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सुप्रीम कोर्ट ने BLO की मौत पर जताई चिंता, कहा-काम का बोझ कम करें, दिए कई बड़े निर्देश

#supremecourtactionforblosuicidesir

विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण यानी एसआईआर के दौरान के बीएलओ की हुई मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। इन स्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब राज्य सरकारों के लिए निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि बीएलओ के काम के घंटे कम करने के लिए राज्य सरकारें अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती करे। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने संबंधित मौतों और कथित आत्महत्याओं के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने से इनकार कर दिया है।

राज्य सरकारों को कर्मचारी बढ़ाने का निर्देश

सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव से संबंधित कार्यों के लिए पर्याप्त स्टाफ सुनिश्चित करना पूरी तरह राज्य सरकारों जिम्मेदारी है। न्यायालय ने बीएलओ की मौत और आत्महत्याओं को स्वीकार करे हुए कहा कि चुनावी रोल और संबंधित कार्यों के लिए तैनाती एक कानूनी प्रक्रिया है, और राज्यों को मौजूदा कर्मचारियों पर बोझ कम करने के लिए पर्याप्त जनशक्ति प्रदान करनी चाहिए।

बीमार या असमर्थ कर्मचारियों के बदले वैकल्पिक तैनाती का निर्देश

चीफ जस्टिस सूर्यकांत के नेतृत्व वाली बेंच ने यह भी आदेश दिया कि जिन लोगों ने चुनाव आयोग की ओर से जारी एसआईआर प्रक्रिया में ड्यूटी से छूट के लिए सही और स्पष्ट वजहें दी हों, उनके अनुरोधों पर राज्य सरकार और सक्षम प्राधिकारी विचार करें और मामलों के आधार पर उन लोगों की जगह दूसरे कर्मियों की तैनाती की जाए। सीजेआई ने कहा, राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि अगर जरूरत है तो वह इस काम के लिए जरूरी कार्यबल मुहैया कराए।

टीवीके ने दायर की है याचिका

बता दें कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर प्रक्रिया को अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी- तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) की ओर से चुनौती दी गई है। तमिलनाडु के राजनीतिक दल टीवीके की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष दलील दी गई कि अब तक देश के अलग अलग राज्यों में 35–40 बीएलओ की मृत्यु काम के अत्यधिक दबाव के कारण हुई है। इसलिए हमने मुआवज़ा देने की मांग की है।

भारत धर्मशाला नहीं, घुसपैठियों के लिए ‘रेड कार्पेट’ नहीं बिछा सकते, सीजेआई सूर्यकांत की दो टूक

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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार का दिन रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर बेहद गर्म रहा। पाँच रोहिंग्या नागरिकों के कथित हिरासत में गायब होने (कस्टोडियल डिसअपीयरेंस) को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कड़ा रुख अपनाया। याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने की मांग की थी, लेकिन सीजेआई की पीठ ने इस मांग को साफ तौर पर खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता पर कड़ा रुख अपनाया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने सीधा सवाल किया कि क्या भारत सरकार ने रोहिंग्याओं को कभी ‘शरणार्थी’ माना है। उन्होंने साफ कहा कि ‘शरणार्थी’ एक कानूनी शब्द है। सीजेआई ने टिप्पणी की कि जो लोग अवैध तरीके से देश में घुसते हैं, उनके लिए हम रेड कार्पेट नहीं बिछा सकते हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध घुसपैठ से जुड़े मुद्दे गंभीर

सीजेआई सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, आप जानते हैं कि ये लोग घुसपैठिए हैं। नॉर्थ-ईस्ट की सीमा बेहद संवेदनशील है। उन्होंने आगे कहा, देश में क्या-क्या हो रहा है, आप जानते हैं? अगर कोई गैरकानूनी तरीके से आता है। वो सुरंगों से घुस आते हैं, तब भी आप उनके लिए रेड कार्पेट चाहते हैं। आप कह रहे हैं कि उन्हें खाना, आश्रय, बच्चों के लिए शिक्षा… क्या कानून को इतना खींच दें?अदालत ने साफ कर दिया कि जहाँ मानवाधिकार महत्व रखते हैं, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध घुसपैठ से जुड़े मुद्दे भी उतने ही गंभीर हैं।

याचिकाकर्ता के तर्क पर कोर्ट का रुख

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में बताया कि वे रोहिंग्याओं के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं माँग रहे हैं। उनकी बस यही माँग है कि अगर उन्हें उनके देश वापस भेजा जाए तो यह काम कानून के हिसाब से होना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि रोहिंग्याओं का कानूनी दर्जा तय हुए बिना उनके अधिकारों पर बात नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि भारत दुनिया की ‘धर्मशाला नहीं बन सकता’ जहाँ से चाहे शरणार्थी आ जाएँ। 

16 दिसंबर तक टली सुनवाई

इस मामले को अब अन्य रोहिंग्या मामलों के साथ ही सुना जाएगा। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 दिसंबर तक के लिए टाल दी है। उसी दिन रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े अन्य मामलों की भी सुनवाई होगी।

डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सीबीआई को बड़ा आदेश, कहा-देशभर में तुरंत जांच शुरू करे

#supremecourtorderdigitalarrestcaseprobe_cbi

डिजिटल अरेस्ट मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने पूरे देश के डिजिटल अरेस्ट मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी है। शीर्ष अदालत ने देश की संघीय जांच एजेंसी से कहा कि वह पहले अखिल भारतीय स्तर पर सामने आ चुके डिजिटल अरेस्ट घोटाले के मामलों की जांच करे।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस ठगी पर सख्ती दिखाई है, जिसमें लोगों को फोन करके ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर करोड़ों रुपए लुटे जा रहे थे। कोर्ट ने साफ कहा कि अब ये मामला सिर्फ राज्यों का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। इसलिए इस पूरे गिरोह की जांच सीबीआई करेगी और वो भी देशभर में फैलकर।

सभी राज्यों को सीबीआई को अनुमति देने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी राजनीतिक दलों के शासन वाले राज्यों से भी डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को अनुमति देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना सहित अन्य राज्यों से भी डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को अनुमति देने को कहा।

इंटरपोल की सहायता लेने का भी निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़े मध्यस्थों को भी निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि डिजिटल अरेस्ट के मामलों से संबंधित घटनाओं की जांच में सीबीआई को पूरा विवरण मुहैया कराएं और सहयोग भी प्रदान करें। कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि जांच एजेंसी टैक्स के पनाहगाह विदेशी ठिकानों और देशों से संचालित साइबर अपराधियों तक पहुंचने के लिए इंटरपोल की सहायता ले।

आरबीआई को भी नोटिस जारी

साइबर अपराध और डिजिटल अरेस्ट के इस अतिसंवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने पूछा कि साइबर धोखाधड़ी के मामलों में इस्तेमाल किए गए बैंक खातों को फ्रीज करने के लिए एआई या मशीन लर्निंग तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया?

एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट का विपक्ष को झटका, कहा- चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की वैधता पर बहस शुरू हुई। देश के 12 राज्यों में चल रहे एसआईआर पर विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके पास ऐसा करने का पूरा संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि अगर इसमें कोई अनियमितता सामने आई तो वह तुरंत सुधार के आदेश देगा।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें एसआईआर की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एसआईआर के खिलाफ दायर तमिलनाडु, बंगाल और केरल की याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बुधवार को पहले केरल का मुद्दा उठा, जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने के आधार पर फिलहाल एसआइआर टालने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी। फिर तमिलनाडु का मुद्दा उठा, जहां कई याचिकाओं के जरिये एसआइआर को चुनौती दी गई है। इस पर और बंगाल के मामले में भी आयोग को जवाब देने का निर्देश देते हुए नौ दिसंबर की तारीख तय की गई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी डालने पर सवाल उठाया। उन्होंने दलील दी कि देश में लाखों-करोड़ों लोग निरक्षर हैं जो फॉर्म नहीं भर सकते। उनका कहना था कि मतदाता गणना फॉर्म भरवाना ही अपने आप में लोगों को सूची से बाहर करने का हथियार बन गया है। सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि मतदाता को गणना फॉर्म भरने के लिए क्यों कहा जा रहा है? चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दिया कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं? आधार कार्ड में जन्म तिथि और निवास स्थान दर्ज है। 18 साल से ऊपर कोई व्यक्ति अगर स्व-घोषणा कर दे कि वह भारतीय नागरिक है तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने के लिए यही काफी होना चाहिए।

“मतदाता सूची को शुद्ध-अपडेट रखना आयोग का संवैधानिक दायित्व”

इस पर सीजेआई सूर्याकांत ने कहा कि आपने दिल्ली में चुनाव लड़ा है, वहां बहुत लोग वोट डालने नहीं आते. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव त्योहार की तरह मनाया जाता है। वहां हर व्यक्ति को पता होता है कि गांव का निवासी कौन है और कौन नहीं। वहां अधिकतम मतदान होता है और लोग अपने वोट को लेकर बहुत सजग रहते हैं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मतदाता सूची को शुद्ध और अपडेट रखना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है और इसके लिए वह जरूरी कदम उठा सकता है।

“एसआईआर को लेकर कोई ठोस शिकायत नहीं”

बेंच ने स्पष्ट किया कि एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर कोई ठोस शिकायत अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए इसे रोकने का कोई आधार नहीं बनता। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर कोई वास्तविक शिकायत या अनियमितता सामने आती है तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा और सुधार के आदेश देगा।

पश्चिम बंगाल में 23 बीएलओ की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, चुनाव आयोग से मांगा जवाब

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पश्चिम बंगाल वोटरलिस्ट के पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासत गर्म हैं। पश्चिम बंगाल में एसआईआर के दौरान काम के कथित दबाव से बूथ लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) की मौतें एक बड़ा मुद्दा बनती जा रही हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर मामले में 23 बीएलओ की मौत के आरोपों पर गंभीर चिंता जताई। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की ओर से पेश वकील ने इस संबंध में जानकारी दी, जिसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा।

एक दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट में आज चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग से संबंधित विभिन्न मामलों पर सुनवाई हुई, जिसमें वोटर लिस्ट संशोधन, पश्चिम बंगाल में बीएलओ की मौतों और केरल व तमिलनाडु के मुद्दों पर राजनीतिक दलों और एडीआर ने गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग दोनों को 1 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी। वहीं, पश्चिम बंगाल में बीएलओ की मौत के संबंध में भी राज्य चुनाव कार्यालय से 1 दिसंबर तक जवाब तलब किया गया है।

23 बीएलओ की मौत के बाद बढ़ी चिंता

वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया के दौरान अब तक कई राज्यों में बीएलओ की मौत के मामले सामने आए हैं। सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही 23 बीएलओ की मौत हो चुकी है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि केरल राज्य चुनाव आयोग को भी जवाब दाखिल करने की अनुमति दी जाए। इस पर सीजेआई ने सहमति जताई। सीजेआई ने स्पष्ट किया कि केरल मामले में भी 1 दिसंबर तक जवाब दाखिल करना होगा।

राष्‍ट्रपति और राज्‍यपाल विधेयकों को कब तक रोक सकते हैं? प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

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सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को राष्ट्रपति की ओर से संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मांगी गई राय पर अपना फैसला सुना दिया है। सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल पर कोई समय-सीमा नहीं लगा सकता। अदालत ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर अपनी राय देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करने वाला फैसला असंवैधानिक है।

समय सीमा में बांधना संविधान की भावना के विपरीत

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर कोर्ट ने गुरुवार को अपनी राय देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत कोर्ट बिल पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि विधेयक पर फैसला लेने के लिए उन्हें समय सीमा में बांधना संविधान की भावना के विपरीत होगा।

राज्यपालों के पास तीन विकल्प

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत व्यवस्था है कि राज्यपाल विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, विधानसभा को दोबारा भेज सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। अगर विधानसभा किसी बिल को वापस भेजे तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होती है।

विधेयकों को रोकने की अनुमति देना संघवाद के हित के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना रोक कर रखते हैं तो यह संघवाद की भावना के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 'राष्ट्रपति संदर्भ' मामले में कहा हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपालों के लिए समयसीमा तय करना संविधान द्वारा प्रदत्त लचीलेपन की भावना के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबित रखने का असीमित अधिकार है। विधेयकों को रोकने की अनुमति दी जाती है तो यह संघवाद के हित के खिलाफ।

राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुंचाती है, इसलिए इन पदों से अपेक्षा है कि वे उचित समय के भीतर निर्णय लें। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तमिलनाडु के मामले में राज्य के राज्यपाल द्वारा रोक कर रखे गए विधेयकों को शीर्ष अदालत द्वारा 8 अप्रैल को दी गई मान्य स्वीकृति को भी अनुचित बताया। शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आता।

अपने ही डबल बेंच की राय को भी खारिज किया

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही डबल बेंच की राय को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को उनके पास भेजे गए किसी विधेयक की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 143 के तहत राय लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राष्ट्रपति को ऐसी कोई राय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि यद्यपि संवैधानिक न्यायालय राज्यपाल के कार्यों पर सीधे सवाल नहीं उठा सकते, लेकिन यदि राज्यपाल किसी विधेयक के उद्देश्यों को विफल करने के लिए लंबे समय तक कार्रवाई न करें, तो ऐसी लंबी देरी की न्यायिक समीक्षा सीमित परिस्थितियों में की जा सकती है। अदालत यह जांच कर सकती है कि देरी जानबूझकर की गई थी या नहीं।

करूर भगदड़ मामले की जांच सीबीआई के हवाले, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक्टर विजय की बढ़ेंगी मुश्किलें

#karurstampedesupremecourtorderscbiprobe

तमिलनाडु के करूर में अभिनेता-राजनेता विजय के रैली के दौरान मची भगदड़ मामले की जांच सीबीआई करेगी। विजय के रैली के दौरान मची भगदड़ मामले में अभिनेता विजय की पार्टी तमिलागा वेत्री कझागम (टीवीके) ने सुप्रीम कोर्ट में स्वतंत्र जांच की याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर अपना फैसला सुनाया और मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। बता दे कि विजय की रैली के दौरान 41 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे।

जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित

कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष और पारदर्शी जांच नागरिकों का अधिकार है। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अजय रस्तोगी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल गठित किया गया, जो सीबीआई जांच की निगरानी करेगी। इस कमेटी में तमिलनाडु कैडर के दो आईपीएस अधिकारी, जो तमिलनाडु के निवासी न हों, शामिल किए जा सकते हैं। सीबीआई अधिकारी हर महीने जांच की प्रगति रिपोर्ट इस समिति को सौंपेंगे।

पहले मद्रास हाई कोर्ट ने किया था एसआईटी का गठन

बता दें कि टीवीके ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि भगदड़ की जांच एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की निगरानी में हो, क्योंकि पार्टी का कहना है कि सिर्फ तमिलनाडु पुलिस की तरफ से बनाई गई विशेष जांच दल (एसआईटी) से जनता का भरोसा नहीं बनेगा। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि भगदड़ पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा हो सकता है। टीवीके के सचिव आधव अर्जुना ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था। इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने एसआईटी का गठन किया था, जिसे टीवीके ने चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने की मद्रास हाई कोर्ट की आलोचना

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट (चेन्नई बेंच) की भी आलोचना की कि उसने एक ऐसी याचिका पर विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आदेश दे दिया, जो वास्तव में केवल राजनीतिक रैलियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने की मांग कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से यह रिपोर्ट भी मांगी कि कैसे एसओपी से संबंधित याचिका को क्रिमिनल रिट याचिका के रूप में दर्ज किया गया।

चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने की कोशिश, आरोपी वकील ने लगाया- ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा

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सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई पर हमला करने की कोशिश की। सोमवार को कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर जूता उछालने की कोशिश की। इस घटना के तुरंत पर वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी एक्शन में आ गए और उसके अदालत कक्ष से बाहर निकाल दिया। इस घटना के बाद कुछ समय तक अदालत की कार्रवाई स्थगित रही। बाद में कार्रवाई सुचारु रूप से शुरू हो सकी।

जानकारी के मुताबिक, वकील भरी अदालत में ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा लगाने लगा और फिर सीजेआई गवई की तरफ जूता फेंकने की कोशिश की। आरोपी की पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है। यह पूरी घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम में हुई। बाद में कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे बाहर निकाला। इससे कुछ देर के लिए कोर्ट की कार्यवाही बाधित रही।

सीजेआई गवई की प्रतिक्रिया आई सामने

यह घटना उस वक्त हुई जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच वकीलों के मामलों की सुनवाई के लिए मेंशन सुन रही थी। बताया जा रहा है कि वकील राकेश किशोर जज के डाइस के करीब पहुंचा और जूता उतारकर फेंकने की कोशिश की। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सीजेआई शांत बने रहे। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

भगवान विष्णु की मूर्ति पर की थी टिप्पणी

माना जा रहा है कि यह घटना खजुराहो में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति से जुड़े एक पुराने मामले में सीजेआई की टिप्पणी को लेकर हुई है, टिप्पणी का कई हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था। दरअसल, खजुराहो में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की एक शख्स की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था कि, जाकर स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था रखते हैं, तो प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।

सीजेआई की टिप्पणी की जमकर हुई आलोचना

सितंबर में जस्टिस बीआर गवई की भगवान विष्णु की प्रतिमा के पुनर्निर्माण के मामले में टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई थी। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके विरोध की बाढ़ आ गई थी और कई लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग की थी। जिसके बाद आलोचना के मद्देनजर सीजेआई ने कहा था कि वह 'सभी धर्मों' का सम्मान करते हैं।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, जानें कोर्ट ने क्‍या कहा

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सुप्रीम कोर्ट आज (6 अक्तूबर) को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई गिरफ्तारी को चुनौती दी गई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। कोर्ट ने इस मामले में तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जवाब मांगा है।

पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने 2 अक्टूबर को यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक की गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से की गई है। साथ ही, गिरफ्तारी से उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। याचिका में उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद सरकार से जवाब मांगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वांगचुक के वकील से यह भी पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए।

सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई

इस पर गीतांजलि आंग्मो की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की। उन्होंने जजों से कहा कि परिवार को सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई गई हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वांगचुक को हिरासत के आधार बताए गए हैं।

14 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी है। सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंग्मो की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि हिरासत के आधार परिवार को नहीं बताए गए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत के आधार पहले ही बंदी को सौंपे जा चुके हैं, और वह उनकी पत्नी को आधार की एक प्रति दिए जाने की जांच करेंगे।

26 सितंबर को हुई थी गिरफ्तारी

वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख से गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वे जोधपुर की एक जेल में बंद हैं। यह गिरफ्तारी लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद की गई थी। इस हिंसा में जिसमें चार लोगों की मौत और करीब 90 लोग घायल हुए थे।

वांगचुक की पत्नी की याचिका में क्या है

इसके बाद वांगचुक की पत्नी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका कर हिरासत को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक के पाकिस्तान-चीन लिंक का झूठा प्रचार इस गांधीवादी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है। सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक झूठा और खतरनाक नैरेटिव फैलाया जा रहा है, जिससे उनके गांधीवादी आंदोलन को पाकिस्तान और चीन से जोड़कर बदनाम किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि ऐसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें लोकतांत्रिक असहमति को कलंकित करने का प्रयास हैं। याचिका में दावा किया गया है कि वास्तव में वांगचुक हमेशा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए काम करते रहे हैं और भारतीय सेना की मदद के लिए ऊंचाई वाले इलाकों में शेल्टर जैसी नई-नई तकनीकें विकसित की हैं। ये गिरफ्तारी गैरकानूनी है। उन्हें डिटेंशन ऑर्डर की कॉपी नहीं दी गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक न तो सोनम वांगचुक और न ही उनकी पत्नी को गिरफ्तारी आदेश या उसके आधार बताए गए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है।

सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, पति की गिरफ्तारी को दी चुनौती

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लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सोनम वांगचुक की पत्नी ने अपने पति की गिरफ्तारी को चुनौती दी है। गीतांजलि ने हेबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है। उन्होंने सोनम की तत्काल रिहाई की मांग की है। गीतांजलि ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने सरकार पर सोनम को "देशद्रोही" बताकर बदनाम करने का आरोप लगाया है।

गिरफ्तारी को बताया अवैध

सोनम वांगचुक की पत्नी ने याचिका में कहा गया है कि सोनम लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। उन पर गलत आरोप लगाए गए। अब उन्हें एनएसए के तहत हिरासत में लेकर जोधपुर ले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन प्रशासन ने इससे जुड़ा डिटेंशन ऑर्डर उपलब्ध नहीं करवाया है। ऐसे में यह हिरासत अवैध है। सोनम को रिहा किया जाए।

हिंसक झड़पों के बाद किए गए गिरफ्तार

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरण वैज्ञानिक सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं। सोनम वांगचुक को 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक झड़पों के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद से वह राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद हैं। अब वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने लद्दाख प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई उनके पति की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से खास अपील

गीतांजलि ने यह कदम सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तत्काल हस्तक्षेप की मांग के एक दिन बाद उठाया है। उन्होंने अपील की कि राष्ट्रपति एक आदिवासी होने के चलते लद्दाख के लोगों की भावनाओं को समझें। राष्ट्रपति मुर्मू को भेजे 3 पेज के पत्र में अंगमो ने आरोप लगाया कि पिछले 4 सालों से लोगों के हितों के लिए काम करने के कारण उनके पति के खिलाफ जासूसी कराई जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पति की स्थिति के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं। गीतांजलि ने अपने पति की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की है। उन्होंने अपने पत्र में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लेह जिला कलेक्टर से भी अपील की। उन्होंने अपना पत्र एक्स (ट्विटर) पर शेयर किया था।

भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार

बता दें कि सोनम वांगचुक राज्य का दर्जा, स्थानीय नौकरी सुरक्षा और लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर थे। धरना-प्रदर्शन और भूख हड़ताल के जरिए चल रहे आंदोलन ने पिछले दिनों उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस के साथ झड़पों में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। हिंसा को देखते हुए उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और शांति की अपील की। हालांकि, उन्हें हिंसक प्रदर्शनों और और भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने BLO की मौत पर जताई चिंता, कहा-काम का बोझ कम करें, दिए कई बड़े निर्देश

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विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण यानी एसआईआर के दौरान के बीएलओ की हुई मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। इन स्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब राज्य सरकारों के लिए निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि बीएलओ के काम के घंटे कम करने के लिए राज्य सरकारें अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती करे। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने संबंधित मौतों और कथित आत्महत्याओं के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने से इनकार कर दिया है।

राज्य सरकारों को कर्मचारी बढ़ाने का निर्देश

सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव से संबंधित कार्यों के लिए पर्याप्त स्टाफ सुनिश्चित करना पूरी तरह राज्य सरकारों जिम्मेदारी है। न्यायालय ने बीएलओ की मौत और आत्महत्याओं को स्वीकार करे हुए कहा कि चुनावी रोल और संबंधित कार्यों के लिए तैनाती एक कानूनी प्रक्रिया है, और राज्यों को मौजूदा कर्मचारियों पर बोझ कम करने के लिए पर्याप्त जनशक्ति प्रदान करनी चाहिए।

बीमार या असमर्थ कर्मचारियों के बदले वैकल्पिक तैनाती का निर्देश

चीफ जस्टिस सूर्यकांत के नेतृत्व वाली बेंच ने यह भी आदेश दिया कि जिन लोगों ने चुनाव आयोग की ओर से जारी एसआईआर प्रक्रिया में ड्यूटी से छूट के लिए सही और स्पष्ट वजहें दी हों, उनके अनुरोधों पर राज्य सरकार और सक्षम प्राधिकारी विचार करें और मामलों के आधार पर उन लोगों की जगह दूसरे कर्मियों की तैनाती की जाए। सीजेआई ने कहा, राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि अगर जरूरत है तो वह इस काम के लिए जरूरी कार्यबल मुहैया कराए।

टीवीके ने दायर की है याचिका

बता दें कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर प्रक्रिया को अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी- तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) की ओर से चुनौती दी गई है। तमिलनाडु के राजनीतिक दल टीवीके की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष दलील दी गई कि अब तक देश के अलग अलग राज्यों में 35–40 बीएलओ की मृत्यु काम के अत्यधिक दबाव के कारण हुई है। इसलिए हमने मुआवज़ा देने की मांग की है।

भारत धर्मशाला नहीं, घुसपैठियों के लिए ‘रेड कार्पेट’ नहीं बिछा सकते, सीजेआई सूर्यकांत की दो टूक

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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार का दिन रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर बेहद गर्म रहा। पाँच रोहिंग्या नागरिकों के कथित हिरासत में गायब होने (कस्टोडियल डिसअपीयरेंस) को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कड़ा रुख अपनाया। याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने की मांग की थी, लेकिन सीजेआई की पीठ ने इस मांग को साफ तौर पर खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता पर कड़ा रुख अपनाया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने सीधा सवाल किया कि क्या भारत सरकार ने रोहिंग्याओं को कभी ‘शरणार्थी’ माना है। उन्होंने साफ कहा कि ‘शरणार्थी’ एक कानूनी शब्द है। सीजेआई ने टिप्पणी की कि जो लोग अवैध तरीके से देश में घुसते हैं, उनके लिए हम रेड कार्पेट नहीं बिछा सकते हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध घुसपैठ से जुड़े मुद्दे गंभीर

सीजेआई सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, आप जानते हैं कि ये लोग घुसपैठिए हैं। नॉर्थ-ईस्ट की सीमा बेहद संवेदनशील है। उन्होंने आगे कहा, देश में क्या-क्या हो रहा है, आप जानते हैं? अगर कोई गैरकानूनी तरीके से आता है। वो सुरंगों से घुस आते हैं, तब भी आप उनके लिए रेड कार्पेट चाहते हैं। आप कह रहे हैं कि उन्हें खाना, आश्रय, बच्चों के लिए शिक्षा… क्या कानून को इतना खींच दें?अदालत ने साफ कर दिया कि जहाँ मानवाधिकार महत्व रखते हैं, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध घुसपैठ से जुड़े मुद्दे भी उतने ही गंभीर हैं।

याचिकाकर्ता के तर्क पर कोर्ट का रुख

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में बताया कि वे रोहिंग्याओं के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं माँग रहे हैं। उनकी बस यही माँग है कि अगर उन्हें उनके देश वापस भेजा जाए तो यह काम कानून के हिसाब से होना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि रोहिंग्याओं का कानूनी दर्जा तय हुए बिना उनके अधिकारों पर बात नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि भारत दुनिया की ‘धर्मशाला नहीं बन सकता’ जहाँ से चाहे शरणार्थी आ जाएँ। 

16 दिसंबर तक टली सुनवाई

इस मामले को अब अन्य रोहिंग्या मामलों के साथ ही सुना जाएगा। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 दिसंबर तक के लिए टाल दी है। उसी दिन रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े अन्य मामलों की भी सुनवाई होगी।

डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सीबीआई को बड़ा आदेश, कहा-देशभर में तुरंत जांच शुरू करे

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डिजिटल अरेस्ट मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने पूरे देश के डिजिटल अरेस्ट मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी है। शीर्ष अदालत ने देश की संघीय जांच एजेंसी से कहा कि वह पहले अखिल भारतीय स्तर पर सामने आ चुके डिजिटल अरेस्ट घोटाले के मामलों की जांच करे।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस ठगी पर सख्ती दिखाई है, जिसमें लोगों को फोन करके ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर करोड़ों रुपए लुटे जा रहे थे। कोर्ट ने साफ कहा कि अब ये मामला सिर्फ राज्यों का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। इसलिए इस पूरे गिरोह की जांच सीबीआई करेगी और वो भी देशभर में फैलकर।

सभी राज्यों को सीबीआई को अनुमति देने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी राजनीतिक दलों के शासन वाले राज्यों से भी डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को अनुमति देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना सहित अन्य राज्यों से भी डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को अनुमति देने को कहा।

इंटरपोल की सहायता लेने का भी निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़े मध्यस्थों को भी निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि डिजिटल अरेस्ट के मामलों से संबंधित घटनाओं की जांच में सीबीआई को पूरा विवरण मुहैया कराएं और सहयोग भी प्रदान करें। कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि जांच एजेंसी टैक्स के पनाहगाह विदेशी ठिकानों और देशों से संचालित साइबर अपराधियों तक पहुंचने के लिए इंटरपोल की सहायता ले।

आरबीआई को भी नोटिस जारी

साइबर अपराध और डिजिटल अरेस्ट के इस अतिसंवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने पूछा कि साइबर धोखाधड़ी के मामलों में इस्तेमाल किए गए बैंक खातों को फ्रीज करने के लिए एआई या मशीन लर्निंग तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया?

एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट का विपक्ष को झटका, कहा- चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की वैधता पर बहस शुरू हुई। देश के 12 राज्यों में चल रहे एसआईआर पर विपक्ष को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके पास ऐसा करने का पूरा संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को रोकने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि अगर इसमें कोई अनियमितता सामने आई तो वह तुरंत सुधार के आदेश देगा।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें एसआईआर की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एसआईआर के खिलाफ दायर तमिलनाडु, बंगाल और केरल की याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बुधवार को पहले केरल का मुद्दा उठा, जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने के आधार पर फिलहाल एसआइआर टालने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी। फिर तमिलनाडु का मुद्दा उठा, जहां कई याचिकाओं के जरिये एसआइआर को चुनौती दी गई है। इस पर और बंगाल के मामले में भी आयोग को जवाब देने का निर्देश देते हुए नौ दिसंबर की तारीख तय की गई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी डालने पर सवाल उठाया। उन्होंने दलील दी कि देश में लाखों-करोड़ों लोग निरक्षर हैं जो फॉर्म नहीं भर सकते। उनका कहना था कि मतदाता गणना फॉर्म भरवाना ही अपने आप में लोगों को सूची से बाहर करने का हथियार बन गया है। सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि मतदाता को गणना फॉर्म भरने के लिए क्यों कहा जा रहा है? चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दिया कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं? आधार कार्ड में जन्म तिथि और निवास स्थान दर्ज है। 18 साल से ऊपर कोई व्यक्ति अगर स्व-घोषणा कर दे कि वह भारतीय नागरिक है तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने के लिए यही काफी होना चाहिए।

“मतदाता सूची को शुद्ध-अपडेट रखना आयोग का संवैधानिक दायित्व”

इस पर सीजेआई सूर्याकांत ने कहा कि आपने दिल्ली में चुनाव लड़ा है, वहां बहुत लोग वोट डालने नहीं आते. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव त्योहार की तरह मनाया जाता है। वहां हर व्यक्ति को पता होता है कि गांव का निवासी कौन है और कौन नहीं। वहां अधिकतम मतदान होता है और लोग अपने वोट को लेकर बहुत सजग रहते हैं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मतदाता सूची को शुद्ध और अपडेट रखना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है और इसके लिए वह जरूरी कदम उठा सकता है।

“एसआईआर को लेकर कोई ठोस शिकायत नहीं”

बेंच ने स्पष्ट किया कि एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर कोई ठोस शिकायत अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए इसे रोकने का कोई आधार नहीं बनता। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर कोई वास्तविक शिकायत या अनियमितता सामने आती है तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा और सुधार के आदेश देगा।

पश्चिम बंगाल में 23 बीएलओ की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, चुनाव आयोग से मांगा जवाब

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पश्चिम बंगाल वोटरलिस्ट के पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासत गर्म हैं। पश्चिम बंगाल में एसआईआर के दौरान काम के कथित दबाव से बूथ लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) की मौतें एक बड़ा मुद्दा बनती जा रही हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर मामले में 23 बीएलओ की मौत के आरोपों पर गंभीर चिंता जताई। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की ओर से पेश वकील ने इस संबंध में जानकारी दी, जिसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा।

एक दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट में आज चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग से संबंधित विभिन्न मामलों पर सुनवाई हुई, जिसमें वोटर लिस्ट संशोधन, पश्चिम बंगाल में बीएलओ की मौतों और केरल व तमिलनाडु के मुद्दों पर राजनीतिक दलों और एडीआर ने गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग दोनों को 1 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी। वहीं, पश्चिम बंगाल में बीएलओ की मौत के संबंध में भी राज्य चुनाव कार्यालय से 1 दिसंबर तक जवाब तलब किया गया है।

23 बीएलओ की मौत के बाद बढ़ी चिंता

वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया के दौरान अब तक कई राज्यों में बीएलओ की मौत के मामले सामने आए हैं। सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही 23 बीएलओ की मौत हो चुकी है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि केरल राज्य चुनाव आयोग को भी जवाब दाखिल करने की अनुमति दी जाए। इस पर सीजेआई ने सहमति जताई। सीजेआई ने स्पष्ट किया कि केरल मामले में भी 1 दिसंबर तक जवाब दाखिल करना होगा।

राष्‍ट्रपति और राज्‍यपाल विधेयकों को कब तक रोक सकते हैं? प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

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सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को राष्ट्रपति की ओर से संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मांगी गई राय पर अपना फैसला सुना दिया है। सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल पर कोई समय-सीमा नहीं लगा सकता। अदालत ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर अपनी राय देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करने वाला फैसला असंवैधानिक है।

समय सीमा में बांधना संविधान की भावना के विपरीत

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर कोर्ट ने गुरुवार को अपनी राय देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत कोर्ट बिल पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि विधेयक पर फैसला लेने के लिए उन्हें समय सीमा में बांधना संविधान की भावना के विपरीत होगा।

राज्यपालों के पास तीन विकल्प

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत व्यवस्था है कि राज्यपाल विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, विधानसभा को दोबारा भेज सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। अगर विधानसभा किसी बिल को वापस भेजे तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होती है।

विधेयकों को रोकने की अनुमति देना संघवाद के हित के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना रोक कर रखते हैं तो यह संघवाद की भावना के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 'राष्ट्रपति संदर्भ' मामले में कहा हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपालों के लिए समयसीमा तय करना संविधान द्वारा प्रदत्त लचीलेपन की भावना के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबित रखने का असीमित अधिकार है। विधेयकों को रोकने की अनुमति दी जाती है तो यह संघवाद के हित के खिलाफ।

राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुंचाती है, इसलिए इन पदों से अपेक्षा है कि वे उचित समय के भीतर निर्णय लें। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तमिलनाडु के मामले में राज्य के राज्यपाल द्वारा रोक कर रखे गए विधेयकों को शीर्ष अदालत द्वारा 8 अप्रैल को दी गई मान्य स्वीकृति को भी अनुचित बताया। शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आता।

अपने ही डबल बेंच की राय को भी खारिज किया

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही डबल बेंच की राय को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को उनके पास भेजे गए किसी विधेयक की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 143 के तहत राय लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राष्ट्रपति को ऐसी कोई राय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि यद्यपि संवैधानिक न्यायालय राज्यपाल के कार्यों पर सीधे सवाल नहीं उठा सकते, लेकिन यदि राज्यपाल किसी विधेयक के उद्देश्यों को विफल करने के लिए लंबे समय तक कार्रवाई न करें, तो ऐसी लंबी देरी की न्यायिक समीक्षा सीमित परिस्थितियों में की जा सकती है। अदालत यह जांच कर सकती है कि देरी जानबूझकर की गई थी या नहीं।

करूर भगदड़ मामले की जांच सीबीआई के हवाले, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक्टर विजय की बढ़ेंगी मुश्किलें

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तमिलनाडु के करूर में अभिनेता-राजनेता विजय के रैली के दौरान मची भगदड़ मामले की जांच सीबीआई करेगी। विजय के रैली के दौरान मची भगदड़ मामले में अभिनेता विजय की पार्टी तमिलागा वेत्री कझागम (टीवीके) ने सुप्रीम कोर्ट में स्वतंत्र जांच की याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर अपना फैसला सुनाया और मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। बता दे कि विजय की रैली के दौरान 41 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे।

जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित

कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष और पारदर्शी जांच नागरिकों का अधिकार है। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अजय रस्तोगी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल गठित किया गया, जो सीबीआई जांच की निगरानी करेगी। इस कमेटी में तमिलनाडु कैडर के दो आईपीएस अधिकारी, जो तमिलनाडु के निवासी न हों, शामिल किए जा सकते हैं। सीबीआई अधिकारी हर महीने जांच की प्रगति रिपोर्ट इस समिति को सौंपेंगे।

पहले मद्रास हाई कोर्ट ने किया था एसआईटी का गठन

बता दें कि टीवीके ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि भगदड़ की जांच एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की निगरानी में हो, क्योंकि पार्टी का कहना है कि सिर्फ तमिलनाडु पुलिस की तरफ से बनाई गई विशेष जांच दल (एसआईटी) से जनता का भरोसा नहीं बनेगा। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि भगदड़ पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा हो सकता है। टीवीके के सचिव आधव अर्जुना ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था। इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने एसआईटी का गठन किया था, जिसे टीवीके ने चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने की मद्रास हाई कोर्ट की आलोचना

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट (चेन्नई बेंच) की भी आलोचना की कि उसने एक ऐसी याचिका पर विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आदेश दे दिया, जो वास्तव में केवल राजनीतिक रैलियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने की मांग कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से यह रिपोर्ट भी मांगी कि कैसे एसओपी से संबंधित याचिका को क्रिमिनल रिट याचिका के रूप में दर्ज किया गया।

चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने की कोशिश, आरोपी वकील ने लगाया- ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा

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सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई पर हमला करने की कोशिश की। सोमवार को कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर जूता उछालने की कोशिश की। इस घटना के तुरंत पर वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी एक्शन में आ गए और उसके अदालत कक्ष से बाहर निकाल दिया। इस घटना के बाद कुछ समय तक अदालत की कार्रवाई स्थगित रही। बाद में कार्रवाई सुचारु रूप से शुरू हो सकी।

जानकारी के मुताबिक, वकील भरी अदालत में ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा लगाने लगा और फिर सीजेआई गवई की तरफ जूता फेंकने की कोशिश की। आरोपी की पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है। यह पूरी घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम में हुई। बाद में कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे बाहर निकाला। इससे कुछ देर के लिए कोर्ट की कार्यवाही बाधित रही।

सीजेआई गवई की प्रतिक्रिया आई सामने

यह घटना उस वक्त हुई जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच वकीलों के मामलों की सुनवाई के लिए मेंशन सुन रही थी। बताया जा रहा है कि वकील राकेश किशोर जज के डाइस के करीब पहुंचा और जूता उतारकर फेंकने की कोशिश की। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सीजेआई शांत बने रहे। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

भगवान विष्णु की मूर्ति पर की थी टिप्पणी

माना जा रहा है कि यह घटना खजुराहो में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति से जुड़े एक पुराने मामले में सीजेआई की टिप्पणी को लेकर हुई है, टिप्पणी का कई हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था। दरअसल, खजुराहो में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की एक शख्स की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था कि, जाकर स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था रखते हैं, तो प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।

सीजेआई की टिप्पणी की जमकर हुई आलोचना

सितंबर में जस्टिस बीआर गवई की भगवान विष्णु की प्रतिमा के पुनर्निर्माण के मामले में टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई थी। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके विरोध की बाढ़ आ गई थी और कई लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग की थी। जिसके बाद आलोचना के मद्देनजर सीजेआई ने कहा था कि वह 'सभी धर्मों' का सम्मान करते हैं।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, जानें कोर्ट ने क्‍या कहा

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सुप्रीम कोर्ट आज (6 अक्तूबर) को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई गिरफ्तारी को चुनौती दी गई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। कोर्ट ने इस मामले में तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जवाब मांगा है।

पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने 2 अक्टूबर को यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक की गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से की गई है। साथ ही, गिरफ्तारी से उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। याचिका में उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद सरकार से जवाब मांगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वांगचुक के वकील से यह भी पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए।

सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई

इस पर गीतांजलि आंग्मो की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की। उन्होंने जजों से कहा कि परिवार को सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई गई हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वांगचुक को हिरासत के आधार बताए गए हैं।

14 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी है। सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंग्मो की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि हिरासत के आधार परिवार को नहीं बताए गए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत के आधार पहले ही बंदी को सौंपे जा चुके हैं, और वह उनकी पत्नी को आधार की एक प्रति दिए जाने की जांच करेंगे।

26 सितंबर को हुई थी गिरफ्तारी

वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख से गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वे जोधपुर की एक जेल में बंद हैं। यह गिरफ्तारी लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद की गई थी। इस हिंसा में जिसमें चार लोगों की मौत और करीब 90 लोग घायल हुए थे।

वांगचुक की पत्नी की याचिका में क्या है

इसके बाद वांगचुक की पत्नी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका कर हिरासत को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक के पाकिस्तान-चीन लिंक का झूठा प्रचार इस गांधीवादी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है। सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक झूठा और खतरनाक नैरेटिव फैलाया जा रहा है, जिससे उनके गांधीवादी आंदोलन को पाकिस्तान और चीन से जोड़कर बदनाम किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि ऐसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें लोकतांत्रिक असहमति को कलंकित करने का प्रयास हैं। याचिका में दावा किया गया है कि वास्तव में वांगचुक हमेशा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए काम करते रहे हैं और भारतीय सेना की मदद के लिए ऊंचाई वाले इलाकों में शेल्टर जैसी नई-नई तकनीकें विकसित की हैं। ये गिरफ्तारी गैरकानूनी है। उन्हें डिटेंशन ऑर्डर की कॉपी नहीं दी गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक न तो सोनम वांगचुक और न ही उनकी पत्नी को गिरफ्तारी आदेश या उसके आधार बताए गए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है।

सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, पति की गिरफ्तारी को दी चुनौती

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लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सोनम वांगचुक की पत्नी ने अपने पति की गिरफ्तारी को चुनौती दी है। गीतांजलि ने हेबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है। उन्होंने सोनम की तत्काल रिहाई की मांग की है। गीतांजलि ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने सरकार पर सोनम को "देशद्रोही" बताकर बदनाम करने का आरोप लगाया है।

गिरफ्तारी को बताया अवैध

सोनम वांगचुक की पत्नी ने याचिका में कहा गया है कि सोनम लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। उन पर गलत आरोप लगाए गए। अब उन्हें एनएसए के तहत हिरासत में लेकर जोधपुर ले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन प्रशासन ने इससे जुड़ा डिटेंशन ऑर्डर उपलब्ध नहीं करवाया है। ऐसे में यह हिरासत अवैध है। सोनम को रिहा किया जाए।

हिंसक झड़पों के बाद किए गए गिरफ्तार

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरण वैज्ञानिक सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं। सोनम वांगचुक को 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक झड़पों के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद से वह राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद हैं। अब वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने लद्दाख प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई उनके पति की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से खास अपील

गीतांजलि ने यह कदम सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तत्काल हस्तक्षेप की मांग के एक दिन बाद उठाया है। उन्होंने अपील की कि राष्ट्रपति एक आदिवासी होने के चलते लद्दाख के लोगों की भावनाओं को समझें। राष्ट्रपति मुर्मू को भेजे 3 पेज के पत्र में अंगमो ने आरोप लगाया कि पिछले 4 सालों से लोगों के हितों के लिए काम करने के कारण उनके पति के खिलाफ जासूसी कराई जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पति की स्थिति के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं। गीतांजलि ने अपने पति की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की है। उन्होंने अपने पत्र में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लेह जिला कलेक्टर से भी अपील की। उन्होंने अपना पत्र एक्स (ट्विटर) पर शेयर किया था।

भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार

बता दें कि सोनम वांगचुक राज्य का दर्जा, स्थानीय नौकरी सुरक्षा और लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर थे। धरना-प्रदर्शन और भूख हड़ताल के जरिए चल रहे आंदोलन ने पिछले दिनों उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस के साथ झड़पों में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। हिंसा को देखते हुए उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और शांति की अपील की। हालांकि, उन्हें हिंसक प्रदर्शनों और और भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।