1984 के सिख विरोधी दंगे: सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा
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PTI
1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक माने जाते हैं। इन दंगों के बाद सिखों के खिलाफ हुई हिंसा और अत्याचारों को लेकर आज भी न्याय की मांग की जाती है। हाल ही में, इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला आया, जिसमें पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में पिता-पुत्र की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। यह फैसला 41 साल बाद आया और सिख समुदाय के लिए एक बड़ी जीत माना गया।
सज्जन कुमार और उनका कृत्य
सज्जन कुमार पर आरोप था कि उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान भीड़ को उकसाया और हिंसा के लिए उन्हें प्रेरित किया। विशेष रूप से, दिल्ली के सरस्वती विहार में हुई हत्या का मामला गंभीर था, जहां शिकायतकर्ता के पति और बेटे की हत्या की गई थी। अदालत ने 12 फरवरी 2025 को कुमार को दोषी ठहराया और तिहाड़ जेल के अधिकारियों से उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन की रिपोर्ट मांगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सज्जन कुमार का कृत्य एक संगठित हिंसा का हिस्सा था और उसे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।
दंगे की पृष्ठभूमि
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिखों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी। इंदिरा गांधी की हत्या उनके सिख अंगरक्षकों ने की थी, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सिख आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में शामिल थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, दिल्ली और अन्य राज्यों में सिखों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। सिखों के घरों, दुकानों और गुरुद्वारों को निशाना बनाया गया, और सैकड़ों निर्दोष सिखों की हत्या की गई।
अदालत का निर्णय
अदालत ने सज्जन कुमार को इस कृत्य में दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, कुछ सिख संगठनों और नेताओं ने इस सजा को नकारात्मक रूप से देखा और अधिकतम सजा की मांग की। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के महासचिव जगदीप सिंह कहलों ने कहा कि उन्हें मौत की सजा की उम्मीद थी। उनका मानना था कि सज्जन कुमार जैसे अपराधी को मौत की सजा दी जानी चाहिए थी।
दंगों के बाद की स्थिति
1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान दर्ज की गई एफआईआर में से अधिकांश मामलों में आरोपियों को या तो बरी कर दिया गया या मामलों को बंद कर दिया गया। इस दौरान केवल कुछ हत्याओं में ही न्याय की प्रक्रिया पूरी हुई। सज्जन कुमार को एक अन्य मामले में भी दोषी ठहराया गया था, जिसमें उन्होंने राज नगर इलाके में भीड़ को उकसाया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें इस मामले में भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
एचएस फुल्का की दलील और अधिकतम सजा की मांग
इस मामले में शिकायतकर्ता के वकील, एचएस फुल्का ने सज्जन कुमार के लिए अधिकतम सजा की मांग की। उन्होंने कहा कि कुमार ने हत्याओं को बढ़ावा दिया और नरसंहार का नेतृत्व किया। फुल्का ने अदालत से आग्रह किया कि ऐसे अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए और उन्होंने कहा कि सज्जन कुमार मौत की सजा का हकदार है।
नानावटी आयोग की रिपोर्ट
1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए नानावटी आयोग को नियुक्त किया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इन दंगों के कारण 2,733 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें अधिकांश सिख थे। इस आयोग ने यह भी बताया कि 240 मामलों को "अज्ञात" के आधार पर बंद कर दिया गया था, और 250 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया था। कुल मिलाकर, 28 मामलों में ही दोषियों को सजा दी गई थी, जिनमें से कुछ मामलों में सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया था।
1984 के सिख विरोधी दंगे भारत के इतिहास में एक अंधेरे दौर के रूप में याद किए जाते हैं। सज्जन कुमार जैसे नेताओं को उनकी भूमिका के लिए सजा मिलना न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या उन्हें और उनके जैसे अन्य अपराधियों को अधिकतम सजा मिलनी चाहिए थी। अदालत का यह फैसला 41 साल बाद आया, और यह सिख समुदाय के लिए उम्मीद की एक किरण है कि न्याय के साथ देर से ही सही, सच का पर्दाफाश हुआ। फिर भी, जब तक सच्चाई और न्याय की पूरी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक यह स्थिति संतोषजनक नहीं हो सकती।
Feb 25 2025, 16:37