/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png StreetBuzz s:supreme
चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने की कोशिश, आरोपी वकील ने लगाया- ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा

#lawyer_hurled_shoe_at_cji_br_gavai_in_supreme_court

सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई पर हमला करने की कोशिश की। सोमवार को कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर जूता उछालने की कोशिश की। इस घटना के तुरंत पर वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी एक्शन में आ गए और उसके अदालत कक्ष से बाहर निकाल दिया। इस घटना के बाद कुछ समय तक अदालत की कार्रवाई स्थगित रही। बाद में कार्रवाई सुचारु रूप से शुरू हो सकी।

जानकारी के मुताबिक, वकील भरी अदालत में ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा लगाने लगा और फिर सीजेआई गवई की तरफ जूता फेंकने की कोशिश की। आरोपी की पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है। यह पूरी घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम में हुई। बाद में कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे बाहर निकाला। इससे कुछ देर के लिए कोर्ट की कार्यवाही बाधित रही।

सीजेआई गवई की प्रतिक्रिया आई सामने

यह घटना उस वक्त हुई जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच वकीलों के मामलों की सुनवाई के लिए मेंशन सुन रही थी। बताया जा रहा है कि वकील राकेश किशोर जज के डाइस के करीब पहुंचा और जूता उतारकर फेंकने की कोशिश की। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सीजेआई शांत बने रहे। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

भगवान विष्णु की मूर्ति पर की थी टिप्पणी

माना जा रहा है कि यह घटना खजुराहो में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति से जुड़े एक पुराने मामले में सीजेआई की टिप्पणी को लेकर हुई है, टिप्पणी का कई हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था। दरअसल, खजुराहो में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की एक शख्स की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था कि, जाकर स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था रखते हैं, तो प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।

सीजेआई की टिप्पणी की जमकर हुई आलोचना

सितंबर में जस्टिस बीआर गवई की भगवान विष्णु की प्रतिमा के पुनर्निर्माण के मामले में टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई थी। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके विरोध की बाढ़ आ गई थी और कई लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग की थी। जिसके बाद आलोचना के मद्देनजर सीजेआई ने कहा था कि वह 'सभी धर्मों' का सम्मान करते हैं।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, जानें कोर्ट ने क्‍या कहा

#supremecourtissuesnoticetocentreladakhjodhpurcentraljailsponapleaofsonamwangchuk_wife

सुप्रीम कोर्ट आज (6 अक्तूबर) को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई गिरफ्तारी को चुनौती दी गई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। कोर्ट ने इस मामले में तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जवाब मांगा है।

पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने 2 अक्टूबर को यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक की गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से की गई है। साथ ही, गिरफ्तारी से उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। याचिका में उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद सरकार से जवाब मांगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वांगचुक के वकील से यह भी पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए।

सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई

इस पर गीतांजलि आंग्मो की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की। उन्होंने जजों से कहा कि परिवार को सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई गई हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वांगचुक को हिरासत के आधार बताए गए हैं।

14 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी है। सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंग्मो की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि हिरासत के आधार परिवार को नहीं बताए गए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत के आधार पहले ही बंदी को सौंपे जा चुके हैं, और वह उनकी पत्नी को आधार की एक प्रति दिए जाने की जांच करेंगे।

26 सितंबर को हुई थी गिरफ्तारी

वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख से गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वे जोधपुर की एक जेल में बंद हैं। यह गिरफ्तारी लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद की गई थी। इस हिंसा में जिसमें चार लोगों की मौत और करीब 90 लोग घायल हुए थे।

वांगचुक की पत्नी की याचिका में क्या है

इसके बाद वांगचुक की पत्नी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका कर हिरासत को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक के पाकिस्तान-चीन लिंक का झूठा प्रचार इस गांधीवादी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है। सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक झूठा और खतरनाक नैरेटिव फैलाया जा रहा है, जिससे उनके गांधीवादी आंदोलन को पाकिस्तान और चीन से जोड़कर बदनाम किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि ऐसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें लोकतांत्रिक असहमति को कलंकित करने का प्रयास हैं। याचिका में दावा किया गया है कि वास्तव में वांगचुक हमेशा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए काम करते रहे हैं और भारतीय सेना की मदद के लिए ऊंचाई वाले इलाकों में शेल्टर जैसी नई-नई तकनीकें विकसित की हैं। ये गिरफ्तारी गैरकानूनी है। उन्हें डिटेंशन ऑर्डर की कॉपी नहीं दी गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक न तो सोनम वांगचुक और न ही उनकी पत्नी को गिरफ्तारी आदेश या उसके आधार बताए गए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है।

सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, पति की गिरफ्तारी को दी चुनौती

#sonamwangchukwifegitanjaliangmomovessupreme_court

लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सोनम वांगचुक की पत्नी ने अपने पति की गिरफ्तारी को चुनौती दी है। गीतांजलि ने हेबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है। उन्होंने सोनम की तत्काल रिहाई की मांग की है। गीतांजलि ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने सरकार पर सोनम को "देशद्रोही" बताकर बदनाम करने का आरोप लगाया है।

गिरफ्तारी को बताया अवैध

सोनम वांगचुक की पत्नी ने याचिका में कहा गया है कि सोनम लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। उन पर गलत आरोप लगाए गए। अब उन्हें एनएसए के तहत हिरासत में लेकर जोधपुर ले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन प्रशासन ने इससे जुड़ा डिटेंशन ऑर्डर उपलब्ध नहीं करवाया है। ऐसे में यह हिरासत अवैध है। सोनम को रिहा किया जाए।

हिंसक झड़पों के बाद किए गए गिरफ्तार

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरण वैज्ञानिक सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं। सोनम वांगचुक को 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक झड़पों के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद से वह राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद हैं। अब वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने लद्दाख प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई उनके पति की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से खास अपील

गीतांजलि ने यह कदम सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तत्काल हस्तक्षेप की मांग के एक दिन बाद उठाया है। उन्होंने अपील की कि राष्ट्रपति एक आदिवासी होने के चलते लद्दाख के लोगों की भावनाओं को समझें। राष्ट्रपति मुर्मू को भेजे 3 पेज के पत्र में अंगमो ने आरोप लगाया कि पिछले 4 सालों से लोगों के हितों के लिए काम करने के कारण उनके पति के खिलाफ जासूसी कराई जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पति की स्थिति के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं। गीतांजलि ने अपने पति की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की है। उन्होंने अपने पत्र में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लेह जिला कलेक्टर से भी अपील की। उन्होंने अपना पत्र एक्स (ट्विटर) पर शेयर किया था।

भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार

बता दें कि सोनम वांगचुक राज्य का दर्जा, स्थानीय नौकरी सुरक्षा और लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर थे। धरना-प्रदर्शन और भूख हड़ताल के जरिए चल रहे आंदोलन ने पिछले दिनों उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस के साथ झड़पों में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। हिंसा को देखते हुए उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और शांति की अपील की। हालांकि, उन्हें हिंसक प्रदर्शनों और और भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पूरे एक्ट पर रोक से इनकार

#waqfamendmentactsupremecourt_verdict

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सीजेआई गवई ने साफ किया कि इस पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने दो अहम प्रावधानों पर रोक लगाई गई है। जिन दो प्रावधानों पर रोक लगाई है वो है- जिला कलेक्टर यह तय नहीं कर सकता कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं यह काम विधायिका और न्यायपालिका की भूमिका में हस्तक्षेप करता है और शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। साथ ही उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था।

शीर्ष अदालत ने वक्फ कानून से जुड़ी धारा 3 और धारा 4 पर रोक लगा दी है। सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि हमारे पास पूरे कानून पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये फैसला कानून की संवैधानिकता पर नहीं है। अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड का सीईओ मुस्लिम समुदाय से हो। कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड को 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर -मुस्लिम ना हो। कोर्ट ने इसके साथ ही राजस्व से संबंधित कानून पर रोक लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की उस प्रावधान पर रोक लगा दी है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना अनिवार्य था। अदालत ने कहा कि यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।

सीजेआई ने कहा कि हमने यह माना है कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है। केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही उस पर रोक लगाई जाती है। उन्होंने कहा कि हमने 1923 के अधिनियम से लेकर अब तक की विधायी पृष्ठभूमि का अध्ययन किया है। हमने प्रत्येक धारा को लेकर प्राथमिक स्तर पर चुनौती पर विचार किया, और पक्षों को सुनने के बाद यह पाया कि पूरे अधिनियम के प्रावधानों पर रोक लगाने का मामला सिद्ध नहीं हुआ है।

किन तीन मुद्दों पर सुनाया अंतरिम फैसला?

• क्या वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को अदालतें वक्फ की सूची से हटा (डिनोटिफाई करना) सकती हैं या नहीं?

• क्या कोई संपत्ति उपयोग के आधार पर वक्फ (वक्फ बाय यूजर) या किसी दस्तावेज के जरिए वक्फ (वक्फ बाय डीड) घोषित की जा सकती है?

• अगर किसी जमीन को पहले अदालत ने वक्फ घोषित कर दिया हो, तो क्या सरकार बाद में उसे वक्फ की सूची से हटा सकती है या नहीं?

अप्रैल में दोनों सदनों से मिली थी मंजूरी

बता दें कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल को अधिसूचित किया गया था, इसके पहले 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसकी मंज़ूरी दी थी. लोकसभा ने 3 अप्रैल को और राज्यसभा ने 4 अप्रैल को इसे मंजूरी दी थी। संसद से जैसे ही इसको मंजूरी मिली. उसी के बाद इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अंतरिम आदेश सुरक्षित रखने से पहले सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने लगातार तीन दिनों तक सुनवाई की। इसमें उन वकीलों की दलीलें सुनी गईं जो संशोधित वक्फ कानून को चुनौती दे रहे हैं, और केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें भी सुनी गईं।

सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस की मान्यता रद्द करने की मांग, याचिका में खरगे-राहुल गांधी पर गंभीर आरोप

#pilinsupremecourtseekingtoderegistercongressvotechori_campaign

सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की दई है। चुनाव आयोग पर आरोप लगाने को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। याचिकाकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल ने चुनाव आयोग के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने को लेकर कांग्रेस की मान्यता रद्द कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली है। याचिका में कांग्रेस का राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है।

संवैधानिक संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप

सतीश कुमार अग्रवाल द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस नेताओं ने चुनाव आयोग पर निराधार आरोप लगाकर एक संवैधानिक संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस की राजनीतिक पार्टी के रूप में मान्यता रद्द करने की मांग की है। याचिका में भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट ऑफ मंडमस (परमादेश) जारी करने की अपील की गई है, जिसमें केंद्र सरकार (प्रतिवादी नंबर 1) को कांग्रेस का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

दुष्प्रचार की एसआईटी जांच की मांग

याचिकाकर्ता का आरोप है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और सांसद राहुल गांधी के आरोप बेहद गंभीर और गैर जिम्मेदाराना हैं। इन दोनों ने एक संवैधानिक संस्था की साख को ठेस पहुंचाने की कोशिश की है और ऐसे में न सिर्फ पार्टी की मान्यता रद्द हो बल्कि इनके दुष्प्रचार की जांच एसआईटी से कराई जाए।

संविधान के प्रति वफादारी की शपथ तोड़ने का आरोप

याचिका में कुछ नियमों का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के समय भारत के संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की शपथ ली थी। हालांकि, ईसीआई के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान इस शपथ का उल्लंघन करता है और आयोग के कार्यों को गैरकानूनी तरीके से बाधित करने की कोशिश कर रहा है।

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, शेल्टर होम भेजे गए कुत्ते छोड़े जाएंगे, जानें पूरा आदेश

#supremecourtverdictonstray_dog

सुप्रीम कोर्ट में आज यानी शुक्रवार को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर आवारा कुत्तों को लेकर फैसला सुनाया है। अदालत ने शेल्टर होम भेजे गए कुत्तों को स्टरलाइजेशन के बाद छोड़ने का आदेश दिया है। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वह पूरे देश के लिए एक समान नियम लागू करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सभी राज्यों के नोटिस भेजा है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि खतरनाक कुत्तों को नहीं छोड़ा जाए। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने कुत्तों को खाना देने के लिए एक निर्धारित स्थान बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि हर जगह कुत्तों को खाना देने से समस्या होती है। इससे पहले 11 अगस्त को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को स्थाई रूप से डॉग शेल्टर्स भेजने का आदेश दिया गया था।

नसबंदी-टिकाककरण के बाद छोड़े जाएंगे आवारा कुत्ते

जस्टिस विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एन वी अंजारिया की पीठ ने 14 अगस्त को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा आवारा कुत्तों को छोड़ दिया, जाएगा मगर एक शर्त के साथ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नगर निगम प्राधिकरण आवारा कुत्तों को उठाने संबंधी दिए गए निर्देशों का पालन जारी रखें। हालांकि, इसमें इस बात को संशोधित किया है कि कुत्तों को अनिश्चितकाल तक शेल्टर होम रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि नसबंदी, टिकाककरण के बाद ही उनको उसी स्थान पर छोड़ा जाएगा, जहां से उनको उठाया गया था।

सार्वजनिक रूप से खाना खिलाने की अनुमति नहीं

सुप्रीम कुत्तों ने अपने आदेश में कहा कि आवारा कुत्तों को सार्वजनिक रूप से खाना खिलाने की अनुमति नहीं रहेगी। आवारा कुत्तों के लिए अलग से भोजन स्थान बनाए जाएंगे। इस तरह के भोजन खिलाने के कारण ही कई घटनाएं घटित हुई हैं। कुत्ते के काटने की वजह से लोगों को रेबीज़ बीमारी और कई छोटे बच्चों की मौत और गंभीर रूप से जख्मी भी हुए। आवारा कुत्तों के लिए अलग भोजन स्थल बनाए। कुत्तों को गोद लेने के लिए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को आवेदन करें।

पूरे देश में लागू होगा कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हम पिछले फैसले और आदेश में कुछ संसोधन कर रहे हैं। अब ये दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों के साथ-साथ पूरे देश में लागू किया जाएगा। सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर रहे हैं और हाईकोर्ट में लंबित सभी मामलों को यहां स्थानांतरित कर रहे हैं। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ आवारा कुत्तों के मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को लेकर नेशनल पॉलिसी बनाई जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी होंगे इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार, खरगे ने की घोषणा

#formersupremecourtjudgesudershanreddynamedindiaalliancecandidateforthevice_president

उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष ने भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इनके नाम का एलान किया। इससे पहले विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के नेताओं ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम पर फैसला लेने और उसकी घोषणा करने के लिए 10 राजाजी मार्ग पर बैठक की थी। बैठक के बाद विपक्ष ने उनके नाम का एलान किया। रेड्डी 21 अगस्त को नामांकन करेंगे। पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से होगा।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, उपराष्ट्रपति पद का यह चुनाव एक वैचारिक लड़ाई है और सभी विपक्षी दल इस पर सहमत हैं और यही कारण है कि हमने बी सुदर्शन रेड्डी को संयुक्त उम्मीदवार के रूप में नामित किया है। खरगे ने कहा कि बी सुदर्शन रेड्डी भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविदों में से एक हैं। उनका एक लंबा और प्रतिष्ठित कानूनी करियर रहा है। वे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम कर चुके हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के एक निरंतर और साहसी समर्थक रहे हैं। वे एक गरीब हितैषी व्यक्ति हैं। यदि आप उनके कई फैसले पढ़ेंगे, तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने कैसे गरीबों का पक्ष लिया और संविधान व मौलिक अधिकारों की रक्षा की।

कौन हैं जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी?

जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई, 1946 को अकुला मायलाराम गांव, पूर्व इब्राहिमपट्टनम तालुका, रंगारेड्डी (आंध्र प्रदेश) में हुआ था। उनका नाता वर्तमान में कंदुकुर राजस्व मंडल के तहत आने वाले गांव के एक कृषक परिवार से रहा। उन्होंने हैदराबाद में पढ़ाई की और 1971 में उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से कानून की डिग्री प्राप्त की।

1988 में सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील

बी. सुदर्शन रेड्डी 1971 को में हैदराबाद में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में रजिस्टर्ड हुए थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च हाई कोर्ट में रिट और सिविल मामलों में प्रैक्टिस की है। उन्होंने 1988-90 के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील के रूप में काम किया। उन्होंने 1990 के दौरान 6 महीने की अवधि के लिए केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में भी काम किया।

एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को बनाया उम्मीदवार

वहीं, एनडीए की तरफ से महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वो तमिलनाडु से आते हैं और आरएसएस से पुराना नाता रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी खरगे सहित विपक्षी नेताओं से संपर्क कर सर्वसम्मति से निर्णय लेने के लिए समर्थन मांगा था।

9 सितंबर को होना है उपराष्ट्रपति पद का चुनाव

यह पूरा घटनाक्रम 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर हो रहा है, जो पिछले महीने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जगदीप धनखड़ के पद से इस्तीफा देने के बाद जरूरी हो गया था। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 अगस्त है।

क्या आवारा कुत्तों पर बदल जाएगा सुप्रीम कोर्ट का आदेश? चीफ जस्टिस की टिप्पणी से मिल रहे संकेत

#willlookintothiscjionsupremecourtorderonstray_dogs

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नई बहस छिड़ गई है। कोर्ट ने 8 हफ्ते के अंदर शहर के सारे आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम्स में डालने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से डॉग लवर्स नाराज हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा सोचना चाहिए। आवारा कुत्तों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर रखने का मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) गवई के सामने भी उठाया गया है। इस मुद्दे पर सीजेआ ने अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले पर गौर करेंगे।

आवारा कुत्तों से जुड़े एक मामले को बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया गया। याचिका कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) नाम के एक संगठन की ओर से 2024 में दायर की गई थी। इसमें दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियमों के अनुसार दिल्ली में आवारा कुत्तों के नसबंदी और टीकाकरण के निर्देश देने की मांग वाली उनकी जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था। आज जब यह याचिका सामने लाई गई तो कोर्ट ने कहा कि वह इस पर विचार करेगी।

एक वरिष्ठ वकील ने सीजेआई गवई के समक्ष इस मामले को उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई थी। वकील ने इस मुद्दे पर अदालत के एक पुराने फैसले की तरफ ध्यान दिलाया। पिछले आदेश में बिना वजह कुत्तों को मारने पर रोक लगाई गई थी और सभी जीवों के प्रति करुणा बरतने की बात कही गई थी। इस पर सीजेआई गवई ने कहा, लेकिन दूसरी पीठ पहले ही आदेश दे चुकी है। मैं इस पर गौर करूंगा। वे न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ की ओर से 11 अगस्त को दिल्ली में आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने के आदेश का जिक्र कर रहे थे।

वकील की दलील पप क्या बोले सीजेआई?

इसके बाद वकील ने न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ की ओर से मई 2024 में पारित एक आदेश का हवाला दिया, जिसके तहत आवारा कुत्तों के मुद्दे से संबंधित याचिकाओं को संबंधित उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया गया था। वकील ने न्यायमूर्ति माहेश्वरी की पीठ की ओर से पारित आदेश का का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि किसी भी परिस्थिति में कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती। अधिकारियों को मौजूदा कानूनों और भावना के अनुसार कार्रवाई करनी होगी। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सभी जीवों के प्रति करुणा प्रदर्शित करना संवैधानिक मूल्य और जनभावना है। इसे बनाए रखना अधिकारियों का दायित्व है। तब मुख्य न्यायाधीश गवई ने जवाब दिया, 'मैं इस पर गौर करूंगा।'

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश?

दरअसल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने से हो रहे रेबीज मामलों, खासकर बच्चों की मौत, को बेहद गंभीर बताते हुए सभी आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द शेल्टर होम में शिफ्ट करने का आदेश दिया था। अदालत ने शुरुआती चरण में 5,000 कुत्तों के लिए 6-8 हफ्तों में शेल्टर बनाने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसके साथ ही डॉग लवर्स को चेतावनी दी कि इसमें बाधा डालने पर सख्त कार्रवाई होगी, यहां तक कि अवमानना की कार्यवाही भी हो सकती है।

जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की कैश कांड में जांच की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका

#supremecourtdismissesjusticeyashwantvarmaplea

जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज कर दी है। कैश कांड मामले में जांच प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता, इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस वर्मा ने कैश कांड में जांच प्रक्रिया को रोकने के लिए याचिका दाखिल की थी।

जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने आंतरिक तीन न्यायाधीशों की जांच समिति की रिपोर्ट और पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश को चुनौती दी थी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार दिया जाए। जस्टिस दीपंकर दत्ता और एजी मसीह की बेंच ने यह फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका भी खारिज की।

जांच पैनल पर लगाए थे आरोप

जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिए बिना ही दोषी ठहराया गया है। याचिका में तीन सदस्यीय जांच पैनल पर आरोप लगाया है कि उसने उन्हें पूरी और निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिए बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले।

क्या है पूरा कैश कांड

जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड इसी साल मार्च में आया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब होली की रात यानी 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित घर से जले हुए नोट मिले। उनके घर पर आग लग गई थी। आग पर काबू पाने के लिए दमकल विभाग की टीम आई थी। इसी टीम ने उनके घर में कैश देखा था। कुछ कैश जले भी बरामद किए गए थे। इस घटना ने न्यायिक हलकों में हड़कंप मचा दिया। इसके बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया और आरोपों की जांच के लिए एक आंतरिक समिति गठित की गई। सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने हटाने की सिफारिश की थी।

बिहार वोटर लिस्ट मामलाः 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

#supremecourtbiharsiraskelectioncommissiontopublishdetailsof65lakhdeletedvoters

बिहार के वोटर लिस्ट रीविजन (एसआईआर) को लेकर पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। संसद में विपक्ष विरोध प्रदर्शन कर रही है और इसके खिलाफ आवाज उठा रही है। वहीं, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर से जुड़ी याचिका दायर की गई है। कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआईआर के बाद प्रकाशित ड्राफ्ट मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के आरोपों पर चुनाव आयोग से शनिवार तक जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया है कि क्या एक अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट सूची को राजनीतिक दलों के साथ साझा किया गया था या नहीं?

जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुयान और एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, हमें हर उस वोटर की जानकारी चाहिए जिसका नाम हटाया गया है। ये देखें कि किस आधार पर नाम हटे हैं।

एडीआर ने याचिका दायर कर की ये मांग

दरअसल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग ने ड्राफ्ट लिस्ट में जो 65 लाख लोगों के नाम हटाए हैं उनकी जानकारी प्रकाशित करने के लिए आयोग को निर्देश देने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है। ADR की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण ने मामला मेंशन किया। 65 लाख लोगों को मसौदा सूची से हटाए जाने के संबंध में दाखिल आवेदन को मेंशन किया।

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि हम ने राजनीतिक दलों को हटाए गए लोगों की सूची दी है। हम वोटर लिस्ट को साफ करने का काम कर रहे हैं। हमारा मकसद है कि अपात्र लोग हटें और केवल सही लोग वोटर लिस्ट में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने आवेदन पर चुनाव आयोग से हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

65 लाख लोगों के हटाए गए नाम

बता दें कि बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत, चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि सिर्फ उन्हीं वोटर्स को ड्राफ्ट रोल में शामिल किया जाएगा जो 25 जुलाई तक गणना फॉर्म जमा करेंगे। चुनाव आयोग ने कहा कि राज्य के 7.89 करोड़ पंजीकृत वोटर्स में से 7.24 करोड़ से फॉर्म हासिल हो चुके हैं, यानी बाकी 65 लाख को हटा दिया गया है। आयोग ने 25 जुलाई को बताया, 22 लाख वोटर्स की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या फिर उनका पता नहीं चल पाया है, 7 लाख वोटर्स एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत हैं।

चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने की कोशिश, आरोपी वकील ने लगाया- ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा

#lawyer_hurled_shoe_at_cji_br_gavai_in_supreme_court

सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई पर हमला करने की कोशिश की। सोमवार को कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर जूता उछालने की कोशिश की। इस घटना के तुरंत पर वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी एक्शन में आ गए और उसके अदालत कक्ष से बाहर निकाल दिया। इस घटना के बाद कुछ समय तक अदालत की कार्रवाई स्थगित रही। बाद में कार्रवाई सुचारु रूप से शुरू हो सकी।

जानकारी के मुताबिक, वकील भरी अदालत में ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ का नारा लगाने लगा और फिर सीजेआई गवई की तरफ जूता फेंकने की कोशिश की। आरोपी की पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है। यह पूरी घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम में हुई। बाद में कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे बाहर निकाला। इससे कुछ देर के लिए कोर्ट की कार्यवाही बाधित रही।

सीजेआई गवई की प्रतिक्रिया आई सामने

यह घटना उस वक्त हुई जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच वकीलों के मामलों की सुनवाई के लिए मेंशन सुन रही थी। बताया जा रहा है कि वकील राकेश किशोर जज के डाइस के करीब पहुंचा और जूता उतारकर फेंकने की कोशिश की। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सीजेआई शांत बने रहे। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

भगवान विष्णु की मूर्ति पर की थी टिप्पणी

माना जा रहा है कि यह घटना खजुराहो में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति से जुड़े एक पुराने मामले में सीजेआई की टिप्पणी को लेकर हुई है, टिप्पणी का कई हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था। दरअसल, खजुराहो में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की एक शख्स की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था कि, जाकर स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था रखते हैं, तो प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।

सीजेआई की टिप्पणी की जमकर हुई आलोचना

सितंबर में जस्टिस बीआर गवई की भगवान विष्णु की प्रतिमा के पुनर्निर्माण के मामले में टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई थी। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके विरोध की बाढ़ आ गई थी और कई लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग की थी। जिसके बाद आलोचना के मद्देनजर सीजेआई ने कहा था कि वह 'सभी धर्मों' का सम्मान करते हैं।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, जानें कोर्ट ने क्‍या कहा

#supremecourtissuesnoticetocentreladakhjodhpurcentraljailsponapleaofsonamwangchuk_wife

सुप्रीम कोर्ट आज (6 अक्तूबर) को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई गिरफ्तारी को चुनौती दी गई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। कोर्ट ने इस मामले में तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जवाब मांगा है।

पत्नी गीतांजलि आंग्मो ने 2 अक्टूबर को यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक की गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से की गई है। साथ ही, गिरफ्तारी से उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। याचिका में उनकी तुरंत रिहाई की मांग की गई है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद सरकार से जवाब मांगा। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वांगचुक के वकील से यह भी पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए।

सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई

इस पर गीतांजलि आंग्मो की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की। उन्होंने जजों से कहा कि परिवार को सोनम को हिरासत में रखे जाने की वजह नहीं बताई गई हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वांगचुक को हिरासत के आधार बताए गए हैं।

14 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी है। सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंग्मो की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि हिरासत के आधार परिवार को नहीं बताए गए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत के आधार पहले ही बंदी को सौंपे जा चुके हैं, और वह उनकी पत्नी को आधार की एक प्रति दिए जाने की जांच करेंगे।

26 सितंबर को हुई थी गिरफ्तारी

वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख से गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वे जोधपुर की एक जेल में बंद हैं। यह गिरफ्तारी लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद की गई थी। इस हिंसा में जिसमें चार लोगों की मौत और करीब 90 लोग घायल हुए थे।

वांगचुक की पत्नी की याचिका में क्या है

इसके बाद वांगचुक की पत्नी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका कर हिरासत को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि वांगचुक के पाकिस्तान-चीन लिंक का झूठा प्रचार इस गांधीवादी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है। सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक झूठा और खतरनाक नैरेटिव फैलाया जा रहा है, जिससे उनके गांधीवादी आंदोलन को पाकिस्तान और चीन से जोड़कर बदनाम किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि ऐसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें लोकतांत्रिक असहमति को कलंकित करने का प्रयास हैं। याचिका में दावा किया गया है कि वास्तव में वांगचुक हमेशा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए काम करते रहे हैं और भारतीय सेना की मदद के लिए ऊंचाई वाले इलाकों में शेल्टर जैसी नई-नई तकनीकें विकसित की हैं। ये गिरफ्तारी गैरकानूनी है। उन्हें डिटेंशन ऑर्डर की कॉपी नहीं दी गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि अब तक न तो सोनम वांगचुक और न ही उनकी पत्नी को गिरफ्तारी आदेश या उसके आधार बताए गए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है।

सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए पत्नी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, पति की गिरफ्तारी को दी चुनौती

#sonamwangchukwifegitanjaliangmomovessupreme_court

लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सोनम वांगचुक की पत्नी ने अपने पति की गिरफ्तारी को चुनौती दी है। गीतांजलि ने हेबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है। उन्होंने सोनम की तत्काल रिहाई की मांग की है। गीतांजलि ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से भी हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने सरकार पर सोनम को "देशद्रोही" बताकर बदनाम करने का आरोप लगाया है।

गिरफ्तारी को बताया अवैध

सोनम वांगचुक की पत्नी ने याचिका में कहा गया है कि सोनम लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। उन पर गलत आरोप लगाए गए। अब उन्हें एनएसए के तहत हिरासत में लेकर जोधपुर ले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन प्रशासन ने इससे जुड़ा डिटेंशन ऑर्डर उपलब्ध नहीं करवाया है। ऐसे में यह हिरासत अवैध है। सोनम को रिहा किया जाए।

हिंसक झड़पों के बाद किए गए गिरफ्तार

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरण वैज्ञानिक सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं। सोनम वांगचुक को 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक झड़पों के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद से वह राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद हैं। अब वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने लद्दाख प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई उनके पति की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से खास अपील

गीतांजलि ने यह कदम सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तत्काल हस्तक्षेप की मांग के एक दिन बाद उठाया है। उन्होंने अपील की कि राष्ट्रपति एक आदिवासी होने के चलते लद्दाख के लोगों की भावनाओं को समझें। राष्ट्रपति मुर्मू को भेजे 3 पेज के पत्र में अंगमो ने आरोप लगाया कि पिछले 4 सालों से लोगों के हितों के लिए काम करने के कारण उनके पति के खिलाफ जासूसी कराई जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पति की स्थिति के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं। गीतांजलि ने अपने पति की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की है। उन्होंने अपने पत्र में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लेह जिला कलेक्टर से भी अपील की। उन्होंने अपना पत्र एक्स (ट्विटर) पर शेयर किया था।

भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार

बता दें कि सोनम वांगचुक राज्य का दर्जा, स्थानीय नौकरी सुरक्षा और लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर थे। धरना-प्रदर्शन और भूख हड़ताल के जरिए चल रहे आंदोलन ने पिछले दिनों उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस के साथ झड़पों में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। हिंसा को देखते हुए उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और शांति की अपील की। हालांकि, उन्हें हिंसक प्रदर्शनों और और भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पूरे एक्ट पर रोक से इनकार

#waqfamendmentactsupremecourt_verdict

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सीजेआई गवई ने साफ किया कि इस पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने दो अहम प्रावधानों पर रोक लगाई गई है। जिन दो प्रावधानों पर रोक लगाई है वो है- जिला कलेक्टर यह तय नहीं कर सकता कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं यह काम विधायिका और न्यायपालिका की भूमिका में हस्तक्षेप करता है और शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। साथ ही उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था।

शीर्ष अदालत ने वक्फ कानून से जुड़ी धारा 3 और धारा 4 पर रोक लगा दी है। सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि हमारे पास पूरे कानून पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये फैसला कानून की संवैधानिकता पर नहीं है। अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड का सीईओ मुस्लिम समुदाय से हो। कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड को 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर -मुस्लिम ना हो। कोर्ट ने इसके साथ ही राजस्व से संबंधित कानून पर रोक लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की उस प्रावधान पर रोक लगा दी है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना अनिवार्य था। अदालत ने कहा कि यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।

सीजेआई ने कहा कि हमने यह माना है कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है। केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही उस पर रोक लगाई जाती है। उन्होंने कहा कि हमने 1923 के अधिनियम से लेकर अब तक की विधायी पृष्ठभूमि का अध्ययन किया है। हमने प्रत्येक धारा को लेकर प्राथमिक स्तर पर चुनौती पर विचार किया, और पक्षों को सुनने के बाद यह पाया कि पूरे अधिनियम के प्रावधानों पर रोक लगाने का मामला सिद्ध नहीं हुआ है।

किन तीन मुद्दों पर सुनाया अंतरिम फैसला?

• क्या वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को अदालतें वक्फ की सूची से हटा (डिनोटिफाई करना) सकती हैं या नहीं?

• क्या कोई संपत्ति उपयोग के आधार पर वक्फ (वक्फ बाय यूजर) या किसी दस्तावेज के जरिए वक्फ (वक्फ बाय डीड) घोषित की जा सकती है?

• अगर किसी जमीन को पहले अदालत ने वक्फ घोषित कर दिया हो, तो क्या सरकार बाद में उसे वक्फ की सूची से हटा सकती है या नहीं?

अप्रैल में दोनों सदनों से मिली थी मंजूरी

बता दें कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल को अधिसूचित किया गया था, इसके पहले 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसकी मंज़ूरी दी थी. लोकसभा ने 3 अप्रैल को और राज्यसभा ने 4 अप्रैल को इसे मंजूरी दी थी। संसद से जैसे ही इसको मंजूरी मिली. उसी के बाद इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अंतरिम आदेश सुरक्षित रखने से पहले सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने लगातार तीन दिनों तक सुनवाई की। इसमें उन वकीलों की दलीलें सुनी गईं जो संशोधित वक्फ कानून को चुनौती दे रहे हैं, और केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें भी सुनी गईं।

सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस की मान्यता रद्द करने की मांग, याचिका में खरगे-राहुल गांधी पर गंभीर आरोप

#pilinsupremecourtseekingtoderegistercongressvotechori_campaign

सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की दई है। चुनाव आयोग पर आरोप लगाने को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। याचिकाकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल ने चुनाव आयोग के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने को लेकर कांग्रेस की मान्यता रद्द कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली है। याचिका में कांग्रेस का राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है।

संवैधानिक संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप

सतीश कुमार अग्रवाल द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस नेताओं ने चुनाव आयोग पर निराधार आरोप लगाकर एक संवैधानिक संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस की राजनीतिक पार्टी के रूप में मान्यता रद्द करने की मांग की है। याचिका में भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट ऑफ मंडमस (परमादेश) जारी करने की अपील की गई है, जिसमें केंद्र सरकार (प्रतिवादी नंबर 1) को कांग्रेस का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

दुष्प्रचार की एसआईटी जांच की मांग

याचिकाकर्ता का आरोप है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और सांसद राहुल गांधी के आरोप बेहद गंभीर और गैर जिम्मेदाराना हैं। इन दोनों ने एक संवैधानिक संस्था की साख को ठेस पहुंचाने की कोशिश की है और ऐसे में न सिर्फ पार्टी की मान्यता रद्द हो बल्कि इनके दुष्प्रचार की जांच एसआईटी से कराई जाए।

संविधान के प्रति वफादारी की शपथ तोड़ने का आरोप

याचिका में कुछ नियमों का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के समय भारत के संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की शपथ ली थी। हालांकि, ईसीआई के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान इस शपथ का उल्लंघन करता है और आयोग के कार्यों को गैरकानूनी तरीके से बाधित करने की कोशिश कर रहा है।

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, शेल्टर होम भेजे गए कुत्ते छोड़े जाएंगे, जानें पूरा आदेश

#supremecourtverdictonstray_dog

सुप्रीम कोर्ट में आज यानी शुक्रवार को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर आवारा कुत्तों को लेकर फैसला सुनाया है। अदालत ने शेल्टर होम भेजे गए कुत्तों को स्टरलाइजेशन के बाद छोड़ने का आदेश दिया है। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वह पूरे देश के लिए एक समान नियम लागू करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सभी राज्यों के नोटिस भेजा है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि खतरनाक कुत्तों को नहीं छोड़ा जाए। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने कुत्तों को खाना देने के लिए एक निर्धारित स्थान बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि हर जगह कुत्तों को खाना देने से समस्या होती है। इससे पहले 11 अगस्त को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को स्थाई रूप से डॉग शेल्टर्स भेजने का आदेश दिया गया था।

नसबंदी-टिकाककरण के बाद छोड़े जाएंगे आवारा कुत्ते

जस्टिस विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एन वी अंजारिया की पीठ ने 14 अगस्त को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा आवारा कुत्तों को छोड़ दिया, जाएगा मगर एक शर्त के साथ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नगर निगम प्राधिकरण आवारा कुत्तों को उठाने संबंधी दिए गए निर्देशों का पालन जारी रखें। हालांकि, इसमें इस बात को संशोधित किया है कि कुत्तों को अनिश्चितकाल तक शेल्टर होम रखा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि नसबंदी, टिकाककरण के बाद ही उनको उसी स्थान पर छोड़ा जाएगा, जहां से उनको उठाया गया था।

सार्वजनिक रूप से खाना खिलाने की अनुमति नहीं

सुप्रीम कुत्तों ने अपने आदेश में कहा कि आवारा कुत्तों को सार्वजनिक रूप से खाना खिलाने की अनुमति नहीं रहेगी। आवारा कुत्तों के लिए अलग से भोजन स्थान बनाए जाएंगे। इस तरह के भोजन खिलाने के कारण ही कई घटनाएं घटित हुई हैं। कुत्ते के काटने की वजह से लोगों को रेबीज़ बीमारी और कई छोटे बच्चों की मौत और गंभीर रूप से जख्मी भी हुए। आवारा कुत्तों के लिए अलग भोजन स्थल बनाए। कुत्तों को गोद लेने के लिए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को आवेदन करें।

पूरे देश में लागू होगा कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हम पिछले फैसले और आदेश में कुछ संसोधन कर रहे हैं। अब ये दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों के साथ-साथ पूरे देश में लागू किया जाएगा। सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर रहे हैं और हाईकोर्ट में लंबित सभी मामलों को यहां स्थानांतरित कर रहे हैं। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ आवारा कुत्तों के मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को लेकर नेशनल पॉलिसी बनाई जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी होंगे इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार, खरगे ने की घोषणा

#formersupremecourtjudgesudershanreddynamedindiaalliancecandidateforthevice_president

उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष ने भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इनके नाम का एलान किया। इससे पहले विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के नेताओं ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम पर फैसला लेने और उसकी घोषणा करने के लिए 10 राजाजी मार्ग पर बैठक की थी। बैठक के बाद विपक्ष ने उनके नाम का एलान किया। रेड्डी 21 अगस्त को नामांकन करेंगे। पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से होगा।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, उपराष्ट्रपति पद का यह चुनाव एक वैचारिक लड़ाई है और सभी विपक्षी दल इस पर सहमत हैं और यही कारण है कि हमने बी सुदर्शन रेड्डी को संयुक्त उम्मीदवार के रूप में नामित किया है। खरगे ने कहा कि बी सुदर्शन रेड्डी भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविदों में से एक हैं। उनका एक लंबा और प्रतिष्ठित कानूनी करियर रहा है। वे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम कर चुके हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के एक निरंतर और साहसी समर्थक रहे हैं। वे एक गरीब हितैषी व्यक्ति हैं। यदि आप उनके कई फैसले पढ़ेंगे, तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने कैसे गरीबों का पक्ष लिया और संविधान व मौलिक अधिकारों की रक्षा की।

कौन हैं जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी?

जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई, 1946 को अकुला मायलाराम गांव, पूर्व इब्राहिमपट्टनम तालुका, रंगारेड्डी (आंध्र प्रदेश) में हुआ था। उनका नाता वर्तमान में कंदुकुर राजस्व मंडल के तहत आने वाले गांव के एक कृषक परिवार से रहा। उन्होंने हैदराबाद में पढ़ाई की और 1971 में उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से कानून की डिग्री प्राप्त की।

1988 में सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील

बी. सुदर्शन रेड्डी 1971 को में हैदराबाद में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में रजिस्टर्ड हुए थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च हाई कोर्ट में रिट और सिविल मामलों में प्रैक्टिस की है। उन्होंने 1988-90 के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील के रूप में काम किया। उन्होंने 1990 के दौरान 6 महीने की अवधि के लिए केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में भी काम किया।

एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को बनाया उम्मीदवार

वहीं, एनडीए की तरफ से महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वो तमिलनाडु से आते हैं और आरएसएस से पुराना नाता रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी खरगे सहित विपक्षी नेताओं से संपर्क कर सर्वसम्मति से निर्णय लेने के लिए समर्थन मांगा था।

9 सितंबर को होना है उपराष्ट्रपति पद का चुनाव

यह पूरा घटनाक्रम 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर हो रहा है, जो पिछले महीने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जगदीप धनखड़ के पद से इस्तीफा देने के बाद जरूरी हो गया था। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 अगस्त है।

क्या आवारा कुत्तों पर बदल जाएगा सुप्रीम कोर्ट का आदेश? चीफ जस्टिस की टिप्पणी से मिल रहे संकेत

#willlookintothiscjionsupremecourtorderonstray_dogs

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नई बहस छिड़ गई है। कोर्ट ने 8 हफ्ते के अंदर शहर के सारे आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम्स में डालने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से डॉग लवर्स नाराज हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा सोचना चाहिए। आवारा कुत्तों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर रखने का मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) गवई के सामने भी उठाया गया है। इस मुद्दे पर सीजेआ ने अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले पर गौर करेंगे।

आवारा कुत्तों से जुड़े एक मामले को बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया गया। याचिका कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) नाम के एक संगठन की ओर से 2024 में दायर की गई थी। इसमें दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियमों के अनुसार दिल्ली में आवारा कुत्तों के नसबंदी और टीकाकरण के निर्देश देने की मांग वाली उनकी जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था। आज जब यह याचिका सामने लाई गई तो कोर्ट ने कहा कि वह इस पर विचार करेगी।

एक वरिष्ठ वकील ने सीजेआई गवई के समक्ष इस मामले को उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई थी। वकील ने इस मुद्दे पर अदालत के एक पुराने फैसले की तरफ ध्यान दिलाया। पिछले आदेश में बिना वजह कुत्तों को मारने पर रोक लगाई गई थी और सभी जीवों के प्रति करुणा बरतने की बात कही गई थी। इस पर सीजेआई गवई ने कहा, लेकिन दूसरी पीठ पहले ही आदेश दे चुकी है। मैं इस पर गौर करूंगा। वे न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ की ओर से 11 अगस्त को दिल्ली में आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने के आदेश का जिक्र कर रहे थे।

वकील की दलील पप क्या बोले सीजेआई?

इसके बाद वकील ने न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ की ओर से मई 2024 में पारित एक आदेश का हवाला दिया, जिसके तहत आवारा कुत्तों के मुद्दे से संबंधित याचिकाओं को संबंधित उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया गया था। वकील ने न्यायमूर्ति माहेश्वरी की पीठ की ओर से पारित आदेश का का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि किसी भी परिस्थिति में कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती। अधिकारियों को मौजूदा कानूनों और भावना के अनुसार कार्रवाई करनी होगी। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सभी जीवों के प्रति करुणा प्रदर्शित करना संवैधानिक मूल्य और जनभावना है। इसे बनाए रखना अधिकारियों का दायित्व है। तब मुख्य न्यायाधीश गवई ने जवाब दिया, 'मैं इस पर गौर करूंगा।'

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश?

दरअसल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने से हो रहे रेबीज मामलों, खासकर बच्चों की मौत, को बेहद गंभीर बताते हुए सभी आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द शेल्टर होम में शिफ्ट करने का आदेश दिया था। अदालत ने शुरुआती चरण में 5,000 कुत्तों के लिए 6-8 हफ्तों में शेल्टर बनाने का आदेश दिया। कोर्ट ने इसके साथ ही डॉग लवर्स को चेतावनी दी कि इसमें बाधा डालने पर सख्त कार्रवाई होगी, यहां तक कि अवमानना की कार्यवाही भी हो सकती है।

जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की कैश कांड में जांच की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका

#supremecourtdismissesjusticeyashwantvarmaplea

जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज कर दी है। कैश कांड मामले में जांच प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता, इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस वर्मा ने कैश कांड में जांच प्रक्रिया को रोकने के लिए याचिका दाखिल की थी।

जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने आंतरिक तीन न्यायाधीशों की जांच समिति की रिपोर्ट और पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश को चुनौती दी थी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार दिया जाए। जस्टिस दीपंकर दत्ता और एजी मसीह की बेंच ने यह फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका भी खारिज की।

जांच पैनल पर लगाए थे आरोप

जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिए बिना ही दोषी ठहराया गया है। याचिका में तीन सदस्यीय जांच पैनल पर आरोप लगाया है कि उसने उन्हें पूरी और निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिए बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले।

क्या है पूरा कैश कांड

जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड इसी साल मार्च में आया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब होली की रात यानी 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित घर से जले हुए नोट मिले। उनके घर पर आग लग गई थी। आग पर काबू पाने के लिए दमकल विभाग की टीम आई थी। इसी टीम ने उनके घर में कैश देखा था। कुछ कैश जले भी बरामद किए गए थे। इस घटना ने न्यायिक हलकों में हड़कंप मचा दिया। इसके बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया और आरोपों की जांच के लिए एक आंतरिक समिति गठित की गई। सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने हटाने की सिफारिश की थी।

बिहार वोटर लिस्ट मामलाः 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

#supremecourtbiharsiraskelectioncommissiontopublishdetailsof65lakhdeletedvoters

बिहार के वोटर लिस्ट रीविजन (एसआईआर) को लेकर पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। संसद में विपक्ष विरोध प्रदर्शन कर रही है और इसके खिलाफ आवाज उठा रही है। वहीं, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर से जुड़ी याचिका दायर की गई है। कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआईआर के बाद प्रकाशित ड्राफ्ट मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के आरोपों पर चुनाव आयोग से शनिवार तक जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया है कि क्या एक अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट सूची को राजनीतिक दलों के साथ साझा किया गया था या नहीं?

जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुयान और एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, हमें हर उस वोटर की जानकारी चाहिए जिसका नाम हटाया गया है। ये देखें कि किस आधार पर नाम हटे हैं।

एडीआर ने याचिका दायर कर की ये मांग

दरअसल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग ने ड्राफ्ट लिस्ट में जो 65 लाख लोगों के नाम हटाए हैं उनकी जानकारी प्रकाशित करने के लिए आयोग को निर्देश देने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है। ADR की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण ने मामला मेंशन किया। 65 लाख लोगों को मसौदा सूची से हटाए जाने के संबंध में दाखिल आवेदन को मेंशन किया।

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि हम ने राजनीतिक दलों को हटाए गए लोगों की सूची दी है। हम वोटर लिस्ट को साफ करने का काम कर रहे हैं। हमारा मकसद है कि अपात्र लोग हटें और केवल सही लोग वोटर लिस्ट में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने आवेदन पर चुनाव आयोग से हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

65 लाख लोगों के हटाए गए नाम

बता दें कि बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत, चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि सिर्फ उन्हीं वोटर्स को ड्राफ्ट रोल में शामिल किया जाएगा जो 25 जुलाई तक गणना फॉर्म जमा करेंगे। चुनाव आयोग ने कहा कि राज्य के 7.89 करोड़ पंजीकृत वोटर्स में से 7.24 करोड़ से फॉर्म हासिल हो चुके हैं, यानी बाकी 65 लाख को हटा दिया गया है। आयोग ने 25 जुलाई को बताया, 22 लाख वोटर्स की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या फिर उनका पता नहीं चल पाया है, 7 लाख वोटर्स एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत हैं।