिख रही है। भारत एक बड़ा मुल्क है। किसी छोटे देश से संबंध बिगड़ता है तो बड़े पर असर कम पड़ता है। पाकिस्तान से पिछले सात सालों से भारत के राजनयिक संबंध नहीं हैं लेकिन इसका असर भारत पर नहीं पड़ा। पाकिस्तान पर ज़रूर पड़ा है। भारत से जो सामान जिस क़ीमत में बांग्लादेश पहुँचता है, उस क़ीमत में कोई भी देश नहीं दे सकता है। भारत से बांग्लादेश सामान जाने में परिवहन का खर्च कम होता है लेकिन वही सामान चीन से आएगा या दूसरे देशों से तो ज़्यादा महंगा हो जाएगा। अगर बांग्लादेश को ये बर्दाश्त है तो ठीक है। बांग्लादेश के लिए भारत जो मायने रखता है, उसकी भरपाई चीन नहीं कर सकता है
Best AI Powered Social Media Management Tool

 

In today’s hyper-connected world, social media has become an indispensable tool for businesses, influencers, and individuals alike. Managing multiple social media platforms can be overwhelming, but advanced tools like Posttely are here to revolutionize the way we handle social media management.Whether you are a marketer aiming to grow your brand, an influencer striving to boost your engagement, or a business seeking a seamless online presence, Posttely offers a one-stop solution to all your social media needs.

About Posttely

Posttely, founded by Pintu Burman, is a next-generation social media management platform designed to empower users to manage their digital footprints effortlessly. Pintu Burman envisioned Posttely as more than just a tool—it’s a complete ecosystem for creating, curating, and optimizing content across platforms.

From its inception, Posttely has aimed to bridge the gap between creativity and strategy, ensuring that users can focus on their content while the tool handles the complexities of scheduling, analytics, and audience engagement.

Key Features of Posttely

Posttely boasts a suite of powerful features tailored to meet the diverse needs of its users. Let’s dive into what makes this platform a top choice:

1. Multi-Platform Integration

Posttely supports seamless integration with all leading social media platforms, including Facebook, Instagram, Twitter, LinkedIn, and more. With a single dashboard, users can connect, monitor, and manage multiple accounts simultaneously.

2. Advanced Content Scheduling

Stay ahead of the game by scheduling posts days, weeks, or even months in advance. Posttely ensures that your content is published at the optimal time to maximize audience reach and engagement.

3. Analytics and Reporting

Measure the success of your campaigns with detailed analytics. Posttely provides insights into audience behavior, engagement rates, and post performance, helping you make data-driven decisions to refine your social media strategies.

4. Team Collaboration

For businesses and agencies, collaboration is key. Posttely allows team members to work together on content creation, approval workflows, and campaign management, ensuring smooth coordination and efficiency.

5. Template Library and Design Tools

No design experience? No problem! Posttely offers a library of professionally designed templates that you can customize to suit your brand’s needs. These tools make it easy to create stunning visuals that captivate your audience.

6. Post Previews Across Platforms

Consistency matters. With Posttely’s post preview feature, you can see exactly how your posts will appear on different platforms before hitting publish.

7. AI-Driven Suggestions

Leverage the power of AI to identify trending hashtags, suggest engaging keywords, and recommend content ideas that align with your target audience’s preferences.

8. Content Calendar

Plan and visualize your content strategy with Posttely’s interactive content calendar. This feature ensures that you never miss an important event or promotional opportunity.

9. Customer Support and Resources

Posttely offers unparalleled customer support, with a team available to assist users 24/7. Additionally, the platform includes a wealth of resources like tutorials, webinars, and blogs to help users get the most out of their experience.

Why Choose Posttely?

Posttely is more than just a tool—it’s a partner in your social media journey. Here’s why thousands of users trust Posttely:

Ease of Use: The intuitive interface makes it accessible for both beginners and professionals.

Customizable Plans: Tailor the platform to suit your unique requirements, from small businesses to enterprise-level operations.

Constant Innovation: Regular updates ensure that Posttely stays ahead of the curve, adapting to new trends and platform updates.

Affordability: Posttely provides a cost-effective solution without compromising on quality or features.

Who Can Benefit from Posttely?

Posttely is designed for a wide range of users, including:

Small Businesses: Boost your brand visibility and connect with your audience without hiring a full-time social media manager.

Marketing Agencies: Manage multiple client accounts efficiently with Posttely’s collaborative tools.

Content Creators and Influencers: Focus on creating great content while Posttely handles scheduling and analytics.

Enterprises: Streamline large-scale social media campaigns and foster team collaboration across departments.

Explore Posttely

Ready to elevate your social media game? Posttely has everything you need to stay organized, save time, and achieve your goals.

Visit Posttely's Website today to learn more about its features, pricing, and how it can transform your social media strategy. Experience the difference with Posttely—a tool designed to empower you to succeed.

https://www.posttely.com/

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में ही क्यों ली शरण?

#whybasharalassadtakenasylumin_russia

सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के अधिनायकवादी शासन का अंत हो गया।हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने 11 दिन के अंदर सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट कर दिया, इस बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद आनन-फानन में इस्तीफा देकर मॉस्को पहुंच गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तख्तापलट से पहले ही उनका परिवार भी मॉस्को पहुंच चुका था।

13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां?

सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना?

रूस असद के लिए सुरक्षित ठिकाना

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।

हालांकि, ईरान में इजाराइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।

रूस से सीरिया ने मांगी मदद

असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।

हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे।

2015 में असद सरकार गिरने वाली थी, लेकिन इसे रूस ने अवसर की तरह लिया और असद सरकार को बचाने के लिए सीधा दखल दे दिया। इसके साथ ही रूसी सेना की सीरिया में एंट्री हो गई और रूस की मिडिल ईस्ट में भी मौजूदगी आ गई। पिछले महीने तक रूस ने असद सरकार को सफलता पूर्वक विद्रोहियों से बचा रखा था।

क्या फायदा हो रहा था रूस को?

साल 2015 में रूसी राष्‍ट्रपति ने हजारों की तादाद में सैनिक भेजकर राष्‍ट्रपति असद को मजबूत किया। सीरिया को सैन्य सहायता के बदले सीरियाई अधिकारियों ने रूस को हमीमिम में हवाई अड्डे और टार्टस में नौसैनिक अड्डे पर 49 साल का पट्टा दिया। इसके साथ ही रूस ने पूर्वी भूमध्य सागर में एक महत्वपूर्ण पैर जमा लिया था। ये अड्डे अफ्रीका में और बाहर रूसी सैन्य ठेकेदारों की आवाजाही के लिए अहम केंद्र बन गए थे।

बशर अल असद मिडिल ईस्‍ट में रूस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। रूस ने असद के लिए हर तरह से मदद की। अब असद के जाने के बाद रूस के लिए इसकी भरपाई मुश्किल होगी। यह रूस के लिए बड़ा झटका है।

पटपड़गंज से सिसोदिया की जगह अवध ओझा क्यों, सियासी मजबूरी या दांव?

#whyavadhojhafrompatparganjmanishsisodia_moves

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आम आदमी पार्टी ने अपनी दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। आम आदमी पार्टी की दूसरी लिस्ट में 20 उम्मीदवारों के नाम हैं। इस लिस्ट में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी में नंबर-2 माने जाने वाले दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीट बदल दी गई। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज से नहीं बल्कि जंगपुरा से मैदान में होंगे। वहीं, हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले शिक्षाविद् अवध ओझा को मनीष सिसोदिया की जगह पटपड़गंज से मैदान में उतारा गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मनीष सिसोदिया ने यह सीट क्यों बदली?

आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया को सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। केजरीवाल के साथ ‘परिवर्तन’ के दौर से मनीष सिसोदिया के रिश्ते हैं। अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया तो सिसोदिया उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। पटपड़गंज सीट को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। 2013, 2015 और 2020 के चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज सीट से विधायक चुने गए, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी सीट बदल दी है। माना जा रहा है कि सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने यह बड़ा फेर बदल किया है। सिसोदिया की सीट बदल कर और पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को उतारकर बड़ा सियासी दांव केजरीवाल ने चला है।

आंकड़ें क्या कहते हैं?

पतपड़गंज सीट पर पिछले 3 विधानसभा चुनाव से आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को चुनाव में जीत मिल रही थी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में हार जीत का अंतर कम था। मनीष सिसोदिया को 70163 वोट मिले थे वहीं बीजेपी के रविंदर सिंह नेगी को 66956 वोट मिले थे। मनीष सिसोदिया को 49.51 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार को 47.25 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के लक्ष्मण रावत को महज 1.98 प्रतिशत वोट ही मिले थे। मतगणना के दौरान कभी सिसोदिया तो कभी नेगी आगे दिखाई देते रहे। 10वें राउंड तक बीजेपी के प्रत्याशी पीछे चल रहे थे, लेकिन 11वें राउंड में उन्होंने काफी अंतर से बढ़त बना ली थी।

बतौर विधायक बहुत अधिक सक्रिय नहीं थे सिसोदिया

मनीष सिसोदिया पिछले 5 साल के दौरान लंबे समय तक जेल में रहे। उससे पहले भी वो शराब घोटाले और डिप्टी सीएम होने के कारण बहुत अधिक समय अपने क्षेत्र के लोगों को नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में आम आदमी पार्टी को एक आशंका थी कि कहीं उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल न बन जाए। सिसोदिया की जगह अवध ओझा को मैदान में उतारे जाने के पिछे इसे भी एक अहम कारण माना जा रहा है।

सियासी समीकरण के चलते बदली गई सीट

पटपड़गंज ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों का दबदबा है। इसके अलावा उत्तराखंडी वोटर भी बड़ी संख्या में है। केजरीवाल ने सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए पटपड़गंज सीट से सिसोदिया की जगह अवध ओझा पर विश्वास जताया है। अवध ओझा के उतरने से ब्राह्मण समाज के वोटों का सियासी लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा गुर्जर वोटों में भी सेंधमारी करने में ओझा सफल हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर वो कहते हैं कि गुर्जर समाज के लोगों से उनकी काफी अच्छी दोस्ती है और वो उनके लिए हमेंशा तन मन धन से तैयार रहते हैं। कई वीडियो में ओझा खुलकर गुर्जर समाज की तारीफ करते नजर आते हैं। पटपड़गंज इलाके में काफी कोचिंग सेंटर चलते हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग प्रतियोगी परीक्षा और सीए की तैयारी करते हैं। माना जा रहा है कि अवध को इसीलिए आम आदमी पार्टी ने पटपड़गंज से प्रत्याशी बनाया है।

समंदर' बनकर वापस लौटे फडणवीस, बीजेपी के लिए क्यों जरूरी बने देवेंद्र

#whybjpchoosedevendrafadnavismaharashtracm

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विधानसभा सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने शायराना अंदाज में कहा था कि ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजों के 12 दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर खाफी खींचतान भी हुई। आखिरकर फडणवीस ने बाजी मार ली। सारी बाधाओं को तोड़ता हा 'समंदर' वापस आ गया।

बुधवार को मुंबई में पर्यवेक्षक विजय रूपाणी और निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया गया है। वे तीसरी बार महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। वे पिछले एक दशक से महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा बने हुए हैं। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद 12 दिनों के भीतर राजनीतिक गलियारों में इस बात की बहुत चर्चा थी कि भारतीय जनता पार्टी अंतिम समय में कुछ सरप्राइज दे सकती है। पार्टी फडणवीस की जगह किसी ओबीसी नाम को सामने ला सकती है।

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाए जाने का इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर कई बार किया जा चुका था। पर जिस तरह पिछले कुछ सालों में मुख्यमंत्रियों के नामों के फैसले बीजेपी में हुए हैं उसके चलते रानजीतिक गलियारों में अफवाहों के बाजार गर्म थे।मध्यप्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को किनारे लगा दिया, जिस तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे का पत्ता साफ हुआ उसे देखते हुए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगने में थोड़ा संदेह तो सभी को नजर आ रहा था। इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस का ब्राह्मण होना वर्तमान राजनीतिक माहौल में सीएम पद के लिए सबसे नेगेटिव बन जा रहा था। हालांकि, काफी खींचतान के बाद बीजेपी ने संघ के गढ़ से आने वाले ब्राहाण चेहरे पर भरोसा जताते हुए फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई। ऐसे में सवाल है कि आखिरकार देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी क्यों दरकिनार नहीं कर सकी?

महाराष्ट्र में क्यों जरूरी फडणवीस

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति दूसरे राज्यों से अलग है। बीते कुछ सालों का इतिहास देखें तो वहां किसी भी समय कोई भी पार्टी किसी भी पाले में जा सकती है। ऐसी स्थिति में देवेंद्र फडणवीस ही एक ऐसे नेता है जो साम दाम दंड भेद लगाकर सरकार को चलाने की कूवत रखते हैं। बता करें 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से की, तो 2019 विधानसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी को दगा देते हुए शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने की जिद पकड़ ली थी तब फडणवीस ने शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञ को मात देकर सरकार बनाई थी। एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया और 80 घंटे के अंदर खेल हो गया। हालांकि, “हार” कर भी फड़णवीस जीत गए थे। फडणवीस ने पवार परिवार में आग सुलगाने का काम कर ही दिया था।

उस वक्त केवल देवेन्द्र फडणवीस को ही झटका नहीं लगा था। अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता की चाबी भाजपा के पास आ गई थी। इस वक्त, देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया। फडणवीस चुप रहे।

शिवसेना-एनसीपी टूट का दोष फडणवीस पर

शिवसेना और एनसीपी जब दो फाड़ हुई तो इसका सारा दोष फडणवीस पर मढा गया। उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक करियर खत्म करने की धमकी दी थी। इस दौरान उन्होंने स्वयं को बचाए रखा और बीजेपी को दोबारा सत्ता में कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद देवेंद्र फडणवीस ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। इसके बाद बीजेपी आलाकमान ने उन्हें पद बने रहने को कहा।

पार्टी के प्रति समर्पण भाव से जीता भरोसा

फडणवीस देश के कुछ चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं जिन्होंने लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने पर इस्तीफे की पेशकश की। फिर विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को दूसरी बार अधिकतम सीटें दिलवाने वाले नेता ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के कहने पर अपने से एक बहुत जूनियर शख्स के नीचे डिप्टी सीएम बनना भी स्वीकार कर लिया। यही नहीं सीनियर होने के बावजूद , पार्टी और शासन में तगड़ी पकड़ रखते हुए भी कभी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिकायत का मौका नहीं दिया। पार्टी के प्रति समर्पण का जो उदाहारण देवेंद्र फडणवीस ने रखा है वो बिरले ही देखने को मिलता है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी के वह भरोसमंद बनकर उभरे हैं।

बढ़ती लोकप्रियता

बीजेपी ने उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाकर ही उन्हें प्रचार अभियान का जिम्मा सौंपा था। इसके अलावा सबसे अधिक रैलियां और सभाएं उन्होंने की। ऐसे में अगर उन्हें साइडलाइन कर किसी को सीएम बनाया जाता तो पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ता।

संघ की पहली पसंद

फडणवीस संघ के अंदर भी लोकप्रिय हैं। उन पर संघ भी भरोसा जताता आया है।फडणवीस संघ की विचारधारा के बीच पले-बढ़े हैं। उनके पिता भी संघ से जुड़े हुए थे। आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है। जिस राज्य में संघ की नींव रखी गई, आज उसी की बागडोर स्वयंसेवक के हाथ में तीसरी बार दी जाने वाली है।

शांति का नोबेल...फिर अशांत बांग्लादेश को क्यों नहीं संभाल पा रहे मोहम्मद यूनुस?

#bangladeshwhyisstillnotstablemuhammad_yunus

बांग्लादेश में अगस्त में तख्तापलट हुआ था। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रदर्शन हो रहे थे। अगस्त में प्रदर्शन इतना भयावह हो गया कि शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश के हालात बेहतर होंगे। अगस्त के बाद यानी शेख हसीना के जाने के बाद चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल बद से बद्दतर होते जा रहे हैं। यूनुस सरकार से बांग्लादेश नहीं संभल रहा। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। न केवल हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा, बल्कि हिंदुओं पर अत्याचार भी हो रहे हैं। इस हालात में मोहम्मदपर ये कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था।”

बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया में सवेल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस सरकार क्या कर रही है? किसके इशारे पर यूनुस हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले करवा रहे हैं? क्यों वह इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है? कुछ तो यूनुस के शांति के नोबेल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।

कट्टरपथियों को बढ़ावा दे रही

बांग्लादेश में 4 अगस्त के बाद से कट्टरपंथियों का राज कायम हो गया है। मोहम्मद यूनुस इन इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। हिंदुओं पर हमले के 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम रही है। कट्टरपथियों को बढ़ावा देने और उनके सामने घुटने टेकने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा सरकार की इस वक्त पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।

हमलों के पीछे किनका हाथ?

अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए। चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है। इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं।

अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे। इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए।

यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से रिश्तों के मायने

एक बड़ी चिंता ये है कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। कम से कम उनके हालिया राजनैतिक फैसलों से यही झलकता है। अंतरिम सरकार के लीडर बतौर उन्होंने इस गुट पर लगी पाबंदियां हटा दीं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी राजनैतिक गुट है, जिसके खिलाफ खुद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उसके चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। पॉलिटिकल गतिविधियों के अलावा वो कोई सभा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन अंतरिम सरकार के आते ही उसपर से सारी रोकटोक खत्म हो गई।

हेफाजत-ए-इस्लाम से भी मेल-मिलाप

हेफाजत-ए-इस्लाम भी एक कट्टरपंथी संगठन है, जिससे यूनुस से रिश्ते सामने आ रहे हैं। इस गुट की विचारधारा महिलाओं के बिल्कुल खिलाफ है, यहां तक कि इसके नेता भी अपनी भारत-विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। यूनुस का हाल में इन नेताओं से संपर्क बढ़ा है। अगस्त 2024 में, उन्होंने इसके नेता ममनुल हक से मुलाकात की थी।

Save on Every Category, Every Day: ProLooterz Keeps India’s Middle Class Shopping Smarter

For millions of Indian families, smart shopping isn’t just a choice—it’s a necessity. The rising cost of living, coupled with the ever-increasing demands of daily life, means finding the best deals can make all the difference. Enter ProLooterz, a game-changing platform that’s helping India’s middle class save big on everything from gadgets to groceries, every single day.

 

Revolutionizing Savings for Everyday Needs

ProLooterz was built to solve a common problem: the hassle of hunting for reliable deals. By focusing on quality discounts across trusted platforms like Amazon, Flipkart, and Myntra, ProLooterz ensures that users don’t have to wait for seasonal sales to get value for their money.

 With over 1.8 million subscribers across WhatsApp and Telegram, the platform has created a thriving community of bargain hunters who rely on ProLooterz for real-time updates on the best discounts available.

 

Savings Beyond Seasons

What sets ProLooterz apart is its commitment to year-round savings. Whether it’s a new smartphone, a trendy kitchen appliance, or your daily grocery haul, the platform brings you exclusive deals every day. ProLooterz makes it easier to shop smarter, ensuring that middle-class families don’t have to compromise on quality while staying within budget.

 Their strategy is simple but effective: by providing real-time alerts through WhatsApp and Telegram channels, ProLooterz ensures you never miss a deal. And because they only share links from trusted sources, shoppers can feel confident in every purchase.

 

Supporting Local and Building Trust

ProLooterz isn’t just a boon for shoppers; it’s also a platform for boosting Indian businesses. By promoting products from local sellers and smaller brands, ProLooterz aligns itself with India’s vision of Atmanirbhar Bharat.

Unlike many startups chasing funding, ProLooterz is completely bootstrapped. The founders’ dedication to building trust and transparency has earned them a loyal following and a verified Instagram page that keeps users connected to the latest deals.

 

Smarter Shopping, Made Simple

As ProLooterz gears up for the launch of its dedicated e-commerce platform, the brand is poised to make shopping even more seamless. With the promise of daily discounts across categories, ProLooterz is redefining how India’s middle class shops online.

So why wait for the next sale? Join ProLooterz’s growing community on WhatsApp and Telegram, and discover the smarter way to save—every single day.

 

Join here: https://dukaan.store/

Pawans Marketing About Us

Why Choose Pawans Marketing?

●   Experienced Professionals in Paid Advertising:

With more than five years of experience, Pawans Marketing has learned the art and science of generating leads through paid ads.

They are experts at Meta Ads, which incorporate both Facebook and Instagram, as well as Google Ads, allowing their campaigns to maximize reach and engagement among your audience, from investors to first-time homebuyers or high-net-worth  individuals.

Great performance with a documented history of positive ROIs, and committed ad spend.

●   Data-Driven Strategies for Maximum ROI:

Every marketing dollar matters. At Pawans Marketing, we do not rely on gut     feel but operate on data. With over ₹50 lakhs being managed every month in ad budget, we learn the art of extracting maximum ROI from the campaign.    With complete transparency, we work right within your ad accounts, where

you have complete access to all the dollars spent and leads generated.

The Pawans Marketing Process -

1. Optimized Budget Allocation: We ensure that your budget is strategically distributed across platforms and campaigns to maximize returns.

2. Comprehensive A/B Testing: Everything from the ad creatives to the targeting   and messaging is relentlessly tested to identify the right setup for your campaign.

3. Advanced Lead Qualification: Quality, not quantity, matters here. Our lead

qualification processes are not just about volume; they ensure every lead is quality and conversion-ready.

4. Omnichannel Marketing Integration: Seamless experience across Google, WhatsApp, and Email to keep your brand consistent and available at all

touchpoints.

5. Conversion Optimization: It is beyond lead generation. Conversion optimization comes from increased strength in landing pages and lead nurturing that provides interesting opportunities and adds revenue.

BS Energy Vehicle Limited: A Rising Multibagger Stock

New Delhi, India – BS Energy Vehicle Limited, a promising player in the automotive industry, is all set to launch its Initial Public Offering (IPO) in the financial year 2025. This exciting development marks a significant milestone for the company, which has been gaining tremendous momentum in recent months. The stock is being closely watched by investors, as its value has soared from just INR 70 per share to INR 350-400 in only 15 days, reflecting its impressive growth trajectory.

IPO Details and Valuation

BS Energy Vehicle Limited, which was incorporated on July 28, 2020, has emerged as a strong contender in the automotive sector. The company, engaged in the manufacture of motor vehicles, is now preparing to offer its shares to the public at a price of INR 1400 per share through its IPO. Despite the IPO price being set at INR 1400, the current stock price remains a bargain at INR 350-400, which means investors still have time to make profitable returns before the public listing.

Strategic Partnership and Buyout

In a strategic move to expand its market presence, BS Energy Vehicle is witnessing keen interest from two of India's largest companies. These industry giants are eager to acquire a 50% stake in the company, with one already finalizing the deal. This partnership further enhances BS Energy Vehicle’s potential and positions it for exponential growth in the years to come.

Company Background

BS Energy Vehicle Private Limited is classified as a private company and is registered with the Registrar of Companies, Delhi. The company, with an authorized share capital of INR 1.5 million, has quickly made a name for itself in the motor vehicle manufacturing sector. Despite its young age, the company has attracted significant attention for its innovation and growth potential.

The company’s directors, Vishal Abrol and Sonia Abrol, bring years of experience in the automotive and business sectors, guiding the company towards success. As of the last filing, the company’s balance sheet was submitted on March 31, 2023, showing strong financial performance.

Why Invest in BS Energy Vehicle Limited?

BS Energy Vehicle has emerged as a multibagger stock, meaning its value has the potential to multiply many times over. With a dynamic leadership team, strategic industry partnerships, and a clear focus on expanding its operations, the company is poised for long-term success. The recent surge in stock price, from INR 70 to INR 350-400 in just 15 days, indicates investor confidence and market demand.

Investors looking for high-profit opportunities may find this an ideal time to invest, as the stock price could rise even further before the IPO is launched. With a valuation set at INR 1400 per share, those who act early stand to benefit from significant returns.

Future Outlook

Looking ahead, BS Energy Vehicle Limited is on a solid growth trajectory. The upcoming IPO and strategic partnerships with major Indian companies will not only fuel the company's expansion but also enhance its position as a leader in the automotive manufacturing sector. With the company’s impressive stock performance, upcoming IPO, and buyout talks, BS Energy Vehicle Limited represents an exciting opportunity for investors.

About BS Energy Vehicle Limited:

BS Energy Vehicle Limited, founded on July 28, 2020, is a leading manufacturer of motor vehicles in India. The company is classified as a non-government private entity and has made significant strides in the automotive industry, attracting key industry players and investors alike.

*বড়মার মন্দিরে এলেন দেব*

সোমবার নৈহাটি বড়মার মন্দিরে পুজো দিলেন অভিনেতা তথা তৃণমূল কংগ্রেসের সাংসদ দেব ।

 

भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहा बीएनपी, बांग्लादेश के लिए “Boycott India” कितना मुश्किल
#boycott_india_reason_why_it_is_not_possible_for_bangladesh
* शेख हसीना के तख्तापलट और नई अंतरिम सरकार के गठन के बाद बांग्लादेश ने एक अलग ही राह पकड़ ली है। वो राह जो भारत से दूर करता है। बीते कुछ दिनों से लगातार भारत के खिलाफ मुखर बांग्लादेश अब हदों को पार करता हुआ नजर आ रहा है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के महासचिव ने अपनी पत्नी का भारतीय साड़ी जलाने के साथ ऐलान किया कि मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स का बायकाट किया जाएगा। बांग्लादेश, भारत से आने वाली किसी भी सामान का बहिष्कार करेगा। हालांकि, ये तकनीकि रूप से असंभव सा है। बांग्लादेश की जैसी भौगोलिक स्थिति है, उसमें भारत के साथ उसके संबंध काफ़ी अहम हो जाते हैं। बांग्लादेश को 'इंडिया लॉक्ड' मुल्क कहा जाता है। दरसअल, बांग्लादेश की 94 प्रतिशत सीमा भारत से लगती है। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,367 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है और यह उसकी अंतरराष्ट्रीय सीमा का 94 फ़ीसदी है। यानी बांग्लादेश लगभग चारों तरफ़ से भारत से घिरा हुआ है। ऐसे में बांग्लादेश सुरक्षा और व्यापार के मामले में भारत पर निर्भर है। हाल ही में बीएनपी के महासचिव ने रूहुल कबीर रिजवी ने अपनी पत्नी की भारत से ली हुई साड़ी जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। रिज़वी ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि भारतीय प्रोडक्ट्स का समर्थन करने के बजाय हमें अपनी अर्थव्यवस्था में निवेश करना चाहिए। वहीं उनका ये भी मानना है कि भारतीय प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट शांतिपूर्वक लेकिन सबसे ताकतवर जवाब है। रिजवी के मुताबिक चाहे हम (बांग्लादेशी आवाम)दिन में एक ही बार खाना खा पाएं लेकिन उसके बाद भी हम गर्व से खड़े होंगे और आत्मनिर्भर रहेंगे। *किस हद तक निर्भरता?* बीएनपी का ये “बायकाट इंडिया” का आह्वान बड़ा ही हास्यास्पद है।बांग्लादेश चावल, गेहूं, प्याज, लहसुन, चीनी, कॉटन, अनाज, रिफाइंड पेट्रोलियम, इलेक्ट्रिक उपकरण, प्लास्टिक और इस्पात के लिए भारत पर निर्भर है। बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग भारत से जाने वाले कच्चे माल पर निर्भर है। अगर भारत से बांग्लादेश का संबंध और बिगड़ता है तो उसका निर्यात प्रभावित होगा। इसका असर जीडीपी पर पड़ेगा और फिर महंगाई के साथ बेरोज़गारी बढ़ेगी। बांग्लादेश के लिए भारत से संबंध खराब होने की कीमत चुकाना आसान नहीं होगा। *एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार* बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। बांग्लादेश एशिया में सबसे ज़्यादा निर्यात भारत में करता है। बांग्लादेश ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में दो अरब डॉलर का निर्यात किया था। वित्त वर्ष 2022-23 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 15.9 अरब डॉलर का था। 2021 में बांग्लादेश में भारत का निर्यात 14 अरब डॉलर का था जो कि 2022 में 13.8 अरब डॉलर था। 2023 में यह घटकर 11.3 अरब डॉलर हो गया। बांग्लादेश में भारत के निर्यात कम होने के पीछे की मुख्य वजह मांगों में आई कमी थी। जानकार बताते हैं कि मांग में ये कमी रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग से सप्लाई चेन में आई बाधा के कारण हुई। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के पहले वाले दौर में अब भी नहीं आ पाई है। इसी बीच शेख़ हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा। भारत के साथ ख़राब होते संबंधों के कारण बांग्लादेश को आर्थिक मोर्चे पर एक और चोट लग सकती है। *पाक-चीन के करीब आ रहा बांग्लादेश* पिछले महीने ही पाकिस्तान का एक मालवाहक पोत कराची से बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित चटगांव बंदरगाह पर पहुँचा था। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच यह पहला समुद्री संपर्क हुआ था। इससे पहले दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या कोलंबो के जरिए होता था। यह पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ने की ठोस शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। बांग्लादेश में निवेश का चीन सबसे बड़ा स्रोत है। बांग्लादेश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। चीन ने बांग्लादेश में सात अरब डॉलर का निवेश किया है और 2023 में चीन ने बांग्लादेश में 22 अरब डॉलर का निर्यात किया था। *क्या भारत की जगह कोई और ले सकता है?* हालांकि, पिछले डेढ़ दशक में बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति की जो राह पकड़ी थी, वो राह भारत से ख़राब होते संबंधों के कारण अड़चनों से भरती दिख रही है। भारत एक बड़ा मुल्क है। किसी छोटे देश से संबंध बिगड़ता है तो बड़े पर असर कम पड़ता है। पाकिस्तान से पिछले सात सालों से भारत के राजनयिक संबंध नहीं हैं लेकिन इसका असर भारत पर नहीं पड़ा। पाकिस्तान पर ज़रूर पड़ा है। भारत से जो सामान जिस क़ीमत में बांग्लादेश पहुँचता है, उस क़ीमत में कोई भी देश नहीं दे सकता है। भारत से बांग्लादेश सामान जाने में परिवहन का खर्च कम होता है लेकिन वही सामान चीन से आएगा या दूसरे देशों से तो ज़्यादा महंगा हो जाएगा। अगर बांग्लादेश को ये बर्दाश्त है तो ठीक है। बांग्लादेश के लिए भारत जो मायने रखता है, उसकी भरपाई चीन नहीं कर सकता है
Best AI Powered Social Media Management Tool

 

In today’s hyper-connected world, social media has become an indispensable tool for businesses, influencers, and individuals alike. Managing multiple social media platforms can be overwhelming, but advanced tools like Posttely are here to revolutionize the way we handle social media management.Whether you are a marketer aiming to grow your brand, an influencer striving to boost your engagement, or a business seeking a seamless online presence, Posttely offers a one-stop solution to all your social media needs.

About Posttely

Posttely, founded by Pintu Burman, is a next-generation social media management platform designed to empower users to manage their digital footprints effortlessly. Pintu Burman envisioned Posttely as more than just a tool—it’s a complete ecosystem for creating, curating, and optimizing content across platforms.

From its inception, Posttely has aimed to bridge the gap between creativity and strategy, ensuring that users can focus on their content while the tool handles the complexities of scheduling, analytics, and audience engagement.

Key Features of Posttely

Posttely boasts a suite of powerful features tailored to meet the diverse needs of its users. Let’s dive into what makes this platform a top choice:

1. Multi-Platform Integration

Posttely supports seamless integration with all leading social media platforms, including Facebook, Instagram, Twitter, LinkedIn, and more. With a single dashboard, users can connect, monitor, and manage multiple accounts simultaneously.

2. Advanced Content Scheduling

Stay ahead of the game by scheduling posts days, weeks, or even months in advance. Posttely ensures that your content is published at the optimal time to maximize audience reach and engagement.

3. Analytics and Reporting

Measure the success of your campaigns with detailed analytics. Posttely provides insights into audience behavior, engagement rates, and post performance, helping you make data-driven decisions to refine your social media strategies.

4. Team Collaboration

For businesses and agencies, collaboration is key. Posttely allows team members to work together on content creation, approval workflows, and campaign management, ensuring smooth coordination and efficiency.

5. Template Library and Design Tools

No design experience? No problem! Posttely offers a library of professionally designed templates that you can customize to suit your brand’s needs. These tools make it easy to create stunning visuals that captivate your audience.

6. Post Previews Across Platforms

Consistency matters. With Posttely’s post preview feature, you can see exactly how your posts will appear on different platforms before hitting publish.

7. AI-Driven Suggestions

Leverage the power of AI to identify trending hashtags, suggest engaging keywords, and recommend content ideas that align with your target audience’s preferences.

8. Content Calendar

Plan and visualize your content strategy with Posttely’s interactive content calendar. This feature ensures that you never miss an important event or promotional opportunity.

9. Customer Support and Resources

Posttely offers unparalleled customer support, with a team available to assist users 24/7. Additionally, the platform includes a wealth of resources like tutorials, webinars, and blogs to help users get the most out of their experience.

Why Choose Posttely?

Posttely is more than just a tool—it’s a partner in your social media journey. Here’s why thousands of users trust Posttely:

Ease of Use: The intuitive interface makes it accessible for both beginners and professionals.

Customizable Plans: Tailor the platform to suit your unique requirements, from small businesses to enterprise-level operations.

Constant Innovation: Regular updates ensure that Posttely stays ahead of the curve, adapting to new trends and platform updates.

Affordability: Posttely provides a cost-effective solution without compromising on quality or features.

Who Can Benefit from Posttely?

Posttely is designed for a wide range of users, including:

Small Businesses: Boost your brand visibility and connect with your audience without hiring a full-time social media manager.

Marketing Agencies: Manage multiple client accounts efficiently with Posttely’s collaborative tools.

Content Creators and Influencers: Focus on creating great content while Posttely handles scheduling and analytics.

Enterprises: Streamline large-scale social media campaigns and foster team collaboration across departments.

Explore Posttely

Ready to elevate your social media game? Posttely has everything you need to stay organized, save time, and achieve your goals.

Visit Posttely's Website today to learn more about its features, pricing, and how it can transform your social media strategy. Experience the difference with Posttely—a tool designed to empower you to succeed.

https://www.posttely.com/

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में ही क्यों ली शरण?

#whybasharalassadtakenasylumin_russia

सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के अधिनायकवादी शासन का अंत हो गया।हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने 11 दिन के अंदर सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट कर दिया, इस बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद आनन-फानन में इस्तीफा देकर मॉस्को पहुंच गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तख्तापलट से पहले ही उनका परिवार भी मॉस्को पहुंच चुका था।

13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां?

सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना?

रूस असद के लिए सुरक्षित ठिकाना

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।

हालांकि, ईरान में इजाराइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।

रूस से सीरिया ने मांगी मदद

असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।

हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे।

2015 में असद सरकार गिरने वाली थी, लेकिन इसे रूस ने अवसर की तरह लिया और असद सरकार को बचाने के लिए सीधा दखल दे दिया। इसके साथ ही रूसी सेना की सीरिया में एंट्री हो गई और रूस की मिडिल ईस्ट में भी मौजूदगी आ गई। पिछले महीने तक रूस ने असद सरकार को सफलता पूर्वक विद्रोहियों से बचा रखा था।

क्या फायदा हो रहा था रूस को?

साल 2015 में रूसी राष्‍ट्रपति ने हजारों की तादाद में सैनिक भेजकर राष्‍ट्रपति असद को मजबूत किया। सीरिया को सैन्य सहायता के बदले सीरियाई अधिकारियों ने रूस को हमीमिम में हवाई अड्डे और टार्टस में नौसैनिक अड्डे पर 49 साल का पट्टा दिया। इसके साथ ही रूस ने पूर्वी भूमध्य सागर में एक महत्वपूर्ण पैर जमा लिया था। ये अड्डे अफ्रीका में और बाहर रूसी सैन्य ठेकेदारों की आवाजाही के लिए अहम केंद्र बन गए थे।

बशर अल असद मिडिल ईस्‍ट में रूस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। रूस ने असद के लिए हर तरह से मदद की। अब असद के जाने के बाद रूस के लिए इसकी भरपाई मुश्किल होगी। यह रूस के लिए बड़ा झटका है।

पटपड़गंज से सिसोदिया की जगह अवध ओझा क्यों, सियासी मजबूरी या दांव?

#whyavadhojhafrompatparganjmanishsisodia_moves

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आम आदमी पार्टी ने अपनी दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। आम आदमी पार्टी की दूसरी लिस्ट में 20 उम्मीदवारों के नाम हैं। इस लिस्ट में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी में नंबर-2 माने जाने वाले दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीट बदल दी गई। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज से नहीं बल्कि जंगपुरा से मैदान में होंगे। वहीं, हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले शिक्षाविद् अवध ओझा को मनीष सिसोदिया की जगह पटपड़गंज से मैदान में उतारा गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मनीष सिसोदिया ने यह सीट क्यों बदली?

आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया को सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। केजरीवाल के साथ ‘परिवर्तन’ के दौर से मनीष सिसोदिया के रिश्ते हैं। अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया तो सिसोदिया उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। पटपड़गंज सीट को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। 2013, 2015 और 2020 के चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज सीट से विधायक चुने गए, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी सीट बदल दी है। माना जा रहा है कि सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने यह बड़ा फेर बदल किया है। सिसोदिया की सीट बदल कर और पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को उतारकर बड़ा सियासी दांव केजरीवाल ने चला है।

आंकड़ें क्या कहते हैं?

पतपड़गंज सीट पर पिछले 3 विधानसभा चुनाव से आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को चुनाव में जीत मिल रही थी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में हार जीत का अंतर कम था। मनीष सिसोदिया को 70163 वोट मिले थे वहीं बीजेपी के रविंदर सिंह नेगी को 66956 वोट मिले थे। मनीष सिसोदिया को 49.51 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार को 47.25 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के लक्ष्मण रावत को महज 1.98 प्रतिशत वोट ही मिले थे। मतगणना के दौरान कभी सिसोदिया तो कभी नेगी आगे दिखाई देते रहे। 10वें राउंड तक बीजेपी के प्रत्याशी पीछे चल रहे थे, लेकिन 11वें राउंड में उन्होंने काफी अंतर से बढ़त बना ली थी।

बतौर विधायक बहुत अधिक सक्रिय नहीं थे सिसोदिया

मनीष सिसोदिया पिछले 5 साल के दौरान लंबे समय तक जेल में रहे। उससे पहले भी वो शराब घोटाले और डिप्टी सीएम होने के कारण बहुत अधिक समय अपने क्षेत्र के लोगों को नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में आम आदमी पार्टी को एक आशंका थी कि कहीं उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल न बन जाए। सिसोदिया की जगह अवध ओझा को मैदान में उतारे जाने के पिछे इसे भी एक अहम कारण माना जा रहा है।

सियासी समीकरण के चलते बदली गई सीट

पटपड़गंज ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों का दबदबा है। इसके अलावा उत्तराखंडी वोटर भी बड़ी संख्या में है। केजरीवाल ने सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए पटपड़गंज सीट से सिसोदिया की जगह अवध ओझा पर विश्वास जताया है। अवध ओझा के उतरने से ब्राह्मण समाज के वोटों का सियासी लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा गुर्जर वोटों में भी सेंधमारी करने में ओझा सफल हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर वो कहते हैं कि गुर्जर समाज के लोगों से उनकी काफी अच्छी दोस्ती है और वो उनके लिए हमेंशा तन मन धन से तैयार रहते हैं। कई वीडियो में ओझा खुलकर गुर्जर समाज की तारीफ करते नजर आते हैं। पटपड़गंज इलाके में काफी कोचिंग सेंटर चलते हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग प्रतियोगी परीक्षा और सीए की तैयारी करते हैं। माना जा रहा है कि अवध को इसीलिए आम आदमी पार्टी ने पटपड़गंज से प्रत्याशी बनाया है।

समंदर' बनकर वापस लौटे फडणवीस, बीजेपी के लिए क्यों जरूरी बने देवेंद्र

#whybjpchoosedevendrafadnavismaharashtracm

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विधानसभा सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने शायराना अंदाज में कहा था कि ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजों के 12 दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर खाफी खींचतान भी हुई। आखिरकर फडणवीस ने बाजी मार ली। सारी बाधाओं को तोड़ता हा 'समंदर' वापस आ गया।

बुधवार को मुंबई में पर्यवेक्षक विजय रूपाणी और निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया गया है। वे तीसरी बार महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। वे पिछले एक दशक से महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा बने हुए हैं। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद 12 दिनों के भीतर राजनीतिक गलियारों में इस बात की बहुत चर्चा थी कि भारतीय जनता पार्टी अंतिम समय में कुछ सरप्राइज दे सकती है। पार्टी फडणवीस की जगह किसी ओबीसी नाम को सामने ला सकती है।

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाए जाने का इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर कई बार किया जा चुका था। पर जिस तरह पिछले कुछ सालों में मुख्यमंत्रियों के नामों के फैसले बीजेपी में हुए हैं उसके चलते रानजीतिक गलियारों में अफवाहों के बाजार गर्म थे।मध्यप्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को किनारे लगा दिया, जिस तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे का पत्ता साफ हुआ उसे देखते हुए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगने में थोड़ा संदेह तो सभी को नजर आ रहा था। इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस का ब्राह्मण होना वर्तमान राजनीतिक माहौल में सीएम पद के लिए सबसे नेगेटिव बन जा रहा था। हालांकि, काफी खींचतान के बाद बीजेपी ने संघ के गढ़ से आने वाले ब्राहाण चेहरे पर भरोसा जताते हुए फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई। ऐसे में सवाल है कि आखिरकार देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी क्यों दरकिनार नहीं कर सकी?

महाराष्ट्र में क्यों जरूरी फडणवीस

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति दूसरे राज्यों से अलग है। बीते कुछ सालों का इतिहास देखें तो वहां किसी भी समय कोई भी पार्टी किसी भी पाले में जा सकती है। ऐसी स्थिति में देवेंद्र फडणवीस ही एक ऐसे नेता है जो साम दाम दंड भेद लगाकर सरकार को चलाने की कूवत रखते हैं। बता करें 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से की, तो 2019 विधानसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी को दगा देते हुए शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने की जिद पकड़ ली थी तब फडणवीस ने शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञ को मात देकर सरकार बनाई थी। एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया और 80 घंटे के अंदर खेल हो गया। हालांकि, “हार” कर भी फड़णवीस जीत गए थे। फडणवीस ने पवार परिवार में आग सुलगाने का काम कर ही दिया था।

उस वक्त केवल देवेन्द्र फडणवीस को ही झटका नहीं लगा था। अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता की चाबी भाजपा के पास आ गई थी। इस वक्त, देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया। फडणवीस चुप रहे।

शिवसेना-एनसीपी टूट का दोष फडणवीस पर

शिवसेना और एनसीपी जब दो फाड़ हुई तो इसका सारा दोष फडणवीस पर मढा गया। उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक करियर खत्म करने की धमकी दी थी। इस दौरान उन्होंने स्वयं को बचाए रखा और बीजेपी को दोबारा सत्ता में कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद देवेंद्र फडणवीस ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। इसके बाद बीजेपी आलाकमान ने उन्हें पद बने रहने को कहा।

पार्टी के प्रति समर्पण भाव से जीता भरोसा

फडणवीस देश के कुछ चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं जिन्होंने लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने पर इस्तीफे की पेशकश की। फिर विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को दूसरी बार अधिकतम सीटें दिलवाने वाले नेता ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के कहने पर अपने से एक बहुत जूनियर शख्स के नीचे डिप्टी सीएम बनना भी स्वीकार कर लिया। यही नहीं सीनियर होने के बावजूद , पार्टी और शासन में तगड़ी पकड़ रखते हुए भी कभी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिकायत का मौका नहीं दिया। पार्टी के प्रति समर्पण का जो उदाहारण देवेंद्र फडणवीस ने रखा है वो बिरले ही देखने को मिलता है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी के वह भरोसमंद बनकर उभरे हैं।

बढ़ती लोकप्रियता

बीजेपी ने उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाकर ही उन्हें प्रचार अभियान का जिम्मा सौंपा था। इसके अलावा सबसे अधिक रैलियां और सभाएं उन्होंने की। ऐसे में अगर उन्हें साइडलाइन कर किसी को सीएम बनाया जाता तो पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ता।

संघ की पहली पसंद

फडणवीस संघ के अंदर भी लोकप्रिय हैं। उन पर संघ भी भरोसा जताता आया है।फडणवीस संघ की विचारधारा के बीच पले-बढ़े हैं। उनके पिता भी संघ से जुड़े हुए थे। आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है। जिस राज्य में संघ की नींव रखी गई, आज उसी की बागडोर स्वयंसेवक के हाथ में तीसरी बार दी जाने वाली है।

शांति का नोबेल...फिर अशांत बांग्लादेश को क्यों नहीं संभाल पा रहे मोहम्मद यूनुस?

#bangladeshwhyisstillnotstablemuhammad_yunus

बांग्लादेश में अगस्त में तख्तापलट हुआ था। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रदर्शन हो रहे थे। अगस्त में प्रदर्शन इतना भयावह हो गया कि शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश के हालात बेहतर होंगे। अगस्त के बाद यानी शेख हसीना के जाने के बाद चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल बद से बद्दतर होते जा रहे हैं। यूनुस सरकार से बांग्लादेश नहीं संभल रहा। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। न केवल हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा, बल्कि हिंदुओं पर अत्याचार भी हो रहे हैं। इस हालात में मोहम्मदपर ये कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था।”

बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया में सवेल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस सरकार क्या कर रही है? किसके इशारे पर यूनुस हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले करवा रहे हैं? क्यों वह इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है? कुछ तो यूनुस के शांति के नोबेल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।

कट्टरपथियों को बढ़ावा दे रही

बांग्लादेश में 4 अगस्त के बाद से कट्टरपंथियों का राज कायम हो गया है। मोहम्मद यूनुस इन इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। हिंदुओं पर हमले के 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम रही है। कट्टरपथियों को बढ़ावा देने और उनके सामने घुटने टेकने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा सरकार की इस वक्त पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।

हमलों के पीछे किनका हाथ?

अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए। चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है। इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं।

अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे। इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए।

यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से रिश्तों के मायने

एक बड़ी चिंता ये है कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। कम से कम उनके हालिया राजनैतिक फैसलों से यही झलकता है। अंतरिम सरकार के लीडर बतौर उन्होंने इस गुट पर लगी पाबंदियां हटा दीं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी राजनैतिक गुट है, जिसके खिलाफ खुद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उसके चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। पॉलिटिकल गतिविधियों के अलावा वो कोई सभा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन अंतरिम सरकार के आते ही उसपर से सारी रोकटोक खत्म हो गई।

हेफाजत-ए-इस्लाम से भी मेल-मिलाप

हेफाजत-ए-इस्लाम भी एक कट्टरपंथी संगठन है, जिससे यूनुस से रिश्ते सामने आ रहे हैं। इस गुट की विचारधारा महिलाओं के बिल्कुल खिलाफ है, यहां तक कि इसके नेता भी अपनी भारत-विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। यूनुस का हाल में इन नेताओं से संपर्क बढ़ा है। अगस्त 2024 में, उन्होंने इसके नेता ममनुल हक से मुलाकात की थी।

Save on Every Category, Every Day: ProLooterz Keeps India’s Middle Class Shopping Smarter

For millions of Indian families, smart shopping isn’t just a choice—it’s a necessity. The rising cost of living, coupled with the ever-increasing demands of daily life, means finding the best deals can make all the difference. Enter ProLooterz, a game-changing platform that’s helping India’s middle class save big on everything from gadgets to groceries, every single day.

 

Revolutionizing Savings for Everyday Needs

ProLooterz was built to solve a common problem: the hassle of hunting for reliable deals. By focusing on quality discounts across trusted platforms like Amazon, Flipkart, and Myntra, ProLooterz ensures that users don’t have to wait for seasonal sales to get value for their money.

 With over 1.8 million subscribers across WhatsApp and Telegram, the platform has created a thriving community of bargain hunters who rely on ProLooterz for real-time updates on the best discounts available.

 

Savings Beyond Seasons

What sets ProLooterz apart is its commitment to year-round savings. Whether it’s a new smartphone, a trendy kitchen appliance, or your daily grocery haul, the platform brings you exclusive deals every day. ProLooterz makes it easier to shop smarter, ensuring that middle-class families don’t have to compromise on quality while staying within budget.

 Their strategy is simple but effective: by providing real-time alerts through WhatsApp and Telegram channels, ProLooterz ensures you never miss a deal. And because they only share links from trusted sources, shoppers can feel confident in every purchase.

 

Supporting Local and Building Trust

ProLooterz isn’t just a boon for shoppers; it’s also a platform for boosting Indian businesses. By promoting products from local sellers and smaller brands, ProLooterz aligns itself with India’s vision of Atmanirbhar Bharat.

Unlike many startups chasing funding, ProLooterz is completely bootstrapped. The founders’ dedication to building trust and transparency has earned them a loyal following and a verified Instagram page that keeps users connected to the latest deals.

 

Smarter Shopping, Made Simple

As ProLooterz gears up for the launch of its dedicated e-commerce platform, the brand is poised to make shopping even more seamless. With the promise of daily discounts across categories, ProLooterz is redefining how India’s middle class shops online.

So why wait for the next sale? Join ProLooterz’s growing community on WhatsApp and Telegram, and discover the smarter way to save—every single day.

 

Join here: https://dukaan.store/

Pawans Marketing About Us

Why Choose Pawans Marketing?

●   Experienced Professionals in Paid Advertising:

With more than five years of experience, Pawans Marketing has learned the art and science of generating leads through paid ads.

They are experts at Meta Ads, which incorporate both Facebook and Instagram, as well as Google Ads, allowing their campaigns to maximize reach and engagement among your audience, from investors to first-time homebuyers or high-net-worth  individuals.

Great performance with a documented history of positive ROIs, and committed ad spend.

●   Data-Driven Strategies for Maximum ROI:

Every marketing dollar matters. At Pawans Marketing, we do not rely on gut     feel but operate on data. With over ₹50 lakhs being managed every month in ad budget, we learn the art of extracting maximum ROI from the campaign.    With complete transparency, we work right within your ad accounts, where

you have complete access to all the dollars spent and leads generated.

The Pawans Marketing Process -

1. Optimized Budget Allocation: We ensure that your budget is strategically distributed across platforms and campaigns to maximize returns.

2. Comprehensive A/B Testing: Everything from the ad creatives to the targeting   and messaging is relentlessly tested to identify the right setup for your campaign.

3. Advanced Lead Qualification: Quality, not quantity, matters here. Our lead

qualification processes are not just about volume; they ensure every lead is quality and conversion-ready.

4. Omnichannel Marketing Integration: Seamless experience across Google, WhatsApp, and Email to keep your brand consistent and available at all

touchpoints.

5. Conversion Optimization: It is beyond lead generation. Conversion optimization comes from increased strength in landing pages and lead nurturing that provides interesting opportunities and adds revenue.

BS Energy Vehicle Limited: A Rising Multibagger Stock

New Delhi, India – BS Energy Vehicle Limited, a promising player in the automotive industry, is all set to launch its Initial Public Offering (IPO) in the financial year 2025. This exciting development marks a significant milestone for the company, which has been gaining tremendous momentum in recent months. The stock is being closely watched by investors, as its value has soared from just INR 70 per share to INR 350-400 in only 15 days, reflecting its impressive growth trajectory.

IPO Details and Valuation

BS Energy Vehicle Limited, which was incorporated on July 28, 2020, has emerged as a strong contender in the automotive sector. The company, engaged in the manufacture of motor vehicles, is now preparing to offer its shares to the public at a price of INR 1400 per share through its IPO. Despite the IPO price being set at INR 1400, the current stock price remains a bargain at INR 350-400, which means investors still have time to make profitable returns before the public listing.

Strategic Partnership and Buyout

In a strategic move to expand its market presence, BS Energy Vehicle is witnessing keen interest from two of India's largest companies. These industry giants are eager to acquire a 50% stake in the company, with one already finalizing the deal. This partnership further enhances BS Energy Vehicle’s potential and positions it for exponential growth in the years to come.

Company Background

BS Energy Vehicle Private Limited is classified as a private company and is registered with the Registrar of Companies, Delhi. The company, with an authorized share capital of INR 1.5 million, has quickly made a name for itself in the motor vehicle manufacturing sector. Despite its young age, the company has attracted significant attention for its innovation and growth potential.

The company’s directors, Vishal Abrol and Sonia Abrol, bring years of experience in the automotive and business sectors, guiding the company towards success. As of the last filing, the company’s balance sheet was submitted on March 31, 2023, showing strong financial performance.

Why Invest in BS Energy Vehicle Limited?

BS Energy Vehicle has emerged as a multibagger stock, meaning its value has the potential to multiply many times over. With a dynamic leadership team, strategic industry partnerships, and a clear focus on expanding its operations, the company is poised for long-term success. The recent surge in stock price, from INR 70 to INR 350-400 in just 15 days, indicates investor confidence and market demand.

Investors looking for high-profit opportunities may find this an ideal time to invest, as the stock price could rise even further before the IPO is launched. With a valuation set at INR 1400 per share, those who act early stand to benefit from significant returns.

Future Outlook

Looking ahead, BS Energy Vehicle Limited is on a solid growth trajectory. The upcoming IPO and strategic partnerships with major Indian companies will not only fuel the company's expansion but also enhance its position as a leader in the automotive manufacturing sector. With the company’s impressive stock performance, upcoming IPO, and buyout talks, BS Energy Vehicle Limited represents an exciting opportunity for investors.

About BS Energy Vehicle Limited:

BS Energy Vehicle Limited, founded on July 28, 2020, is a leading manufacturer of motor vehicles in India. The company is classified as a non-government private entity and has made significant strides in the automotive industry, attracting key industry players and investors alike.