भारत के लिए भी क्यों जरूरी है मालदीव?
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मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत के लिए मालदीव, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक नजरिए से बेहद अहम देश है। 1965 में आजादी के बाद मालदीव को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में भारत शामिल था। बाद में भारत ने 1972 में मालदीव में अपना दूतावास भी खोला। मालदीव भारत का करीबी रहा है और जरूरत पड़ने पर भारत ही मालदीव की मदद करता रहा है। हालांकि हाल में दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव ने जगह ले ली है।
पिछले साल सितंबर में 54 फ़ीसदी वोटों के साथ राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज़्ज़ू को जीत मिली थी। नवंबर में मुइज़्ज़ू ने द्वीपीय देश मालदीव के आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। मुइज़्ज़ू ने राष्ट्रपति बनते ही संकेत दे दिया कि उनकी विदेश नीति में भारत से दूरी बनाना प्राथमिकता में है। मुइज़्ज़ू ने शपथ लेने के बाद राष्ट्र के नाम पहले संबोधन में मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी की बात दोहराई। उन्होंने पहला विदेश दौरा तुर्की का किया। मुइज़्ज़ू ने एक परंपरा तोड़ी क्योंकि इससे पहले मालदीव का नया राष्ट्रपति पहला विदेशी दौरा भारत का करता था। तुर्की के बाद मुइज़्ज़ू यूएई गए और अभी चीन के पाँच दिवसीय दौरे पर गए।
मालदीव पर “मुलायम” रवैया
मालदीव में मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद से संबंधों में पहले से ही तनातनी थी। हालांकि, जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप में पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल की तो दोनों देशों के बीच गतिरोध बढ़ गया। मालदीव में तीन मंत्रियों ने पीएम मोदी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी भी की। जिसके बाद भारत ने भी सख्ती दिखाई। लेकिन अब, भारत ने मालदीव के साथ अपने संबंधों में तनाव के बावजूद बड़ा फैसला लिया है। भारत ने मोइज्जू सरकार के साथ संबंधों में खटास के बावजूद सामानों के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया है। भारत विवाद के बावजूद मालदीव को जरूरी सामान भेजता रहेगा। खास बात ये है कि सामान की जो मात्रा तय की गई है वो 1981 के बाद सबसे ज्यादा होगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर भारत की इस चाल के पीछे की वजह क्या है?
भारत के लिए अहम मालदीव
दरअसल, हिन्द महासागर में मालदीव भारत का एक अहम समुद्री पड़ोसी देश है। मालदीव की भौगोलिक स्थिति भारत की रणनीति के लिहाज से काफ़ी अहम है। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दिलचस्पी के कारण मालदीव की अहमियत भारत के लिए और बढ़ गई है। मालदीव लक्षद्वीप से मात्र 700 किलोमीटर दूर है और भारत के मुख्य भूभाग से मात्र 1200 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी और सागर सुरक्षा सहायता के तहत भी मालदीव जरूरी हो जाता है। मालदीव में मौजूदगी से भारत को हिंद महासागर के एक प्रमुख हिस्से पर नजर रखने की क्षमता मिल जाती है। हिंद महासागर में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई देशों में मौजूदगी को बढ़ा रहा है तो दूसरी तरफ उसको रोकने के लिए भारत इन देशों में अपनी मौजूदगी को मजबूत बनाए रखना चाहता है।
भारत के लिए क्यों अहम है मालदीव?
हिंद महासागर के अंदर लाइन ऑफ कम्युनिकेशन को सुरक्षित रखने के लिए मालदीव की लोकेशन से काफी कुछ हासिल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप सर्विलांस भी रखना चाहते हैं तो मालदीव की लोकेशन एक प्रकार का परमानेंट एयरक्राफ्ट कैरियर है। यूरोप में जब महायुद्ध हो रहा था तो माल्टा द्वीप (जोकि मेडिटरेनियन के अंदर है) की खासियत इसकी साइज नहीं था, उसका जियोग्राफिक लोकेशन था, जोकि स्ट्रैटेजिक या सामरिक बन जाता है। इसी दृष्टिकोण से इस वक्त मालदीव्स अपनी लोकेशन की वजह से बहुत अहम है और उसकी अहमियत को चीन ने बहुत अच्छी तरह समझ लिया है।
इसलिए पिछले 500 साल के बाद चीन ने हिंद महासागर में पहली बार 2008 में प्रवेश किया। 2007-08 में समुद्री लुटेरों की वजह से चीन ग्लोबल एंटी पायरेसी एफर्ट का बहाना बनाकर यहां पर आ गया और तभी से उसके जहाज 24×7 यहां पर मौजूद रहते हैं। वह जिबूती से लेकर मालदीव, मालदीव से लेकर यूएई, पाकिस्तान और हिंद महासागर वेस्टर्न इंडियन ओशन में अपनी पकड़ बनाए हुए है और यह भारत को परेशान करने वाली बात है। हिंद महासागर अभी सामरिक और सामुद्रिक दृष्टिकोण से चीन के लिए, अमेरिका के लिए और भारत के लिए एक बहुत अहम क्षेत्र हो गया है और उसे दायरे में हमको मालदीव को समझना चाहिए।
हिंद महासागर में चीन अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणीनीति पर काम कर रहा है। इसके तहत चीन हिंद महासागर के आस पास के देशों में रणनीतिक बंदरगाह बना रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर उनका मिलिट्री इस्तेमाल कर सके। चीन की मौजूदगी पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती और श्रीलंका के हंबनटोटा तक है। ये बंदरगाह चीन की हिंदमहासागार रीजन में मिलिट्री पहुंच बढ़ा रहे हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर मालदीव से भारत की दूरी बढ़ी और चीन उनके ज्यादा करीब आ गया तो वह हिंद महासागर में परेशानी बढ़ा सकता है। साथ ही भारत का सारा समुद्री ट्रैफिक यहीं से आता है। अगर चीन वहां अपनी पकड़ बना कर कुछ हरकत करता है और भारत को अपना ट्रैफिक डायवर्ट करना पड़ता है तो यह महंगा भी साबित होगा।
Apr 08 2024, 15:12