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दिल्ली में मंदिरों पर होगा “बुलडोजर एक्शन”!, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार

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दिल्ली के मयूर विहार क्षेत्र में बुधवार रात उस समय भारी हंगामा हो गया। जब बुधवार रात तीन बजे तीन मंदिरों को तोड़ने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) टीम बुलडोजर लेकर पहुंची। डीडीए के साथ भारी सुरक्षा बल भी मौके पर पहुंचा। स्‍थानीय लोगों को इस मामले की जानकारी होते ही आक्रोश फैल गया। लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। लोगों ने डीडीए टीम का जमकर विरोध किया। हंगामे और नारेबाजी की सूचना पर पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज से भाजपा विधायक रविंद्र सिंह नेगी मौके पर पहुंच गए। इसके बाद विधायक रविंद्र सिंह नेगी सीएम रेखा गुप्ता को मामले की जानकारी दी। इसपर सीएम रेखा गुप्ता ने कार्रवाई को तत्‍काल रोकने का आदेश देकर डीडीए टीम को बैरंग लौटा दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

इस बीच डीडीए के नोटिस को लेकर लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते। वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि जहांगीर पुरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाई कोर्ट जाइए। इसी के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

देर रात दाखिल हुई याचिका को विशेष अनुरोध पर सुबह 3 जजों की बेंच के सामने सूचीबद्ध किया गया था। बेंच के अध्यक्ष जस्टिस विक्रम नाथ ने शुरू में याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन से दोपहर 2 बजे सुनवाई की बात कही। उन्होनें यह भी कहा कि वह अपनी याचिका की कॉपी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के वकील को दें ताकि वह इस पर पक्ष रख सकें, लेकिन इसके तुरंत बाद जस्टिस विक्रम नाथ ने अपने साथी जजों जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता से बात की और उनका रुख बदल गया। उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि उन्हें हाई कोर्ट जाना चाहिए।

35 साल पुराने हैं मंदिर

वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि बुधवार रात 9 बजे अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक नोटिस चिपकाया गया था। उन्हें सूचित किया गया था कि 20 मार्च 2025 को सुबह चार बजे मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाएगा। याचिका में कहा गया है कि डीडीए के किसी भी अधिकारी या किसी भी धार्मिक समिति द्वारा मंदिरों को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। याचिका में कहा गया है कि मंदिर 35 साल पुराने हैं।

ग्रीन बेल्ट में बने हैं तीनों मंदिर

दरअसल, दिल्ली के मयूर विहार फेज 2 क्षेत्र स्थित संजय झील पार्क में 3 मंदिर स्‍थापित हैं। स्‍थानीय निवासियों का कहना है कि ये मंदिर 40 साल पुराने हैं। जबकि डीडीए के हॉर्टिकल्चर विभाग इन मंदिरों को अवैध बता रहा है। डीडीए टीम का कहना था कि मंदिरों को ग्रीन बेल्ट में बनाया गया है।

किसी को 'मियां-तियां' या पाकिस्तानी कहना अपराध नहीं', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी


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सुप्रीम कोर्ट ने 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी को राहत दी है। कोर्ट ने धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में दर्ज केस निरस्त कर दिया है। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस तरह की बात कहने को असभ्यता कहा है, लेकिन उसके चलते मुकदमा चलाने को सही नहीं माना।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से शब्द आदि बोलना) के तहत आरोप से एक व्यक्ति को मुक्त कर दिया।कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पर उसे 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहकर उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है। अदालत ने कहा कि निस्संदेह, दिए गए कथन गलत है। हालाँकि, इससे याचिकाकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुचती है।

जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच झारखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता को आरोप मुक्त करने से इनकार कर दिया गया था। मामला उप-विभागीय कार्यालय, चास में एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क (सूचना का अधिकार) की तरफ से दर्ज एफआईआर से जुड़ा था।

यह मामला उस समय शुरू हुआ जब एक सरकारी कर्मचारी, जो कि उर्दू अनुवादक और सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत कार्यरत था, ने एक आदेश के तहत हरी नंदन सिंह को कुछ दस्तावेज सौंपे। आरोप के मुताबिक सिंह ने दस्तावेज स्वीकार करने में अनिच्छा दिखाई और इसके बाद कर्मचारी के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया। यह भी कहा गया कि उन्होंने सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहकर संबोधित किया और उसे डराने का प्रयास किया।

इस घटना के बाद सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई। हरी नंदन सिंह ने इस मामले में पहले सेशन कोर्ट और फिर राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन दोनों अदालतों ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। आखिर में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतिश चंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया कि इस मामले में धारा 298 लागू नहीं होती क्योंकि आरोपी की टिप्पणियां भले ही अनुचित थीं, लेकिन वे किसी विशेष धर्म के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से नहीं कही गई थीं।

रणवीर इलाहाबादिया को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, शो ऑन एयर करने की छूट, कोर्ट ने दी मर्यादा मे रहने की नसीहत

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सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर और पॉडकास्ट होस्ट रणवीर इलाहबादिया को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने इलाहाबादियो को उनका शो जारी रखने की इजजात दे दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत दी है कि वह शो को पब्लिश करते वक्त मर्यादाओं का ख्याल रखें। कोर्ट ने शर्त रखी कि रणवीर को एक अंडरटेकिंग देनी होगी, जिसमें वह यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके शो में नैतिकता का स्तर बना रहे, ताकि सभी उम्र के दर्शक इसे देख सकें।

रणवीर इलाहाबादिया कॉमेडियन और यूट्यूबर समय रैना के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ माता-पिता को लेकर अभद्र टिप्पणी को लेकर आलोचना झेल रहे हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल ने कहा है कि उन्होंने पूरा शो देखा है लेकिन इसमें कोई भी अभद्रता नहीं है लेकिन इसमें विकृति है। उन्होंने कहा कि हास्य एक चीज है, अश्लीलता एक चीज है। और विकृति दूसरे स्तर पर है।

सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहबादिया को अपने कार्यक्रम में शालीनता बनाए रखने की शर्त पर ‘द रणवीर शो’ का प्रसारण फिर से शुरू करने की अनुमति दी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि ये राहत इसलिए दी गई है क्योंकि इस शो से 280 लोगों की आजीविका जुड़ी है।

दरअसल, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहबादिया के शो 'द रणवीर शो' पर अगले आदेश तक किसी भी कंटेट को पब्लिश करने पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ रणवीर अल्लाहबादिया ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने अदालत में अर्जी दी थी कि उन्हें कुछ राहत दी जाए। उन्होंने कहा था कि उनके यहां 280 कर्मचारी काम करते हैं। यह उनकी रोजी रोटी से जुड़ा मामला है।

अश्लील कंटेंट को लेकर क्या कर रही सरकार, रणवीर अलाहाबादिया मामले के बीच सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आने वाली आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से सवाल किया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट के बारे में कुछ करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ तो यूट्यूबर रणवीर अलाहाबादिया को इंडियाज गॉट लेटेंट शो के दौरान उनकी अभद्र टिप्पणी को लेकर जमकर फटकार लगाई। वहीं, दूसरी तरफ केंद्र सरकार से यूट्यूब और सोशल मीडिया पर फैल रही अश्लील सामग्री को लेकर जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने केंद्र को इस मामले में नोटिस जारी किया है। एएसजी ऐश्वर्या भाटी से बेंच ने कहा कि आप एसजी और एजी को हमारी चिंता के बारे में सूचित करें और हमें बताएं। एक अन्य मामले में एएसजी ऐश्वर्या भाटी जब जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने पेश हुईं, तब जस्टिस सूर्यकांत ने भाटी से कहा, हम सोशल मीडिया में अश्लील कंटेंट के मुद्दे पर भी विचार करेंगे। हम मुद्दे का विस्तार कर रहे हैं, सरकार बताए कि उसने क्या किया है?

जस्टिस सूर्यकांत ने मामले में अतिरिक्त महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी की भी सहायता मांगी और कहा कि हमें इस मुद्दे के महत्व और संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर और पॉडकास्टर रणवीर अलाहाबादिया को ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ शो में उनकी उपस्थिति के दौरान उनकी विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर कड़ी फटकार लगाई।सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूब पर एक कार्यक्रम के दौरान इन्फ्लुएंसर द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर सवाल उठाया और कहा कि समाज के कुछ मूल्य हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आपके द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द बेटियों, बहनों, माता-पिता और यहां तक कि समाज को भी शर्मिंदगी महसूस कराएंगे। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी समाज के मानदंडों के खिलाफ कुछ भी बोलने की छूट नहीं है। पीठ ने इन्फ्ल्युएंसर के वकील से पूछा, समाज के मूल्य क्या हैं, ये मानक क्या हैं, क्या आपको पता है।

सुप्रीम कोर्ट की रणवीर अल्लाहबादिया को लताड़ा, कहा- आपके शब्दों ने माता-पिता और समाज को शर्मिंदा किया

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समय रैना के शो 'इंडियाज गॉट लैटेंट' में अभद्र और आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि उनके दिमाग में गंदगी है, जो यूट्यूब शो पर उगल दी गई। कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए मामले में दर्ज मुंबई, असम और जयपुर की एफआईआर के विरोध में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। हालांकि, कोर्ट ने यह शर्त भी रखी कि रणवीर या उनके सहयोगी आगे सुनवाई पूरी होने तक कोई शो नहीं करेंगे। साथ ही कोर्ट की इजाजत के बिना देश छोड़कर नहीं जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया की याचिका पर मंगलवार यानी 18 फरवरी को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने रणवीर की याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने इन्फ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया के वकील से पूछा समाज के मूल्य क्या हैं? ये पैरामीटर क्या हैं, क्या आप जानते भी हैं'? समाज के कुछ स्व-विकसित मूल्य हैं। आपको उनका सम्मान करने की जरूरत है।

रणवीर अल्लाहबादिया की ओर से पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ केस लड़ रहे हैं। वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रणवीर अल्लाहबादिया की जान को खतरा है। उनके खिलाफ जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। वकीलअभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि कई राज्यों में मामले दर्ज हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप लोगों के माता-पिता को बेइज्जत कर रहे हैं। यह गंदे दिमाग की उपज है। आपके पास भारी संपत्ति है। दो अलग एफआईआर का आप बचाव कर सकते हैं। हम एफआईआर क्यों क्लब करें। जांच और मुकदमा आपके मुताबिक नहीं चलाया जा सकता। अगर आपको खतरा है, तो यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और आप शिकायत करें।

जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, आप किसी भी तरह के शब्द बोल सकते हैं और पूरे समाज को हल्के में ले सकते हैं। आप हमें बताएं कि दुनिया में कौन सा व्यक्ति ऐसे शब्दों को पसंद करेगा। यदि आप अभद्र भाषा का प्रयोग करके सस्ती लोकप्रियता पा सकते हैं, तो धमकी देने वाला यह व्यक्ति भी प्रचार चाहता है। जो शब्द आपने चुने हैं, उससे मां-बाप, बहनें शर्मिंदा होंगी। पूरे समाज को शर्मिंदगी महसूस होगा। विकृत मन है आपका और आपके साथियों ने जिस विकृति का प्रदर्शन किया है। हमारे यहां न्यायिक व्यवस्था है, जो कानून के शासन से बंधी है। अगर धमकियां हैं तो कानून अपना काम करेगा।

*मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजी, कहा- इनकी वजह से लोग काम नहीं कर रहे
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* चुनावों से पहले राजनीतिक पार्टियां जनता को अपने पाले मे करने के लिए मुफ्त योजनाओं की बौछार कर देती हैं। वोट को साधने के लिए सभी पार्टियां एक से बढ़कर एक मुफ्त की घोषणाएं करती हैं। राजनीतिक दलों की ओर से अपनाई जा रही इस नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगाी, क्योंकि उन्हें राशन और पैसे मुफ्त में ही मिलते रहेंगे। कोर्ट ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी इलाकों में बेघर लोगों के आश्रय से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि सरकार ने शहरी इलाकों में आश्रय स्थल की योजना को बीते कुछ वर्षों से फंड देना बंद कर दिया है। इसके चलते इन सर्दियों में 750 से ज्यादा बेघर लोग ठंड से मर गए। याचिकाकर्ता ने कहा कि गरीब लोग सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं और सिर्फ अमीरों की चिंता की जा रही है। *कोर्ट ने किए तीखे सवाल* इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि अदालत में राजनीतिक बयानबाजी की इजाजत नहीं दी जाएगी। जस्टिस गवई ने कहा कि 'कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन क्या बेघर लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान दे सकें। क्या हम इस तरह से परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं? मुफ्त की योजनाओं के चलते, लोग काम नहीं करना चाहते। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन मिल रहा है। *सुप्रीम कोर्ट ने छह हफ्ते के लिए टाली सुनवाई* केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी इलाकों में गरीबी को मिटाने के लिए प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है। जिसमें शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा। इस पर पीठ ने उन्हें केंद्र सरकार से पूछकर यह स्पष्ट करने को कहा कि कितने दिन में इस योजना को लागू किया जाएगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी। *सुप्रीम कोर्ट पहले भी लगा चुकी है फटकार* बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं। अधिक वोट्स पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है।
महाकुंभ भगदड़ पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, याचिका खारिज करने की बताई वजह

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महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या पर प्रयागराज के संगम क्षेत्र में मची भगदड़ में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 अन्य लोग घायल हो गए थे। इस मामल में दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट से महाकुंभ में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश देने का अनुरोध करने को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने इसपर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया।

महाकुंभ भगदड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी की ओर से ये जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ पर स्टेटस रिपोर्ट और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई है। इतना ही नहीं इसमें सभी राज्यों की ओर से मेले में सुविधा केंद्र खोलने की भी बात कही गई है, जिससे गैर हिंदी भाषी नागरिकों को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। याचिका में केंद्र सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाया गया है।

महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने देशभर के करोड़ों लोग संगम पर जुटे थे। रात करीब डेढ़ बजे संगम नोज पर भगदड़ मच गई थी। भीड़ ने लोगों को कुचल दिया था। सरकार के मुताबिक, 30 लोगों की मौत हुई और 60 घायल हो गए थे। महाकुंभ नगर के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) वैभव कृष्ण ने बताया कि प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर मुख्य स्नान था। ब्रह्म मुहूर्त से पहले, देर रात एक से दो बजे के बीच, मेला क्षेत्र के अखाड़ा मार्ग पर भारी भीड़ जमा हो गई।

भीड़ के दबाव के कारण दूसरी ओर के बैरिकेड्स टूट गए। बैरिकेड्स तोड़कर दूसरी ओर पहुंचे लोगों ने ब्रह्म मुहूर्त के स्नान का इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं को कुचलना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद मेला प्रशासन ने तुरंत एक मार्ग बनाकर एम्बुलेंस की मदद से 90 लोगों को अस्पताल पहुंचाया, जिनमें से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस दलील पर गौर किया कि इस मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहले ही एक याचिका दायर की जा चुकी है और मौजूदा याचिका की शीर्ष अदालत में सुनवाई नहीं की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने भगदड़ को दुर्भाग्यपूर्ण घटना करार देते हुए याचिकाकर्ता और अधिवक्ता विशाल तिवारी को इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख करने को कहा।

पीठ ने तिवारी से कहा, यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है लेकिन आप इलाहाबाद हाई कोर्ट जाइए। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की इन दलीलों पर गौर किया कि न्यायिक जांच शुरू की गई है।

दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से मिली कस्टडी पैरोल, कर सकेंगे चुनाव प्रचार
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साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के आरोपी और पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए कस्टडी पैरोल की मंजूरी दे दी है। इसके बाद ताहिर हुसैन को पुलिस हिरासत में चुनाव प्रचार करने की छूट मिल गई है। ताहिर हुसैन दिल्ली की मुस्तफाबाद सीट से एआईएमआईएम पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ताहिर हुसैन ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट में चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने की याचिका दायर की थी, लेकिन इसकी मंजूरी नहीं मिल पाई थी। अब उन्होंने पुलिस हिरासत में ही चुनाव प्रचार करने देने की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है।

एआईएमआईएम की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने ताहिर हुसैन को कस्टडी पैरोल दी है। इसके मुताबिक, हुसैन निर्धारित समय के दौरान दिन में जेल से बाहर निकलेंगे और फिर रात को जेल लौटने की शर्त होगी। अब ताहिर हुसैन 29 जनवरी से 3 फरवरी तक पुलिस कस्टडी में चुनाव प्रचार कर सकेंगे।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ताहिर हुसैन सभी आश्वासन का पालन करेंगे। उनको 29.01.2025 से 03.02.2025 तक जेल मैनुअल के समय के अनुसार चार्ट में दर्शाए गए खर्च का आधा जमा करने पर रिहा किया जाएगा। जो 2 दिनों के लिए 2 लाख 07 हजार 429 रुपये है।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जेल नियमों के अनुसार रिहाई 12 घंटे के लिए होगी. आदेश को नजीर नहीं माना जाए। हाई कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदन पर इस अदालत के आदेशों से प्रभावित हुए बिना अपने गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा। रोजाना जेल से चुनाव प्रचार के लिए ताहिर सुबह 6 बजे निकलेंगे और शाम 6 बजे वापस जेल जाएंगे। सार्वजनिक बयान में वह अपने केस से संबंधित कोई बात नहीं करेंगे।

बता दें कि ताहिर हुसैन के खिलाफ कई मामले चल रहे हैं। उन्होंने पूर्व में भी चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने की मांग की थी, लेकिन उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने अलग-अलग आदेश दिया। जिसके बाद याचिका को बड़ी पीठ के पास भेजा गया था।
मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा भारत लाया जाएगा, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से प्रत्यर्पण की मंजूरी

#us_supreme_court_clears_mumbai_attack_tahawwur_rana_extradition

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने मामले में उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ समीक्षा याचिका खारिज कर दी है। भारत कई साल से पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद शुक्रवार को इसको लेकर फैसला आया है। राणा 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के मामले में दोषी है।

अगस्त 2024 में अमेरिकी कोर्ट ने भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा को भारत भेजने का आदेश दिया था। निचली अदालत ने पिछले साल सितंबर में ही तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया था। मगर राणा ने निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

13 नवंबर 2024 को राणा ने निचली अदालत के प्रत्यर्पण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी को खारिज कर दिया था। राणा के पास प्रत्यर्पण से बचने का ये आखिरी मौका था। इससे पहले उसने सैन फ्रांसिस्को की एक अदालत में अपील की थी, जहां उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। अमेरिकी अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत उसे भारत भेजा जा सकता है।

तहव्वुर राणा पर आरोप है कि उसने 26/11 के मास्टरमाइंड डेविड कोलमैन हेडली की मदद की थी। हेडली के इशारे पर ही पूरी साजिश को अंजाम दिलवा रहा था। राणा डेविड का राइट हैंड था। बताया जाता है कि कंट्रोल रूम में जो शख्स बैठा हुआ था, वो तहव्वुर राणा ही था। मुंबई हमले के दोषी राणा के भारत आने के बाद जांच एजेंसियां 26/11 की साजिश को बेपर्दा करेगी। इसमें किसका क्या रोल था, ये साफ होगा। इसके अलावा इसमें कौन कौन से लोग शामिल थे, जिनके नाम अभी तक सामने नहीं आए हैं, उनके नाम भी सामने आएंगे।

मुंबई हमले की 405 पन्नों की चार्जशीट में राणा का नाम भी आरोपी के तौर पर दर्ज है। इसके मुताबिक राणा आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा का मेंबर है। चार्जशीट के मुताबिक राणा हमले के मास्टरमाइंड मुख्य आरोपी डेविड कोलमैन हेडली की मदद कर रहा था। मुंबई पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, राणा आतंकियों को हमले की जगह बताने और भारत में आने के बाद रुकने के ठिकाने बताने में मदद कर रहा था। राणा ने ही ब्लूप्रिंट तैयार किया था, जिसके आधार पर हमले को अंजाम दिया गया। राणा और हेडली ने आतंकवादी साजिश रचने का काम किया था। चार्जशीट में बताया गया कि मुंबई हमले की साजिश की प्लानिंग में राणा का रोल बहुत बड़ा रोल था।

मानहानि मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, निचली अदालत की कार्यवाही पर लगाई गई रोक

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ झारखंड की राजधानी रांची में चल रहे मानहानि केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। मुकदमा खत्म करने की मांग पर शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया गया है। बता दें कि 2018 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को हत्यारा कहने वाले बयान को लेकर बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने यह केस दर्ज करवाया था।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने राहुल की अपील पर जवाब मांगते हुए झारखंड सरकार और भाजपा नेता को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि नोटिस जारी किए जा रहे हैं। अगले आदेश तक मुकदमे की आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी। राहुल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि कई फैसले हैं, जो कहते हैं कि केवल पीड़ित व्यक्ति ही आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कर सकता है। मानहानि की शिकायत किसी प्रॉक्सी थर्ड पार्टी की ओर से दायर नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी पेश हुए।

2018 में कांग्रेस अधिवेशन में भाषण देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि बीजेपी इस तरह की पार्टी है कि उसके कार्यकर्ता हत्यारे को भी अध्यक्ष स्वीकार कर लेते हैं। इससे आहत हो कर रांची के बीजेपी कार्यकर्ता नवीन झा ने शहर की कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज करवाया था। राहुल ने मुकदमा खत्म करने के लिए झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। लेकिन पिछले साल फरवरी में दिए आदेश में हाई कोर्ट ने केस को निरस्त करने से मना कर दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे राहुल गांधी की पैरवी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने की।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ने जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच से कहा कि शिकायतकर्ता मामले में सीधे प्रभावित नहीं है। ऐसे में यह केस नहीं चल सकता। जजों ने इस पर शिकायकर्ता नवीन झा से जवाब मांगते हुए उन्हें नोटिस जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी। तब तक निचली अदालत की कार्रवाई स्थगित रहेगी।

दिल्ली में मंदिरों पर होगा “बुलडोजर एक्शन”!, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार

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दिल्ली के मयूर विहार क्षेत्र में बुधवार रात उस समय भारी हंगामा हो गया। जब बुधवार रात तीन बजे तीन मंदिरों को तोड़ने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) टीम बुलडोजर लेकर पहुंची। डीडीए के साथ भारी सुरक्षा बल भी मौके पर पहुंचा। स्‍थानीय लोगों को इस मामले की जानकारी होते ही आक्रोश फैल गया। लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। लोगों ने डीडीए टीम का जमकर विरोध किया। हंगामे और नारेबाजी की सूचना पर पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज से भाजपा विधायक रविंद्र सिंह नेगी मौके पर पहुंच गए। इसके बाद विधायक रविंद्र सिंह नेगी सीएम रेखा गुप्ता को मामले की जानकारी दी। इसपर सीएम रेखा गुप्ता ने कार्रवाई को तत्‍काल रोकने का आदेश देकर डीडीए टीम को बैरंग लौटा दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

इस बीच डीडीए के नोटिस को लेकर लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते। वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि जहांगीर पुरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाई कोर्ट जाइए। इसी के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

देर रात दाखिल हुई याचिका को विशेष अनुरोध पर सुबह 3 जजों की बेंच के सामने सूचीबद्ध किया गया था। बेंच के अध्यक्ष जस्टिस विक्रम नाथ ने शुरू में याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन से दोपहर 2 बजे सुनवाई की बात कही। उन्होनें यह भी कहा कि वह अपनी याचिका की कॉपी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के वकील को दें ताकि वह इस पर पक्ष रख सकें, लेकिन इसके तुरंत बाद जस्टिस विक्रम नाथ ने अपने साथी जजों जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता से बात की और उनका रुख बदल गया। उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि उन्हें हाई कोर्ट जाना चाहिए।

35 साल पुराने हैं मंदिर

वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि बुधवार रात 9 बजे अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक नोटिस चिपकाया गया था। उन्हें सूचित किया गया था कि 20 मार्च 2025 को सुबह चार बजे मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाएगा। याचिका में कहा गया है कि डीडीए के किसी भी अधिकारी या किसी भी धार्मिक समिति द्वारा मंदिरों को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। याचिका में कहा गया है कि मंदिर 35 साल पुराने हैं।

ग्रीन बेल्ट में बने हैं तीनों मंदिर

दरअसल, दिल्ली के मयूर विहार फेज 2 क्षेत्र स्थित संजय झील पार्क में 3 मंदिर स्‍थापित हैं। स्‍थानीय निवासियों का कहना है कि ये मंदिर 40 साल पुराने हैं। जबकि डीडीए के हॉर्टिकल्चर विभाग इन मंदिरों को अवैध बता रहा है। डीडीए टीम का कहना था कि मंदिरों को ग्रीन बेल्ट में बनाया गया है।

किसी को 'मियां-तियां' या पाकिस्तानी कहना अपराध नहीं', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी


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सुप्रीम कोर्ट ने 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी को राहत दी है। कोर्ट ने धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में दर्ज केस निरस्त कर दिया है। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस तरह की बात कहने को असभ्यता कहा है, लेकिन उसके चलते मुकदमा चलाने को सही नहीं माना।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से शब्द आदि बोलना) के तहत आरोप से एक व्यक्ति को मुक्त कर दिया।कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पर उसे 'मियां-तियां' और 'पाकिस्तानी' कहकर उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है। अदालत ने कहा कि निस्संदेह, दिए गए कथन गलत है। हालाँकि, इससे याचिकाकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुचती है।

जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच झारखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता को आरोप मुक्त करने से इनकार कर दिया गया था। मामला उप-विभागीय कार्यालय, चास में एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क (सूचना का अधिकार) की तरफ से दर्ज एफआईआर से जुड़ा था।

यह मामला उस समय शुरू हुआ जब एक सरकारी कर्मचारी, जो कि उर्दू अनुवादक और सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत कार्यरत था, ने एक आदेश के तहत हरी नंदन सिंह को कुछ दस्तावेज सौंपे। आरोप के मुताबिक सिंह ने दस्तावेज स्वीकार करने में अनिच्छा दिखाई और इसके बाद कर्मचारी के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया। यह भी कहा गया कि उन्होंने सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहकर संबोधित किया और उसे डराने का प्रयास किया।

इस घटना के बाद सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई। हरी नंदन सिंह ने इस मामले में पहले सेशन कोर्ट और फिर राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन दोनों अदालतों ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। आखिर में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतिश चंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया कि इस मामले में धारा 298 लागू नहीं होती क्योंकि आरोपी की टिप्पणियां भले ही अनुचित थीं, लेकिन वे किसी विशेष धर्म के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से नहीं कही गई थीं।

रणवीर इलाहाबादिया को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, शो ऑन एयर करने की छूट, कोर्ट ने दी मर्यादा मे रहने की नसीहत

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सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर और पॉडकास्ट होस्ट रणवीर इलाहबादिया को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने इलाहाबादियो को उनका शो जारी रखने की इजजात दे दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत दी है कि वह शो को पब्लिश करते वक्त मर्यादाओं का ख्याल रखें। कोर्ट ने शर्त रखी कि रणवीर को एक अंडरटेकिंग देनी होगी, जिसमें वह यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके शो में नैतिकता का स्तर बना रहे, ताकि सभी उम्र के दर्शक इसे देख सकें।

रणवीर इलाहाबादिया कॉमेडियन और यूट्यूबर समय रैना के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ माता-पिता को लेकर अभद्र टिप्पणी को लेकर आलोचना झेल रहे हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल ने कहा है कि उन्होंने पूरा शो देखा है लेकिन इसमें कोई भी अभद्रता नहीं है लेकिन इसमें विकृति है। उन्होंने कहा कि हास्य एक चीज है, अश्लीलता एक चीज है। और विकृति दूसरे स्तर पर है।

सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहबादिया को अपने कार्यक्रम में शालीनता बनाए रखने की शर्त पर ‘द रणवीर शो’ का प्रसारण फिर से शुरू करने की अनुमति दी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि ये राहत इसलिए दी गई है क्योंकि इस शो से 280 लोगों की आजीविका जुड़ी है।

दरअसल, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहबादिया के शो 'द रणवीर शो' पर अगले आदेश तक किसी भी कंटेट को पब्लिश करने पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ रणवीर अल्लाहबादिया ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने अदालत में अर्जी दी थी कि उन्हें कुछ राहत दी जाए। उन्होंने कहा था कि उनके यहां 280 कर्मचारी काम करते हैं। यह उनकी रोजी रोटी से जुड़ा मामला है।

अश्लील कंटेंट को लेकर क्या कर रही सरकार, रणवीर अलाहाबादिया मामले के बीच सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आने वाली आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से सवाल किया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट के बारे में कुछ करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ तो यूट्यूबर रणवीर अलाहाबादिया को इंडियाज गॉट लेटेंट शो के दौरान उनकी अभद्र टिप्पणी को लेकर जमकर फटकार लगाई। वहीं, दूसरी तरफ केंद्र सरकार से यूट्यूब और सोशल मीडिया पर फैल रही अश्लील सामग्री को लेकर जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने केंद्र को इस मामले में नोटिस जारी किया है। एएसजी ऐश्वर्या भाटी से बेंच ने कहा कि आप एसजी और एजी को हमारी चिंता के बारे में सूचित करें और हमें बताएं। एक अन्य मामले में एएसजी ऐश्वर्या भाटी जब जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने पेश हुईं, तब जस्टिस सूर्यकांत ने भाटी से कहा, हम सोशल मीडिया में अश्लील कंटेंट के मुद्दे पर भी विचार करेंगे। हम मुद्दे का विस्तार कर रहे हैं, सरकार बताए कि उसने क्या किया है?

जस्टिस सूर्यकांत ने मामले में अतिरिक्त महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी की भी सहायता मांगी और कहा कि हमें इस मुद्दे के महत्व और संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर और पॉडकास्टर रणवीर अलाहाबादिया को ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ शो में उनकी उपस्थिति के दौरान उनकी विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर कड़ी फटकार लगाई।सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूब पर एक कार्यक्रम के दौरान इन्फ्लुएंसर द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर सवाल उठाया और कहा कि समाज के कुछ मूल्य हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, आपके द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द बेटियों, बहनों, माता-पिता और यहां तक कि समाज को भी शर्मिंदगी महसूस कराएंगे। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी समाज के मानदंडों के खिलाफ कुछ भी बोलने की छूट नहीं है। पीठ ने इन्फ्ल्युएंसर के वकील से पूछा, समाज के मूल्य क्या हैं, ये मानक क्या हैं, क्या आपको पता है।

सुप्रीम कोर्ट की रणवीर अल्लाहबादिया को लताड़ा, कहा- आपके शब्दों ने माता-पिता और समाज को शर्मिंदा किया

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समय रैना के शो 'इंडियाज गॉट लैटेंट' में अभद्र और आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि उनके दिमाग में गंदगी है, जो यूट्यूब शो पर उगल दी गई। कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए मामले में दर्ज मुंबई, असम और जयपुर की एफआईआर के विरोध में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। हालांकि, कोर्ट ने यह शर्त भी रखी कि रणवीर या उनके सहयोगी आगे सुनवाई पूरी होने तक कोई शो नहीं करेंगे। साथ ही कोर्ट की इजाजत के बिना देश छोड़कर नहीं जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया की याचिका पर मंगलवार यानी 18 फरवरी को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने रणवीर की याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने इन्फ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया के वकील से पूछा समाज के मूल्य क्या हैं? ये पैरामीटर क्या हैं, क्या आप जानते भी हैं'? समाज के कुछ स्व-विकसित मूल्य हैं। आपको उनका सम्मान करने की जरूरत है।

रणवीर अल्लाहबादिया की ओर से पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़ केस लड़ रहे हैं। वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रणवीर अल्लाहबादिया की जान को खतरा है। उनके खिलाफ जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। वकीलअभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि कई राज्यों में मामले दर्ज हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप लोगों के माता-पिता को बेइज्जत कर रहे हैं। यह गंदे दिमाग की उपज है। आपके पास भारी संपत्ति है। दो अलग एफआईआर का आप बचाव कर सकते हैं। हम एफआईआर क्यों क्लब करें। जांच और मुकदमा आपके मुताबिक नहीं चलाया जा सकता। अगर आपको खतरा है, तो यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और आप शिकायत करें।

जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, आप किसी भी तरह के शब्द बोल सकते हैं और पूरे समाज को हल्के में ले सकते हैं। आप हमें बताएं कि दुनिया में कौन सा व्यक्ति ऐसे शब्दों को पसंद करेगा। यदि आप अभद्र भाषा का प्रयोग करके सस्ती लोकप्रियता पा सकते हैं, तो धमकी देने वाला यह व्यक्ति भी प्रचार चाहता है। जो शब्द आपने चुने हैं, उससे मां-बाप, बहनें शर्मिंदा होंगी। पूरे समाज को शर्मिंदगी महसूस होगा। विकृत मन है आपका और आपके साथियों ने जिस विकृति का प्रदर्शन किया है। हमारे यहां न्यायिक व्यवस्था है, जो कानून के शासन से बंधी है। अगर धमकियां हैं तो कानून अपना काम करेगा।

*मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजी, कहा- इनकी वजह से लोग काम नहीं कर रहे
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* चुनावों से पहले राजनीतिक पार्टियां जनता को अपने पाले मे करने के लिए मुफ्त योजनाओं की बौछार कर देती हैं। वोट को साधने के लिए सभी पार्टियां एक से बढ़कर एक मुफ्त की घोषणाएं करती हैं। राजनीतिक दलों की ओर से अपनाई जा रही इस नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगाी, क्योंकि उन्हें राशन और पैसे मुफ्त में ही मिलते रहेंगे। कोर्ट ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी इलाकों में बेघर लोगों के आश्रय से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि सरकार ने शहरी इलाकों में आश्रय स्थल की योजना को बीते कुछ वर्षों से फंड देना बंद कर दिया है। इसके चलते इन सर्दियों में 750 से ज्यादा बेघर लोग ठंड से मर गए। याचिकाकर्ता ने कहा कि गरीब लोग सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं और सिर्फ अमीरों की चिंता की जा रही है। *कोर्ट ने किए तीखे सवाल* इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि अदालत में राजनीतिक बयानबाजी की इजाजत नहीं दी जाएगी। जस्टिस गवई ने कहा कि 'कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन क्या बेघर लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान दे सकें। क्या हम इस तरह से परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं? मुफ्त की योजनाओं के चलते, लोग काम नहीं करना चाहते। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन मिल रहा है। *सुप्रीम कोर्ट ने छह हफ्ते के लिए टाली सुनवाई* केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी इलाकों में गरीबी को मिटाने के लिए प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है। जिसमें शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा। इस पर पीठ ने उन्हें केंद्र सरकार से पूछकर यह स्पष्ट करने को कहा कि कितने दिन में इस योजना को लागू किया जाएगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी। *सुप्रीम कोर्ट पहले भी लगा चुकी है फटकार* बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं। अधिक वोट्स पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है।
महाकुंभ भगदड़ पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, याचिका खारिज करने की बताई वजह

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महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या पर प्रयागराज के संगम क्षेत्र में मची भगदड़ में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 अन्य लोग घायल हो गए थे। इस मामल में दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट से महाकुंभ में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश देने का अनुरोध करने को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने इसपर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया।

महाकुंभ भगदड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी की ओर से ये जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ पर स्टेटस रिपोर्ट और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई है। इतना ही नहीं इसमें सभी राज्यों की ओर से मेले में सुविधा केंद्र खोलने की भी बात कही गई है, जिससे गैर हिंदी भाषी नागरिकों को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। याचिका में केंद्र सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाया गया है।

महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने देशभर के करोड़ों लोग संगम पर जुटे थे। रात करीब डेढ़ बजे संगम नोज पर भगदड़ मच गई थी। भीड़ ने लोगों को कुचल दिया था। सरकार के मुताबिक, 30 लोगों की मौत हुई और 60 घायल हो गए थे। महाकुंभ नगर के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) वैभव कृष्ण ने बताया कि प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर मुख्य स्नान था। ब्रह्म मुहूर्त से पहले, देर रात एक से दो बजे के बीच, मेला क्षेत्र के अखाड़ा मार्ग पर भारी भीड़ जमा हो गई।

भीड़ के दबाव के कारण दूसरी ओर के बैरिकेड्स टूट गए। बैरिकेड्स तोड़कर दूसरी ओर पहुंचे लोगों ने ब्रह्म मुहूर्त के स्नान का इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं को कुचलना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद मेला प्रशासन ने तुरंत एक मार्ग बनाकर एम्बुलेंस की मदद से 90 लोगों को अस्पताल पहुंचाया, जिनमें से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस दलील पर गौर किया कि इस मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहले ही एक याचिका दायर की जा चुकी है और मौजूदा याचिका की शीर्ष अदालत में सुनवाई नहीं की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने भगदड़ को दुर्भाग्यपूर्ण घटना करार देते हुए याचिकाकर्ता और अधिवक्ता विशाल तिवारी को इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख करने को कहा।

पीठ ने तिवारी से कहा, यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है लेकिन आप इलाहाबाद हाई कोर्ट जाइए। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की इन दलीलों पर गौर किया कि न्यायिक जांच शुरू की गई है।

दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से मिली कस्टडी पैरोल, कर सकेंगे चुनाव प्रचार
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साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के आरोपी और पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए कस्टडी पैरोल की मंजूरी दे दी है। इसके बाद ताहिर हुसैन को पुलिस हिरासत में चुनाव प्रचार करने की छूट मिल गई है। ताहिर हुसैन दिल्ली की मुस्तफाबाद सीट से एआईएमआईएम पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ताहिर हुसैन ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट में चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने की याचिका दायर की थी, लेकिन इसकी मंजूरी नहीं मिल पाई थी। अब उन्होंने पुलिस हिरासत में ही चुनाव प्रचार करने देने की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है।

एआईएमआईएम की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने ताहिर हुसैन को कस्टडी पैरोल दी है। इसके मुताबिक, हुसैन निर्धारित समय के दौरान दिन में जेल से बाहर निकलेंगे और फिर रात को जेल लौटने की शर्त होगी। अब ताहिर हुसैन 29 जनवरी से 3 फरवरी तक पुलिस कस्टडी में चुनाव प्रचार कर सकेंगे।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ताहिर हुसैन सभी आश्वासन का पालन करेंगे। उनको 29.01.2025 से 03.02.2025 तक जेल मैनुअल के समय के अनुसार चार्ट में दर्शाए गए खर्च का आधा जमा करने पर रिहा किया जाएगा। जो 2 दिनों के लिए 2 लाख 07 हजार 429 रुपये है।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जेल नियमों के अनुसार रिहाई 12 घंटे के लिए होगी. आदेश को नजीर नहीं माना जाए। हाई कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदन पर इस अदालत के आदेशों से प्रभावित हुए बिना अपने गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा। रोजाना जेल से चुनाव प्रचार के लिए ताहिर सुबह 6 बजे निकलेंगे और शाम 6 बजे वापस जेल जाएंगे। सार्वजनिक बयान में वह अपने केस से संबंधित कोई बात नहीं करेंगे।

बता दें कि ताहिर हुसैन के खिलाफ कई मामले चल रहे हैं। उन्होंने पूर्व में भी चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने की मांग की थी, लेकिन उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने अलग-अलग आदेश दिया। जिसके बाद याचिका को बड़ी पीठ के पास भेजा गया था।
मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा भारत लाया जाएगा, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से प्रत्यर्पण की मंजूरी

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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने मामले में उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ समीक्षा याचिका खारिज कर दी है। भारत कई साल से पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद शुक्रवार को इसको लेकर फैसला आया है। राणा 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के मामले में दोषी है।

अगस्त 2024 में अमेरिकी कोर्ट ने भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा को भारत भेजने का आदेश दिया था। निचली अदालत ने पिछले साल सितंबर में ही तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया था। मगर राणा ने निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

13 नवंबर 2024 को राणा ने निचली अदालत के प्रत्यर्पण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी को खारिज कर दिया था। राणा के पास प्रत्यर्पण से बचने का ये आखिरी मौका था। इससे पहले उसने सैन फ्रांसिस्को की एक अदालत में अपील की थी, जहां उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। अमेरिकी अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत उसे भारत भेजा जा सकता है।

तहव्वुर राणा पर आरोप है कि उसने 26/11 के मास्टरमाइंड डेविड कोलमैन हेडली की मदद की थी। हेडली के इशारे पर ही पूरी साजिश को अंजाम दिलवा रहा था। राणा डेविड का राइट हैंड था। बताया जाता है कि कंट्रोल रूम में जो शख्स बैठा हुआ था, वो तहव्वुर राणा ही था। मुंबई हमले के दोषी राणा के भारत आने के बाद जांच एजेंसियां 26/11 की साजिश को बेपर्दा करेगी। इसमें किसका क्या रोल था, ये साफ होगा। इसके अलावा इसमें कौन कौन से लोग शामिल थे, जिनके नाम अभी तक सामने नहीं आए हैं, उनके नाम भी सामने आएंगे।

मुंबई हमले की 405 पन्नों की चार्जशीट में राणा का नाम भी आरोपी के तौर पर दर्ज है। इसके मुताबिक राणा आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा का मेंबर है। चार्जशीट के मुताबिक राणा हमले के मास्टरमाइंड मुख्य आरोपी डेविड कोलमैन हेडली की मदद कर रहा था। मुंबई पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, राणा आतंकियों को हमले की जगह बताने और भारत में आने के बाद रुकने के ठिकाने बताने में मदद कर रहा था। राणा ने ही ब्लूप्रिंट तैयार किया था, जिसके आधार पर हमले को अंजाम दिया गया। राणा और हेडली ने आतंकवादी साजिश रचने का काम किया था। चार्जशीट में बताया गया कि मुंबई हमले की साजिश की प्लानिंग में राणा का रोल बहुत बड़ा रोल था।

मानहानि मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, निचली अदालत की कार्यवाही पर लगाई गई रोक

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ झारखंड की राजधानी रांची में चल रहे मानहानि केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। मुकदमा खत्म करने की मांग पर शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया गया है। बता दें कि 2018 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को हत्यारा कहने वाले बयान को लेकर बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने यह केस दर्ज करवाया था।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने राहुल की अपील पर जवाब मांगते हुए झारखंड सरकार और भाजपा नेता को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि नोटिस जारी किए जा रहे हैं। अगले आदेश तक मुकदमे की आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी। राहुल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि कई फैसले हैं, जो कहते हैं कि केवल पीड़ित व्यक्ति ही आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कर सकता है। मानहानि की शिकायत किसी प्रॉक्सी थर्ड पार्टी की ओर से दायर नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी पेश हुए।

2018 में कांग्रेस अधिवेशन में भाषण देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि बीजेपी इस तरह की पार्टी है कि उसके कार्यकर्ता हत्यारे को भी अध्यक्ष स्वीकार कर लेते हैं। इससे आहत हो कर रांची के बीजेपी कार्यकर्ता नवीन झा ने शहर की कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज करवाया था। राहुल ने मुकदमा खत्म करने के लिए झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। लेकिन पिछले साल फरवरी में दिए आदेश में हाई कोर्ट ने केस को निरस्त करने से मना कर दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे राहुल गांधी की पैरवी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने की।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ने जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच से कहा कि शिकायतकर्ता मामले में सीधे प्रभावित नहीं है। ऐसे में यह केस नहीं चल सकता। जजों ने इस पर शिकायकर्ता नवीन झा से जवाब मांगते हुए उन्हें नोटिस जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी। तब तक निचली अदालत की कार्रवाई स्थगित रहेगी।