गंगा की रेती पर साधना में लीन 300 कल्पवासी
![]()
काशी, विंध्य प्रयाग के मध्य सेमराध नाथ धाम में गंगा की रेती पर 300 कल्पवासी साधना में लीन हैं। माघ पूर्णिमा पर कल्पवास मेले का समापन होगा। इसके पहले तक यहां आध्यात्म की रसधार बहती रहेगी। जनपद समेत बिहार, मुंबई और गुजरात तक के कल्पवासी यहां पहुंचकर माह पर्यंत साधना करते हैं। 1996 में शुरू हुए इस कल्पवास मेले में हर साल कल्पवासियों की संख्या बढ़ती जा रही है। गंगा की रेती पर सज रही इस धार्मिक नगरी में साहित्य, आध्यात्म और भक्त का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। 14 जनवरी 1996 को पहली बार सेमराध नाथ की पावन धरती पर कल्पवास मेले का आयोजन शुरू हुआ। स्वामी राम शंकर दास ने काशी, विंध्य और प्रयाग के मध्य बिंदु पर एक महीने की आध्यात्मिक नगरी बसायी। शुरुआत में यहां कल्पवासियों की संख्या सीमित थी, लेकिन साल बीतने के साथ ही यहां कल्पवासियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस समय इस आध्यात्मिक आयोजन को सफल बनाने में स्वामी राम शंकर दास के परम शिष्य करुणा शंकर दास जी महाराज अपने सत प्रयास से जुटे हैं। समय के साथ प्रशासन का सहयोग भी बढ़ने लगा है। एक महीने तक बसने वाले इस आध्यात्मिक नगरी में प्रशासन की ओर से कल्पावासियों और श्रद्धालुओं की हर सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। गंगा की रेती पर पूरे माघ मास तक सीताराम संकीर्तन लगभग 7124 घंटों तक चलता है। इस साल मेले में 150 से अधिक टेंट लगाए गए हैं। जिसमें 300 कल्पवासी साधनारता है। विशेष स्नान पर्वों पर यहां लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते है।कल्पवास करने के दौरान आध्यात्मिक चिंतन तो होता ही है। पूरे यहां अलग-अलग आयोजन भी होते हैं। कल्पवासियों के दिन की शुरुआत सुबह चार बजे होती है। आध्यात्म के इस मंच पर साहित्य व और संस्कृति का भी संगम होता है। जिसमें काव्य पाठ, शास्त्रीय नृत्य का भी आयोजन होता है। सेमराध कल्पवास मेला 2025 में पहली बार हथिया बाबा चौराह बनाया गया जो काफी चर्चा में है।लोग स्वामी शंकर दास मार्ग से कल्पवास क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। जहां हथिया बाबा चौराहा पर पहुंचने पर यदि दाहिने जाएंगे तो लपोड़ी स्वामी मार्ग है जो चौराहा से पश्चिम जाता है। यदि चौराहा से पूरब की तरफ जाना हो तो स्वामी श्री नाथ जी मार्ग है। यदि सीधा गंगा की तरफ जाना है तो लोगों को मौनी मार्ग से गंगा तट तक पहुंचाना होगा। इस चौराहा और मार्गों का नामकरण महंत करुणा शंकर दास जी ने किया है।
Feb 10 2025, 18:34